बिहार बोर्ड कक्षा 10 वी हिंदी - गद्य खण्ड - जित-जित मै निरखत हूँ के Handwritten नोट्स
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बिहार बोर्ड कक्षा 10 वी हिंदी - गद्य खण्ड - अध्याय 8: जित-जित मै निरखत हूँ के Handwritten नोट्स

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"जित-जित मैं निरखत हूँ" संत कबीर की एक ऐसी रचना है जो आत्म-अवलोकन और ईश्वर की सर्वव्यापकता पर आधारित है। यह पाठ समझाने का प्रयास करता है कि ईश्वर किसी विशेष स्थान या रूप में सीमित नहीं हैं, बल्कि वह हर कण में विद्यमान हैं। कबीरदास ने इस साखी के माध्यम से बाहरी आडंबरों से दूर रहकर आत्मा और परमात्मा को पहचानने की प्रेरणा दी है।

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मुख्य बिंदु

ईश्वर की सर्वव्यापकता

  • कबीरदास कहते हैं कि हर स्थान, हर जीव और हर कण में ईश्वर का निवास है।
  • बाहरी दिखावे के बजाय, अपने भीतर ईश्वर को खोजने का प्रयास करना चाहिए।

धार्मिक पाखंड का विरोध

  • साखी में धार्मिक आडंबर और पाखंड की निंदा की गई है।
  • सच्चे भक्त को आत्मिक साधना पर ध्यान देना चाहिए।

आत्म-अवलोकन का महत्व

  • आत्म-अवलोकन से व्यक्ति सच्चे अर्थों में ईश्वर को समझ सकता है।
  • अपने अंदर झांककर परमात्मा का अनुभव करना ही सच्ची भक्ति है।

सरल और प्रभावी भाषा

  • साखी की भाषा आम जनमानस के लिए सरल और प्रभावशाली है।
  • यह गहरी आध्यात्मिक बातों को सीधे और स्पष्ट रूप में प्रस्तुत करती है।

निष्कर्ष

"जित-जित मैं निरखत हूँ" साखी हमें यह सिखाती है कि ईश्वर हर स्थान पर हैं, और उन्हें पहचानने के लिए किसी बाहरी साधन की आवश्यकता नहीं है। हमें अपने भीतर झांककर, धार्मिक पाखंड से दूर रहकर और सच्चाई के साथ जीवन जीकर ईश्वर की प्राप्ति करनी चाहिए।