बिहार बोर्ड कक्षा 10 वी विज्ञान - अध्याय 9: अनुवंशिकता एवं जैव विकास की NCERT Book
अनुवंशिकता और जैव विकास जीवों के गुणों के संवहन और जीवन के विकास के महत्वपूर्ण पहलू हैं। अनुवंशिकता वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा माता-पिता के गुण उनकी संतानों तक पहुंचते हैं। जैव विकास से तात्पर्य जीवन के विभिन्न रूपों के विकास से है, जो समय के साथ बदलते रहते हैं। इस अध्याय में हम जानेंगे कि अनुवंशिकता कैसे काम करती है और जैव विकास के सिद्धांतों को समझेंगे।
मुख्य बिंदु:
1. अनुवंशिकता (Heredity)
- अनुवंशिकता वह प्रक्रिया है, जिसमें माता-पिता के गुण (जैसे, रंग, आकार, अन्य शारीरिक गुण) संतानों तक पहुंचते हैं।
- यह प्रक्रिया डीएनए (DNA) द्वारा नियंत्रित होती है, जो जीवों के गुणसूत्रों (Chromosomes) में स्थित होता है।
- प्रत्येक व्यक्ति का डीएनए संरचना में अनूठा होता है, लेकिन कुछ गुणों का स्थानांतरण उसके माता-पिता से होता है।
2. गुणसूत्र (Chromosomes)
- गुणसूत्र कोशिका में स्थित संरचनाएँ होती हैं, जिनमें जीन (Gene) होते हैं, जो अनुवांशिक गुणों को नियंत्रित करते हैं।
- मनुष्यों में कुल 46 गुणसूत्र होते हैं, जो 23 जोड़ें बनाते हैं (एक जोड़ मां से और एक जोड़ पिता से प्राप्त होता है)।
- जीन वह हिस्सा होता है जो एक विशेष गुण (जैसे बालों का रंग) को नियंत्रित करता है।
3. जीन और एलिली (Gene and Alleles)
- जीन वह संरचना है जो एक गुण को नियंत्रित करता है। एक ही गुण के विभिन्न रूपों को एलिली (Alleles) कहा जाता है।
- उदाहरण: आंखों के रंग का गुण दो एलिली हो सकता है—एक जो नीली आंखों का कारण बने और एक जो भूरे रंग की आंखों का कारण बने।
- एलिली एक दूसरे के साथ कार्य करते हैं और संतान में विभिन्न गुणों का संयोजन करते हैं।
4. मेन्डल के सिद्धांत (Mendel's Laws)
- मेन्डल ने अनुवांशिकता के सिद्धांतों को स्थापित किया, जो आज भी महत्वपूर्ण हैं।
- पहला सिद्धांत: गुणों का पृथक्करण (Law of Segregation) — प्रत्येक गुण का एक संस्करण (एलिली) एक समय में केवल एक गुणसूत्र में होता है।
- दूसरा सिद्धांत: स्वतंत्र संयोजन का सिद्धांत (Law of Independent Assortment) — विभिन्न गुण एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से संयोजित होते हैं।
- इन सिद्धांतों का उपयोग करके हम किसी विशेष गुण के हस्तांतरण को समझ सकते हैं।
5. जैव विकास (Biological Evolution)
- जैव विकास से तात्पर्य उस प्रक्रिया से है, जिसके द्वारा जीवन के विभिन्न रूप समय के साथ परिवर्तित होते हैं।
- चार्ल्स डार्विन ने विकास के सिद्धांत (Theory of Evolution) का प्रतिपादन किया, जिसमें उनका कहना था कि प्रजातियाँ प्राकृतिक चयन (Natural Selection) के माध्यम से धीरे-धीरे विकसित होती हैं।
- डार्विन के अनुसार, उन प्रजातियों का अस्तित्व ज्यादा समय तक रहता है, जो पर्यावरण में अपने आपको अच्छे से अनुकूलित करती हैं।
6. विकास के प्रमाण (Evidence of Evolution)
- विकास के सिद्धांत का समर्थन कई प्रमाणों द्वारा किया जाता है:
- सांस्कृतिक प्रमाण: जीवों के शरीर में समानताएँ, जैसे हड्डियाँ, अंग, और संरचनाएँ।
- जैविक प्रमाण: विभिन्न प्रजातियाँ जो समय के साथ विकसित हुई हैं, जैसे कि मानव और बंदर के समान हड्डियाँ।
- जैविक संरचनाओं में परिवर्तन: जैसे हाथी के दांत और मस्तodon की हड्डियों में परिवर्तन।
- जीवाश्म (Fossils): पुरानी प्रजातियों के जीवाश्म विकास के प्रमाण प्रदान करते हैं।
7. आनुवंशिक उत्परिवर्तन (Genetic Mutation)
- उत्परिवर्तन वह प्रक्रिया है, जिसमें डीएनए में कोई स्थायी परिवर्तन होता है।
- उत्परिवर्तन प्राकृतिक चयन का एक हिस्सा होते हैं, क्योंकि यह नए गुण उत्पन्न कर सकते हैं जो जीवों को पर्यावरण में अनुकूल बनाते हैं।
- यह उत्परिवर्तन गुणसूत्रों में बदलाव, जीन की नकल, और पर्यावरणीय दबाव के कारण होते हैं।
निष्कर्ष:
अनुवंशिकता और जैव विकास जैविक जीवन के अध्ययन में केंद्रीय सिद्धांत हैं। अनुवंशिकता के माध्यम से जीव अपने गुणों को संतानों तक पहुंचाते हैं, जबकि जैव विकास के माध्यम से जीवन के रूप समय के साथ बदलते रहते हैं। इन सिद्धांतों का अध्ययन हमारे जीवन के विविध रूपों और उनके अस्तित्व के कारणों को समझने में मदद करता है।
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