बिहार बोर्ड कक्षा 10 वी सामाजिक विज्ञान -इतिहास- अध्याय 4: भारत में राष्ट्रवाद की NCERT Book
"भारत में राष्ट्रवाद" अध्याय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि और घटनाओं पर केंद्रित है। यह ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय समाज में राष्ट्रवादी भावनाओं के विकास और स्वतंत्रता के लिए किए गए आंदोलनों को समझने में मदद करता है। इस अध्याय में स्वदेशी आंदोलन, खिलाफत आंदोलन, असहयोग आंदोलन, और सविनय अवज्ञा आंदोलन जैसे प्रमुख घटनाओं का वर्णन किया गया है।
मुख्य बिंदु
औपनिवेशिक शासन का प्रभाव
ब्रिटिश शासन ने भारत में राजनीतिक, आर्थिक, और सामाजिक शोषण किया।
किसानों, मजदूरों, और व्यापारियों के बीच असंतोष बढ़ा।राष्ट्रवाद का उदय
19वीं सदी के अंत में भारतीय समाज में राष्ट्रवाद का उदय हुआ।
शिक्षा और प्रेस ने लोगों में राजनीतिक जागरूकता बढ़ाई।स्वदेशी आंदोलन और बहिष्कार
बंगाल विभाजन (1905) के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन चलाया गया।
विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और स्वदेशी वस्त्रों का उपयोग बढ़ाया गया।महात्मा गांधी और जन आंदोलन
गांधीजी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन (1920-22) ने व्यापक जनभागीदारी को प्रेरित किया।
सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930) में नमक सत्याग्रह और विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार पर जोर दिया गया।खिलाफत आंदोलन
1919 में खिलाफत आंदोलन शुरू हुआ, जो हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बना।
यह आंदोलन तुर्की के खलीफा की सत्ता बहाली के लिए था।भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान "भारत छोड़ो आंदोलन" ने ब्रिटिश सरकार पर अंतिम दबाव बनाया।
इस आंदोलन ने "करो या मरो" का नारा दिया।संविधान और स्वतंत्रता
भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।
1950 में भारत का संविधान लागू हुआ, जिससे देश एक गणतांत्रिक राष्ट्र बना।
निष्कर्ष
"भारत में राष्ट्रवाद" अध्याय हमें स्वतंत्रता संग्राम की प्रमुख घटनाओं और उनके सामाजिक-राजनीतिक प्रभावों को समझने में मदद करता है। यह भारतीय लोगों की एकता, संघर्ष और बलिदान की गाथा है, जिसने देश को स्वतंत्रता दिलाई और आधुनिक भारत की नींव रखी।