बिहार बोर्ड कक्षा 10 वी सामाजिक विज्ञान -इतिहास- अध्याय 8: प्रेस एवं सस्कृतिक राष्ट्रवाद की NCERT Book
"प्रेस एवं सांस्कृतिक राष्ट्रवाद" विषय भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में प्रेस और संस्कृति के महत्व को उजागर करता है। 19वीं सदी के अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में प्रेस ने भारतीय समाज में जागरूकता फैलाने और राष्ट्रवादी विचारों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ने भारतीय संस्कृति और इतिहास को पुनः स्थापित करने के लिए प्रयास किए, जो ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरोध में थे।
मुख्य बिंदु
प्रेस का उदय और भूमिका
- ब्रिटिश शासन के तहत भारतीय प्रेस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- भारतीय पत्र-पत्रिकाओं जैसे "उदंत मार्तंड", "हिंदू", "इंडियन नेशन", और "युवक भारत" ने औपनिवेशिक शासन के खिलाफ राष्ट्रवादी विचारों को फैलाया।
- इन पत्रिकाओं ने स्वतंत्रता संग्राम के विचारों को जन-जन तक पहुँचाया और समाज में राजनीतिक जागरूकता बढ़ाई।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का परिभाषा
- सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ने भारतीय संस्कृति, धर्म, और इतिहास की पुनर्स्थापना का लक्ष्य रखा।
- यह ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय पहचान को बचाने और पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव को चुनौती देने का एक तरीका था।
रवींद्रनाथ ठाकुर (रवींद्रनाथ ठाकुर) और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद
- रवींद्रनाथ ठाकुर (रवींद्रनाथ ठाकुर) ने भारतीय सांस्कृतिक धरोहर और साहित्य को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया।
- उनका लेखन भारतीय आत्म-सम्मान और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाला था।
लक्ष्मीबाई, वीर सावरकर और लोक कलाओं का योगदान
- वीर सावरकर, बाल गंगाधर तिलक और लक्ष्मीबाई जैसे नेताओं ने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विचारों को प्रोत्साहित किया।
- इन नेताओं ने भारतीय जनता को अपनी संस्कृति और इतिहास पर गर्व महसूस कराया।
ब्रिटिश शासन के खिलाफ सांस्कृतिक प्रतिक्रिया
- ब्रिटिश शासन ने भारतीय संस्कृति को नीचा दिखाने की कोशिश की, लेकिन भारतीय राष्ट्रवादियों ने अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोने और उसका प्रचार करने की दिशा में कई कदम उठाए।
- भारतीय कला, संगीत, साहित्य और नृत्य के माध्यम से भारतीय संस्कृति को सम्मानित किया गया।
प्रेस और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का संबंध
- प्रेस और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का आपस में गहरा संबंध था, क्योंकि प्रेस के माध्यम से ही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विचार फैलाए गए।
- साहित्य, लेखन, कला, और संगीत के माध्यम से प्रेस ने भारतीय समाज में जागरूकता और राष्ट्रीयता की भावना जगाई।
निष्कर्ष
"प्रेस एवं सांस्कृतिक राष्ट्रवाद" अध्याय यह स्पष्ट करता है कि प्रेस और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रेस ने राष्ट्रवादी विचारों को जन-जन तक पहुँचाया, जबकि सांस्कृतिक राष्ट्रवाद ने भारतीय पहचान को पुनः स्थापित करने में मदद की। इन दोनों ने मिलकर भारतीय समाज को स्वतंत्रता की दिशा में प्रेरित किया।