बिहार बोर्ड कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 11 पादपों में परिवहन लघु उत्तरी प्रश्न
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बिहार बोर्ड कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 11 पादपों में परिवहन लघु उत्तरी प्रश्न

लघु उत्तरी प्रश्न

प्रश्न 1. विसरण की दर को कौन-से कारक प्रभावित करते हैं?
उत्तर : विसरण की दर को प्रभावित करने वाले कारक निम्न हैं

1. तापमान :
तापमान के बढ़ने से विसरण की दर बढ़ती है।

2. विसरण कर रहे पदार्थों का घनत्व :
विसरण की दर विसरण कर रहे पदार्थों के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होती है। इसको ग्राह्म के विसरण का नियम (Graham’ law of diffusion) कहते हैं।

3. विसरण का माध्यम :
अधिक सान्द्र माध्यमे में विसरण की दर कम हो जाती है।

4. विसरण दाब प्रवणता :
विसरण दाब प्रवणता जितनी अधिक होती है अणुओं का विसरण उतना ही तीव्र होता है

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प्रश्न 2. पोरीन्स क्या हैं? विसरण में ये क्या भूमिका निभाते हैं?
उत्तर : पोरीन्स प्रोटीन के वृहत अणु हैं जो माइटोकॉण्डूया, क्लोरोप्लास्ट तथा (UPBoardSolutions.com) कुछ जीवाणुओं की बाह्य कला में धंसे रहते हैं। ये बड़े छिद्र बनाते हैं जिससे बड़े अणु उसमें से निकल सकें। अत: ये सहज विसरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 3. पादपों में सक्रिय परिवहन के दौरान प्रोटीन पम्प के द्वारा क्या भूमिका निभाई जाती है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर : पादप कला के लिपिड स्तर में वाहक प्रोटीन के अणु मिलते हैं। ये ऊर्जा का उपयोग कर सान्द्रता विभव के विरुद्ध अणुओं को भेजते हैं। अत: उन्हें प्रोटीन पम्प कहते हैं। ये आयन का परिवहन कला के आर-पार इन प्रोटीन पम्पों की सहायता से करते हैं।

प्रश्न 4. शुद्ध जल का सबसे अधिक जल विभव क्यों होता है? वर्णन कीजिए।
उत्तर : शुद्ध जल का सबसे अधिक जल विभव (water potential) होता है; क्योकि जल अणुओं में गतिज ऊर्जा पाई जाती है। यह तरल और गैस दोनों अवस्था में गति करते हुए पाए जाते हैं। गति स्थिर तथा तीव्र (constant and rapid) दोनों प्रकार की हो सकती है। किसी माध्यम में यदि अधिक मात्रा में जल हो तो उसमें गतिज ऊर्जा तथा जल विभव अधिक होगा। शुद्ध जल में सबसे अधिक जल विभव (water potential) होता है। जब दो जल तन्त्र परस्पर सम्पर्क में हों तो पानी के अणु उच्च जल विभव (या तनु घोल) वाले तन्त्र से कम जल विभव (सान्द्र घोल) वाले तन्त्र की ओर जाते हैं। जल विभव को ग्रीक चिह्न Ψ (Psi) से चिह्नित करते हैं। इसे पास्कल (pascal) दाब इकाई में व्यक्त किया जाता है।मानक परिस्थितियों में शुद्ध जल का विभव (water potential) शून्य होता है। किसी विलयन तन्त्र का जल विभव उस विलयन से जल बाहर निकलने की प्रवृत्ति का मापन करता है। यह प्रवृत्ति ताप एवं दाब के साथ बढ़ती जाती है, लेकिन विलेय (solute) की उपस्थिति के कारण घटती है।

शुद्ध जल में विलेय को घोलने पर घोल में जल की सान्द्रता और जल विभव (UPBoardSolutions.com) कम होता  जाता है। अतः सभी विलयनों में शुद्ध जल की अपेक्षा जल विभव कम होता है। जल विभव के कम होने का कारण विलेय विभव (solute potential Ψs ) होता है। इसे परासरण विभव (osmotic potential) भी कहते हैं। जल विभव तथा विलेय विभव ऋणात्मक होता है। कोशिका द्वारा जल अवशोषित करने के फलस्वरूप कोशिका भित्ति पर दबाव पड़ता है, जिससे यह आशून (स्फीत) हो जाती है। इसे दाब विभव (Pressure potential) कहते हैं। दाब विभव प्रायः सकारात्मक होता है, लेकिन जाइलम के जल स्तम्भ में ऋणात्मक दाब विभव रसारोहण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

किसी पादप कोशिका में जलीय विभव (Ψ) तीन बलों द्वारा नियन्त्रित होता है-दाब विभव (Ψp) परासरणीय विभव या विलेय विभव (Ψs ) तथा मैट्रिक्स विभव (Ψn)। मैट्रिक्स विभव प्रायः नगण्य होता है। अतः कोशिका के जलीय विभव की गणना निम्नलिखित सूत्रानुसार करते हैं
Ψ = Ψp + Ψs

जीवद्रव्यकुंचित कोशिका का जलीय विभव परासरणीय विभव के बराबर होता है; क्योंकि दाब विभव शून्य होता है। पूर्ण स्फीत कोशिका में दाब विभव और परासरणीय विभव के बराबर हो जाने से जलीय विभव शून्य हो जाता है। जल विभव सान्द्रता (concentration), प्रवणता (gravity) और दाब (pressure) से प्रभावित होता हैं।

प्रश्न 5. लब क्या होता है जब शुद्ध जल या विलयन पर पर्यावरण के दाब की अपेक्षा अधिक दाब लागू किया जाता है?
उत्तर : जब शुद्ध जल या विलयन पर पर्यावरण के दाब की अपेक्षा अधिक दाब लागू किया जाता है। तो इसका जल विभव बढ़ जाता है। जब पौधों या कोशिका में जल विसरण द्वारा प्रवेश करता है तो कोशिका आशून (turgid) हो जाती है। इसके फलस्वरूप (UPBoardSolutions.com) दाब विभव (pressure potential) बढ़ जाता है। दाब विभव अधिकतर सकारात्मक होता है। इसे 9 से प्रदर्शित करते हैं। जल विभव घुलित तथा दाब विभव से प्रभावित होता है।

प्रश्न 6. (क पौधों में जीवद्रव्यकुंचने की विधि का वर्णन उदाहरण देकर कीजिए।
(ख) यदि पौधे की कोशिका को उच्च जल विभव वाले विलयन में रखा जाए तो क्या होगा?
उत्तर : (क) रिक्तिकामय पादप कोशिका को अतिपरासारी विलयन (hypertonic solution)
में रख देने पर कोशिकारस कोशिका से बाहर आने लगता है। यह क्रिया बहिःपरासरण (exosmosis) के कारण होती है। इसके फलस्वरूप जीवद्रव्य सिकुड़कर कोशिका में एक ओर एकत्र हो जाता है। इस अवस्था में कोशिका पूर्ण श्लथ (fully flaccid) हो जाती है। इस क्रिया को जीवद्रव्यकुंचन (plasmolysis) कहते हैं। जीवद्रव्यकुंचित कोशिका की कोशिका भित्ति और जीवद्रव्य के मध्य अतिपरासारी विलयन एकत्र हो जाता है, लेकिन यह विलयन कोशिकारिक्तिका में नहीं पहुँचता। इससे यह स्पष्ट होता है कि कोशिका भित्ति पारगम्य होती है और रिक्तिका कला अर्द्धपारगम्य होती है।

जीवद्रव्यकुंचित कोशिका को आसुत जल या अल्पपरासारी विलयन (hypotonic solution) में रखा जाए तो कोशिका पुनः अपनी पूर्व स्थिति में आ जाती है। इस प्रक्रिया को जीवद्रव्यविकुंचन (deplasmolysis) कहते हैं। कोशिका को समपरासारी विलयन (isotonic solution) में रखने पर कोशिका में कोई परिवर्तन नहीं होता, जितने जल अणु कोशिका से बाहर निकलते हैं उतने  जल अणु कोशिका में प्रवेश कर जाते हैं।

(ख) अल्पसारी विलयन (hypotonic solution)
कोशिकारस या कोशिकाद्रव्य की अपेक्षा तनु (dilute) होता है। इसका जल विभव (water potential) अधिक होता है। अतः पादप कोशिका को अल्पपरासारी विलयन में रखने पर अन्त:परासरण की क्रिया होती है। इस क्रिया के फलस्वरूप अतिरिक्त जल कोशिका में पहुँचकर स्फीति दाब (turgor pressure) उत्पन्न करता है। स्फीति दाब भित्ति दाब (wall pressure) के बराबर होता है। स्फीति दाब को दाब विभव (pressure potential) भी कहते हैं। कोशिका भित्ति की दृढ़ता एवं स्फीति दाब के कारण कोशिका भित्ति क्षतिग्रस्त नहीं होती। स्फीति या आशूनता के कारण कोशिका में वृद्धि होती है। स्फीति दाब एवं परासरण दाब के बराबर हो जाने पर कोशिका में जल का आना रुक जाता है।

प्रश्न 7. पादप में जल एवं खनिज के अवशोषण में माइकोराइजल (कवकमूले सहजीवन) सम्बन्ध कितने सहायक हैं?
उत्तर : माइकोराइजल या कवकमूलीय सहजीवन अनेक उच्च पादपों की जड़े कवक मूल द्वारा संक्रमित हो जाती हैं; जैसे–चीड़, देवदार, ओक आदि। कवक तन्तु की जड़ों की सतह पर बाह्यपादपी कवकमूल (ectophytic mycorrhiza) बनाता है। कभी-कभी कवक तन्तु जड़ के अन्दर पहुँच जाते हैं और अन्त:पादपी कवकमूल बनाते हैं। कवक मूल संगठन में कवक तन्तु अपना भोजन पोषक (host) की जड़ों से प्राप्त करते हैं तथा वातावरण की नमी व भूमि की ऊपरी सतह से लवणों का अवशोषण कर पोषक पौधे को प्रदान करने का कार्य करते हैं। कुछ आवृतबीजी पौधे; जैसे-निओशिया (Neottii), मोनोटोपा (Monotropd) भी कवकमूल सहजीवन (UPBoardSolutions.com) प्रदर्शित करते हैं। इन पौधों को अगर कवक सेहजीविता समय पर उपलब्ध नहीं होती तो ये मर जाते हैं। चीड़ के बीज कवक सहजीविता स्थापित न होने की स्थिति में अंकुरित होकर नवोदुभिद् (seedings) नहीं बना पाते।

प्रश्न 8 पादप में जल परिवहन हेतु मूलदाब क्या भूमिका निभाता है?
उत्तर : मूलदाब :- मूल वल्कुट (root cortex) की कोशिकाओं की स्फीति (आशून) स्थिति में अपने कोशिकाद्रव्य पर पड़ने वाले दाब को मूलदाब (root pressure) कहते हैं। मूलदाब के फलस्वरूप जल (कोशिकारस) जाइलम वाहिकाओं में प्रवेश करके तने में कुछ ऊँचाई तक ऊपर चढ़ता है। मूलदाब शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम स्टीफन हेल्स (Stephan Hales, 1927) ने किया। स्टॉकिंग (Stocking, 1956) के अनुसार जड़ के जाइलम में उत्पन्न दाब, जो जड़ की उपापचयी क्रियाओं से उत्पन्न होता है, मूलदाब कहलाता है। मूलदाब सामान्यतया + 1 से + 2 बार तक होता है। इससे जल कुछ ऊँचाई तक चढ़ सकता है। शुष्क मृदा में मूलदाब उत्पन्न नहीं होता। बहुत-से पौधों; जैसे–अनावृतबीजी (gymnosperms) में मूलदाब उत्पन्न हीं नहीं होता। अतः आधुनिक मतानुसार रसारोहण में मूलदाब का विशेष कार्य नहीं है।

प्रश्न 9. पादपों में जाइलम रसारोहण के लिए जिम्मेदार कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर : रसारोहण गुरुत्वाकर्षण के विपरीत मूलरोम से पत्तियों तक कोशिकारस (cell sap) के ऊपर चढ़ने की क्रिया को रसारोहण (Ascent of sap) कहते हैं। रसारोहण मुख्य रूप से वाष्पोत्सर्जनाकर्षण (transpiration pull) के कारण होता है। यह निम्नलिखित कारकों से प्रभावित होता है

(1) संसंजन (Cohesion) :
जल के अणुओं के मध्य आकर्षण।

(2) आसंजन (Adhesion) :
जल अणुओं का ध्रुवीय सतह (जैसे-जाइलम ऊतक) से आकर्षण।

(3) पृष्ठ तनाव (Surface Tension) :
जल अणुओं की द्रव अवस्था में गैसीय अवस्था। जल की उपर्युक्त विशिष्टताएँ जल को उच्च तन्य सामर्थ्य (high tensile strength) प्रदान करती हैं। वाहिकाएँ एवं वाहिनिकाएँ (tracheids & vessels) केशिका (capillary) के समान लघु व्यास वाली कोशिकाएँ होती हैं।

प्रश्न 10. पादपों में खनिजों के अवशोषण के दौरान अन्तःत्वचा की आवश्यक भूमिका क्या होती है?
उत्तर : जड़ों की अन्तस्त्वचा कोशिकाओं की कोशिकाकला पर अनेक वाहक प्रोटीन्स पाई जाती हैं। ये प्रोटीन्स जड़ों द्वारा अवशोषित किए जाने वाले घुलितों की मात्रा और प्रकार को नियन्त्रित करने वाले बिन्दुओं की भाँति कार्य करती हैं। अन्तस्त्वचा की सुबेरिनमय (suberinised) कैस्पेरी पट्टियों (casparian strips) द्वारा खनिज या घुलित पदार्थों के आयन्स या अणुओं का परिवहन एक ही दिशा (unidirection) में होता है। अतः अन्तस्त्वचा (endodermis) खनिजों की मात्रा (UPBoardSolutions.com) और प्रकार (quantity & type) को जाइलम तक पहुँचने को नियन्त्रित करती है। जल तथा खनिजों की गति मूलत्वचा (epiblema) से अन्तस्त्वचा तक सिमप्लास्टिक (symplastic) होती है।

प्रश्न 11. जाइलम परिवहन एकदिशीय तथा फ्लोएम परिवहन द्विदिशीय होता है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
1. जाइलम परिवहन (Xylem Transport) :
पौधे अपने लिए आवश्यक जल एवं खनिज पोषक मृदा से प्राप्त करते हैं। ये सक्रिय या निष्क्रिय अवशोषण या सम्मिश्रित प्रक्रिया द्वारा अवशोषित । होकर जाइलम तक पहुँचते हैं। जाइलम द्वारा जल एवं पोषक तत्त्वों का परिवहन एकदिशीय  (unidirection) होता है। ये पौधों के वृद्धि क्षेत्र की ओर विसरण द्वारा पहुँचते हैं।

2. फ्लोएम परिवहन (Phloem Transport) :
फ्लोएम द्वारा सामान्यतया कार्बनिक भोज्य पदार्थों का परिवहन होता है। कार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण पत्तियों द्वारा होता है। पत्तियों में निर्मित भोज्य पदार्थों का पौधे के संचय अंगों (कुण्ड-सिक) तक परिवहन होता है। लेकिन यह स्रोत (पत्तियाँ) और कुण्ड (संचय अंग) अपनी भूमिकाएँ मौसम और आवश्यकतानुसार बदलते रहते हैं; जैसे-जड़ों में संचित अघुलनशील भोज्य पदार्थ बसन्त ऋतु के प्रारम्भ में घुलनशील शर्करा में बदलकर वर्दी और पुष्प कलिकाओं तक पहुँचने लगता है। इससे स्पष्ट है कि संश्लेषण स्रोत और संचय स्थल (कुण्ड-सिंक) का सम्बन्ध बदलता रहता है। अतः फ्लोएम में घुलनशील शर्करा का परिवहन द्विदिशीय या बहुदिशीय (bidirectional or multidirectional) होता है।

प्रश्न 12. पादपों में शर्करा के स्थानान्तरण के दाब प्रवाह परिकल्पना की व्याख्या कीजिए।
उत्तर :
शर्करा के स्थानान्तरण की दाब प्रवाह परिकल्पना खाद्य पदार्थों (शर्करा) के वितरण की सर्वमान्य क्रियाविधि दाब प्रवाह परिकल्पना है। पत्तियों में संश्लेषित ग्लूकोस, सुक्रोस (sucrose) में बदलकर फ्लोएम की चालनी नलिकाओं और सहचर कोशिकाओं द्वारा पौधों के संचय अंगों में स्थानान्तरित होता है। पत्तियों में निरन्तर भोजन निर्माण होता रहता है। फ्लोएम ऊतक की चालनी नलिकाओं में जीवद्रव्य के प्रवाहित होते रहने के कारण उसमें घुलित भोज्य पदार्थों के अणु भी प्रवाहित होते रहते हैं। यह स्थानान्तरण अधिक सान्द्रता वाले स्थान से कम सान्द्रता वाले स्थानों की ओर होता है। पत्तियों की कोशिकाओं में निरन्तर भोज्य पदार्थों का निर्माण होता रहता है, इसलिए पत्ती की कोशिकाओं में परासरण दाब अधिक रहता है। जड़ों तथा अन्य संचय भागों में भोज्य पदार्थों के अघुलनशील पदार्थों में बदल जाने या प्रयोग कर लिए जाने (UPBoardSolutions.com) के कारण इन कोशिकाओं का परासरण दाब कम बना रहता है। भोज्य पदार्थों के परिवहन हेतु जल जाइलम ऊतक से प्राप्त होता है। संचय अंगों में मुक्त जल जाइलम ऊतक में वापस पहुँच जाता है। इस प्रकार फ्लोएम द्वारा सुगमतापूर्वक कार्बनिक भोज्य पदार्थों का संवहन होता रहता है।

प्रश्न 13.वाष्पोत्सर्जन के दौरान रक्षके द्वार कोशिका खुलने एवं बन्द होने के क्या कारण हैं?
उत्तर : वाष्पोत्सर्जन

पौधों के वायवीय भागों से होने वाली जल हानि को वाष्पोत्सर्जन (transpiration) कहते हैं। यह सामान्यतया रन्ध्र (stomata) द्वारा होता है। उपचर्म (cuticle) तथा वातारन्ध्र (lenticel) इसमें सहायक होते हैं। रन्ध्र रक्षक द्वार कोशिकाओं (guard cells) से घिरा सूक्ष्म छिद्र होता है। रक्षक द्वार कोशिकाएँ सेम के बीज या वृक्क के आकार की होती हैं। ये चारों ओर से बाह्य त्वचीय कोशिकाओं अथवा सहायक कोशिकाओं से घिरी रहती हैं। रक्षक द्वार कोशिका में केन्द्रक तथा हरितलवक (chloroplast) पाए जाते हैं। रक्षक द्वार कोशिका की भीतरी सतह मोटी भित्ति वाली तथा बाह्य सतह पतली भित्ति वाली होती है।

रन्ध्र को खुलना या बन्द होना रक्षक द्वार कोशिकाओं की स्फीति (turgidity) पर निर्भर करता है। जब रक्षक कोशिकाएँ स्फीति होती हैं तो रन्ध्र खुला रहता है और जब ये श्लथ (flaccid) होती हैं तो रन्ध्र बन्द हो जाते हैं। रन्ध्र के खुलने में रक्षक कोशिका की भित्तियों में उपस्थित माइक्रोफाइब्रिल सहायता करते हैं। ये अरीय क्रम में व्यवस्थित रहते हैं। सामान्यतया रन्ध्र दिन के समय खुले रहते हैं। औ रात्रि के समय बन्द हो जाते हैं।

प्रश्न 14. बिन्दुस्राव प्रायः पाया जाता है
उत्तर : शाकीय पौधों में

प्रश्न 16. अधिक वाष्पोत्सर्जन होता है
उत्तर :- रन्ध्र में

प्रश्न 17 किन पौधों में रन्ध्र रात में खुले तथा दिन में बन्द रहते हैं?
उत्तर : (ग) मांसलोभिद्

प्रश्न 18. पौधों में खाद्य पदार्थों का स्थानान्तरण होता है
उत्तर : फ्लोएम कोशिकाओं द्वारा

प्रश्न 19. उस पादप शारीरिक क्रिया का नाम लिखिए जो जलरन्ध्रों द्वारा होती है।
उत्तर : जलरन्ध्रों (hydathodes) के द्वारा होने वाली शारीरिक क्रिया (physiological activity) बिन्दुस्रवण (guttation) कहलाती है।

प्रश्न 20 वाष्पोत्सर्जन की दर नापने वाले उपकरण का नाम लिखिए।
उत्तर : पोटोमीटर।

प्रश्न 21. उस तत्त्व का नाम बताइए जो रन्ध्रों के खुलने एवं बन्द होने में सक्रिय भूमिका निभाता (भाग लेता) है।
उत्तर : पोटैशियम तत्त्व (K+) के एकत्र होने से लेविट (Levit) के अनुसार रन्ध्र खुल जाता है।

प्रश्न 22 निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट कीजिए
(क) स्फीति दाब व भित्ति दाब।
(ख) अन्तः शोषण व परासरण।
उत्तर : (क) स्फीति दाब व भित्ति दाब
जल अवशोषण के कारण कोशिका के अन्दर जीवद्रव्य की मात्रा बढ़ जाती है तथा कोशिका स्फीति दशा में आ जाती है। इस समय जीवद्रव्य द्वारा कोशिका भित्ति पर लगाया जाने वाला दाब स्फीति दाब कहलाता है। इस दाब के विरुद्ध दृढ़ कोशिका भित्ति द्वारा जो दाब आरोपित होता है उसे भित्ति दाब कहते हैं।

(ख)
अन्तःशोषण व परासरण
ठोस एवं कोलॉइडी पदार्थों द्वारा जल अवशोषण अन्त:शोषण कहलाता है जैसे काष्ठ द्वारा जल का अवशोषण। इसके विपरीत परासरण वह क्रिया है जिसमें जल एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली से होकर कम सान्द्रता वाले विलयन से अधिक सान्द्रता वाले विलयन की ओर जाता है।