बिहार बोर्ड कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 16 पाचन एंव अवशोषण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. जन्तुओं के लिए पोषक तत्त्व क्यों आवश्यक हैं? दो पोषक तत्वों के नाम लिखिए।
उत्तर : मनुष्य के शरीर में निरन्तर विभिन्न प्रकार की जैविक क्रियाएँ; जैसे—श्वसन, उत्सर्जन, गमन आदि होती रहती हैं। उन क्रियाओं के सम्पादन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा पोषक पदार्थों से प्राप्त होती है। जीव इन पोषक पदार्थों को बाह्य वातावरण से ग्रहण करता है। शरीर में इन पोषक पदार्थों का पाचन होता है। अवशोषित पदार्थों का श्वसन में ऑक्सीकरण तथा अवशोषण होता है, जिससे ऊर्जा उत्पन्न होती है। दो पोषक तत्व कार्बोहाइड्रेट्स प्रोटीन
प्रश्न 2. संतुलित आहार का वर्णन कीजिए तथा भोजन की ऊष्मीय गुणवत्ता का महत्त्व बताइए। या संतुलित आहार क्या है ?
उत्तर : 1. संतुलित आहार
अपनी पोषण क्रिया (nutrition) में हम अपने भोजन से उन पोषक पदार्थों (nutrients) को पचाकर प्राप्त करते रहते हैं जो शरीर की कोशिकाओं के उपापचय (metabolism) में मिरन्तर खपते रहते हैं। अत: हमारे शरीर की वृद्धि, स्वास्थ्य, क्रियाशीलता, उद्यमशीलता, आयु आदि लक्षण हमारे आहार की गुणवत्ता (quality) तथा मात्रा (quantity) पर निर्भर करते हैं। स्पष्ट है कि हमारे आहार में विभिन्न प्रकार के सभी पोषक पदार्थ ऐसे अनुपात में होने चाहिए कि जिससे हमारे शंरीर की सारी विभिन्न आवश्यकताओं की निरन्तर पूर्ति होती रहे। ऐसे ही आहार को सन्तुलित आहार (balanced diet) कहते हैं।
2. भोजन की ऊष्मीय गुणवत्ता
भोजन की उपापचयी उपयोगिता को ऊष्मीय ऊर्जा की इकाइयों (units) में व्यक्त किया जाता है जिन्हें ऊष्मांक (calories) कहते हैं। एक छोटा ऊष्मांक तापीय ऊर्जा (heat energy) की वह मात्रा होती है जो एक ग्राम जल के ताप को 1°C बढ़ा देती है। 1000 छोटे ऊष्मांकों (UPBoardSolutions.com) का एक बड़ा ऊष्मांक अर्थात् किलो ऊष्मांक होता है। इसमें इतनी तापीय ऊर्जा होती है जो एक किलोग्राम जल के ताप को 1°C बढ़ा देती है। शरीर को जीवित दशा में बनाए रखने के लिए आवश्यक ऊर्जा हमें तीन श्रेणियों के दीर्घपोषक पदार्थों-कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन्स तथा वसाओं के ऑक्सीकर विखण्डन अर्थात् उपापचयी जारण (अपचय) से प्राप्त होती है। एक ग्राम कार्बोहाइड्रेट या प्रोटीन के उपापचयी जारण से 4 किलोकैलोरी तथा एक ग्राम वसा के जारण से 9.3 किलोकैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।
प्रश्न 3. विष्ठा भोजिता से क्या तात्पर्य है? किसी विष्ठा भोजी स्तनिक का वैज्ञानिक नाम बताइए।
उत्तर : कुछ जीव अपने द्वारा त्यागे गये मल को पुन: सेवन करते हैं। पोषण की इस विधि को विष्ठा भोजिता कहते हैं।
उदाहरण
(i) खरगोश :
ऑरिक्टोलेगस क्यूनिकुलस।
प्रश्न 4. दन्तावकाश क्या है? एक वयस्क मानव के दाँत का फॉर्मूला लिखिए। या दन्त विन्यास को परिभाषित कीजिए। मनुष्य में किसप्रकार का दन्त विन्यास पाया जाता है? वयस्क मनुष्य का दन्त सूत्र लिखिए। बुद्धि दन्त किसे कहते हैं?
उत्तर : 1. दन्तावकाश :
अनेक शाकाहारी प्राणियों में रदनक (canines) नहीं पाये जाते हैं। इनके रिक्त स्थान को दन्तावकाश कहते हैं।
2. दन्त विन्यास :
मुख गुहिका में दाँतों के व्यवस्थित होने के क्रम को दन्त विन्यास कहते हैं। मानव का दन्त विन्यास गोल परवलयाकार के रूप में होता है। तृतीय चर्वणकों को बुद्धि दन्त कहते हैं।
वयस्क मानव का दन्त सूत्र :
(i = कृन्तक, c = रदनक, pm = प्रचर्वणक, m = चर्वणक)
प्रश्न 5. पित्तरस शरीर के किस अंग में बनता है? पाचन में इसकी क्या भूमिका है?
उत्तर : पित्तरस (Bile juice) :
इसका निर्माण यकृत में होता है। यह पित्ताशय में एकत्र होता रहता है और आवश्यकतानुसार सामान्य पित्तवाहिनी द्वारा ग्रहणी में पहुँचता है। यह भोजन के माध्यम को। क्षारीय बनाता है। भोजन की लुगदी (chyme) को पतला (chyle) करता है तथा वसा की। इमल्सीकरण करता है जिससे वसा (UPBoardSolutions.com) का पाचन सुगमता से हो जाता है।
प्रश्न 6. विटामिन ‘ए’ की कमी से रतौंधी किस प्रकार उत्पन्न होती है?
उत्तर : विटामिन ‘ए’ का प्रमुख कार्य हमारी आँखों में उपस्थित दृष्टि-रंगाओं का संश्लेषण करना होता है जिसके कारण हम कम रोशनी या रात में देख सकते हैं। इसके विपरीत विटामिन ‘ए’ की कमी म दृष्ट-२ गाओं का संश्लेषण नहीं हो पाता तथा हमें कम रोशनी या रात में स्पष्ट दिखाई देना बन्द हो जाता है। इसी रोग को रतौंधी कहा जाता है।
प्रश्न 7.:- किन विटामिनों की कमी से निम्न रोग होते हैं? इनके स्रोत बताइए।
(क) स्कर्वी रोग
(ख) रतौंधी
(ग) पेलाग्रा
(घ) घेघा
(ङ) सूखा रोग
उत्तर : (क) स्कर्वी रोग :
यह रोग विटामिन ‘C’ की कमी से होता है। टमाटर, नींबू, सन्तरा, मुसम्मी, ताजे खट्टे फल इसके मुख्य स्रोत हैं।
(ख) रतौंधी :
यह रोग विटामिन ‘A’ (retinol) की कमी से होता है। इसके मुख्य स्रोत दूध, मक्खन, अण्डा, यकृत, मछली का तेल, गाजर आदि हैं।
(ग) पेलाग्रा :
यह रोग विटामिन ‘B,’ की कमी से होता है। इसके मुख्य स्रोत मांस, यकृत, अण्डा, मछली, दूध, मेवा, मटर आदि फलियाँ होती हैं।
(घ) घेघा :
यह रोग आयोडीन की कमी से होता है। आयोडीन युक्त नमक आयोडीन का प्रमुख स्रोत है।
(ङ) सूखा रोग :
यह विटामिन डी की कमी के कारण होता है। त्वचा धूप में इसका संश्लेषण स्वयं कर लेती है। मछली का तेल, मक्खन, घी, आदि इसके अन्य स्रोत हैं।
प्रश्न 8. पोषण क्या है? पाचन और पोषण में क्या अन्तर है? मनुष्य के पाचन तन्त्र का एक नामांकित चित्र बनाइए। या पाचन क्या है? मनुष्य की आहारनाल का सचित्र वर्णन कीजिए। या पाचन क्या है? पाचन व पोषण में विभेद कीजिए।
उत्तर : पोषण : - सभी जीवों को जीवित रहने तथा शरीर में होने वाली विभिन्न उपापचयी क्रियाओं को करने के लिए। ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है। विभिन्न प्रकार के जीव भोजन लेने के लिए विभिन्न विधियाँ अपनाते हैं। भोजन ग्रहण करने से लेकर, पाचन, अवशोषण, कोशिकाओं तक पहुँचाने, कोशिका में उसके ऊर्जा उत्पादन में प्रयोग करने अथवा जीवद्रव्य में स्वांगीकृत करने तथा भविष्य के लिए उसे शरीर में संगृहीत करने तक की सभी क्रियाओं का सम्मिलित नाम पोषण है। इस प्रकार पोषण जटिल क्रियाओं का नाम है तथा यह अनेक पदों या चरणों में पूरी होती है।
पाचन : - भोर्जीन के जटिल एवं अविलेय पदार्थों को शरीर में उनके कार्यों को सम्पादित करने के लिए अवशोषित नहीं किया जा सकता है। पहले इनको सरल एवं विलेय पदार्थों में बदलने की आवश्यकता होती है। तथा यह कार्य अनेक भौतिक एवं रासायनिक क्रियाओं द्वारा किया जाता है। ये सभी क्रियाएँ सम्मिलित रूप से पाचन (digestion) कहलाती हैं अर्थात् भोजन को अवशोषण योग्य अवस्था में परिवर्तित करने की क्रिया पाचन कहलाती है, जो एक जटिल (UPBoardSolutions.com) जैविक क्रियाओं का सम्मिलित नाम है और जिसमें कई भौतिक एवं रासायनिक प्रक्रियाएँ भाग लेती हैं। भौतिक क्रियाओं में भोज्य पदार्थ ग्रहण करना, इन्हें चबाकर निगलने योग्य बनाना तथा आहारनाल में इन्हें गति प्रदान करना आदि प्रमुख यान्त्रिक क्रियाएँ होती हैं, जबकि पोषक पदार्थों (कार्बोहाइड्रेट्स, वसाओं एवं प्रोटीन्स आदि) के जटिल अणुओं को जल अपघटन (hydrolysis) द्वारा उनके सरल एवं विलेय मोनोमर्स (monomers) में विखण्डित करना अति महत्त्वपूर्ण रासायनिक प्रक्रियाएँ हैं। पाचन की विभिन्न रासायनिक क्रियाएँ मुख्यतः एन्जाइम्स (enzymes) द्वारा नियन्त्रित होती हैं। मनुष्य में पाचन क्रिया एक नली में सम्पन्न होती है जिसे आहारनाल (alimentary canal) कहते हैं। आहारनाल से सम्बद्ध विभिन्न पाचक ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं जो विभिन्न प्रकार के एन्जाइमों का स्रावण करती हैं।
पाचन एवं पोषण में अन्तर : - सभी जीवों को विभिन्न कार्यों को करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा शरीर के अन्दर कोशिकाओं में भोज्य पदार्थों के ऑक्सीकरण से प्राप्त होती है। दूसरी ओर जीवद्रव्य की वृद्धि करने तथा उसे बनाये रखने के लिए अलग-अलग प्रकार से भोजन करके कोशिकाओं तक पहुँचाना, उसे स्वांगीकृत करना या आवश्यकता के लिए संगृहीत करना आदि का सम्मिलित नाम पोषण (nutrition) है। पोषण अत्यधिक जटिल प्रक्रिया है। पाचन पोषण के लिए भोजन पर की गई एक विशिष्ट प्रक्रिया है जिसमें अघुलनशील (जल में) भोज्य पदार्थों को घुलनशील अवस्था में बदलकर उन्हें अवशोषण (absorption) के योग्य बनाया जाता है, जिससे वे रुधिर में मिलकर शरीर के विभिन्न भागों में पहुँच जाएँ।
मनुष्य का पाचन तन्त्र (आहारनाल) : - मनुष्य तथा स्तनियों में कशेरुकी जन्तुओं की अपेक्षा पाचन तन्त्र (digestive system) विशेषकर, इसकी आहारनाल (alimentary canal) अधिक लम्बी तथा जटिल प्रणाली होती है।
मनुष्य की आहारनाल : - भोजन को पचाने, तत्त्वों को अवशोषित करने आदि के लिए एक लम्बी, लगभग 8-9 मीटर लम्बी, नली जैसी संरचना होती है जो मुखद्वार (mouth) से मलद्वार (anus) तक फैली रहती है। इस नली को पाचन प्रणाली या आहारनाल (digestive tract or alimentary canal) कहते हैं। शरीर के भिन्न-भिन्न स्थानों पर आहारनाल का व्यास भिन्न-भिन्न होता है। इसको निम्नलिखित पाँच भागों में बाँटा जाता है
1. मुख व मुखगुहा (Mouth and buccal cavity) :
दो चल होठों (ओष्ठों = lips) से घिरा हुआ मुखद्वार (mouth), मुखगुहा (buccal cavity) में खुलता है। मुखगुहा दोनों जबड़ों तक, गालों से घिरी चौड़ी गुहा है जिसमें ऊपरी जबड़ा खोपड़ी के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ तथा अचल होता है। निचला जबड़ा पाश्र्व-पश्च भाग में ऊपरी जबड़े के साथ सन्धित तथा चल होता है। मुखगुहा की छत, तालू (palate) कहलाती है। तालू का अगला तथा अधिकांश भाग कठोर होता है तथा कठोर तालू (hard palate) कहलाता है। इसके पीछे कंकालरहित कोमल तालू (soft palate) होता है, जो अन्त में एक कोमल लटकन के रूप में होता है। इसे काग (uvula or velum palati) कहते हैं।
काग के इधर-उधर छोटी-छोटी गाँठों के रूप में गलांकुर tonsiles) होते हैं। निचले तथा ऊपरी जबड़े में कुल मिलाकर 32 दाँत (teeth) होते हैं। दाँतों की संख्या उम्र के साथ बदलती रहती है। मुखगुहा के फर्श पर एक अति मुलायम लचीली तथा लसलसी जीभ या जिह्वा (tongue) होती है जिसका केवल अगला थोड़ा-सा भाग ही स्वतन्त्र होता है जो नीचे फर्श के साथ एक भंज (fold), जिह्वा फ्रेनुलम (frenulum linguae) के द्वारा जुड़ा दिखायी देता है। जीभ का पिछला भाग फर्श के साथ पूर्णतः जुड़ा होता है। जीभ की ऊपरी सतह अत्यन्त खुरदरी होती है जो इस पर उपस्थित अनेक जिह्वा अंकुरों (lingual papillae) तथा कुछ सूक्ष्म गाँठों के कारण है। ये संरचनाएँ हमें विभिन्न पदार्थों के स्वाद का ज्ञान कराती हैं।
2. ग्रसनी (Pharynx) :
नीचे जीभ तथा ऊपर काग के पीछे कीप के आकार का लगभग 12-15 सेमी लम्बा भाग ग्रसनी (pharynx) कहलाता है। इसके तीन भाग किये जा सकते हैं
(क) नासाग्रसनी (nasapharynx), जो श्वसन मार्ग के पीछे स्थित होता है।
(ख) स्वरयन्त्री ग्रसनी (laryngeal pharynx) यहाँ वायु मार्ग तथा आहार मार्ग एक-दूसरे को काटते (cross) हैं तथा
(ग) मुख ग्रसनी (oropharynx) ठीक सामने वाला भाग प्रतिपृष्ठ (अधर) भाग है, जो अन्त में ग्रास नली (oesophagus) में निगल द्वार (gullet) के द्वारा खुलता है। निगल द्वार सामान्यतः बन्द रहता है। निगल द्वार के नीचे श्वास नली (trachea) का द्वार, कण्ठद्वार (glottis) होता है। इस पर एक लचीला उपास्थि का बना घाँटी ढापन (epiglottis) होता है।
3. ग्रास नली (Oesophagus) :
यह लगभग 25 सेमी लम्बी सँकरी नली है जो गर्दन के पिछले भाग से प्रारम्भ होती है। वायु नलिका के साथ-साथ तथा इसके तल पृष्ठ पर स्थित होती है तथा पूरे वक्ष भाग से होती तन्तु पट (diaphragm) को छेदकर उदर गुहा में पहुँचती है।
4. आमाशय (Stomach) :
आमाशय उदर गुहा में अनुप्रस्थ अवस्था में स्थित एक मशक के समान रचना है। आहारनाल का यह सबसे चौड़ा भाग है जिसकी लम्बाई लगभग 24 सेमी तथा चौड़ाई 10 सेमी होती है। आमाशय के स्पष्ट रूप से दो भाग किये जा सकते हैं-एक, प्रारम्भ का अधिक चौड़ा भाग जिसमें ग्रास नली खुलती है-हृदयी भाग (cardiac part) कहलाता है। इस द्वार को कार्डिया (cardia) कहते हैं तथा यह विशेष कार्डिया संकोचक (cardiac sphincter) पेशी द्वारा घिरा होता है। दूसरा भाग क्रमशः सँकरा होता जाता है और एक निकास द्वार के द्वारा आँत के प्रथम भाग में खुलता है। इस भाग को पक्वाशयी भाग (pyloric part or pylorus) तथा निकास द्वार को (UPBoardSolutions.com) पक्वाशयी छिद्र (pyloric aperture) कहते हैं। आमाशय के हृदयी भाग के पास का गोल-सा भाग विशेष तथा विकसित जठर ग्रन्थियों (gastric glands) से युक्त होता है, इसे फण्डिक भाग (fundic part) तथा इसकी जठर ‘ग्रन्थियों को फण्डिक ग्रन्थियाँ (fundic glands) कहते हैं। यद्यपि जठर ग्रन्थियाँ हृदयी तथा पक्वाशयी भाग के श्लेष्मिका में भी होती हैं, जो प्रायः श्लेष्मक (mucous) अथवा पक्वाशयी भाग में मैस्ट्रिन (gastrin) नामक हॉर्मोन बनाती हैं।
सम्पूर्ण आहारनाल की अपेक्षा आमाशय की भित्ति में सबसे अधिक पेशियाँ (muscles) होती हैं; अतः यह सबसे अधिक मोटी होती हैं। फण्डिक जठर ग्रन्थियाँ (fundic gastric glands) विशेष पाचक जठर रस (gastric juice) बनाती हैं। आमाशय की भित्ति में भी अनेक उभरी हुई सलवटें होती हैं, इन्हें यूगी (rugae) कहते हैं।
5. आँत (Intestine) :
आहारनाल का शेष भाग आँत (intestine) कहलाता है तथा यह अत्यधिक कुण्डलित होकर लगभग पूरी उदर गुहा को घेरे रहता है। इसकी लम्बाई लगभग 7.5 मीटर होती है। इसके दो प्रमुख भाग किये जा सकते हैं-छोटी आँत तथा बड़ी आँत।
(i)
छोटी आँत (Small intestine)
यह लगभग 6 मीटर लम्बी अत्यधिक कुण्डलित नली है। जिसको तीन भागों में बाँटा जा सकता है
(a) ग्रहणी
(B) मध्यन्त्रि तथा
(C) शेषान्त्र
(a) ग्रहणी या पक्वाशय (Duodenum) :
यह लगभग 25 सेमी लम्बी, छोटी आंत की सबसे छोटी तथा चौड़ी नलिका है। आमाशय इसी में पक्वाशयी छि (pyloric aperture) द्वारा खुलता है और आमाशय के साथ लगभम ‘C’ का आकार बनाता है। इसी मध्य भाग में मीसेण्ट्री द्वारा अग्न्याशय (pancreas) लटका होता है।
(b) मध्यान्त्र (Jejunum) :
यह लगभग 2.5 मीटर लम्बी, चरि’ सेमी चौड़ी नलिका है जो अत्यधिक कुण्डलित होती है।
(c) शेषान्त्र (Ileum) :
यह लगभग 2.75 मीटर लम्बी व 3.5 सेमी चौड़ी कुण्डलित आँत है। छोटी आँत की आन्तरिक दीवार अपेक्षाकृत पतली होती हैं, किन्तु इसमें मांसपेशियाँ आदि सभी स्तर होते हैं। ग्रहणी को छोड़कर शेष छोटी आंत में भीतरी सतह पर असंख्य छोटे-छोटे अँगुली के आकार के उभार आँत की गुहा में लटके रहते हैं। इनको रसांकुर (villi) कहते हैं। प्रति वर्ग मिलीमीटर क्षेत्र में अनुमानतः इनकी संख्या 20-40 होती है। इनकी उपस्थिति के कारण आँत की भीतरी भित्ति तौलिये की तरह रोयेदार होती है।
(ii)
बड़ी आँत (Large intestine)
छोटी आँत के बाद शेष आहारनाल बड़ी आँत का निर्माण करती है। यह लम्बाई में (लगभग 1.5 मीटर) छोटी आँत से छोटी, किन्तु अधिक चौड़ी (लगभग 7.0 सेमी) होती है। इसमें तीन भाग स्पष्ट दिखायी देते हैं
(a) उण्डुक
(b) कोलन तथा
(c) मलाशय। छोटी आँत, बड़ी आँत के किसी एक भाग में खुलने के बजाय उण्डुक तथा कोलन के संगम स्थान पर खुलती है। इस द्वार पर श्लेष्म कला के भंजों के रूप में शेषान्त्र उण्डुकीय (ileo-caecal valve) होता है।
(a) उण्डुक (Caecum) :
यह लगभग 6 सेमी लम्बी, 7.5 सेमी चौड़ी थैली की तरह की संरचना है जिससे लगभग 9 सेमी लम्बी, सँकरी, कड़ी तथा बन्द नलिका निकलती है। इसको कृमिरूप परिशेषिका (vermiform appendix) कहते हैं। वास्तव में, यह संरचना शरीर में अनावश्यक तथा अवशेषी (vestigial) भाग है। यदि इसमें मल या श्लेष्म एकत्रित हो जाये तो यहाँ जीवाणुओं के संक्रमण होने का खतरा रहता है। संक्रमण होने पर कृमिरूप परिशेषिका की दीवार गलने लगती है जिससे प्रदाह (inflammation) के कारण रोगी को पीडा, मितली, ज्वर तथा भूख न लगने की शिकायत रहती है। इस रोग को अपेण्डीसाइटिस (appendicitis) कहते हैं। इसके उपचार के लिये ऑपरेशन द्वारा कृमिरूप परिशेषिका को शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है।
(b) कोलन (Colon) :
यह लगभग 1.25 सेमी लम्बी, 6 सेमी चौड़ी नलिका है जो റ की तरह पूरी छोटी आँत को घेरे रहती है। इसका अन्तिम भाग मध्य से कुछ बायीं ओर झुककर मलाशय (rectum) में खुलता है। इस प्रकार कोलन में चार भाग दिखायी देते हैं—लगभग 15 सेमी आरोही खण्ड (ascending part), लगभग 50 सेमी अनुप्रस्थ खण्ड (transverse part), लगभग 25 सेमी लम्बा अवरोही खण्ड (descending part) तथा 40 सेमी लम्बा. शेष सिग्मॉइड या श्रोणि खण्ड (sigmoid or pelvic part)
(c) मलाशय (Rectum) :
लगभग 20 सेमी लम्बा तथा 4 सेमी चौड़ा नलिका की तरह का यह भाग अपने अन्तिम 3-4 सेमी भाग में काफी सँकरी नली बनाता है। इसे गुदनाल (anal canal) कहते हैं। इसकी भित्ति में मजबूत संकुचनशील पेशियाँ होती हैं तथा यह एक छिद्र द्वारा बाहर खुलती है। इस छिद्र को भी संकोचक (UPBoardSolutions.com) पेशियाँ (sphincter muscles) बन्द किये रखती हैं। गुदनाल की श्लेष्म झिल्ली में कई खड़े भंज (vertical folds) होते हैं जिन्हें गुद स्तम्भ (anal columns) कहते हैं।
प्रश्न 9. मनुष्य की आहारनाल में कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटको तथा वसा की पाचन क्रिया का वर्णन कीजिए। या मनुष्य की आहारनाल में प्रोटीन एवं वस-पाचन की क्रियाविधि समझाइए।
उत्तर : कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन्स, वसाओं का पाचन भोजन में उपस्थित पोषक पदार्थों (कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन तथा वसाएँ) के पाचन की विस्तृत प्रक्रिया मुखगुहा से प्रारम्भ होकर क्षुद्रान्त्र में पूरी होती है। इनके पाचन का सारांश निम्नलिखित है
1. कार्बोहाइड्रेट्स का पाचन (Digestion of Carbohydrates) :
हमारे भोजन में कार्बोहाइड्रेट्स पॉलिसैकेराइड्स (मण्ड तथा ग्लाइकोजन), डाइसैकेराइड्स (सुक्रोज तथा लैक्टोज) और मोनोसैकेराइड्स (ग्लूकोज एवं फ्रक्टोस) के रूप में होते हैं। मुखगुहा में लार का ऐमाइलेज (salivary amylase) एन्जाइम कुछ मण्ड को माल्टोज नामक डाइसैकेराइड में विखण्डित करता है। इसका यह कार्य ग्रासनली में होता रहता है और भोजन के आमाशय में पहुँचने पर जठर रस की अम्लीयता के कारण बन्द हो जाता है। ग्रहणी में अग्न्याशयी ऐमाइलेज भोजन की शेष पॉलिसैकेराइड्स को डाइसैकेराइड्स में विखण्डित कर देता है। अन्त में आन्त्रीय रस के ब्रुश-बोर्डर कार्बोहाइड्रेट-पाचक एन्जाइम-माल्टेज, सुक्रेज तथा लैक्टज-काइम के डाइसैकेराइड्स, क्रमशः माल्टोज, सुक्रोज तथा लैक्टोज, को मोनोसैकेराइड्स, अर्थात् सरलतम शर्कराओं में विखण्डित कर देते हैं।
2. प्रोटीन्स का पाचन (Digestion of Proteins) :
भोजन की प्रोटीन्स जटिल दीर्घअणुओं (macromolecules) के रूप में होती हैं। इनका पाचन आमाशय में प्रारम्भ होता है। जठर रस का HCl जटिल प्रोटीन अणुओं के कुण्डलों तथा वलनों को खोल देता है, फिर जठर रस को पेप्सिन (pepsin) एन्जाइम खुली हुई पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाओं में से 10 से 20% श्रृंखलाओं के बीच-बीच के पेप्टाइड बन्धों को तोड़कर इन्हें छोटी पेप्टाइड श्रृंखलाओं (व्युत्पन्न प्रोटीन्स) में विखण्डित कर देता है। ग्रहणी में अग्न्याशयी रस के ट्रिप्सिन तथा काइमोट्रिप्सिन (UPBoardSolutions.com) एन्जाइम शेष पॉलिपेप्टाइड श्रृंखलाओं को इसी प्रकार छोटी श्रृंखलाओं में विखण्डित करते हैं। इसी रस का कार्बोक्सीपेप्टिडेज एन्जाइम कुछ पेप्टाइड श्रृंखलाओं के छोर बन्धों को तोड़कर इनसे ऐमीनो अम्ल इकाइयों को पृथक् करता है। अन्त में आन्त्रीय रस के ऐमीनोपेप्टिडेज तथा कार्बोक्सीपेप्टिडेज एन्जाइम सभी पेप्टाइड श्रृंखलाओं के छोर बन्धों को क्रमशः तोड़-तोड़कर इन्हें ऐमीनो अम्लों में विखण्डित कर देते हैं।
3. वसाओं का पाचन (Digestion of Fats) :
हमारी भोजन सामग्री में अधिकांश वसाएँ सरल वसाओं, अर्थात् ट्राइग्लिसराइड्स (triglycerides) के रूप में होते हैं। लार तथा जठर रस के लाइपेज एन्जाइम कुछ वसाओं को वसीय अम्लों तथा मोनोग्लिसराइड्स में विखण्डित करते हैं। ग्रहणी में पित्त लवण समस्त वसाओं को छोटे-छोटे बिन्दुकों में तोड़ते हैं जिनका कि काइम में पायस (emulsion) बन जाता है। फिर अग्न्याशयी रस के लाइपेज, कोलेस्टेरॉल, एस्टरेज तथा फॉस्फोलाइपेज न्जाइम और आन्त्रीय रस के लाइपेज एन्जाइम सारे वसाओं को वसीय अम्लों, मोनोग्लिसराइड्स, कोलेस्टेरॉल एवं फॉस्फोरिक अम्ल में विखण्डित कर देते हैं।
प्रश्न 10 प्रोटीन के पाचन में अग्न्याशयी रस की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
1. प्रोटीन के पाचन में अग्न्याशयी रस की भूमिका अग्न्याशयी रस (Pancreatic Juice) :
यह क्षारीय होता है। इसमें लगभग 98% पानी, शेष लवण तथा अनेक प्रकार के एन्जाइम्स पाए जाते हैं। इसका pH मान 75-83 होता है। इसे पूर्ण पाचक रूप कहते हैं; क्योंकि इसमें कार्बोहाइड्रेट, वसा तथा प्रोटीन को पचाने वाले एन्जाइम्स पाए जाते हैं। प्रोटीन पाचक एन्जाइम्स निम्नलिखित होते हैं
2. ट्रिप्सिन तथा काइमोट्रिप्सिन (Trypsin and Chymotrypsin) :
ये निष्क्रिय ट्रिप्सिनोजन तथा काइमोट्रिप्सिनोजन के रूप में स्रावित होते हैं। ये आन्त्रीय रस एवं एण्टेरोकाइनेज एन्जाइम के कारण सक्रिय अवस्था में बदल जाते हैं। ये प्रोटीन का पाचन करके मध्यक्रम की प्रोटीन्स तथा ऐमीनो अम्ल बनाते हैं। एण्टेरोकाइनेज ट्रिप्सिनोजन
प्रश्न 11 आमाशय में प्रोटीन के पाचन की क्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर : आमाशय में प्रोटीन का पाचन आमाशय की जठर ग्रन्थियों से जठर रस स्रावित होता है। यह अम्लीय (pH 0.9-3.5) होता है। इसमें 99% जल, 0:5% HCl तथा शेष एन्जाइम्स होते हैं। इसमें प्रोपेप्सिन, प्रोरेनिन तथा गैस्ट्रिक लाइपेज एन्जाइम होते हैं। प्रोपेप्सिन तथा प्रोरेनिन (UPBoardSolutions.com) एन्जाइम HCl की उपस्थिति में सक्रिय पेप्सिन (pepsin) तथा रेनिन (rennin) में बदल जाते हैं। ये प्रोटीन तथा केसीन (दूध प्रोटीन) का पाचन करते हैं
प्रश्न 12. मनुष्य का दंत सूत्र बताइए।
उत्तर :
प्रश्न 13. पित्त रस में कोई पाचक एन्जाइम नहीं होते, फिर भी यह पाचन के लिए महत्त्वपूर्ण है; क्यों?
उत्तर : पित्त (Bile) :
पित्त का स्रावण यकृत से होता है। इसमें कोई एन्जाइम नहीं होता। इसमें अकार्बनिक तथा कार्बनिक लवण, पित्त वर्णक, कोलेस्टेरॉल, लेसीथिन आदि होते हैं।
यह आमाशय से आई अम्लीय लुगदी (chyme) को पतली क्षारीय काइल (chyle) में बदलता है जिससे अग्न्याशयी एन्जाइम भोजन का पाचन कर सकें।
यह वसा का इमल्सीकरण (emulsification) करता है। इमल्सीकृत वसा का लाइपेज एन्जाइम द्वारा सुगमता से पाचन हो जाता है।
कार्बनिक लवण वसा के पाचन में सहायता करते हैं।
हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करके भोजन को सड़ने से बचाता है।
प्रश्न 14 पाचन में काइमोट्रिप्सिन की भूमिका वर्णित करें। जिस ग्रन्थि से यह स्रावित होता है, इसी श्रेणी के दो अन्य एंजाइम कौन-से हैं?
उत्तर : काइमोट्रिप्सिन (Chymotrypsin) :
अग्न्याशय से स्रावित प्रोटीन पाचक एन्जाइम है। यह निष्क्रिय अवस्था काइमोट्रिप्सिनोजन (chymotrypsinogen) के रूप में स्रावित होता है। यह आन्त्रीय रस में उपस्थित एण्टेरोकाइनेज (enterokinase) एन्जाइम की उपस्थिति में सक्रिय काइमोट्रिप्सिन में बदलता है। यह प्रोटीन को पॉलीपेप्टाइड तथा पेप्टोन (polypeptides and peptones) में बदलता है।
अग्न्याशय से स्रावित अन्य प्रोटीन पाचक एन्जाइम निम्नलिखित हैं
ट्रिप्सिनोजन (Trypsinogen)
कार्बोक्सिपेप्टिडेज (Carboxypeptidase)
प्रश्न 15 पॉलीसैकेराइड तथा डाइसैकेराइड का पाचन कैसे होता है?
उत्तर : पॉली तथा डाइसैकेराइड्स का पाचन
कार्बोहाइड्रेट्स का पाचन मुखगुहा से ही प्रारम्भ हो जाता है। भोजन में लार मिलती है। लार का pH मान 6.8 (UPBoardSolutions.com) होता है। यह भोजन को चिकना तथा निगलने योग्य बनाती है। लार में टायलिन (ptyalin) एन्जाइम होता है। यह स्टार्च (पॉलीसैकेराइड) को डाइसैकेराइड (माल्टीस) में बदलता है।
आमाशय में कार्बोहाइड्रेट का पाचन नहीं होता। अग्न्याशय रस में ऐमाइलेज (amylase) एन्जाइम होता है। यह स्टार्च या पॉलीसैकेराइड्स को डाइसैकेराइड्स में बदलता है।
क्षुदान्त्र (छोटी आँत) में आंत्रीय रस में पाए जाने वाले कार्बोहाइड्रेट पाचक एन्जाइम्स के निम्नलिखित प्रकार इसके पाचन में सहायक होते हैं
(माल्टोस, लैक्टोस तथा सुक्रोस डाइसैकेराइड्स हैं।)
प्रश्न 16. यदि आमाशय में HCl का स्राव नहीं होगा तो क्या होगा?
उत्तर : यदि आमाशय में HCl का स्राव नहीं होगा तो पेप्सिनोजन सक्रिय पेप्सिन में परिवर्तित नहीं होगा तथा पेप्सिन को कार्य करने के लिए अम्लीय माध्यम नहीं मिलेगा। HCl भोज्य पदार्थों के रेशेदार पदार्थों को गलाता है वे जीवाणु आदि को भी मारता है।
प्रश्न 17 आपके द्वारा खाए गए मक्खन का पाचन और उसका शरीर में अवशोषण कैसे होता है? विस्तार से वर्णन करें।
उतर : मक्खन वसा है और इसका पाचन ड्यूडिनमे में पित्तरस की सहायता से होता है। वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल अघुलनशील होते हैं अतः रक्त में अवशोषित नहीं किए जा सकते हैं। ये आंत्रीय म्यूकोसा में छोटी गुलिकाओं के रूप में जाते हैं। उसके पश्चात् उस पर प्रोटीन कवच चढ़ जाता है और इन गुलिकाओं को काइलोमाइक्रस (chylomicrous) कहते हैं। इनका संवहन रसांकुर में उपस्थित लिम्फ वाहिका (lacteal) में होता है। लिम्फ वाहिकाओं से ये रक्त द्वारा अवशोषित हो जाता है।
प्रश्न 18. आहारनाल के विभिन्न भागों में प्रोटीन के पाचन के मुख्य चरणों का विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर : सर्वप्रथम प्रोटीन का पाचन आमाशय में दो प्रोटियोलिटिक विकरों के द्वारा होता है
(i) पेप्सिन :
आमाशय द्वारा स्रावित
(ii) ट्रिप्सिन :
अग्न्याशय द्वारा स्रावित।
(i) आमाशय में प्रोटीन का पाचन :
पेप्सिन अम्लीय माध्यम (pH 1.8) में सक्रिय होता है। रेनिन केवल छोटे बच्चों के आमाशय में दूध से प्रोटीन को पचाने के लिए मिलता है।
(ii) दांत्र में प्रोटीन का पाचन :
अग्न्याशय रस में ट्रिप्सिनोजन मिलता है जो एन्टेरोकाइनेज के द्वारा सक्रिय ट्रिप्सिन में परिवर्तित होता है। ट्रिप्सिन क्षारीय माध्यम में सक्रिय होता है।
प्रश्न 19. गर्तदंती (thecodont) तथा द्विबारदंती (diphyodont) शब्दों की व्याख्या करें।
उत्तर : जबड़े के गड्ढे में धंसे दाँत को गर्तदंती (thecodont) कहते हैं। द्विबारदंती का अर्थ है दाँत का दो बार आनाप्रथम दाँत अस्थाई होते हैं इन्हें क्षीर दंत भी कहते हैं। जो 14 वर्ष की अवस्था तक टूट जाते हैं। इनके स्थान पर दूसरी बार स्थाई दाँत आते हैं।
प्रश्न 20. विभिन्न प्रकार के दाँतों के नाम और एक वयस्क मनुष्य में दाँतों की संख्या बताइए।
उत्तर : वयस्क मनुष्य में 32 दाँत होते हैं। ये चार प्रकार के होते हैं
कुंतक (Incisor)—इनकी संख्या 2 होती है।
रदनक (Canine)-इनकी संख्या 1 होती है।
अग्र चवर्णक (Premolar)–इनकी संख्या 2 होती है।
चवर्णक (Molar)-इनकी संख्या 3 होती है। इस प्रकार एक जबड़े में 16 दाँत होते हैं और इस प्रकार मुख में 32 दाँत होते हैं
प्रश्न 21 यकृत के क्या कार्य हैं?
उत्तर : यकृत के कार्य
यकृत के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
यकृत से पित्त रस स्रावित होता है। इसमें अकार्बनिक तथा कार्बनिक लवण; जैसे—सोडियम क्लोराइड, सोडियम बाइकार्बोनेट, सोडियम ग्लाइकोकोलेट, सोडियम टॉरोकोलेट आदि पाये जाते हैं। ये कोलेस्टेरॉल (cholesterol) को घुलनशील बनाए रखते हैं।
पित्तरस में हीमोग्लोबिन (haemoglobin) के विखण्डन से बने पित्त वर्णक (bile pigments) पाए जाते हैं; जैसे—बिलिरुबिन (bilirubin) तथा बिलिवर्डन (biliverdin)। यकृत कोशिकाएँ रुधिर से जब बिलिरुबिन को ग्रहण नहीं कर पातीं तो यह शरीर में एकत्र होने लगता (UPBoardSolutions.com) है इससे पीलिया (jaundice) रोग हो जाता है।
पित्त रस आन्त्रीय क्रमाकुंचन गतियों को बढ़ाता है ताकि पाचक रस काइम में भली प्रकार मिल जाए।
पित्त रस काइम के अम्लीय प्रभाव को समाप्त करके काइल (chyle) को क्षारीय बनाता है। जिससे अग्न्याशयी तथा आन्त्रीय रसों की भोजन पर प्रतिक्रिया हो सके।
पित्त लवण काइम के हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करके काइम को सड़ने से बचाते हैं।
पित्त रस के कार्बनिक लवण वसाओं के धरातल तनाव (surface tension) को कम करके : इन्हें सूक्ष्म बिन्दुकों में तोड़ देते हैं। ये जल के साथ मिलकर इमल्सन या पायस बना लेते हैं। इस क्रिया को इमल्सीकरण (emulsification) कहते हैं।
पित्त लवणों के कारण वसा पाचक एन्जाइम सक्रिय होते हैं।
वसा में घुलनशील विटामिनों (A, D, E एवं K) के अवशोषण के लिए पित्त लवण आवश्यक | होते हैं।
पित्त के द्वारा विषाक्त पदार्थ, अनावश्यक कोलेस्टेरॉल आदि का परित्याग किया जाता है।
यकृत में विषैले पदार्थों का विषहरण (detoxification) होता है।
यकृत में मृत लाल रुधिराणुओं का विघटन होता है।
यकृत अमोनिया को यूरिया में बदलता है।
यकृत कोशिकाएँ हिपैरिन (heparin) का स्रावण करती हैं। यह रक्त वाहिनियों में रक्त का थक्का बनने से रोकता है।
यकृत में प्लाज्मा प्रोटीन्स; जैसे-ऐल्बुमिन, ग्लोबुलिन, प्रोथॉम्बिन, फाइब्रिनोजन आदि का संश्लेषण होता है। फाइब्रिनोजन (fibrinogen) रक्त का थक्का बनने में सहायक होता है।
यकृत आवश्यकता से अधिक ग्लूकोस को ग्लाइकोजन में बदल करें संचित करता है।
आवश्यकता पड़ने पर यकृत प्रोटीन्स व वसा से ग्लूकोस का निर्माण करता है।
यकृत कोशिकाएँ विटामिन A, D, लौह, ताँबा आदि का संचय करती हैं। 18. यकृत की कुफ्फर कोशिकाएँ जीवाणु तथा हानिकारक पदार्थों का भक्षण करके शरीर की सुरक्षा करती हैं।