बिहार बोर्ड कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 19 उत्सर्जी उत्पाद व उनका निष्कासन दीर्घ उतरीय प्रश्न
दीर्घ उतरीय प्रश्न
प्रश्न 1. वृक्क का परासरण नियमनकिन हार्मोनों के द्वारा सम्पन्न किया जाता है?
उत्तर: वृक्क बाह्य कोशिकीय तरल में जल एवं लवणों की मात्रा का नियमन करते हैं। इस प्रक्रिया में कुछ हार्मोन सहायता करते हैं। ADH या वेसोप्रोसिन :- मूत्र के आयतन को नियंत्रित करने वाला मुख्य हार्मोन है यह मुख्यतः DCT और शुरूआती संग्राहक नलिका पर क्रिया करता है इसकी कमी से डाइयूरेसिस और जल हानि हो जाती है।
एल्डोस्टीरोन:- यह एड्रीनल कॉर्टेक्स ग्रंथि का हार्मोन है। ECF में पाया जाने वाला प्रमुख लवण सोडियम ऑयन्स (Na') है। ये ECF की परासरणता को नियंत्रित करते हैं। ये ही रूधिर दाब को भी नियंत्रित करते है। यदि ECF में Na* की संख्या घट जाती है तो रूधिर दाब भी घट जाता है एवं यदि Na* की संख्या बढ़ जाती है तो रूधिर दाब मी बढ़ जाता है एस्टरोन हार्मोन नेफ्रोन Na के पुनराव को प्रेरित करता है अर्थात यह मूत्र द्वारा Na' की हानि को रोकता है। ECF में Na* की कमी आने पर एल्डोस्टीरोन का स्त्राव बढ़ जाता है।
रेनिन :- यह J.G उपकरण द्वारा स्त्रावित होता है। जब Na' की सांद्रता मेक्यूलान्सा में कम हो जाये, BP में गिरावट और अनुकम्पी तंत्रिका प्रेरण के कारण रेनिन का स्त्रावण होता है।
ANF (Atrial Natriuretic Factor) :- यह आलिन्द पेशियों से स्त्रावित होता है यह रेनिन व एल्डोस्टीरॉन के प्रभाव को कम करता है। यह BP में कमी हृदय पर भार में कमी और रूधिर वाहिनियों का प्रसारण करता है।
प्रश्न 2. वृक्क की संरचना की व्याख्या करे।
उत्तर: मनुष्य में दो वृक्क होते हैं। ये अंतिम वक्षीय और तीसरी कटि कशेरूकी के समीप उदरगुहा में आंतरिक पृष्ठ सतह पर स्थित होते है। प्रत्येक वृक्क सेम के बीज की आकृति का होता है जिसकी लम्बाई 10-12 cm, चौड़ाई 5-7 cm तथा मोटाई 2-3 cm होती है। एक वयस्क में इसका भार लगभग 120-170 ग्राम होता है मनुष्य के दाँयी वृक्क बाँये वृक्क के नीचे होता है वृक्क की पृष्ठ सतह पृष्ठ उदर दीवार से जुड़ी होती है इसलिए वृक्क की अधर सतह ही पेरिटोनियम से ढ़की रहती है इसलिए इसे रीटरो पेरिटोनियल वृक्क या बाह्य पेरिटोनियल वृक्क कहते है। प्रत्येक वृक्क चपटे सेम के बीच की आकृति के गहरे भूरे लाल के रंग के एक तंतुमय संयोजी ऊतक से घिरा रहता है। इसे Renal capsule कहते है। वृक्क के अन्दर लचीला संयोजी ऊत्तक भरा होता हैं यह संयोजी ऊत्तक दो भागों में विभेदित रहता है। बाहरी भाग वल्कुट व आंतरिक भाग या वृक्कीय मध्यांश कहलाता है। वृक्क की भीतरी सतह अवतल होती है। जिसमें एक अनुदैर्ध्य छिद्र होता है जिसे हाइलम (वृक्कीय हाइलस) कहते है। इससे होकर वृक्कीय धमनी और तंत्रिकाऐं प्रवेश करती है तथा वृक्कीय शिरा और मूत्र नलिका बाहर निकलती है। वृक्क की अनुदैर्ध्य काट में हाइलम विस्तारित चपटी, कीट के आकार का एक अवकाश बनाती है जिसे पेल्विस कहते है। पेल्विस पूर्ण रूप से वृक्क ऊतक के द्वारा घिरा रहता है। वृक्कीय मध्यांश के शंक्वाकार पिरामिड वृक्कीय पेल्विस में फैले रहते हैं जिन्हें मध्यांश पिरामिड या वृक्कीग पिरामिड कहतें है।मानव में 8 से 12 पिरामिड होते है। वल्कुट भाग पिरामिड के बीच फैलकर वृक्क स्तम्भ बनाते है जिन्हें बरटिनी के स्तम्भ कहते हैं। स्तनी वृक्क की कार्यरत इकाई नेफ्रॉन या वृक्क नलिका कहलाती है, यह वृक्कीय पिरामिड फैली रहती है। पिरामिड में फैले प्रत्येक नेफ्रॉन के द्वारा मूत्र का निर्माण होता है जो संग्राहक नलिका में आता है जहां से यह एक पैपिला के द्वाा पुटक में चला जाता है। पेल्विस वृक्क के अंदर जाकर 3 या 4 शाखाओं में विभाजित होता है जिसे मुख्य पुटक कहते हैं। मुख्य पुटक फिर अनेक (3 or 4) उपशाखाओं में विभाजित हो जाता है जिसे लघु पुटक (Minor calyx) कहते हैं। यह मूत्र का संग्रहण करता है। इसलिए वृक्क अंकुर लघुपुटक में स्थिर रहते हैं।
प्रश्न 3. नएफरोने के भागों का वर्णन करे।
उत्तर: समीपस्थ वृक्क नलिका: वृक्क नलिका का प्रारंभिक भाग बंद तथा अंतिम भाग खुला रहता है। बंद शिये पर नेफ्रॉन दोहरी झिल्लीयुक्त प्यालेनुमा बोमेन संपुट के रूप में स्थित होता है। संपुट का गुहा आगे वृक्कीय नलिका के रूप में सतत् होती है। बोमेन संपुट के अंदर केशिकाओं का एक गुच्छा होता है जिसे ग्लोमेरूलस कहते हैं। ग्लोमेरूलस और बोमेन संपुट मिलकर एक विशिष्ट संरचना मैल्पीगी कोष बनाते हैं। यह संरचना मूत्र निर्माण की प्रथम प्रक्रिया निस्यंदन के लिए उत्तरदायी होती है। सम्पुट की खोखल, अर्थात अवतलता जिसमें ग्लोमेरूलस स्थित होता है, एक विशेष प्रकार की कोशिकाओं की एपिथीलियम द्वारा आच्छादित होती है। ये कोशिकायें चपटी होती है और इनके कई-कई महीन, अंगुलीनुमा प्रवर्ध ग्लोमेरूलस की केशिकाओं के चारों ओर लिपटे रहते है। इन कोशाओं को पोडोसाइट्स कहते है। बोमेन संपुट एक अति कुंडलित वृक्कीय नलिका, समीपस्थ संवलित नलिका के रूप में सतत् होती है। इस भाग की उपकला कोशिकाएं विशिष्ट होती हैं। जो कि गुहा से आंतरिक द्रव में लवण और अन्य पदार्थों का परिवहन करती है। नलिका गुहा को आस्तरित करने वाली कोशिकाओं के शीर्ष असंख्य सूक्ष्मांकुर (अंगुली के समान प्रवर्ध) की सरंचना करते हैं जो सतही क्षेत्रफल में वृद्धि करते हैं। माइटोकॉन्ड्रिया पार्श्वआधारी सतह के पास सघन रूप से स्थित होते हैं। यह सरंचना सक्रिय परिवहन के द्वारा लवणों को पुनः अवशोषण करती है।
हेनले का लूप : इसका प्रारम्भिक भाग समीपस्थ नलिका के अंतिम भाग से प्रारम्भ होकर दूरस्थ नलिका के प्रारम्भिक भाग पर समाप्त होता है। यह U आकार का हेयरपिन लूप अवरोही एवं आरोही भुजा का बना होता है। अवरोही भुजा के प्रारम्भिक चतुर्थ-पंचम खंड मोटे होते हैं और इनका व्यास समीपस्थ नलिका के समान ही होता है। यह भाग घनाकार उपकला के द्वारा आस्तरित रहता है। हालांकि यहां की कोशिकाएं समीपस्थ नलिका की कोशिकाओं की तुलना में बहुत कम सूक्ष्मांकुर एवं माइटोकॉन्ड्रिया रखती हैं। अवरोही भुजा का पंचम खंडपतला होता है जो कि चपटी शल्काकार उपकला कोशिकाओं के द्वारा आस्तरित रहता है इससे माइटोकॉन्ड्रिया और सूक्ष्मांकुर कम होते हैं। आरोही भुजा में भी एक पतला एवं एक मोटा खंड होता है। मध्यांशीय क्षेत्र में पतली आरोही भुजा एकाएक चौड़ी होकर मोटे आरोही का निर्माण करती है। निचला पतला खण्ड सरल शल्काकार उपकला से आस्तरित होता है, जबकि ऊपरी मोटा खण्ड घनाकार उपकला कोशिका के द्वारा आस्तरित रहता है।
दूरस्थ नेफ्रॉन: हेनले लूप का आरोही भाग दूरस्थ कुंडलित नलिका से जुड़ा रहता है। इसका दूरस्था भाग संग्रह नलिका से जुड़ा रहता है। प्रत्येक संग्रह नलिका अनेक नेफ्रॉन से सूक्ष्म परानिस्यंद ग्रहण करती है। इस भाग की कोशिकाएं सूक्ष्मांकुरों के साथ घनाकार उपकला के द्वारा आस्तरित रहती हैं।
प्रश्न 4. वल्कुटीय नेफ्रॉन व मध्यांश आसन्न नेफ्रॉन के गुण बटीए।
उत्तर: मध्यांश आसन्न नेफ्रॉन :
1. ये कुल नेफ्रॉन का 15% होता है। (15-25%)
2. मैल्पीजी कोष, cortex व medulla से संधि स्था पर पाये जाते है।
3. इन नेफ्रॉस का loop of Henle लम्बा, medulla में अन्दर तक डुबा हुआ रहता है। परिनलिका केशिका जाल अल्प विकसित है। वासा रेक्टा उपस्थित होता है।
वल्कुटीय नेफ्रॉन:
1. ये कुल नेफ्रॉन का 85% होता है (75-85%)
2. मैल्पीजी कोष, वृक्क की सतह के करीब पाये जाते है।
3. इसका loop of Henle अधिकतर cortex में सीमित रहता है तथा थोड़ा भाग medulla में उपस्थित होता है।
4. परिनलिका केशिका जाल उपस्थित होता है।
5. वासा रेक्टा का अभाव होता है।
प्रश्न 5. वृक्क मे रुधिर परिसंचरण किस प्रकार से होता है?
उत्तर: प्रत्येक वृक्क में एक वृक्क धमनी रूधिर ले जाती है। वृक्क में घुसकर वृक्क धमनी बारम्बार विभाजित हो-होकर अनेक धमनिकाओं में बंट जाती है। प्रत्येक धमनिका किसी एक वृक्क नलिका के बोमन सम्पुट में घुसकर कई (मनुष्य में लगभग 50 ) महीने और समानान्तर रूधिर केशिकाओं में विभक्त हो जाती है। बोमन सम्पुट की गुहा में स्थित, केशिकाओं के इस गुच्छे को ग्लोमेरूलस कहते हैं। कहते है। यह अभिवाही धमनिका से काफी पतली होती है। सम्पुट से निकलकर यह फिर केशिकाओं में बंट जाती है।
वल्कलीय वृक्क नलिकाओं में ये केशिकायें नलिका के शेष भाग के चारों ओर एक केशिका जाल बनाये रहती है जिसे परिनलिका केशिका जाल कहते है। जक्स्टा- मेड्यूलरी वृक्क नलिकाओं में ये केशिकायें अत्यधिक महीन होती है और मुख्यतः नलिका के हेन्ले के लूप के समानान्तर फैला एक लूप बनाती है जिसे वासा रेक्टा कहते है।
प्रश्न 6. नलिकाकर पुनवशोषण व सत्रवन की व्याख्या करे।
उत्तर: नलिकाकर पुनवशोषण:
प्रतिदिन बनने वाले निस्पंद के आयतन (180 लीटर प्रतिदिन) की तुलना उत्सर्जित किए जाने वाले मूत्र (1.5 लीटर) से की जाए, तो स्पष्ट होता है कि निस्पंद का लगभग 99 प्रतिशत भाग, वक्क नलिकाओं द्वारा पुनः अवशोषित कर लिया जाता है। यह प्रक्रिया, पुनःअवशोषण कहलाती है। वक्क नलिकाओं की उपकला कोशिकाएँ, इस कार्य को अलग-अलग खंडों में सक्रिय अथवा निष्क्रिय क्रियाविधि द्वारा संपन्न करती है। उदाहरण के लिए, निस्पंद में उपस्थित ग्लूकोज, एमिनो अम्ल, Na*, आदि सक्रिय रूप से पुनःअवशोषित किए जाते हैं, जबकि नाइट्रोजनी अपशिष्ट निष्क्रिय परिवहन द्वारा अवशोषित होते है। वक्काणु के आरंभिक खंडों में जल का पुनः अवशोषण भी निष्क्रिय रूप से ही होता है।
सत्रवन: निस्पंद में नलिकाकार कोशिकाओं द्वारा उपापचयी अपशिष्टों के स्रावण कहलाती है। इसमें K+, H+, अमोनिया तथा कुछ अपशिष्टों जैसे कि हिप्यूरिक अम्ल, क्रिएटीन, ड्रग्स, पिगमेंट्स. टॉक्सिन्स इत्यादि का स्रावण सम्मिलित है। यह ऐसे जन्तुओं में उत्सर्जन का एकमात्र प्रकार है, जिनमें गुच्छ नहीं होते, जैसे कि मरूस्थलीय उभयचर, समुद्रिय मछलियां नलिकाकार स्रावण, सूत्र मूत्र निर्माण में भी एक महत्वपूर्ण चरण है क्योंकि यह शारीरिक द्रवों के आयनी और अम्ल-क्षार संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है।