बिहार बोर्ड कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 19 उत्सर्जी उत्पाद व उनका निष्कासन लघु उत्तरीय प्रश्न
लघुतरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1 प्रयासरणीय जीव क्या होते है?
उत्तर: परासरणीय जीव: वे जीव है जो अपने शरीर तरल की परासरणी अवस्था का सक्रियता से नियंत्रण नहीं कर पाते है। बल्कि यह अपने चारों ओर के माध्यम की परासरणीयता के अनुसार शरीर तरल की। परासरणीयता को परिवर्तित का लेते हैं। सभी समुद्री अकशेरूकी। जीव व कुछ अलवणीय जलीय कशेरूकी पूर्णतः परासरण संरूपण जीव होते है। हैग मछली कशेरूकी परासरणसंरूपी जीव है। परासरण संरूपी जीव में कोशिकीय परासरणता की वहत परास को सहन करने की अद्भुत क्षमता होती है।
प्रश्न 2. ऑर्निथीन चक्र को संक्षिप्त मे बताए?
उत्तर: यह उत्सर्जन का जैव रसायनिक पहलू है। इसे क्रैब हँसलिट चक्र भी कहते हैं। यह यकृत में चलता है, इसमें सम्मिलित
(1) अमोनिया CO, व ATP के संयोजन से कार्बोमाइल का निर्माण होता है।
(II) कार्बोमाइल फॉसफेट ऑर्निथीन से मिलकर सिटरूलिन का निर्माण करता है।
(iii) सिटरूलिन एस्पार्टिक अम्ल से मिलकर ऑर्जिनिनो सक्सिनिक अम्ल का निर्माण करता है।
(iv) यह फ्यूमेरिक अम्ल व आर्जिनीन में टूअ जाता है।
(v) आर्जिनेज एंजाइम की सहायता से ऑर्जिनीन जलअपघटित होकर यूरिया व ऑर्निशीन बनाता है। (इसका चक्र में पुनः उत्पादन व पुनः प्रयुक्त होता है ।)
प्रश्न 3. मनुष्य उत्सर्जन तंत्र की मुख्य संरचनाए कौन कौन सी है?
उत्तर: मनुष्य के उत्सर्जी तंत्र में निम्नलिखित संरचनाएं आती हैं एक जोड़ी वृक्क व उनको रक्त पहुँचाने वाली वाहिनियाँ
एक जोड़ी मूत्र नलिका (Ureters)
एक मूत्राशय
एक मूत्रमार्ग
प्रश्न 4. नेफ्रोन के मुख्य भाग बताए।
उत्तर: वृक्क की क्रियात्मक व संरचनात्मक इकाई नेफ्रॉन होती है। यह एक उपकला नलिका है जो 3 cm लम्बी तथा व्यास में 20-60 pm होती है। प्रत्येक वृक्क लगभग 1 मिलियन (10 लाख) नेफ्रॉन का बना होता है। प्रत्येक नेफ्रॉन को तीन मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता हैं।
(I) समीपस्थ कुण्डलित नलिका
(II) हेनले का लूप ( Henle Loop)
(III) दूरस्थ कुण्डलित नलिका (DCT) या दूरस्थ वृक्क नलिका तत्पश्चात् यह दूरस्थ वृक्क नलिकाए जाकर संग्रह नलिका (Collecting Tubules) में खुलती है।
प्रश्न 5. मध्यंश आसन्न नेफ्रोन के गुण बताए।
उत्तर: 1. कुल नेफ्रॉन का 15% होता है। (15-25%)
2. मैल्पीजी कोष, cortex व medulla से संधि स्थान पर पाये जाते है।
3. इन नेफ्रॉस का loop of Henle लम्बा, medulla में अन्दर तक डुबा हुआ रहता है। परिनलिका केशिका जाल अल्प विकसित है। वासा रेक्टा उपस्थित होता है।
प्रश्न 6. वृक्क के कार्य बताए।
उत्तर: वृक्क के कार्य :
1. जल तथा लवणों का नियमन ।
2. उत्तक द्रव संद्रता का नियमलन
3. क्षार संतुलन धमनीय रक्त दाब का नियमन उपापचयी अपशिष्ट पदार्थ तथा बाहरी रसायनों का नियमन ।
4. Erythropoeitin तथा renin का स्त्राव ।
प्रश्न 7. वेसोप्रेसीन के कार्य बताए?
उत्तर: ADH या वेसोप्रोसिन :- मूत्र के आयतन को नियंत्रित करने वाला मुख्य हार्मोन है यह मुख्यतः DCT और शुरूआती संग्राहक नलिका पर क्रिया करता है इसकी कमी से डाइयूरेसिस और जल हानि हो जाती है।
प्रश्न 8. पॉलियूरिया किया आवश्ट को कहते है?
उत्तर: पोलीयूरिया- मूत्र का अधिक उत्पादन । मूत्र का अधिक उत्पादन ADH के कम स्त्रावण से होता है। ADH के कम स्त्रावण से मूत्र में जल की मात्रा बढ़ जाती है। इससे रोगी को बार-बार प्यास लगती है। इस रोग को डायबिटीज इन्सीपिडस कहते हैं।
प्रश्न 9. वृक्क से संबंधित यक विकार बताए।
उत्तर: कैल्कुली एवं कास्ट - इसे वृक्क की पथरी भी कहते हैं। वृक्क में कैल्शियम ऑक्जेलेट के जमा हो जाने से पथरी बन जाती है। कभी-कभी कैल्शियम फास्फेट एवं कैल्शियम सल्फेट भी पाए जाते हैं ये अघुलनशील लवण हैं। सामान्यतया इनका उत्सर्जन वृक्कों द्वारा नहीं होता।
प्रश्न 10. यकृत का उत्सर्जन मे क्या कार्य है?
उत्तर: यकृत का उत्सर्जन में कार्य: यकृत कोलेस्टेरॉल, पित्त वर्णक (जैसे बिलिरुबिन तथा बिलिवर्डिन) स्टीराइड हॉर्मोन के अक्रियाशील उत्पादों विटामिन व दवाओं को निष्कासित करता है। यकृत इन पदार्थों को मिलाता हुआ आंत्र में डाल देता है, जिनको कि अंत में मल के साथ बाहर निकाल दिया जाता है।
प्रश्न 11. मूत्रण की प्रक्रिया को संक्षेप मे बताए।
उत्तर: वृक्क द्वारा निर्मित मूत्र अंत में मूत्राशय में आता है और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र द्वारा ऐच्छिक संकेत दिए जाने तक संग्रहित रहता है। मूत्राशय में मूत्र भर जाने पर उसके फैलने के फलस्वरूप यह संकेत उत्पन्न होता है। मूत्राशय भित्ति से इन आवेगों को केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में भेजा जाता है। केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में मूत्राशय की चिकनी पेशियों के संकुचन तथा मूत्रमार्ग अवरोधिनी के शिथिलन हेतु एक प्रेरक संदेश जाता है जिससे मूत्र का उत्सर्जन होता है। मूत्र उत्सर्जन की क्रिया मूत्रण कहलाती है और इसे संपन्न करने वाली तंत्रिका क्रियाविधि मूत्रण - प्रतिवर्त कहलाती है।
प्रश्न 12. उत्सर्जन मे फुफऊष का कार्य क्या होता है?
उत्तर: मनुष्य के फुफ्फुस लगभग 18 लीटर CO, घंटे तथा 400ml जल प्रतिदिन सामान्य विस्थापन से निष्कासित करते रहते हैं। गर्म व आर्द्र परिस्थितियों में जल का ह्रास फुफ्सुसों द्वारा बहुत कम होता हैं तथा ठंडे व सूखे मौसम में अधिक होता है। संवातन तथा संवातन की दर (मुख व नासिका से श्वसन) फुफ्फुस द्वारा होने वाले जल ह्यास को प्रभावित करती है। विभिन्न वाष्पशील पदार्थों का भी फुफ्फुस द्वारा सरलता से निष्कासन होता रहता है।
प्रश्न 13. संग्रह नलिका की क्या भूमिका होती है?
उत्तर: संग्रह नलिका: यह लम्बी नलिका, वक्क के वल्कुट से लेकर मेडुला या मध्यांश के आंतरिक भागों तक फैली रहती है। इस खंड द्वारा जल की अधिक मात्रा का पुनःअवशोषण करके सांद्र मूत्र निर्मित किया जा सकता है। इस भाग से होकर कुछ मात्रा में यूरिया वक्क मध्य तक जाती है, जिससे परासरणीयता बनी रहती है। यह H+ तथा K+ आयनों के चयनात्मक स्रावण द्वारा रक्त में pH व आयनी संतुलन बनाए रखने में भी भूमिका निभाती है।
प्रश्न 14. समीपस्थ कुदलित नलिका का कार्य बताए।
उत्तर: समीपस्थ संवलित नलिका (PCT): यह नलिका, सरल घनाकार ब्रुश बार्डर उपकला से बनी होती है जो पुनःअवशोषण हेतु पष्ठीय क्षेत्रफल में वृद्धि कर देती है। लगभग सभी अनिवार्य पोषक तत्व तथा 70-80% वैद्युत अपघट्यों एवं जल का पुनःअवशोषण इसी भाग द्वारा किया जाता है। निस्पंद में हाइड्रोजन आयनों तथा अमोनिया के चयनात्मक स्रावण द्वारा तथा इससे HCO, के पुनःअवशोषण द्वारा पीसीटी, शारीरिक द्रवों का pH मान तथा आयनी संतुलन बनाए रखने में भी सहायक होती है।
प्रश्न 15. हेनले लूप का कार्य बताए।
उत्तर: हेनले का लूप : हेनले के लूप की आरोही भुजा में पुनः अवशोषण न्यूनतम होता है। हालांकि यह क्षेत्र, मध्यांश में अन्तराली द्रव की उच्च परासरणता बनाए रखने में उल्लेखनीय भूमिका निभाता है। हेनले के लूप की अवरोही भुजा, जल के लिए पारगम्य होती है, परन्तु वैद्युत अपघट्य के लिए यह लगभग अपारगम्य होती है। यह नीचे की ओर जाते हुए, निस्पंद को सांद्र करती है। इसकी आरोही भुजा, के लिए अपारगम्य होती है परन्तु इससे होकर वैद्युत अपघट् पहुँचने के कारण पतला अर्थात् तनु होता जाता है।
प्रश्न 16. गूचसन्न उपकरण क्या है?
उत्तर: गुच्छासन्न उपकरण (JGA): JGA एक विशेष संवेदी क्षेत्र होता है जो दूरस्थ संवलित नलिका तथा अभिवाही धमनिका के संपर्क बिंदु पर कोशिकीय रूपान्तरण द्वारा बना होता है। वक्कीय रक्त दाब में कमी होने या GFR में कमी होने पर JGA सक्रिय हो जाता है। यह गुच्छासन्न कोशिकाओं से रेनिन के स्रावण को प्रेरित करता है। यह रेनिन, एंजियोटेंसिनोजेन प्रोटीन को एंजियोटेसिन पेप्टाइड में परिवर्तित करता है। एंजियोटेंसिन एक हार्मोन है जो अपवाही धमनिका को संकुचित करते हुए गुच्छ रक्त दाब बढ़ा देता है जिसमे GFR की पुनर्प्राप्ति कर ली जाती है।
प्रश्न 17. जक्स्टाग्लोमररूलर कोशिकाऐं को परिभाषित करे।
उत्तर: दोनों आलिन्दों की चिकीनी पेशी कोशिकाएं दूरस्थ कुण्डलित नलिका के सम्पर्क में होती है ये उपकला फुली हुई तथा इनमें गहरे रंग की निष्क्रिय रेनिन कणिकाऐं होती है इन्हें जक्स्टाग्लोमररूलर कोशिकाऐं कहते है
प्रश्न 18. प्रासक नियंत्रक जीव किस प्रकार से कार्य करते है?
उत्तर: परासरणनियंत्रक जीव को निम्नवलीय या अल्पपरासारी माध्यम में रखने पर जल की हानि को दूर करने के लिये जल की मात्रा को निकाल देते हैं जबकि इन्हें उच्चपरासरणीय माध्यम में रखने पर जल की हानि को दूर करने के लिए जल की मात्रा को लगातार ग्रहण करते हैं। अतः परासरणनियंत्रक जीव को जल को अंदर या बाहर करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है व शरीर तरल में विलेय सांद्रता कर परिचालन करके परासरणी प्रवणता को बनाये रखते हैं।
प्रश्न 19. मूत्राशय का संक्षिप्त मे वर्णन करे।
उत्तर: मूत्राशय का बाहरी स्तर डिट्रसर पेशी का बना होता है, जो अनेच्छिक प्रकार की होती है। जबकि आंतरिक स्तर ट्रांजीशनल उपकला द्वारा बना होता है। जिसे Urothelium भी कहते हैं। इस उपकला में प्रसारित होने की अत्यधिक क्षमता होती है। इसलिए मूत्राशय अधिक मात्रा में मूत्र का संग्रह कर पाता है। मूत्राशय मूत्रमार्ग में खुलता है। मूत्राशय के छिद्र को दो कपाटों या अवरोधनी पेशियों द्वारा नियंत्रित किया जाता है इन्हें बाह्य अवरोधनी और आंतरिक अवरोधनी कहते हैं। आंतरिक अवरोधनी अनच्छिक प्रकार का होता है और बाह्य अवरोधनी ऐच्छिक प्रकार का होता है। सामान्यतया से संकुचित रहते हैं लेकिन मूत्रोत्सर्ग के समय यह शिथिल हो जाते हैं।
प्रश्न 20. नलिकाकर सत्रवन क्या होता है?
उत्तर: निस्पंद में नलिकाकार कोशिकाओं द्वारा उपापचयी अपशिष्टों के स्रावण कहलाती है। इसमें K+, H+, अमोनिया तथा कुछ अपशिष्टों जैसे कि हिप्यूरिक अम्ल, क्रिएटीन, ड्रग्स, पिगमेंट्स. टॉक्सिन्स इत्यादि का स्रावण सम्मिलित है। यह ऐसे जन्तुओं में उत्सर्जन का एकमात्र प्रकार है, जिनमें गुच्छ नहीं होते, जैसे कि मरूस्थलीय उभयचर, समुद्रिय मछलियां नलिकाकार स्रावण, सूत्र मूत्र निर्माण में भी एक महत्वपूर्ण चरण है क्योंकि यह शारीरिक द्रवों के आयनी और अम्ल-क्षार संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है।