बिहार बोर्ड कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 20 गमन व संलचलन दीर्घ उतरीय प्रश्न
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बिहार बोर्ड कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 20 गमन व संलचलन दीर्घ उतरीय प्रश्न

दीर्घ उतरीय प्रश्न 

प्रश्न 1. पेशी संकुचन के प्रमुख चरणों का वर्णन करें। 

उत्तर: पेशी संकुचन के प्रमुख चरण निम्न हैं:

1. उत्तेजन: यह पेशी संकुचन का प्रथम चरण है। उत्तेजन में तन्त्रिका आवेग के कारण तन्त्रिकाक्ष के सिरों द्वारा एसीटिलकोलीन (एक तन्त्रिका प्रेषी रसायन), तन्त्रिका पेशी सन्धि पर मुक्त होता है। यह एसौटिलकोलीन पेशी - प्लाज्मा की Na+ के प्रति पारगम्यता को बढ़ावा देता है जिसके फलस्वरूप प्लाज्मा झिल्ली की आन्तरिक सतह पर धनात्मक विभव उत्पन्न हो जाता है। यह विभव पूरी प्लाज्मा झिल्ली पर फैलकर सक्रिय विभव उत्पन्न कर देता है और पेशी कोशिका उत्तेजित हो जाती है।

2. उत्तेजन - संकुचन युग्म:  इस चरण में सक्रिय विभव पेशी कोशिका में संकुचन प्रेरित करता है। यह विभव पेशी प्रद्रव्य में तीव्रता से फैलता है और Ca++ मुक्त होकर ट्रोपोनिन - सी से जुड़ जाते हैं और ट्रोपोनिन अणु के संरूपण में परिवर्तन हो जाते हैं। इन परिवर्तनों के कारण एक्टिन के सक्रिय स्थल पर उपस्थित ट्रोपोमायोसिन एवं ट्रोपोनिन दोनों वहाँ से पृथक् हो जाते हैं। मुक्त सक्रिय स्थल पर तुरन्त मायोसिन तन्तु के अनुप्रस्थ सेतु इनसे जुड़ जाते हैं और संकुचन क्रिया प्रारम्भ हो जाती है।

3. संकुचन: एक्टिन तन्तु के सक्रिय स्थल से जुड़ने से पूर्व सेतु का सिरा एक ATP से जुड़ जाता है । मायोसिन के सिरे के ATPase एन्जाइम द्वारा ATP, ADP तथा Pi में टूट जाते हैं किन्तु मायोसिन के सिर पर ही लगे रहते हैं। इसके उपरान्त मायोसिन का सिर एक्टिन तन्तु के सक्रिय स्थल से जुड़ जाता है। इस बन्धन के कारण मायोसिन के सिर में संरूपण परिवर्तन होते हैं और इसमें झुकाव उत्पन्न हो जाता है जिसके फलस्वरूप एक्टिन तन्तु सार्कोमीयर के केन्द्र की ओर खींचा जाता है। इसके लिए ATP के विदलन से प्राप्त ऊर्जा काम आती है और सिर के झुकाव के कारण इससे जुड़ा ADP तथा P भी मुक्त हो जाते हैं। इनके मुक्त होते ही नया ATP अणु सिर से जुड़ जाता है। ATP के जुड़ते ही सिर एकिन से पृथक् हो जाता है। पुन: ATP का विदलन होता है। मायोसिन सिर नये सक्रिय स्थल पर जुड़ता है तथा पुनः यही क्रिया दोहराई जाती है, जिससे एक्टिन तन्तुक खिसकते हैं और संकुचन हो जाता है।

4. शिथिलन (Relaxation): पेशी उत्तेजन समाप्त होते ही Ca++ पेशी प्रद्रव्यो जालिका में चले जाते हैं। जिससे ट्रोपोनिन - सी Ca++ से मुक्त हो जाती है और एक्टिन तन्तक के सक्रिय स्थल अवरुद्ध हो जाते हैं। पेशी तन्तु अपनी सामान्य स्थिति में आ जाते हैं तथा पेशीय शिथिलन हो जाता है।

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प्रश्न 2 .मानव शरीर की कोशिकाओं द्वारा प्रदर्शित विभिन्न गतियाँ कौनसी हैं?

उत्तर:मानव शरीर की कोशिकाएं मुख्यतः तीन प्रकार की गति दर्शाती हैं:

1. अमीबीय गति : हमारे शरीर के श्वेताणु जैसे महाभक्षकाणु न्यूट्रोफिल कोशिकाओं में यह गति पाई जाती है जो कि कोशिका भक्षण में सहायक होती है। यह क्रिया जीवद्रव्य की प्रवाही गति द्वारा कूट पाद बनाकर की जाती है, जैसे - अमीया के सदृश। कोशिका कंकाल तन्त्र जैसे - सूक्ष्म तंतु भी अमीबीय गति में सहयोगी होते हैं।

2. पक्ष्माभी गति : हमारे अधिकांश नलिकाकार अंगों में जो पक्ष्माभ उपभित्ति से आस्तरित होते हैं पक्ष्माभ गति होती है। श्वास नली में पक्ष्माभों की समन्वित गति से वायुमंडलीय वायु के साथ प्रवेश करने वाले धूल-कणों एवं बाह्य पदार्थों को हटाने में मदद मिलती है। इसी प्रकार मादा प्रजनन मार्ग में डिंब का परिवहन पक्ष्माभ गति की सहायता से ही होता है।

3. पेशीय गति : हमारे पादों, जबड़ों, जिला आदि में पायी जाने वाली गति पेशीय गति ही है। मनुष्य में चलन पेशियों की संकुचनशीलता के कारण होता है। चलन में प्रयुक्त होने वाली पेशियां अस्थियों से संलग्न होती हैं। पेशीय संकुचन के कारण उपांगों की अस्थियों में गति उत्पन्न होती है। अस्थियों, पेशियों एवं : तन्त्रिका तन्त्र की समन्वित क्रिया के फलस्वरूप चलन सम्भव होता है।

प्रश्न 3. अरीखित पेशी ऊतक की संरचना समझाइए।

उत्तर :संरचना : इनकी संरचना सरल होती है। इनके तन्तु  100-200µ तथा 10µ व्यास के पतले (सँकरे) तथा तरूप होते हैं। इन कोशिकाओं के बीच-बीच में कोशिकाविहीन, तन्तुमय संयोजी ऊतक होता है। पेशी तन्तु या पेशी कोशिका सार्कोलेमा नामक कोशिका कला से घिरी होती है। कोशिका के पेशीद्रव्य में एक्टोमायोसिन प्रोटीन के बने समानान्तर पेशी तन्तुक  तथा एक बड़ा केन्द्रक होता है। पेशी की सकुंचनशीलता इन्हीं तन्तुओं के कारण होती है।

अरेखित पेशियाँ अपने समूहीकरण के आधार पर एकल इकाई  अथवा बहु-इकाई के रूप में होती हैं। बहु-इकाई अरेखित पेशियों में तन्तु स्वतन्त्र रूप में कार्य करते हैं, जबकि एकल इकाई में ये आपस में बँधे रहते हैं तथा मिलकर कार्य करते हैं। नेत्रों में सिलियरी पेशियाँ, उपतारा की पेशियाँ आदि बहु-इकाई पेशियाँ हैं। आंतरांगों में अरेखित पेशियाँ एकल प्रकार की होती हैं। छिद्र के चारों ओर ये पेशियाँ संवरणी बनाती हैं।

प्रश्न 4 .अंसमेखला तथा उसके कार्यों का विस्तार से वर्णन कीजिए।

उत्तर :अंसमेखला

मनुष्य में अंसमेखला पूरी तरह अलग-अलग दो अर्द्ध-भागों से मिलकर बनी होती है, जिसका प्रत्येक अर्द्ध-भाग मुख्यतः एक तिकोनी और चपटी अस्थि से बना होता है। इसे अंसफलक या स्कैपुला  कहते हैं और यह पीठ व गर्दन के दोनों ओर तथा पसलियों के पीछे स्थित होता है। अस्थि का चौड़ा भाग ऊपर की ओर तथा नुकीला भाग नीचे की ओर रहता है। स्कैपुला के पश्च भाग में एक उभार होता है, जो एक उठी हुई छोटी-सी भित्ति के समान दिखाई देता है तथा कण्टक  कहलाता है। इसी के कारण अंसमेखला दो भागों में विभाजित दिखाई देती है। कण्टक का बाहर निकला हुआ ऊपरी भाग चपटा हो जाता है। इसे ऐक्रोमियन प्रवर्ध कहते हैं।

इसी प्रवर्ध से हॅसली की अस्थि या क्लैविकल  जुड़ी रहती है, जिससे हमारे उठे हुए कन्धे बनते हैं। इस प्रवर्ध के पास स्कैपुला में एक गड्ढा अंस उलूखल होता है। अंस उलूखेल में अग्रबाहु की प्रगण्डिक) का गोल सिर स्थित रहता है और कन्दुक-खल्लिका सन्धि बनाता है। इस सन्धि के कारण ही हमारी भुजाएँ चारों ओर सुविधापूर्वक घूम सकती हैं। अंसमेखला पसलियों के साथ केवल मांसपेशियों से ही जुड़ी रहती है।  हॅसली की अस्थि अंसमेखला की दूसरी अस्थि है, जो ‘F’ अक्षर की भाँति दिखाई देती है। यह एक ओर अंसकूट प्रवर्ध और दूसरी ओर उरोस्थि से जुड़ी रहती है। यह अस्थि बाहु के भार को सम्भाले रखती है।
अंसमेखला के कार्य
अंसमेखला के द्वारा ही कन्धे का निर्माण होता है। इसकी हँसली की अस्थि बाहु को सम्भालने में सहायता करती है तथा अंस उलूखल में अग्रबाहु (प्रगण्डिका) का सिर कन्दुक-खल्लिका सन्धि बनाता है। इस सन्धि के होने से ही बाहु चारों ओर आसानी से घुमायी जा सकती है।

प्रश्न 5. मानव शरीर के पिछले हिस्से में मौजूद एक्स्टेंसर की मांसपेशियों में किस प्रकार के मांसपेशी फाइबर प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं? कौन-सी विशेषताएँ उन तंतुओं को अपना उद्देश्य पूरा करने में सक्षम बनाती हैं?

उत्तर: मानव शरीर के पिछले हिस्से की एक्सटेंसर मांसपेशियों में लाल मांसपेशी फाइबर की उच्च सांद्रता होती है। लाल मांसपेशी फाइबर की निम्नलिखित विशेषताएं हैं जो इसे अपना कार्य करने की अनुमति देती हैं: -

(i) इनमें माइटोकॉन्ड्रिया और मायोग्लोबिन प्रचुर मात्रा में होते हैं।

(ii) वे बिना थके लंबे समय तक धीमी गति से संकुचन करती हैं।

(iii) लैक्टिक एसिड का कोई संचय नहीं। फाइबर

(iv) वे ग्लूकोज के एरोबिक अपचय द्वारा ऊर्जा (एटीपी) उत्पन्न करते हैं।

प्रश्न 6.  एक लाल मांसपेशी फाइबर लंबे समय तक काम क्यों कर सकता है, जबकि एक सफेद मांसपेशी फाइबर जल्द ही थकान से ग्रस्त हो जाता है?

उत्तर:लाल मांसपेशी फाइबर लंबे समय तक काम करते हैं क्योंकि:

(i) ये पतले और छोटे पेशीय रेशे होते हैं।

(ii) उनके पास बड़ी मात्रा में मायोग्लोबिन होता है।

(iii) इनमें बड़ी संख्या में माइटोकॉन्ड्रिया होते हैं।

(iv) वायुवीय श्वसन द्वारा ऊर्जा प्रदान करते हैं।

(v) वे लंबी अवधि के लिए संकुचन की धीमी दर को पूरा करते हैं।

सफेद पेशी तन्तु शीघ्र ही थकान से ग्रस्त हो जाते हैं क्योंकि:

(i) ये मोटे और बड़े पेशीय रेशे होते हैं।

(ii) उनके पास थोड़ी मात्रा में मायोग्लोबिन होता है।
(iii) उनके पास माइटोकॉन्ड्रिया की तुलनात्मक रूप से कम संख्या है।

(iv) वे अवायवीय श्वसन करके ऊर्जा प्रदान करते हैं।

(v) ये छोटी अवधि के लिए तीव्र गति से संकुचन करती हैं

प्रश्न 7. करधनी का कार्य क्या है?

उत्तर: शरीर में दो मेखलाएँ होती हैं, अंस मेखला और श्रोणि मेखला।

A. अंस मेखला का कार्य:

यह अक्षीय कंकाल के साथ ऊपरी अंगों के जोड़ में मदद करता है। यह दो हड्डियों से मिलकर बना होता है: - हंसली या हंसली की हड्डी और स्कैपुला या कंधे की हड्डी।

यह आपके कंधे का समर्थन करता है, गति की पूरी श्रृंखला की सुविधा देता है, और रीढ़ की हड्डी से ऊपरी अंगों तक चलने वाली नसों और रक्त वाहिकाओं की रक्षा करता है।

यह उठाने, पकड़ने आदि जैसे कार्य करता है।

B. पेल्विक गर्डल का कार्य:
यह अक्षीय कंकाल के साथ निचले अंगों के जोड़ में मदद करता है। यह तीन हड्डियों से मिलकर बना होता है:- ऊपरी इलियम, भीतरी प्यूबिक और इस्कियम।

 यह शरीर का वजन उठाने में मदद करता है।

यह ट्रंक और आंतों, मूत्राशय और आंतरिक यौन अंगों का समर्थन और संतुलन करता है।

यह चलने, खड़े होने, कूदने, दौड़ने आदि कार्य करता है।

प्रश्न 8. साइनोवियल जोड़ों को स्वतंत्र रूप से चलने योग्य क्या बनाता है? किन्हीं चार प्रकार की श्लेष संधियों की सूची बनाइए।

उत्तर: साइनोवियल जोड़:- साइनोवियल जोड़ों में आर्टिकुलेटिंग हड्डियों के बीच एक जगह होती है जिसे साइनोवियल कैविटी कहते हैं। यह गुहा स्नेहक श्लेष द्रव से भरी होती है, जो हड्डियों की कलात्मक सतह पर घर्षण को कम करती है और प्रभाव के खिलाफ अतिरिक्त कुशनिंग प्रदान करने में मदद करती है। इसलिए, श्लेष जोड़ स्वतंत्र रूप से चल सकते हैं।

सिनोवियल जोड़ निम्न प्रकार के होते हैं:

(i) बॉल एंड सॉकेट ज्वाइंट: - बॉल और सॉकेट ज्वाइंट फीमर और एसिटाबुलम के सिर के बीच में मौजूद होता है।

(ii) हिंग ज्वाइंट: हिंग ज्वाइंट फालैंग्स के बीच में मौजूद होता है।

(iii) पिवोट ज्वाइंट: एटलस और एक्सिस के बीच में पिवट ज्वाइंट मौजूद होता है।

(iv) सैडल जोड़: सैडल जोड़ अंगूठे के कार्पल और मेटाकार्पल के बीच स्थित होता है।

प्रश्न 9. मांसपेशी ऊतक के तीन प्रकार क्या हैं? उनमें से प्रत्येक की संरचना के बारे में दो विशिष्ट बिंदु लिखिए?

उत्तर: पेशी ऊतक के प्रकार :- पेशी ऊतक तीन प्रकार के होते हैं- कंकाल, विसरल (चिकनी) तथा हृदय।

(i) कंकाल / धारीदार मांसपेशियां:
कंकाल की पेशियों की कोशिकाएँ सीधी, बेलनाकार, अशाखित तथा बहुकेन्द्रीय होती हैं। वे प्रमुख धारी दिखाते हैं और इस प्रकार रेखित कहलाते हैं।

वे स्वैच्छिक मांसपेशियां हैं क्योंकि उनकी गतिविधियां तंत्रिका तंत्र के स्वैच्छिक नियंत्रण में होती हैं।

(ii) आंत / चिकनी / गैर-धारीदार मांसपेशियां:

चिकनी मांसपेशियों की कोशिकाएँ संकरी, धुरी के आकार की और एक-केंद्रकीय होती हैं। इनमें कोई भी धारी नहीं होती है और दिखने में चिकनी होती हैं, इसलिए इन्हें चिकनी या गैर-धारीदार पेशी कहा जाता है। वे अनैच्छिक मांसपेशियां हैं क्योंकि उनकी गतिविधियां सीधे तंत्रिका तंत्र द्वारा नियंत्रित नहीं होती हैं। वे तंत्रिका तंत्र, अंतःस्रावी तंत्र और विभिन्न रसायनों द्वारा नियंत्रित होते हैं।

(iii) हृदय की मांसपेशियां: हृदय की पेशियों की कोशिकाएँ बेलनाकार, शाखित और एक केन्द्रकीय होती हैं। वे धारीदार हैं।

वे अनैच्छिक मांसपेशियां हैं क्योंकि उनकी गतिविधियां सीधे तंत्रिका तंत्र द्वारा नियंत्रित नहीं होती हैं। वे केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, अंतःस्रावी तंत्र और विभिन्न रसायनों द्वारा नियंत्रित होते हैं।

प्रश्न 10. पेशीय तंत्र के किन्हीं तीन विकारों का वर्णन कीजिए।

उत्तर: पेशी तंत्र के तीन विकार हैं

(i) मायस्थेनिया ग्रेविस: यह एक प्रकार का ऑटोइम्यून रोग है। नसों और मांसपेशियों के बीच संचार का टूटना इस स्थिति का कारण बनता है। यह न्यूरोमस्क्यूलर जंक्शन को प्रभावित करता है जो कंकाल की मांसपेशियों के प्रगतिशील कमजोर और पक्षाघात का कारण बनता है। लक्षण दोहरी दृष्टि, हाथ और पैर की मांसपेशियों में कमजोरी, और बोलने और चबाने में कठिनाई हैं।

(ii) मस्कुलर डिस्ट्रॉफी: यह एक आनुवंशिक विकार है जो कंकाल की मांसपेशियों की कमजोरी और प्रगतिशील अध: पतन का कारण बनता है। लक्षणों में सांस लेने और निगलने में परेशानी शामिल है।

(iii) टेटनी: यह तेजी से ऐंठन (जंगली संकुचन) या शरीर के तरल पदार्थ और हाइपरपैराथायरायडिज्म में कम सीए ++ के कारण संकुचन की निरंतर स्थिति को संदर्भित करता है। लक्षणों में मांसपेशियों में ऐंठन, बोलने और सांस लेने में कठिनाई, हाथों और पैरों में सुन्नता, दौरे और हृदय की समस्याएं शामिल हैं।