बिहार बोर्ड कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 21 तंत्रिकीय नियंत्रण व समन्वय दीर्घ उतरीय प्रश्न
दीर्घ उतरीय प्रश्न
प्रश्न 1. मस्तिष्क का संक्षेप में वर्णन कीजिए
उत्तर: (अ) मस्तिष्क : तीन झिल्लियों द्वारा ढका होता है जिन्हें क्रमशः ड्यूरामेटर, अरेनाइड एवं पायामेटर कहते हैं। मस्तिष्क को तीन भागों में विभाजित किया गया है:
अग्रमस्तिष्क
मध्यमस्तिष्क
पश्च मस्तिष्क।
1. अग्रमस्तिष्क: प्रमस्तिष्क, थेलेमस और हाइपोथेलेमस से बना होता है। प्रमस्तिष्क लंबवत् दो अर्धगोलार्डों में विभक्त होता है, जो कार्पस कैलोसम से जुड़े रहते हैं। अनमस्तिष्क का महत्वपूर्ण भाग हाइपोथेलेमस शरीर के तापक्रम, खाने और पीने आदि क्रियाओं का नियन्त्रण करता है। प्रमस्तिष्क गोलाद्धों का आंतरिक भाग और संगठित गहराई में स्थित संरचनाएं मिलकर जटिल संरचना बनाते हैं, जिसे लिम्बिक तंत्र कहते हैं और यह सूंघने, प्रतिवर्ती क्रियाओं, लैंगिक व्यवहार के नियंत्रण, मनोभावों की अभिव्यक्ति और अभिप्रेरण से सम्बन्धित होता है।
2. मध्यमस्तिष्क: यह अनमस्तिष्क के थेलेमसाहाइपोथेलेमस तथा पश्च मस्तिष्क के पोंस के बीच स्थित होता है। मध्य मस्तिष्क का ऊपरी भाग चार लोबनुमा उभारों का बना होता है जिन्हें कार्पोरा क्वाड्रीजिमीना कहते हैं। मध्य मस्तिष्क ग्राही व एकीकरण तथा एकीकृत दृष्टि तन्तु तथा श्रवण अंतर क्रियाओं से सम्बन्धित है।
3. पश्चमस्तिष्क: पश्च मस्तिष्क पोस, अनुमस्तिष्क और मेड्यूला का बना होता है। पोस रेशेनुमा पथ का बना होता है जो कि मस्तिष्क के विभिन्न भागों को आपस में जोड़ते हैं। अनुमस्तिष्क की सतह विलगित होती है जो न्यूरॉन्स को अतिरिक्त स्थान प्रदान करती है। मेड्यूला ऑब्लांगेटा मेरुरज्जु से जुड़ा होता है। मेड्यूला ऑब्लांगेटा में श्वसन, हृदय परिसंचारी प्रतिवर्तन और पाचक रसों के स्राव के नियंत्रण केन्द्र होते हैं।
प्रश्न 2. कर्ण (Ear) का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर: मनुष्य के कर्ण को तीन भागों में विभाजित किया गया है:
बाह्य कर्ण
मध्य कर्ण
अन्तः कर्ण।
बाहा कर्ण पिन्ना तथा बाह्य श्रवण गुहा से बना होता है। मध्य कर्ण तीन अस्थिकाओं से बना होता है, जिन्हें क्रमश: मैलियस, इन्कस और स्टेपीज कहते हैं। द्रव्य से भरा अन्तःकर्ण लोबरिंथ का घुमावदार भाग कोक्लिया कहलाता है। कोक्लिया दो झिल्लियों बेसिलर झिल्ली और राजइनर्स झिल्ली द्वारा तीन कक्षों में विभाजित किया जाता है। ऑर्गन ऑफ कॉर्टाई आधारीय झिल्ली द्वारा तीन कक्षों में विभाजित किया जाता है। ऑर्गन ऑफ कॉटाई आधारीय झिल्ली पर स्थित होता है और इसमें पाई जाने वाली रोम कोशिकाएँ श्रवण ग्राही की तरह कार्य करती हैं।
कर्ण ड्रम (Ear drum) में उत्पन्न कम्पन कर्ण अस्थिकाओं और अंडाकार खिड़की द्वारा द्रव से भरे अन्तःकर्ण तक भेजे जाते हैं, जहाँ वे आधारीय झिल्ली में एक तरंग उत्पन्न करती है। आधारीय झिल्ली में होने वाली गति रोम कोशिकाओं को मोड़ती है और टेक्टोरियल झिल्ली के विरुद्ध दबाव उत्पन्न करते हैं। फलस्वरूप तंत्रिका आवेग उत्पन्न होते हैं और अभिवाही तन्तुओं द्वारा मस्तिष्क के श्रवण वल्कुट तक भेजे जाते हैं। अन्तःकर्ण में भी कोक्लिया के ऊपर जटिल तन्त्र होता है और शरीर का संतुलन और सही स्थिति को बनाए रखने में हमारी मदद करता है।
प्रश्न 3. केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र और परिधीय तंत्रिका तंत्र में तुलना कीजिए।
उत्तर: 1. मस्तिष्क व मेरुरज्जु मिलकर केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का निर्माण करते हैं। मस्तिष्क से निकलने वाली कपाल तथा मेरुरज्जु से निकलने वाली मेरु तन्त्रिकायें मिलकर परिधीय तत्रिका तंत्र का निर्माण करती हैं।
2. इस तन्निका तन्त्र को मानव की इच्छा के अधीन होने के कारण ऐच्छिक तन्त्रिका तंत्र या केन्द्रीय तन्त्रिका तब कहते हैं। परिधीय तत्रिका तंत्र स्नायुमण्डल के बाहरी भाग में घनों के समान स्नायु तार होते हैं जो केन्द्रीय तंत्र को शरीर के विभिन्न भागों से मिलाते हैं।
3. केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तन्त्र की सहायता से विभिन्न प्रकार की संवेदना ग्रहण की जाती है तथा अपनी इच्छानुसार हाथ - पैर चलाते हैं और विवेक से कार्य करते हैं। परिधीय तत्रिका तंत्रये स्नायु बाहर से उत्तेजनाओं को केन्द्र या केन्द्र से बाहर पहुँचाने का कार्य करते हैं।
प्रश्न 4. स्थिर विभव और सक्रिय विभव के गुण बताए,
उत्तर: स्थिर विभव
1. विश्राम की स्थिति में सन्विका को ध्रुवीय तन्त्रिका कहते हैं। ध्रुवीय स्थिति में तन्त्रिका झिल्ली के बाहरी ओर धनात्मक आवेश. तथा अन्दर की ओर ऋणात्मक आवेश पाया जाता है।
2. विश्राम की अवस्था में तन्धिका झिल्ली पर पाये जाने वाले विभव को विश्रान्ति विभव/स्थिर विभव (Resting Potential) कहते हैं।
3. विश्राम की स्थिति में न्यूरॉन एक्सोलिमा पर विराम कला विभव का मान - 70 से - 85 mv होता है।
सक्रिय विभव
तविका को पर्याप्त उद्दीपन मिलने पर एक्सोलेमा की पारगम्यता में। परिवर्तन होता है। इस स्थिति में Na+ भीतर प्रवेश करते हैं जिससे तन्त्रिका तन्तु बाहर से ऋण आवेशित (-ve) तथा अन्दर से धनावेशित (+ve) हो जाता है। इसे विधुवीय अवस्था कहते हैं।
विध्रुवीय अवस्था में तन्त्रिका झिल्ली पर उपस्थित विभव को कार्य विभव/सक्रिय विभव कहते हैं।
एक्सॉन पर तन्त्रिका आवेग की उपस्थिति के समय उपस्थित सक्रिय कला विभव) का मान +30mv होता है।
प्रश्न 5. कॉरोइड और रेटिना के गुण बताए।
उत्तर: कॉरोइड (Choroid)
1. यह नेत्र गोलक का मध्य स्तर है।
2. यह स्तर कोमल संयोजी ऊतक की बनी होती है।
3. इस स्तर में रक्त कोशिकाओं का घना जाल होता है।
4. इस स्तर की संरचना सरल होती है।
5. इस स्तर का उद्भव मीसोडर्म से होता है।
6. इस स्तर पर प्रतिबिम्ब नहीं बनता है।
7. यह इकहरी परत है।
8. रक्तक पटल से निर्मित आइरिस प्रकाश की मात्रा का नियन्त्रण करती है।
रेटिना (Retina)
रेटिना नेत्र गोलक का सबसे भीतरी स्तर है।
यह नेत्र गोलक का सबसे पतला व कोमल संवेदी स्तर है।
इस स्तर में कॉरोइड स्तर की तुलना में कम होता है।
इसकी संरचना जटिल होती है।
इस स्तर का उद्भव एक्टोडर्म से होता है।
रेटिना स्तर पर प्रतिबिम्ब बनता है।
रेटिना तीन परतों से मिलकर बनी होती है।
रेटिना में स्थित प्रकाशग्राही कोशिकाएं (शलाका एवं शंकु) रात्रि में व मन्द प्रकाश एवं तेज प्रकाश व विभिन्न रंगों को देखने में सहायक हैं।
प्रश्न 6:रासायनिक सिनेप्स द्वारा तंत्रिका आवेगों का संवहन किस प्रकार से संपपन होता है?
उत्तर: सिनेप्स दो प्रकार के होते हैं, विद्युत सिनेप्स एवं रासायनिक सिनेप्स। रासायनिक सिनेप्स पर, पूर्व एवं पश्च सिनेप्टिक न्यूरोन्स की झिल्लियाँ द्रव से भरे अवकाश द्वारा पृथक् होती हैं जिसे सिनेप्टिक दरार कहते हैं। सिनेप्सिस द्वारा आवेगों के संचरण में न्यूरोट्रांसमीटर (तंत्रिका संचारी) कहलाने वाले रसायन सम्मिलित होते हैं। तंधिकाक्ष के छोर पर स्थित तंत्रिका संचारी अणुओं से भरी होती है। जब तक आवेग तंत्रिकाक्ष के छोर तक पहुंचता है। यह सिनेष्टिक पुटिका की गति को झिल्ली की और उत्तेजित करता है, जहां वे प्लाज्मा झिल्ली के साथ जुड़कर तंत्रिका संचारी अणुओं को सिनेप्टिक दरार में मुक्त कर देते हैं । मुक्त किये गये तंत्रिका संचारी अणु पश्च सिनेप्टिक झिल्ली पर स्थित विशिष्ट ग्राहियों से जुड़ जाते हैं। इस जुड़ाव के फलस्वरूप आयन चैनल खुल जाते हैं और उसमें आयनों के आगमन से पश्च सिनेप्टिक झिल्ली पर नया विभव उत्पन्न हो जाता है। उत्पन्न हुआ नया विभव उत्तेजक या अवरोधक हो सकता है।
प्रश्न 7: तंत्रीय समन्वयन पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर: समन्वयता एक ऐसी क्रियाविधि है, जिसके द्वारा दो या अधिक अंगों में क्रियाशीलता बढ़ती है व एक दूसरे अंगों के कार्यों में मदद मिलती है, उदाहरणार्थ जब हम शारीरिक व्यायाम करते हैं तो पेशियों के संचालन हेतु ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ जाती है। ऑक्सीजन की आवश्यकता में भी वृद्धि हो जाती है। ऑक्सीजन की अधिक आपूर्ति के लिए श्वसन दर, हृदय स्पंदन दर एवं वृक्क वाहिनियों में रक्त प्रवाह की दर बढ़ना स्वाभाविक हो जाता है।
जब शारीरिक व्यायाम बंद कर देते हैं तो तंत्रिकीय क्रियाएं, फुफ्फुस, हृदय, रुधिर वाहिनियों, वृक्क व अन्य अंगों के कार्यों में समन्वय स्थापित हो जाता है। हमारे शरीर में तंत्रिका तन्त्र एवं अन्तःस्रावी तंत्र सम्मिलित रूप से अन्य अंगों की क्रियाओं में समन्वय करते हैं तथा उन्हें एकीकृत करते हैं, जिससे सभी क्रियाएं एक साथ संचालित होती रहती हैं। तन्त्रिकीय तन्त्र ऐसे व्यवस्थित जाल तंत्र गठित करता है, जो त्वरित समन्वय हेतु बिंदु दर बिंदु जुड़ा रहता है। अंतःस्रावी तंत्र हार्मोनों द्वारा रासायनिक समन्वय बनाता है।
प्रश्न 8. अग्रमस्तिष्क की संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर: अन मस्तिष्क निम्न भागों से मिलकर बना होता है:
(1) प्रमस्तिष्क : यह पूरे मस्तिष्क के अस्सी प्रतिशत भाग का निर्माण करता है। अनुलम्ब विदर की सहायता से दो भागों में विभाजित होता है जिन्हें क्रमश: दायां व बायां प्रमस्तिष्क गोलार्ध कहते हैं। दोनों प्रमस्तिष्क गोलार्ध कास केलोसम द्वारा जुड़े होते हैं।
घ्राण मस्तिष्क : यह गंध से सम्बन्धित क्षेत्र है। प्रमस्तिष्क गोलार्थों के वे सभी क्षेत्र जो प्राण सम्बन्धी अनुक्रिया से सम्बन्धित हैं, संयुक्त रूप से घ्राण मस्तिष्क बनाते हैं। प्रत्येक प्रमस्तिष्क गोलार्ध के अग्र ललाटीय पाली में धंसा एकएक घ्राण पिण्ड ताथा घ्राण मार्ग पाये जाते हैं।
(2) अग मस्तिष्क पश्च: यह प्रमस्तिष्क एवं मध्य मस्तिष्क के बीच स्थित होता है। इसे थैलामेन सेफैलोन कहते हैं। यह छोटा एवं अग्र मस्तिष्क का पश्च भाग है। इसके दो भाग होते हैं:
एपीथेलेमस : अनमस्तिष्क पश्च की गुहा (तृतीय गुहा) को एपीथेलेमस कहते हैं। इसमें एक रक्तक जालक होता है। इसकी मध्य रेखा में पीनियल ग्रन्थि होती है जो मिलैटोनिन हार्मोन का लावण करती है। थैलेमिक केन्द्रक स्थित होता है, जो धूसर द्रव्य से निर्मित होता है।
थैलेमस : यह डाइऐनसेफेलोन की ऊपरी पावं दीवारें बनाते हैं एवं डाइऐनसेफेलोन का 80% भाग बनाता है। यह अण्डाकार एवं दो मोटी पालियों के रूप में होता है।
(3) हाइपोथेलेमस : डाइऐनसेफेलोन की पावं दीवारों का निचला भाग तथा इसकी गुहा का फर्श बनाता है। यह मस्तिष्क के अधर से दिखाई देती है।
प्रश्न 9. पश्च मस्तिष्क के कितने भाग हटे है?
उत्तर: पश्च मस्तिष्क इसके तीन भाग होते हैं:
अनुमस्तिष्क: यह तीन पिण्डों का बना होता है (दो पाय पिण्ड और एक वर्मिस)। दोनों पार्श्व पिण्ड बड़े गोलनुमा हो जाते हैं इसलिए इन्हें पाय पिण्डों को अनुमस्तिष्क गोलार्ध कहते हैं। वर्मिस केन्द्रीय भाग होता है। इसके अन्तिम सिरे पर एक जोड़ी प्लोक्यूलोनोड्यूलर पिण्ड पाये जाते हैं। इससे तीन अनुमस्तिष्क वृन्त निकलते हैं। ऊपरी अनुमस्तिष्क वृन्त मध्य मस्तिष्क से जुड़ता है, मध्य अनुमस्तिष्क वृन्त पोन्स से जुड़ता है तथा निचला अनुमस्तिष्क मेड्यूला ऑब्लांगेटा से जुड़ता है।
पोन्स यह मध्य मस्तिष्क के नीचे एवं मेड्यूला ऑब्लांगेटा के ऊपर स्थित होता है, जो अनुमस्तिष्क की दोनों पालियों को जोड़ता है।
मेड्यूला ऑब्लांगेटा: यह मस्तिष्क का पश्च भाग होता है जो नलिकाकार एवं बेलनाकार होता है। इसमें पाई जाने वाली गुहा को IVth निलय या मेटासील कहते हैं। मेड्यूला का निचला छोर मेरुरज्जु में समाप्त होता है। मध्यमस्तिष्क, पोन्स व मेडुला तीनों एक अक्ष पर स्थित होते हैं जिन्हें बेन स्टेम कहते हैं।
प्रश्न 10. रेटिना या दृष्टि पटल का वर्णन करे।
उत्तर : यह नेत्र गोलक की भित्ति का सबसे भीतरी स्तर होता है। यह नेत्र गोलक के पश्च भाग में स्थित होता है एवं कोरॉएड स्तर को ढके रहता है। रेटिना दो प्रमुख स्तरों की बनी होती है-बाहर का रंगा स्तर (Pigment Layer) तथा भीतरी अपेक्षाकृत मोटा संवेदी स्तर (Sensory Layer)।
रंगा स्तर (Pigment Layer): यह स्तर चपटी एवं रंगा कणिकायुक्त कोशिकाओं का एकाकी स्तर होता है। यह स्तर आइरिस की पुतली तक फैला होता है। संवेदी स्तर केवल सिलियरी काय तक फैला रहता है तथा बाहर से भीतर की ओर तीन परतों में बंटा होता है
(1) प्रकाशग्राही कोशिका यह परत लम्बी-लम्बी संवेदी कोशिकाओं की बनी होती है। ये कोशिकाएँ परत में खडी स्थिति में होती हैं। परत की कोशिकाएँ दो प्रकार की होती है। इनमें से कुछ अपेक्षाकृत लम्बी होती हैं तथा रंगा स्तर से लगी रहती हैं, इन्हें शलाकायें (Rods) कहते हैं। इसके विपरीत अधिकांश कोशिकाएँ अपेक्षाकृत चौड़ी तथा कुछ चपटी होती हैं तथा इनके नुकीले सिरे रंगा स्तर तक पहुंच नहीं पाते हैं। इन्हें शंक (Cones) कहते हैं।
प्रत्येक शलाका एवं शंकु का भीतरी सिरा पतला होकर एक महीन तन्त्रिका तन्तु में विभेदित होता है जो शीघ्र शाखान्वित होकर इस स्तर की दूसरी परत के तन्तुओं से साइनेप्सीस बनाता है। शलाकाओं (Rods) द्वारा प्रकाश एवं अन्धकार के भेद का ज्ञान होता है। इसके विपरीत शंकुओं (Cones) द्वारा रंगभेद का ज्ञान होता है। इस परत की कोशिकाओं में भी कुछ कणिकाएँ होती हैं।
(2) द्विधुवीय तन्त्रिका कोशिका परत द्विध्रुवीय न्यूरॉन की परत अनेक द्विध्रुवीय तन्त्रिका कोशिकाओं की बनी होती है। इन न्यूरॉन के डैण्ड्राइट शरनाकाओं एवं शंकुओं के तन्तुओं से अनेक साइनेप्सीस बनाते हैं। इसी प्रकार इन तन्त्रिका कोशिकाओं के एक्सॉन संवेदी स्तर की तीसरी गुच्छिकीय परत के तन्त्रिका तन्तुओं से साइनेप्सीस बनाते हैं।
(3) गुच्छिकीय परत : यह परत भी द्विध्रुवीय न्यूरॉन की बनी होती है। परन्तु यहाँ तन्त्रिका कोशिकाएँ अपेक्षाकृत बड़ी होती हैं। इन न्यूरॉन के बाहर डैण्ड्राइट ऊपरी परत के एक्सॉन से साइनेप्सीस (Synapses) बनाते हैं तथा भीतरी अपेक्षाकृत लम्बे एक्सॉन नेत्र-गोलक के आधार भाग में केन्द्रित होकर दृक-तन्त्रिका के तन्तुओं में स्वयं परिवर्तित हो जाते हैं तथा गोलक को बंध कर बाहर निकलते हैं। इस आधार भाग को अन्ध बिन्दु कहते हैं, क्योंकि इस स्थान पर गोलक की परतों का अभाव होता है तथा यह भाग प्रतिबिम्ब बनाने में सहयोग नहीं देता है।