बिहार बोर्ड कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 22 रासायनिक समन्वय तथा अकीकरण दीर्घ उतरीय प्रश्न
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बिहार बोर्ड कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 22 रासायनिक समन्वय तथा अकीकरण दीर्घ उतरीय प्रश्न

दीर्घ उतरीय प्रश्न 

प्रश्न 1 . निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए-

(1) वृद्धिकारक 

(2) जठर आंत्रीय पथ 

(3) इरिथ्रोपोइटिन 

(4) थाइरोकैल्सिटोनिन।

उत्तर (1) वृद्धिकारक: अनेक अन्य ऊतक जो अन्तःस्रावी नहीं हैं, कई हार्मोन का स्राव करते हैं जिन्हें वृद्धिकारक कहते हैं। ये वृद्धिकारक, ऊतकों की सामान्य वृद्धि और उनकी मरम्मत और पुनर्जनन के लिए आवश्यक हैं।

(2) जठर आंत्रीय पथ: जठर आंत्रीय पथ के विभिन्न भागों में उपस्थित अन्त:सावी कोशिकाएँ चार मुख्य पेप्टाइड हार्मोन का स्राव करती हैं जो निम्न हैं-
गैस्ट्रिन: जठर ग्रन्थियों पर कार्य कर HCl और पेप्सिनोजन के स्राव को प्रेरित करता है।

सेक्रेटिन: बहिःस्रावी अग्न्याशय पर कार्य करता है और जल तथा बाइकार्बोनेट आयनों के खाव को प्रेरित करता है।

कोलेसिस्टोकाइनिन: अग्न्याशय और पित्ताशय दोनों पर कार्य कर क्रमशः अग्न्याशयी एंजाइम और पित्त रस के साव को प्रेरित करता है।

जठर अवरोधी पेप्पटाइड (जीआईपी): जठर साव और उसकी गतिशीलता को अवरुद्ध करता है।

(3) इरिथ्रोपोइटिन: वृक्क की जक्स्टाग्लोमेरुलर कोशिकाएँ, इरिथ्रोपोइटिन नामक हार्मोन का उत्पादन करती हैं जो रक्ताणु उत्पत्ति (RBC के निर्माण) को प्रेरित करता है।

(4) थाइरोकैल्सिटोनिन: थाइरॉइड ग्रन्थि से एक प्रोटीन हार्मोन का स्राव किया जाता है जिसे थाइरोकैल्सिटोनिन (TCT) कहते हैं। यह रक्त में कैल्सियम स्तर को नियन्त्रण करता है।

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प्रश्न 2 .  पिनियल ग्रन्थि कहाँ स्थित होती है? इससे निकलने वाले हार्मोन के कार्यों का वर्णन कीजिए।

उत्तर: पिनियल ग्रन्थि अग्रमस्तिष्क के पृष्ठीय (ऊपरी भाग में) स्थित होती है। इसके द्वारा मिलेटोनिन नामक हार्मोन का खावण किया जाता है।

मिलेटोनिन हार्मोन के कार्य-

यह हारमोन पीयूष ग्रन्धि के ऐडिनोहाइपोफाइसिस से सावित MSH हारमोन के विपरीत कार्य करता है, यह हारमोन त्वचा की मिलैनोफोर्स कोशिकाओं में रंगा कणों को केन्द्रीय भाग में एकत्रित होने के लिए प्रेरित करता है, जिससे त्वचा का रंग हल्का हो जाता है। 

स्तनधारियों में मिलेटोनिन जननांगों के विकास एवं कार्यशीलता व अवरोधन करता है। 

यह ग्रन्थि लैंगिक व्यवहार को प्रकाश की विभिन्नताओं के अनुसार नियन्त्रित कर जैविक घड़ी के समान कार्य करती है।  इस ग्रन्थि को मनुष्य आदि में निकाल देने से यौवनावस्था जल्दी आ जाती है। 

जन्मान्ध शिशुओं में प्रकाश की प्रेरणा से अप्रभावित रहने के कारण इस हारमोन की कमी से यौवनावस्था शीघ्र आ जाती है।

प्रश्न 3. पीयूष ग्रन्थि के किन्ही चार हार्मोनों के कार्यों का वर्णन कीजिये।

उत्तर:पीयूष ग्रन्धि के किन्हीं चार हार्मोनों के कार्य:

थाइरॉयड उत्तेजक हारमोन (Thyroid Stimulating/ Thyrotropic Hormone/TSH): यह हारमोन थाइरॉयड ग्रन्धि को उत्तेजित कर, थायरॉक्सिन के संश्लेषण एवं उसकी मुक्ति दर को नियन्त्रित करता है।

एड्रिनोकोर्टिकोट्रोफिक हारमोन (Adreno Cortico Trophic Hormone/ACTH): यह हारमोन अधिवृक्क ग्रन्थि के कार्टेक्स के लावण का नियन्त्रण करता है।

पुटक - उत्तेजक हारमोन (Folicle Stimulating Hormone/FSH): यह हारमोन अण्डाशय के पुटकों को परिवर्धन व परिपक्वन के लिए उत्तेजित करता है। इससे उत्तेजित होकर पुटक ऐस्ट्रोजन्स स्रावित करते हैं तथा अण्डाणु को मुक्त करते हैं।

ल्यूटियोट्रोफिक हारमोन (Luteotrophic Hormone/ LTH) प्रोलेक्टिन (Prolactin) लैक्टोजेनिक (Lactogenic) या मेमोट्रोफिक हारमोन: यह हारमोन निषेचन के बाद पीत पिण्ड (Corpus luteum) को बनाये रखता है तथा उसे प्रोजेस्ट्रोन स्रावित करते रहने के लिए उत्तेजित करता रहता है। एस्ट्रोजन के साथ मिलकर यह हारमोन स्तन ग्रन्थियों के परिवर्धन को नियन्त्रित करता है तथा सन्तानोत्पत्ति के तुरन्त बाद यह स्तन ग्रन्थियों को दुग्ध स्रवण के लिए उत्तेजित करता है।

प्रश्न 4. उत्तेजना तथा विपत्ति के समय रुधिर में किस हारमोन की मात्रा बढ़ जाती है? उस हारमोन के अति स्त्राव के शरीर में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।

उत्तर: उत्तेजना तथा विपत्ति के समय रक्त में एड्रीनल ग्रन्थि के मेड्यूला से ऐडीनिलीन या एपीनेफ्रिन (Epinephrine) नामक हारमोन की मात्रा बढ़ जाती है। यह हारमोन संकटकालीन परिस्थितियों में प्राणी को संकट से सामना करने के लिए तैयार करता है।

अतिस्त्राव से शरीर में होने वाले परिवर्तन निम्न हैं:

ह्रदय की स्पंदन पर बढ़ जाती है। 

रुधिर दाब बढ़ जाता है। 

आधार उपापचय दर बढ़ जाती है। 

रोंगटे खड़े हो जाते हैं। 

नेत्रों की पुतलियाँ फैल जाती हैं। 

रक्त में थक्का जमने का समय घट जाता है। 

श्वासनाल) एवं ब्रान्काई की पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं। 

हृदय निर्गम बढ़ जाता है। 

रक्त प्रवाह त्वचा में कम मांसपेशियों में अधिक हो जाता है।

विशेष: यह हारमोन लड़ाई (Fight), पलायन (Flight) तथा भय (Fear) के समय अधिक स्रावित होकर जन्तुओं को इन प्रतिकूल परिस्थितियों के प्रति तैयार करता है इसलिए इस हारमोन को 3F= FFF हारमोन तथा इस ग्रन्थि को FFF ग्रन्थि कहते हैं।

प्रश्न 5. हाइपोथैलेमस क्या है? इससे सावित हार्मोन के नाम एवं कार्य लिखिए।

उत्तर: हाइपोथैलेमस: हाइपोथैलेमस डाइनसिफेलॉन (अग्रमस्तिष्क पश्च) का आधार भाग है। इसमें धूसर द्रव्य  के अनेक क्षेत्र होते हैं जिनको न्यूक्ली कहते हैं। ये क्षेत्र विशेष मोचक हार्मोनों का संश्लेषण करते हैं। ये हार्मोन इस ग्रन्थि से निकलकर पीयूष ग्रन्थि के अग्र पालि को विभिन्न हार्मोन लावित करने हेतु उद्दीपित करते हैं। पीयूष ग्रन्थि एक वृन्त सदृश इंफन्डीबुलम द्वारा हाइपोथैलेमस से जुड़ी रहती है। पीयूष ग्रन्थि की अन पालि निवाहिका रुधिर वाहिकाओं द्वारा हाइपोथैलेमस से जुड़ी रहती है। इन वाहिकाओं द्वारा नियमनकारी हार्मोन प्रवाहित होते हैं। हाइपोथैलेमस द्वारा दो प्रकार के हार्मोन मोचक हार्मोन तथा निरोधी हार्मोनों का संश्लेषण किया जाता है, जो पीयूष ग्रन्थि द्वारा हार्मोनों के उत्पादन तथा स्रावण का नियंत्रण करते हैं। इस कारण हाइपोथैलेमस को अन्त:सावी नियमन का सर्वोच्चा कमाण्डर ( अथवा प्रधान ग्रन्थि का भी नियंत्रक) कहा जाता है। पीयूष ग्रन्थि पर नियंत्रण द्वारा, हाइपोथैलेमस शरीर की अधिकांश क्रियाओं का नियमन करता है।

हाइपोथैलेमस द्वारा स्रावित हार्मोन एवं उनके कार्य : 

इस ग्रन्थि के लगभग 10 प्रकार के तंत्रिका हार्मोन, जो मोचक तथा निरोधी प्रकृति के होते हैं, का खावण किया जाकर पीयूष ग्रन्थि के स्रावी कार्य पर नियंत्रण रखा जाता है। ये हार्मोन न्यूरोहार्मोन कहलाते हैं। शरीर में समस्थैतिकता कायम रखने में इस प्रकार तंत्रिका तंत्र व अन्त:लावी तंत्र समन्वित रूप से कार्यरत रहते हैं। इसलिए आधुनिक वैज्ञानिक तंत्रिका अन्त :स्रावी नियंत्रण की धारणा पर बल देते हैं।

प्रश्न 6 पीयूष ग्रन्थि पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए,

उत्तर:  यह ग्रन्थि मस्तिष्क के अधर तल पर दृक काएज्मा) के पीछे डाइनसेफेलन के फर्श या हाइपोथेलेमस के नीचे स्फीनाइड अस्थि के (सेला टर्सिका) नामक गर्त में स्थित होती है। यह दूसरी सभी अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्रावों का नियमन करती है। अतः इसे मास्टर ग्रन्थि कहते हैं। परन्तु आधुनिक खोजों से ज्ञात हुआ है कि पीयूष का नियंत्रण हाइपोथेलेमस द्वारा होता है। इसलिए अब इसे मास्टर ग्रन्थि नहीं कहते हैं। अब पीयूष ग्रन्थि को हाइपोथेलेमीहाइपोफाइसीयल ग्रन्थि या हाइपोफाइसिस सेरीबाई कहते हैं। पीयूष ग्रन्थि रचना व कार्य की दृष्टि से दो प्रमुख पालियों से मिलकर बनी होती है जिन्हें क्रमश: ऐडीनोहाइपोफाइसिस एवं न्यूरोहाइपोफाइसिस कहते हैं।

प्रश्न 7. वृद्धि हार्मोन के अति तथा अल्प स्त्रावण से होने वाले रोग का वर्णन कीजिए?

(1) वृद्धि हार्मोन का अल्पत्रावण 

(i) बौनापन या मिजेट्स : शिशुओं या बाल्यावस्था में इस हार्मोन की कमी से बौनापन उत्पन्न होता है। पीयुष ग्रन्धि के कारण उत्पन्न होने वाले इस बौनेपन को एटिओलिसिस (Atelisis) कहते हैं। इस प्रकार के बौनों को मिजेट्स (Midgets) कहते हैं।

(ii) साइमण्ड रोग :

यह वयस्क अवस्था में STH या GH की कमी से होता है। 

इस रोग में ऊतक क्षय तीव्र हो जाता है। 

व्यक्ति कमजोर दिखाई देने लगता है। 

लैंगिक क्षमता में कमी दिखाई देने लगती है।

इस रोग को एकोमिक्रिया (Acromicria) या पीयूष मिक्सोडीमा कहते हैं।

(2) वृद्धि हार्मोन का अति स्रावण-

(i) महाकायता: बाल्यावस्था में इस हार्मोन की अधिकता के कारण शरीर सामान्य की तुलना में अत्यधिक भीमकाय हो जाता है। इसे महाकायता कहते हैं।

(ii) अनातिकायता): यदि वयस्क व्यक्ति में सामान्य वृद्धि के बाद इस हार्मोन की मात्रा में वृद्धि हो जाती है तो शरीर की लम्बी अस्थियों में वृद्धि नहीं हो पाती है। इस दौरान चेहरे की अस्थियों में असामान्य वृद्धि होती है व चेहरा कुरूप हो जाता है। हड्डियों में मोटाई में वृद्धि होती जाती है। इसे अग्रातिकायता या एक्रोमैगली कहटे है। 

प्रश्न 8. न्यूरोहाइपोफाइसिस द्वारा स्रावित हार्मोन एवं उनके कार्य बताए। 

न्यूरोहाइपोफाइसिस पीयूष ग्रन्थि का लगभग एक - चौथाई भाग बनाता है। इसका विकास हाइपोथेलेमस के इन्फन्डीबुलम से होता है। इसे पश्च पालि पश्च पीयूष ग्रन्थि भी कहते हैं।

पश्च पाली के स्त्राव को पिटुइटीन कहते हैं। इसमें दो हार्मोन होते हैं:

प्रतिमूत्रक 

ऑक्सीटोसिन।
1. प्रतिमूत्रक हार्मोन / वैसोप्रेसीन, पिट्रेसिन: इस हार्मोन का मुख्य कार्य वृक्क नलिकाओं के दूरस्थ कुण्डलित भाग तथा संग्रह नलिकाओं में जल के पुनः अवशोषण  को बढ़ाना है इसलिए इस हार्मोन को मूत्ररोधी हार्मोन कहते हैं। इस हार्मोन के खावण का नियंत्रण हाइपोथैलेमस में स्थित परासरण नियंत्रण केन्द्र के द्वारा होता है। वैसोप्रेसीन के अल्प स्त्रावण से मूत्र  पतला हो जाता है तथा मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है। इस रोग को उदकमेह या डायबिटीज इन्सिपिडस कहते हैं। यदि ADH का अतिस्रावण होता है, तो मूत्र गाढ़ा एवं रुधिर पतला हो जाता है।

2. आक्सीटोसिन /पिटोसिन :

आक्सीटोसिन गर्भकाल के अन्तिम समय में गर्भाशय भित्ति की अरेखित पेशियों को संकुचित करकेप्रसव पीड़ा उत्पन्न करता है तथा शिशु जन्म के बाद स्तन ग्रन्थियों को दुग्ध स्रावण के लिए प्रेरित करता है।

सम्भोग के समय यह हार्मोन गर्भाशय पेशियों में संकुचन उत्पन्न करता है, जिसके फलस्वरूप शुक्राणुओं का फैलोपियन नलिका की तरफ गमन सुगम हो जाता है

प्रश्न 10 . ग्लूकोकारटिकायड्स क्या होते है?

उत्तर:  इस श्रेणी में तीन प्रमुख हार्मोन्स आते हैं - कार्टिसोल (Cortisol), कार्टिसोन (Cortisone), कॉरटिकोस्टीरोन (Corticosterone)। इनमें सबसे प्रभावी हार्मोन कार्टिसोल होता है। इसके निम्नलिखित कार्य हैं:

ये हार्मोन यकृत में प्रोटीन संश्लेषण, ग्लूकोज से ग्लाइकोजन (ग्लाइकोजेनेसिस), वसीय एवं अमीनो अम्लों से ग्लूकोज (ग्लूकोनियोजेनेसिस) तथा यूरिया संश्लेषण को बढ़ाते हैं। 

कार्टिसोल रक्त में ग्लूकोज, अमीनो अम्ल तथा वसा अम्लों की मात्रा बढ़ाते हैं। 

ये हार्मोन्स रक्त में लाल रक्ताणुओं (RBC) की संख्या को बढ़ाते हैं तथा श्वेत रक्ताणुओं (WBC) के भ्रमण पर रोक लगाते हैं। 

ये हार्मोन्स त्वचा, आहारनाल, लसीका अंगों, हड्डियों, वसा कार्यों में ग्लूकोज के उपयोग पर रोक लगाते हैं। 

कार्टिसोल के कारण परिधीय वसा में वृद्धि होती है, यह क्रिया वसा भवन कहलाती है।

ये हार्मोन्स प्रदाह विरोधी होते हैं। ये शरीर में प्रदाह क्रियाओं को घटाने का कार्य करते हैं। 

ये हार्मोन्स प्रतिरक्षी - निषेधात्मक भी होते हैं, ये प्रतिरक्षी या ऐन्टीबॉडीज के कार्य को रोक देते हैं। 

एलर्जी के इलाज तथा अंगों के प्रत्यारोपण के समय भी कॉर्टिसोल के इन्जेक्शन लगाये जाते हैं। 

कोलेजन तन्तुओं के निर्माण पर रोक लगाकर गठिया के उपचार में उपयोग किया जाता है। 

इनके अल्प सावण से 'एडीसन का रोग'  हो जाता है।