बिहार बोर्ड कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 22 रासायनिक समन्वय तथा अकीकरण लघु उत्तरीय प्रश्न
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बिहार बोर्ड कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 22 रासायनिक समन्वय तथा अकीकरण लघु उत्तरीय प्रश्न

लघुतरात्मक प्रश्न 

प्रश्न 1. यदि अग्न्याशय ग्रन्थि के लैंगरहैन्स द्वीपसमूह में स्थित एल्फा व बीटा कोशिकाओं को निष्क्रिय कर दिया जाये तो प्राणी में प्रभावित क्रिया को कारण सहित समझाइए।

उत्तर: लैंगरहैन्स की द्वीपिकाओं में उपस्थित एल्फा कोशिकाओं द्वारा ग्लूकैगोन  हार्मोन का स्रावण किया जाता है। इन्हें नष्ट कर दिया जाए तो ग्लूकैगोन के अभाव में ग्लूकोनियोजेनेसिस , ग्लाइकोजिनोलाइसिस तथा वसा ऊतकों में वसा के विखण्डन की क्रियाएँ अवरुद्ध हो जाएंगी। बीटा कोशिकाएँ इन्सुलिन नामक हार्मोन का लावण करती हैं। बीटा कोशिकाओं को नष्ट कर देने पर इन्सुलिन के अभाव में ग्लाइकोजेनेसिस, लाइपोजेनेसिस, RNA का संश्लेषण अवरुद्ध हो जाएगा तथा ग्लूकोज के उपापचय का नियंत्रण समाप्त हो जाएगा।

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प्रश्न 2.  कारण सहित बताइये किसी व्यक्ति में वैसोप्रेसिन की कमी हो जाए तो उसको प्यास अधिक लगती है, क्यों?

उत्तर: वैसोप्रेसिन अथवा एण्टीडाइयूरेटिक हार्मोन (ADH) का मुख्य कार्य वृक्क नलिकाओं के दूरस्थ कुण्डलित भाग तथा संग्रह नलिकाओं में जल के पुनः अवशोषण को बढ़ाना है। इसलिए इस हार्मोन को मूत्ररोधी हार्मोन कहते हैं। इस हार्मोन के अल्प त्रावण से मूत्र पतला हो जाता है तथा मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है। इस रोग को उदकमेह या डायबिटिज इन्सिपिडस कहते हैं। इसके कारण शरीर में निर्जलीकरण होने लगता है तथा प्यास अधिक लगती है।

प्रश्न 3. एड्रीनल - मेड्यूला से स्त्रावित हार्मोन क्या कहलाते हैं तथा उनका प्रमुख कार्य क्या है?

उत्तर: एड्रीनल मेड्यूला से दो हार्मोन्स का स्रावण होता है जिन्हें क्रमश: एडीनेलीन या एपीनेफ्रीन एवं नारऐडीनेलीन या नारएपीनेफ्रीन कहते हैं। इन्हें संयुक्त रूप से कैटेकोलएमीन कहते हैं।

1. एपीनेफ्रिन या एड्रेनेलिन के कार्य: यह हार्मोन हृदय, धमनियों तथा अन्य सभी अनैच्छिक पेशियों के संकुचन को प्रभावित करता है जिससे अधिक दाब का नियन्त्रण होता है तथा हृदय स्पन्दन की दर निश्चित बनी रहती है। यह हार्मोन श्वास नलिकाओं के संकुचन को प्रभावित करता है। रोंगटे खड़े हो जाना,आँखों की पुतलियों का फैलना तथा उत्साह और उत्तेजना का नियंत्रण भी ऐपीनेफ्रिन पर निर्भर होता है। इसी कारण इसे संकटकालीन हार्मोन कहते हैं।

2. नॉर - ऐपीनेफ्रीन के कार्य: यह हार्मोन क्रोध, भय या पीड़ा को प्रभावित करता है क्योंकि इस हार्मोन द्वारा सिम्पेथेटिक तन्त्रिका तन्त्र का नियन्त्रण होता है।

प्रश्न 4. थाइराइड ग्रन्थि का गर्दन फूलने से क्या सम्बन्ध है?

उत्तर: पेंचा या गलगण्ड (Goiter) रोग में थाइराइड ग्रन्धि बड़ी होकर फूल जाती है जिससे गर्दन भी फलकर मोटी हो जाती है। यह रोग भोजन में आयोडीन की कमी के कारण होता है।

प्रायः पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में यह रोग अधिक होता है क्योंकि वहाँ पानी में आयोडीन की कमी होती है।

प्रश्न 5. पीयूष ग्रन्थि के बृद्धि हार्मोन के अति स्राव के कारण होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।

उत्तर पीयूष ग्रन्थि के वृद्धि हार्मोन के अति सावण से होने वाले रोग निम्न हैं: 

अतिकायता : बाल्यावस्था में इस हार्मोन की अधिकता के कारण शरीर सामान्य की तुलना में अत्यधिक भीमकाय  हो जाता है। इसे अतिकायता कहते हैं।

अग्रातिकायता : यदि वयस्क व्यक्ति में सामान्य वृद्धि के बाद इस हार्मोन की मात्रा में वृद्धि हो जाती है तो शरीर की लम्बी अस्थियों में वृद्धि नहीं हो पाती अस्थियों में असामान्य वृद्धि होती है व चेहरा कुरूप हो जाता है। हड्डियों में मोटाई में वृद्धि होती जाती है। इसे अनातिकायता या एकोमैगली कहते है इससे व्यक्ति में कूबड़ उत्पन्न हो जाती है, जिसे काइफोसिस कहते हैं।

प्रश्न 6.  क्या कारण है कि प्रायः घेघा की बीमारी पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले मनुष्यों में ज्यादा होती है?

उत्तर प्राय: घा की बीमारी पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले मनुष्यों में ही ज्यादा होती है क्योंकि वहाँ की मिट्टी व पानी में आयोडीन की - कमी होती है। आयोडीन की कमी से ही घेघा (Goiter) रोग होता है।

प्रश्न 7. हार्मोन के कोई चार महत्त्व लिखिए। 

उत्तर: हार्मोन के महत्व निम्न हैं-

हार्मोन वृद्धि, परिवर्धन, परिपक्वन और जनन का नियन्त्रण करते हैं।

ये विभिन्न शरीर क्रियात्मक प्रक्रियाओं की दर का, उनकी लयात्मक विविधताओं का और कर्जा व्यय का नियमन भी करते हैं।

ये तन्त्रिका - तन्त्र की क्रियाविधि पर प्रभाव डालते हैं।

किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व और उसका आचरण अधिकांशत: अंत:स्रावी ग्रन्धियों पर ही निर्भर होता है।

प्रश्न 8 . थाइराइड ग्रन्थि को स्वभाव ग्रन्थि भी कहते हैं, क्यों?

उत्तर: थाइराइड ग्रन्थि से निकलने वाला हारमोन थाइरॉक्सिन का मनुष्य के स्वभाव से सम्बन्ध होता है। उचित मात्रा में मनुष्य का स्वभाव सामान्य बना रहता है। यदि हारमोन की मात्रा रुधिर में अधिक हो जाती है तो उपापचय क्रियाएँ भी तेज हो जाती हैं जिससे तन्त्रिका कोशिका अधिक संवेदनशील हो जाती है। इससे मनुष्य अधीर व चिड़चिड़ा हो जाता है। चूंकि थाइरॉइड मनुष्य के स्वभाव से सम्बन्धित है इसलिए इसे स्वभाव ग्रन्थि  भी कहते हैं।

प्रश्न 9 .निम्न हार्मोन्स का पूरा नाम व कार्य को लिखिए

(i) M.S.H.

(ii) A.C.T.H. 

उत्तर: (1) M.S.H.: मेलेनोसाइट प्रेरक हामो न 

कार्य: यह हार्मोन त्वचा में पायी जाने वाली रंगा कोशिकाओं में मिलेनीन वर्णक कर्णो को फैलाकर त्वचा के रंग को गहराता है। MSH सभी कशेरुकी वर्गों के जन्तुओं में पाया जाता है किन्तु यह असमतापी जन्तुओं में ही कार्यात्मक होता है। यह हार्मोन मनुष्य में तिल व चकत्तों के लिए जिम्मेदार है।

(ii) A.C.T.H.: एड्रिनो कोर्टिकोट्रोपिक हार्मोन (Adreno Corticotropic Hormone)

कार्य: यह हार्मोन अधिवृक्क, कोर्टेक्स भाग की वृद्धि एवं उससे निकलने वाले हार्मोनों पर नियन्त्रण करता है।

प्रश्न 10. हाइपोथैलेमस के कार्य बताए। 

उत्तर: हाइपोथैलेमस द्वारा स्रावित हार्मोन एवं उनके कार्य : 

इस ग्रन्थि के लगभग 10 प्रकार के तंत्रिका हार्मोन, जो मोचक तथा निरोधी प्रकृति के होते हैं, का खावण किया जाकर पीयूष ग्रन्थि के स्रावी कार्य पर नियंत्रण रखा जाता है। ये हार्मोन न्यूरोहार्मोन कहलाते हैं। शरीर में समस्थैतिकता कायम रखने में इस प्रकार तंत्रिका तंत्र व अन्त:लावी तंत्र समन्वित रूप से कार्यरत रहते हैं। इसलिए आधुनिक वैज्ञानिक तंत्रिका अन्त :स्रावी नियंत्रण की धारणा पर बल देते हैं।

प्रश्न 11. पीयूष ग्रन्थि पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए,

उत्तर:  यह ग्रन्थि मस्तिष्क के अधर तल पर दृक काएज्मा) के पीछे डाइनसेफेलन के फर्श या हाइपोथेलेमस के नीचे स्फीनाइड अस्थि के (सेला टर्सिका) नामक गर्त में स्थित होती है। यह दूसरी सभी अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्रावों का नियमन करती है। अतः इसे मास्टर ग्रन्थि कहते हैं। परन्तु आधुनिक खोजों से ज्ञात हुआ है कि पीयूष का नियंत्रण हाइपोथेलेमस द्वारा होता है। इसलिए अब इसे मास्टर ग्रन्थि नहीं कहते हैं। अब पीयूष ग्रन्थि को हाइपोथेलेमीहाइपोफाइसीयल ग्रन्थि या हाइपोफाइसिस सेरीबाई कहते हैं। पीयूष ग्रन्थि रचना व कार्य की दृष्टि से दो प्रमुख पालियों से मिलकर बनी होती है जिन्हें क्रमश: ऐडीनोहाइपोफाइसिस एवं न्यूरोहाइपोफाइसिस कहते हैं।

प्रश्न 12. वृद्धि हार्मोन के अति तथा अल्प स्त्रावण से होने वाले रोग का वर्णन करे। 

(1) वृद्धि हार्मोन का अल्पत्रावण 

(i) बौनापन या मिजेट्स  शिशुओं या बाल्यावस्था में इस हार्मोन की कमी से बौनापन उत्पन्न होता है। पीयुष ग्रन्धि के कारण उत्पन्न होने वाले इस बौनेपन को एटिओलिसिस कहते हैं। इस प्रकार के बौनों को मिजेट्स कहते हैं।

(ii) साइमण्ड रोग 

यह वयस्क अवस्था में STH या GH की कमी से होता है। 

इस रोग में ऊतक क्षय तीव्र हो जाता है। 

व्यक्ति कमजोर दिखाई देने लगता है। 

लैंगिक क्षमता में कमी दिखाई देने लगती है।

इस रोग को एकोमिक्रिया  या पीयूष मिक्सोडीमा कहते हैं।

प्रश्न 13. अनातिकायता को परिभाषित करे। 

उतर्र: यदि वयस्क व्यक्ति में सामान्य वृद्धि के बाद इस हार्मोन की मात्रा में वृद्धि हो जाती है तो शरीर की लम्बी अस्थियों में वृद्धि नहीं हो पाती है। इस दौरान चेहरे की अस्थियों में असामान्य वृद्धि होती है व चेहरा कुरूप हो जाता है। हड्डियों में मोटाई में वृद्धि होती जाती है। इसे अग्रातिकायता या एक्रोमैगली कहते हैं।

प्रश्न 14. प्रतिमूत्रक हार्मोनकिस प्रकार से कार्य करता है। 

उत्तर: वैसोप्रेसीन, पिट्रेसिन : इस हार्मोन का मुख्य कार्य वृक्क नलिकाओं के दूरस्थ कुण्डलित भाग तथा संग्रह नलिकाओं में जल के पुनः अवशोषण को बढ़ाना है इसलिए इस हार्मोन को मूत्ररोधी हार्मोन कहते हैं। इस हार्मोन के खावण का नियंत्रण हाइपोथैलेमस में स्थित परासरण नियंत्रण केन्द्र के द्वारा होता है। वैसोप्रेसीन के अल्प स्त्रावण से मूत्र पतला हो जाता है तथा मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है। इस रोग को उदकमेह या डायबिटीज इन्सिपिडस  कहते हैं। यदि ADH का अतिस्रावण होता है, तो मूत्र गाढ़ा एवं रुधिर पतला हो जाता है।

प्रश्न 15. कुशिंग का रोग का वर्णन करे।

उत्तर: इस रोग में शरीर चौड़ा हो जाता है, क्योंकि चेहरे, गर्दन के पीछे तथा उदर पर वसा अधिक मात्रा में जमा हो जाती है।

हाइपर ऐल्डोस्टेरोनिज्म  इस रोग में रक्त दाब बढ़ जाता है अत: अति तनाव की शिकायत हो जाती है। पेशियों में कमजोरी आ जाती है और सोडियम का अपरक्षण हो जाता है।

प्रश्न 16. कॉन्स का रोग कब सम्पन्न होता है?

उत्तर: मिनरेलोकार्टिकायइस के अल्प त्रावण से सोडियम एवं पोटैशियम का संतुलन बिगड़ जाता है और पेशियों में अकड़न आ जाती है तथा तंत्रिकाओं के कार्य अनियमित हो जाते हैं। इस रोग को कॉन्स रोग कहते है।

प्रश्न 17. एडीनेलीन के कार् बताए। 

उत्तर: ऐड्रोनेलीन त्वचा, श्लेष्मिक कलाओं तथा अन्तरांगों की रुधिर बाहिनियों को संकुचित करता है। यह हार्मोन कंकाल पेशियों, यकृत, हृदय तथा मस्तिष्क आदि की रुधिर वाहिनियों का प्रसार (Vasodilation) करता है।

इस हार्मोन के प्रभाव से हृदय स्पंदन दर, रुधिर दाब, आधार उपापचय दर तथा रक्त में ग्लूकोज की मात्रा अधिक सब बन जाते हैं।

नेत्रों की पुतलियों को यह हार्मोन फैला देते हैं। 

प्रश्न 18. मिनरेलोकारटिकायड्स क्या होते है। 

उत्तर:  इस श्रेणी में दो प्रमुख हार्मोन्स आते हैं: एल्डोस्टीरॉन  तथा डी - ऑक्सीकॉरटीकोस्टीरॉनये हार्मोन्स बाहा कोशिकीय द्रव तथा रक्त में सोडियम, पोटैशियम एवं क्लोराइड्स (Na+, K+ एवं Cl-) आयन्स तथा जल की उपयुक्त मात्रा बनाये रखते हैं।

ऐल्डोस्टीरॉन, वृक्क की वृक्क नलिकाओं में सोडियम तथा क्लोराइड्स आयनों के पुनरावशोषण तथा पोटैशियम आयनों के उत्सर्जन का नियंत्रण करता है।

इन हार्मोन्स की कमी से सोडियम तथा पोटैशियम आयनों का सन्तुलन बिगड़ जाता है तथा इनसे होने वाले रोग को कॉन्स रोग कहते हैं।

प्रश्न 19. अधिवृक्क ग्रन्थि पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए। 

उत्तर: अधिवृक्क ग्रन्थि एक जोड़ी के रूप में पाई जाती है जो वृक्कों के ऊपर टोपी के रूप में पाई जाती है। इसलिए इनको सुप्रारीनल ग्रन्थियाँ भी कहते हैं।

प्रत्येक अधिवृक्क ग्रन्थि एक छोटी (5 cm. लम्बी, 3 cm. चौड़ी और 1 cm, मोटी) त्रिभुजाकार और पीली - सी टोपी के समान संरचना है। मानव में इसका वजन लगभग 3.5 से 5.09 gm. होता है। जन्म के समय अधिवृक्क ग्रन्थि सुविकसित होती है। अधिवृक्क ग्रन्धि दो भागों में बंटी होती है-बाहरी भाग कार्टेक्स (Cortex) तथा आन्तरिक भाग मेड्यूला (Medulla)। कार्टेक्स भाग भ्रूण की मीसोडर्म एवं मेड्यूला भ्रूण के न्यूरल एक्टोडर्म से बनता है।

प्रश्न 20. मेलेनोसाइट प्रेरक हार्मोन का कार्य बताए। 

उत्तर: msh  का स्रावण पार्स इन्टरमीडिया से होता है, इसलिए इस हामोंन को इन्टरमिडिन कहते हैं। यह हार्मोन त्वचा में पायी जाने वाली रंगा कोशिकाओं में मिलेनिन वर्णक कणों को फैलाकर त्वचा के रंग को गहराता है। MSH सभी कशेरुकी वर्गों के जन्तुओं में पाया जाता है किन्तु यह असमतापी जन्तुओं में ही कार्यात्मक होता है। यह हार्मोन मनुष्य में तिल व चकतों के लिए जिम्मेदार है।