बिहार बोर्ड कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 4 जन्तु जगत लघु उत्तरीय प्रश्न
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बिहार बोर्ड कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 4 जन्तु जगत लघु उत्तरीय प्रश्न

लघु उत्तरीय प्रश्न 

1 संघ प्रोटोजोआ के मुख्य लक्षण लिखिये।

उत्तर प्रोटोजोआ दो शब्दों Protos = First, Zoon = Animal से मिलकर बना है। प्रोटोजोआ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम गोल्डफस (Goldfus) ने 1820 ई. में किया। प्रोटोजोआ सबसे आदिकालीन एवं सबसे साधारण जन्तु हैं। ये एककोशिकीय (Unicellular) तथा सूक्ष्मदर्शीय (Microscopic) जंतु होते हैं। इस संघ में लगभग 30,000 जातियाँ (species) हैं। इस संघ के जन्तुओं के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-

ये जन्तु अत्यन्तं सूक्ष्म (001 mm से 5.0 mm) और एककोशिकीय (Unicellular) होते हैं।

ये स्वतंत्रजीवी, सहजीवी (Symbiotic) या सहभोजी (Commensal) या परजीवी (Parasites) होते हैं।

इनके शरीर का जीवद्रव्य (Protoplasm) बाह्यद्रव्य और अन्तः द्रव्य में विभेदित रहता है।

इस संघ के जन्तुओं में पोषण (Nutrition) मुख्यतः प्राणी समभोजी (Holozoic), मृतोपजीवी (Saprophytic or saprozoic), पादपसमभोजी (Holophytic) या परजीविता (Parasitic) विधि द्वारा होता है।

इस संघ के जन्तुओं के शरीर में कोई ऊतक (Tissue) या अंग (Organ) नहीं होता है। इसमें पायी जाने वाली आकृतियों को अंगक (Organelles) कहते हैं, क्योंकि वे शरीर के हिस्से होते हैं। इसलिए प्रोटोजोआ को ‘जीवद्रव्य के स्तर पर गठित (Protoplasmic level of body organisation) जंतु कहते हैं।

इस संघ के जंतुओं में प्रचलन (Locomotion) कूटपाद (Pseudopodia), कशाभिका (Flagella) या यक्ष्माभिका (Cilia) द्वारा होता है।

इस संघ के जन्तुओं के एककोशिकीय शरीर में रसधानियाँ (vacuoles) एवं संकुचनशील रसधानियाँ (Contractile vacuoles) पाई जाती हैं।

इस संघ के जन्तु एक केन्द्रकीय या बहुकेन्द्रकीय होते हैं। इस संघ के जन्तुओं में श्वसन तथा उत्सर्जन की क्रियाएँ शरीर की बाहरी सतह के रास्ते विसरण (Diffusion) क्रिया द्वारा होती है।

इस संघ के जन्तुओं में प्रजनन अलिंगी (Asexual) तथा लिंगी (sexual) दोनों विधियों द्वारा सम्पन्न होता है। अलिंगी प्रजनन (Asexual reproduction) द्विविभाजन (Binary fission), बहुविभाजन (Multiple fission) या मुकुलन (Budding) द्वारा तथा लिंगी प्रजनन (Sexual reproduction) नर तथा मादा युग्मकों के समागम (Conjugation) से होता है।

प्रतिकूल वातावरण (Unfavourable condition) से सुरक्षा के लिए इनमें परिकोष्ठन (Encystment) की व्यापक क्षमता होती है।

इनका शरीर नग्न या पोलिकिल (Pollicle) द्वारा ढंका रहता है। कुछ जन्तु कठोर खोल में बन्द रहते हैं।

उदाहरण– अमीबा (Amoeba), एण्टअमीबा हिस्टोलिटिका (Entamoeba Histolytica), एण्टअमीबा कोलाई (Entamoeba coli), एण्टअमीबा जिंजीवैलिस (Entamoeba gingivalis), ट्रिपैनोसोमा गैम्बिएन्स (Trypanosoma gambiense), लीशमैनिया डोनोवानी (Leishmania donovani), प्लैजमोडियम (Plasmodium), पैरामीशियम कॉडेटम (Paramecium caudatum), यूग्लीना (Euglena) आदि।

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2 संघ एस्केल्मिथीज या निमेटोडा के मुख्य लक्षण लिखिये।

उत्तर इन्हें साधारणतः गोलकृमि (Round worm) कहते हैं। Nematos = Thread, helminthes = worm अर्थात इन्हें सूत्र कृमि (Thread worm) भी कहते हैं। इस संघ के अंतर्गत लगभग 12000 जातियाँ (species) ज्ञात हैं। इस संघ के अन्तर्गत पाये जाने वाले जन्तुओं के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-

इस संघ के जन्तु जलीय, स्थलीय या परजीवी होते हैं।

इस संघ के जन्तुओं का शरीर अखण्डित, लम्बे-पतले धागे जैसा बेलनाकार होता है तथा दोनों सिरे नुकीले होते हैं।

इनके शरीर पर कड़ा उच्चर्म (Cuticle) होता है।

इनका शरीर अखण्डित तथा द्विपार्श्व सममित होता है।

इनमें एपीडर्मिस (Epidermis) के नीचे अनुदैर्ध्य मांसपेशियाँ (Longitudinal muscles) होती है।

इनमें कृत्रिम देहगुहा (Pseudocoel) होती है।

इनमें आहारनाल विकसित तथा मुखद्वार एवं गुदा (Anus) भी उपस्थित होते हैं।

इनमें रक्त परिसंचरण तंत्र और श्वसन तंत्र नहीं पाए जाते हैं।

इनके तंत्रिका तंत्र में एक अग्रतंत्रिका वलय (Nerve ring) एवं 6 अनुदैर्ध्य तंत्रिका रज्जु (Nerve cord) होती है।

ये एकलिंगी (Unisexual) होते हैं, अर्थात् नर एवं मादा जनन अंग अलग-अलग शरीर में पाये जाते हैं।

ये अधिकांशतः परजीवी (Parasites) होते हैं तथा अपने पोषकों (hosts) में रोग उत्पन्न करतेहैं।

उदाहरण- ट्राइकिनेला (Trichinella spiralis), एस्केरिस (Ascaris), ऐंकाइलोस्टोमा (Ancylostoma), वूचेरीया (wuchereria) आदि।

3 संघ प्लेटीहेल्मिन्थीजके मुख्य लक्षण लिखिये।
उत्तर : प्लेटीहेल्मिन्थीज शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम गीगेनबार (Gegenbaur) ने 1899 ई. में किया था। प्लेटीहेल्मिन्थीज शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों Platy = Flat; helminthes = worm से मिलकर बना है। प्लेटीहैल्मिन्थीज शब्द का अर्थ चिपटे कृमि होता है। इस संघ के अन्तर्गत कीड़े के समान अखण्डित जन्तु आते हैं। इनमें से अधिकांश परजीवी होते हैं, जिसके कारण मनुष्य पालतू पशु एवं जंगली जन्तुओं में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं। परजीवी होने के कारण इनकी संरचना, चाल एवं ज्ञानेन्द्रियाँ परपोशी (Host) की तरह ही विकसित होती है। इस संघ के जन्तुओं में पाये जाने वाले प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-

इस संघ के अधिकांश जन्तु परजीवी (Parasites) होते हैं। कुछ प्रजातियाँ स्वतंत्रजीवी या स्वच्छंद (Free living) होती हैं। जैसे- प्लेनेरिया (Planaria)।

ये जिन जन्तुओं में आश्रय पाते हैं, उनसे सटे रहने के लिए शरीर में कॉटें (hooks) और और (Suckers) पाये जाते हैं।

ये चपटे फीतानुमा परजीवी कृमि होते हैं। ये पृष्ठ अधोदिशा (Dorsoventrally) में चपटे होते हैं तथा इनका शरीर द्विपार्श्विक सममिति (Bilaterally symmetrical) होता है।

इनमें शरीर गुहा नहीं पायी जाती है तथा शरीर के अंदर के अंगों के बीच की जगह पैरेनकाइमा (Parenchyma) से भरी रहती हैं।

ये जन्तु त्रिस्तरीय (Triploblastic) होते हैं अर्थात् इनका शरीर एक्टोडर्म (Ectoderm) मीसोडर्म (Mesoderm) एवं एण्डोडर्म (Endoderm) से बना रहता है।

इस संघ के जन्तुओं के शरीर में चारों ओर क्यूटिकिल (Cuticle) का एक आवरण पाया जाता है।

इस संघ के जन्तुओं में सर्वप्रथम अंग एवं विभिन्न तंत्रों का पूर्ण विकास पाया जाता है।

इस संघ के जन्तुओं में पाचन तंत्र (Digestive system) on विकसित होता है क्योंकि ये अपने पोषकों के शरीर में पचा हुआ भोजन ग्रहण करते हैं।

इस संघ के जन्तुओं में रक्त परिसंचरण तंत्र, श्वसन तंत्र तथा कंकाल तंत्र नहीं पाये जाते हैं।

तंत्रिका तंत्र में एक जोड़ा अग्रगुच्छिका (Anterior ganglion) या तंत्रिका वलय (Nerve ring) एवं एक से तीन जोड़ी अनुदैर्घ्य तंत्रिका रज्जू (Longitudinal nerve cord) पायी जाती है।

इस संघ के जन्तु प्रायः उभयलिंगी (Bisexual) होते हैं तथा निषेचन क्रिया प्रायः आन्तरिक (Internal) हुआ करती है।

इस संघ के जन्तुओं में उत्सर्जन क्रिया ज्वाला कोशिका (Flame cells) द्वारा होता है।

इस संघ के जंतुओं का शरीर खण्ड्युक्त लेकिन ये खण्ड वास्तविक नहीं होते हैं।

उदाहरण: प्लेनेरिया (Planaria), फैसिओला (Fasciola), टीनिया (Taenia), सिस्टोसीमा (Schistosoma) आदि

प्रश्न 4 : कार्डेटा के मुख्य लक्षण लिखिये।

उत्तर- कार्डेटा के विशेषणिक लक्षण- समस्त कार्डेट जन्तुओं के जीवन-काल की किसी न किसी अवस्था में कुछ विशेष लक्षण आवश्यक रूप से देखे जाते हैं। इन लक्षणों को प्राथमिक या मूलभूत कार्डेट लक्षण कहा जाता है। ये निम्न होते हैं –

1. नोटोकॉर्ड की उपस्थिति- नोटोकॉर्ड या पृष्ठरज्जु एक कठोर शलाखा के रूप में पाये जाने वाली रचना है जो शरीर के पृष्ठ भाग में एक सिरे से दूसरे सिरे तक फैली होती है। नोटोकॉर्ड की स्थिति जन्तु में केन्द्रीय तन्त्रिका तंत्र के नीचे तथा आहार नाल के ऊपर होती है। यह भ्रूण में परिवर्धन की आरम्भिक अवस्था में मध्य पृष्ठतल में आहार नाल की एण्डोडर्म से विकसित होती है। यह एक प्राथमिक अतः कंकाल बनाती है जो केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तथा पेशियों को सहारा प्रदान करती है। नोटोकार्ड सामान्यतया प्रोटोकार्डेट (protochordate) जन्तुओं में पाई जाती है तथा अधिकांश वयस्क कशेरुकियों (vertebrates) में नोटोकॉर्ड के स्थान पर कॉर्टिलेज (cartilage) या हड्डियों (bones) का बना कशेरुक दण्ड (vertebral column) पाया जाता है।

2. ग्रसनीय क्लोम दरारों की उपस्थिति- सभी कार्डेटा जन्तुओं में जीवन की किसी न किसी प्रावस्था में ग्रसनीय क्लोम छिद्र अवश्य पाये जाते हैं। ये मुख के पीछे आहार नाल की ग्रसनीय दीवार में उपस्थित युगल छिद्रों के रूप में पाये जाते हैं। इन रचनाओं का निर्माण भ्रूणीय अवस्था में एक्टोडर्म के अन्दर की ओर धंसने तथा ग्रसनीय एन्डोडर्म के बाहर की ओर उभरने। तथा दोनों के समेकन से होता है।

प्रोटोकॉर्जेट्स तथा निम्न जलीय कार्डेट्स में गिल-स्लिट्स जीवन पर्यन्त क्रियाशील रहते हैं परन्तु उच्च कार्डेट्स वयस्क जन्तुओं में ये रचनाएँ या तो अदृश्य हो जाती हैं या फिर अन्य श्वसनी रचनाओं में परिवर्तित हो जाती हैं।

3. पृष्ठ नलिकार नर्वकार्ड की उपस्थिति (Presense of Dorsal Tubular Nerve cord)- कार्डेट जन्तुओं में तंत्रिका तंत्र देह की पृष्ठ सतह पर उपस्थित होता है। इन जन्तुओं की रचना में एक लम्बवत् खोखली एवं नली के आकार की संरचना तंत्रिका तंत्र के पीछे की ओर स्थित होती है जो देहभित्ति के ठीक नीचे तथा नोटोकॉर्ड के ऊपर पायी जाती है। नर्व कार्ड या तंत्रिका नली भ्रूणीय अवस्था में एन्डोडर्म के मध्य पृष्ठ तल पर अन्तर्वलन द्वारा बनती है। आरम्भ में यह भ्रूण की पृष्ठ सतह पर एक संकरी पट्टी के रूप में होती है जो न्यूरल कहलाती है। यह प्लेट नीचे की ओर धंसती जाती है तथा इसके दोनों किनारे न्यूरल फोल्ड के रूप में ऊपर उठ जाते हैं जो एक-दूसरे की ओर बढ़कर अंत में परस्पर मिलकर न्यूरल गुहा का निर्माण करती हैं। अधिकांश कार्डेट जन्तुओं में नर्वकॉर्ड का अगला सिरा फैलकर मस्तिष्क का निर्माण कर लेता है तथा शेष पिछला भाग रीढ़ रज्जु या स्पाइनल कॉर्ड बनाता है। मस्तिष्क कशेरुकी जन्तुओं में क्रेनियम के भीतर रहता है तथा स्पाइनल कॉर्ड वर्टिब्रल कैनाल अर्थात् कशेरुक नाल के भीतर उपस्थित होती है।

उपर्युक्त वर्णित तीन प्राथमिक लक्षण समस्त कार्डेटा जन्तुओं की प्रारम्भिक भ्रूणीय अवस्था में तो अवश्य देखे जाते हैं परन्तु ये सभी लक्षण वयस्क अवस्था में या तो पूर्ण रूप से अदृश्य हो जाते हैं या फिर अन्य किसी रचना में रूपान्तरित हो जाते हैं।

4. कार्डेटा के सामान्य लक्षण (General characters of chordates)- प्राथमिक कार्डेट लक्षणों के अतिरिक्त कार्डेट जन्तुओं में निम्नलिखित सामान्य लक्षण मिलते हैं

1. ये जलीय (aquatic), स्थलीय (terrestrial) अथवा वायव (aerial) जन्तु होते हैं, सभी स्वतंत्र रूप से जीवन यापन करते हैं।

2. इनका शरीर विभिन्न आकार का होता है तथा ये द्विपार्श्व सममित (bilaterally symmetrical) तथा विखण्डीकृत होते हैं।

3. इनकी देह त्रिस्तरीय (triplobastic) होती है जिसमें एक्टोडर्म (ectoderm), मीजोडर्म (mesoderm) एवं एण्डोडर्म (endoderm) के रूप में तीन जनन स्तर उपस्थित होते हैं।

4. बाह्य कंकाल (exoskeleton) सामान्यतया उपस्थित होता है जो अधिकांश कशेरुकियों में बहुत अधिक विकसित होता है।

5. त्वचा में अधिकर्च स्तरित उपकला से बनी होती है। नॉन कॉडेंट्स में यह एकल स्तर से बनी रहती है। उपकला के नीचे डर्मिस स्तर उपस्थित रहता है जो मीजोडर्मल संयोजी ऊत्तक से बना होता है।

6. इनमें वास्तविक देहगुहा पाई जाती है जो उद्गम की दृष्टि से शाइजोसील (schizocoel) अथवा एन्टेरोसील (enterocoel) प्रकार की होती है।

7. इनमें उपस्थित (cartilage) अथवा अस्थियों (bones) या दोनों का बना एक आन्तरिक ढांचा या अन्तः कंकाल पाया जाता है।

8. इन जन्तुओं में पाचन-तंत्र पूर्ण होता है तथा इसमें पाचक ग्रन्थियाँ भी उपस्थित रहती है।

9. इनमें यकृत निवाहिका उपतन्त्र पाया जाता है। इन जन्तुओं में आहार नाल से भोजन अवशोषित होकर रुधिर द्वारा यकृत निवाहिका शिरा में पहुँचता है जो इस रुधिर को यकृत में ले जाती है।

10. कार्डेट जन्तुओं में बन्द प्रकार का रुधिर परिसंचरण तंत्र पाया जाता है। हृदय आहार नाल के नीचे अधर तल पर स्थित होता है तथा पृष्ठ वाहिनी में रुधिर आगे से पीछे की ओर बहता है। श्वसन वर्णक के रूप में। हीमोग्लोबिन होता है जो लाल रुधिर कणिकाओं में उपस्थित रहता है।

11. उत्सर्जी रचनाओं (excretory structures) के रूप में प्रोटो, मीजो। अथवा मेटानेफ्रिक वृक्क उपस्थित रहते हैं।

12. समस्त कशेरुकीय जन्तुओं में नोटोकॉर्ड के स्थान पर कशेरुकदण्ड (vertebral column) पाया जाता है जिसमें बहुत सी कशेरुकायें (vertebrae) उपस्थित होती है।

13. सिर पर प्रकार-संवेदी रचना के रूप में नेत्र (eyes) उपस्थित रहते हैं जो वस्तुओं का प्रतिबिम्ब बनाने में सक्षम होते हैं। इनकी उत्पत्ति मस्तिष्क से होती है।

14. इनमें तंत्रिका कोशिकाएं नर्व कार्ड की केन्द्रीय नाल (central canal) के चारों ओर उपस्थित होती है। तन्त्रिकाओं का उद्गम पृष्ठ अधर तन्त्रिका मूलों से होता है।

15. कार्डेटा जन्तुओं में गुदा (anus) के पीछे वाला भाग पूँछ (tail) कहलाता है। इसमें पेशियाँ, नर्वकार्ड, नोटोकार्ड या कशेरुक दण्ड एवम् रक्त वाहिनियां उपस्थित होती है।

16. नर एवं मादा अलग-अलग होते हैं तथा विकास सामान्यतया प्रत्यक्ष (direct) अर्थात् सीधे ही बिना लारवा अवस्था के होते हैं।

5 संघ पोरिफेरा क्या है

उत्तर : वे प्रारंभिक और बहुकोशिकीय जंतु (Multi Cellular) जिनका शारीरिक संगठन कोशिकीय स्तर का होता है, तथा इनके शरीर पर विभिन्न छोटे-छोटे छिद्र पाए जाते हैं,

उन जीवो को संघ पोरिफेरा के अंतर्गत रखा गया है। साधारणतया कहा जा सकता है, कि वे यूकैरियोटिक जीव जंतु जिनका शरीर का संगठन एक से अधिक कोशिकाओं का बना होता है,

तथा उनके शरीर पर विभिन्न छोटे-छोटे छिद्र पाए जाते हैं, यह छिद्र संघ पोरिफेरा का मुख्य लक्षण है इस लिए इन जंतुओं को पोरिफेरा कहा जाता है। 

पोरिफेरा नामक शब्द दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है जिनमें Poros का अर्थ होता है, छिद्र तथा Ferre का अर्थ होता है,

धारण करने वाला इस प्रकार से हम कह सकते हैं, की पोरिफेरा शब्द का अर्थ छोटे-छोटे छिद्रों को धारण करने वाला होता है।

इस प्रकार से इस संघ (Phylum) का नाम पॉरिफेरा (Porrifera) पड़ा पोरिफेरा संघ के अंतर्गत अभी तक 10000 प्रजातियां ज्ञात हैं।

संघ पोरिफेरा के जंतुओ का अध्ययन करने पर सबसे पहले रॉबर्ट ग्रांट Robert grant नामक वैज्ञानिक ने 1825 में इन जंतुओ को संघ पोरीफेरा नाम दिया था।

संघ पोरीफेरा के जंतुओं की आकृति वाहय संरचना पौधों (Plants) से मिलती जुलती है, इसलिए प्रारंभ में वैज्ञानिकों ने इसे पादप (पौधे) ही मान लिया था। परंतु 1765 ईस्वी में

एलिस Ellis नामक वैज्ञानिक ने पोरिफेरा संघ Phylum Porifera पर गहन अध्ययन किया तत्पश्चात वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे की पोरिफेरा संघ के जंतु पादप नहीं अपितु जंतु ही हैं।

इस संघ के जंतुओं को स्पंज भी कहा जाता है, माना जाता है कि इस जंतुओं का विकास प्रोटैरोस्पंजिया जैसे प्रोटोजोआ के पूर्वजों से हुआ है।

इन शुरूआती जीवों ने इकठ्ठा होकर कोशिकाओं (Cells) की संरचना का निर्माण कर लिया, किंतु विभिन्न क्रियाओं के ना होने के कारण इनका शरीर ऊतकीय स्तर का नहीं हो पाया।

6 संघ पोरिफेरा के मुख्य लक्षण  हैं :

उत्तर :संघ पोरिफेरा के मुख्य लक्षण निम्न प्रकार हैं :-

प्रकृति एवं आवास - पोरिफेरा संघ के सभी प्रकार के जंतु अधिकांशतः समुद्र जलीय परंतु कुछ स्वछ जलीय भी होते हैं, जो अकेले तथा समूह में रहना भी पसंद करते हैं

शारीरिक संगठन - इन प्राणियों में कोशिकीय स्तर का शारीरिक संगठन पाया जाता है, इनमें कोशिकीय समूह का निर्माण तो हो जाता है, किंतु ऊतकीय स्तर अनुपस्थित होता है।

शारीरिक आकृति - संघ पोरिफेरा के जंतु बेलनाकार नालिकाकार, फूलदान के आकार के गोलाकार प्लेट के समान तथा पादप के समान आकृति रखते हैं, जबकि इनकी सममिति आरीय प्रकार की होती है, तथा कुछ जंतु आसमितिय भी होते हैं।

शारीरिक आवरण - पोरिफेरा के जंतु का शरीर देहभित्ति  से ढका रहता है, इनमें दो स्तर पाए जाते हैं, एक बाहरी स्तर एवं दूसरा आंतरिक स्तर

जबकि इन दोनों स्तरों के मध्य एक विशेष प्रकार का अकोशिकीय प्रकार का स्तर पाया जाता है जिसे मीजेनकाएमा mesenchyme कहा जाता है।

जनन स्तर - संघ पोरिफेरा के जंतु द्वीजनन स्तरीय के  होते हैं। जंतुओं के समस्त संरचनाओं का विकास एक्टोडर्म और एंडोडर्म से होता है।

वाह्य कंकाल - इनकी देहभित्ति में धंसी कैल्केरियस, अथवा सलीका की बनी कंकाली संरचनाएं होती हैं, यह संरचनाएं, दो प्रकार की होती हैं

1.कांटिकाएँ 2. स्पन्जिन तंतु

नालिका तंत्र - नालिका तंत्र जैसा लक्षण केवल स्पंजों में ही पाया जाता है, जिसमें ओस्टिया अन्तर्वाही छिद्र, अन्तर्वाही नलिकाएँ, प्रोसोपाइल अरीय नालिका एपोपाइल  स्पंज गुहा ऑस्कुलम

जिसमें सबसे पहले जल ओस्टिया के द्वारा अंदर जाता है, तथा इन सभी संरचनाओं से होता हुआ ऑस्कुलम से बाहर निकल जाता है।

प्रचलन और पोषण - इन सभी जंतुओं में प्रचलन नहीं होता जबकि यह जंतु मांसाहारी (Carnivorous) प्रकृति के होते हैं।

उत्सर्जन परिसंचरण स्वसन तंत्र -  इनके लिए विशेष अंग नहीं होते यह सभी क्रियाएँ शारीरिक सतह के द्वारा ही होती हैं।

तंत्रिका तंत्र - संघ पोरिफेरा के जंतुओं में द्विध्रुवीय एवं बहूधुर्वीय तंत्रिका कोशिकाओं के द्वारा प्राथमिक तंत्रिका तंत्र उपस्थित होता है। जंतुओं में संवेदी अंग अनुपस्थित होते हैं।

प्रजनन तंत्र - इन जंतुओं में दो प्रकार का प्रजनन पाया जाता है। यह जंतु द्विलिंगी होते हैं, किंतु इनमें नर और मादा जननांग अलग-अलग समय पर परिपक्व होते हैं इस कारण से इनमें परनिषेचन की क्रिया होती है।

अलैंगिक जनन मुकुलन के द्वारा विखंडन के द्वारा इन प्राणियों में होता है, जबकि लैंगिक जनन युग्मकों के संयोजन से होता है।

लारवा अवस्थाएँ - इनमें परिवर्धन सीलियेटेड लार्वा (Ciliated Larva) के द्वारा होता है।

7 फाइलम पॉरिफेरा का वर्गीकरण 

उत्तर फाइलम पॉरिफेरा को लक्षणों के आधार पर तीन क्लासों में बांटा गया है।

1. वर्ग class  - कैलकेरिया Calcarea

यह प्राणी समुद्र के कम गहरे जल में पाए जाते हैं

इन प्राणियों के शरीर का आकार बेलनाकार  फूलदान जैसा होता है

इन प्राणियों का कंकाल कैल्सीमय दीर्घ कांटिकाओं का बना होता है

इनका नाल तंत्र एक्सोन सायकॉन एवं सरल रैगोन  प्रकार का होता है।

2. वर्ग Class - हैक्सेक्तिनेलिडा या हैलोस्पोन्जिया Hexactinellida or Hyalospongia

इस वर्ग के सभी प्राणी समुद्री होते हैं जो गहरे जल में पाए जाते हैं।

प्राणियों के शरीर की आकृति प्याले के सामान्य फूलदान के के आकार की होती है।

इस वर्ग के प्राणियों को काँच स्पंज के नाम से भी जाना जाता है।

प्राणियों का कंकाल रंगहीन पारदर्शक चमकदार सिलका की बनी कणिकाओं का होता है उनका कंकाल 6 भुजा वाला या त्रिआरीय होता है।

इस वर्ग के प्राणियों की सतह अमीबी कोशिकाओं के जुड़े रहने के कारण बहू केंद्रकीय जाल के समान बन जाती है स्थिति को सिंसायटियम कहा जाता है।

3.वर्ग Class - डीमोस्पॉन्जिया Demospongia

इस वर्ग के अधिकांश प्राणी समुद्र के जल में रहते हैं जबकि कुछ स्वच्छ जल में भी पाए जाते हैं।

इनके शरीर की आकृति गोलाकार फूलदान के समान प्याले के समान होती है।

इनके शरीर पर कांटिकाएँ चमकीले रंग की तथा लघु एवं गुरु कांतिकाओं में विभाजित होती हैं।

इन प्राणियों का नाल तंत्र ल्यूकोन प्रकार का और अधिक जटिल होता है।

प्राणियों की कीप कोशिकाएं गोल कक्षों तक सीमित होती हैं।

कशाभिकक्ष छोटे-छोटे और गोल गोल होते हैं।

8 संघ पोरिफेरा के दो जंतुओं के नाम

उत्तर  1. यूस्पोन्जिया Eusopongia

 संघ (phylum) - पोरिफेरा (Porifera)

 वर्ग (class) - डीमोस्पॉन्जिया  (demospongiae)

 गण (order) - डिक्टायोसेरेटिडा (Dictyoceratida) 

 वंश (genus) - यूस्पोन्जिया (Euspongia)

यह प्राणी समुद्र के पुतले जल में चट्टानों पर पत्थरों पर आदि कई आधार से चिपके हुए पाए जाते हैं।

इनके शरीर की आकृति गोलाकार पिंडाकार प्याले के जैसा और पाटलिआकार होती है।

इन प्राणियों को व्यापारिक स्नान स्पंज भी कहा जाता है।

इनका कंकाल स्पंजिन ततुवों से निर्मित है

2. साइकॉन Sycon

 वर्गीकरण (Classification)

 संघ (phylum) - पोरिफेरा (Porifera)

 वर्ग (class) - कैलकेरिया (calcarea)

 गण (order) - साइसैटिंडा (Scycettida)

 वंश (genus) - साइकॉन (sycon)

यह प्राणी समुद्री जल में चट्टानों पर पत्थरों पर और जलीय पौधों से चिपका हुआ पाया जाता है।

इनका शरीर नालवत अथवा फूलदान के जैसा भूरा और कांटे की संरचनाओं से निर्मित होता है।

इनका कंकाल कैल्शियम कार्बोनेट की कंटिकाओं से निर्मित है.

इस प्राणी की शरीर में कीप कोशिकाएँ केवल कशाभि  नालिकाओं की दीवार पर उपस्थित होती हैं।

प्रत्येक कॉलोनी में दो या दो से अधिक बेलनाकार शाखाएं होती हैं जो स्टोलन से जुड़ी होती हैं

9 जंतु जगत क्या है ?

उत्तर -जन्तु जगत के अन्तर्गत सभी प्रकार के यूकैरियोटिक बहुकोशिकीय तथा विषमपोषी (जो पोषण के लिए प्रत्यक्ष रूप से दूसरे जीवों पर निर्भर हो) जीव आते हैं।  यह यूकैरियोटिक, बहुकोशिकीय, विषमपोषी प्राणियों का वर्ग है जिसमे कोशिका भित्ति रहित कोशिकाओं से बना है। ये अधिकांशतया भोजन का अन्तर्ग्रहण करते हैं तथा आन्तरिक गुहा में इसका पाचन होता है। प्रोटोजोआ तथा पोरोफेरा को छोड़कर सभी में तन्त्रिका तन्त्र पाया जाता है। जन्तु जगत के अन्तर्गत विशिष्ट संघ आते हैं | चुकीं इन प्राणियों की संरचना एवं आकार में विभिन्नता होते हुए भी उनकी कोशिका व्यवस्था, शारीरिक सममिति, पाचन तंत्र, परिसंचरण तंत्र एवं जनन तंत्र की रचना में कुछ आधारभूत समानताएँ पाई जाती हैं। इन्हीं विशेषताओं को वर्गीकरण का आधार बनाया गया है।

10 प्रोटोजोआ क्या है ?

उत्तर - प्रोटोजोआ का सर्वप्रथम अध्ययन ल्यूवेनहॉक ने किया तथा गोल्डफस ने इस संघ को प्रोटोजोआ नाम दिया। प्रोटोजोआ को सामान्यतया प्रोटिस्टा जगत के अर्न्तगत रखा जाता है। यह एककोशिकीय सूक्ष्मजीव है। इसकी सभी क्रियाएँ कोशिका के अन्तर्गत घटित होती हैं; जैसे-अमीबा, सारकोडिना आदि।

इसके अन्तर्गत फ्लेजैलायुक्त यूमेस्टिजिना भी आते हैं, जिसकी अनेक जातियाँ पादपों तथा जन्तुओं पर परजीवी के रूप में रहती हैं। तथापि कई वर्गीकरणों में प्रोटोजोआ को अन्य एककोशिकीय जीवों के साथ प्रोटिस्टा जगत में रखा जाता है।

11 अमीबा (Amoeba)के बारे में लिखिए?

उत्तर - अमीबा की खोज रसेल वॉन रोजेनहॉफ ने 1755 में की। इसका शरीर प्लाज्मालेमा से ढका होता है। यह प्लाज्मालेमा श्वसन और उत्सर्जन दोनों का कार्य करती है। अमीबा कूटपादों (pseudopodia) द्वारा गमन करता है। अमीबा में परासरण संकुचनशील रिक्तिका द्वारा होता है। इसके शरीर में कंकाल नहीं होता है।

अमीबा में प्राणिसमभोजी पोषण की विधि महत्त्वपूर्ण होती है। इसमें अलैंगिक जनन द्विखण्डन विधि द्वारा होता है। साथ ही भक्षकाणु क्रिया (invagination) की विधि द्वारा भोजन ग्रहण करता है।

12 प्लाज्मोडियम मलेरिया परजीवीक्या है ?

उत्तर  यह मलेरिया फैलाने वाला अन्त:परजीवी है। यह दो पोषकों (digenetic) में अपना पूरा जीवन चक्र सम्पन्न करता है-प्रथम मनुष्य व दूसरा मादा एनॉफिलीज मच्छर। प्लाज्मोडियम का अलैंगिक जीवन मनुष्य में तथा लैंगिक जीवन मच्छर में घटित होता है।

मनुष्य में पूरा होने वाला जीवन चक्र शाइजोगोनी तथा मच्छर में पूरा होने वाला जीवन चक्र स्पोरोगोनी कहलाता है। प्रासी नामक वैज्ञानिक ने मादा एनॉफिलीज मच्छर में प्लाज्मोडियम के जीवन चक्र का वर्णन किया।


 13 हाइड्रा (Hydra)के बारे में लिखिए 

उत्तर - हाइड्रा की खोज ल्यूवेनहॉक ने की थी। यह मीठे जल में पाया जाता है, जबकि इस वर्ग के अधिकांश जीव समुद्री लवणीय जल में पाए जाते हैं। इसके शरीर की सममिति अरीय (radial symmetry) होती है। इसकी देह भित्ति द्विजन स्तरी (diploblastic) होती है। बाहरी भाग में घनाकार कोशिकाओं के बने अधिचर्म में उपकला पेशी कोशिकाएँ, संवेदी, तत्रिका, जनन तथा दंश कोशिकाएँ होती हैं।

हाइड्रा सबसे छोटा पॉलिप होता है। हाइड्रा विरडिस्सिमा हरे रंग का तथा हाइड्रा ओलाइगैक्टिस भूरे रंग का होता है। इसके शरीर पर उपस्थित स्पर्शक चलन, भोजन ग्रहण एवं सुरक्षा प्रदान करते हैं। इसकी देह गुहा सीलेन्ट्रॉन कहलाती है तथा इसमें गुही नहीं होती है। हाइड्रा में पुनरुद्भवन (regeneration) की अपार क्षमता होती है।

14 प्लेटिहेल्मिन्थीज के बारे में लिखिए 

उत्तर - ये परजीवी तथा स्वतन्त्रजीवी दोनों प्रकार के होते हैं। इसके तीन वर्ग टवेलेरिया, टमेंटोडा तथा सेस्टोडा हैं वे सामान्यतया फीते के समान चपटे अथवा पत्ती के समान आकृति के द्विपार्श्व सममिति (bilaterally symmetrical) तथा त्रिस्तरीय जन्तु है। श्वसन अधिकांशतया अवायवीय (anaerobic) होता है तथा उत्सर्जन हेतु ज्वाला कोशिकाएँ होती हैं इस वर्ग के जीव उभयलिंगी होते हैं अर्थात् एक ही जीव में नर तथा मादा जननांग पाए जाते हैं। इस संघ के अन्तर्गत प्लेनेरिया, टीनिया सोलियम जैसे कोड़े के समान अखण्डित जन्तु आते हैं तथा अधिकांशतया परजीवी होते हैं।

15 एस्केल्मिन्थीज गोलकृमिके बारे में लिखिए 

 उत्तर -इनका शरीर गोल होता है। इसके अन्तर्गत ऐस्कैरिस, ये परजीवी तथा स्वतन्त्रजीवी दोनों प्रकार के होते हैं। हुकवर्म, फाइलेरिया कृमि, पिनकृमि, गीनिया कृमि आदि आते हैं। इसके शरीर में बहुकेन्द्रकी एपीडर्मिस (Syncytial epidermis) पाई जाती है। ये नलिका के अन्दर नलिका शरीर संरचना प्रस्तुत करते हैं।

इसके शरीर में परिवहन अंग तथा श्वसन अंग नहीं होते हैं परन्तु तन्त्रिका तन्त्र काफी विकसित होता है। इसके शरीर में उत्सर्जन प्रोटोनेफ्रीडिया द्वारा होता है। इसमें उत्सर्जी पदार्थ यूरिया उत्सर्जी प्रकार का होता है।

16 ऐकैरिस लुम्बीक्वॉएडिसके बारे में लिखिए 

उत्तर -ऐस्कैरिस अन्तःपरजीवी है, जो मनुष्य के छोटी आंत में पाया जाता है। इसमें उत्सर्जन रेनेट कोशिका द्वारा होता है। ऐस्कैरिस अमोनिया तथा यूरिया का उत्सर्जन करती है। ऐस्कैरिस द्वारा उत्पन्न रोग को ऐस्कैरिएसिस कहते हैं। ऐस्कैरिस को रोगी के आंत से निकालने हेतु चीनोपोडियम का तेल प्रयोग किया जाता है। इसमें लार ग्रन्थियाँ नहीं पाई जाती हैं।

17 आर्थोपोडा (संयुक्त पाद प्राणी)के बारे में लिखिए 

उत्तर - अप-आर्थोपोडा प्राणी संसार का सबसे बड़ा वर्ग माना जाता है। आपापोडा संघ के जन्तुओं की सबसे अधिक संख्या कीट वर्ग में है। ‘आर्थोपोडा’ शब्द का अर्थ होता है-संयुक्त उपांग (Arthron = Joint; podes Front)। इस संघ के जन्तुओं में चलन एवं कुछ अन्य कायों के लिए जोड़ीदार, दृढ़ एवं पाश्चीय संयुक्त उपांग होते हैं। ये जन्तु बहुकोशिकीय, द्विपार्थ सममित तथा खण्डयुक्त शरीर वाले हैं। शरीर तीन भागों सिर, वक्ष और उदर में बँटा होता है। इसमें काश्टीन युक्त बाह्य कंकाल होता इसके पाद सन्धियुक्त होते हैं। इसकी देहगुहा हीमोसील क्यूटिकल का बन कहलाती है। इस वर्ग के अन्तर्गत तिलचट्टा, झींगा मछली, केकड़ा, खटमल, मकड़ी, मच्छर, मक्खी, टिड्डी, मधुमक्खी आदि आते हैं।

 18 मोलस्का (कोमल शरीर युक्त प्राणी)के बारे में लिखिए 

उत्तर  मोलस्का नॉन-कॉडेटा का दूसरा सबसे बड़ा संघ है। यह मीठे समुद्री जल तथा स्थल पर पाए जाते हैं। इसका शरीर कोमल, अखण्डित तथा उपांगरहित एवं त्रिस्तरीय होता है। शरीर त्वचा की एक तह से ढका रहता है, जिसे मैण्टल कहा जाता है। इनमें एक अधर पेशी अंग होता है, जिसे पाद कहते हैं, जिसकी सहायता से चलन कार्य सम्पन्न होता है। ये एकलिंगी होते हैं। इसमें उत्सर्जन मेटानेफ्रिडिया के द्वारा, जबकि श्वसन क्लोन, टिनिडिया या फेफड़ों द्वारा होता है। उदाहरण ऑक्टोपस (डेविलफिश), (कटलफिश), सिप्रिया (कौड़ी)।

 19 इकाइनोडर्मेटा (Echinodermata)के बारे में लिखिए 

उत्तर  इस संघ के सभी सदस्य समुद्री होते हैं। इसके अन्तर्गत कांटेदार त्वचा वाले प्राणी आते हैं। इसमें अनेक तन्तु सदृश मुलायम संरचनाएँ होती हैं, जिसे ट्यूब फीट कहते हैं। इसी के माध्यम से ये चलन करते हैं। इकाइनोडर्म त्रिजनस्तरीय जन्तु है, जिसमें पंचकोणीय अरीय सममिति है परन्तु लार्वा अवस्था में द्विपार्श्व सममिति होती है। जल संवहन तन्त्र की उपस्थिति इसका विशिष्ट लक्षण है। इसके अन्तर्गत स्टारफिश, समुद्री आर्चिन, समुद्री खीरा तथा ब्रिटील स्टार आदि जीव आते हैं।

 20 सरीसृप (Reptilia) वर्गके बारे में लिखिए 

उत्तर  ये थल पर रेंगकर चलने वाले प्राणी हैं। मीसोजोइक युग को सरीसृपों का युग कहा जाता है। चूँकि इस युग में डायनासोर तथा अन्य सरीसृप काफी प्रभावशाली थे। इस वर्ग के अन्तर्गत रेंगने वाले तथा बिल में रहने वाले, शीत रुधिरतापी (cold-blooded) तथा एपिडर्मल शल्क वाले जन्तु आते हैं। इसके हृदय में तीन कोष्ठ होता है परन्तु मगरमच्छ और घड़ियाल में चार-कोष्ठीय हृदय होते हैं। सर्पो एवं मगरमच्छ में मूत्राशय नहीं पाया जाता है। इसमें निषेचन आन्तरिक होता है तथा ये अधिकतर अण्डज (oviparous) होते हैं। इसके अण्डे कैल्सियम कार्बोनेट की बनी कवच से ढके रहते हैं। इस वर्ग के अन्तर्गत छिपकली, सांप, कछुआ, घड़ियाल, मगरमच्छ आदि जीव आते हैं।

 21 पक्षी (Aves) वर्ग

उत्तर  इसके अन्तर्गत पक्षी तथा द्विपाद पंखयुक्त प्राणी आते हैं, जो ऊष्म रुधिरीय कशेरुकी हैं। इनकी अग्रभुजाएँ परों (wings) में परिणत हो जाती हैं। इसमें दाँत का अभाव होता है। पक्षियों के शरीर के सभी अंग उड़ने के लिए अनुकूलित होते हैं, जैसे-पंख का दण्ड खोखला होता है, पूंछ में हड्डियों का अभाव होता है। सुदृढ़ वक्ष मांसपेशी उड़ने के लिए आवश्यक दृढ़ता प्रदान करता है। इसके आहारनाल में दो अतिरिक्त कोष्ठक होते हैं, जिसमें से एक क्रॉप भोजन संचय करता है तथा गिजार्ड इसे पीसने का कार्य करता है। इसका हृदय चार कोष्ठीय होता है दो अलिंद तथा दो निलय। ये समतापी होते हैं।

22 स्तनधारी (Mammalia) वर्ग के बारे में लिखिए 

उत्तर  सीनोजोइक काल को स्तनधारियों का युग कहा जाता है। ‘स्तनधारी’ शब्द का अर्थ होता है स्तन ग्रंथियाँ वाले जन्तु, जो अपने बच्चों को दूध पिलाती है। स्तनी वर्ग के सभी प्राणी अधिक विकसित और समतापी होते हैं। इस वर्ग के अन्तर्गत आने वाले प्राणी के दाँत जीवन में दो बार निकलते हैं।

स्तनधारी तीन प्रकार के होते है

(i) प्रोटोथीरिया – अण्डे देते हैं। उदाहरण एकिडना

(ii) मेटाथीरिया – अपरिपक्व बच्चे देते हैं। उदाहरण कंगारू

(iii) यूथीरिया – पूर्ण विकसित शिशुओं को जन्म देते हैं। उदाहरण मनुष्य