बिहार बोर्ड कक्षा 11 जीव विज्ञान अध्याय 7 जन्तुओं में संरचनात्मक संगठन दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. एककोशिकीय ग्रन्थियाँ (Unicellular Glands) :
उत्तर : ये स्तम्भकार उपकला में एकल रूप में पाई जाती हैं। इन्हें श्लेष्म या गॉब्लेट कोशिकाएँ (goblet cells) कहते हैं।
. बहुकोशिकीय ग्रन्थियाँ (Multicellular Glands) :
ये उपकला के अन्तर्वलन से बनती हैं। इसका निचला भाग स्रावी (glandular) तथा ऊपरी भाग नलिकारूपी होता है; जैसे–स्वेद ग्रन्थियाँ, जठर ग्रन्थियाँ आदि। रचना के आधार पर बहुकोशिकीय ग्रन्थियाँ नलिकाकार, कूपिकाकार होती हैं। ये सरल, संयुक्त अथवा मिश्रित प्रकार की होती हैं। स्वभाव के आधार पर ग्रन्थियाँ मोरोक्राइन (merocrine), एपोक्राइन (apocrine) या होलोक्राइन (holocrine) प्रकार की होती हैं।
प्रश्न 2 केंचुए के परिसंचरण तन्त्र का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर : केंचुए का रुधिर परिसंचरण तन्त्र केंचुए में रुधिर परिसंचरण ‘बन्द प्रकार का होता है। रुधिर लाल होता है। हीमोग्लोबिन प्लाज्मा में घुला होता है। रुधिराणु रंगहीन तथा केन्द्रकमय होते हैं। केंचुए के रुधिर परिसंचरण में निम्नलिखित । अनुदैर्घ्य रुधिर वाहिनियाँ होती हैं
(i) पृष्ठ रुधिरवाहिनी (Dorsal Blood Vessel) :
यह आहारनाल के मध्य पृष्ठ तल पर स्थित होती है। यह पेशीय, कपाटयुक्त रुधिरवाहिनी होती है। यह अन्तिम खण्डों से रुधिर एकत्र करके प्रथम 13 खण्डों में वितरित कर देती है। रुधिर का अधिकांश भाग चार जोड़ी हृदय द्वारा अधर रुधिरवाहिनी में पहुँच जाता है।
(ii) अधर रुधिरवाहिनी (Ventral Blood vessel) :
यह आहारनाल के मध्य अधर तल पर स्थित होती है। यह अनुप्रस्थ रुधिर वाहिनियों द्वारा रुधिर का वितरण करती है। इसमें कपाट नहीं पाए। जाते।
(iii) पाश्र्व ग्रसनिका रुधिर वाहिनियाँ (Lateral Oesophageal Blood vessels) :
एक जोड़ी रुधिर वाहिनियाँ दूसरे खण्ड से 14वें खण्ड तक आहारनाल के पाश्र्यों में स्थित होती हैं। ये रुधिर एकत्र करके ग्रसिकोपरि वाहिनी (supra-oesophageal blood vessel) को पहुँचाती हैं।
(iv) ग्रसिकोपरि वाहिनी (Supra-oesophageal Blood Vessel) :
यह आहारनाल के पृष्ठ तल पर 9वें खण्ड से 14वें खण्ड तक फैली होती है। यह पाश्र्व ग्रसनिका से 2 जोड़ी अग्रलूपों (anterior loops) द्वारा रुधिर एकत्र करके अधर रुधिरवाहिनी को पहुँचा देती है।
(v) अधो तन्त्रिकीय रुधिरवाहिनी (Sub-neural Blood vessel) :
यह आहारनाल के आंत्रीय भाग में तन्त्रिका रज्जु के नीचे मध्य-अधर तल पर स्थित होती है। यह खण्डीय भागों से (UPBoardSolutions.com) रुधिर एकत्र करके योजि वाहिनियों द्वारा पृष्ठ रुधिरवाहिनी में पहुँचा देती है।’
प्रश्न 3 निम्नलिखित के कार्य बताइए
(अ) मेढक की मूत्रवाहिनी
(ब) मैल्पीघी नलिका
(स) केंचुए की देहभित्ति।
उत्तर :
(अ)
मेढक की मूत्रवाहिनी (Ureter of Frog) :
नर मेढक में वृक्क से मूत्रवाहिनी निकलकर क्लोएका में खुलती है। यह मूत्रजनन नलिका का कार्य करती है। मादा मेंढक में मूत्रवाहिनी तथा अण्डवाहिनी (oviduct) क्लोएको में पृथक्-पृथक् खुलती हैं। मूत्रवाहिनी वृक्क से मूत्र को क्लोएका तक पहुँचाती है।
मैल्पीघी नलिकाएँ (Malpighian tubules) :
ये कीटों में मध्यान्त्र तथा पश्चान्त्र के सन्धितल पर पाई जाने वाली पीले रंग की धागे सदृश (UPBoardSolutions.com) उत्सर्जी रचनाएँ होती हैं। ये उत्सर्जी पदार्थों को हीमोसील से ग्रहण करके आहारनाल में पहुँचाती हैं।
(स)
केंचए की देहभित्ति (Bodywall of Earthworm) :
केंचुए की देहभित्ति नम तथा चिकमी होती है। यह श्वसन हेतु गैस विनिमय में सहायक होती है। देहभित्ति का श्लेष्म केंचुए के बिलों (सुरंग) की सतह को चिकना एवं मजबूत बनाता है।
प्रश्न 4. ऊतक को परिभाषित कीजिए। तरल संयोजी ऊतक की तीन विशेषताएँ लिखिए। या ऊतक की परिभाषा लिखिए। समझाइए कि रुधिर एक ऊतक है।
उत्तर : एक विशिष्ट कार्य करने वाले कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहा जाता है। ऊतक (tissue) शब्द के सर्वप्रथम प्रयोग का श्रेय बाइकाट (Bichat, 1771-1802) को है। मारसेलो मैल्पीघी (Marcello Malpighi, 1694) ने ऊतकों का विस्तृत अध्ययन किया। मेयर (Meyer, 1819) ने ऊतकों के अध्ययन के विज्ञान को ‘हिस्टोलोजी’ (histology) नाम दिया। उपर्युक्त एवं अन्य वैज्ञानिकों के अनुसार ऊतक की परिभाषा इस प्रकार दी गयी है—कोशिकाओं का ऐसा समूह जो उत्पत्ति (origin), रचना (structure) तथा कार्य (function) में समान हो, ऊतक (tissue) कहलाता है। ऊतकों की कोशिकाएँ एक आन्तरकोशीय (intercellular) पदार्थ के द्वारा परस्पर चिपकी रहती हैं। ऊतक का यह आधार द्रव्य (ground substance) मैट्रिक्स (matrix) कहलाता है। ऊतक की कोशिकाएँ ही इस मैट्रिक्स का स्रावण करती हैं।
तरल संयोजी ऊतक की विशेषताएँ
ये विशेष प्रकार के संयोजी ऊतक हैं, जिनका शरीर के लगभग सभी भागों में संचारण होता है; उदाहरणार्थ-रुधिर। इनमें निम्नलिखित विशेषताएँ पायी जाती हैं
इनमें मैट्रिक्स तरल अवस्था में होता है। इसे प्लाज्मा (plasma) कहते हैं तथा प्लाज्मों में तन्तु (fibres) नहीं होते हैं।
इनकी कोशिकाएँ, कणिकाएँ (corpuscles) कहलाती हैं तथा ये प्लाज्मा का स्रावण नहीं करती हैं।
ये अन्य ऊतकों की भाँति शरीर को दृढ़ता, निश्चित स्वरूप अथवा गति देने का कार्य नहीं करते हैं। (UPBoardSolutions.com) उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि रुधिर एक ऊतक है।
प्रश्न 5. संवहनीय ऊतक से आप क्या समझते हैं? सामान्य संयोजी ऊतक से यह किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर : संवहनीय ऊतक
उविकास के साथ-साथ जब हमारे शरीर का माप बढ़ा और इसके रचनात्मक संगठन में जटिलता आई, तो इसके विभिन्न भागों के मध्य पदार्थों का परिवहन एक महत्त्वपूर्ण कार्य हो गया। अतः स्पंजों, निडेरिया एवं असीलोमेट तथा स्यूडोसीलोमेट जन्तुओं को छोड़कर शेष जन्तुओं में एक संवहनीय तन्त्र का विकास हुआ। इस तन्त्र के अन्तर्गत अधिकांश उच्च जन्तुओं में परिवहन के माध्यम के रूप में रुधिर एवं लसीका का विकास हुआ। ये विशेष प्रकार के तरल संयोजी ऊतक होते हैं, जिनका कि सम्पूर्ण शरीर में परिसंचरण होता है। इस प्रकार के ऊतकों को ही संवहनीय ऊतक कहा जाता है।
प्रश्न 6 लाल रुधिराणु अपघटन तथा लाल रुधिराणु निर्माण क्रिया को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर : लाल रुधिराणु अपघटन मैक्रोफेज तथा फेगोसाइट्स कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त लाल रुधिराणुओं का भक्षण करके हीमोग्लोबिन को हीम तथा ग्लोबिन में तोड़ देती हैं। इस प्रक्रिया को लाल रुधिराणु अपघटन कहते हैं। हीम का उपयोग पुनः हीमोग्लोबिन निर्माण में हो जाता है। लाल रुधिराणु निर्माण यकृत, अस्थिमज्जा, लसीका गाँठों, थाइमस ग्रन्थि आदि में लाल रुधिराणुओं का निर्माण होता है। इनका निर्माण एरिथ्रोब्लास्ट कोशिकाओं से होता है
प्रश्न 7. तिलचट्टे के श्वसन नली तंत्र में गैसीय विनिमय की यांत्रिकी का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर :तिलचट्टे की विश्रामावस्था में ट्रैकिओल्स में केशिका खिंचाव (capillary force) के कारण ऊतक द्रव्य (tissue fluid) इनमें कुछ दूर तक भरा रहता है। यह भीतर आयी हवा से CO2 के बदले O2 लेता है। इसके विपरीत तिलचट्टे की सक्रिय अवस्था में, उपापचयी दर (metabolic rate) के बढ़ जाने से, ऊतक द्रव्य में परासरणी दाब (Osmotic pressure) बढ़ जाता है। इससे ट्रैकिओल्स में से ऊतक द्रव्य निकल जाता है। अतः अब हवा सीधी कोशिकाओं तक पहुँच जाती है, इससे गैसीय विनिमय बढ़ जाता है। CO2 उपचर्म में से भी O2 की अपेक्षा कहीं अधिक प्रसरित (diffuse) होती है। अतः यह हवा के साथ ही नहीं, वरन् हीमोलिम्फ में घुलकर देहभित्ति की उपचर्म में से भी प्रसरण द्वारा बाहर निकलती है।
प्रश्न 8. कायान्तरण की परिभाषा लिखिए। त्वक पतन से कॉकरोच को क्या लाभ मिलता है ?
उत्तर :
वह प्रक्रिया जिसके अन्तर्गत शिशु अनेक अवस्थाओं से होते हुए वयस्क बनता है, कायान्तरण कहलाती है। उदाहरणार्थ-कॉकरोच के शिशु को निम्फ कहते हैं। ये रचना में वयस्क कॉकरोच के ही समान परन्तु छोटे, हल्के रंग के और पंखहीन होते हैं। इनके जननांग भी अर्द्धविकसित होते हैं।) इनकी शिशु अवस्था लगभग 6 माह से 2 वर्ष तक होती है। इस बीच शिशु में सक्रिय पोषण के कारण वृद्धि होती है। वृद्धि अवस्था में10 से 12 बार निम्फ के बाह्य कंकाल का त्वक् पतन होता है, परिणामस्वरूप इसकी वृद्धि होती है। अन्तिम त्वक् पतन के पश्चात् वृद्धि प्रावस्था समाप्त हो जाती है तथा निम्फ वयस्क बन जाता है। इसके पंख भी बन जाते हैं तथा जननांग क्रियाशील हो जाते हैं।
प्रश्न 9. उत्सर्जन के बारे में आप क्या जानते हैं? तिलचट्टे की मैलपीघियन नलिकाओं का कार्य बताइए।
उत्तर :उत्सर्जन :प्रत्येक जीव में कोशिकीय उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप कई प्रकार के अपशिष्ट उत्पाद बनते हैं, जो उनके शरीर के लिए निरर्थक एवं हानिकारक होते हैं। इन अपशिष्ट उत्पादों को शरीर से निष्कासित करने की जैव-क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं। मैलपीषियन नलिकाओं के कार्य-ये पीले रंग की धागेनुमा नलिकाएँ हैं, जो मध्य आंत्र तथा पश्च आंत्र के जोड़ पर स्थित होती हैं। ये नलिकाएँ नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थों का अवशोषण करके उन्हें जैव रासायनिक क्रिया द्वारा यूरिक अम्ल में परिवर्तित कर देती हैं। यूरिक अम्ल पश्च आंत्र द्वारा उत्सर्जित कर दिया। जाता है
प्रश्न 10 पेशी ऊतक कितने प्रकार के होते हैं? अरेखित पेशियों की कार्यविधि ६ का वर्णन कीजिए। प्रत्येक का उदाहरण दीजिए।
पेशी ऊतक-पेशी ऊतक अनेक लम्बे एवं बेलनाकार तन्तुओं (रेशों) से बना होता है जो समानांतर पंक्तियों में सजे रहते हैं। यह तन्तु कई सूक्ष्म तन्तुओं से बना होता है जिसे पेशी तन्तुक (myofibril) कहते हैं। समस्त पेशी तन्तुक समन्वित रूप से उद्दीपन के कारण संकुचित हो जाते हैं तथा पुनः लम्बा होकर अपनी असंकुचित अवस्था में आ जाते हैं। पेशी ऊतक की क्रिया से शरीर वातावरण में होने वाले परिवर्तनों के अनुसार गति करता है तथा शरीर के विभिन्न अंगों की स्थिति को सँभाले रखता है। (सामान्यतया शरीर की सभी गतियों में पेशियाँ प्रमुख भूमिका निभाती हैं। पेशी ऊतक अग्र तीन प्रकार के होते हैं
1. अरेखित पेशी ऊतक
यह अनैच्छिक पेशी ऊतक है। ये पेशियाँ कार्यिकी व वातावरणों के अनुसार संकुचित होती हैं। ये पेशियाँ कंकाल से सम्बन्धित नहीं होती हैं। इन्हें विसरल पेशियाँ भी कहते हैं। ये पेशियाँ आहारनाल, श्वासनली, गर्भाशय, पित्ताशय, रुधिरवाहिनी, शिश्न आदि में मिलती हैं। अरेखित पेशियों के तन्तु 100-200μ लम्बे तथा 10μ चौड़े होते हैं। ये पतले तथा तरूपी होते हैं। तन्तु के ऊपर कोशिका कला मिलती है। इसको सारकोलेमा कहते हैं। तन्तु का द्रव सारकोप्लाज्म कहलाता है। इसमें एक्टिन व मायोसिन प्रोटीन के समानांतर. पेशी तन्तु मिलते हैं।
2. रेखित पेशी ऊतक
ये पेशियाँ अंगों में इच्छानुसार गति को नियन्त्रित करती हैं। इन्हें ऐच्छिक पेशियाँ कहते हैं। ये पेशियाँ कंकाल से जुड़ी होती हैं। हाथ, पैर व शरीर की गति को संचालित करने के कारण इन्हें कंकालीय पेशी अथवा दैहिक पेशी भी कहते हैं। ये पेशियाँ गर्दन, हाथ, पैर, उदर आदि सभी अंगों में मिलती हैं। ये तन्तु संयोज़ी ऊतक तथा कोलेजन तन्तुओं के आवरण से आच्छादित होती हैं। इसे एन्डोमायोसियम कहते हैं। प्रत्येक तन्तु बेलनाकार तथा 1-30 μ लम्बा तथा 10-100 μ व्यास का होता है। इसके आवरण को सारकोलेमा कहते हैं। सारकोलेमा त्रिस्तरीय होता है। सारकोप्लाज्म में मायोफाइब्रिल मिलती है। रेखित पेशियों में एक्टिन तथा मायोसिन प्रोटीन मिलती है।
3. हृद पेशी ऊतक
यह एक संकुचनशील ऊतक है जो केवल हृदय में ही पाया जाता है। हृद पेशी ऊतक की कोशिकाएँ कोशिका संधियों द्वारा द्रव्य कला से एकरूप होकर चिपकी रहती हैं। संचार संधियों अथवा अन्तर्विष्ट डिस्क (intercalated disc) के कुछ संगलन बिंदुओं पर कोशिका एक इकाई रूप में संकुचित होती है। जैसे कि जब एक कोशिका संकुचन के लिए संकेत ग्रहण करती है, तब दूसरी पास की कोशिका भी संकुचन के लिए उद्दीपित होती है।
प्रश्न 11. तिलचट्टे के मुखांगों का सचित्र वर्णन कीजिए। या कॉकरोच के मुखांगों को, उनके प्राकृतिक क्रम में, सरल, स्वच्छ आरेखी चित्र खींचकर उचित नामांकन द्वारा स्पष्ट कीजिए (वर्णन अनापेक्षित)
उत्तर :
तिलचट्टे/कॉकरोच के मुखांग
कॉकरोच के सिर पर उपस्थित चार जोड़ी उपांगों में से तीन जोड़ी उपांग छोटे और मुखद्वार के चारों ओर स्थित होते हैं। सिर कोष की लैब्रम (labrum) तथा हाइपोफैरिंक्स (hypopharynx) नाम की एक अन्य काइटिनयुक्त रचना भी मुखद्वार से सम्बन्धित होती है। इन सब उपांगों का सम्बन्ध भोजन-ग्रहण से होता है। अत: इन्हें मुख उपांग या मुखांग कहते हैं। ये भोजन को कुतर-कुतरकर खाने के लिए उपयोजित अर्थात् मैन्डीबुलेट होते हैं। मुखद्वार के चारों ओर ये चित्र में दिखाए गए क्रम में स्थित रहते हैं।
1. लैब्रम :
यह मुखद्वार पर, सामने ढकी, सिर कोष की सबसे निचली, चपटी एवं गतिशील, प्लेटनुमा स्कलीराइट होती है। अतः इसे ऊपरी होंठ भी कहते हैं। यह लचीली पेशियों द्वारा क्लाइपियस से जुड़ी होती है। इसका स्वतन्त्र किनारा बीच से कटा होता है। कटाव के दोनों ओर स्वाद-ज्ञान की संवेदी सीटी होती हैं।
2. मैन्डीबल्स :
ये लैब्रम के नीचे, मुखद्वार के पार्यों में एक-एक होते हैं। मजबूत पेशियाँ इन्हें सिर-कोष से जोड़ती हैं। प्रत्येक मैन्डीबल कठोर काइटिन की त्रिकोणाकार-सी रचना होती है। इससे मुख की ओर वाले किनारे पर तीन बड़े और कई छोटे-छोटे मजबूत दाँतों जैसे नुकीले उभार (denticles) होते हैं। इसी किनारे के आधार कोण पर प्रोस्थीका नामक छोटा-सा कोमल भाग होता है जिस पर संवेदी सीटी होती हैं। पेशियों की सहायता से मैन्डीबल्स अनुप्रस्थ दिशा में गतिशील होकर दाँतों के बीच आए भोजन को चबाते हैं।
3. प्रथम मैक्सिली :
ये मुखद्वार के पाश्र्वो में, मैन्डीबल्स के आगे एक-एक होती हैं। प्रत्येक मैक्सिला कई पोडोमीयर्स की बनी होती है। इसके आधार भाग अर्थात् प्रोटोपोडाइट में काडों एवं स्टाइप्स नामक दो पोडोमीयर्स होते हैं। काड पेशियों द्वारा सिर-कोष से तथा स्टाइप्स 99° के कोण पर कारों से जुड़ा होता है। स्टाइप्स के दूरस्थ छोर के बाहरी भाग से एक पतला पंचखण्डीय (five-jointed) बाह्य पादांग (exopodite) जुड़ा होता है। इसे मैक्सिलरी स्पर्शक (maxillary palp) कहते हैं। इसके छोटे आधार पोडोमीयर को पैल्पीफर कहते हैं। स्टाइप्स के छोर से ही जुड़ा अन्त:पादांग (endopodite) होता है। इसमें परस्पर सटी दो पोडोमीयर्स होती हैं-बाहरी गैलिया तथा भीतरी () लैसीनिया (lacinia)। गैलिया कोमल तथा आगे से चौड़ी, छत्ररूपी (hood-like) होती है। लैसीनिया कठोर तथा आगे से नुकीली, पंजेनुमा होती है। इसके सिरे पर दो कण्टिकाएँ तथा भीतरी किनारों पर अनेक नन्हे शूक (bristles) होते हैं। इनके द्वारा प्रथम मैक्सिली भोजन को उस समय पकड़े रहती हैं जब मैन्डीबल्स भोजन को चबाते हैं। लैसीनिया के शूकों द्वारा मैक्सिली, ब्रुश की भाँति, अन्य मुख उपांगों की सफाई भी करती रहती हैं।
4. द्वितीय मैक्सिली :
ये समेकित होकर एक सहरचना बनाती हैं जिसे लेबियम या निचला होंठ (lower lip) कहते हैं; क्योंकि यह मुखद्वार के अधरतल पर ढका होता है। इसका आधार भाग बड़ा-सा चपटा सबमेन्टम होता है जो इसे सिर-कोष से जोड़ता है। सबमेन्टम के आगे छोटा मेन्टम इससे जुड़ा होता है। लेबियम का शेष, शिखर भाग, प्रथम मैक्सिली की ही भाँति पोडोमीयर्स एक जोड़ी रचनाओं का बना होता है जिनके आधार भाग मिलकर प्रीमेन्टम बनाते हैं। सबमेन्टम, मेन्टम और प्रीमेन्टम मिलकर लेबियम का प्रोटोपोडाइट बनाते हैं। प्रीमेन्टम के प्रत्येक पार्श्व में एक पैल्पीजर नामक स्कलीराइट होती है। इससे एक त्रिखण्डीय (three jointed) बाह्यपादांग (exopodite) जुड़ा होता है जिसे लेबियल स्पर्शक (labial palp) कहते हैं। प्रीमेन्टम के छोर पर, मध्य भाग से लगे, दो छोटे ग्लोसी तथा बाहरी भागों से लगे एक-एक बड़े पैराग्लोसी नामक पोडोमीयर्स होते हैं।
ये मिलकर इन मैक्सिली के अन्त:पादांग (endopodites) बनाते हैं। इन्हें मिलाकर लिगूला भी कहते हैं। पैल्प्स के अन्तिम खण्डों तथा पैराग्लोसी पर स्पर्श एवं स्वाद-ज्ञान की संवेदी सीटी होती हैं। यदि मैन्डीबल्स, प्रथम मैक्सिली या द्वितीय मैक्सिली में से किसी भी एक मुख उपांग को काटकर हटा दें तो कॉकरोच की भोजन-ग्रहण की व्यवस्था गड़बड़ा जाएगी। यह न तो भोजन को ठीक से कुतर-कुतरकर खा पाएगा और न ही भोजन के स्पर्श, गन्ध आदि उद्दीपनों को ग्रहण कर पाएगा। इस प्रकार, उपयुक्त पोषण के अभाव में इसकी मृत्यु हो सकती है।
5. हाइपोफैरिंक्स या लिंग्वा :
यह लेबियम के पृष्ठतल पर, लैब्रम से ढका, प्रथम मैक्सिली के बीच में, मुखद्वार के छोर से लगा हुआ बेलनाकार-सा मुख उपांग होता है। इसके स्वतन्त्र छोर पर अनेक संवेदी सीटी होती हैं। आधार भाग पर सहलार नलिका (common salivary duct) का छिद्र होता है।
प्रश्न 12. संयुक्त नेत्र से आप क्या समझते हैं या संयुक्त नेत्र क्या है? तिलचट्टे के एक नेत्रांशक की खड़ी काट क/ मोजैक दृष्टि की क्रियाविधि को विस्तारपूर्वक समझाइए।
उत्तर : संयुक्त नेत्र कॉकरोच में सिर के अग्र भाग के पार्श्व में दोनों ओर दो काले संयुक्त नेत्र होते हैं। ये अवृन्त तथा वृक्काकार होते हैं। संयुक्त नेत्र अनेक दृष्टि एककों (visual elements) से निर्मित होते हैं जिन्हें नेत्रांशक (ommatidia) कहा जाता है। प्रत्येक नेत्रांशक एक स्वतन्त्र एकक है अर्थात् जो वस्तु उसके सामने होती है उसका उतना प्रतिबिम्ब वह बना लेता है। कॉकरोच के संयुक्त नेत्र में लगभग 2,000 नेत्रांशक मिलते हैं। नेत्र के ऊपरी क्यूटिकल का आवरण कॉर्निया (cornea) बनाता है जो अनेक कोष्ठों में बँटा होता है, जिन्हें फलक (facets) कहते हैं। ये फलक षट्कोणीय होते हैं। प्रत्येक फलक के नीचे एक नेत्रांशक (ommatidium) स्थित होता है।
नेत्रांशक (Ommatidium) :
नेत्रांशक को दो भागों डायोप्ट्रिकल (dioptrical) तथा ग्राही भाग (receptor region) में बाँटा जाता है
(i) डायोप्टिकल भाग (Dioptrical Region) :
कॉर्निया का फलक मध्य से मोटा होकर एक द्विउत्तल लेंस (biconvex lens) बनाता है जिसके नीचे दो कॉरनिएजन कोशिकाएँ (corneagen cells) मिलती हैं। ये कोशिकाएँ उपत्वचीय कोशिकाओं को रूपान्तरण हैं। निर्मोचन (moulting) के पश्चात् ये नया कॉर्निया बनाती हैं। इसके पीछे चार शंकु कोशिकाएँ (cone cells) मिलती हैं जो पारदर्शी क्रिस्टलीय शंकु (crystalline cone) के चारों ओर स्थित होती हैं। इस भाग का मुख्य कार्य वस्तु से आने वाली प्रकाश की किरणों को फोकस करना है।
(ii) ग्राही भाग (Receptor Region) :
इसके मध्य में एक लम्बी तरूपी (spindle shaped) छड़ (rod) मिलती है जिस पर अनुप्रस्थ दरारें रेब्डॉम (rhabdome) मिलती हैं। रेब्डॉम को घेरते हुए सात दृष्टि पटल कोशिकाएँ (retinal cells) मिलती हैं जो इसकी रक्षा करती हैं तथा उस तक पोषक पदार्थ पहुँचाती हैं। रेब्डॉम का निर्माण रेटाइनल कोशिकाओं के स्राव से होता है। रेटाइनल कोशिकाएँ तथा रेब्डॉम दूरस्थ सिरे पर आधार कला (basement membrane) पर आधारित व तन्त्रिका तन्तुओं से सम्बन्धित होते हैं। इस भाग पर प्रतिबिम्ब बनता है।
नेत्रांशक एक-दूसरे से वर्णक परतों द्वारा पृथक् होते हैं। वर्णक परतें वर्णक अमीबा समान कोशिकाओं (pigmented amoeboid cells) द्वारा निर्मित होती हैं। दो नेत्रांशकों के मध्य की वर्णक परत दो वर्णक समूहों से बनती है। डायोप्ट्रिकल भाग में मिलने वाला वर्णक समूह आइरिस वर्णक समूह (iris pigment group) तथा रेटाइनल भाग में मिलने वाला वर्णक समूह रेटाइनल वर्णक समूह (retinal pigment group) कहलाता है।
प्रश्न13 लाल रुधिर कणिकाएँ प्राणियों के शरीर में कहाँ मिलते हैं? लाल रुधिराणुओं के कार्य ।
उत्तर :लाल रुधिर कणिकाएँ कशेरुकी जन्तुओं (vertebrates) में ही पाई जाती हैं। मानव में लाल रुधिराणु 75-8μ व्यास तथा 1-2μ मोटाई के होते हैं। पुरुषों में इनकी संख्या लगभग 50 से 55 लाख किन्तु स्त्रियों में लगभग 45 से 50 लाख प्रति घन मिमी होती है। ये गोलाकार एवं उभयावतल (biconcave) होती हैं। निर्माण के समय इनमें केन्द्रक (nucleus) सहित सभी प्रकार के कोशिकांग (cell organelle) होते हैं किन्तु बाद में केन्द्रक, गॉल्जीकाय, माइटोकॉन्ड्रिया, सेन्ट्रियोल आदि संरचनाएँ लुप्त हो जाती हैं, इसीलिए स्तनियों के लाल रुधिराणुओं को केन्द्रकविहीन (non-nucleated) कहा जाता है। ऊँट तथा लामा में लाल रुधिराणु केन्द्रकयुक्त (nucleated) होते हैं। लाल रुधिराणुओं में हीमोग्लोबिन (haemoglobin) प्रोटीन होती है। स्तनियों में इनका जीवनकाल लगभग 120 दिन होता है। वयस्क अवस्था में इनका निर्माण लाल अस्थिमज्जा में होता है। हीमोग्लोबिन, हीम (haem) नामक वर्णक तथा ग्लोबिन (globin) नामक प्रोटीन से बना होता है। हीम पादपों में उपस्थित क्लोरोफिल के समान होता है, जिसमें क्लोरोफिल के मैग्नीशियम के स्थान पर हीमोग्लोबिन में लौह (Fe) होता है।
हीमोग्लोबिन के एक अणु का निर्माण हीम के 4 अणुओं के एक ग्लोबिन अणु के साथ संयुक्त होने से होता है। हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन परिवहन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
लाल रुधिराणुओं के कार्य ।
लाल रुधिराणुओं के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
यह एक श्वसन वर्णक है। यह ऑक्सीजन वाहक (oxygen carrier) के रूप में कार्य करता है। हीमोग्लोबिन का एक अणु ऑक्सीजन के चार अणुओं का संवहन करता है।
शरीर के अन्त:वातावरण में pH सन्तुलन को बनाए रखने में हीमोग्लोबिन सहायता करता है।
कार्बन डाइऑक्साइड का परिवहन (transport) कार्बोनिक एनहाइड्रेज (carbonic anhydrase) नामक एन्जाइम की उपस्थिति में ऊतकों से फेफड़ों की ओर करता है