बिहार बोर्ड कक्षा 11 रसायन विज्ञान अध्याय 12 कार्बनिक रसायन: कुछ आधारभूत सिद्धांत तथा तकनीकें दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. चयावयवता का वर्णन कीजिए।
उत्तर : यह एक विशेष प्रकार की संरचनात्मक समावयवता है जिनमें दो संरचनात्मक समावयवी सरलता से एक-दूसरे में परिवर्तित हो जाते हैं तथा समावयवियों के मध्य साम्यावस्था विद्यमान होती है। वह परिघटना जिसमें दो संरचना समावयवी सरलता में एक-दूसरे में परिवर्तित हो जाते हैं और परस्पर साम्यवस्था में रहते हैं चलावयव या चलावयवी रूप कहलाते हैं।
यौगिक विभिन्न प्रकार की चलावयवता प्रदर्शित करते हैं जिनमें कीटो-ईनोल चलावयवता प्रमुख है। ऐल्डिहाइड और कीटोन जिनमें कार्बोनिल समूह के निकटवर्ती कार्बन परमाणु पर एक या अधिक हाइड्रोजन परमाणु उपस्थित होते हैं। कीटो-ईनोल चलावयवता प्रदर्शित करते हैं। कीटो-ईनोल चलावयवता -हाइड्रोजन परमाणु का निकटवर्ती कार्बोनिल समूह के ऑक्सीजन परमाणु पर अभिगमन होने में उत्पन्न होती है।
प्रश्न 2. ज्यामितीय समावयवता को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर : प्राय: कार्बन-कार्बन युग्म बन्ध युक्त वे यौगिक जिनमें युग्म-बन्धित कार्बन परमाणु में जुड़े दो परमाणु या समूह भिन्न प्रकार के होते हैं, ज्यामितीय समावयवता प्रदर्शित करते हैं, यह समावयवता युग्म बन्ध के चारों ओर सीमित घूर्णन के कारण उत्पन्न होती है।
उदाहरणार्थ- 2-ब्यूटीन की। निम्नलिखित दो त्रिविम संरचनाएँ सम्भव हैं-
ये दो त्रिविम संरचनाएँ (I एवं II) 2-ब्यूटीन के दो ज्यामितीय समावयवियों को प्रदर्शित करती हैं जो सिस-ट्रान्स समावयवी कहलाते हैं। जिन ज्यामितीय समावयवी में समान समूह एक ही पथ में होते हैं। उसे सीस-समावयवी या समकक्ष रूप और जिनमें समान विपरीत पक्षों में होते हैं उसे ट्रांस -समावयवी या विपक्ष रूप कहते हैं।
प्रश्न 3. आप कार्बनिक यौगिक में नाइट्रोजन की पहचान कैसे करेंगे?
या
लैंसे परीक्षण के रसायन का वर्णन कीजिए।
उत्तर : नाइट्रोजन की पहचान—किसी कार्बनिक यौगिक में नाइट्रोजन की पहचान निम्न परीक्षणों द्वारा की जाती है ।
1. सोडा-लाइम परीक्षण–यौगिक की थोड़ी मात्रा को सोडा-लाइम (NaOH + CaO ) के साथ तेज गर्म करते हैं। मिश्रण में से अमोनिया की गंध यौगिक में नाइट्रोजन की उपस्थिति दर्शाती है।
इस परीक्षण की सीमा यह है कि अनेक कार्बनिक यौगिक (जैसे नाइट्रो और डाइएजो यौगिक) इन परिस्थितियों में अमोनिया उत्पन्न नहीं करते हैं।
2. लैंसे परीक्षण–इस परीक्षण का उपयोग न केवल नाइट्रोजन बल्कि अन्य तत्त्वों; जैसे सल्फर और हैलोजनों की उपस्थिति की जाँच के लिए भी किया जाता है। नाइट्रोजन की उपस्थिति की जाँच के लिए यह परीक्षण निम्न दो पदों में किया जाता है।
(1) लैंसे निष्कर्ष तैयार करना–सोडियम धातु के एक छोटे से टुकड़े को फिल्टर पेपर द्वारा सुखाकर एक साफ और शुष्क ज्वलन नली में लेते हैं। इस ज्वलन नली को बुन्सन बर्नर की ज्वाला में धीरे-धीरे गर्म करते हैं। जब सोडियम धातु पिघलकर पारे की तरह चमकने लगता है तब ज्वलन नली में कार्बनिक यौगिक की थोड़ी मात्रा डाल देते हैं। अब ज्वलन नली को पहले धीरे-धीरे और फिर तेजी से गर्म करते हैं। जब ज्वलन नली का नीचे का भाग लाल हो जाता है तब इस रक्त-तप्त नली को चाइना डिश में लिए गए 10-15 mL आसुत जल में डाल देते हैं। चाइना डिश में उपस्थित विलयन को थोड़ी देर उबालकर ठंडा , कर लेते हैं और फिर इसे छान लेते हैं। छानने से प्राप्त हुए निस्वंद को लैंसे निष्कर्ष या सोडियम निष्कर्ष कहते हैं। सोडियम धातु के यौगिक के साथ संगलित होने पर यौगिक में उपस्थित तत्त्व सहसंयोजी रूप से आयनिक रूप में परिवर्तित हो जाते हैं।
(2) नाइट्रोजन के लिए परीक्षण- एक परखनली में 1 mL लैंसे निष्कर्ष लेकर उसमें तनु सोडियम हाइड्रॉक्साइड विलयन की कुछ बूंदें डालते हैं। इससे लैंसे निष्कर्ष क्षारकीय हो जाता है। सामान्यतः लैंसे निष्कर्ष की प्रकृति क्षारकीय ही होती है। परखनली में 2 mL ताजा बना हुआ फेरस सल्फेट का सान्द्र विलयन डालकर परखमली को गर्म करते हैं। विलयन को ठंडा करके उसमें कुछ बूंद फेरिक क्लोराइड विलयन डालते हैं और फिर उसमें तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल डालकर उसे अम्लीय करते हैं।
यदि विलयन का रंग प्रशियन नीला हो जाता है तो यह यौगिक में । नाइट्रोजन की उपस्थिति दर्शाता है। परीक्षण में निम्न अभिक्रियाएँ होती हैं।
जब यौगिक में नाइट्रोजन और सल्फर दोनों उपस्थित होते हैं तो संगलन के परिणामस्वरूप’. सोडियम सल्फोसायनाइड बनता है। यह फेरिक आयनों से अभिक्रिया करके रक्त लाल रंग का फेरिक सल्फोसायनाइड बनाता है।
उपरोक्त अभिक्रिया में सोडियम सल्फोसायनाइड अपर्याप्त सोडियम के कारण बनता है। जब सोडियम आधिक्य में उपस्थित होता है तो सोडियम सल्फोसायनाइड अपघटित होकर सोडियम सायनाइड और सोडियम सल्फाइड बनाता है।
इस स्थिति में यौगिक में सल्फर के उपस्थित होने पर भी रक्त लाल रंग प्राप्त नहीं होता है। अत: रक्त लाल रंग की अनुपस्थिति से यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता है कि यौगिक में सल्फर अनुपस्थित है।
प्रश्न 4. प्रकाशिक समावयवता को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : प्रकाशिक समावयवता एक प्रकार की त्रिविम समावयवता है तो उन कार्बनिक यौगिकों द्वारा दर्शायी जाती है जिनके अणु विसममित अर्थात् किरेल होते हैं। प्रकाशिक समावयवी समतल ध्रुवित प्रकाश के प्रति भिन्न व्यवहार प्रदर्शित करते हैं जो त्रिविम समावयवी ध्रुवित प्रकाश के तल को दक्षिणावर्त घुमाता है उसे दक्षिण ध्रुवण-घूर्णक ओर जो त्रिविम समावयवी ध्रुवित प्रकाश के तल को वामावर्त घुमाता है उसे वाम ध्रुवण-घूर्णक कहते हैं। ध्रुवण अघूर्णक प्रकाशिक समावयवी मेसो समावयवी कहलाते हैं। मेसो समावयवियों के अणु सममित होते हैं। प्रकाशिक समावयवियों के रासायनिक गुण में तो समानता होती है परन्तु उनके भौतिक गुण समान या भिन्न हो सकते हैं।
उदाहरणार्थ- लैक्टिक अम्ल की प्रकाशिक समावयवता
प्रश्न 5. एक यौगिक का सूत्र CH2OH-CHCl-CHOH-CHOH-CHCl-CH2OHहै। यौगिक के प्रकाशिक संमावयवियों की गणना कीजिए।
उत्तर :
यौगिक CH2OH-CHCl-CHOH-CHOH-CHCl-CH2OH के अणु में असममित कार्बन परमाणुओं की संख्या (n) चार है।
यौगिक के अणु को एक जैसे दो बराबर भागों में विभाजित किया जा सकता है तथा अणु में असममित परमाणुओं की संख्या सम है। अतः ऐसी स्थिति में यौगिक के,
ध्रुवण-घूर्णक समावयवियों की संख्या, a = 2(n-1)=2(4-1)=8
मेसो-समावयवियों की संख्या, m=2(n2-1)=2(2-1)=2
और प्रकाशिक समावयवियों की संख्या =a+m=8+2=10
प्रश्न 6. होमोलिटिक तथा हेटरोलिटिक विदलन को एक उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर : एक सह-संयोजी बन्ध दो परमाणुओं के मध्य इलेक्ट्रॉन युग्म की साझेदारी द्वारा बनता है। इस प्रकार संयुक्त दो परमाणुओं को एक-दूसरे से अलग होना बन्ध का विदलन या विखण्डन कहलाता है।
(i) होमोलिटिक विदलन या समांग विखण्डन—यह वह प्रक्रम है जिसमें पृथक् होने वाली प्रत्येक परमाणु सह-संयोजी बन्ध के इलेक्ट्रॉन युग्म से एक इलेक्ट्रॉन लेकर पृथक् होता है। इस विदलन द्वारा उत्पन्न खण्डों के पास सह-संयोजक बन्ध का एक-एक इलेक्ट्रॉन होता है। इन खण्डों को मुक्त मूलक कहते हैं।
उदाहरणार्थ-
(ii) हेटरोलिटिक विदलन या विषमांग विखण्डन-इस विदलन में बन्ध के साझे का इलेक्ट्रॉन युग्म । किसी भी परमाणु या खण्ड के साथ चला जाता है और दो आयन बनते हैं।
जब R+ एक ऐसा समूह होता है जिसके कार्बन परमाणु पर धनावेश होता है तो इसे कार्बोनियम आयनं कहते हैं तथा जब R- के कार्बन परमाणु पर ऋणावेश होता है तो इसे कार्बनायन कहते हैं।
प्रश्न 7. अनुनाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर : ऐसे अनेक कार्बनिक यौगिक ज्ञात हैं जिनके सभी गुणों को केवल एक लूईस संरचना द्वारा पूर्णतः प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है। ऐसे में यौगिक के अणु को अनेक ऐसी संरचनाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है जिनमें से प्रत्येक अणु के अधिकांश गुणों की व्याख्या करती है, परन्तु कोई भी अणु के सभी गुणों की व्याख्या नहीं करती है। ऐसे में अणु की वास्तविक संरचना इन सभी योगदान करने वाली संरचनाओं (जिन्हें अनुनाद संरचनाएँ या विहित संरचनाएँ कहते हैं) की मध्यवर्ती होती है तथा इसे सभी लूईस संरचनाओं का अनुनाद संकर कहते हैं। इस परिघटना को अनुनाद या मीसोमेरिकता कहते हैं।
वास्तव में अनुनाद संरचनाओं या विहित संरचनाओं का कोई अस्तित्व नहीं है। वास्तव में अणु की केवल एक ही संरचना होती है जो कि विभिन्न विहित संरचनाओं का अनुनाद संकर होता है तथा इसे एक लूईस संरचना द्वारा प्रदर्शित नहीं किया जा सकता है। किसी अणु की विभिन्न संरचनाओं को चिह्न (+) द्वारा पृथक् करके लिखा जाता है। बेंजीन भी एक ऐसा ही यौगिक है जिसके व्यवहार को केवल एक लूईस संरचना द्वारा समझाया नहीं जा सकता है। बेंजीन को निम्न दो अनुनादी संरचनाओं का अनुनाद संकर माना जाता है।
प्रश्न 8. अनुनाद प्रभाव या मीसोमेरिक प्रभाव को समझाइए।
उत्तर : संयुग्मित निकायों (जिनमें एकान्तर से एकल और द्विआबन्ध होते हैं) में अनुनाद के कारण निकाय के एक भाग से दूसरे भाग में इलेक्ट्रॉनों का विस्थापन होता है जिसके कारण उच्च तथा निम्न इलेक्ट्रॉन घनत्व के केन्द्र बन जाते हैं। यह प्रभाव अनुनाद प्रभाव अथवा मीसोमेरिक प्रभाव कहलाता है। यह दो प्रकार का होता है।
1. धनात्मक अनुनाद प्रभाव—यह प्रभाव उन समूहों द्वारा दर्शाया जाता है जो द्विआबन्ध अथवा एक संयुग्मित निकाय को इलेक्ट्रॉन दान देते हैं। -Cl , -Br , I , -NH2 , -NR2 , -OH , -OR , -SH-SR आदि ऐसे समूहों के उदाहरण हैं।
2. ऋणात्मकं अनुनाद प्रभाव—यह प्रभाव उन समूहों द्वारा दर्शाया जाता है जो द्विआबन्ध या संयुग्मित निकाय से इलेक्ट्रॉन अपनी ओर विस्थापित करते हैं।
प्रश्न 9. अतिसंयुग्मन प्रभाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर : संतृप्त निकाय पर ऐल्किल समूहों के प्रेरणिक प्रभाव का क्रम निम्न होता है
(CH3)3 C-(CH3)3 C->CH3CH2->CH3-
परन्तु जब ऐल्किल समूह किसी असंतृप्त निकाय से जुड़ा होता है तो प्रेरणिक प्रभाव का क्रम उल्टा हो । जाता है। यह प्रभावं अतिसंयुग्मन प्रभाव कहलाता है। चूंकि इस प्रभाव को सर्वप्रथम बेकर तथा नाथन ने देखा इसलिए इस प्रभाव को बेकर-नाथन प्रभाव भी कहते हैं।
अतिसंयुग्मन में द्विआबन्ध के p-कक्षकों तथा समीपवर्ती एकल आबन्ध के 6-कक्षक के अतिव्यापन के द्वारा 5-इलेक्ट्रॉनों का विस्थानीकरण होता है। अत: इसमें -7 संयुग्मन होता है। वास्तव में अतिसंयुग्मन प्रभाव अनुनाद प्रभाव का ही विस्तार है। चूंकि अतिसंयुग्मन -H परमाणुओं के द्वारा होता है, इसलिए O-H परमाणुओं की संख्या जितनी अधिक होती है, उतनी ही अधिक अतिसंयुग्मी संरचनाएँ होती हैं और प्रभाव भी उतना ही अधिक होता है। मेथिल समूह, एथिल समूह, आइसोप्रोपिल समूह तथा तृतीयक-ब्यूटिल समूह के साथ हाइड्रोजन परमाणुओं की संख्या क्रमशः 3 , 2 , 1 तथा 0होती है अतः इन विभिन्न समूहों के लिए अतिसंयुग्मन प्रभाव का क्रम निम्न होता है-
प्रश्न 10. इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर : यदि प्रतिस्थापन अभिक्रिया इलेक्ट्रॉनस्नेही अभिकर्मक द्वारा सम्पन्न होती है तो उसे इलेक्ट्रॉनस्नेही प्रतिस्थापन अभिक्रिया कहते हैं। इसे SE(S= substitution तथा E= electrophilic) से प्रकट करते हैं तथा SE1 और SE2 में 1 तथा 2 कोटि को प्रकट करते हैं। ऐरोमैटिक प्रतिस्थापन; जैसे-हैलोजनीकरण, नाइट्रीकरण तथा सल्फोनीकरण SE2 प्रकार के इलेक्ट्रोफिलिक (इलेक्ट्रॉनस्नेही) प्रतिस्थापन हैं।
उदाहरणार्थ-
प्रश्न 11. ऐल्काइनों की हाइड्रोजन हैलाइडों से योग क्रिया किस प्रकार की अभिक्रिया है ? इसकी क्रियाविधि समझाइए।
या
इलेक्ट्रॉनस्नेही योगात्मक अभिक्रिया को उदाहरण देते हुए समझाइए।
उत्तर : यदि योगात्मक अभिक्रिया इलेक्ट्रॉनस्नेही अभिकर्मक द्वारा सम्पन्न होती है तो उसे इलेक्ट्रॉनस्नेही योगात्मक अभिक्रिया कहते हैं। प्रश्न में उल्लिखित अभिक्रिया भी एक इलेक्ट्रॉनस्नेही योगात्मक (संकलन) अभिक्रिया है। ऐल्कीनों में हाइड्रोजन हैलाइड का योग कार्बन-कार्बन युग्म बन्ध पर दो पदों में होता है। पहले पद में ऐल्किल हाइड्रोजन हैलाइड से प्रोटॉन H+ (इलेक्ट्रॉनस्नेही) ग्रहण करती है और कार्बोधनायन (मध्यवर्ती) तथा हैलाइड आयन बनाती है। दूसरे पद में कार्बोधनायन हैलाइड आयन से संयोग करता है और ऐल्किल हैलाइड बनाता है।
उदाहरणार्थ- एथिलीन में HBr का योग
प्रश्न 12. नाभिकस्नेही योगात्मक अभिक्रिया का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
उत्तर : यदि योगात्मक अभिक्रिया नाभिकस्नेही अभिकर्मक द्वारा सम्पन्न होती है तो उसे नाभिकस्नेही योगात्मक अभिक्रिया कहते हैं।
उदाहरणार्थ- मेथेनल (फॉर्मेल्डिहाइड) पर HCN का योग
ऐल्डिहाइड और कीटोन मुख्यत: इसी प्रकार की अभिक्रियाएँ करते हैं।
प्रश्न 13. मुक्त मूलक योगात्मक अभिक्रिया को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर : यदि योगात्मक अभिक्रिया मुक्त मूलक अभिकर्मक द्वारा सम्पन्न होती है तो उसे मुक्त मूलक योगात्मक अभिक्रिया कहते हैं।
उदाहरणार्थ- परॉक्साइड की उपस्थिति में ऐल्कीनों पर HBr का योग।
प्रश्न 14. किसी ऐल्किल हैलाइड के विहाइड्रोहैलोजनीकरण की अभिक्रिया की क्रिया-विधि समझाइए।
या
-विलोपन अभिक्रियाएँ क्या हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर : जिन अभिक्रियाओं में परमाणुओं अथवा समूहों को विलोपन क्रियाधार अणु के एक ही परमाणु में होता है, वे -विलोपन अभिक्रियाएँ कहलाती हैं। विहाइड्रोहैलोजनीकरण -विलोपन अभिक्रिया का उदाहरण है। ऐल्किल हैलाइडों को ऐल्कोहॉलीय KOH के साथ उबालने पर ऐल्कीन प्राप्त होते हैं;
जैसे- आइसोप्रोपिल ब्रोमाइड प्रोपीन देता है।
यह अभिक्रिया विहाइड्रोहैलोजनीकरण कहलाती है। इस अभिक्रिया में हाइड्रोजन एक कार्बन परमाणु से तथा हैलोजन निकटवर्ती दूसरे कार्बन परमाणु से HBr के रूप में विलोपित होता है। इस अभिक्रिया की क्रिया-विधि (SN2) एक ही पद में निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त की जाती है।
प्रश्न 15. -विलोपन अभिक्रियाएँ क्या होती हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
या
निर्जलीकरण अभिक्रिया की क्रिया-विधि को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर : जिन अभिक्रियाओं में परमाणुओं या समूहों का विलोपन क्रियाधार अणु के समीपवर्ती परमाणुओं में होता है, वे -विलोपन अभिक्रियाएँ कहलाती हैं।
उदाहरणार्थ-सान्द्र H2SO4 , H3SO4 निर्जल ZnCl2 आदि निर्जलीकारक पदार्थ ऐल्कोहॉल का निर्जलीकरण करके ऐल्कीन बनाते हैं।
ऐल्कीन ऐल्कोहॉलों के निर्जलीकरण की क्रिया-विधि को निम्नलिखित पदों में प्रकट कर सकते हैं।
(1) ऐल्कोहॉलों के -OH समूह में इलेक्ट्रॉन के दो एकाकी युग्म होते हैं। इनमें से एक युग्म प्रयुक्त अम्ल से एक प्रोटॉन ग्रहण करके प्रोटॉनयुक्त ऐल्कोहॉल या ऑक्सोनियम आयन बना लेता है।
(2) ऑक्सोनियम आयन जल तथा कार्बोनियम आयन में विघटित हो जाता है।
(3) कार्बोनियम आयन के कार्बन परमाणु पर केवल 6 इलेक्ट्रॉन होते हैं। इसलिए यह एक इलेक्ट्रॉन युग्म ग्रहण करने की प्रवृत्ति रखती है। इस स्थिति में पास का कार्बन परमाणु हाइड्रोजन आयन पृथक् करता है और ऐल्कीन अणु उत्पन्न होता है।
प्रश्न 16. नाइट्रीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर : जब किसी ऐल्केन के हाइड्रोजन परमाणु को नाइट्रो (-NO2) मूलक द्वारा प्रतिस्थापित करते हैं, तो नाइट्रोऐल्केन उत्पाद प्राप्त होता है। इस प्रकार के प्रतिस्थापन को नाइट्रीकरण कहते हैं।
सामान्यतया ऐल्केन नाइट्रिक अम्ल के साथ साधारण परिस्थितियों में कोई अभिक्रिया नहीं दर्शाते हैं। लेकिन उच्च ताप पर जब ऐल्केन व नाइट्रिक अम्ल के वाष्पों को अधिक ताप (300-450°C) पर गर्म किया जाता है, तो नाइट्रोऐल्केन प्राप्त होते हैं। इस अभिक्रिया को वाष्प नाइट्रीकरण कहते हैं।
प्रश्न 17. आप कार्बनिक यौगिक में कार्बन और हाइड्रोजन की पहचान कैसे करेंगे?
उत्तर : किसी यौगिक में कार्बन तथा हाइड्रोजन की उपस्थिति की जाँच एक ही परीक्षण द्वारा हो जाती है। इस परीक्षण में यौगिक को कॉपर (II) ऑक्साइड के साथ गर्म करते हैं। ऐसा करने पर यौगिक में उपस्थित कार्बन तथा हाइड्रोजन क्रमशः डाइऑक्साइड तथा जल में परिवर्तित हो जाते हैं।
कार्बन डाइऑक्साइड चूने के पानी को दूधिया कर देती है और जल निर्जल कॉपर सल्फेट को नीला कर देता है।
प्रश्न 18. आप कार्बनिक यौगिक में सल्फर की पहचान कैसे करेंगे?
उत्तर : किसी कार्बनिक यौगिक में सल्फर की उपस्थिति की जाँच निम्न परीक्षणों के द्वारा की जाती है।
1. ऑक्सीकरण परीक्षण कार्बनिक यौगिक को पोटैशियम नाइट्रेट और सोडियम कार्बोनेट के मिश्रण के साथ संगलित करते हैं। इससे उसमें उपस्थित सल्फर सल्फेट में ऑक्सीकृत हो जाता। है।
संगलित पदार्थ को जल के साथ निष्कर्षित करके इसे उबालते हैं और फिर इसे छान लेते हैं। निस्वंद में सोडियम सल्फेट होता है। निस्वंद में तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल डालकर उसे अम्लीकृत करते हैं और फिर उसमें बेरियम सल्फेट विलयन डालते हैं। सफेद अवक्षेप की प्राप्ति यौगिक में सल्फर की उपस्थिति दर्शाती है।
2. लैंसे परीक्षण–सर्वप्रथम लैंसे निष्कर्ष तैयार करते हैं। यदि यौगिक में सल्फर उपस्थित होता है। तो वह सोडियम से अभिक्रिया करके सोडियम सल्फाइड बनाता है।
अतः लैंसे निष्कर्ष में सोडियम सल्फाइडे उपस्थित होता है। अब इस निष्कर्ष को दो भागों में बाँट देते हैं। पहले भाग को तनु ऐसीटिक अम्ल से अम्लीकृत करके उसमें लेड ऐसीटेट विलयन की कुछ बूंदें मिलाते हैं। यदि काला अवक्षेप प्राप्त होता है तो यह यौगिक में सल्फर की उपस्थिति को दर्शाता है।
लैंसे निष्कर्ष के दूसरे भाग में सोडियम नाइट्रोभुसाइड की कुछ बूंदें डालते हैं। यदि विलयन बैंगनी हो जाता है तो यह यौगिक में सल्फर की उपस्थिति को दर्शाता है।
प्रश्न 19. आप कार्बनिक यौगिकों में हैलोजनों की पहचान कैसे करेंगे?
उत्तर : किसी कार्बनिक यौगिक में हैलोजनों की जाँच निम्न परीक्षणों द्वारा की जाती है-
1. बेलस्टीन परीक्षण–एक साफ कॉपर के तार को बुन्सन बर्नर की ऑक्सीकारी ज्वाला में तब तक गर्म करते हैं जब तक कि वह ज्वाला को हरा या नीला रंग देना बंद नहीं कर देता। अब इस गर्म तार को यौगिक में डुबाकर दोबारा से बुन्सन बर्नर की ज्वाला में गर्म करते हैं। ज्वाला का रंग दोबारा से हरा या नीला हो जाना यौगिक में हैलोजनों की उपस्थिति दर्शाता है। इस परीक्षण की कुछ सीमाएँ भी हैं। इस परीक्षण द्वारा यह पता नहीं चलता है कि यौगिक में कौन-सा हैलोजन है। दूसरे, कुछ ऐसे पदार्थ जिनमें हैलोजन नहीं होते हैं, वे भी यह परीक्षण देते हैं। यूरिया, थायोयूरिया आदि ऐसे पदार्थों के उदाहरण हैं।
2. लैंसे परीक्षण–इस परीक्षण के लिए पहले लैंसे निष्कर्ष तैयार करते हैं। लैंसे निष्कर्ष तैयार करने में जब कार्बनिक यौगिक को सोडियम के साथ संगलित करते हैं तब कार्बनिक यौगिक में उपस्थित हैलोजन सोडियम के साथ संयोग करके सोडियम हैलाइड बनाते हैं। ये सोडियम हैलाइड लैंसे निष्कर्ष में उपस्थित होते हैं।
लैंसे निष्कर्ष के एक भाग को तनु नाइट्रिक अम्ल के साथ उबालकर तथा फिर उसे ठण्डा करके उसमें सिल्वर नाइट्रेट विलयन की कुछ बूंदें मिलाते हैं। अवक्षेप का बनना हैलोजन की उपस्थिति दर्शाता है।
अवक्षेप अवक्षेप के रंग और उसकी अमोनियम हाइड्रॉक्साइड में विलेयता के आधार पर कार्बनिक यौगिक में उपस्थित हैलोजन की पहचान की जाती है।
(1) सफेद अवक्षेप बनता है जो अमोनियम हाइड्रॉक्साइड में घुल जाता है—क्लोरीन उपस्थित
(2) हल्का पीला अवक्षेप जो अमोनियम हाइड्रॉक्साइड में कम घुलता है—ब्रोमीन उपस्थित
(3) गहरा पीला अवक्षेप जो अमोनियम हाइड्रॉक्साइड विलयन में बिल्कुल भी नहीं घुलता हैआयोडीन उपस्थित
3. कार्बन डाइसल्फाइड परीक्षण–इस परीक्षण का प्रयोग ब्रोमीन और आयोडीन की जाँच के लिए किया जाता है। इसमें लैंसे निष्कर्ष को नाइट्रिक अम्ल से अम्लीकृत करके उसमें क्लोरीन जल की कुछ बूंदें डाल देते हैं। फिर इस विलयन में कार्बन डाइसल्फाइड या कार्बन टेट्राक्लोराइड मिलाकर इसे हिलाते हैं। कार्बन डाइसल्फाइड या कार्बन टेट्राक्लोराइड पर्त का नारंगी रंग यौगिक में ब्रोमीन की उपस्थिति दर्शाता है जबकि इसका बैंगनी रंग यौगिक में आयोडीन की उपस्थिति दर्शाता है।
अम्लीकृत लैंसे निष्कर्ष (सोडियम हैलाइड) में क्लोरीन जल डालने पर मुक्त Br2 और I2 उत्सर्जित होती हैं जो कार्बन डाइसल्फाइड यो कार्बन टेट्राक्लोराइड में घुलकर उन्हें क्रमशः नारंगी तथा बैंगनी रंग प्रदान करती हैं।
2NaBr +Cl2 2NaCl + Br2 ( CS2 या CCl4 में नारंगी रंग)
2NaI +Cl2 2NaCl + I2 ( CS2 या CCl4 में बैंगनी रंग)
प्रश्न 20. आप कार्बनिक यौगिक में ऑक्सीजन व फॉस्फोरस की पहचान कैसे करेंगे?
उत्तर : ऑक्सीजन की पहचान–किसी कार्बनिक यौगिक में ऑक्सीजन की उपस्थिति की जाँच के लिए कोई प्रत्यक्ष विधि उपलब्ध नहीं है। इसकी जाँच सामान्यत: निम्नांकित अप्रत्यक्ष विधियों द्वारा की जाती है।
(1) कार्बनिक यौगिकों की ऑक्सीजन युक्त क्रियात्मक समूहों -OH , COOH , CHO , -NO के लिए जाँच करते हैं। यदि किसी यौगिक में इनमें से कोई क्रियात्मक समूह उपस्थित होता है तो यह यौगिक में ऑक्सीजन की उपस्थिति दर्शाता है।
(2) कार्बनिक यौगिक में उपस्थित अन्य तत्त्वों की प्रतिशतताएँ ज्ञात करते हैं। यदि इन प्रतिशतताओं का योग 100 से कम होता है तो यह यौगिक में ऑक्सीजन की उपस्थिति दर्शाता है। इनका अंतर यौगिक में ऑक्सीजन का प्रतिशत बताता है।
फॉस्फोरस की पहचान–कार्बनिक यौगिक को सोडियम परॉक्साइड (ऑक्सीकारक) के साथ संगलित करते हैं जिससे सोडियम फॉस्फेट बनता है। संगलित पदार्थ का जल के साथ निष्कर्षण करके उसे छान लेते हैं। निस्वंद जिसमें सोडियम फॉस्फेट उपस्थित होता है, को सान्द्र नाइट्रिक अम्ल के साथ उबालकर उसमें अमोनियम मॉलिब्डेट विलयन मिलाते हैं। | पीले अवक्षेप अथवा पीले रंग की प्राप्ति कार्बनिक यौगिक में फॉस्फोरस की उपस्थिति दर्शाती है।
प्रश्न 21. कार्बनिक यौगिक में कार्बन और हाइड्रोजन का निर्धारण कैसे किया जाता है? समझाइए।
उत्तर : कार्बनिक यौगिकों में कार्बन और हाइड्रोजन का निर्धारण लीबिग की दहन विधि द्वारा किया जाता है। कार्बन और हाइड्रोजन का निर्धारण एक ही प्रयोग द्वारा हो जाता है। इसमें कार्बनिक यौगिक की ज्ञात मात्रा को शुद्ध शुष्क ऑक्सीजन (आर्द्रता और कार्बन डाइऑक्साइड रहित) के वातावरण में कॉपर (II) ऑक्साइड के साथ गर्म करते हैं। इससे कार्बनिक यौगिक में उपस्थित कार्बन, कार्बन डाइऑक्साइड में तथा हाइड्रोजन, जल में ऑक्सीकृत हो जाते हैं।
उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड U-नली में लिए गए सान्द्र पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड विलयन द्वारा अवशोषित कर ली जाती है जबकि उत्पन्न जल एक अन्य U-नली में लिए गए निर्जल कैल्सियम क्लोराइड द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है।
इससे सान्द्र पोटैशियम हाइड्रॉक्साइड विलयन तथा कैल्सियम क्लोराइड के द्रव्यमानों में वृद्धि से क्रमश: कार्बन डाइऑक्साइड और जल की मात्राएँ ज्ञात कर लेते हैं। इनसे कार्बन तथा हाइड्रोजन की, प्रतिशतता की गणना कर लेते हैं।
प्रश्न 22. कार्बनिक यौगिक में ऑक्सीजन का निर्धारण करने की विधि लिखिए।
उत्तर : कार्बनिक यौगिक में ऑक्सीजन की प्रतिशतता की गणना कुल प्रतिशतता (100) में से अन्य तत्त्वों की प्रतिशतताओं के योग को घटाकर की जाती है। ऑक्सीजन का प्रत्यक्ष निर्धारण निम्नविधि से भी किया जा सकता है।
कार्बनिक यौगिक की एक निश्चित मात्रा नाइट्रोजन गैस की धारा में गर्म करके अपघटित की जाती है। प्राप्त ऑक्सीजनयुक्त गैसीय मिश्रण को रक्त-तप्त कोक पर प्रवाहित करते हैं जिससे सारी ऑक्सीजन कार्बन मोनो-ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाती है। तत्पश्चात् गैसीय मिश्रण को हल्के गर्म आयोडीन पेन्टाऑक्साइड (I2O5) में प्रवाहित करते हैं जिससे कार्बन मोनोऑक्साइड कार्बन डाइऑक्साइड में ऑक्सीकृत हो जाती है और आयोडीन मुक्त होती है।
ऑक्सीजन की प्रतिशतता का आकलन मुक्त कार्बन डाइऑक्साइड अथवा आयोडीन की मात्रा से किया जा सकता है।
प्रश्न 23. कैल्सियम सल्फेट तथा कपूर के मिश्रण के अवयवों को पृथक करने के लिए एक उपयुक्त तकनीक बताइए।
उत्तर : कैल्सियम सल्फेट तथा कपूर के मिश्रण को निम्न विधियों द्वारा पृथक् किया जा सकता है-
(1) कपूर ऊर्ध्वपातनीय है लेकिन कैल्सियम सल्फेट नहीं। अत: मिश्रण को ऊर्ध्वपातित करने पर कपूर फनल के किनारों पर प्राप्त हो जाता है जबकि कैल्सियम सल्फेट चाइना डिश में शेष रह जाता है।
(2) कपूर कार्बनिक विलायकों, जैसे- CCl4 , CHCl3 आदि में विलेय होता है लेकिन कैल्सियम सल्फेट नहीं। अतः मिश्रण को कार्बनिक विलायक के साथ हिलाने पर कपूर विलयन में चला जाता है जबकि CaSO4 अपशिष्ट रूप में रहता है। विलयन को छानकर, वाष्पित करके कपूर को प्राप्त कर लेते हैं।
प्रश्न 24. सोडियम संगलने निष्कर्ष में हैलोजेन के परीक्षण के लिए सिल्वर नाइट्रेट मिलाने से पूर्व नाइट्रिक अम्ल क्यों मिलाया जाता है?
उत्तर : NaCN तथा Na2S को विघटित करने के लिए सोडियम निष्कर्ष को नाइट्रिक अम्ल के साथ उबाला जाता है।
NaCN+ HNO3 → NaNO3 + HCN↑
Na2S + 2HNO3 → 2NaNO3 + H2S ↑
यदि वे विघटित नहीं होते हैं तब वे AgNO3 से अभिक्रिया करके परीक्षण में निम्न प्रकार बाधा पहुँचाते हैं-
प्रश्न 25. प्रत्येक का एक उदाहरण देते हुए निम्नलिखित प्रक्रमों के सिद्धान्तों का संक्षिप्त विवरण दीजिए
(क) क्रिस्टलन,
(ख) आसवन,
(ग) क्रोमैटोग्रैफी।
उत्तर : (क) क्रिस्टलन —यह ठोस कार्बनिक पदार्थों के शोधन की प्रायः प्रयुक्त विधि है। यह विधि कार्बनिक यौगिक तथा अशुद्धि की किसी उपयुक्त विलायक में इनकी विलेयताओं में निहित अन्तर पर आधारित होती है। अशुद्ध यौगिक को किसी ऐसे विलायक में घोलते हैं जिसमें यौगिक सामान्य ताप पर अल्प-विलेय होता है, परन्तु उच्चतर ताप परे यथेष्ट मात्रा में वह घुल जाता है। तत्पश्चात् विलयन को इतना सान्द्रित करते हैं कि वह लगभग संतृप्त हो जाए। विलयन को ठण्डा करने पर शुद्ध पदार्थ क्रिस्टलित हो जाता है जिसे निस्यन्दन द्वारा पृथक् कर लेते हैं। निस्यन्द (मातृ द्रव) में मुख्य रूप से अशुद्धियाँ तथा यौगिक की अल्प मात्रा रह जाती है। यदि यौगिक किसी एक विलायक में अत्यधिक विलेय तथा किसी अन्य विलायक में अल्प
विलेय होता है, तब क्रिस्टलन उचित मात्रा में इन विलायकों को मिश्रित करके किया जाता है। सक्रियिंत काष्ठ कोयले की सहायता से रंगीन अशुद्धियाँ निकाली जाती हैं। यौगिक तथा अशुद्धियों की विलेयताओं में कम अन्तर होने की दशा में बार-बार क्रिस्टलन द्वारा शुद्ध यौगिक प्राप्त किया जाता है।
(ख) आसवन —इस महत्त्वपूर्ण विधि की सहायता से (i) वाष्पशील द्रवों को अवाष्पशील अशुद्धियों से एवं (ii) ऐसे द्रवों को, जिनके क्वथनांकों में पर्याप्त अन्तर हो, पृथक् कर सकते हैं। भिन्न क्वथनांकों वाले द्रव भिन्न ताप पर वाष्पित होते हैं। वाष्पों को ठण्डा करने से प्राप्त द्रवों को अलग-अलग एकत्र कर लेते हैं। क्लोरोफॉर्म (क्वथनांक 334 K ) और ऐनिलीन (क्वथनांक 457 K) को आसवन विधि द्वारा आसानी से पृथक् कर सकते हैं। द्रव-मिश्रण को गोल पेंदे वाले फ्लास्क में लेकर हम सावधानीपूर्वक गर्म करते हैं। उबालने पर कम क्वथनांक वाले द्रव की वाष्प पहले बनती है। वाष्प को संघनित्र की सहायता से संघनित करके प्राप्त द्रव को ग्राही में एकत्र कर लेते हैं। उच्च क्वथनांक वाले घटक के वाष्प बाद में बनते हैं। इनमें संघनन से प्राप्त द्रव को दूसरे ग्राही में एकत्र कर लेते हैं।
(ग) वर्णलेखन - वर्णलेखन (क्रोमैटोग्रफी) शोधन की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तकनीक है जिसका उपयोग यौगिकों का शोधन करने में, किसी मिश्रण के अवयवों को पृथक् करने तथा यौगिकों की शुद्धता की जाँच करने के लिए विस्तृत रूप से किया जाता है। क्रोमैटोग्रफी विधि का उपयोग सर्वप्रथम पादपों में पाए जाने वाले रंगीन पदार्थों को पृथक् करने के लिए किया गया था। ‘क्रोमैटोग्रैफी’ शब्द ग्रीक शब्द क्रोमा’ से बना है जिसका अर्थ है ‘रंग’। इस तकनीक में सर्वप्रथम यौगिकों के मिश्रण को स्थिर प्रावस्था पर अधिशोषित कर दिया जाता है। स्थिर प्रावस्था ठोस अथवा द्रव हो सकती है। इसके पश्चात् स्थिर प्रावस्था में से उपयुक्त विलायक, विलायकों के मिश्रणं अथवा गैस को धीरे-धीरे प्रवाहित किया जाता है। इस प्रकार मिश्रण के अवयव क्रमशः एक-दूसरे से पृथक् हो जाते हैं। गति करने वाली प्रावस्था को ‘गतिशील प्रावस्था कहते हैं। अन्तर्ग्रस्त सिद्धान्तों के आधार पर वर्णलेखन को विभिन्न वर्गों में वर्गीकृत किया गया है। इनमें से दो हैं-
(1) अधिशोषण-(वर्णलेखन) —यह इस सिद्धान्त पर आधारित है कि किसी विशिष्ट अधिशोषक’ पर विभिन्न यौगिक भिन्न अंशों में अधिशोषित होते हैं। साधारणतः ऐलुमिना तथा सिलिका जेल अधिशोषक के रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं। स्थिर प्रावस्था (अधिशोषक) पर गतिशील प्रावस्था प्रवाहित करने के उपरान्त मिश्रण के अवयव स्थिर प्रावस्था पर अलग-अलग दूरी तय करते हैं। निम्नलिखित दो प्रकार की वर्णलेखन-तकनीकें हैं, जो विभेदी-अधिशोषण सिद्धान्त पर आधारित हैं-
कॉलम-वर्णलेखन अर्थात् स्तम्भ-वर्णलेखन
पतली पर्त वर्णलेखन
(2) वितरण क्रोमैटोग्रैफी –वितरण क्रोमैटोग्रॅफी स्थिर तथा गतिशील प्रावस्थाओं के मध्य मिश्रण के अवयवों के सतत् विभेदी वितरण पर आधारित है। कागज वर्णलेखन इसका एक उदाहरण है। इसमें एक विशिष्ट प्रकार के क्रोमैटोग्रॅफी कागज का इस्तेमाल किया जाता है। इस कागज के छिद्रों में जल-अणु पाशित रहते हैं, जो स्थिर प्रावस्था का कार्य करते हैं।