बिहार बोर्ड कक्षा 11 रसायन विज्ञान अध्याय 13 हाइड्रोकार्बन दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. एल्कीन बनाने की प्रयोगशाला विधि का चित्र सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर: प्राथमिक एल्कोहॉल को सान्द्र H2SO4 के आधिक्य के साथ 170C ताप पर गर्म करने पर एल्कोहॉल में से एक जल का अणु निकल जाता है और निर्जलीकरण के पश्चात् एल्कीन प्राप्त होता है।
एक गोल पेंदी वाले फ्लास्क में एल्कोहॉल तथा सान्द्र H2SO4 लेते हैं। इस मिश्रण में निर्जल Al2(SO4)3 तथा रेत मिलाते हैं। Al2(SO4)3 तथा रेत का मिश्रण झाग उत्पन्न होने नहीं देता तथा अभिक्रिया 140C ताप पर ही सम्पन्न हो जाती है। आसवन फ्लास्क में या गोल पेंदी वाले फ्लास्क में एक थर्मामीटर, बिन्दुपाती कीप तथा निकास नली लगाते हैं। निकास नली का दूसरा सिरा दो वाष्प बोतलों से जुड़ा रहता है।
जिसमें सान्द्र H2SO4 तथा KOH भरा रहता है। बिन्दुपाती कीप की सहायता से एल्कोहॉल तथा सान्द्र H2SO4 के मिश्रण को गिराते हैं। इसे बालू उष्मक पर 150C ताप पर गर्म करते हैं । बनने वाली एथिलीन गैस में SO तथा CO की अशुद्धि भी होती है जो क्रमशः H2SO4 तथा KOH में अवशोषित हो जाती है और शुद्ध एथिलीन गैस को गैस जार में जल के ऊपर एकत्रित कर लेते हैं।
प्रश्न 2. एसीटिलीन बनाने की प्रयोगशाला विधि का चित्र सहित वर्णन कीजिए।
अथवा
एसीटिलीन बनाने की प्रयोगशाला विधि का वर्णन निम्नांकित बिन्दुओं के आधार पर कीजिए
(1) विधि एवं रासायनिक समीकरण
(2) नामांकित चित्र।
उत्तर: प्रयोगशाला में एसीटिलीन गैस को CaC2 पर जल की अभिक्रिया द्वारा बनाया जाता है। इस विधि से प्राप्त एसीटिलीन में NH3 तथा PH3 की अशुद्धि होती है जिन्हें दूर करने के लिये इसे अम्लीय CuSO4 में प्रवाहित करते हैं।
CaC2+2H2OCH==CH+Ca(OH)2
एक कोनिकल फ्लास्क में थोड़ी – सी रेत लेकर उसके ऊपर CaC2 के टुकड़े रखते हैं तथा फ्लास्क में उपस्थित वायु को तेल गैस प्रवाहित कर विस्थापित कर देते हैं। कोनिकल फ्लास्क में बिन्दुपाती कीप तथा निकास नली लगी होती है। बिन्दुपाती कीप की सहायता से CaC2 पर धीरे-धीरे H2O की बूंदें डालते हैं जिससे एसीटिलीन गैस प्राप्त होती है। जिसे अम्लीय CuSO4 विलयन में प्रवाहित कर – एसीटिलीन विरंजक चूर्ण के निलंबन में प्रवाहित करते ram हैं तथा एसीटिलीन गैस को गैस जार में जल के ऊपर एकत्रित कर लेते हैं।
सावधानी:
(1) प्रयोग के पूर्व बालू फ्लास्क की वायु को तेल गैस द्वारा विस्थापित कर देते हैं क्योंकि एसीटिलीन अम्लीकृत विरंजक चूर्ण क्यूसन का निलंबन वायु के साथ विस्फोटक मिश्रण बनाती है।
(2) CaC2 के ऊपर धीरे-धीरे जल डाला जाता है क्योंकि अभिक्रिया बहुत तीव्र गति से होती है।
(3) फ्लास्क की तली में पहले रेत रखकरCaC2 के टुकड़ों को रखा जाता है क्योंकि अभिक्रिया में बहुत अधिक मात्रा में ऊष्मा प्राप्त होती है।
प्रश्न 3. मेथेन बनाने की प्रयोगशाला विधि का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:वसीय अम्लों के सोडियम लवणों को सोडा लाइम के साथ 630K ताप पर गर्म करने पर एल्केन प्राप्त होता है। कॉस्टिक सोडा NaOH तथा अनबुझा चूना CaO के मिश्रण को सोडा लाइम कहते हैं। यहाँ अभिक्रिया में केवल NaOH भाग लेता है CaO ,NaOH को शुष्क रखता है और NaOH की तीव्रता को कम करता है जिससे काँच पर अभिक्रिया नहीं हो पाती।
एक कठोर काँच की नली में कडे काँच की नली सोडियम एसीटेट व सोडालाइम का मिश्रण लेते हैं तथा कॉर्क की सहायता साड से इसमें निकास नली लगाते हैं। जिसका सोडालाइम दूसरा सिरा जल से भरे गैस जार में लगा रहता है। सोडियम एसीटेट व सोडा लाइम के मिश्रण को परखनली में बुन्सन बर्नर पर गर्म करते हैं तथा बनने वाली मेथेन गैस को जल से भरे गैस जार में जल के ऊपर एकत्रित कर लेते हैं।
प्रश्न 4. एक असंतृप्त हाइड्रोकार्बन 'A' दो अणु H2 को जोड़ता है तथा अपचयित ओजोनीकरण के पश्चात् ब्यूटेन-1 , 4 डाइअल, एथेनल तथा प्रोपेनोन देता है। यौगिक 'A' की संरचना तथा IUPAC नाम लिखिए। प्रयुक्त अभिक्रियाओं को समझाइए।
उत्तर: हाइड्रोकार्बन 'A' में दो अणु H2 का योग हो सकता है। अतः 'A' एल्केन, डाइईन या ऐल्काइन होना चाहिए। अपचयित ओजोनीकरण के पश्चात् 'A' तीन स्पीशीज देता है जिनमें से एक डाइऐल्डिहाइड है। इसका अर्थ है कि अणु दोनों सिरों से टूटता है। अतः 'A' में दो द्विआबंध होने चाहिए। यह निम्नलिखित तीन स्पीशीज देता है।
अतः यौगिक 'A' की संरचना निम्न है –
प्रश्न 5. संरूपण से आप क्या समझते हैं ? एथेन के संरूपण का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर: कार्बन-कार्बन एकल बंध के मध्य घूर्णन के कारण जो विभिन्न आकाशीय व्यवस्थाएँ उत्पन्न होती हैं, जिन्हें संरूपी कहते हैं तथा संरूपियों से संबंधित आण्विक ज्यामिति को संरूपण समावयवता कहते हैं। एथेन में संरूपण समावयवता-एथेन में दो कार्बन परमाणु एकल बंध की सहायता से जुड़े रहते हैं तथा प्रत्येक कार्बन पर तीन हाइड्रोजन परमाणु द्वारा जुड़े रहते हैं। अर्थात् एथेन अणु में दो मेथिल समूह एकल बंध की सहायता से जुड़े रहते हैं।
यदि इसमें से एक कार्बन को स्थिर रखते हुए दूसरे कार्बन परमाणु को एकल बंध के चारों तरफ मुक्त घूर्णन करने दिया जाये तो विभिन्न त्रिविम व्यवस्थाएँ संभव हैं। सामान्यतः यदि एक कार्बन को स्थिर रखते हुये दूसरे कार्बन को एकल बंध के चारों तरफ 60 के कोण से मुक्त घूर्णन करने दिया जाये तो मुख्यतः 6 त्रिविम व्यवस्थाएं संभव हैं, जिनमें से 1 , 3 और 5 संरचनाएँ समान हैं। इसलिये इनकी ऊर्जा तथा स्थायित्व भी समान होगा। इसी प्रकार 2 , 4 और 6 वीं संरचना समान है इसलिये इनकी ऊर्जा तथा स्थायित्व भी समान होगा।
1. सांतरित रूप:
सांतरित रूप में दोनों कार्बन परमाणुओं पर H परमाणु इस प्रकार व्यवस्थित रहते हैं कि उनके बीच दूरी अधिकतम है जिसके कारण इनके बीच लगने वाला प्रतिकर्षण बल न्यूनतम रहता है जिसके फलस्वरूप इनकी ऊर्जा कम तथा स्थायित्व अधिक रहता है।
2. ग्रसित रूप:
ग्रसित रूप में दोनों कार्बन परमाणु इस प्रकार व्यवस्थित रहते हैं कि उनसे जुड़े हाइड्रोजन परमाणु के मध्य न्यूनतम दूरी है जिसके कारण इनके बीच लगने वाला प्रतिकर्षण बल अधिकतम होता है जिसके फलस्वरूप इनकी ऊर्जा अधिकतम तथा स्थायित्व न्यूनतम होता है। एथेन में सांतरित संरूपीय ग्रसित संरूपीय की अपेक्षा 12.6 kJ/mol ऊर्जा से अधिक स्थायी है। यह ऊर्जा का अंतर बहुत कम होने के कारण एथेन में से दोनों संरूपों को पृथक् करना कठिन होता है।
प्रश्न 6. साइक्लोहेक्सेन में संरूपण समावयवता को समझाइये।
उत्तर: खुली श्रृंखला वाले एल्केनों के अतिरिक्त बंद श्रृंखला वाले साइक्लोएल्केन भी संरूपण समावयवता दर्शाते हैं। साइक्लोप्रोपेन तथा साइक्लोब्यूटेन में बंध कोण क्रमश: 60 तथा 90 का होता है। जिनके कारण ये वलय तनाव में होते हैं तथा इनकी क्रियाशीलता अधिकतम होती है।
साइक्लोपेंटेन में बंध कोण 108 होता है जो कि सामान्य चतुष्फलकीय बंध कोण के निकटतम है। साइक्लोहेक्सेन में बंध कोण 10928, होता है। जिसके कारण वलय तनावरहित तथा अधिक स्थायी होती है। इसलिये इसमें संरूपण समावयवता दर्शायी जा सकती है। त्रिविम में विभिन्न व्यवस्थाओं के कारण यह दो समावयवी रूपों में पाया जाता है।
1. कुर्सी संरूपण – यह साइक्लोहेक्सेन का अत्यधिक स्थायी संरूपी है जिसमें सभी बंध कोण चतुष्फलकीय बंध कोण 10928, के बराबर है। लेकिन समीपवर्ती कार्बन परमाणु के हाइड्रोजन सांतरित स्थिति में है। इसलिये यह वलय तनाव से मुक्त है और इसका स्थायित्व अधिकतम है।
2. नाव संरूपण – यह साइक्लोहेक्सेन का कम स्थायी समावयवी रूप है। इसमें भी सभी बंध कोण चतुष्फलकीय बंध कोण के बराबर है। लेकिन समीपवर्ती कार्बन परमाणु के हाइड्रोजन ग्रसित रूप में है जिसके कारण वलय तनाव में है तथा इसका स्थायित्व कुर्सी रूप की तुलना में कम है। कुर्सी रूप तथा नाव रूप में ऊर्जा का अंतर 44 kJ/mol-1 है।
नाव संरूपण –
कुर्सी संरूपण –
प्रश्न 7. ऐथेन के ग्रस्त तथा सांतरित रूपों के न्यूमैन तथा साँहार्स प्रक्षेप लिखिए। इनमें से कौन-सा प्रक्षेप अधिक स्थायी होगा तथा क्यों?
उत्तर:
ऐथेन का सांतरित रूप, ग्रस्त रूप की अपेक्षा लगभग 12.5 kJ/mol-1ऊर्जा द्वारा अधिक स्थायी होता है। इसका कारण है कि सांतरित रूप में कोई भी दो हाइड्रोजन परमाणु समीपवर्ती कार्बन परमाणुओं से अधिकतम दूरी पर स्थित होते हैं जबकि ग्रस्त अवस्था में ये अत्यधिक पास-पास (कभी-कभी अध्यारोपित भी हो जाते हैं) आ जाते हैं। अतः सांतरित रूप में, इनमें न्यूनतम प्रतिकर्षण बल, न्यूनतम ऊर्जा तथा अधिकतम स्थायित्व होता है।
प्रश्न 8. ब्यूटेन में संरूपण समावयवता को समझाइये।
उत्तर: n ब्यूटेन को एथेन का डाइ मेथिल व्युत्पन्न माना जा सकता है जिसमें प्रत्येक कार्बन का एकएक हाइड्रोजन परमाणु मेथिल समूह से प्रतिस्थापित हो गया है। ऐथेन के समान ब्यूटेन में यदि C2 को स्थिर रखकर C3 को घुमाया जाता है तब 360 से घुमाने पर अणु पुनः मूल स्थिति में आ जाता है। जब दोनों कार्बन परमाणु के मेथिल समूह एक-दूसरे से अधिकतम दूरी पर स्थित होते हैं तो इनमें न्यूनतम प्रतिकर्षण होता है तथा सबसे स्थायी रूप है इसे पूर्णतः सांतरित रूप (I) कहते हैं।
पूर्ण सांतरित रूप को घूमाने पर क्रमशः 120व 240 पर III व V रूप प्राप्त होता है इसमें एक कार्बन का मेथिल समूह दूसरे कार्बन के मेथिल व हाइड्रोजन परमाणु के मध्य होता है। इसे गॉश रूप कहते हैं, यह कम स्थायी होता है। रूप I को 60 व 300 पर घुमाने से क्रमशः II व VI रूप प्राप्त होते हैं ।
ये ग्रसित रूप कहलाता है तथा 180 पर रूप IV प्राप्त होता है जो पूर्णतः ग्रसित रूप है। रूप IV सबसे कम स्थायी है। इसमें दोनों मेथिल समूह की दूरी न्यूनतम होती है। अतः प्रतिकर्षण अधिकतम होता है। पूर्णतः ग्रसित रूप IV की अपेक्षा ग्रसित रूप II व III का स्थायित्व थोड़ा अधिक होता है।
प्रश्न 9. बेंजीन के अनुनाद सूत्र को समझाइये।
उत्तर: बेंजीन में प्रत्येक C-C बंध लंबाई 1.40 A होती है जो कि एकल बंध 154 A और युग्म बंध 134 A के मध्यवर्ती है। अत: बेंजीन में C-C बंध एकल बंध या युग्म बंध से न जुड़े होकर आंशिक युग्म बंध तथा आंशिक एकल बंध से जुड़े होते हैं। अर्थात् कुछ समय पश्चात् द्वि-बंध एकल बंध में तथा एकल बंध द्विबंध में परिवर्तित होते रहते हैं। ऐसे बंधों की कल्पना तो की जा सकती है। लेकिन इन्हें कागजों पर नहीं दर्शाया जा सकता है। इसलिये ऐसा माना जाता है कि बेंजीन निम्नलिखित संरचनाओं का अनुनादी सूत्र है।
उपर्युक्त संरचनाओं में पहली तथा दूसरी संरचना केकुले संरचना है तथा तीसरी, चौथी तथा पाँचवीं संरचना डेवर संरचना है। डेवर संरचना की ऊर्जा अधिक होती है पारा बंध की उपस्थिति के कारण। इसलिये अनुनाद में इनका योगदान केवल 20 % होता है। जबकि केकुले सूत्र समतुल्य है और अन्य सूत्र की अपेक्षा अधिक स्थायी है।
इसलिये अनुनाद में इनका योगदान 80 % होता है। इसी कारण बेंजीन को इन दो संरचनाओं केकुले सूत्र का ही अनुनादी संकर माना जाता है। सामान्यतः अनुनादी संकर सूत्र को अनेक सूत्र के स्थान पर केवल एक पार्श्व सूत्र द्वारा प्रदर्शित करते हैं जिसमें खंडित वृत्त असंतृप्तता को दर्शाता है।
प्रश्न 10. एल्केन में होने वाली हैलोजनीकरण अभिक्रिया की मुक्त मूलक क्रियाविधि को समझाइये।
उत्तर: एल्केन में हैलोजनीकरण अभिक्रिया मुक्त मूलक क्रियाविधि द्वारा सम्पन्न होती है।
1. श्रृंखला का समारम्भ पद – उच्च ताप या प्रकाश के पराबैंगनी विकिरण की ऊर्जा से क्लोरीन के अणु का समांश विखण्डन होता है एवं क्लोरीन का मुक्त मूलक प्राप्त होता है।
2. श्रृंखला संचरण पद – उक्त पद में क्लोरीन मुक्त मूलक एल्केन अणु में हाइड्रोजन को विस्थापित कर एक एल्किल मुक्त मूलक प्राप्त होता है।
यह मुक्त मेथिल मूलक क्लोरीन अणु से क्रिया कर एल्किल हैलाइड तथा क्लोरीन मुक्त मूलक देता है।
यह मुक्त क्लोरीन मूलक पुनः एल्केन से अभिक्रिया कर मेथिल मूलक देता है। इस प्रकार अभिक्रिया की पुनरावृत्ति होती रहती है।
3. श्रृंखला का समापन पद – अंत में दोनों मुक्त मूलक परस्पर क्रिया करके श्रृंखला अभिक्रिया को समाप्त कर देते हैं।
हैलोजन का मुक्त मूलक एल्किल हैलाइड पर आक्रमण कर नया मुक्त मूलक बनाता है।
यह मुक्त मूलक हैलोजन के साथ क्रिया कर डाइ हैलोएल्केन देता है। यह प्रक्रिया धीरे – धीरे तब तक चलती रहती है जब तक सभी हाइड्रोजन परमाणु क्लोरीन द्वारा प्रतिस्थापित नहीं हो जाते हैं।
प्रश्न 11. समूहों के दिशात्मक प्रभाव का इलेक्ट्रॉनिक स्पष्टीकरण दीजिए।
उत्तर: यदि बेंजीन रिंग पर एक प्रतिस्थापी समूह पहले से उपस्थित है तो प्रतिस्थापन अभिक्रिया के फलस्वरूप नया समूह रिंग के किस स्थान पर प्रवेश करेगा इसका निर्धारण पहले से उपस्थित प्रतिस्थापी समूह की प्रकृति के आधार पर होता है इसे उस समूह का दैशिक प्रभाव कहते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक सिद्धान्त के आधार पर समूह के निर्देशक प्रभाव की व्याख्या –
1. ऑर्थों व पैरा निर्देशकारी समूह – ये वे समूह होते हैं जो बेंजीन वलय पर पहले से उपस्थित होने पर नये समूह को ऑर्थो व पैरा स्थान पर निर्देशित करते हैं।
उदाहरण – OH , -OCH3 , -CH3,-NH2
ये समूह अपनी इलेक्ट्रॉन मुक्तकारी क्षमता के कारण बेंजीन में ऑर्थो व पैरा स्थिति में इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ा देते हैं। इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ जाने की वजह से बेंजीन नाभिक की क्रियाशीलता बढ़ जाती है तथा इलेक्ट्रॉन स्नेही अभिकर्मक इस स्थिति में उच्च इलेक्ट्रॉन घनत्व होने के कारण इन्हीं स्थानों पर प्रवेश करता है। .
2. मेटा निर्देशकारी प्रभाव – ये वे समूह हैं जो बेंजीन वलय पर पहले से उपस्थित होने पर नये समूह को मेटा स्थान पर निर्देशित करते हैं।
उदाहरण- -NO2-COOH , -SO3H , -CN
जब ये समूह बेंजीन वलय पर जुड़े होते हैं तो मेसोमेरिक प्रभाव के कारण बेंजीन वलय से इलेक्ट्रॉन खींच लेते हैं जिसके फलस्वरूप वलय का इलेक्ट्रॉन घनत्व कम हो जाता है तथा इलेक्ट्रॉन घनत्व मुख्यतः ऑर्थो तथा पैरा स्थिति पर घटता है जबकि मेटा स्थिति अप्रभावित रहती है अर्थात् मेटा स्थिति पर इलेक्ट्रॉन घनत्व उच्च रहता है। इसलिये इलेक्ट्रॉन स्नेही अभिकर्मक मेटा स्थिति पर प्रवेश करता है।
प्रश्न 12.क्लोरीनीकरण के प्रति 1 , 2 , 3 हैलोजनों की आपेक्षिक क्रियाशीलता 1 : 3 : 8 : 5 है। 2- मेथिल ब्यूटेन के सभी मोनोक्लोरीनीकृत उत्पादों की प्रतिशतता ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
मोनो क्लोरीनीकृत उत्पादों की आपेक्षिक मात्रा = हाइड्रोजन की मात्रा आपेक्षिक क्रियाशीलता –
(1) मोनो क्लोरीनीकृत उत्पाद के लिए =91=9
(2) मोनो क्लोरीनीकृत उत्पाद के लिए =23.8=7.6
(3) मोनो क्लोरीनीकृत उत्पाद के लिए =15=5
मोनो क्लोरीनीकृत यौगिकों की कुल संख्या =9+7.6+5=21.6
1 मोनो क्लोरीनीकृत उत्पाद की % मात्रा =910021.6=41.67 %
2 मोनो क्लोरीनीकृत उत्पाद की % मात्रा =7.610021.6=35.18 %
3 मोनो क्लोरीनीकृत उत्पाद की % मात्रा =5 10021.6=23.15 %
प्रश्न 13. निम्नलिखित अभिक्रिया के फलस्वरूप कौन-सा उत्पाद प्राप्त होगा तथा क्यों ?
उत्तर:
जब फ्रीडल – क्राफ्ट ऐल्कीकरण उच्च ऐल्किल हैलाइड जैसे n- प्रोपिल क्लोराइड के साथ होता है, तो इलेक्ट्रॉन स्नेही, n- प्रोपिल कार्बधनायन (1 कार्बधनायन) पुनर्व्यवस्थित होकर अधिक स्थायी आइसो-प्रोपिल कार्बधनायन (2 कार्बधनायन) में बदल जाता है तथा अभिक्रिया के परिणामस्वरूप मुख्य उत्पाद आइसो-प्रोपिल बेन्जीन प्राप्त होता है।
प्रश्न 14. निम्नलिखित यौगिकों को इलेक्ट्रॉन स्नेही अभिकर्मक के प्रति उनकी घटती हुई आपेक्षिक क्रियाशीलता के क्रम में व्यवस्थित कीजिए।
उत्तर:
OCH3 (मेथॉक्सी समूह) इलेक्ट्रॉन निर्मुक्त करने वाला समूह है। यह अनुनाद प्रभाव (+R प्रभाव) के कारण बेन्जीन नाभिक पर इलेक्ट्रॉन घनत्व बढ़ाता है। इसके कारण एनीसॉल, इलेक्ट्रॉन स्नेही अभिकर्मकों के प्रति, बेन्जीन की अपेक्षा अधिक क्रियाशील है। ऐरिल हैलाइडों की दशा में, हैलोजन अपने प्रबल -I प्रभाव के कारण अत्यधिक निष्क्रिय होते हैं जिससे बेन्जीन वलय में कुल इलेक्ट्रॉन घनत्व घट जाता है। इसके कारण पुनः प्रतिस्थापन घट जाता है।
-NO2 समूह इलेक्ट्रॉन आकर्षित करने वाला समूह है। यह प्रबल – प्रभाव के कारण बेन्जीन नाभिक में इलेक्ट्रॉन घनत्व घटाता है। जिसके कारण नाइट्रोबेन्जीन कम क्रियाशील हो जाती है। अतः इन यौगिकों की इलेक्ट्रॉन स्नेही अभिकर्मकों के प्रति कियाशीलता का क्रम निम्न होगा –
प्रश्न 15. भंजन से क्या समझते हैं ? भंजन तथा इसके उपयोग पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:उच्च ताप के द्वारा या उत्प्रेरक की उपस्थिति में उच्चतर और जटिल हाइड्रोकार्बन का सरल हाइड्रोकार्बन में होने वाला अपघटन भंजन कहलाता है। दूसरे शब्दों में, कम वाष्पशील तथा उच्च हाइड्रोकार्बन का अधिक वाष्पशील तथा निम्न हाइड्रोकार्बन में तापीय अपघटन भंजन कहलाता है।
भंजन दो प्रकार का होता है –
1. ताप भंजन – जब भंजन उच्च ताप व दाब की परिस्थिति में उत्प्रेरक की अनुपस्थिति में कराया जाता है, तो इसे तापीय भंजन कहते हैं।
2. उत्प्रेरक भंजन – जब उत्प्रेरक की उपस्थिति में भंजन कराया जाता है, तो उसे उत्प्रेरक भंजन कहते हैं। उत्प्रेरक की उपस्थिति में भंजन तापीय भंजन की तुलना में कम ताप तथा कम दाब पर कराया जाता है।
उपयोग –(1) मिट्टी के तेल से गैस बनाना।
(2) पेट्रोल के भंजन से पेट्रोलियम गैस बनाना।
प्रश्न 16. HI , HBr तथा HCl की प्रोपीन के साथ क्रिया में बना मध्यवर्ती कार्बधनायन समान रहता है। HCl , HBr तथा HI की आबंध ऊर्जाएँ क्रमशः 430.5 kJ/mol-1363.7 kJ/mol-1 तथा 296.8 kJ/mol-1 होती है। इन हैलोजन अम्लों की क्रियाशीलता का क्रम क्या होगा?
उत्तर: हैलोजन अम्लों का ऐल्कीन के साथ योग एक इलेक्ट्रॉन स्नेही योगात्मक अभिक्रिया है।
चूँकि प्रथम पद मंद है अतः यह दर निर्धारक पद है। इस पद की दर, प्रोटॉन की उपलब्धता पर निर्भर करती है। जो पुनः H-X अणुओं की आबंध वियोजन ऊर्जा पर निर्भर करती है। H-X अणु की आबंध वियोजन ऊर्जा जितनी कम होती है, हैलोजन अम्ल की क्रियाशीलता उतनी ही अधिक होती है। अतः हैलोजन अम्लों की क्रियाशीलता का घटता हुआ क्रम निम्न है
HI(296.8 kJ )> HBr (363.7kJ)>HCl(430.5kJ)
प्रश्न 17. वुज अभिक्रिया को विषम कार्बन संख्या वाले ऐल्केन बनाने के लिये क्यों उपयुक्त नहीं माना जाता है ?
उत्तर: एल्किल हैलाइड के दो अणु सोडियम के साथ शुष्क ईथर की उपस्थिति में गर्म करने पर ऐल्केन प्राप्त होता है।
इस अभिक्रिया द्वारा विषम कार्बन संख्या वाले ऐल्केन का निर्माण नहीं किया जा सकता है। क्योंकि इसके लिये दो अलग-अलग एल्किल हैलाइड को सोडियम के साथ गर्म करने पर ऐल्केनों का मिश्रण प्राप्त होता है जिन्हें पृथक् करना बहुत कठिन होता है। उदाहरण के लिये यदि मेथिल ब्रोमाइड तथा एथिल ब्रोमाइड को शुष्क ईथर की उपस्थिति में सोडियम के साथ गर्म करने पर एथेन, प्रोपेन तथा ब्यूटेन का मिश्रण प्राप्त होता है और इसमें से प्रोपेन को पृथक् करना अत्यन्त कठिन होता है।
प्रश्न 18. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए –
1. हाइड्रोबोरोनीकरण
2. एपॉक्सीकरण।
उत्तर:
1. हाइड्रोबोरोनीकरण – एल्कीन पर जब डाइबोरेन से अभिक्रिया करायी जाती है तब एल्कीन के द्विबंध पर योगात्मक क्रिया होती है एवं ट्राइऐल्किल बोरेन बनता है, जो जल अपघटन पर एल्कोहॉल देता है यह हाइड्रोबोरोनीकरण अभिक्रिया कहलाती है।
2. एपॉक्सीकरण – एल्कीन ऑक्साइड को एपॉक्साइड कहते हैं। एल्कीन के ऑक्सीकरण से एपॉक्साइड बनने की क्रिया एपॉक्सीकरण कहलाती है।
उदाहरण – निम्नतर एल्कीन 200-400C ताप पर सिल्वर उत्प्रेरक की उपस्थिति में ऑक्सीजन से संयोग करके एपॉक्साइड बनते हैं।
प्रश्न 19. क्या होता है जब
(1) सोडियम एसीटेट को सोडालाइम के साथ गर्म करने पर।
(2) 2- प्रोपेनॉल को एलुमिना के साथ 300C ताप पर गर्म करने पर।
(3) एसीटिलीन को अमोनियामय AgNO3 के विलयन में प्रवाहित करने पर।
(4) एथिल आयोडाइड को सोडियम के साथ गर्म करने पर।
(5) एथिलीन पर हाइपोक्लोरस अम्ल की अभिक्रिया कराने पर।
उत्तर:
1. सोडियम एसीटेट को सोडालाइम के साथ गर्म करने पर –
2. 2-प्रोपेनॉल को एलुमिना के साथ 300C ताप पर गर्म करने पर –
3. एसीटिलीन को अमोनियामय AgNO3 के साथ गर्म करने पर –
CHCH+2AgNO3+2NH4OHAg-CC-Ag+2NH4NO3+2H2O
4. एथिल आयोडाइड को सोडियम के साथ गर्म करने पर –
5. एथिलीन पर हाइपोक्लोरस अम्ल की अभिक्रिया कराने पर –
प्रश्न 20. विहाइड्रोहैलोजनीकरण तथा विहैलोजनीकरण अभिक्रिया को उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर: विहाइड्रोहैलोजनीकरण – किसी कार्बनिक यौगिक में हाइड्रोजन हैलाइड के अणु का विलोपन विहाइड्रोहैलोजनीकरण कहलाता है। इस अभिक्रिया के दौरान स्थिति से हाइड्रोजन का विलोपन होता है। इसलिये इसे विलोपन अभिक्रिया भी कहते हैं।
उदाहरण – नॉर्मल प्रोपिल क्लोराइड को एल्कोहॉलिक KOH के साथ गर्म करने पर एल्कीन प्राप्त होता है।
CH3-CH2-CH2-Cl+KOHCH3-CH=CH2+KCl+H2O
विहैलोजनीकरण – बिस डाइहैलाइड को Zn चूर्ण के साथ मेथिल एल्कोहॉल की उपस्थिति में गर्म करने पर एल्कीन प्राप्त होता है, इस अभिक्रिया के दौरान केवल हैलोजन का विलोपन होता है इसलिए इसे विहैलोजनीकरण अभिक्रिया कहते हैं।
प्रश्न 21. किसी प्राथमिक ऐल्किल हैलाइड की वु अभिक्रिया कराने पर एकमात्र उत्पाद के रूप में C8H18 प्राप्त होता है। इस ऐल्केन का मोनोब्रोमीकरण करने पर तृतीयक ब्रोमाइड का एकल समावयव प्राप्त होता है। ऐल्केन तथा तृतीयक ब्रोमाइड की पहचान लिखिए।
उत्तर:चूँकि ऐल्केन C8H18 मोनोब्रोमीकरण के पश्चात् तृतीयक ब्रोमाइड का एक समावयव बनाता है अतः ऐल्केन में तृतीयक हाइड्रोजन उपस्थित होनी चाहिए। यह तभी सम्भव है जबकि प्राथमिक ऐल्किल हैलाइड (जो वु अभिक्रिया में भाग लेता है) के पास तृतीयक हाइड्रोजन हो।
प्रश्न 22. कोल्बे की वैद्युत अपघटन अभिक्रिया को समीकरण सहित लिखिए।
उत्तर: मोनो कार्बोक्सिलिक अम्ल के सोडियम या पोटैशियम लवण के सान्द्र जलीय विलयन का वैद्युत अपघटन करने पर एनोड पर एल्केन प्राप्त होता है।
एनोड पर – एसीटेट आयन इलेक्ट्रॉन त्यागकर उदासीन हो जाता है और विघटित होकर एल्केन देता है।
2CH3COO--2e-2CH3COOC2H6+2CO2
कैथोड पर – हाइड्रोजन आयन इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर हाइड्रोजन देता है।
2Na++2HOH + 2e-2NaOH+H2
प्रश्न 23. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए –
(1) सबात्ये और सेण्डरेन्स अभिक्रिया
(2) बुर्दज अभिक्रिया
(3) ड्यूमा अभिक्रिया
(4) स्वार्ट अभिक्रिया।
उत्तर:
1. सबात्ये और सेण्डरेन्स अभिक्रिया – ऐल्कीन की अभिक्रिया Ni या Pt की उपस्थिति में हाइड्रोजन के साथ कराने पर हाइड्रोजनीकरण के पश्चात् ऐल्केन प्राप्त होता है।
2. बुर्दज अभिक्रिया – दो अणु ऐल्किल हैलाइड की अभिक्रिया सोडियम के साथ शुष्क ईथर की उपस्थिति में कराने पर ऐल्केन प्राप्त होता है। इस प्रकार प्राप्त ऐल्केन में ऐल्किल हैलाइड की तुलना में दो गुना ज्यादा कार्बन होते हैं।
3. ड्यूमा अभिक्रिया – मोनोकार्बोक्सिलिक अम्ल के सोडियम लवण की अभिक्रिया सोडालाइम के साथ कराने पर विकार्बोक्सीकरण के पश्चात् एल्केन प्राप्त होता है।
4. स्वार्ट अभिक्रिया – जब एल्किल हैलाइड की अभिक्रिया मरक्यूरिक फ्लोराइड के साथ कराने पर फ्लोरो एल्केन प्राप्त होता है। इस अभिक्रिया के दौरान एल्किल हैलाइड के हैलोजन का प्रतिस्थापन फ्लोरीन द्वारा होता है।
2C2H5-I+HgF22CH32C2H5+F+HgI2
प्रश्न 24.लिण्डलार उत्प्रेरक क्या है ? तथा इसके उपयोग लिखिए।
उत्तर:बेरियम सल्फेट या कैल्सियम कार्बोनेट पर निक्षेपित पैलेडियम उत्प्रेरक का मिश्रण लिण्डलार उत्प्रेरक कहलाता है। यहाँ सल्फर या क्विनोलीन उत्प्रेरक विष का कार्य करता है और केवल एल्कीन अवस्था तक ही एल्काइन का अपचयन करता है।
उपयोग – एल्काइन का अपचयन हाइड्रोजन द्वारा लिण्डलार उत्प्रेरक की उपस्थिति में कराने पर एल्कीन प्राप्त होता है। यह उत्प्रेरक आगे एल्कीन को एल्केन में अपचयित नहीं होने देता।
प्रश्न 25. बेंजीन की संरचना के लिये कैकुले सूत्र के पक्ष में चार प्रमाण दीजिए।
उत्तर:बेंजीन की संरचना के लिये कैकुले सूत्र के पक्ष में प्रमाण –
1. बेंजीन तीन अणु हाइड्रोजन के साथ संयोग कर चक्रीय यौगिक साइक्लोहेक्सेन बनाता है, जिससे बेंजीन में तीन युग्म बंध की पुष्टि होती है।
2. बेंजीन तीन अणु क्लोरीन से संयोग कर B.H.C. बनाता है। अतः यह भी तीन युग्म बंध की पुष्टि करता है।
3. बेंजीन ओजोन के साथ संयोग कर ट्राइ ओजोनाइड बनाता है जो जल अपघटित होकर ग्लाईऑक्सेल के तीन अणु बनाता है।
4. एसीटिलीन के तीन अणु बहुलीकरण के द्वारा बेंजीन का निर्माण करते हैं। ..