बिहार बोर्ड कक्षा 11 रसायन विज्ञान अध्याय 2 परमाणु की संरचना दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न:1 प्रकाश-विद्युत प्रभाव से आप क्या समझते हैं, ? समझाएँ।
उत्तर: प्रकाश-विद्युत प्रभाव – सर्वप्रथम हॉलवाश द्वारा 1888 ई. में चित्रानुसार एक निर्वात वल्व में दो जिंक प्लेट रखा गया। इन प्लेटों को दो तार द्वारा जोड़कर, उसे एक बैटरी तथा एक गैलवेनोमापी द्वारा जोड़ा गया। उन्होंने प्रेक्षण किया कि जब पराबैंगनी किरणें ऋणात्मक प्लेट पर आपतित करायी जाती हैं तो परिपथ में एकाएक धारा प्रवाहित होती है तथा ज्योंही पराबैंगनी किरणों को आपतित कराना बंद कर दिया जाता है तो धारा का प्रवाहित होना भी बंद हो जाता है। यदि पराबैंगनी किरणों को धनावेशित प्लेट पर आपतित कराया जाता है तो परिपथ में धारा प्रवाहित नहीं होती है। इसके कारणों की व्याख्या करने में इन्होंने असफलता हासिल की।
जब पराबैंगनी किरणे ऋणावेशित प्लेट पर पड़ती हैं तो प्लेट से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन धनात्मक प्लेट द्वारा आकर्षित हो जाता है, फलस्वरूप परिपथ पूरा हो जाता है तथा इलेक्ट्रॉन प्रवाहित होता है। किन्तु यदि पराबैंगनी किरणें धनात्मक प्लेट पर पड़ती हैं तो प्लेट से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक प्लेट पर पहुँच नहीं पाता है क्योंकि इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक आवेशित होता है। इससे परिपथ पूरा नहीं हो पाता है और धारा प्रवाहित नहीं होती है।
इस प्रकार, उच्च आवृत्ति के प्रकाश के प्रभाव में धातुओं के सतहों से इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की घटना प्रकाश-विद्युत प्रभाव कहलाती है।
प्रकाश-विद्युत प्रभाव के द्वारा उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन कहलाते हैं तथा उत्पन्न धारा प्रकाश विद्युत धारा कहलाती है।
प्रश्न:2 प्रकाश किस प्रकार द्वैत प्रकृति है ?
उत्तर: प्लांक के क्वांटम सिद्धान्त के अनुसार प्रकाश ऊर्जा का उत्सर्जन और अवशोषण सतत् नहीं होकर विविक्त रूप में ऊर्जा के बण्डलों के रूप में होता है, जिन्हें फोटॉन या क्वांटा कहते हैं। इसमें कणों के सभी गुण जैसे द्रव्यमान, संवेग ऊर्जा आदि पाये जाते हैं।
इस प्रकार प्रकाश की सभी घटनाओं की व्याख्या करने के लिए तरंग सिद्धान्त और क्वांटम सिद्धान्त दोनों ही आवश्यक है।
अर्थात् व्यतिकरण, विवर्तन आदि में प्रकाश तरंगों का व्यवहार करना है, जबंकि कुछ अन्य परिस्थितियों में प्रकाश में वैद्युत प्रभाव, काम्पटन प्रकाश आदि में प्रकाश कण (फोटॉन) की तरह व्यवहार करता है। इस प्रकार में कणिका और तरंग दोनों के गुण विद्यमान हैं। प्रकाश के इस स्वरूप या प्रकृति को द्वैत स्वरूप या प्रकृति कहते हैं।
प्रश्न:3 डी० ब्रॉग्ली सिद्धान्त अथवा प्रकाश की द्वैत प्रकृति क्या है ? समझाएँ।
उत्तर: डी० ब्रॉग्ली सिद्धान्त – जब कोई द्रव्य कण जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन आदि गति करते हैं तब इन कणों के साथ तरंग सम्बद्ध होती है। इन तरंगों को द्रव्य तरंग या डी ब्रॉग्ली तरंग कहते हैं। डेविसन, जर्मन तथा थामसन द्वारा गतिमान इलेक्ट्रॉन के साथ सम्बद्ध द्रव्य तरंग के विवर्तन का प्रायोगिक रूप से प्रदर्शन किया गया तथा द्रव्य तरंग की प्रायोगिक पुष्टि की गयी।
डी ब्रोगली द्वारा 1925 ई. में सर्वप्रथम परिकल्पना की गयी थी कि जब प्रकाश की प्रकृति द्वैत है, तब द्रव्य कण जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोट्रॉनों, न्यूट्रॉन आदि की प्रकृति भी द्वैत हो सकती है अर्थात् निश्चित परिस्थितियों में यह कण भी तरंग की तरह व्यवहार कर सकते हैं।
प्रश्न:4 आइंस्टाइन का प्रकाश-विद्युत समीकरण कर व्याख्या करें।
उत्तर: आइंस्टाइन का प्रकाश-विद्युत समीकरण – प्लांक के क्वांटम सिद्धान्त के आधार पर आइन्स्टीन द्वारा 1905 ई. में प्रकाश-विद्युत प्रभाव की घटना की व्याख्या की गयी। इस सिद्धान्त के अनुसार, प्रकाश ऊर्जा के छोटे-छोटे बण्डलों या पैकेटों के रूप में चलते हैं, जिसे फोटॉन कहा जाता है। प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा hv होती है, जहाँ v प्रकाश की आवृत्ति तथा h प्लांक का सार्वत्रिक स्थिरांक है। प्रकाश की तीव्रता उन फोटॉनों की संख्या पर निर्भर करती है।
जब एक फोटॉन किसी धातु पर पड़ता है तो वह धातु में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों में से किसी एक को अपने ऊर्जा hv को स्थानान्तरित करता है तथा अपना अस्तित्व समाप्त कर देता है। इस ऊर्जा के एक भाग धातु से इलेक्ट्रॉन को उत्तेजित करने में तथा शेष ऊर्जा उत्तेजित नहीं होते हैं । इलेक्ट्रॉन जो धातु से उत्तेजित होते हैं, वे परमाणु के साथ टक्कर करने में अपने रास्ते से सतह पर अपनी कुछ प्राप्त ऊर्जा फैलाते हैं। इस प्रकार विभिन्न गतिज ऊर्जाओं के साथ इलेक्ट्रॉन धातु पर उत्सर्जित होते हैं।
माना कि प्रकाश इलेक्ट्रॉन का महत्तम गतिज ऊर्जा धातु सतह से E1 उत्सर्जित होती है और धातु पर प्रकाश इलेक्ट्रॉन को उत्तेजित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा W है, जिसे धातु का कार्य-फलन कहते हैं तथा यह विभिन्न धातुओं के लिए विभिन्न होता है। तब हम पाते हैं कि
hv = W + Ek या Ek = hv – W
जहाँ hv, इलेक्ट्रॉन द्वारा अवशोषित फोटॉन की ऊर्जा है।
इलेक्ट्रॉन द्वारा अवशोषित फोट्रॉन की ऊर्जा धातु के कार्यफलन W से कम होने पर इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं करता है। इसलिए, दिये गये धातु के लिए, प्रकाश की थ्रिशोल्ड न्यूनतम आवृत्ति v0 होने पर प्रकाश के फोटॉन की ऊर्जा के परिमाण hv0 धातु के बाहर इलेक्ट्रॉन को उत्तेजित करने में खर्च होता है अर्थात् यह कार्य फलन W के बराबर है।
प्रश्न:5 प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन के नियमों को लिखें तथा आइंस्टाइन के प्रकाश-विद्युत समीकरण से इसकी व्याख्या करें।
उत्तर: प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन के नियम – प्रकाश-विद्युत प्रभाव के प्रयोगों के आधार पर लेनार्ड तथा मिलिकन द्वारा प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन के निम्नलिखित नियम दिये गये हैं –
(a) धातु की सतह से फोटो-इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन की दर, सतह पर पड़ते हुए आपतित प्रकाश की तीव्रता के समानुपाती होती है।
(b) उत्सर्जित फोटो-इलेक्ट्रॉन की अधिकतम गतिज ऊर्जा, आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती है।
(c) फोटो-इलेक्ट्रॉन की महत्तम गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश की आवृत्ति के बढ़ने से बढ़ती है।
(d) आपतित प्रकाश की आवृत्ति के किसी न्यूनतम मान से कम रहने पर, फोटो-इलेक्ट्रॉन धातु से उत्सर्जित होती है। यह न्यूनतम आवृत्ति है, जिसे थ्रिशोल्ड आवृत्ति कहते हैं। विभिन्न धातुओं के लिए विभिन्न होता है।
(e) ज्योंहि धातु की सतह पर प्रकाश आपतित होती है, फोटो इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होती है, अर्थात् प्रकाश के आपतित तथा इलेक्ट्रॉन से उत्सर्जित होने में समय नगण्य अर्थात् नहीं के बराबर लगता है।
प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन नियम की व्याख्या – यदि दिये गये प्रकाश की तीव्रता की आवृत्ति v को बढ़ाया जाता है तो प्रति सेकेण्ड सतह पर टकराने वाली फोटॉन की संख्या समान अनुपात में बढ़ती है, किन्तु प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा hv समान रहती है। अतः फोटो-इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती है, किन्तु उनकी अधिकतम गतिज ऊर्जा Ek समान रहती है, इस प्रकार आइंस्टाइन समीकरण से (a) तथा (b) नियम की व्याख्या हो जाती है।
आइंस्टाइन के समीकरण से यह भी देखा जाता है कि फोटो-इलेक्ट्रॉनों की महत्तम गतिज ऊर्जा Ek आपतित प्रकाश की आवृत्ति v के बढ़ने के साथ रैखिक रूप से बढ़ती है। यह (c) नियम है।
यदि v < v0 तो इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा ऋणात्मक होती है जो कि असंभव है। अर्थात् यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति v के थ्रिशोल्ड आवृत्ति v0 से कम है तो फोटो-इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन नहीं हो सकता है। यही (d) नियम है।
प्रकाश के आपतित होने के बाद एकाएक फोटो-इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की व्याख्या आइन्सटीन के फोटॉन सिद्धान्त द्वारा भी की जा सकती है। ज्योंही प्रथम फोटॉन धातु पर पड़ता है, धातु में एक इलेक्ट्रॉन अवशोषित तथा उत्तेजित हो जाता है। इस प्रकार धातु को प्रकाश के आपतन तथा इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन में समय नहीं लगता है, यही (e) नियम है।
प्रश्न:6 प्रकाश-विद्युत सेल या फोटो-विद्युत सेल क्या है ? फोटो-उत्सर्जक सेल की बनावट तथा कार्य-विधि का वर्णन करें।
उत्तर: प्रकाश-विद्यत सेल – यह वैसी व्यवस्था है जिसमें प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिणत किया जाता है।
प्रकाश-विद्यत सेलप्रकाश-उत्सर्जक सेल – प्रकाश-उत्सर्जक सेल की प्रायोगिक व्यवस्था प्रदर्शित है । इनमें एक काँच या क्वार्ट्ज बल्ब होता है और आन्तरिक सतह में पतले क्षारीय धातु जैसे, सोडियम, कैल्शियम इत्यादि का परत लगा होता है, जो प्रकाश संवेदनशील होता है तथा सेल के कैथोड का कार्य करता है। वल्व के मध्य में एक सीधी तार स्थिर होती है जो ऐनोड का कार्य करती है। कैथोड तथा ऐनोड बाहरी बैटरी, प्रतिरोध R तथा गैलवेनोमापी G से जुड़ा होता है। जब थ्रिशोल्ड आवृत्ति से उच्च आवृत्ति का प्रकाश, सेल के कैथोड पर पड़ता है तो फोटो इलेक्ट्रॉन कैथोड से उत्सर्जित होता है। यह इलेक्ट्रॉन ऐनोड की तरफ गतिशील होता है और इसलिए एक धारा बाह्य परिपथ में प्रवाहित होती है।
प्रकाश-उत्सर्जक सेल विद्युतीय परिपथ में स्वीच की तरह कार्य करता है। इसलिए इस सेल को फोटो-रेसीस्टीभ सेल भी कहते हैं। प्रकाश-उत्सर्जक सेल दो प्रकार का होता है –
(a) निर्वात प्रकाश-उत्सर्जक सेल – निर्वात प्रकाश सेल में प्रकाश के आपतित होने के बाद एकाएक धारा प्रवाहित होना शुरू हो जाता है। यह आपतित प्रकाश की तीव्रता के समानुपाती होता है। इसलिए यह सेल फोटोमापी के लिए तथा टेलीविजन में अत्यधिक उपयुक्त है।
(b) गैस यक्त प्रकाश-उत्सर्जक सेल – गैस युक्त प्रकाश-उत्सर्जक सेल के बल्ब में कुछ अक्रिय गैस (आरगन या न्योन) भरी होती है। गैसों के आयनीकरण के कारण धारा कुछ अधिक होते हैं, किन्तु प्रकाश की तीव्रता के समानुपाती नहीं होती है। इस तरह के सेल का व्यवहार सीनेमेटोग्राफी ध्वनि के उत्पादन तथा रिकार्डिंग में होता है।
प्रश्न:7 डी. ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य समीकरण से इलेक्ट्रॉन का तरंगदैर्घ्य निकालिए।
उत्तर: मान लें कि इलेक्ट्रॉन V वोल्टता से त्वरित किया गया है। यदि त्वरण के पश्चात् इलेक्ट्रॉन के वेग को ‘v’ द्वारा और इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान को ‘m’ द्वारा प्रकट करते हैं, तो इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा qV जूल के बराबर होनी चाहिए।
डी. ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य समीकरण से इलेक्ट्रॉन का तरंगदैर्घ्य निकालिए
प्रश्न: 8 एक इलेक्ट्रॉन – कण तथा फोटॉन समान गतिज ऊर्जा के समान है। इनमें किस कण का द ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य सबसे कम है ?
उत्तर: एक इलेक्ट्रॉन
∴ इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान कम होता है।
अतः इसका तरंगदैर्ध्य α-कण की अपेक्षा अधिक होगा।
प्रश्न:9 प्रकाश-वैद्यत के कुछ उपयोग बताइए।
उत्तर: प्रकाश-वैद्युत सेल के प्रमुख उपयोग निम्न प्रकार हैं –
(i) घरों के लिए इन्हे चोर घंटी के रूप में प्रयुक्त करते हैं।
(ii) इन्हें अग्नि घंटी के रूप में काम में लाते हैं।
(iii) रासायनिक अभिक्रिया में ताप नियंत्राण के काम में लाया जाता है।
(iv) एक हाल में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों की स्वतः गिनती के काम में इन्हें लाया जाता है।
(v) सड़कों की बत्तियों को स्वतः बुझाने के काम में इन्हें लाया जाता है।
(vi) द्वारक के स्वतः नियंत्रण के काम में इन्हें फोटोग्राफिक कैमरा में लगाते हैं।
(vii) इन्हें TV स्टूडियो में प्रकाश को वैद्युत धारा में परिवर्तित करके प्रसारण के काम में लाया जाता है।
प्रश्न:10 निरोधी विभव के क्या अभिलक्षण हैं ?
उत्तर: निरोधी विभव के निम्न अभिलक्षण हैं –
(i) यह प्रकाशिक इलेक्ट्रॉनों की उच्चतम गतिज ऊर्जा का माप है।
(ii) यह धातु पृष्ठ की प्रकृति पर निर्भर है।
(iii) यह प्रकाश संवेदी द्रव्य के पृष्ठ जिस पर प्रकाश आवृत्ति आपतित है पर निर्भर है। एक दत्त पृष्ठ के लिए इसका निरोधी विभव या बाधा विभव का मान अधिक होता है जब आपतित आवृत्ति अधिक हो।
प्रश्न:11 फोटॉन के क्या गुण हैं ?
उत्तर: फोटॉन के निम्नलिखित गुण हैं –
(i) निर्वात् में यह प्रकाश वेग से गतिमान होते हैं।
(ii) इनका विराम द्रव्यमान शून्य होता है।
(iii) इनका संवेग p = h/λ द्वारा दिया जाता है।
(iv) यह वैद्युतीय रूप से उदास होते हैं।
(v) यह सरल रेखा में गति करते हैं।
(vi) यह विद्युत और चुंबकीय क्षेत्रों में विचलित नहीं होते।
(vii) जब यह एक माध्यम से दूसरे माध्यम में चलते हैं, इनकी ऊर्जा वही रहती है।
(viii) इनका गतिक द्रव्यमान होता है, जो m = h/λ द्वारा व्यक्त किया जाता है।
प्रश्न:12 ध्रुवण का मैलस नियम क्या है ?
उत्तर: प्रकाश तीव्रता ध्रुवक को पार करने में गुणक cose से कम होती है। यदि I0 आपतित तीव्रता तथा I ध्रुवक के बाद की तीव्रता हो तो I = I0cos2θ जहाँ θ आपतित ध्रुवण तल एवं सहज गमन तल के बीच कोण है।
प्रश्न:13 प्रकाशिक फाइबर क्या है ? इसके कुछ मुख्य उपयोगों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर: यह पूर्ण आंतरिक परावर्तन (Total internal reflection) के सिद्धांत पर कार्य करने वाली एक ऐसी काँच या क्वार्ट्ज की नली है जिसकी सहायता से प्रकाश संकेत को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जाता है।
उपयोग –
(i) संचार लाइन के रूप में एवं कम्प्यूटर (Computer) के क्षेत्र में।
(ii) दो विमीय एवं त्रिविमीय फोटो संचार में।
(iii) Endoscopy में (मेडिकल क्षेत्र में)।
(iv) हृदय (Heart) में ब्लड प्रवाह मापने में।
(v) अपवर्तनांक मीटर (Refractrometer) में।
प्रश्न:14 विद्युत चुम्बकीय विकिरण की दोहरी प्रकृति क्या है ? विस्तार मे सझाइयेl
उत्तर: विद्युत चुम्बकीय विकिरण का तरंग और कण के रूप में दोहरा व्यवहार होता है जिसमें विद्युत चुम्बकीय विकिरण का दोलन विद्युत क्षेत्र में रखा जाता है। किसी भी प्रकार के धातु के माध्यम से मुक्त स्थान में ऊर्जा के प्रसार को विद्युत चुम्बकीय तरंगों के रूप में देखा जाता है। समतल में दोलन द्वारा विद्युत क्षेत्र और चुंबकीय क्षेत्र एक दूसरे के लंबवत होते हैं। विद्युत चुम्बकीय विकिरण विभिन्न प्रकार के होते हैं-
रेडियो तरंगें
अवरक्त किरणों
दृश्यमान प्रकाश
पराबैंगनी किरण
एक्स-रे और
गामा किरणें
विद्युत चुम्बकीय विकिरण के गुण विकिरण की प्रक्रिया द्वारा स्पेक्ट्रम के व्यवहार की व्याख्या करते हैं। विद्युत क्षेत्र में इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन विभिन्न प्रकार के अवशोषण स्पेक्ट्रम को परिभाषित करता है जो विद्युत चुम्बकीय विकिरण की दोहरी प्रकृति को करने में मदद करता है। इसके अलावा, फोटॉनों में विभिन्न प्रकार की क्वांटम ऊर्जा होती है जो विकिरण की तरंग प्रकृति को दर्शाती है। ध्रुवीकरण की घटना फोटोइलेक्ट्रिक प्रभाव प्रक्रिया द्वारा विद्युत चुम्बकीय विकिरण के दोहरे व्यवहार को सिद्ध करती है। विद्युत चुम्बकीय विकिरण की दोहरी प्रकृति में प्रकाश तरंग विकिरण या कणों की धारा के गुणों पर निर्भर करता है।
प्रश्न:15 रदरफोर्ड की परमाणु संरचना
रदरफोर्ड ने उपयुक्त प्रेक्षणों और प्रामाणिकता के आधार पर अपनी स्वयं की परमाणु संरचना प्रस्तावित की जो इस प्रकार है।
उत्तर: नाभिक एक परमाणु के केंद्र में होता है, जहां अधिकांश आवेश और द्रव्यमान केंद्रित होते हैं।
परमाणु संरचना गोलाकार होती है।
जिस तरह से ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं, उसी तरह इलेक्ट्रॉन एक गोलाकार कक्षा में नाभिक के चारों ओर घूमते हैं।
रदरफोर्ड परमाणु मॉडल की सीमाएं
यदि इलेक्ट्रॉनों को नाभिक के चारों ओर घूमना है, तो वे ऊर्जा खर्च करेंगे और वह भी नाभिक से आकर्षण के प्रबल बल के विरुद्ध, इलेक्ट्रॉनों द्वारा बहुत सारी ऊर्जा खर्च की जाएगी और अंततः, वे अपनी सारी ऊर्जा खो देंगे और गिर जाएंगे नाभिक इसलिए परमाणु की स्थिरता की व्याख्या नहीं की गई है।
यदि इलेक्ट्रॉन लगातार 'नाभिक' के चारों ओर घूमते हैं, तो अपेक्षित स्पेक्ट्रम का प्रकार एक सतत स्पेक्ट्रम होता है। लेकिन वास्तव में, हम जो देखते हैं वह एक रेखा स्पेक्ट्रम है।
प्रश्न:16 रदरफोर्ड का नाभिकीय सिद्धांत क्या है ?
उत्तर: 1911 ई. में लॉर्ड रदरफोर्ड (Lord Rutherford) ने एक अति महत्त्वपूर्ण प्रयोग करके परमाणु की आंतरिक व्यवस्था से सम्बन्धित एक आश्चर्यजनक तथ्य का पता लगाया।रदरफोर्ड द्वारा किये गए इस प्रयोग को रदरफोर्ड का प्रकीर्णन प्रयोग (Rutherford’s Scattering Experiment) कहा जाता है। टॉम्सन द्वारा प्रस्तुत परमाणु का स्वरूप अस्वीकार करते हुए रदरफोर्ड ने अपने प्रयोग के निरीक्षणों के आधार पर एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसे रदरफोर्ड का ‘नाभिकीय सिद्धांत’ कहते हैं।
प्रश्न:17 समस्थानिक और समभारिक में अन्तर क्या है?
समस्थानिक और समभारिक में अन्तर -:
1) समस्थानिक (Isotopes) के परमाणु क्रमांक समान होते हैं और द्रव्यमान संख्या अलग-अलग होते हैं जबकि समभारिक (Isobars) में इसके बिल्कुल उल्टा होता है क्योंकि समभारिक में परमाणु क्रमांक अलग-अलग होते हैं और द्रव्यमान संख्या समान होते हैं।
2) समस्थानिक (Isotopes) के रासायनिक गुण समान होते हैं जबकि समभारिको (Isobars) के रासायनिक गुण भी भिन्न-2 होते हैं।
3) समस्थानिक (Isotopes) को आवर्त सारणी में एक ही स्थान मिलता है जबकि समभारिक (Isobars) को आवर्त सारणी में अलग-अलग स्थान प्राप्त होते हैं।
4) समस्थानिक (Isotopes) में प्रोटानो की संख्या समान होती है जबकि समभारिक (Isobars) में प्रोटानों की संख्या समान नही होती है।
5) समस्थानिक (Isotopes) तत्वों में इलेक्ट्रॉन की संख्या समान होती है जबकि समभारिक (Isobars) तत्वों में इलेक्ट्रॉन की संख्या समान नही होती है।
6) प्रत्येक समस्थानिक (Isotopes) तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास समान होता है जबकि प्रत्येक समभारिक (Isobars) तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास अलग अलग होता है।
प्रश्न:18 विद्युत चुंबकीय सिद्धांत के मुख्य बिंदु क्या थे? इसकी सीमाएं क्या थीं? प्लैंक के क्वांटम सिद्धांत द्वारा इन्हें कैसे दूर किया गया है?
उत्तर: विद्युत चुंबकीय सिद्धांत क्लार्क मैक्सवेल द्वारा दिया गया था।
विद्युत चुंबकीय सिद्धांत के मुख्य बिंदु थे:
जब एक विद्युतीय आवेशित विकिरण के अंतर्गत गति होती है, तो विद्युतीय और चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होते हैं और प्रसारित होते हैं। ये क्षेत्र सूक्ष्म के रूप में प्रसारित होते हैं। इन इलेक्ट्रोलाइट्स को इलैक्ट्रिक मैग्नेटिक कलरिंग या इलैक्ट्रिक मैग्नेटिक रेडिएशन कहा जाता है। किसी स्रोत से लगातार ऊर्जा विकिरण के रूप में होती है और इसे विकिरण ऊर्जा कहते हैं।विकिरण में विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र होते हैं जो एक दूसरे के दोलन करते हैं और विकिरण के प्रसार की दिशा में प्रभाव भी होते हैं।
प्रश्न:19 क्वांटम संख्या किसे कहते हैं?
उत्तर: किसी परमाणु के अंदर इलेक्ट्रॉन्स को पूरी तरह से define करने के लिए (जैसे की इलेक्ट्रॉन्स की ऊर्जा , कक्षक , चक्रण आदि) जिन संख्याओं की आवशयकता होती है उन नंबर्स को quantum numbers या क्वांटम संख्या कहते हैं। एक orbital में दो इलेक्ट्रॉनों के लिए प्रत्येक चार Quantum संख्या समान नहीं होती है ये संख्या चार प्रकार की होती हैं-
1.मुख्य क्वांटम संख्या
2.दिगंशी क्वांटम संख्या
3.चुंबकीय क्वांटम संख्या
4. चक्रण क्वांटम संख्या
प्रश्न:20 अपवर्जन सिद्धांत के उदाहरण समझाइए
उत्तर: इस नियम के उदाहरण को हम नीचे पाउली अपवर्जन सिद्धांत क्या है में एक प्रश्न के माध्यम से समझेंगे–
उदाहरण: n=1 जिसे हम मुख्य क्वांटम संख्या भी कहते हैं, के लिए इलेक्ट्रॉन की कुल संख्या और हर electron के लिए विभिन्न quantum numbers का मान बताइए?
n=1 के लिए ऊर्जा स्तर में सिर्फ दो इलेक्ट्रॉन ही पाए जाते हैं जो विपरीत चक्रण के होते हैं और इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1n² होता है।
n=1 के लिए
l और m का मान शून्य होता है तथा s= +½ और -½ होता है।
यहां पर s, spin क्वांटम संख्या है।
S उपकोश में पहले इलेक्ट्रॉन के लिए spin क्वांटम no का मान +½ तथा दूसरे इलेक्ट्रॉन के लिए स्पिन या चक्रण क्वांटम संख्या का मन – ½ होता है।
प्रश्न:21 रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल क्या है?
उत्तर: रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल :- रदरफोर्ड ने अल्फा कण प्रकीर्णन प्रयोग से प्राप्त निष्कर्षों के आधार पर परमाणु संरचना के लिए एक नवीन मॉडल प्रस्तुत किया। जिसे परमाणु का नाभिकीय मॉडल भी कहा गया। इस परमाणु मॉडल के अनुसार
परमाणु का संपूर्ण धन आवेश एवं समस्त द्रव्यमान परमाणु के केंद्र पर अल्प आयतन में केंद्रित रहता है जिसे नाभिक कहते हैं। जिसकी त्रिज्या लगभग 10-15 m कोटि की होती हैं।
नाभिक के चारों ओर लगभग 10-10 m त्रिज्या के गोले में इलेक्ट्रॉन सभी संभावित त्रिज्याओ के वृत्तीय पथो पर नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाते हैं। सभी इलेक्ट्रॉन पर कुल ऋण आवेश नाभिक के धन आवेश के बराबर होते हैं।
इलेक्ट्रॉन को वृत्तीय पथ पर गति करने के लिए आवश्यक अभिकेंद्रीय बल नाभिक व इलेक्ट्रॉन के बीच विद्युत बल कूलॉम आकर्षण बल से प्राप्त होता है।
प्रश्न:22 परमाणु के क्वाण्टम सिद्धान्त पर आधारित मॉडल का सविस्तार वर्णन कीजिए।
उत्तर: क्वांटम यांत्रिकी श्रोडिंगर के अनुपात और उसके समाधान पर आधारित है। टैंग रेशों के हल से कोशों, उपकोशों और चैटरों के बारे में विचार आता है। एक परमाणु के भीतर एक बिंदु पर एक योग्यता की संभावना |ψ| की समानता 2 उस बिंदु पर होती है, जहां ψ उस वरीयता के गैंग-कार्य का प्रतिनिधित्व करता है।
बहु-इलेक्ट्रॉन के लिए श्रोडिंगर के अनुपात का अनुप्रयोग कुछ जटिल कर देता है: श्रोडिंगर के रैंकिंग अंकों को बहु-इलेक्ट्रॉन परमाणु के लिए ठीक हल नहीं किया जा सकता है। पासवर्ड का उपयोग करके इसे अधिक सटीक रूप से उपयोग किया गया।
श्रोडिंगर ट्वीटर काउंटिंग ऐप ने एक परमाणु संरचना की शुरुआत करने में एक परमाणु के क्वांटम यांत्रिकी मॉडल का निर्माण किया।
प्रश्न:23 परमाणु के नाभिक के बारे मे क्या समझते है?
उत्तर: परमाणु का नाभिक- परमाणु का केन्द्र जिसमें परमाणु का सम्पूर्ण द्रव्यमान तथा सम्पूर्ण धनावेश केंद्रित रहता है परमाणु का नाभिक कहलाता है।
इसमें दो प्रकार के कण पाये जाते है –
1.न्यूट्रॉन तथा प्रोट्रॉन न्यूट्रॉन आवेशहीन होता है, पर प्रोट्रॉन पर +1 इकाई धनावेश होता है ।
2.प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन को मिलाकर जो बनता है उसे न्यूक्लियोन्स (Nucleons) कहते है।
3.सभी न्यूक्लियोन्स के बीच एक आकर्षण बल उत्पन्न होते है जिसे नाभिकीय बल कहते है,
4.इसी बल के कारण परमाणु का नाभिक में स्थायित्व होता है।
हाइड्रोजन के प्रोटियम (1H¹) समस्थानिक के नाभिक में कोई न्यूट्रॉन नहीं होता है।
प्रश्न:24 आफबाऊ के सिद्धांत के अनुसार निम्नलिखित में से कौन सा कक्षक पहले भरा जाएगा?
उत्तर: आफबाऊ सिद्धांत : ऑफबाऊ एक जर्मन शब्द है जिसका अर्थ है निर्माण करना , अर्थात परमाणु के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास को लिखना “आफबाऊ नियम सिद्धान्त ” कहलाता है। इस नियमानुसार इलेक्ट्रॉन पहले कम ऊर्जा के कक्षकों में भरे जाते है और बाद में अधिक ऊर्जा के कक्षकों में भरे जाते है।
प्रश्न:25 पाउली का अपवर्जन का नियम क्या है?
उत्तर: यह सिद्धान्त क्या कहता है इसके अनुसार
1.कोई भी दो समान फर्मिऑन , एक ही समय में, एक समान प्रमात्रा स्थिति (Quantum State) में नहीं रह सकते।
2.किसी एक ही परमाणु में स्थित इलेक्ट्रॉनों के लिये यह नियम कहता है कि "किन्ही भी दो इलेक्ट्रॉनों की चारों (यानी सभी) प्रमात्रा संख्याएं एक समान नहीं हो सकतीं।
3.इस सिद्धान्त के अनुसार समान अवस्था वाले अथवा समान गुणधर्म वाले दो कण किसी एक समय मे किसी एक स्थान पर नहीं रह सकते है।
4.जो कण इस सिध्दांत का पालन करते है, फर्मिऑन कहलाते है, जैसे: इलेक्ट्रॉन, प्राणु, न्यूट्रॉन इत्यादि; एवं जो कण इस सिध्दांत का पालन नहीं करते है, बोसॉन कहलाते है, जैसे: फोटॉन, ग्लुऑन, गेज बोसान।