बिहार बोर्ड कक्षा 11 रसायन विज्ञान अध्याय 3 तत्वों का वर्गीकरण एवं गुणधर्मो में अवर्तिता दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न:1 लीथियम, सोडियम और पोटैशियम एक डॉबेराइनर त्रिक बनाते हैं। लिथियम और पोटेशियम के परमाणु द्रव्यमान क्रमशः 7 और 39 हैं। सोडियम के परमाणु द्रव्यमान की अपेक्षा करें।
उत्तर: चूंकि लीथियम, सोडियम और पोटैशियम एक डॉबेराइनर त्रिक बनाते हैं। तब लिथियम और पोटेशियम के परमाणु द्रव्यमान का माध्य सोडियम के परमाणु द्रव्यमान के बराबर होना चाहिए।
सोडियम का परमाणु द्रव्यमान = (लिथियम का परमाणु द्रव्यमान + पोटेशियम का परमाणु द्रव्यमान) / 2
सोडियम का परमाणु द्रव्यमान = (7 + 39) / 2
सोडियम का परमाणु द्रव्यमान = 46/2
सोडियम का परमाणु द्रव्यमान = 23.
प्रश्न:2 आधुनिक आवर्त नियम क्या है?
उत्तर:आधुनिक आवर्त नियम : परमाणु संरचना के अध्ययन के संदर्भ में ब्रिटिश वैज्ञानिक मोसले (Mosley) ने 1913 ई० में तत्वों के एक नए विशिष्ट गुण की खोज की। इसका नाम उन्होंने परमाणु संख्या (Atomic Number) दिया। उन्होंने बताया कि किसी तत्व की परमाणु संख्या उस तत्व के एक परमाणु में उपस्थित प्रोटॉनों या इलेक्ट्रॉनों की संख्या के समान होती है। किसी तत्व के लिए परमाणु संख्या का मान स्थिर होता है। किन्हीं दो तत्वों की परमाणु संख्या एक नहीं होती है।
प्रश्न:3 आधुनिक आवर्त सारणी के उपलब्धियों को लिखें।
उत्तर: (i) आधुनिक आवर्त सारणी परमाणु-संख्या पर आधारित है जो कि अधिक वैज्ञानिक है।
(ii) हाइड्रोजन को निश्चित स्थान प्रदान किया गया है।
(iii) प्रत्येक तत्त्व की स्थिति उसके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के क्रम में है।
(iv) प्रत्येक आवर्त क्षार धातु (प्रथम आवर्त को छोड़कर) से प्रारंभ होता है और अक्रिय तत्त्व से समाप्त होता है।
(v) अज्ञात तत्त्वों के लिए आवर्त सात में रिक्त स्थान छोड़ा गया है जिससे बहुत से तत्त्वों की खोज हुई है।
(vi) आधुनिक आवर्त सारणी में धातु एवं अधातु को उपधातुओं द्वारा अलग किया गया है।
(vii) आधुनिक आवर्त सारणी में सामान्य तत्त्वों, संक्रमण तत्त्वों एवं अक्रिय गैसों को स्पष्ट रूप से पृथक रखा गया है।
प्रश्न:4 न्यूलैंड्स के अष्टक सिद्धांत की सीमाएँ क्या हैं ?
उत्तर: (i) यह सिद्धांत केवल कैल्सियम (Cu) तक ही लागू हो सका। इसके बाद प्रत्येक आठवें तत्त्व का गुणधर्म पहले तत्त्व से नहीं मिलता है।
(ii)यह केवल हल्के तत्त्वों के लिए ही ठीक से लागू नहीं हो सका।
(iii) यह अधिक परमाणु द्रव्यमान वाले तत्त्वों पर लागू नहीं हो सका।
(iv)तत्त्वों को समंजिल करने के लिए दो-दो तत्त्वों को एक साथ रखा।
जैसे-Co तथा Ni, Ce तथा La
(v)कुछ असमान तत्त्वों को एक स्थान में रखा। जैसे—Co तथा Ni को F, CI तथा Br के साथ रखा जबकि इनके गुणधर्म CO तथा Ni से भिन्न है। Fe को Co तथा Ni से अलग रखा जबकि उनके गुणधर्मों में समानता है।
(vi)निष्क्रिय गैस का आविष्कार हो जाने पर आठवें तत्त्व के बदले नवम् तत्त्व प्रथम तत्त्व के समान गुण वाला होने लगा।
(vii)न्यूलैंड्स ने माना कि प्रकृति में केवल 56 तत्त्व विद्यमान हैं, अन्य तत्त्वों का भविष्य में भी आविष्कार संभव नहीं है। लेकिन बाद में कई नए तत्त्व पाए गए जिनके गुणधर्म, अष्टक सिद्धांत से मेल नहीं खाते थे।
प्रश्न:5 निष्क्रिय गैसीय तत्त्वों को आवर्त सारणी के शून्य वर्ग में क्यों रखा गया है ?
उत्तर: इस परिवार के सदस्यों को शून्य वर्ग में रखा गया है। क्योंकि ये सभी सदस्य O संयोजकता प्रस्तुत करते हैं। इसका अर्थ यह है कि ये अन्य तत्त्वों के साथ संयोजित होने की प्रवृत्ति नहीं रखते। हीलियम की संयोजकता शेल (केवल एक ही शेल) में केवल 2 इलेक्ट्रॉन हैं। अन्य परिवार के सदस्यों की संयोजकता शेल में आठ-आठ इलेक्ट्रॉन होते हैं। संयोजकता (8-संयोजकता इलेक्ट्रॉनों की संख्या) के बराबर होती है। इसलिए ये शून्य संयोजकता प्रस्तुत करते हैं।
प्रश्न:6 मेंडलीफ के वर्गीकरण की क्या सीमाएँ हैं ?
उत्तर: (i) हाइड्रोजन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास क्षार धातुओं से मिलता है। क्षार धातुओं की भाँति हाइड्रोजन भी हैलोजन, ऑक्सीजन एवं सल्फर के साथ एक जैसे सूत्र वाले यौगिक बनाती है। दूसरी ओर हैलोजन की भाँति हाइड्रोजन भी द्विपरमाणुक अणु के रूप में पाई जाती है एवं धातुओं और अधातुओं के साथ यह संयोजक यौगिक बनाती है।
निश्चित रूप से आवर्त सारणी में हाइड्रोजन को नियत स्थान नहीं दिया जा सकता है। यह मेंडलीफ के आवर्त सारणी की पहली कमी थी। उन्होंने अपनी सारणी में हाइड्रोजन को उचित स्थान नहीं दे सके।
(ii) मेंडलीफ आवर्त सारणी में समस्थानिकों और नोबुल गैसों के लिए कोई स्थान नहीं दिया गया।
(iii) मेंडलीफ आवर्त सारणी में एक तत्त्व से दूसरे तत्त्व की ओर बढ़ने पर परमाणु द्रव्यमान नियमित रूप से नहीं बढ़ते। इसलिए यह अनुमान लगाना होगा कि दो तत्त्वों के बीच कितने तत्त्व खोजे जा सकते हैं। जब भारी तत्त्वों पर विचार करते हैं तो कठिनाई उत्पन्न हो जाती है।
प्रश्न:7 इलेक्ट्रॉनिक कॉन्फ़िगरेशन क्या है?
उत्तर: परमाणु नाभिक के चारों ओर विभिन्न ऊर्जा स्तरों पर इलेक्ट्रॉनों का संगठन एक इलेक्ट्रॉनिक विन्यास है, जिसे अक्सर इलेक्ट्रॉनिक संरचना कहा जाता है।
एक अणु में विभिन्न आणविक कक्षकों में इलेक्ट्रॉनों के वितरण को इलेक्ट्रॉनिक कॉन्फ़िगरेशन कहा जाता है। किसी अणु या आणविक आयन के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास से आबंधी आण्विक कक्षकों और प्रतिआबंधी आण्विक कक्षकों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या का पता लगाना संभव है।
प्रश्न:8 न्यूलैंड्स के अष्टक नियम को लिखें।
उत्तर: 1866 ई० में अंग्रेज वैज्ञानिक जॉन न्यलैंडस ने सात तत्त्वों को परमाणु द्रव्यमान के आरोही क्रम में व्यवस्थित किया। उन्होंने सबसे कम परमाणु द्रव्यमान वाले तत्त्व वाल तत्त्व हाइड्रोजन से आरंभ किया तथा 56वें तत्त्व थोरियम पर इसे समाप्त किया। उन्होंने पाया कि प्रत्येक आठवें तत्त्व का गणधर्म पहले तत्त्व के गुणधर्म के समान है। उन्होंने इसकी तुलना संगीत के अष्टक से की और इसलिए इन्होंने अष्टक का सिद्धांत कहा। इसे “न्यूलैंड्स का अष्टक सिद्धांत” कहा जाता है।
प्रश्न:9 मेंडलीव के आवर्त सारणी की विसंगतियों को लिखें।
उत्तर: मेंडलीव के आवर्त सारणी की विसंगतियाँ निम्न हैं –
(i) निश्चित रूप से आवर्त सारणी में हाइड्रोजन का नियत स्थान नहीं दिया जा सका है। यह मेंडलीव के आवर्त सारणी की पहली कमी थी। उन्होंने अपनी सारणी में हाइड्रोजन को उचित स्थान नहीं दे सके।
(ii) मेंडलीव आवर्त सारणी में समस्थानिकों और नोबल गैसों के लिए कोई स्थान नहीं दिया गया।
(iii) मेंडलीव आवर्त सारणी में एक तत्त्व से दूसरी तत्त्व की ओर बढ़ने पर परमाणु द्रव्यमान नियमित रूप से नहीं बढ़ते। इसलिए यह अनुमान लगाना होगा कि दो तत्त्वों के बीच कितने तत्त्व खोजे जा सकते हैं। जब भारी तत्त्वों पर विचार करते हैं तो कठिनाई उत्पन्न हो जाती है।
प्रश्न:10 आवर्त सारणी के आधार पर तत्वों के गुणों में आवर्तिता का क्या अर्थ है?
उत्तर: आवर्त सारणी में तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास में क्रमिक परिवर्तन होता है इसी कारण तत्वों के गुणों में भी क्रमिक परिवर्तन होता हैl
तत्वों के गुणों में इस क्रमिक परिबर्तन को ही गुणों में आवर्तिता कहते हैं। तथा इन गुणों को आवर्ती गुण कहा जाता है।
जैसे-परमाणु त्रिज्या, गलनांक, क्वथनांक, आयनन एन्थैल्पी तथा संयोजकता आदि ।
प्रश्न:11 जीवन के लिए क्या धातुओं की आवश्यकता है?
उत्तर: उपधातुओं को मानव स्वास्थ्य, ढांचे और अन्य सभी जीवित रूपरेखाओं के लिए महत्वपूर्ण माना जा सकता है। बोरान, सिलिकॉन और सिलिकॉन जैसे कुछ उपधातु स्वस्थ जीवों के विकास के लिए लाभ या आवश्यक हैं, जबकि अन्य, जैसे आर्सेनिक और जर्मेनियम, अत्यधिक व्याप्त होते हैं। आम तौर पर मेटलॉइड्स में धार्मिक रूप होते हैं, लेकिन वे भंगुर होते हैं, जो कुछ भी कठोर होते हैं, लेकिन आसानी से टूटने के लिए उत्तरदायी होते हैं। इस संपत्ति के साथ-साथ वे बिजली के बहुत अच्छे संप्रेषण भी करते हैं।
प्रश्न:12 धातुएँ विद्युत के सुचालक क्यों होती हैं ?
उत्तर: धातुएँ विद्युत के अच्छे चालक होते हैं। ये विद्युत धनात्मक भी हैं। इसमें इलेक्ट्रॉन त्यागने की प्रवृत्ति तीव्र होती है। ये ताप और विद्युत के सुचालक होते हैं। इसके तार से होकर विद्युत का प्रवाह आसानी से की जा सकती है। धातुओं को चालकता उनमें उपस्थित मुक्त इलेक्ट्रॉन के कारण होती है। ये इलेक्ट्रॉन धातु से होकर आसानी से दौड़ सकत हैं। यही कारण है कि धातु विद्युत और ताप के अच्छे चालक हैं।
प्रश्न:13 हवाई जहाजों का ढाँचा ऐलुमिनियम के मिश्र धातुओं से क्यों बनाया जाता है ? वर्णन करें।
उत्तर: हवाई जहाज का ढाँचा ऐलुमिनियम के मिश्र धातुओं डुरेलिमिन और मैग्लिनियम से निम्नलिखित कारणों से बनाया जाता है –
(i) ये अति हल्की मिश्र धातु है जिसका आपेक्षिक घनत्व बहुत कम है।
(ii) सुचालक होने के कारण विद्युत् प्रेषण तारें इनसे बनाई जा सकती हैं।
(iii) इन पर जंग नहीं लगता।
(iv) इन मिश्र धातुओं की कठोरता बहुत अधिक होती है।
(v) ये रसायनों के प्रति बहुत क्रियाशील नहीं है।
प्रश्न:14 परमाणु त्रिज्या क्या है?
उत्तर: परमाणु त्रिज्या एक परमाणु के नैनोक से उसका सबसे बाहरी इलेक्ट्रॉनिक ऊर्जा स्तर (सबसे बाहरी कक्षीय) के बीच की दूरी पर है। परमाणु त्रिज्या को परमाणु के नान से युक्त उपकोशों की सीमा तक की औसत दूरी के रूप में भी परिभाषित किया जा सकता है।
तत्वों की परमाणु त्रिज्या इतनी कम होती है कि इसे एंगस्ट्रॉम (Å) के पैमाने पर परिकलित किया जाता है।
1 Å = 10 -10 मीटर = 10 -8 सेमी
प्रश्न:15 आयनिक त्रिज्या क्या है?
उत्तर: आयन तब बनते हैं जब कोई परमाणु संभावना खोता या प्राप्त करता है। जब एक परमाणु एक शेयरधारक खोता है तो यह एक धनायन बनता है और जब यह एक प्राथमिकता प्राप्त करता है तो यह एक ऋणायन बन जाता है। आयनिक त्रिज्या को आयनिक और आयन के बाहरी कक्ष के बीच की दूरी के रूप में वर्णित किया जा सकता है।
धनायन का परमाणु आकार मूल परमाणु के आकार से छोटा होगा। ऋणायन के आकार में आपका मूल परमाणु अपेक्षाकृत बड़ा होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि जब कोई परमाणु जोखिम प्राप्त करता है, तो शेयरों की कुल संख्या बढ़ जाती है जो संकेतों के बीच अधिक प्रतिकर्षण पैदा करता है और इस प्रकार शुद्ध प्रभावी परमाणु आवेश को कम कर देता है।
प्रश्न:16 आयनन एन्थैल्पी क्या है?
उत्तर: आयनन एन्थैल्पी
एक विलगित गैसीय परमाणु की सबसे बाहरी कक्षा में स्थित अंतिम इलेक्ट्रॉन को बाहर निकालने के लिये आवश्यक ऊर्जा को प्रथम ‘आयनन एन्थैल्पी‘ कहते हैं। दूसरा इलेक्ट्रॉन निकालने के लिये आवश्यक ऊर्जा को द्वितीय आयनन एन्थैल्पी कहते हैं। द्वितीय आयनन एन्थैल्पी का मान प्रथम आयनन एन्थैल्पी से अधिक होता है क्योंकि उदासीन परमाणु की तुलना में धनात्मक आयन से इलेक्ट्रॉन पृथक् करना कठिन होता है।
प्रश्न:17 किसी तत्व की विद्युत ऋणात्मकता क्या है?
उत्तर: विद्युत ऋणात्मकता को एक रासायनिक यौगिक में किसी परमाणु की उस क्षमता के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसपर वह एक साझा इलेक्ट्रॉन को खुद तक आकर्षित करता है। विद्युत ऋणात्मकता किसी तत्व की वह प्रवृत्ति है जिसपर वह आपसी इलेक्ट्रॉनों को अपनी ओर आबंधित स्थिति में खींचता है।
आवर्त में बाई से दाई ओर जाने पर विद्युत ऋणात्मकता बढ़ती है। (शून्य वर्ग को छोड़कर) तथा वर्ग में नीचे की ओर जाने पर इसका मान घटता है।
प्रश्न:18 इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी तथा इलेक्ट्रॉन ऋणात्मकता में के अंतर बताईये l
उत्तर: इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी, किसी उदासीन विलगित गैसीय परमाणु की बाहा कक्षा में एक अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन ग्रहण करने की प्रवृत्ति को बताती है। जबकि इलेक्ट्रॉन ऋणात्मकता, परमाणु द्वारा किसी सहसंयोजक योगिक में साझा किये गये इलेक्ट्रॉन युग्म को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता को बताती है। ये दोनों एक-दूसरे से बिल्क़ुल भिन्न है।
प्रश्न:19 क्लोरीन की स्वीकृति लब्धि एन्थैल्पी फ्लोरीन से अधिक ऋणात्मक क्यों होती है?
उत्तर: क्लोरीन की शेयरिंग लब्धि एन्थ हो गई फ्लोरीन की तुलना में अधिक ऋणात्मक होती है क्योंकि फ्लोरीन क्लोरीन से बहुत कम है। फ्लोरीन के अपेक्षाकृत छोटे 2पी ऑर्बिटल्स में मजबूत इंटर इलेक्ट्रॉनिक प्रतिकर्षण होता है। इस प्रकार आने वाले को अधिक रुचि का अनुभव नहीं होगा। इसलिए क्लोरीन की झलक एन्थैल्पी फ्लोरीन की तुलना में अधिक ऋणात्मक होती है।
प्रश्न:20 उत्कृष्ट गैसों की घोषणा लब्धि एन्थैल्पी धनात्मक क्यों है?
उत्तर: उत्कृष्ट गैसों की स्वीकृति लब्धि एन्थैल्पी धनात्मक होती है क्योंकि उत्कृष्ट गैसों के संयोजी कक्षक पूर्ण रूप से बुर्ज होते हैं और अतिरिक्त संकेतों के लिए कोई रिक्त स्थान नहीं होता है। अतिरिक्त सम्मिलन को बाद के उच्च कक्ष में रखा जाता है क्योंकि अतिरिक्त सम्मिलन को जोड़ने के लिए ऊर्जा की आपूर्ति की जाती है। इस प्रकार, यह सकारात्मक है।
प्रश्न:21 इलेक्ट्रॉन गेन एन्थैल्पी की परिभाषा क्या है?
उत्तर: इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी एक गैस परमाणु द्वारा प्राप्त ऊर्जा है जब एक इलेक्ट्रॉन को ऋणात्मक आयन बनाने के लिए स्वीकार किया जाता है। इसे इलेक्ट्रॉन वोल्ट प्रति परमाणु या kJ प्रति मोल (kJ/mol) में मापा जाता है। इस ऊर्जा को निर्धारित करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सबसे आसान विधि इलेक्ट्रॉन गेन एन्थैल्पी विधि है, जो इस तथ्य पर आधारित है कि आयनीकरण के लिए केवल निकटतम इलेक्ट्रॉन आसानी से उपलब्ध हैं, और यह परमाणु उत्सर्जन स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग करता है।
इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी अतिरिक्त इलेक्ट्रॉनों को स्वीकार करने के लिए एक परमाणु की शक्ति का वर्णन करती है। इस प्रक्रिया में परमाणु के सबसे बाहरी खोल में मौजूद इलेक्ट्रॉन ऊर्जा देता है। इस प्रक्रिया में जारी ऊर्जा या तो गतिज या संभावित ऊर्जा के रूप में जारी की जा सकती है।
प्रश्न 22 इलेक्ट्रॉन गेन एन्थैल्पी को प्रभावित करने वाले कारक है?
उत्तर: नाभिकीय आवेश: जब इलेक्ट्रॉनों की कुल संख्या में वृद्धि होती है, तो नाभिक के साथ-साथ नए जोड़े गए इलेक्ट्रॉनों के साथ इसका आकर्षण बल बढ़ता है, जिससे इसकी एन्थैल्पी के परिमाण में वृद्धि होती है।
परमाणु आकार: जब किसी परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की संख्या में वृद्धि होती है, तो नाभिक और अंतिम इलेक्ट्रॉन के बीच की कुल दूरी बढ़ जाती है। इससे कोर और नए जोड़े गए इलेक्ट्रॉनों के बीच आकर्षण बल कम हो जाता है। शुद्ध परिणाम यह है कि परमाणु का समग्र आवेश कम ऋणात्मक हो जाता है।
प्रश्न:23 क्वाण्टम संख्या क्या है? इसका उपयोग बताईएl
उत्तर: यह इलेक्ट्रान की स्थिति और उर्जा का मान ज्ञात करने के लिए उपयोग किया जाता है।
ऐसी संख्या जो किसी परमाणु में उपस्थित इलेक्ट्रॉन के कोश , उपकोश , कक्षक और इलेक्ट्रॉन की चक्रण की दिशा को व्यक्त करता है,उसे क्वांटम संंख्याए कहते है
उर्जा लगाता तरंगों के रूप में ना होकर छोटे-छोटे उर्जा के पैकेट या बंडल के रूप में होती है बिना क्वांटम कहते हैं प्रकाश ऊर्जा के लिए यह क्वांटम प्रोटोन भी कहते हैं
प्रश्न:24 इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के बारे में पूर्ण जानकारी उदाहरण सहित लिखिये l
उत्तर: तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास :- तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास उस तत्व के परमाणुओं के कक्षको में इलेक्ट्रॉनों का वितरण होता है। परमाणुओं के कक्षको में इलेक्ट्रॉनों का वितरण मूल नियमों के आधार पर होता है अर्थात मूल नियमों के आधार पर ही कक्षको में इलेक्ट्रॉन भरे जाते हैं।
तत्वों इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (Electronic Vinyas) को प्रदर्शित करने के लिए निम्न प्रकार है।
पूर्ण रूप से भरे कोशो के इलेक्ट्रॉनों को क्रोड इलेक्ट्रॉन कहते हैं। 2p कक्षक के पश्चात 3s व 3p में इलेक्ट्रॉन भरे जाते हैं। तथा 2p तक पूर्ण भरे कक्षको को तत्व के नाम Ne (नियॉन) से निरूपित करते है।
Na = [Ne] 3s1
Al = [Ne] 3s2, 3p1
उच्चतम मुख्य क्वांटम संख्या के इलेक्ट्रॉनिक कोश में भरे जाने वाले इलेक्ट्रॉन संयोजकता इलेक्ट्रॉन कहलाते हैं।
प्रश्न:25 हुंड का अधिकतम बहुलता का नियम क्या है?
उत्तर: हुंड का अधिकतम बहुलता का नियम (Hund’s Rule) :- इस नियम के अनुसार की किसी भी परमाणु का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास करते समय इस नियम द्वारा समभ्रंश कक्षक भरे जाते हैं। जिन कक्ष को की ऊर्जा सम्मान होती है वे समभ्रंश कक्षक कहलाते है। जैसे तीनो p कक्षक px, py ,pz समभ्रंश कक्षक कहलाते है। व पांच d कक्षक तथा 7 f कक्षक समभ्रंश कक्षक कहलाते है।
अर्थात इस नियम के अनुसार किसी भी उपकोश के समभ्रंश कक्षको में सबसे पहले एक – एक इलेक्ट्रॉन भरा जाता है। उसके पश्चात आने वाले इलेक्ट्रॉनों का युग्मन किया जाता है।