बिहार बोर्ड कक्षा 11 रसायन विज्ञान अध्याय 4 रासायनिक आबंध तथा आण्विक संरचना दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
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बिहार बोर्ड कक्षा 11 रसायन विज्ञान अध्याय 4 रासायनिक आबंध तथा आण्विक संरचना दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न:1 न्यूलैंड का अष्टक नियम क्या है?

उत्तर: न्यूलैंड के अष्टक नियम के अनुसार हर आठवां तत्व पहले तत्व के गुणधर्म के बराबर है। साल 1864 में वैज्ञानिक जॉन एलेक्जैंडर न्यूलैंडस ने जब रासयनिक तत्वों को बढ़ते क्रम में उनके परमाणु भार के अनुसार व्यवस्थित किया, तब उन्हें समझ आया की हर 8वां तत्व पहले तत्व के अनुसार ही गुण रखता है। पहला तत्व लीथियम (Li) से आठवें तत्व सोडियम (Na) के गुण लीथियम के समान हैं। जिस प्रकार से संगीत में (सा, रे, गा, मा, पा, ध, नि) के बाद पुन: पहला सुर आता है, ठीक इसी प्रकार अष्टक सिद्धांत कहते हैं।

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प्रश्न:2 सहसंयोजक बंधन क्या हैं?

उत्तर: उच्च आयनीकरण ऊर्जा वाले तत्वों को स्थानांतरित करने में असफल होते हैं और बहुत कम सब्सक्राइब बांडुता वाले तत्व स्वीकृत ग्रहण नहीं कर सकते हैं। ऐसे तत्वों के परमाणु अपने अंशों को अन्य तत्वों के साथ या उसी तत्व के साथ अन्य परतों के साथ साझा करते हैं कि दोनों परमाणु अपने संबंधित वैलेंस शेल में ऑक्टेट फॉर्म प्राप्त करते हैं और इस प्रकार स्थिरता प्राप्त करते हैं। विभिन्न या एक ही प्रकार के वरीयता जोड़ों के साझाकरण के माध्यम से इस तरह के रूप में एक सहसंयोजक बंधन के रूप में जाना जाता है।

प्रश्न:3 सहसंयोजक बंधन क्या हैं?

उत्तर: उच्च आयनीकरण ऊर्जा वाले तत्वों को स्थानांतरित करने में असफल होते हैं और बहुत कम सब्सक्राइब बांडुता वाले तत्व स्वीकृत ग्रहण नहीं कर सकते हैं। ऐसे तत्वों के परमाणु अपने अंशों को अन्य तत्वों के साथ या उसी तत्व के साथ अन्य परतों के साथ साझा करते हैं कि दोनों परमाणु अपने संबंधित वैलेंस शेल में ऑक्टेट फॉर्म प्राप्त करते हैं और इस प्रकार स्थिरता प्राप्त करते हैं। विभिन्न या एक ही प्रकार के वरीयता जोड़ों के साझाकरण के माध्यम से इस तरह के रूप में एक सहसंयोजक बंधन के रूप में जाना जाता है।

प्रश्न:4 ऑक्टेट नियम क्या है?

उत्तर: "विभिन्न तत्वों के जमावट की उनके संयोजी कोश में आठ अंशों के स्थिर अनुपात को प्राप्त करने की प्रवृत्ति रासायनिक संयोजन का कारण है"

और

"परमाणुओं के संयोजी कोश में अधिकतम आठ शेयर प्राप्त करने के सिद्धांत को अष्टक नियम कहते हैं।"

लुईस ने परमाणु के बाहरी आक्रमण में वैलेंस संकेतों के रूप में मौजूद वेयर्स के रूप में सरल शुरुआत की। इन साझेदारों को  डॉट प्रतीक के रूप में जाना जाता है और यौगिक संरचना को  लुईसा संरचना के रूप में जाना जाता है।

प्रश्न:5 ध्रुवीय सहसंयोजी आबंध से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए l

उत्तर: इस प्रकार का सहसंबंध बंधन मौजूद होता है जहां साझेदारों का बंधन संबंध संबंध के संयोजन की वैद्युतीयऋणात्मकता में अंतर के कारण होता है।अधिक विद्युत सुरक्षा में घोषणाओं के लिए एक मजबूत विस्तार होगा। इलेक्ट्रोलाइट के बीच विद्युतीय अंतर शून्य से अधिक और 2.0 से कम है। नतीजतन, साझेदारी की साझेदारी उस परमाणु के करीब होगी।

उदाहरण, असंतुलित इलेक्ट्रोस्टैटिक क्षमता के परिणामस्वरूप बंधन बंधन बनाने वाले ऑक्‍सिक। इस मामले में, बीजक परमाणु इलेक्ट्रोनगेटिव फ्लोरीन, इलेक्ट्रॉन या ऑक्सीजन के साथ परस्पर क्रिया करता है।

प्रश्न:6 रासायनिक आबंध के बनने की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: समान और भिन्न तत्वों के परमाणु आपस में मिलकर रासायनिक आबंध बनाते हैं। इस प्रकार बने रासायनिक आबंधों को विभिन्न सिद्धांतों द्वारा वर्णित किया गया है। जब समान या भिन्न तत्वों के परमाणु संयोग करते हैं तब वे अपने संयोजी कोश में अष्टक पूरा करते हैं। अष्टक पूरा करके तत्व आदर्श गैस के विन्यास को ग्रहण करते हैं। ऐसे परमाणु या तो इलेक्ट्रॉन का साझा करके या दान करके करते हैं। एक अन्य सिद्धांत के अनुसार जब परमाणु आबंध बनाते हैं तब प्रक्रम का ऊर्जा स्तर निम्नतम होता है जिससे स्थायित्व ग्रहण करते हैं।

प्रश्न:7 आयनिक आबंध बनाने के लिए अनुकूल कारकों को लिखिए।

उत्तर: आयनिक आबंध बनाने हेतु अनुकूल कारक निम्न हैं –

1. धनायन बनाने वाले तत्व का आयनन विभव निम्न होना चाहिए।

2. ऋणायन बनाने वाले तत्व की उच्च इलेक्ट्रॉन ग्रहण एन्थैल्पी।

3. आयनिक यौगिक की उच्च जालक ऊर्जा होना।

प्रश्न:8 विद्युत्-ऋणात्मकता को परिभाषित कीजिए। यह इलेक्ट्रॉन ग्रहण एन्थैल्पी से किस प्रकार भिन्न है?

उत्तर: सहसंयोजी आबंध में किसी परमाणु की वह क्षमता जिसके कारण आबंधी इलेक्ट्रॉन को अपनी ओर आकर्षित करता है, विद्युत्-ऋणात्मकता कहलाती है। विद्युत्-ऋणात्मकता अणु में परमाणु के इस गुण धर्म को दर्शाती है, जबकि इलेक्ट्रॉन ग्रहण एन्थैल्पी एकल परमाणु के गुणधर्म को दर्शाता है।

इलेक्ट्रॉन ग्रहण एन्थैल्पी:

1.इलेक्ट्रॉन ग्रहण एन्थैल्पी एक परिमाणात्मक मान है एवं उस ऊर्जा को व्यक्त करती है, जो एक विलगित गैसीयपरमाणु के अंतिम कक्ष में एक इलेक्ट्रॉन को प्रविष्ट कराने पर मुक्त होती है।

2.ये विलगित अणु का गुण है।

3.एक अणु की इलेक्ट्रॉन ग्रहण एन्थैल्पी का निरपेक्ष मान होता है।

4.परिमाणात्मक होने के कारण इसका मात्रक होता है एवं इसे eV प्रति परमाणु या kJ प्रति मोल में व्यक्त करते हैं।

विद्युत्-ऋणात्मकता:

1.विद्युत्-ऋणात्मकता सहसंयोजी आबंधी इलेक्ट्रॉन युग्म को परमाणु द्वारा अपनी ओर आकर्षित करने की प्रवृत्ति होती है।

2. ये बंधित अणु का गुण है।

3. विद्युत्-ऋणात्मकता का मान बंध पर निर्भर करता है।

4. यह तत्वों के बीच आपेक्षिक होती है इसलिए इसकी कोई इकाई नहीं होती।

प्रश्न:9 परमाणु कक्षकों के रैखिक संयोग से आण्विक कक्षक बनने के लिए आवश्यक शर्तों को लिखिए।

उत्तर: परमाणु कक्षकों के रैखिक संयोग के लिए आवश्यक शर्ते निम्नानुसार हैं –

1. संयोग करने वाले परमाणु कक्षकों की ऊर्जा लगभग समान होनी चाहिए।

2. संयोग करने वाले परमाणु कक्षकों की आण्विक कक्ष के परितः समान सममिति होनी चाहिए।

3. संयोग करने वाले परमाणु कक्षकों के मध्य अतिव्यापन पर्याप्त होना चाहिए।

प्रश्न:10 संयोजकता का इलेक्ट्रॉनिक सिद्धांत क्या है? इसके मुख्य अभिगृहीत लिखिये।

उत्तर: संयोजकता का इलेक्ट्रॉनिक सिद्धांत तथा इसके मुख्य अभिगृहीत निम्नलिखित हैं –

1. किसी भी तत्व की संयोजकता उसके परमाणु के संयोजी कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या पर निर्भर करती है।

2. सभी तत्वों के परमाणुओं में अक्रिय गैस के समान स्थायी इलेक्ट्रॉनिक विन्यास प्राप्त करने की प्रवृत्ति होती है।

3. किसी भी तत्व के संयोजी कोश में उपस्थित इलेक्ट्रॉन को संयोजी इलेक्ट्रॉन कहते हैं तथा जब इस संयोजी कोश से इलेक्ट्रॉन निकल जाते हैं तो बचा हुआ रिक्त कक्ष कर्नेल कहलाता है।

4. यदि परमाणु अस्थायी हो तो वह स्थायित्व प्राप्त करने का प्रयास करता है।

इसके लिये वह इलेक्ट्रॉन का आदान-प्रदान या साझा करता है। इस आधार पर बंध तीन प्रकार के होते हैं –

1. आयनिक बंध

2. सहसंयोजी बंध

3. उप-सहसंयोजी बंध।

प्रश्न:11 आयनिक बंध बनाने के लिए अनुकूल कारकों को लिखिए।

उत्तर: आयनिक आबंध बनाने के लिए अनुकूल कारक निम्न है –

1. धनायन बनने वाले तत्व की आयनन एन्थैल्पी निम्न हो।

2. ऋणायन बनने वाले तत्व की अधिक ऋणात्मक इलेक्ट्रॉन लब्धि एन्थैल्पी (इलेक्ट्रॉन बंधुता)।

3.बनने वाले आयनिक यौगिक की उच्च जालक एन्थैल्पी।

प्रश्न:12 आबंध ऊर्जा या बंध ऊर्जा किसे कहते हैं?

उत्तर: किसी द्विपरमाणुक अणु की बंधन ऊर्जा वह ऊर्जा है जो दो उदासीन परमाणुओं के बंधित होकर उसके एक ग्राम अणु को गैसीय अवस्था में आने पर मुक्त होता है।

A + B → A – B + ऊर्जा

दूसरे शब्दों में, एक ग्राम अणु पदार्थ की गैसीय अवस्था में दो परमाणुओं के बीच बने सहसंयोजक बंध को तोड़ने के लिये जितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती है, उसे बंधन ऊर्जा कहते हैं। आबन्ध ऊर्जा का मात्रक किलो कैलोरी प्रति जूल या किलो जूल प्रति मोल है।

प्रश्न:13 सामान्य ताप पर जल द्रव होता है, जबकि हाइड्रोजन सल्फाइड गैस है, क्यों?

उत्तर: H2O तथा H2S, ऑक्सीजन तथा सल्फर के हाइड्रोजन के साथ बने यौगिक हैं। जल में उपस्थित ऑक्सीजन प्रबल ऋणविद्युती तत्व है। इसलिये साधारण ताप पर जल के अणुओं के मध्य अन्तर अणुक हाइड्रोजन बंध का बनना संभव है। इस अंतर अणुक हाइड्रोजन बंध के कारण जल के अणु संगुणित होते हैं जिसके कारण साधारण ताप पर जल द्रव है तथा इसके क्वथनांक उच्च होते हैं।

H2S में उपस्थित (S) के बड़े आकार के कारण ऋणविद्युतता कम होती है इसलिये H2S अणु के मध्य हाइड्रोजन बंध का बनना संभव नहीं है इसलिये इनके अणुओं के मध्य केवल दुर्बल वाण्डर वाल्स आकर्षण बल होता है अत: H2S साधारण ताप पर गैस है।

प्रश्न:14 जालक ऊर्जा और जलयोजन ऊर्जा से क्या समझते हैं?

उत्तर: 1.जालक ऊर्जा:

किसी आयनिक ठोस की जालक ऊर्जा, वह ऊर्जा है जो एक-दूसरे से अनन्त दूरी पर स्थित अवयवी गैसीय आयनों से एक मोल ठोस क्रिस्टल बनने से उत्सर्जित होती है। दूसरे शब्दों में, किसी भी क्रिस्टल के निर्माण में निकलने वाली ऊर्जा को जालक ऊर्जा कहते हैं।

2. जलयोजन ऊर्जा:

किसी आयन को जल में विलेय करने पर या आयन के साथ जल के संयुक्त होने पर निकलने वाली ऊर्जा जलयोजन ऊर्जा कहलाती है।

प्रश्न:15 परमाण्वीय कक्षकों के अतिव्यापन के लिये किन परिस्थितियों का होना आवश्यक है?

उत्तर: परमाण्वीय कक्षकों के अतिव्यापन के लिये निम्नलिखित परिस्थितियों का होना आवश्यक है –

1. दोनों परमाण्वीय कक्षकों की ऊर्जा लगभग समान होनी चाहिए।

2. दोनों परमाणुओं के नाभिकों की अक्ष पर एक-सी सममिति होनी चाहिये।

3. किसी भी संयोग के लिये अतिव्यापन की एक निश्चित सीमा आवश्यक है अर्थात् अतिव्यापन की सीमा अधिकतम होनी चाहिये।

प्रश्न:16 σ – बंध, π – बंध की तुलना में प्रबल होता है, क्यों?

उत्तर: किसी भी बंध की प्रबलता अतिव्यापन की सीमा पर निर्भर करती है। σ बंध सम्मुख अतिव्यापन के फलस्वरूप बनते हैं जबकि π बंध पार्श्व अतिव्यापन के फलस्वरूप बनते हैं। इसलिये बंध में अतिव्यापन की सीमा बंध से अधिक होती है क्योंकि अणु में उपस्थित बंध की उपस्थिति के कारण दोनों परमाणुओं के मध्य एक न्यूनतम दूरी निर्धारित होती है। जिसके कारण ग बंध निर्माण के दौरान कक्षक अधिकतम अतिव्यापन नहीं कर सकते हैं। इसलिये π बंध, σ बंध की तुलना में दुर्बल हैं।

प्रश्न:17 HCl एक सहसंयोजी यौगिक है, फिर भी इसका जलीय विलयन आयनित क्यों हो जाता है?

उत्तर: HCl सहसंयोजी यौगिक है लेकिन HCl में क्लोरीन की ऋणविद्युतता H से अधिक है जिसके कारण साझे का इलेक्ट्रॉन युग्म क्लोरीन की ओर विस्थापित हो जाता है, जिसके फलस्वरूप H पर आंशिक धन आवेश तथा Cl पर आंशिक ऋण आवेश उत्पन्न हो जाता है। अर्थात् HCl अणु में ध्रुवता उत्पन्न हो जाती है एवं बंध दुर्बल हो जाते हैं। HCl को जल में घोलने पर जल के अणु H+ और Cl– के बीच आकर्षण बल को कम कर देते हैं और HCl सरलता से आयनित हो जाता है।

प्रश्न:18 विद्युत् संयोजी तथा सहसंयोजी यौगिकों में से किनके क्वथनांक उच्च होते हैं, और क्यों?

उत्तर: विद्युत् संयोजी यौगिकों के क्रिस्टल आयनों से मिलकर बने होते हैं तथा इन आयनों के बीच प्रबल स्थिर वैद्युत आकर्षण बल होता है, जिसके कारण ये दृढ़ता से बँधे रहते हैं तथा इनको पृथक् करने के लिये तथा वाष्पित करने के लिये अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसलिये वैद्युत संयोजी यौगिकों के क्वथनांक सहसंयोजी यौगिक से उच्च होते हैं क्योंकि सहसंयोजी यौगिक परमाणु के संयोजन से बनते हैं तथा इनके मध्य केवल दुर्बल वाण्डर वाल्स आकर्षण बल होता है।

प्रश्न:19 विद्युत् संयोजक बंध किस प्रकार के यौगिकों के मध्य बनता है?

उत्तर: प्रबल धन विद्युतीय तत्व तथा प्रबल ऋणविद्युती तत्वों के मध्य आयनिक बंध बनता है क्योंकि प्रबल धन विद्युती तत्व सरलता से इलेक्ट्रॉन त्याग कर धनायन बनाते हैं जबकि प्रबल ऋणविद्युती तत्व सरलता से इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर ऋणायन बनाते हैं। ये धन आयन तथा ऋण आयनों के मध्य प्रबल स्थिर वैद्युत आकर्षण बल होता है। इस प्रबल स्थिर वैद्युत आकर्षण बल को ही वैद्युत संयोजी या आयनिक बंध कहते हैं।

उदाहरण – Na2,8,1 + Cl2,8,7 → Na2,8+ Cl2,8,8–

प्रश्न:20 C – CI बंध ध्रुवीय होता है, किन्तु CCl4 अध्रुवीय होता है। कारण स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: C – CI बंध में क्लोरीन की ऋणविद्युतता C की तुलना में उच्च है, जिसके कारण साझे के इलेक्ट्रॉन क्लोरीन की ओर विस्थापित हो जाते हैं जिससे C पर आंशिक धन आवेश तथा CI पर आंशिक ऋण आवेश आ जाता है और यह बंध ध्रुवीय प्रकृति दर्शाता है।

जबकि CCl4 अणु की संरचना सममित होती है, जिसके कारण C – Cl बंधों के द्विध्रुव आघूर्ण एकदूसरे को निरस्त कर देते हैं, इसलिये CCl4 का अणु अध्रुवीय होता है।

प्रश्न:21 संकरण के नियम लिखिए।

उत्तर: संकरण के नियम-

1. संकरण में भाग लेने वाले कक्षकों की ऊर्जा लगभग समान होनी चाहिए।

2. संकरण के पश्चात् प्राप्त होने वाले संकरित कक्षकों की संख्या संकरण में भाग लेने वाले कक्षकों की संख्या के बराबर होती है।

3. संकरण में केवल कक्षक भाग लेते हैं इलेक्ट्रॉन नहीं।

4. अर्धपूर्ण, पूर्ण तथा अपूर्ण कक्षक संकरण में भाग लेते हैं।

5. किसी भी अणु की ज्यामिति, बंध कोण संकरण पर निर्भर करता है।

6. संकरण एक परिकल्पना है, जिसका उपयोग प्रायोगिक तथ्यों के स्पष्टीकरण के लिये किया जाता है।

प्रश्न:22 सहसंयोजी बंध के परमाणु कक्षक अतिव्यापन सिद्धांत की प्रमुख अभिधारणाएँ कौनकौन सी हैं?

उत्तर: इस सिद्धांत के अनुसार:

1. जब एक परमाणु का कक्षक दूसरे परमाणु के कक्षक से अतिव्यापन करता है तो सहसंयोजी बंध बनते हैं।

2. बंध बनने पर बंधी इलेक्ट्रॉन दोनों परमाणुओं के नाभिक से सम्बन्धित होता है।

3. आबंधी इलेक्ट्रॉनों का चक्रण विपरीत दिशा में होना चाहिये।

4. बंध का सामर्थ्य अतिव्यापन की मात्रा पर निर्भर करता है।

5. अतिव्यापन के आधार पर बंध दो प्रकार के होते हैं- बंध तथा 7 बंध।

6. किसी भी तत्व की संयोजकता उसके संयोजी कोश में उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या पर निर्भर करती है।

7. अतिव्यापन उन्हीं कक्षकों में होता है जो बंध निर्माण में भाग लेते हैं।

8. एक से अधिक अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों वाले कक्षकों के अतिव्यापन से बहु आबन्ध बनते हैं।

प्रश्न:23 अणु कक्षक सिद्धांत के मुख्य बिन्दुओं को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: अणु कक्षक सिद्धांत के मुख्य बिन्दु:

1. परमाणुओं के परमाणु कक्षक संयोग करके अणु कक्षक बनाते हैं।

2. परमाणु कक्षकों के रेखीय संयोग से आण्विक कक्षक का बनना माना जाता है।

3. आण्विक कक्षक दो प्रकार के होते हैं –

(I) बंधी आण्विक कक्षक  यह तरंग फलनों के योग से बनते हैं।

(II) विपरीत बंधी आण्विक कक्षक ये तरंग फलनों के अन्तर से बनते हैं।

4. आण्विक कक्षक बहुकेन्द्रीय होते हैं अत: इलेक्ट्रॉन दो या दो से अधिक नाभिकों के द्वारा प्रभावित होते हैं।

5. अन्दर की कक्षाओं के परमाणु कक्षक (संयोजी कक्षक के अतिरिक्त) भी संयोग करके आण्विक कक्षक बनाते हैं।

इन्हें सामान्यतया अनाबंधी (Non-bonding) आण्विक कक्षक कहते हैं। आण्विक कक्षक का बनना अतिव्यापन के द्वारा होता है। इलेक्ट्रॉनों के भरने में ऑफबाऊ सिद्धांत, हुण्ड के नियम एवं अन्य नियमों का पालन होता है।

प्रश्न:24 ऐसे दो यौगिकों, जिनकी विलेयताएँ विलायक s, में भिन्न हैं, को पृथक करने की विधि की व्याख्या कीजिए।

उत्तर:ऐसे दो यौगिकों, जिनकी विलेयताएँ विलायक s, में भिन्न हैं, को पृथक् करने के लिए। क्रिस्टलन विधि प्रयोग की जाती है। इस विधि में अशुद्ध यौगिक को किसी ऐसे विलायक में घोलते हैं। जिसमें यौगिक सामान्य ताप पर अल्प-विलेय तथा उच्च ताप पर विलेय होता है। इसके पश्चात् विलयन को सान्द्रित करते हैं जिससे वह लगभग संतृप्त हो जाए। अब अल्प-विलेय घटक पहले क्रिस्टलीकृत हो जाएगा तथा अधिक विलेय घटक पुनः गर्म करके ठण्डा करने पर क्रिस्टलीकृत होगा। इसके अतिरिक्त सक्रियित काष्ठ कोयले की सहायता से रंगीन अशुद्धियाँ निकाल दी जाती हैं। यौगिक तथा अशुद्धि की विलेयताओं में कम अन्तर होने पर बार-बार क्रिस्टलन करने पर शुद्ध यौगिक प्राप्त किया जाता है।

प्रश्न:25 कैल्सियम सल्फेट तथा कपूर के मिश्रण के अवयवों को पृथक करने के लिए एक उपयुक्त तकनीक बताइए।

उत्तर: कैल्सियम सल्फेट तथा कपूर के मिश्रण को निम्न विधियों द्वारा पृथक् किया जा सकता है-

कपूर ऊर्ध्वपातनीय है लेकिन कैल्सियम सल्फेट नहीं। अत: मिश्रण को ऊर्ध्वपातित करने पर कपूर फनल के किनारों पर प्राप्त हो जाता है जबकि कैल्सियम सल्फेट चाइना डिश में शेष रह जाता है।

कपूर कार्बनिक विलायकों, जैसे- CCl4, CHCl3 आदि में विलेय होता है लेकिन कैल्सियम सल्फेट नहीं। अतः मिश्रण को कार्बनिक विलायक के साथ हिलाने पर कपूर विलयन में चला जाता है जबकि CaSO4 अपशिष्ट रूप में रहता है। विलयन को छानकर, वाष्पित करके कपूर को प्राप्त कर लेते हैं।