बिहार बोर्ड कक्षा 11 भौतिक विज्ञान अध्याय 12 ऊष्मागतिकी दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
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बिहार बोर्ड कक्षा 11 भौतिक विज्ञान अध्याय 12 ऊष्मागतिकी दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1. चक्रीय प्रक्रम से आप क्या समझते हैं। एक उचित ( P - V )आरेख खींचकर यह प्रदर्शित कीजिए कि चक्रीय प्रक्रम में एक ऊष्मागतिक निकाय द्वारा किया गया कुल कार्य वक़ से घिरे क्षेत्रफल के बराबर होता है।

उत्तर : चक्रीय प्रक्रम – जब कोई निकाय एक अवस्था से चलकर, भिन्न-भिन्न अवस्थाओं से गुजरता हुआ पुन: अपनी प्रारम्भिक अवस्था में लौट आता है, तो उसे ‘चक्रीय प्रक्रम’ कहते हैं। इस प्रक्रम में निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता अर्थात् U = 0 ; अत: ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम की समीकरण U = Q- W से

0 = Q- W अथवा Q- W

अतः चक्रीय प्रक्रम में किसी निकाय को दी गयी ऊष्मा निकाय द्वारा दिये गये नेट कार्य के बराबर होती है।

चक्रीय प्रक्रम में किया गया कुल कार्य  – जब कोई निकाय विभिन्न परिवर्तनों द्वारा विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता हुआ अपनी प्रारम्भिक अवस्था में लौट आता है, तो इस सम्पूर्ण प्रक्रम को चक्रीय प्रक्रम कहते हैं।”

माना कोई गैस (ऊष्मागतिक निकाय) दाब तथा आयतन की प्रारम्भिक अवस्था A में है तथा यह किसी प्रक्रम द्वारा फैलकर एक अन्य अवस्था B में पहुँच जाती है । इस प्रक्रम के लिए दाब-आयतन वक्र ACB  है। इसलिए अवस्था A  से अवस्था B तक जाने में गैस द्वारा किया गया कार्य  WAB= क्षेत्रफल ACBB A'  अब माना किसी प्रक्रम द्वारा गैस को अवस्था B से पुनः अवस्था  A  में है। लाया जाता है। इस प्रक्रम के लिए दाबे-आयतन वक्र BDA है। गैस को अवस्था B से अवस्था  A  तक लाने में किसी कारक द्वारा गैस पर किया है गया कार्य WBA= क्षेत्रफल BDAA' B'

चूँकि क्षेत्रफल BDAA' B' क्षेत्रफल ACBB A' से बड़ा है। इसलिए WBA > WAB , अतः गैस पर किया गया नेट कार्य W =WBA-WAB अतः W = क्षेत्रफल BDAA B- क्षेत्रफल BDAA' B'= क्षेत्रफल ACBDA = बन्द वक्र ACBDA से घिरा क्षेत्रफल अतः उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि “चक्रीय प्रक्रम के लिए दाब-आयतन वक्र एक बन्द वक्र होता है। इस दशा में निकाय द्वारा किया गया नेट कार्य अथवा निकाय पर किया गया नेट कार्य बन्द वक्र से घिरे क्षेत्रफल के बराबर होता है।”

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प्रश्न 2. ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम लिखिए तथा नियम की स्पष्ट व्याख्या कीजिए।

उत्तर : ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम – किसी ऊष्मागतिक निकाय की दो निश्चित अवस्थाओं के बीच विभिन्न प्रक्रमों में राशि ( Q - w )  का मान निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन के बराबर होता है। इसलिए यदि निकाय की प्रारम्भिक तथा अन्तिम अवस्थाओं में आन्तरिक ऊर्जाएँ क्रमशः Ui  तथा Uf  हों, तो

Q - w=Uf  -Ui  अथवा (Q - W) =U

(जहाँ U निकाय की प्रारम्भिक तथा अन्तिम अवस्थाओं में आन्तरिक ऊर्जाओं का अन्तर है।) अथवा Q = U + W ……(1)

यह ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम को गणितीय स्वरूप है। इसको शब्दों में निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है –

“किसी ऊष्मागतिक निकाय को दी गयी ऊष्मा Q (अर्थात् निकाय द्वारा अवशोषित ऊष्मा) दो भागों में प्रयुक्त होती है – (i) निकाय द्वारा बाह्य दाब के विरुद्ध कार्य (w ) करने में तथा (ii) निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन (U ) करने में।”

यदि किसी प्रक्रम में निकाय को अनन्त सूक्ष्म ऊर्जा dQ  दी जाती है तथा निकाय द्वारा अनन्त सूक्ष्म कार्य dw  किया जाता है, तो निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन भी अनन्त सूक्ष्म dU  ही होगा। तब समीकरण (1) को निम्नलिखित प्रकार से व्यक्त किया जायेगा –

dQ = dU + dW …..(2)

इस प्रकार ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम ऊर्जा संरक्षण के नियम का ही एक रूप है।

प्रश्न 3. ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के आधार पर सिद्ध कीजिए कि किसी निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन

समआयतनिक प्रक्रिया में निकाय को दी गई ऊष्मा अथवा उससे ली गई ऊष्मा के बराबर होता है।

रुद्घोष्म प्रक्रिया में निकाय पर अथवा निकाय द्वारा किये गये कार्य के समान होता है।

उत्तर :

(i) समआयतनिक प्रक्रम  – यदि निकाय में होने वाले किसी प्रक्रम के अन्तर्गत निकाय का आयतन स्थिर रहे तो उस प्रक्रम को समआयतनिक प्रक्रम कहते हैं। चूंकि ऐसे प्रक्रम में आयतन नियत रहता है, अत: आयतन में परिवर्तन V = 0 . इसलिए W = P V से W = 0 ; अतः ऐसे प्रक्रम में निकाय द्वारा कोई भी कार्य नहीं किया जाता। अत: ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम

U = Q - W से,

U = Q - 0 या U= Q

अतः ऐसे प्रक्रम में निकाय को दी गयी सम्पूर्ण ऊष्मा निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में वृद्धि करने में व्यये हो जाती है। गैसों में होने वाले विस्फोट इस प्रकार के प्रक्रम के उदाहरण हैं।

(ii) रुद्धोष्म प्रक्रम  – जब ऊष्मागतिक निकाय में होने वाले किसी प्रक्रम के अन्तर्गत ऊष्मा न तो बाहर से निकाय के अन्दर जा सके और न ही ऊष्मा= निकाय से बाहर आ सके, अर्थात् Q = 0 , तो ऐसे प्रक्रम को रुद्धोष्म प्रक्रम कहते हैं।

अत: इसे दशा में ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम U = Q - W के अनुसार,

U = 0- W या U = - W ….(1)

अर्थात् रुद्धोष्म प्रक्रम में निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन कार्य के बराबर होता है।

यदि रुद्धोष्म प्रक्रम में कार्य निकाय पर किया गया है, तो W ऋणात्मक होगा।

अत: उपर्युक्त सूत्र (1) से U = -(- W)= W (धनात्मक)

प्रश्न 4. व्याख्या कीजिए कि ऐसा क्यों होता है –

(a) भिन्न-भिन्न तापों T1 व T2 के दो पिण्डों को यदि ऊष्मीय सम्पर्क में लाया जाए तो यह आवश्यक नहीं कि उनका अन्तिम ताप T1 + T22 ही हो।

(b) रासायनिक या नाभिकीय संयन्त्रों में शीतलक (अर्थात दूव जो संयन्त्र के भिन्न-भिन्न भागों को अधिक गर्म होने से रोकता है) की विशिष्ट ऊष्मा अधिक होनी चाहिए।

(c) कार को चलाते-चलाते उसके टायरों में वायुदाब बढ़ जाता है।

(d) किसी बन्दरगाह के समीप के शहर की जलवायु , समान अक्षांश के किसी रेगिस्तानी शहर की जलवायु से अधिक शीतोष्ण होती है।

उत्तर :

(a) चूँकि अन्तिम ताप वस्तुओं के अलग-अलग तापों के अतिरिक्त उनकी ऊष्मा धारिताओं पर भी निर्भर करता है।

(b) शीतलक का कार्य संयन्त्र से अभिक्रिया जनित ऊष्मा को हटाना है इसके लिए शीतलक की विशिष्ट ऊष्मा धारिता अधिक होनी चाहिए जिससे कि वह कम ताप-वृद्धि के लिए अधिक ऊष्मा शोषित कर सके।

(c) कार को चलाते-चलाते, सड़क के साथ घर्षण के कारण टायर का ताप बढ़ जाता है, इसी कारण टायर में भरी हवा का दाब बढ़ जाता है।

(d) बन्दरगाह के निकट के शहरों की आपेक्षिक आर्द्रता समान अक्षांश के रेगिस्तानी शहर की तुलना में अधिक होती है। इसी कारण बन्दरगाह शहर की जलवायु रेगिस्तानी शहर की जलवायु की तुलना में शीतोष्ण बनी रहती है।

प्रश्न 5. रेफ्रिजरेटर (प्रशीतक) का सिद्धान्त क्या है? इसके कार्य गुणांक का मान ज्ञात कीजिए।

उत्तर : रेफ्रिजरेटर का सिद्धान्त – “प्रशीतक एक ऐसी युक्ति है जो ऊष्मा को निम्न ताप की वस्तु से लेकर उच्च ताप की वस्तु में स्थानान्तरित कर देती है।”

दूसरे शब्दों में, प्रशीतक, उत्क्रम दिशा में कार्य करने वाला ऊष्मा इंजन है। इसलिए प्रशीतक को ऊष्मा पम्प  या सम्पीडक भी कहते हैं। इस प्रकार प्रत्येक चक्र में कार्यकारी पदार्थ रेफ्रिजरेटर (प्रशीतक) में रखे पदार्थ से ऊष्मा अवशोषित करता है। कार्य विद्युत मोटर द्वारा कार्यकारी पदार्थ पर किया जाता है और अन्त में कार्यकारी पदार्थ ऊष्मा को वातावरण में (जिसका ताप अधिक होता है) छोड़ देता है। इस प्रकार रेफ्रिजरेटर में रखा पदार्थ ठण्डा हो जाता है।

इसी के आधार पर कान चक्र में उत्क्रम प्रक्रम में कार्यकारी पदार्थ कम ताप (T2) के सिंक से Q2 ऊष्मा ग्रहण करके, बाह्य स्रोतों द्वारा निकाय पर w कार्य कराकर, उच्च ताप (T1) के स्रोतों को (Q2 + W ) = Q1 ऊष्मा देता है। प्रशीतक इसी मूल सिद्धान्त पर कार्य करता है।

कार्य गुणांक – कार्यकारी पदार्थ द्वारा ठण्डी वस्तु से ली गयी ऊष्मा और कार्यकारी पदार्थ पर किये गये कार्य के अनुपात को प्रशीतक का कार्य गुणांक कहते हैं।

    कार्य गुणांक () = कम ताप पर वस्तु से अवशोषित ऊष्माकार्यकारी पदार्थ पर किया गया कार्य

अर्थात        = Q2 W=Q2 Q1 - Q2 = Q2 Q1 1-Q2 Q1     

               Q2 Q1 = T2 T1                               ( जबकि T2 < T1 )

               =T2 T1 1-T2 T1                         अथवा      = T2 T1-T2

 

प्रश्न 6. ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम क्या है? एक ऊष्मा इंजन दो तापों के बीच कार्य करता है जिनका अन्तर 100 K   है। यदि यह स्रोत से 746 जूल ऊष्मा अवशोषित करता है तथा सिंक को 546  जूल ऊष्मा देता है तो स्रोत व सिंक के ताप ज्ञात कीजिए।

उत्तर : ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम – किसी भी स्वतः क्रिया मशीन के लिए, जिसे कोई भी बाह्य स्रोत की सहायता प्राप्त न हो, ऊष्मा को ठण्डी वस्तु से गर्म वस्तु पर अथवा ऊष्मा को अल्प ताप से उच्च ताप पर पहुँचाना असम्भव है।

हल : स्रोत से ली गयी ऊष्मा  1=746  जूल; सिंक को दी गयी ऊष्मा 2=546   जूल, स्रोत व सिंक के तापों को अन्तर T1-T2=7100 K  

कैलोरी इंजन की दक्षता = 1- 21

                                   = 1- 546746 = 200746 = 0.268

                                       = 1- T2T1 = T1 - T2T1

                                      0.268 = 100T1

                               स्रोत का ताप T1 = 1000.268 = 373.13 K

 अब चूंकि              T1-T2 = 100   

                                 T2 = T1- 100

अर्थात              सिंक का ताप T2 = ( 373.13 - 100 ) K = 273.13 K

प्रश्न 7. कार्यों का प्रमेय क्या है? समझाइए।

उत्तर : कार्नो प्रमेय – इस प्रमेय के अनुसार, किन्हीं दो तापों के मध्य कार्य करते हुए किसी भी इंजन की दक्षता आदर्श उत्क्रमणीय (कानों) इंजन की दक्षता से अधिक नहीं हो सकती। दूसरे शब्दों में, आदर्श उत्क्रमणीय इंजन की दक्षता अधिकतम होती है तथा यह इसमें प्रयुक्त पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर नहीं करती।

स्चित्र में दो इंजन दर्शाये गये हैं, जिनमें A उत्क्रमणीय तथा B , अनुत्क्रमणीय है। दोनों इंजन एक ही ताप T1 (स्रोत) तथा T2 (सिंक) के मध्य कार्य कर रहे हैं तथा T1 > T2. इन इंजनों को इस प्रकार व्यवस्थित किया गया है कि दोनों के द्वारा किया गया कार्य बराबर है।

सीधी दिशा में कार्य करते हुए माना उत्क्रमणीय (कार्नो) इंजन A ताप T1 पर Q1. ऊष्मा लेकर W कार्य करके, Q2 = Q1- W ऊष्मा ताप T2 पर सिंक को लौटा देता है। अतः इसकी दक्षता A = WQ1 होगी।

इस प्रकार, अनुत्क्रमणीय इंजन B प्रत्येक चक्र में उच्च ताप T1 पर Q'1 ऊष्मा लेकर W कार्य करके Q2 = Q1- W  ऊष्मा ताप T पर लौटा देता है। अतः इसकी दक्षता A = WQ'1  होगी।

माना इंजन B की दक्षता A से अधिक है।

अतः           WQ'1 >WQ1    

या           Q1 >Q'1                   ……………(1)

क्योंकि A  एक उत्क्रमणीय इंजन है अत: इसे विपरीत दिशा में चलाया जा सकता है। उस दशा में यह रेफ्रिजरेटर की तरह कार्य करेगा। इसके लिए आवश्यक कार्य w  इंजन B  से प्राप्त किया जा सकता है। चित्र में दोनों इंजन एक पट्टी (belt) द्वारा सम्बन्धित हैं। स्पष्ट है कि दोनों इंजन मिलकर एक स्वत: चलने वाली मशीन की तरह कार्य करेंगे। इस दशा में इंजन A  निम्न तापं T2  पर Q ऊष्मा ग्रहण कर उच्च ताप T1  पर Qऊष्मा लौटाता है। इंजन B  उच्च ताप T1  पर Q1  ऊष्मा ग्रहण कर निम्न ताप T2 पर Q'2 ऊष्मा लौटाता है परन्तु दोनों के द्वारा किया गया कार्य बराबर है,

अतः          Q'1-Q'2 =Q1-Q2            

या            Q1-Q'1 =Q2-Q'2 

समीकरण (1) से      Q1 >Q'1

अतः                      Q2 > Q'2                …………(2)

समीकरण (2) से स्पष्ट है कि रेफ्रिजरेटर A द्वारा सिंक से ली गई ऊष्मा Q2, इंजन B द्वारा सिंक को दी गयी ऊष्मा Q2 से अधिक है। फलत: सिंक की ऊष्मा लगातार कम होती जायेगी।

इसी प्रकार रेफ्रिजरेटर A द्वारा स्रोत को दी गई ऊष्मा Q1 इन्जन B द्वारा स्रोत से ली गयी ऊष्मा Q1 से अधिक है। अतः स्रोत की ऊष्मा लगातार बढ़ती जायेगी। इस प्रकार हम पाते हैं कि बिना कार्य किये सिंक से स्रोत को ऊष्मा का स्थानान्तरण होता रहेगा। परन्तु यह बात हमारे अनुभव के विपरीत है क्योंकि बिना किसी कार्य किये ऊष्मा का निम्न ताप से उच्च ताप की ओर प्रवाह सम्भव नहीं है।

अतः उपर्युक्त निष्कर्ष गलत है। चूंकि यह निष्कर्ष इस कथन पर आधारित है कि अनुक्रमणीय इंजन B की दक्षता, उत्क्रमणीय इंजन A की दक्षता से अधिक है, अत: यह कथन सर्वथा गलत है। इस प्रकार, इंजन B की दक्षता, इंजन A की दक्षता से अधिक नहीं हो सकती अर्थात् उत्क्रमणीय इंजन की दक्षता महत्तम होती है।

प्रश्न 8 . खाद्य पदार्थ को एक प्रशीतक के अन्दर रखने पर वह उसे 90C पर बनाए रखता है। यदि कमरे का ताप 360C है तो प्रशीतक के निष्पादन गुणांक का आकलन कीजिए।

हल-दिया है : ठण्डे ऊष्मा भण्डार का ताप  T2 = 9 + 273 = 282 K

तथा गर्म ऊष्मा भण्डार का ताप T1 = 36 + 273 = 309 K

प्रशीतक का निष्पादन गुणांक = T2T1-T2 = 282 K (309 -282) K

                                     =28227 = 10.4

प्रश्न 9. स्थिर दाब पर 2.0 10-2 kg नाइट्रोजन (कमरे के ताप पर) के ताप में 450C वृद्धि करने के लिए कितनी ऊष्मा की आपूर्ति की जानी चाहिए? ( N2 का अणु भार =28 , R = 8.3 J mol-1 K-1 )

उत्तर: नाइट्रोजन का द्रव्यमान 

m = 2 10-2 kg

      =2 10-2 103 g

        =20 g

नाइट्रोजन का अणुभार M = 28

नाइट्रोजन के ग्राम मोलों की संख्या

= mM = 2028 =57

ऊष्मा की आपूर्ति   Q = n Cp T

                          = 0.714 29.05 45

                               = 933.38 J 

प्रश्न 10. समान धारिता वाले दो सिलिण्डर  'A'   तथा 'B' एक-दूसरे से स्टॉपकॉक के द्वारा जुड़े हैं। 'A'   में मानक ताप व दाब पर गैस भरी है जबकि 'B' पूर्णतः निर्वातित है। स्टॉपकॉक यकायक खोल दी जाती है। निम्नलिखित का उत्तर दीजिए –

(a) सिलिण्डर 'A' तथा 'B' में अन्तिम दाब क्या होगा?

हल : (a)  P1 =मानक दाब = 1 atm  , V1= V (माना)     

P2 = ?  जबकि  V2 = 2 V (  चूँकि  'A' व 'B' के आयतन बराबर हैं।)

∵ सिलिण्डर B  निर्वातित है; अत: स्टॉपकॉक खोलने पर गैस का निर्वात में मुक्त प्रसार होगा;

अतः गैस कोई कार्य नहीं करेगी और न ही ऊष्मा का आदान-प्रदान करेगी।

अतः गैस की आन्तरिक ऊर्जा व ताप स्थिर रहेंगे।

∴ बॉयल के नियम से,   P2V2 =P1V1

गैस का अन्तिम दाब   P2 = V1V2P1 = V2V1 atm = 0.5 atm

(b) गैस की आन्तरिक ऊर्जा में कितना परिवर्तन होगा?

गैस का अन्तिम दाब  P2 = V1V2P1 = V2V 1 atm = 0.5 atm

∵ W = 0   तथा  Q = 0

∴    U = 0

अत: गैस की आन्तरिक ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होगा।

(c) गैस के ताप में क्या परिवर्तन होगा?

(c) ∵ आन्तरिक ऊर्जा अपरिवर्तित रही है; अत: गैस के ताप में भी कोई परिवर्तन नहीं होगा।

(d) क्या निकाय की माध्यमिक अवस्थाएँ (अन्तिम साम्यावस्था प्राप्त करने के पूर्व) इसके

P --V--T पृष्ठ पर होंगी?

(d) ∵ गैस का मुक्त प्रसार हुआ है; अत: माध्यमिक अवस्थाएँ साम्य अवस्थाएँ नहीं हैं; अत: ये अवस्थाएँ  P --V--T  पृष्ठ पर नहीं होंगी।

प्रश्न 11. एक वाष्प इंजन अपने बॉयलर से प्रति मिनट 3.6 109   ऊर्जा प्रदान करता है जो प्रति मिनट 5.4 108 J कार्य देता है। इंजन की दक्षता कितनी है? प्रति मिनट कितनी ऊष्मा अपशिष्ट होगी ?

हल一ऊष्मा स्रोत (बॉयलर) से प्रति मिनट प्राप्त ऊष्मा Q1 =3.6 109 जूल ;

इंजन द्वारा प्रति मिनट किया गया कार्य

W  =5.4 108 जूल   तथा   = WQ1 = 5.4 1083.6 109 = 0.15

प्रतिशत दक्षता = 0.15 100 % = 15 %

अपशिष्ट ऊर्जा अर्थात् सिंक को दी गयी ऊष्मा

  Q2 = Q1- W = ( 3.6 109 - 5.4 108 ) 

           = ( 3.6-5.4) 108

           =3.06 109 J/min

             3.1 109

प्रश्न 12 . यदि किसी ऊष्मागतिकी निकाय को 50 जुल ऊष्मा देने पर निकाय द्वारा 30 जूल कार्य किया जाता है, तो निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन ज्ञात कीजिए।

हल : ऊष्मागतिकी निकाय को दी गयी ऊष्मा Q = +50  जूल

निकाय पर किया गया कार्य W = - (30 जूल)  

∴ ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम से निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन

U = Q -W= +50 जूल-(-30जूल ) = 50 + 30 = 80जूल 

∵ U का चिह्न धनात्मकं है, अतः आन्तरिक ऊर्जा में 80 जूल की वृद्धि होगी।

प्रश्न 13. रुद्रोष्म विधि द्वारा किसी गैस की अवस्था परिवर्तन करते समय उसकी एक साम्यावस्था से दूसरी साम्यावस्था 'B'  तक ले जाने में निकाय पर 22.3 J कार्य किया जाता है। यदि गैस को दूसरी प्रक्रिया द्वारा अवस्था 'A'  से अवस्था 'B' में लाने में निकाय द्वारा अवशोषित नेट ऊष्मा 9.35 cal   है तो बाद के प्रकरण में निकाय द्वारा किया गया नेट कार्य कितना है? ( 1 cal = 4.19 J )

हल-रुद्धोष्म विधि (प्रक्रम) में गैस् को 'A'  से 'B'  अवस्था तक ले जाने में दी गयी ऊष्मा

Q = 0 ,  निकाय पर किया गया कार्य W = - 22.3 जूल,

अत: इस प्रक्रम में आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन

UAB = Q - W = 0 - ( - 22.3 जूल)

= 22.3   जूल (अर्थात् आन्तरिक ऊर्जा में वृद्धि होगी) }

किसी अन्य प्रक्रम द्वारा अवस्था 'A'  से 'B' तक ले जाने में निकाय द्वारा अवशोषित ऊष्मा  Q = 9.35 कैलोरी  = 9.35 4.19 जूल 

= 39.178 = 39.2 जूल 

चूँकि अवस्थाएँ वही हैं, अत: आन्तरिक ऊर्जा में परिवर्तन UAB  ही होगा।

∴ पुन: ऊष्मागतिकी के नियम

U = Q -W से 

कार्य  W = Q - UAB = ( 39.2 -22.3 ) जूल 

=16.9 जूल

प्रश्न 14 . ऊष्मा गतिकी का शून्यवाँ नियम लिखिए।

उत्तर : यदि दो निकाय एक तीसरे निकाय के साथ अलग-अलग ऊष्मीय सन्तुलन में हैं तो वे एक-दूसरे के साथ भी ऊष्मीय सन्तुलन में होते हैं। यदि निकाय A तथा B पृथक रूप से C के साथ ऊष्मीय संतुलन में हो तो निकाय A तथा B ऊष्मीय संतुलन में होंगे। चित्र में माना कि निकाय A तथा B एक रुद्धोष्म दीवार से पृथक है तथा निकाय C ऊष्मीय संतुलन में है। चित्र के अनुसार A तथा B एक रुद्धोष्म दीवार से अलग किये गये हैं तथा निकाय C इन दोनों से एक सुचालक दीवार से पृथक किये गये हैं अतः A व C ऊष्मीय संतुलन में हों। इसी प्रकार B और C भी ऊष्मीय संतुलन में होंगे। अतः निकाय A और B ऊष्मीय संतुलन में होंगे। यही ऊष्मागतिकी का शून्यवाँ नियम है।

 

प्रश्न 15. ऊष्मा इंजन किसे कहते हैं? इसके मुख्य भागों का वर्णन कीजिए।

उत्तर : ऊष्मा इंजन -  ऊष्मा इंजन , चक्रीय क्रम में काम करने वाली एक ऐसी युक्ति है जो अविरत रूप से ऊष्मा को यांत्रि कार्य में रूपांन्तरित करती है |

सिध्दान्त -  यदि किसी निकाय के विभिन्न भाग अलग-2 तापों पर है , तो वे निरन्तर तापीय साम्यावस्था प्राप्त करने की ओर अग्रसर होते है |

संरचना :- ऊष्मा इंजन के तीन मुख्य भाग होते है |

(1) ऊष्मा स्त्रोत - उच्च ताप (T1 ) पर गर्म वस्तु जो निरन्तर ऊर्जा प्रदान करती है ,स्त्रोत कहलाती है |

(2)सिंक - निम्न ताप (T2) पर स्थित ठण्डी वस्तु जिसे परित्याग की गयी ऊष्मीय ऊर्जा दी जा सके ,सिंक कहलाती है |

(3)कार्यकारी पदार्थ -  वह पदार्थ जो उष्मीय ऊर्जा को अवशोषित करता है ,उसके कुछ भाग को यांत्रिक कार्य मे परिणित करता है तथा शेष भाग सिंक को परित्याग करता है , कार्यकारी पदार्थ कहलाता है |

प्रश्न 16. “उत्क्रमणीयता एक आदर्श इंजन की कसौटी है।” उक्त कथन की व्याख्या कीजिये।

उत्तर: उत्क्रमणीय प्रक्रम  वह क्रिया है जिसको विपरीत क्रम में ठीक उन्हीं अवस्थाओं में सम्पन्न किया जा सके, जिनमें उसे सीधे क्रम में सम्पन्न किया गया था। सीधे प्रक्रम में कार्यकारी द्रव्य यदि ΔQ ऊष्मा अवशोषित करता है तथा ΔW कार्य करता है, तो विपरीत क्रम में कार्यकारी द्रव्य पर ΔW कार्य करने से ΔQ ऊष्मा प्राप्त हो जायेगी। ऐसे प्रक्रम को उत्क्रमणीय प्रक्रम कहते हैं।

उत्क्रमणीय प्रक्रम में भाग लेने वाले निकाय और परिवेश की अवस्था में कोई परिवर्तन नहीं होता है। उत्क्रमणीय प्रक्रम एक आदर्श प्रक्रम है एवं इसके लिए निम्न शर्तों की पालना आवश्यक है।

चालन, संवहन तथा विकिरण से ऊर्जा की हानि नहीं होनी चाहिए।

ऊर्जा की हानि करने वाले प्रभाव जैसे घर्षण, विद्युत प्रतिरोध, श्यानता आदि नहीं होने चाहिए।

परिवर्तन बहुत धीमी गति से होने चाहिए।

निकाय साम्यावस्था की स्थिति में अधिक विचलित नहीं होना चाहिए।

अतः हम कह सकते हैं कि उत्क्रमणीय प्रक्रम के लिए आवश्यक शर्तों की पालना, व्यवहार में असम्भव है या यूँ कहें कि उत्क्रमणीयता एक आदर्श इंजन की कसौटी है।

प्रश्न 17. ऊष्मागतिकीय निकाय, ऊष्मागतिकीय चर राशियाँ व ऊष्मागतिकीय प्रक्रम से आप क्या समझते हैं?

उत्तर: ऊष्मागतिकीय निकाय - सामान्यतया हम किसी वस्तु अथवा वस्तुओं के समूह को अन्य भागों से पृथक् कर उनमें परिवर्तन का अध्ययन करते हैं । इस वस्तु अथवा वस्तुओं के समूह को निकाय कहा जाता है एवं निकाय को जिस भाग से पृथक् किया गया है, उस भाग को परिवेश कहते हैं।

ऊष्मागतिकीय चर राशियाँ - हम जानते हैं कि ऊष्मागतिकीय निकाय, स्थूल निकाय होते हैं। इनका अध्ययन स्थूल गुणों दाब (P), आयतन (V), ताप (T) आदि के आधार पर किया जाता हैं। दाब, आयतन तथा ताप को अवस्था चर के नाम से जाना जाता है। अर्थात् किसी भी निकाय की अवस्था को (P, V, T) चरों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

ऊष्मागतिकीय प्रक्रम- जब किसी ऊष्मागतिकीय निकाय के ऊष्मागतिकीय चरों में परिवर्तन कर उस निकाय में परिवर्तन किया जाता है तो इसे ऊष्मागतिकीय प्रक्रम, कहा जाता है। कुछ महत्त्वपूर्ण ऊष्मागतिकीय प्रक्रमों के नाम अग्रानुसार

समातापीय प्रक्रम 

रुद्धोष्म प्रक्रम 

समआयतनिक प्रक्रम 

समदाबीय प्रक्रम 

चक्रीय प्रक्रम 

प्रश्न 18. ऊष्मा इंजन की दक्षता की व्याख्या कीजिये।

उत्तर: ऊष्मा इंजन की दक्षता-“एक चक्र में, इंजन द्वारा किये गये उपयोगी कार्य तथा कार्यकारी पदार्थ द्वारा स्रोत से प्राप्त की गयी ऊष्मा के अनुपात को इंजन की दक्षता कहते हैं। इसे η से व्यक्त करते हैं।

= किया गया कार्य दी गयी ऊष्मा = WQ1

उदाहरणार्थ यदि किसी इंजन के कार्यकारी पदार्थ ने स्रोत से 100 जूल ऊष्मा लेकर 40 जूल के समान उपयोगी कार्य किया तो उसकी दक्षता

= 40 जूल 100 जूल = 0.4 या  40 %

कोई भी इंजन सम्पूर्ण ली गई ऊष्मा को पूर्ण रूप से कार्य में परिवर्तित नहीं कर सकता है। अर्थात् किसी भी इंजन की दक्षता 100% नहीं हो सकती है।

प्रश्न  19. ऊष्मागतिकी क्या है? ऊष्मागतिकी के शून्यांकी नियम की व्याख्या कीजिये तथा इसके महत्व पर प्रकाश डालिये?

उत्तर: ऊष्मागतिकी भौतिकी की वह शाखा है जिसमें ताप व ऊष्मा की अभिधारणाओं  एवं ऊष्मीय ऊर्जा  का अन्य ऊर्जाओं में तथा अन्य ऊर्जाओं के ऊष्मीय ऊर्जा में रूपान्तरण का अध्ययन किया जाता है। ऊष्मागतिकी, ऊष्मा तथा यांत्रिक कार्य के पारस्परिक सम्बन्ध का भी वर्णन करती है।

शून्यांकी नियम ऊष्मागतिकी को मूलभूत सिद्धान्त है एवं ताप को परिभाषित करता है। इसके अनुसार यदि दो निकाय A व B अलगअलग तीसरे निकाय से साथ तापीय संतुलन में हैं तो A तथा B निकाय भी आपस में तापीय संतुलन में होंगे।

प्रश्न  20. एक निकाय की ऊष्मा, कार्य व आन्तरिक ऊर्जा की व्याख्या कीजिये।

उत्तर: ऊष्मा :  यह दो निकायों के मध्य स्थानान्तरित होने वाली ऊर्जा है। जब किन्हीं दो निकायों के बीच ऊर्जा स्थानान्तरण निकायों के बीच तापान्तर के कारण होता है तो स्थानान्तरित होने वाली ऊर्जा को ऊष्मा  कहते हैं। दो निकायों के मध्य ऊष्मा का प्रवाह उच्च ताप से निम्न ताप की ओर होता है।

कार्य :  यह भी दो निकायों के मध्य स्थानान्तरित होने वाली ऊर्जा है। जब किन्हीं दो निकायों के बीच ऊर्जा का स्थानान्तरण उनके तापान्तर पर निर्भर नहीं करता है तो उनके बीच स्थानान्तरित होने वाली ऊर्जा को कार्य कहते हैं।

आन्तरिक ऊर्जा :  जब किसी तंत्र (निकाय) को ऊष्मा दी जाती है तो उसके कुछ भाग का उपयोग निकाय द्वारा परिवेश के विरुद्ध कार्य करने में होता है बाकी ऊष्मा से निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में वृद्धि होती है। निकाय के अणुओं से सम्बद्ध ऊर्जा को आन्तरिक ऊर्जा कहा गया है। आन्तरिक ऊर्जा निकाय के अणुओं की स्थितिज तथा गतिज ऊर्जाओं के योग के बराबर होती है।

प्रश्न 21. समतापीय प्रक्रम में किये गये कार्य को समझाइये।

उत्तर: यदि नियत ताप पर किसी गैस के दाब व आयतन में परिवर्तन किया जाये तो यह समतापीय प्रक्रम कहलाता है। इसका अवस्था समीकरण PV = नियतांक होता है।

समतापीय प्रक्रमों को उपरोक्त ग्राफों से समझा जा सकता है। गैस को बिन्दु C से D तक की अवस्था में परिवर्तन हेतु किया गया। कार्य–

dW = PdV

तथा A से B तक परिवर्तन हेतु किया गया कार्य

w = 0w d W = V1V2 P dV = n RT In V2V1

समतापीय प्रक्रम में आन्तरिक ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता। है। अतः ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम से गैस को दी गई ऊष्मा गैस द्वारा किये गये कार्य के समान होती है।

प्रश्न  22. मेयर के सम्बन्ध की व्युत्पत्ति कीजिये।

उत्तर: ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम से

Q = dU + W ………. (1)

यदि एक निकाय में किसी आदर्श गैस के ॥ मोल, P दाब, V आयतन तथा T ताप पर लेकर विचार करें तो समआयतनिक परिवर्तनों के लिए,

dU = CVT

समदाबीय परिवर्तनों के लिए, Q = CpT

एवं कार्य को सूत्र, W = R T

ये सभी मान समीकरण (1) में स्थापित करने पर

CpT = CVT +  R T

या Cp- CV = R

इसी समीकरण को मेयर का सम्बन्ध कहा जाता है। इसके अनुसार किसी गैस की दोनों मोलर विशिष्ट ऊष्माओं (Cp तथा CV ) को अन्तर गैस नियतांक (R) के समान होता है।

प्रश्न  23. किसी गैस के रुद्घोष्ण प्रसार को समझाते हुये किये गये कार्य की व्याख्या कीजिये।

उत्तर: यदि किसी प्रक्रम में निकाय एवं परिवेश में ऊष्मा का आदान-प्रदान नहीं होता है (Q = 0 ), तो इसे रुद्धोष्म प्रक्रम कहते हैं। इसके लिए आवश्यक प्रतिबन्ध निम्न हैं

(1) गैस का पात्र पूर्ण कुचालक होना चाहिए जिससे गैस तथा परिवेश में ऊष्मा का आदान-प्रदान न हो सके।

(2) प्रक्रम अतिशीघ्र होना चाहिए जिससे गैस को परिवेश के साथ ऊष्मा के आदान-प्रदान करने का समय ही न मिल सके।

रुद्धोष्म प्रक्रमों का अवस्था समीकरण PVY है, एवं प्रक्रम का P , V वक्र निम्नानुसार है

इस प्रक्रम में A से B बिन्दु तक अवस्था परिवर्तन के लिए किया गया कार्य

W = V1Vr PdV = P1V1 - P2V2r-1 = R ( T1-T2)r-1

प्रश्न  24. एक कार्यों इंजन की दक्षता 40% है। यदि इसका स्रोत का ताप 193.6°C है तब सिंक का ताप ज्ञात करो।

हल: दिया गया है = 40 % = 40100 = 25

T1 = 193.6 + 273 = 466.6

T2 T1 =1 -

T2 = (1 - )T1

T1  = 1-25 466.6

=35466.6=279.96 K

=279.96 - 273 = 70C

प्रश्न  25. एक प्रशीतक ताप -100C से + 270C को प्रति सेकण्ड 200 J औसत ऊष्मा का स्थानान्तरण करता है। चक्र को उत्क्रमणीय मानते हुये औसत शक्ति की गणना कीजिये जबकि किसी अन्य प्रकार का ऊष्मा क्षय न हो रहा हो।

हल: दिया गया है    T2 = -100C = -10 + 273 = 263 K

T1 =270C = 27 + 273 = 300 K 

Q2 = 200 J

सूत्र- Q1 Q2 = T1 T2

Q1 = 300263 200

= 228.1 J / सेकण्ड

W = Q1 - Q2

= 228.1 - 200 = 28.1 J/सेकण्ड

= 28.1 W