बिहार बोर्ड कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 13 जीव व समस्तिया दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. जीवमण्डल क्या है? संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- जीवमण्डल- वह सम्पूर्ण स्थान जहाँ जीव रहता है। जल के अन्दर, भूमि के अन्दर तथा वायुमण्डल में कुछ गहराई या ऊँचाई तक जीव मिलते हैं। पृथ्वी के इन्हीं सब स्थानों को मिलाकर जीवों का आवास कहते हैं। इस आवास में जितने जीव हैं उनको इस स्थान के साथ सम्मिलित करके ही जीवमण्डल की संज्ञा दी गयी है अर्थात् पृथ्वी को तीन अजैवीय भागों में बाँटते है-स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल
इन तीनों ही मण्डलों में सभी गहराइयों तक जीव नहीं रहता है; उदाहरण के लिए—पृथ्वी में दो तीन मीटर की गहराई के बाद जीव मिलना बन्द हो जाते है। इस प्रकार वायुमण्डल में भी केवल कुछ किलोमीटर तक ही जीव पाये जाते हैं। इस प्रकार, जीवमण्डल स्थलमण्डल, जलमण्डल तथा वायुमण्डल में कुछ दूरी तक फैला हुआ है। इसमें ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत सूर्य है। इस ऊर्जा को आधारभूत रूप में हरे पौधे भोजन के रूप में अनुबन्धित कर लेते हैं। यही भोजन समस्त जीवों के लिए एकमात्र पोषण के स्रोत के रूप में उपलब्ध है अतः यहाँ पौधों को उत्पादक तथा शेष जीवों (विशेषकर जन्तुओं) को उपभोक्ता कहते हैं। कुछ जीव उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं से प्राप्त पदार्थों जैसे- मृत शरीरों, उत्सर्जी पदार्थों आदि को तोड़कर कच्चे पदार्थ वापस वातावरण को देते रहते हैं। इस प्रकार के जीव अपघटक कहलाते हैं। जीवमण्डल इस प्रकार एक वृहत्तम पारितन्त्र है।
प्रश्न 2. ह्यूमस का परिवर्द्धन व ह्यूमस की संरचना को समझाए।
उत्तर:ह्यूमस का परिवर्द्धन : पौधों के विभिन्न मृत भागों, जैसे-पत्तियों, जड़ें, भूमिगत तने इत्यादि अथक जन्तुओं के मृत शरीर या भाग, उत्सर्जी पदार्थ आदि मृदा में प्राप्त होते हैं। ये सब कार्बनिक पदार्थ गलने तथा सड़ने के कारण काले-भूरे पदार्थों में बदल जाते हैं। मिट्टी का यही भाग ह्यूमस कहलाता है। इसके निर्माण में विभिन्न सूक्ष्म जीवों का विशेष योगदान होता है। ये जीव प्रमुखतः जीवाणु , विभिन्न कवक तथा प्रोटोजोआ आदि होते हैं तथा क्षय, अपघटन आदि क्रियाओं के द्वारा इसका निर्माण करते हैं। किसी वन में भूमि पर उपस्थित पौधों के व्यर्थ पदार्थों को संचित रूप में करकट कहते हैं। करकट के नीचे आंशिक रूप में अपघटित करकट को डफ कहते हैं और अधिक अपघटित डफ को ही ह्यूमस कहा जाता है।
ह्यूमस की संरचना-अपघटित, अर्द्ध-अपघटित कार्बनिक पदार्थों से बनने के साथ ही ह्यूमस के निर्माण में नाइट्रोजन, कैल्सियम, पोटैशियम, फॉस्फोरस आदि पदार्थों का महत्त्वपूर्ण योग होता है। शेष बचे पदार्थों में अधिक कठोर लिग्निन व उसके व्युत्पन्नभी होते हैं। इस प्रकार बने पदार्थ यद्यपि पौधों और जन्तुओं के अवशेषों से बनते हैं किन्तु विलेयशील होने के कारण पौधों के द्वारा फिर से अवशोषित कर लिए जाते हैं। ह्यूमस क्योंकि हल्का भी होता है यह मिट्टी के विभिन्न प्रकार के कण इत्यादि को बाँधने के साथ-साथ उनके आस-पास वायु, जल इत्यादि का उचित समावेश करने में भी महत्त्वपूर्ण योग देता है। इस प्रकार, रासायनि संघटन परिवर्तित करने के साथ ही यह पदार्थ मृदा का भौतिक स्वरूप भी बदल देता है।
प्रश्न 3. समुदाय व समस्ती के गुण बताए?
उत्तर: समुदाय:
1. एक आवास या एक निश्चित प्राकृतिक क्षेत्र में अनेक जाति के जीवों को मिलाकर समुदाय कहते हैं।
2. जन्तु जातियों एवं पादप जातियों आदि (सभी जीवों) को सम्मिलित करके जैव समुदाय जबकि केवल जन्तु जातियों को मिलाकर जन्तु समुदाय तथा सभी पादप जातियों को मिलाकर पादप समुदाय बनते हैं।
3. उदाहरण-मक्का के एक खेत में लगे अन्य सभी जाति के पौधे, खरपतवार तथा जीव- -जन्तु को मिलाकर जैव समुदाय कहेंगे।
समष्टि :
1. एक आवास में एक ही जीव जाति के सदस्यों की र संख्या को आबादी या समष्टि कहते हैं।
2. आबादी में चूँकि एक ही जाति के जीव होते हैं अतः समुदाय की सभी जातियों की अलग-अलग की आबादी (समष्टि) होती है
3. उदाहरण-एक खेत में केवल मक्का (Zea mays) के समस्त पौधे, उस खेत की मक्का की आबादी है।
प्रश्न 4. जलवायवीय काराक्क प्रकाश व ताप के प्रभाव को समझाए।
उत्तर: प्रकाश-
प्रकाश के प्रभाव से पौधों की वृद्धि, परिवर्द्धन तथा अन्य अनेक सक्रियतायें प्रभावित होती है। प्रकाश ही हरे पौधों में क्लोरोफिल निर्माण तथा बाद में प्रकाश संश्लेषण के लिए ऊर्जा का एकमात्र स्रोत है। पृथ्वी पर उपलब्ध सम्पूर्ण ऊर्जा, जो विभिन्न जीवों में जीवन क्रियायें चलाने के लिए आवश्यक है, सूर्य से प्रकाश के रूप में प्राप्त होती है। इसी ऊर्जा को हरे (पर्णहरित युक्त) पौधे अपने अन्दर भोजन के रूप में एकत्रित करते हैं। इस प्रकार सूर्य के प्रकाश की किरणें अपनी लम्बाई (गुण), मात्रा तथा अवधि अर्थात् दीप्तिकाल आदि उपकारकों के आधार पर ही पौधे या पौधों के लिए आप एक कारक की तरह कार् करती हैं। प्रकाश की किरणों की तरंगदैर्ध्य तथा जिस माध्यम से होकर ये निकल रही हैं, उस माध्यम आदि के आधार पर प्रकाश के गुण, मात्रा आदि बदल सकते हैं। सूर्य से स्थान की दूरी, वायु में वाष्प, धूल आदि की उपस्थिति, स्थान का ढलान आदि अनेक अन्य कारक भी उस स्थान पर प्राप्त प्रकाश की तीव्रता, गुण तथा मात्रा पर प्रभाव डालते हैं।\
ताप:
ताप भी पृथ्वी पर सामान्यतः सूर्य के प्रकाश से ही प्राप्त होता है, किन्तु इसके अतिरिक्त भी ताप के अन्य स्रोत माने गये हैं; जैसे— पृथ्वी स्वयं ही ताप का स्रोत है। सूक्ष्म जीवों आदि के द्वारा उत्पन्न ताप भी इसमें वृद्धि करता है। यद्यपि ये सब भी किसी न किसी रूप में सूर्य से ही इस ताप को प्राप्त करते हैं।
सामान्यतः पौधे 0°C से ऊपर तथा 50° C से नीचे जीवित रहते हैं, फिर भी इससे नीचे या ऊपर सुषुप्त हो सकते हैं। बीजों, बीजाणुओं आदि के अंकुरण से लेकर वृद्धि तथा परिवर्द्धन की लगभग सभी क्रियाओं पर ताप का निश्चित प्रभाव पड़ता है, यद्यपि अंकुर पर यह प्रभाव अधिक स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है अर्थात् ताप का प्रभाव जीवों की सभी जैव क्रियाओं पर पड़ता है। प्रौढ़ होने पर धीरे-धीरे यह प्रभाव कम होता जाता है। इस क्रिया को दृढ़ीकरण कहते हैं।
प्रश्न 5 . पर्यावरणीय प्रतिरोध क्या होते है?
उत्तर: पर्यावरणीय प्रतिरोध:
प्रकृति में किसी जीव या समष्टि की पूर्ण जैविक सम्भावना सदैव वास्तविक नहीं होती। यहाँ तक कि परिस्थितियाँ जब कदाचित आदर्श दिखाई देती हैं, अनेक पर्यावरणीय (अजैविक) कारक; जैसे—भोजन और आवास का अभाव, प्राकृतिक जलवायवीय दशायें एवं आपदायें सूखा, बादल फटना, बाढ़, आग, ताप का उतार-चढ़ाव, जैवीय कारकों; जैसे-परजीवी, शिकारी आदि अनेक कारण जीव की समष्टि को बढ़ने नहीं देते हैं। वास्तव में, जीव की जनन शक्ति जो एक प्राकृतिक योग्यता है और आदर्श परिस्थितियों में उच्चतम होती है। जैव शक्ति समष्टि में उपस्थित मादाओं, उनकी आयु तथा एक बार में उत्पन्न सन्तति की संख्या पर निर्भर करती है। फिर भी पर्यावरणीय परिस्थितियाँ जीव के इस कृत्य के लिए शायद ही कभी पूर्णतः आदर्श होती हो। दूसरे जीवों के साथ स्पर्धा, उनकी अन्तर्क्रियायें तथा अन्य अवरोध समष्टि वृद्धि को कुल मिलाकर प्रतिरोधित कर पाने में सफल होते हैं। यह वास्तव में समष्टियों का नियमितीकरण है ताकि प्राकृतिक पारितन्त्र सन्तुलित बना रहे।
एक अन्य दृष्टि से पर्यावरण की यह वहन क्षमता जो किसी समष्टि की वृद्धि को अधिक या कम करती है। वास्तव में पोषण क्षमता है और यह वह स्तर है जिसमें बहुत अधिक वृद्धि नहीं की जा सकती है।
प्रश्न 6. जलोडबिद पादपों मे अनुकूलनों को सपस्त कीजिए।
उत्तर: जलोद्भिद— ऐसे स्थानों में, जहाँ मिट्टी जल से संतृप्त होती है अथवा जल अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है, ऐसे पौधे मिलते हैं जो पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से जल में रख वाले पौधे होते हैं और जलोद्भिद कहलाते हैं। हाइड्रिला, लेम्ना समुद्रसोख, वैलिस्नेरिया , यूट्रिकुलेरिया तथा अनेक शैवाल बचाती है। जैसे—यूलोथ्रिक्स , स्पाइरोगाइराआदि कुछ जलीय पौधे हैं। इन पौधों में में अनेक जल में पूरे डूबे हुए , पूरी तरह जल की सतह पर तैरने वाले अथवा इनके मध्य अनेक प्र के हो सकते हैं। ये अपने आवास और स्वभाव के अनुसार प्रमुखतः निम्नलिखित तीन प्रकार के माने वैलिस्नेरिया हैं-जलस्थलीय पौधे, निमग्न पौधे तथा प्लावी पौधे।
इन पौधों में जल में रहने के लिए निम्नलिखित विशेष अनुकूलन पाये जाते:
जड़ों के अनुकूलन- जलीय पौधे अपने शरीर के सभी भागों से काषण करते है पौधों में जड़े प्रायः अनुपस्थित होती है, जैसे-अजड़े बहुत कम मूल गोप का अभाव होता है, जैसे-लेना यदि जड़ें होती भी हैं तो मूलरोम विकसित अथवा अनुपस्थित होते है, जैसे—Hydrita
तनों के अनुकूलन –
(1) जलविमान पौधों में तने पहले, कमजोर व पीले हरे होते हैं।
(i) स्वतन्त्र प्लावी पौधों में सने पतले तथा जल की सतह पर जैसे – एजोला (Azolla) में। (iii) स्थिर प्लावी पौधों में प्रायः धरातल पर फैलने वाले प्रकन्द जैसे— कमल (Nelumbium), कुमुदनी (Nymphaea) आदि।
पत्तियों के अनुकूलन जलनिमग्न पौधों में पत्तियों कटी-फटी जैसे—मीरैटोफिल्लम, सैजीटेरिया आदि में। जो पत्तियाँ जल की सतह पर है है, वे बड़ी होती है। एनावी पौधों में जल के ऊपर तैरने वाली पत्तियों अधिक चौरस तथा काफी बड़ी होती है। इनको सतहों पर चिकनी मोमी परत होती है, जैसे- कुमुदनी (Nymphaea), कमल, जलकुम्भी (Pistia), समुद्र *Eichermia) आदि में।
प्रश्न 7. कीस्टोन जाती पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर: जैव समुदाय की संरचना बताते समय आपको बताया गया है कि अनेक पादप तथा जन्तु जातियों के अनेक सूक्ष्म जीवों की जातियों मिलकर इसे (जैव समुदाय को) बनाती हैं। यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि किस की यह जन्तु वा समुदाय की सभी जातियाँ समान रूप से महत्त्वपूर्ण नहीं होती है। एक या अधिक जातियाँ अन्य जातियों की तुलना में चमगादड़ों . अधिक संख्या में सुस्पष्ट रूप से अधिक क्षेत्र में फैली होती हैं। ये जातियाँ तेजी से वृद्धि करती हैं तथा समुदाय अन्य जातियों की वृद्धि व संख्या का नियन्त्रण भी करती हैं। ये समुदाय की प्रमुख जाति या जातियाँ मुद्री पारितन होती हैं। प्रायः यही जातियाँ पर्यावरण को प्रमुखता से बदलने में सक्षम होती हैं। इनको कीस्टोन जातियों कहते हैं। प्रायः समुदाय का नाम भी इन्हीं जाति या जातियों के नाम पर पड़ जाता है। सवाल, छोटे- जैसे- चीड़ वन, देवदार वन या चीड़-देवदार वन आदि।
कीस्टोन जाति अनेक बार कोई ऐसा पौधा होता है जो समुदाय के अधिकतर सदस्यों प्रदान करता है और वास्तव में सम्पूर्ण समुदाय को बनाने तथा उसकी पारिस्थितिकी को उस बना सका है। जन्तुओं में यह कोई उच्च परभक्षी हो सकता है।
प्रश्न 8. आंत्रजतीय प्रतियोगिता के प्रभाव बताए।
उत्तर: आन्तरजातीय प्रतियोगिता (स्पर्धा) के प्रभाव :
आन्तरजातीय प्रतियोगिता किसी समुदाय में जाति के घनत्व के आधार पर ही आरम्भ होती है तथा इस नियन्त्रित करती है। एक पौधे के सभी बीज जब उसके आस-पास गिरकर अंकुरित होना प्रारम्भ करते हैं तो उनमें से कुछ तो अपने प्रारम्भिक काल (अंकुर या नवोद्भिद अवस्था) में ही नष्ट हो जायेंगे अन्य धीरे-धीरे स्थान प्रकार पोषण आदि की कमी के कारण नष्ट होते रहेंगे और शेष कुछ ही वयस्क अवस्था को पहुंच सकेंगे। यही हा का भी है। भूगों की संख्या किसी घास स्थल में अधिक हो जाने से, यह खाद्य पदार्थो स्थान इत्यादि कमी के कारण स्वयं ही कम हो जाती है। जन्तुओं में प्रवासन इसके लिए आवश्यक हो जाता है। की जातियों में भी इसके लिए अनेक प्रकार की अनुकूलताये अपनायी जाती हैं ताकि वे अपनी जाति के वासस्थान मे दूर चले जायें; मौजों एवं फलों का प्रकीर्णन आदि इसी प्रकार के साधन है। लवणोद्भिदों में जरायुजता अर्थात् बीज का फल के अन्दर ही, जब वह पौधे पर लगा है, अंकुरित होकर इस प्रकार की दशा प्राप्त करना कि दलदली मुदा में भैंसते ही वह जम जाये, महत्त्वपूर्ण अनुकूलन है। अल में गिरने पर वह मातृ पौधे से बहकर दूर जा सकता है।
प्रश्न 9. सहभोजिता को परिभाषित करे।
उत्तर: सहजीवन का दूसरा स्वरूप सहभोजिता है। यक को लाभ प्रदानहोत है। यद्यपि हानि किसी को नहीं होती। अनेक आर्किड्स, लाइकेन्स आदि अधिपादपों के रूप में अन्य बड़े वृक्षों की शाखाओं आदि पर उगकर प्रकाश, नमी आदि प्राप्त करके इन वृक्षों के सहभोजी बनते हैं। मनुष्य की आँत में पाया जाने वाला सहभोजी जीवाणु, ईश्चेरिचिया कोलाई , कठलतायें आदि वृक्षों पर ऊपर तक लिपटी रहती हैं तथा शीर्ष तक पहुँचकर आसानी से प्रकाश आदि प्राप्त करती हैं। चूषक मछलियाँ के अनेक उदाहरण, सहभोजिता प्रदर्शित करते हैं। मॉलस्का समूह के अनेक अनुल जन्तुओं के कवच पर सीलेण्ट्रेट्स की निवह लगी रहती हैं। कुछ हाइड्रॉइड्स केकड़ों की पीठ पर भी उगते पाये जाते हैं। इस प्रकार का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण उदाहरण सी एनीमॉन तथा क्रैब्स के मध्य मिलता है। क्रैब किसी मॉलस्क कवच को अपना आवास बना लेता है। इस कवच पर सी एनीमॉन लगा रहता है।
प्रश्न 10. मृदा मे उपसतिथ कार्बनिक पदार्थ का संक्षिप्त मे वर्णन कीजिए।
उत्तर: कार्बनिक पदार्थ – प्रत्येक मृदा में कार्बनिक पदार्थ पाये जाते हैं। ये पौधे के विभिन्न मृत भागों; जैसे—पत्तियाँ, जड़ें, भूमिगत तने इत्यादि अथवा जन्तुओं के मृत शरीर या भाग, उत्सर्जी पदार्थ आदि से प्राप्त होते है। ये सब कार्बनिक पदार्थ गलने तथा सड़ने के कारण काले-भूरे पदार्थों में बदल जाते हैं। मिट्टी का यही भाग ह्यूमस कहलाता है। इसके निर्माण में विभिन्न सूक्ष्म जीवों का विशेष हाथ होता है। ये जीव प्रमुखतः जीवाणु विभिन्न कवक तथा प्रोटोजोआ आदि होते हैं तथा क्षय, अपघटन आदि क्रियाओं के द्वारा इसका निर्माण करते। है। ह्यूमस पौधों की वृद्धि के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है। रेगिस्तान जैसे स्थानों में जहाँ वनस्पति इत्यादि नहीं। होती, मिट्टी रेतीली होती है, ह्यूमस का मिट्टी में सर्वथा अभाव भी हो सकता है अतः ऐसे स्थानों में जीव ठीक से विकसित नहीं हो पाते। ह्यूमस के बनने में नाइट्रोजन, कैल्सियम, पोटैशियम, फॉस्फोरस आदि पदार्थों का महत्त्वपूर्ण योग होता है। इस प्रकार बने पदार्थ यद्यपि पौधे और जन्तुओं के अवशेषों से बनते हैं किन्तु विलयशील होने के कारण पौधे के द्वारा फिर से अवशोषित कर लिए जाते हैं। ह्यूमस, क्योंकि हल्का भी होता है यह मिट्टी के विभिन्न प्रकार के कण इत्यादि को बाँधने के साथ-साथ उनके आस-पास वायु, जल इत्यादि का उचित समावेश करने में भी महत्त्वपूर्ण योग देता है। इस प्रकार रासायनिक संगठन परिवर्तित करने के साथ ही यह पदार्थ मुदा का भौतिक स्वरूप भी बदल देता है और उसमें सुविधापूर्वक अधिक जीव रह सकते हैं।