बिहार बोर्ड कक्षा 12वी - हिंदी - गद्य खंड अध्याय 11: हँसते हुए मेरा अकेलापन के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1: किस तारीख की डायरी आपको सबसे प्रभावी लगी और क्यों ?
उत्तर: हमें 3 मार्च 81 की डायरी सबसे ज्यादा प्रभावली लगी। इस तिथि की डायरी में लेखक ने मनुष्य जीवन का बड़ा ही सटीक एवं यथार्थ चित्र प्रस्तुत किया है। मनुष्य विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों को झेलते हुए इस संसार में अपना अस्तित्व बनाये रखने का प्रयास करता है। वह तनाव में जीता है। लक्ष्य प्राप्ति की इच्छा से वह सदा प्रयत्नशील रहता है। मानव-जीवन इस विशिष्टता से विशेष प्रभावित होता है।
प्रश्न 2: ‘धरती का क्षण’ से क्या आशय है ?
उत्तर: लेखक कविता के मूड में जब डायरी लिखते हैं तो शब्द और अर्थ के मध्य की दूरी अनिर्धारित हो जाती है। शब्द अर्थ में और अर्थ शब्द में बदलते चले जाते हैं, एक दूसरे को पकड़ते-छोड़ते हुए। शब्द और अर्थ का जब साथ नहीं होता तो वह आकाश होता है जिसमें रचनाएँ बिजली के फूल की तरह खिल उठती हैं किन्तु जब इनका साथ होता है तो वह धरती का क्षण होता है और उसमें रचनाएँ जड़ पा लेती हैं। प्रस्फटन का आदि मोत पा जाती है। अतः यह कहना उचित है कि शब्द और अर्थ दोनों एक-दूसरे के पूरक है।
प्रश्न 3: रचे हुए यथार्थ और भोगे हुए यथार्थ में क्या संबांध है ?
उत्तर: मनुष्य अपना-अपना यथार्थ स्वयं रचता है और उस रचे हये यथार्थ का दसरो को दे देता है। प्रत्येक का भोगा हुआ यथार्थ एक दिया हुआ यथार्थ है। भोगा दसरों के दिये हए हिस्से होते हैं। हिस्से यथार्थ का एक सामूहिक नाम है। का रिश्ता द्वंद्वात्मक होते हुए भी इन दोनों की जड़े एक-दूसरे में हैं और वहीं से ले जा पोषण रस पाती है। ये दोनों एक-दूसरे को बनाते-मिटाते भी रहते हैं। हर आदमी ऐसे को रचता है, जिसमें वह जीता है और भोगता है। लेकिन रचा हुआ यथार्थ से भोग यथार्थ अलग होता है, ऐसा कहा जा सकता है।
प्रश्न 4: लेखक के अनुसार सुरक्षा कहाँ है ? वह डायरी को किस रूप में देखना चाहता है ?
उत्तर: लेखक मलयज के अनुसार सुरक्षा डायरी में नहीं, बल्कि सूरज के पूर्ण प्रकाश में है। अंधेरे में तो पल भर की धुक-धुकी के साथ छुपा जा सकता है। किन्तु लड़ने, पिसने, खटने और चुनौती को स्वीकारने में ही वास्तविक जीवन है। पलायन व स्वयं को बचाने में जीवन की सुरक्षा नहीं बल्कि साहस के साथ चुनौती को स्वीकार कर पूर्ण संघर्षरत प्रकाशित जीवन जीने में ही सुरक्षा माननी चाहिये, लेखक का अभिमत भी ऐसा ही है।
प्रश्न 5: हरिचरण को हरचरना क्यों कहा गया है ?
उत्तर: हरिचरण तत्सम (संस्कृतनिष्ठ) शब्द है और वह संभ्रांत नाम की संस्कृति का परिचायक है तथा हरचरणा ग्रामीण संस्कृति का शब्द है। हरिचरण विशिष्ट आदमी का प्रतिनिधि हो सकता है। हरिचरण शब्द से परिस्थिति के अनुकूल गाँव की फटेहाली, उसकी गरीबी एवं उसका क्षोभ व्यक्त नहीं होता है जो हरिचरण से होता है। इसलिए कवि ने हरिचरण को हरचरणा कहा है।