बिहार बोर्ड कक्षा 12वी - हिंदी - गद्य खंड अध्याय 13: शिक्षा के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1: शिक्षा का क्या अर्थ है एवं इसके क्या कार्य हैं? स्पष्ट करें।
उत्तर: शिक्षा का क्या अर्थ जीवन के सत्य से परिचित होना और संपूर्ण जीवन की प्रक्रिया को समझने में हमारी मदद करना है। क्योंकि जीवन विलक्षण है, ये पक्षी, ये पूल, ये वैभवशाली वृक्ष, ये आसमान, ये सितारे, ये मत्स्य सब हमारा जीवन है। जीवन दीन है, जीवन अमीर भी। जीवन गूढ़ है, जीवन मन की प्रच्छन्न वस्तुएँ ईष्याएं, महत्वाकांक्षाएँ वासनाएँ, या सफलताएँ एवं चिन्ताएँ हैं। केवल इतना ही नहीं अपितु इससे कहीं ज्यादा जीवन है। हम कुछ परीक्षाएँ उत्र्तीण कर लेते हैं, हम विवाह कर लेते हैं, बच्चे पैदा कर लेते हैं और इस प्रकार अधिकाधिक यंत्रवत् बन जाते हैं।
हम सदैव जीवन से भयाकुल, चिन्तित और भयभीत बने रहते हैं। शिक्षा इन सबों का निराकरण करती है। भय के कारण मेधा शक्ति कुंठित हो जाती है। शिक्षा इसे दूर करता है। शिक्षा समाज के ढाँचे के अनुकूल बनने में आपकी सहायता करती है या आपको पूर्ण स्वतंत्रता होती है। वह सामाजिक समस्याओं का निराकरण करे शिक्षा का यही कार्य है।
प्रश्न 2: जीवन क्या है? इसका परिचय लेखक ने किस रूप में दिया है?
उत्तर: लेखक के अनुसार यह सारी सृष्टि ही जीवन है। जीवन बड़ा अद्भुत है, यह असीम और अगाध है। यह अनंत रहस्यों को लिए हुए है, यह विशाल साम्राज्य है जहाँ हम मानव कर्म करते हैं। लेखक जीवन की क्षुद्रताओं से दुखी होता है। वह कहता है, हम अपने आपको आजीविका के लिए तैयार करते हैं तो हम जीवन का पूरा लक्ष्य से खो देते हैं। यह जीवन विलक्षण है। ये पक्षी, ये फूल, ये वैभवशाली वृक्ष, यह आसमान, ये सितारे, ये सरिताएँ, ये मत्स्य यह सब हमारा जीवन है। जीवन दीन है, जीवन अमीर भी।
जीवन समुदायों, जातियों और देशों का पारस्परिक सतत संघर्ष है, जीवन ध्यान है, जीवन धर्म है जीवन गूढ़ है, जीवन मन की प्रच्छन्न वस्तुएँ है-ईष्याएँ, महत्वाकांक्षाएँ, वासनाएँ, भय सफलताएँ एवं चिन्ताएँ। केवल इतना ही नहीं अपितु इससे कहीं ज्यादा है। हम सदैव जीवन से भयाकुल, चिन्तित और भयभीत बने रहते हैं अतएव इस जीवन को समझने में शिक्षा हमारी मदद करती है। शिक्षा इस विशाल विस्तीर्ण जीवन, गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट को इसके समस्त रहस्यों को, इसकी अद्भुत रमणीयताओं को इसके दुखों और हर्षों को समझने में सहायता करती है।
प्रश्न 3: बचपन से ही आपको ऐसे वातावरण में रहना अत्यन्त आवश्यक है जो स्वतंत्रतापूर्ण हो। क्यों?
उत्तर: बचपन से ही यदि व्यक्ति स्वतंत्र वातावरण में नहीं रहता है तो व्यक्ति में भय का संचार हो जाता है। यह भय मन में ग्रन्थि बनकर घर कर जाता है और व्यक्ति की महत्त्वाकांक्षा को दबा देता है। हममें से अधिकांश व्यक्ति ज्यों-ज्यों बड़े हो जाते हैं त्यों-त्यों ज्यादा भयभीत होते जाते हैं, हम जीवन से भयभीत रहते हैं, नौकरी के छूटने से, परंपराओं से और इस बात से भयभीत रहते हैं कि पड़ोसी, पत्नी या पति क्या कहेंगे, हम मृत्यु से भयभीत रहते हैं। हममें से अधिकांश व्यक्ति किसी न किसी रूप में भयभीत हैं और जहाँ भय है वहाँ मेधा नहीं है।
इसलिए हमें बचपन से ही ऐसे वातावरण में रहना चाहिए जहाँ भय न हो, जहाँ स्वतंत्रता हो, मनचाहे कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं अपितु एक ऐसी स्वतंत्रता जहाँ आप जीवन की संपूर्ण प्रक्रिया समझ सकें। हमने जीवन को कितना कुरूप बना दिया है। सचमुच जीवन के इस ऐश्वर्य और इसकी अनंत गहराई और इसके अद्भुत सौन्दर्य की मान्यता तो तभी महसूस करेंगे जब आप सड़े हुए समाज के खिलाफ विद्रोह करेंगे ताकि आप एक मानव की भाँति अपने लिए सत्य की खोज कर सकें।
प्रश्न 4: जहाँ भय है वहाँ मेधा नहीं हो सकती। क्यों?
उत्तर: हम जानते हैं कि बचपन से ही हमारे लिए ऐसे वातावरण में रहना अत्यन्त आवश्यक है जो स्वतंत्रतापूर्ण हो। हममें से अधिकांश व्यक्ति ज्यों-ज्यों बड़े होते जाते हैं, त्यों-त्यों ज्यादा भयभीत होते जाते हैं, हम जीवन से भयभीत रहते हैं, नौकरी के छूटने से, परंपराओं से और इस बात से भयभीत रहते हैं कि पड़ोसी या पत्नी या पति क्या कहेंगे, हम मृत्यु से भयभीत रहते हैं। हममें से अधिकांश व्यक्ति किसी न किसी रूप में भयभीत है और जहाँ भय है वहाँ मेधा नहीं है।
निस्संदेह यह मेधा शक्ति भय के कारण दब जाती है। मेधा शक्ति वह शक्ति है जिससे आप भय और सिद्धान्तों की अनुपस्थिति में स्वतंत्रता के साथ सोचते हैं ताकि आप अपने लिए सत्य की, वास्तविकता की खोज कर सकें। यदि आप भयभीत हैं तो फिर आप कभी मेधावी नहीं हो सकेंगे। क्योंकि भय मनुष्य को किसी कार्य को करने से रोकता है। वह महत्त्वाकांक्षा फिर चाहे आध्यात्मिक हो या सांसारिक, चिन्ता और भय को जन्म देती है। अत: यह ऐसे मन का निर्माण करने में सहायता नहीं कर सकती जो सुस्पष्ट हो, सरल हो, सीधा हो और दूसरे शब्दों में मेधावी हो।