हिंदी - गद्य खंड अध्याय 2 उसने कहा था के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न
Launch Your Course Log in Sign up
Menu
Classes
Competitive Exam
Class Notes
Graduate Courses
Job Preparation
IIT-JEE/NEET
vidyakul X
Menu

बिहार बोर्ड कक्षा 12वी - हिंदी - गद्य खंड अध्याय 2: उसने कहा था के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न

BSEB > Class 12 > Important Questions > गद्य खंड अध्याय 2 उसने कहा था के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1: ‘उसने कहा था’ पाठ के आधार पर सूबेदारनी का चरित्र-चित्रण करें।

उत्तर: सूबेदारनी कहानी में सिर्फ दो बार आती है। एक बार कहानी के आरंभ में ही, दूसरी बार कहानी के अंतिम भाग में, वह भी लहनासिंह की स्मृतियों में। लेकिन कहानी में सूबेदारनी का चरित्र लहनासिंह के बाद सबसे महत्त्वपूर्ण चरित्र है। उससे पहली मुलाकात आठ वर्ष की बालिका के रूप में होती है जो अपने ही हमउम्र लडके के मजाक से लज्जाती है। लेकिन उसके व्यक्तित्व में पहला परिवर्तन ही हमें तब नजर आता है, लहना सिंह के इस प्रश्न के जबाब में कि तेरी कुड़माई हो गई और जब वह यह कहती है कि “हाँ हो गई देखते नहीं रेशम से कढ़ा सालू।” उसका इतने विश्वास के साथ जवाब देना यह बताता है कि जैसे सगाई के साथ वह एकाएक बहुत बड़ी हो गयी है, इतनी बड़ी कि उसमें इतना विश्वास आ गया है कि वह दृढ़तापूर्वक जवाब दे सके कि “हाँ हो गई।” जाहिर है विश्वास की यह अभिव्यक्ति सूबेदारनी के व्यक्तित्व का नया पहलू है। फिर भी अभी वह यह समझने में असमर्थ है कि ‘कुड़माई’ का अर्थ क्या है। इसलिए या लड़की होने के कारण अपनी भावनाओं को या तो वह व्यक्त नहीं करती इसलिए ऐसा नहीं लगता कि कुड़माई का उस पर भी वैसा ही। आघात लगा है जैसा लहना सिंह पर लगा था।

किन्तु लहनासिंह के साथ उसके संबंध कितने गहरे थे इसका अहसास भी कहानी में सूबेदारनी के माध्यम से ही होता है। आठ साल की नादान-सी उम्र में जिस लड़के से उसका मजाक का संबंध बना था उसे वह पच्चीस साल बाद भी अपने मन-मस्तिष्क से नहीं निकाल पाई। जबकि इस दौरान वह किसी और की पत्नी बन चुकी थी उसका घर-परिवार था। जवान बेटा था। और जैसा कि कहानी से स्पष्ट होता है वह अपने घर-परिवार से सुखी और प्रसन्न थी।

लेकिन पच्चीस साल बाद भी जब लहनासिंह उसके सामने आता है तो वह उसे तत्काल पहचान जाती है। न केवल पहचान जाती है बल्कि अपने बचपन के संबंधों के बल पर उसे विश्वास है कि अगर वह लहनासिंह को कुछ करने को कहेगी तो वह कभी इनकार नहीं करेगा। निश्चय ही यह विश्वास उसके अन्दर लहनासिंह के व्यक्तित्व से नहीं पैदा हुआ बल्कि यह स्वयं उसके मन में लहनासिंह के प्रति जो भावना थी उससे पैदा हुआ था। लहनासिंह के प्रति उसके अंतर्मन में बसी लगाव की भावना का इस तरह पच्चीस साल बाद भी जिन्दा रहना सूबेदारनी के व्यक्तित्व को नया निखार देता है। इस अर्थ में वह परंपरागत भारतीय नारी से भिन्न नजर आती है।

इसका अर्थ यह नहीं है कि सूबेदारनी अपने घर-परिवार के दायित्व से विमुख है। बल्कि इसके ठीक विपरीत लहनासिंह से उसकी पच्चीस साल बाद हुई मुलाकात उसके अपने घर-परिवार के प्रति गहरे दायित्व बोध को भी व्यक्त करती है। वह लहना सिंह से प्रार्थना करती है कि जिस तरह बचपन में उसने तांगे से उसे बचाया था, उसी तरह अब उसके पति और पुत्र के प्राणों की भी रक्षा करे। इस तरह उसमें अपने पति और पुत्र के प्रति प्रेम और कर्तव्य की भावना भी है।

हम कह सकते हैं कि सूबेदारनी के लिए जितना सत्य अपने पति और पत्र के प्रति प्यार और कर्त्तव्य है उतना ही सत्य उसके लिए वे स्मृतियाँ भी हैं। जो लहनासिंह के प्रति उसके लगाव को व्यक्त करती है। उसके चरित्र के दो पहलू हैं और इनसे ही उसका चरित्र महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 2: ‘उसने कहा था’ पाठ के आधार पर लहनासिंह का चरित्र-चित्रण करें।

उत्तर: लहनासिंह से हमारा पहला परिचय के बाजार में होता है। उसकी उम्र सिर्फ 12 वर्ष है। किशोर वय, शरारती चुलबुला। उसका यह शरारतीपन बाद में युद्ध के मैदान में भी दिखाई देता है। वह अपने मामा के यहाँ आया हुआ है। वहीं बाजार में उसकी मुलाकात 8 वर्ष की एक लड़की से होती है। अपनी शरारत करने की आदत के कारण वह लड़की से पूछता है-“तेरी कुड़माई हो गई।” और फिर यह मजाक ही उस लड़की से उसका संबंध सत्र बन जाता है। लेकिन मजाक-मजाक में पूछा गया यह सवाल उसके दिल में उस अनजान लड़की के प्रति मोह पैदा कर देता है। ऐसा ‘मोह’ जिसे ठीक-ठीक समझने की उसकी उम्र नहीं है। लेकिन जब लड़की बताती है कि हाँ उसकी सगाई हो गई है, तो उसके हृदय को आघात लगता है। शायद उस लड़की के प्रति उसका लगाव इस खबर को सहन नहीं कर पाता और वह अपना गुस्सा दूसरों पर निकालता है। लहनासिंह के चरित्र का यह पक्ष अत्यंत महत्त्वपूर्ण तो है लेकिन असामान्य नहीं। लड़की के प्रति लहनासिंह का सारा व्यवहार बालकोचित है। लड़की के प्रति उसका मोह लगातार एक माह तक मिलने-जुलने से पैदा हुआ है और यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। लेकिन लहनासिंह के चरित्र की एक और विशेषता का प्रकाशन बचपन में ही हो जाता है, वह है उसका साहस। अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरे को बचाने की कोशिश। लहनासिंह जब सूबेदारनी से मिलता है तो वह बताती है कि किस तरह एक बार उसने उसे तांगे के नीचे आने से बचाया था और इसके लिए वह स्वयं घोड़े के आगे चला गया था। इस तरह लहनासिंह के चरित्र के ये दोनों पक्ष आगे कहानी में उसके व्यक्तित्व को निर्धारित. करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। एक अनजान बालिका के प्रति मन में पैदा हुआ स्नेह भाव और दूसरा उसका साहस।

लहनासिंह किसान का बेटा है, खेती छोड़कर सिपाही बन जाता है। लेकिन सिपाही बन जाने के बाद भी उसकी मानसिकताएँ उसके स्वप्न और उसकी आकांक्षाएँ किसानों-सी ही रहती है। सेना में वह मामली सिपाही है जमादार के पद पर। लेकिन वहाँ भी किसानी जीवन की समस्याएँ उसका पीछा नहीं छोड़तीं। वह छुट्टी लेकर अपने गाँव जाता है। जमीन के किसी मुकदमे की पैरवी के लिए। कहानीकार यह संकेत नहीं देता है कि लहनासिंह विवाहित है या अविवाहित। लेकिन लहनासिंह की बातों से यही लगता है कि वह अविवाहित है। उसका एक भतीजा है-कीरतसिंह जिसकी गोद में सिर रखकर वह अपने बाकी दिन गुजारना चाहता है। अपने गाँव, अपने खेत, अपने बाग में। उसे सरकार से किसी जमीन-जायदाद की उम्मीद नहीं है न ही खिताब की। एक साधारण जिन्दगी जी रहा है उतना ही साधारण जितनी कि किसी भी किसान या सिपाही की हो सकती है। उस लड़की की स्मृति भी समय की पर्तों के नीचे दब चुकी है जिससे उसने कभी पूछा था कि क्या तेरी कुड़माई हो गई।

लेकिन उसके साधारण जीवन में जबर्दस्त मोड़ तब आता है जब उसकी मुलाकात 25 साल बाद सूबेदारनी से होती है। सूबेदारनी उसे इतने सालों बाद भी देखते ही पहचान लेती है। इससे पता चलता है कि बचपन की घटना उसको कितनी अधिक प्रभावित कर गई थी। जब वह उसे बचपन की घटनाओं का स्मरण कराती है तो वह आवाक्-सा रह जाता है। भूला वह भी नहीं है, लेकिन समय ने उस पर एक गहरी पर्त बिछा दी थी, आज एकाएक धूल पोछकर साफ हो गई है। सूबेदारनी ने बचपन के उन संबंधों को अबतक अपने मन में जिलाये रखा। यह लहनासिंह के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण था। उसी संबंध के बल पर सूबेदारनी का यह विश्वास करना कि लहनासिंह उसकी बात टालेगा नहीं लहनासिंह के लिए और भी विस्मयकारी था। वस्तुतः उसका लहनासिंह पर यह विश्वास ही बचपन के उन संबंधों की गहराई को व्यक्त करता है और इसी विश्वास की रक्षा करना लहनासिंह के जीवन की धुरी बन जाता है।

लहनासिंह एक वीर सिपाही है और खतरे के समय भी अपना मानसिक संतुलन नहीं खोता। खंदक में पड़े-पड़े उकताने से वह शत्रु पर आक्रमण बेहतर समझता है। यहाँ उसकी कृषक मानसिकता प्रकट होती है जो निकम्मेपन और ऊब से बेहतर तो लड़ते हुए अपनी जान देना समझता है। जब उसकी टुकड़ी में जर्मन जासूस कैप्टन साहब बनकर घुस आता है तब उसकी सूझबूझ और चतुराई देखते ही बनती है। उसे यह पहचानने में देर नहीं लगती कि यह कैप्टन साहब नहीं बल्कि जर्मन जासूस है और तब वह उसी के अनुकूल कदम उठाने में नहीं हिचकिचाया और बाद में उस जर्मन जासूस के साथ मुठभेड़ या लड़ाई के दौरान भी उसका साहसिकता और चतुराई स्पष्ट उभर कर प्रकट होती है। किन्तु इस सारे घटनाचक्र में भी वह सूबेदारनी को दिये वचन के प्रति सजग रहता है और अपने जीते जी हजारासिंह व बोधासिंह पर किसी तरह की आँच नहीं आने देता। यही नहीं उनके प्रति अपनी आंतरिक भावना के कारण ही वह अपने घावों के बारे में सूबेदार को कुछ नहीं बताता। पसलियों में लगी गोली उसके लिए प्राणघातक होती है और अंत में वह मर जाता है।

प्रश्न 3: लहना सिंह का परिचय अपने शब्दों में दे ।

उत्तर: लहनासिंह एक वीर सिपाही है। वह ‘उसने कहा था’ कहानी का प्रमुख पात्र तथा नायक है। लेखक ने कहानी में उसके चरित्र को पूरी तरह उभारा है। कहानी में उसके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ उभरकर सामने आती हैं-

कहानी का नायक–कहानी का समस्त घटनाक्रम लहनासिंह के आस–पास घटता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वो कहानी का प्रमुख पात्र तथा नायक है।

सच्चा प्रेमी–लहनासिंह एक सच्चा प्रेमी है। बचपन में उसके हृदय में एक अनजान भावना ने जन्म लिया जो प्रेम था। यद्यपि उसे अपना प्रेम न मिल सका लेकिन फिर भी उसने सच्चाई से उसे अपने हृदय में बसाए रखा।

बहादुर तथा निडर–लहनासिंह बहादुर तथा निडर व्यक्तित्व का स्वामी है। तभी तो वह बैठे रहने से बेहतर युद्ध को समझाता है।

चतुर : लहनासिंह बहादुर होने के साथ–साथ काफी चतुर भी है। इसीलिए उसे लपटन साहब के नकली होने का शक हो गया और उसने चतुराई से उसका भांडा फोड़ दिया।

सहानुभूति तथा दयालुपन : लहनासिंह के चरित्र में सहानुभूति तथा दया भाव भी विद्यमान है। इसीलिए वह भीषण सर्दी में भी अपने कम्बल और जर्सी बीमार बोधासिंह को दे देता है।

वचन पालन : सूबेदारनी ने लहनासिंह से अपने पति और बेटे के प्राणों की रक्षा करने की बात कही थी। लेकिन लहना सिंह ने उसे एक वचन की तरह निभाया और इसके लिए अपने प्राण भी न्योछावर कर दिया।

प्रश्न 4: पाठ से लहना और सूबेदारनी के संवादों को एकत्र करें।

उत्तर: पाठ में लहनासिंह और सूबेदारनी के बीच कुछ संवाद हैं जो निम्नलिखित हैं–

बचपन का संवाद–

“तेरे घर कहाँ है?”

“मगरे में–और तेरे!”

“माँझे में; यहाँ कहाँ रहती है?”

“अतरसिंह की बैठक में, वे मेरे मामा होते हैं।”

“मैं भी मामा के यहाँ हूँ, उनका घर गुरु बाजार में है।”

इतने में दूकानदार………….लड़के ने मुस्कुराकर पूछा–”तेरी कुड़माई हो गई?” इस पर लड़की कुछ आँखें चढ़ाकर ‘धत्’ कहकर दौड़ गई।

…………लड़के ने फिर पूछा–”तेरी कुड़माई हो गई?” और उत्तर में वही ‘धत्’ मिला। एक दिन जब फिर लड़के ने वैसे ही हँसी में चिढ़ाने के लिए पूछा तब लड़की, लड़के की संभावना के विरुद्ध बोली–”हाँ, हो गई।”

“कब?”

“कल–देखते नहीं यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू!”

सूबेदार के घर का संवाद

“मुझे पहचाना?”

“नहीं।”

“तेरी कुड़माई हो गई? ‘धत्’–कल हो गई–देखते नहीं रेशमी बूटोंवाला सालू–अमृतसर में–”सूबेदारनी कह रही है–”मैंने तेरे को आते ही पहचान लिया। ………तुम्हारे आगे मैं आँचल पसारती हूँ।”

प्रश्न 5: प्रसंग एवं अभिप्राय बताएं‘ मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ़ हो जाती है । जन्म भर की घटनाएँ एक – एक करके सामने आती है । सारे दृश्यों के रंग साफ़ होते है ; समय की धुंध बिलकुल उनपर से हट जाती है । ‘

उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति चंद्रधर शर्मा गुलेरी द्वारा रचित पाठ उसने कहा था ‘ से लिया गया है । इस पंक्ति का आशय बड़ा ही भावुक है । जब लड़ाई खत्म हो जाती है तो लहना सिंह को अपने 12 वर्ष की अवस्था की याद आने लगती है । अमृतसर शहर के चौक पर दही वाले दुकान पर मिली वो 8 साल की लड़की , तेरी कुडमाई हो गई ? धत कहकर देने वाली जबाबे उनको बहुत याद आ रही थी । लहना सिंह जब जमादार पद पर नियुक्त हुआ था तब उस लड़की की याद उन्हें ज्यादा नही आ रही थी लेकिन जब मृत्यु नजदीक आने लगती है तो सारी बाते याद बनकर आने लगती है अर्थात सारे दृश्यों के रंग साफ़ होते है और समय की धुंध बिलकुल उनपर से हट जाती