बिहार बोर्ड कक्षा 12वी - हिंदी - गद्य खंड अध्याय 3: सम्पूर्ण क्रांति के लघु - उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1: आंदोलन के नेतृत्व के संबंध में जयप्रकाश नारायण के क्या विचार थे, आंदोलन का नेतृत्व वे किस शर्त पर स्वीकार करते हैं ?
उत्तर: आंदोलन के नेतृत्व के संबंध मे जयप्रकाश नारायण के विचार “मैं सबकी बात सुँनुगा। छात्रों की बात, जितना भी ज्यादा होगा जितना भी समय मेरे पास होगा, उनसे बहस करूँगा, समझूँगा और अधिक से अधिक बात स्वीकार करूँगा” जन संघर्ष समितियों की; लेकिन फैसला मेरा होगा। इस फैसले को सभी को मानना होगा। तब तो इस नेतृव का कोई मतलब है, तब यह क्रांति सफल हो सकती है और नहीं तो आपस की बहस मे पता नहीं हम किधर बिखर जाएगे और क्या नतीजा निकलेगा। “नाम के लिए मुझे नेता नहीं बनना है। मुझे सामने खड़ा करके और कोई हमे ‘डिक्टेट’ करे पीछे से की क्या करना है जयप्रकाश नारायण तुम्हें, तो इस नेतृत्व को कल मैं छोड़ देना चाहूँगा। आंदोलन का नेतृत्व वे इसी शर्त पर स्वीकार करते है।”
प्रश्न 2: जयप्रकाश नारायण के छात्र जीवन और अमेरिका प्रवास का परिचय दें। इस अवधि की कौन सी बातें आपको प्रभावित करती हैं ?
उत्तर: जयप्रकाश नारायण का छात्र जीवन बहुत ही संघर्षशील रहा। वे साइंस के छात्र थे। वे कुछ दिन फुलदेव बाबू के साथ लेबोरेटरी मे रहे। बिहार विधापीठ से आइ० एस० सि० की परीक्षा पास किये। वे स्वामी सत्यदेव के भाषण सुने थे की अमेरिका मे मजदूरी करके लड़के पढ़ सकते है। तो वे अमेरिका गये। वहाँ वे बागानों में काम किये, कारखानों में काम किये, जहाँ जानवर मारे जाते है, उन कारखानों मे भी उन्होंने काम किया।
प्रश्न 3: जयप्रकाश नारायण कम्युनिस्ट पार्टी में क्यों नहीं शामिल हुए?
उत्तर: जयप्रकाश नारायण कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल नहीं हुए क्योंकि उन्होंने लेनिन मे सिखा था की जो गुलाम देश है, वहाँ के जो कम्युनिस्ट है, उनको हरगिज वहाँ की आजादी की लड़ाई से खुद को अलग नहीं रखना चाहिए। क्योंकि लड़ाई का नेतृव ‘बुर्जआ क्लास’ के हाथ मे होता है, पूँजीपतियों के हाथ मे होता है। कम्युनिस्टों को अलग नहीं रहना चाहिए। अपने को आइसोलेट नहीं करना चाहिए।
प्रश्न 4: पाठ के आधार पर प्रसंग स्पष्ट करें –
(क) अगर कोई डिमॉक्रेसी का दुश्मन है, तो वे लोग दुश्मन है, जो जनता के शांतिमय कार्यक्रमों में बाधा डालते हैं, उनकी गिरफ्तारियाँ करते हैं, उन पर लाठी चलाते हैं, गोलियाँ चलाते हैं।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति जयप्रकाश नारायण द्वारा रचित सम्पूर्ण क्रांति पाठ से लिया गया है। लेखक यह कहना चाहते है की जब उनके शांतिमय प्रदर्शन जुलूस के लिए हजारों लोग आ रहे थे। कुछ लोग पैदल आ रहे थे, कुछ लोग बस से आ रहे थे, कुछ लोग रेलो से आ रहे थे, कुछ लोग ट्रकों से आ रहे थे। आने वालों में किसान मजदूर छात्र मध्य वर्ग के लोग शामिल थे। जहाँ तहाँ उनको बिना कारण के रोका गया। उन्हें पीटा गया, गिरफ्तार भी किया गया, विरोधी के इन हरकतों के कारण ऐसी नीचता का व्यवहार दिखाने वालों के लिए यह पंक्ति लेखक द्वारा कही गई। अंततः उन्होंने यह भी कहा कि हम जनता छात्र युवा अब इस प्रकार की डेमोक्रेसी को बदलना चाहते हैं क्योंकि जो भी आंदोलन इस देश में होगा। उसका नेता युवा रहेगा, छात्र रहेगा इसमें कोई संदेह नहीं है।
प्रश्न 5: बापू और नेहरू की किस विशेषता का उल्लेख जेपी ने अपने भाषण में किया है ?
उत्तर: जे० पी० ने अपने भाषण मे बापू एवं नहरुजी की निम्नलिखित विशेषता का उल्लेख किया। बापू की महानता के बारे मे जयप्रकाश नारायण कहते है। की जब भी हमने यह कहा-बापू हम नहीं मानते थे। आपकी यह बात, तो बापू बुरा नहीं मानते थे। वे हमारी बात समझ जाते थे। फिर भी वे हमे प्रेम से समझाना चाहते थे। मैं उनका बड़ा आदर करता था परन्तु उनकी कटु आलोचना भी करता था। उनमें बड़प्पन था वे हमारी आलोचनाओ का बुरा नहीं मानते थे। मेरा उनके साथ जो मतभेद था, वह परराष्ट्र की नीतियों को लेकर था।
प्रश्न 6: भ्रष्टाचार की जड़ क्या है ? क्या आप जेपी से सहमत हैं, इसे दूर करने के लिए क्या सुझाव देंगे ?
उत्तर: भ्रष्टाचार की जड़ सरकार की गलत नीतियाँ है। इसके कारण भ्रष्टाचार की जड़ और मजबूत हुई है। बगैर घुस या रिश्वत दिये जनता का कोई कार्य नहीं होता। शिक्षा संस्थाएँ भी भ्रष्ट हो गई।
हाँ मैं जेपी जी से सहमत हूँ क्योंकि उन्होंने भ्रष्टाचार के बार मे बिलकूल सही बात कही है कि आजादी के बाद भी भ्रष्टाचार और अधिक बढ़ा है। भ्रष्टाचार को जड़ मूल से नष्ट करने हेतु व्यवस्था मे परिवर्तन लाना होगा। किरानी राज खत्म करना होगा। नौकरशाही को जड़-मूल से नष्ट करना होगा। आज के नौकरशाह अभी भी अपने को जनता का सेवक नहीं समझते। वे अपने को सरकारी कर्मचारी मानते है। जो गुलामी के समय उनकी सोच थी वही सोच आज भी वर्तमान है। नौकरशाहो को जनता का सेवक समझना होगा तभी भ्रष्टाचार को दूर किया जा सकता है।
प्रश्न 7: दलविहीन लोकतंत्र और साम्यवाद में कैसा संबंध है ?
उत्तर: जयप्रकाश जी के अनुसार दलविहीन लोकतंत्र मार्क्सवाद और लेनिनवाद के मूल उद्धेश्यों मे है। मार्क्सवाद के अनुसार समाज जैसे- जैसे साम्यवाद की ओर बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे राज्य-स्टेट का क्षय होता जायेगा और अंत मे एक स्टेटलेस सोसाइटी कायम होगा। वह समाज अवश्य ही लोकतांत्रिक होगा, बल्कि उसी समाज मे लोकतंत्र का सच्चा स्वरूप प्रकट होगा और वह लोकतंत्र निश्चय ही दलविहीन होगा।
प्रश्न 8: संघर्ष समितियों से जयप्रकाश नारायण की क्या अपेक्षाएँ है ?
उत्तर: जे०पी० जी चाहते थे कि जनसंघर्ष समितियाँ ही विधानसभा के लिए उम्मीदवारों का चयन करें। जे० पी० यह भी चाहते थे कि संघर्ष समितियाँ केवल शासन से ही संघर्ष नहीं करे बल्कि उनका काम तो समाज के हर अन्याय और अनीति पूर्ण अन्याय होते हैं उनका भी दमन करेगी। यह सामाजिक, आर्थिक एवं नैतिक क्रान्ति के लिए अथवा सम्पूर्ण क्रान्ति के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य करेगी।
प्रश्न 9: चुनाव सुधार के बारे में जयप्रकाश जी के प्रमुख सुझाव क्या हैं ? उन सुझावों से आप कितना सहमत हैं ?
उत्तर: चुनाव सुधार के बारे में जे० पी० जी का प्रमुख सुझाव यह था कि, इस बार जो चुनाव हो उसके प्रचार में बहुत कम खर्च हो। व्यवस्था कुछ इस प्रकार से हो कि जो भी प्रतिनिधि हो उन पर जनता का भी अंकुश रहे। उनका यह भी सुझाव है कि जब विधानसभा का अगला चुनाव हो, तो हमारी छात्र संघर्ष तथा जन संघर्ष समिति मिलकर के आम राय दे। आम राय से अपना उम्मीदवार खड़ा करें अथवा जो उम्मीदवार खड़े किए जाए। उनमें से किसी को मान्य करें जनता और छात्र की संघर्ष समिति उम्मीदवार के चयन में अपना महत्वपूर्ण रोल अदा करेगी। जो भी उम्मीदवार जीतेगा उसके भावी कार्यक्रमों पर कड़ी निगरानी रखने का काम यह संघर्ष समिति करेगी।
प्रश्न 10: दिनकर जी का निधन कहाँ और किन परिस्थितियों में हुआ था ?
उत्तर: एक दिन जयप्रकाश नारायण जी मद्रास में, अपने मित्र ईश्वर नारायण के साथ रुके थे। वहाँ उनसे मिलने दिनकर जी और गंगा बाबू मिलने आए थे। उस दिन दिनकर जी ने उन्हे कुछ अपने शब्द सुनाए थे। उसी दिन अचानक रात को ‘दिल का दौरा’ पड़ा रामनाथ जी गोयनका के द्वारा 3 मिनट में उनको भी “विलिंगडन नर्सिंग होम” अस्पताल पहुँचाया गया लेकिन उनका निधन हो गया।