बिहार बोर्ड कक्षा 12वी - हिंदी - गद्य खंड अध्याय 4: अर्धनारीश्वर के लघु - उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:‘यदि संधि की वार्ता कुंती और गांधारी के बीच हुई होती, तो बहुत संभव था कि महाभारत न मचता’। लेखक के इस कथन से क्या आप सहमत हैं? अपना पक्ष रखें ।
उत्तर: यह पंक्ति रामधारी सिंह दिनकर जी की रचना अर्धनारीश्वर से ली गई है। लेखक का मनना है की ‘यदि संधि की वार्ता कुंती और गांधारी के बीच हुई होती, तो बहुत संभव था की महाभारत न मचता’ । लेखक ऐसा इस लिए कहते है क्योंकि नारी मे दया, माया, सहिष्णुता और भीरुता के गुण होते है। इन गुणों के कारण नारी विनम्र और दयावान होती जिसके कारण युद्ध जैसी घटना को कभी नहीं होने देगी । नारियों मे यह भवन की प्रबल होती है की दूसरी नारियों का सुहाग उसी प्रकार कायम रहे जैसे वे अपने बारे मे सोचती है । ऐसा इसलिए की नारियाँ पुरुषों की तुलना मे कम कर्कश एंव कठोर हुआ करती है। कुंती एवं गांधारी दोनों अपने-अपने पुत्र को राज्य बनते देखना चाहती थी, लेकिन इतना तय है की इसके लिए इतना बड़ा रक्तसहार वे कदापि स्वीकार नहि करती ।
प्रश्न 2: अर्धनारीश्वर की कल्पना क्यों की गई होगी ? आज इसकी क्या सार्थकता है ?
उत्तर: अर्धनारीश्वर शंकर और पार्वती कहा गया है। अर्धनारीश्वर की कल्पना इसलिए की गई है क्योंकि नर-नारी पूर्ण रूप से समान एवं उनमे से एक के गुण दूसरे के दोष नहीं हो सकता अर्थात नर मे नारियों के गुण आएँ तो, इससे उनकी मर्यादा हीन नहीं होती बल्कि उनकी गुण मे पूर्णता वृद्धि ही होती है । आज के जमाने मे नर-नारी के गुणों को सिखकर अपना जीवन यापन करता है और नारी भी नर के गुण सिखकर समाज मे अपना अस्तित्व बना रही है और स्वंम को आत्मनिर्भर कर रही है।
प्रश्न 3: रवींद्रनाथ, प्रसाद और प्रेमचंद के चिंतन से दिनकर क्यों असंतुष्ट हैं ?
उत्तर: रवींद्रनाथ, प्रसाद और प्रेमचंद की कल्पना से रामधारी सिंह दिनकर असन्तुष्ट इसलिए थे की इन लोगों ने नारियों के प्रति अच्छे ढंग से उल्लेख नही किया है। इन लोगों ने अर्धनारीश्वर के चित्रन से हटकर रोमटिक चित्रन प्रस्तुत किया है। जैसे रवीन्द्रनाथ ने नारियों को आकर्षक और मोहक माना है। जबकि प्रेमचंद्र ने पुरुष को देवता का गुण बताता है और नारी को रक्षाशी का गुण बताते है। जयशंकर प्रशाद जी ने स्त्री और पुरुष को अलग मानते थे। इस सभी कल्पनाओ से रामधारी सिंह दिनकर संतुष्ट नहि थे।
प्रश्न 4: प्रवृत्तिमार्ग और निवृत्तिमार्ग क्या हैं ?
उत्तर: प्रवृत्तिमार्ग:- जिस मार्ग पर चलकर लोगों ने नारी को अपनाया वह मार्ग प्रवृत्तिमार्ग कहलाया और जो लोग इस मार्ग पर चले वह लोग प्रवृत्तिमार्गी कहलाये । यह वे लोग है जो अपने जीवन से आनंद चाहते थे और नारी आनंद की खान थी।
निवृत्तिमार्ग:- वह मार्ग जिस पर चलकर लिगों ने नारी को अपने जीवन से निकाल दिया या त्याग दिया। वह मार्ग निवृत्तिमार्ग कहलाया और वे लोग जिन्होंने इस मार्ग को अपना वे निवृत्तिमार्गी कहलाए। निवृत्तिमार्ग के लिए नारी किसी काम की चीज नहीं थी। ये लोग सन्यास लेने लगे ।
प्रश्न 5: बुद्ध ने आनंद से क्या कहा ?
उत्तर: बुद्ध ने आनंद से कहा ,“आनंद ! मैंने जो धर्म चलाया था, वह पाँच सहस्त्र वर्ष तक चलने वाला था, किन्तु अब वह केवल पाँच सौ वर्ष चलेगा, क्योंकि नारियों को मैंने भिक्षुणी होने का अधिकार दे दिया है।”
प्रश्न 6: स्त्री को अहेरिन, नागिन और जादूगरनी कहने के पीछे क्या मंशा होती है, क्या ऐसा कहना उचित है ?
उत्तर: आज तक नारी की अवहेलना कई तरह से की गई है। बर्नाड शाँ ने नारी को अहेरिन (इधर-उधर भटकने वाली) तक माना है, जिससे अहेर से बचकर निकलना पड़ता है। इसी प्रकार काव्य जगत मे नारी को नागिन और जदूगरनी समझा गया । नारी के संबंध मे कही गयी ये सारी बाते झूठी है। इसके पीछे पुरुष की मंशा उसे दुर्बल बनाये रखना है। विकार यदि नारी मे है तो पुरुष मे भी है। इसी प्रकार गुण भी दोनों मे ही है।
प्रश्न 7: नारी की पराधीनता कब से आरंभ हुई ?
उत्तर: नारी की पराधीनता तब आंरभ हुई जब मानव जाती ने कृषि का आविष्कार किया। जिसके चलते नारी घर मे और पुरुष बाहर रहने लगा । यहाँ से जिंदगी दो टुकड़ों मे बँट गई । घर का जीवन सीमित और बाहर की जीवन की कोई सीमा नही थी । जिसके कारण नारी चार दिवारी मे कैद होकर रह गई ।
प्रश्न 8: प्रसंग स्पष्ट करें-
(क) प्रत्येक पत्नी अपने पति को बहुत कुछ उसी दृष्टि से देखती है जिस दृष्टि से लता अपने वृक्ष को देखती हैं।
उत्तर: इस प्रसंग के द्वारा कवि यह कहते है की नारी स्वंम को इतना कोमल और कमजोर बना लिया है की वह नर पर पूर्ण रूप सेआश्रित हो गई है । जिस तरह वृक्ष के अधीन उसकी लता होती है। उसी तरह पत्नी भी पुरुषों के अधीन है। वह पुरुष के पराधीन है इसी कारण नारी का अस्तित्व ही संकट मे पड़ गया है। वह अपना अस्तित्व खोती जा रही है । उसका सुख और दुख, प्रतिष्ठा और अप्रतिष्ठा यहाँ तक की जीवन और मरण भी पुरुष की मर्जी पर हो गया है । नारी का सारा जीवन उसके पति अर्थात पुरुष की इच्छ पर जा रुका है
(ख) जिस पुरुष में नारीत्व नहीं, अपूर्ण है।
उत्तर: इस पंक्ति के द्वारा लेखक हमे यह बताना चाहते है की जिस पुरुष मे नारी के गुण नही होता है वह अपूर्ण होता है। नारी मे दया, माय, सहिष्णुता और भीरुता जैसे स्त्रियोचित गुण होते है। इन गुणों के कारण नारी विनाश से बची रहती है। यदि नारी के ये सभी गुण पुरुष अपना लेता है तो पुरुष पूर्ण हो जाता है। ईश्वर ने नर-नारी को सामान बनाया है, सिर्फ उनके गुणों मे अंतर है ।
प्रश्न 9: जिसे भी पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है,वह नारी का भी कर्मक्षेत्र है। कैसे ?
उत्तर: ईश्वर ने नर-नारी को समान रूप से बनाया है। उसने नर-नारी के कर्मक्षेत्र को नही बाँटा है। नर-नारी एक दुसरे के पूरक है। इस संसार मे नर-नारी के जीवन का उदेश्य एक ही है । जीवन संचालन मे नारी का भी अपना हिस्सा है और वह हिस्सा घर तक ही सीमित नहीं है बाहर भी है । आज के युग मे नारियों को हर क्षेत्र मे कार्य मिल रहा है और वे यह कार्य काफी समझदारी के साथ कर रही है। वह ये कार्य उतनी ही मजबूती के साथ करती है जितनी मजबूती के साथ पुरुष करते है। ये भेद भाव समाज ने बनाया है। अतः हम कह सकते है, पुरुष जिसे अपना कर्मक्षेत्र मानता है वह नारियों का भी कर्मक्षेत्र है।
प्रश्न 10: बद्ध ने आनंद से क्या कहा ?
उत्तर: “आनंद” ! मैंने जो धर्म चलाया था, वह पाँच सहस्र वर्ष तक चलनेवाला, किन्तु अब वह पाँच सौ वर्ष चलेगा, क्योंकि नारियों को मैंने भिक्षुणी होने का अधिकार दे दिया है।”