बिहार बोर्ड कक्षा 12वी - हिंदी - गद्य खंड अध्याय 5: रोज के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1: दोपहर में उस सूने आँगन में पैर रखते ही मुझे जान पड़ा, मानो उस पर किसी शाम की छाया मँडरा रही हो, यह कैसी शाम की छाया है ? वर्णन कीजिए।
उत्तर: लेखक अपने दूर के रिश्ते की बहन जिससे उनका परस्पर संबंध मित्र का ही ‘ था, से मिलने उसके घर पर पहुँचता है। वह बुद्धिजीवी तथा अनुभवी व्यक्ति है। तुरन्त ही वातावरण तथा वहाँ रहनेवालों की दशा को भाँप जाता है। मालती और घर दोनों की स्थिति एक समान है। दोपहर का समय है फिर भी वहाँ लेखक को संध्या की छाया मँडराती हुई दिखाई पड़ती है। वह घर नया होने के बावजूद दोपहर अर्थात अपनी युवाकाल में ही नीरस और शुष्क लग रहा था। मालती भी युवती है परन्तु यंत्रवत और नीरस जिन्दगी ने उसे जीर्ण-शीर्णकाया में परिवर्तित कर दिया है। मालती का रूप लावण्य जवानी में ही ढलान पर है, ऐसा लगता है मानो किसी जीवित प्राणी के गले में किसी मृत जंतु का तौक डाल दिया गया हो। वह सरकारी क्वार्टर भी ऐसा लगता है जैसे उस पर किसी शाम की छाया मँडरा रही हो। वहाँ का वातावरण कुछ ऐसा अकथ्य, अस्पृश्य, किन्तु फिर भी बोझिल और प्रदीपमय-सा सन्नाटा फैला रहा था। ऐसा स्पष्ट होता है कि दोपहर में ही वक्त ने उसपर शाम की छाया ला दिया हो।
प्रश्न 2: मालती के पति महेश्वर की कैसी छवि आपके मन में बनती है, कहानी में महेश्वर की उपस्थिति क्या अर्थ रखती है ? अपने विचार दें।
उत्तर: महेश्वर मालती का पति है जो एक पहाड़ी गाँव में सरकारी डिस्पेंसरी में डॉक्टर है। उनका जीवन यंत्रवत है। अस्पताल में रोगियों को देखने और अन्य जरूरी हिदायतें करने ……. उनका जीवन भी बिल्कुल निर्दिष्ट ढर्रे पर चलता है, नित्य वही काम, उसी प्रकार का मरीज, वही हिदायतें, वही नुस्खे, वही दवाइयाँ। वह स्वयं उकताए हुए हैं और साथ ही इस भयंकर गर्मी के कारण वह अपने फुरसत के समय में भी सुस्त रहते हैं।
लेखक ने कहानी में महेश्वर की उपस्थिति कराकर कहानी को जीवंत बना दिया है। कहानी की नायिका मालती का जीवन उसी के इन्तजार एवं थकान की लम्बी साँस। महेश्वर .. की जिन्दगी के समान ही मालती की जिन्दगी ऊब और उदासी के बीच यंत्रवत चल रही है। किसी तरह के मनोविनोद, उल्लास उसके जीवन में नहीं रह गये हैं। महेश्वर मरीज और डिस्पेंसरी के चक्कर में अपने जीवन को भार समान ढो रहा है तो मालती चूल्हा-चक्की, पति का इन्तजार तथा बच्चे के लालन-पालन में।
प्रश्न 3: लेखक और मालती के संबंध का परिचय पाठ के आधार पर दें।।
उत्तर: लेखक मालती के दूर के रिश्ते का भाई है। किंतु लेखक का संबंध सख्य का ही रहा है। लेखक और मालती बचपन में एक साथ इकट्ठे खेले हैं, लड़े हैं और पिटे भी | हैं। लेखक की पढ़ाई भी मालती के साथ ही हुई है। लेखक और मालती का व्यवहार एक-दूसरे के प्रति सख्य की स्वेच्छा और स्वच्छंदता भरा रहा है। कभी भ्रातृत्व के रूप में या कभी किसी और रूप में। कभी बड़े-छोटेपन के बंधनों में नहीं बंधे।
प्रश्न 4: यह कहानी गैंग्रीन शीर्षक से भी प्रसिद्ध है, दोनों शीर्षक में कौन-सा शीर्षक आपको अधिक सार्थक लगता है, और क्यों ?
उत्तर: ‘विपथगा’ कहानी-संग्रह के पाँचवें संस्करण में यह कहानी, ‘गैंग्रीन’ शीर्षक से प्रकाशित है। पहाड़ पर रहने वाले व्यक्तियों को काँटा चुभना आम बात है परन्तु उनकी लापरवाही के कारण वह पैर में चुभा काँटा एक बड़ा जख्म का शक्ल ले लेता है जिसे बाद में उसका इलाज सिर्फ पैर का काटना ही है। काँटा चुभने के बाद का जख्म ही गैंग्रीन है। कहानी में गैंग्रीन डाक्टर महेश्वर के साथ ही आता है और उन्हीं तक सीमित भी है। डाक्टर रोज-रोज गैंग्रीन से पीड़ित का इलाज उसका पैर काटकर करते हैं। यह घटना उन्हीं तक सीमित रहती है और कहानी पर अपना ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ती। इस कहानी ‘रोज’ द्वारा एक दाम्पत्य जीवन के राग-विराग, जीवन की एकरसता, घुटन, संत्रास, यंत्रवत् जीवन, बच्चे का रोज-रोज पलंग से गिरने के कारण माँ की एक पुत्र के प्रति संवेदना, रोज एक ही ढर्रे पर चलती मालती की ऊबाहट-भरी दिनचर्या ध्वन्ति होती है। साथ ही इस कहानी का उद्देश्य एक युवती मालती के यान्त्रिक वैवाहिक जीवन के माध्यम से नारी के यन्त्रवत् जीवन और उसके सीमित घरेलू परिवेश में बीतते ऊबाऊ जीवन को भी चित्रित करना है।
प्रश्न 5: ‘रोज’ शीर्षक कहानी का सारांश लिखें।
उत्तर: कहानी के पहले भाग में मालती द्वारा अपने भाई के औपचारिक स्वागत का उल्लेख है जिसमें कोई उत्साह नहीं है, बल्कि कर्त्तव्यपालक की औपचारिकता अधिक है। वह अतिथि का कुशलक्षेम तक नहीं पूछती, पर पंखा अवश्य झलती है। उसके प्रश्नों का संक्षिप्त उत्तर देती है। बचपन की बातूनी चंचल लड़की शादी के दो वर्षों बाद इतनी बदल जाती है कि वह चप रहने लगती है। उसका व्यक्तित्व बुझ-सा गया है। अतिथि का आना उस घर के ऊपर कोई काली छाया मँडराती हुई लगती है।
मालती और अतिथि के बीच के मौन को मालती का बच्चा सोते-सोते रोने से तोड़ता है। वह बच्चे को सँभालने के कर्त्तव्य का पालन करने के लिए दूसरे कमरे में चली जाती है। अतिथि एक तीखा प्रश्न पूछता है तो उसका उत्तर वह एक प्रश्नवाचक ‘हूँ’ से देती है। मानो उसके पास कहने के लिए कुछ नहीं है। यह आचरण उसकी उदासी, ऊबाहट और यांत्रिक जीवन की यंत्रणा को प्रकट करता है। दो वर्षों के वैवाहिक जीवन के बाद नारी कितनी बदल जाती है. यह कहानी के इस भाग में प्रकट हो जाती है। कहानी के इस भाग में मालती कर्तव्यपालन की औपचारिकता पूरी करती प्रतीत होती है पर उस कर्त्तव्यपालन में कोई उत्साह नहीं है, जिससे उसके नीरस, उदास, यांत्रिक जीवन की ओर संकेत करता है। अतिथि से हुए उसके संवादों में भी एक उत्साहहीनता और ठंढापन है। उसका व्यवहार उसकी द्वन्द्वग्रस्त मनोदशा का सूचक . है। इस प्रकार कहानीकार बाह्य स्थिति और मन:स्थित के संश्लिष्ट अंकन में सफल हुआ है।
रोज कहानी के दूसरे भाग में मालती का अंतर्द्वन्द्वग्रस्त मानसिक स्थिति, बीते बचपन की स्मृतियों में खोने से एक असंज्ञा की स्थिति, शारीरिक जड़ता और थकान का कुशल अंकन हुआ है। साथ ही उसके पति के यांत्रिक जीवन, पानी, सब्जी, नौकर आदि के अभावों का भी उल्लेख हुआ है। मालती पति के खाने के बाद दोपहर को तीन बजे और रात को दस बजे ही भोजन करेगी और यह रोज का क्रम है। बच्चे का रोना, मालती का देर से भोजन करना, पानी का नियमित रूप से वक्त पर न आना, पति का सवेरे डिस्पेन्सरी जाकर दोपहर को लौटना और शाम को फिर डिस्पेन्सरी में रोगियों को देखना, यह सबकुछ मालती के जीवन में रोज एक जैसा ही है। घंटा खडकने पर समय की गिनती करना मालती के नीरस जीवन की सूचना देता है अथवा यह बताता है कि समय काटना उसके लिए कठिन हो रहा है।