हिंदी - गद्य खंड अध्याय 6: एक लेख और एक पत्र के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न
Launch Your Course Log in Sign up
Menu
Classes
Competitive Exam
Class Notes
Graduate Courses
Job Preparation
IIT-JEE/NEET
vidyakul X
Menu

बिहार बोर्ड कक्षा 12वी - हिंदी - गद्य खंड अध्याय 6: एक लेख और एक पत्र के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न

BSEB > Class 12 > Important Questions > गद्य खंड अध्याय 6: एक लेख और एक पत्र के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1: भगत सिंह के अनुसार केवल कष्ट सहकर ही देश की सेवा की जा सकती है? उनके जीवन के आधार पर इसे प्रमाणित करें।

उत्तर: भगत सिंह एक ऐसे क्रांतिकारी के रूप में हमारे सामने आते हैं जिनमें देश की आजादी के साथ समाज की उन्नति की प्रबल इच्छा भी दिखती है। इसकी शुरुआत 12 वर्ष की उम्र में जालियाँवाला बाग की मिट्टी लेकर संकल्प के साथ होती है, उसके बाद 1923 ई. में गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र ‘प्रताप’ से। भगत सिंह यह जानते थे कि समाज में क्रांति लाने के लिए जनता में सबसे पहले राष्ट्रीयता का प्रसार करना होगा। उन्हें एक ऐसे विचारधारा से अवगत कराना होगा जिसकी बुनियाद समभाव समाजवाद पर टिकी हो। जहाँ शोषण की कोई बात न हो। इसलिए उन्होंने लिखा कि समाज में क्रांति विचारों की धार से होगी। वे समाज में गैर–बराबरी, भेदभाव, अशिक्षा, अंधविश्वास, गरीबी, अन्याय आदि दुर्गुण एवं अभाव के विरोधी के रूप में खड़े होते हैं, मानवीय व्यवस्था के लिए कष्ट, संघर्ष सहते हैं। भगत सिंह समझते हैं कि बिना कष्ट सहकर देश की सेवा नहीं की जा सकती है। इसीलिए उन्होंने जो नौजवान सभा बनायी थी उसका ध्येय सेवा द्वारा कष्टों को सहन करना एवं बलिदान करना था।।

Download this PDF

प्रश्न 2: भगत सिंह के अनुसार केवल कष्ट सहकर ही देश की सेवा की जा सकती है? उनके जीवन के आधार पर इसे प्रमाणित करें।

उत्तर: भगत सिंह एक ऐसे क्रांतिकारी के रूप में हमारे सामने आते हैं जिनमें देश की आजादी के साथ समाज की उन्नति की प्रबल इच्छा भी दिखती है। इसकी शुरुआत 12 वर्ष की उम्र में जालियाँवाला बाग की मिट्टी लेकर संकल्प के साथ होती है, उसके बाद 1923 ई. में गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र ‘प्रताप’ से। भगत सिंह यह जानते थे कि समाज में क्रांति लाने के लिए जनता में सबसे पहले राष्ट्रीयता का प्रसार करना होगा। उन्हें एक ऐसे विचारधारा से अवगत कराना होगा जिसकी बुनियाद समभाव समाजवाद पर टिकी हो। जहाँ शोषण की कोई बात न हो। इसलिए उन्होंने लिखा कि समाज में क्रांति विचारों की धार से होगी। वे समाज में गैर–बराबरी, भेदभाव, अशिक्षा, अंधविश्वास, गरीबी, अन्याय आदि दुर्गुण एवं अभाव के विरोधी के रूप में खड़े होते हैं, मानवीय व्यवस्था के लिए कष्ट, संघर्ष सहते हैं। भगत सिंह समझते हैं कि बिना कष्ट सहकर देश की सेवा नहीं की जा सकती है। इसीलिए उन्होंने जो नौजवान सभा बनायी थी उसका ध्येय सेवा द्वारा कष्टों को सहन करना एवं बलिदान करना था।।

क्रांतिकारी भगत सिंह कहते हैं कि मानव किसी भी कार्य को उचित मानकर ही करता है। जैसे हमने लेजिस्लेटिव असेम्बली में बम फेंकने का कार्य किया था। इस पर दिल्ली के सेसन जज ने असेम्बली बम केस में भगत सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। कष्ट के संदर्भ में रूसी साहित्य का हवाला देते हुए कहते हैं, विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती है। हमारे साहित्य में दुःख की स्थिति न के बराबर आती है परन्तु रूसी साहित्य के कष्टों और दु:खमयी स्थितियों के कारण ही हम उन्हें पसंद करते हैं।

खेद की बात यह है कि कष्ट सहन की उस भावना को अपने भीतर अनुभव नहीं करते। हमारे जैसे व्यक्तियों को जो प्रत्येक दृष्टि से क्रांतिकारी होने का गर्व करते हैं सदैव हर प्रकार से उन विपत्तियों ‘चिन्ताओं’ दुखों और कष्टों को सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए जिनको हम स्वयं आरंभ किए संघर्ष के द्वारा आमंत्रित करते हैं और जिनके कारण हम अपने आप को क्रांतिकारी कहते हैं। इसी आत्मविश्वास के बल पर भगत सिंह फाँसी के फंदे पर झूल गये। वे जानते थे मेरे इन कष्टों, दु:खों का जनता पर बेहद प्रभाव पड़ेगा और जनता आन्दोलन कर बैठेगी। अतः भगत सिंह का कहना सत्य है कि कष्ट सहकर ही देश की सेवा की जा सकती है।

प्रश्न 3: भगत सिंह ने कैसी मृत्यु को सुन्दर कहा है? वे आत्महत्या को कायरता कहते हैं, इस संबंध में उनके विचारों को स्पष्ट करें।

उत्तर: क्रांतिकारी सरदार भगत सिंह देश सेवा के बदले दी गई फाँसी (मृत्युदण्ड) को सुन्दर मृत्यु कहा है। भगत सिंह इस सन्दर्भ में कहते हैं कि जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देनी चाहिए। इसी दृढ़ इच्छा के साथ हमारी मुक्ति का प्रस्ताव सम्मिलित रूप में और विश्वव्यापी हो और उसके साथ ही जब यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर पहुँचे तो हमें फाँसी दे दी जाय। यह मृत्यु भगत सिंह के लिए सुन्दर होगी जिसमें हमारे देश का कल्याण होगा। शोषक यहाँ से चले जायेंगे और हम अपना कार्य स्वयं करेंगे। इसी के साथ व्यापक समाजवाद की कल्पना भी करते हैं जिसमें हमारी मृत्यु बेकार न जाय। अर्थात् संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है।

भगत सिंह आत्महत्या को कायरता कहते हैं। क्योंकि कोई भी व्यक्ति जो आत्महत्या करेगा वह थोड़ा दुख, कष्ट सहने के चलते करेगा। वह अपना समस्त मूल्य एक ही क्षण में खो देगा। इस संदर्भ में उनका विचार है कि मेरे जैसे विश्वास और विचारों वाला व्यक्ति व्यर्थ में मरना कदापि सहन नहीं कर सकता। हम तो अपने जीवन का अधिक से अधिक मूल्य प्राप्त करना चाहते हैं। हम मानवता की अधिक–से–अधिक सेवा करना चाहते हैं। संघर्ष में मरना एक आदर्श मृत्यु है। प्रयत्नशील होना एवं श्रेष्ठ और उत्कृष्ट आदर्श के लिए जीवन दे देना कदापि आत्महत्या नहीं कही जा सकती। भगत सिंह आत्महत्या को कायरता इसलिए कहते हैं कि केवल कुछ दुखों से बचने के लिए अपने जीवन को समाप्त कर देते हैं। इस संदर्भ में वे एक विचार भी देते हैं कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती है।

प्रश्न 4: भगत सिंह रूसी साहित्य को इतना महत्वपूर्ण क्यों मानते हैं? वे एक क्रान्तिकारी से क्या अपेक्षाएँ रखते हैं?

उत्तर: सरदार भगत सिंह रूसी साहित्य को महत्वपूर्ण इसलिए मानते हैं कि रूसी साहित्य के प्रत्येक स्थान पर जो वास्तविकता मिलती है वह हमारे साहित्य में कदापि दिखाई नहीं देती है। उनकी कहानियों में कष्टों और दुखमयी स्थितियाँ हैं जिनके कारण दूख कष्ट सहने का प्रेरणा मिलती है। इस दुख, कष्ट से सहृदयता, दर्द की गहरी टीस और उनके चरित्र और साहित्य की ऊँचाई से हम बरबस प्रभावित होते हैं। ये कहानियाँ हमें जीव संघर्ष की प्रेरणा देती हैं। नये समाज निर्माण की प्रक्रिया में मदद करती हैं। इसलिए ये कहानियाँ महत्वपूर्ण हैं।

सरदार भगत सिंह क्रांतिकारियों से अपेक्षा करते हैं कि हम उनकी कहानियाँ पढ़कर कष्ट सहन की उस भावना को अनुभव करें। उनके कारणों पर सोचे–विचारें। हम जैसे क्रान्तिकारियों का सदैव हर प्रकार से उन विपत्तियों, चिन्ताओं, दुखों और कष्टों को सहन करने के लिए तत्पर रहना चाहिए। भगत सिंह कहते हैं कि मेरा नजरिया यह रहा है कि सभी राजनीतिक कार्यकर्ता को ऐसी स्थितियाँ में उपेक्षा दिखानी चाहिए और उनको जो कठोरतम सजा दी जाय उसे हँसते–हँसते बर्दाश्त करना चाहिए। भगत सिंह क्रांतिकारियों से कहते हैं कि किसी आंदोलन के बारे में यह कह देना कि दूसरा कोई इस काम को कर लेगा या इस कार्य को करने के लिए बहुत लोग हैं यह किसी प्रकार से उचित नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार जो लोग क्रांतिकारी क्षेत्र के कार्यों का भार दूसरे लोगों पर छोड़ने को अप्रतिष्ठापूर्ण एवं घृणित समझते हैं उन्हें पूरी लगन के साथ वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष आरंभ कर देना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे उन विधि यों का उल्लंघन करें, परन्तु उन्हें औचित्य का ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 5: एक लेख और एक पत्र भगत सिंह लेखक परिचय।

उत्तर: जीवन–परिचय–

भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले अमर शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर, सन् 1907 के दिन वर्तमान लायलपुर (पाकिस्तान) में हुआ। इनका पैतृक गाँव खटकड़कलाँ, पंजाब था। इनकी माता का नाम विद्यावती एवं पिता का नाम सरदार किशन सिंह था। इनका सम्पूर्ण परिवार स्वाधीनता संग्राम में शामिल था। इनके पिता और चाचा अजीत सिंह लाला लाजपत राय के सहयोगी थे। अजीत सिंह को देश से निकाला दिया गया था इसलिए वे विदेश जाकर मुक्तिसंग्राम का संचालन करने लगे। भगत सिंह के छोटे चाचा सरदार स्वर्ण सिंह भी जेल गए और जेल की यातनाओं के कारण सन 1910 में उनका निधन हो गया। भगत सिंह के फाँसी चढ़ने के बाद उनके भाई कुलबीर सिंह और कुलतार सिंह को जेल में रखा गया, जहाँ वे सन् 1946 तक रहे। इनके पिता भी अनेक बार जेल गए।

भगत सिंह की प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव बंगा में हुई। इसके बाद लाहौर के डी.ए.वी. स्कूल से आगे की पढ़ाई की। बाद में नेशनल कॉलेज, लाहौर से एम.ए. किया। बी.ए. के दौरान इन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और क्रान्तिकारी दल में शामिल हो गए। भगत सिंह का बचपन से ही क्रांतिकारी करतार सिंह सराबा और गदर पार्टी से विशेष लगाव था। करतार सिंह सराबा की कुर्बानी को उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ा जबकि उस समय उनकी आयु महज आठ वर्ष थी। जब वे बारह वर्ष के थे तो जलियाँवाला बाग का हत्याकांड हुआ। इस हत्याकांड का उनके हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा और वे वहाँ की मिट्टी लेकर क्रान्तिकारी गतिविधियों में कूद पड़े। सन् 1922 में चौराचौरी कांड के बाद इनका कांग्रेस और महात्मा गाँधी से मोहभंग हो गया।