बिहार बोर्ड कक्षा 12वी - हिंदी - गद्य खंड अध्याय 6: एक लेख और एक पत्र के लघु - उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1: विद्यार्थियों को राजनीति में भाग क्यों लेना चाहिए ?
उत्तर: भगत सिंह का जो समय था, उस समय देश गुलाम था। उन्होंने कहा कि कल के समय में देश की भगडोर युवाओं के हाथ में होगी। देश का भविष्य छात्र ही होते है, अगर उनको राजनीति का ज्ञान नही रहेगा तो, वो कैसे देश की स्थितियों को संभालेंगे ? भगत सिंह का कहना था कि इस देश को ऐसे युवा की आवश्यकता है। छात्रों में एक नई ऊर्जा होती है, नई सोच होती है तथा नई ऊर्जा और सोच के साथ देश को आगे बढ़ना चाहिए। यह छात्र ही कर सकते हैं।
प्रश्न 2: भगत सिंह की विद्यार्थियों से क्या अपेक्षाएँ हैं ?
उत्तर: भगत सिंह जी की विद्यार्थियों से बहुत-सी अपेक्षाएँ हैं। वे चाहते हैं कि, विद्यार्थी राजनीति तथा देश मे क्या हो रहा है, देश की परिस्थितियों का ज्ञान प्राप्त करें और उनके सुधार के उपाय सोचे तथा उसमे अपना सहयोग करे। वे देश की सेवा में तन-मन-धन से जुट जाएँ और अपने प्राण न्योछावर करने से भी पीछे न हटें।
प्रश्न 3: भगत सिंह के अनुसार ‘केवल कष्ट सहकर भी देश की सेवा की जा सकती है ?’ उनके जीवन के आधार पर इसे प्रमाणित करें ।
उत्तर: भगत सिंह के अनुसार ये सही है की कष्ट सहकर भी देश की सेवा की जा सकती है। देश की गुलामी की स्थिति भगत सिंह को बहुत ज्यादा बेचैन करती थी । वे क्रन्तिकारी गतिविधियों में हिस्सा लिए, लोगो को जागरूक करने के लिए लेख लिखे, संगठन बनाये तथा एक सक्रीय कार्यकर्त्ता के रूप में जेल भी गए । ऐसे देश भक्त को आज फिर से सलामी देते है, जो हँसते-हँसते फांसी के फंदे पर झूल गये। उनकी यह कुर्बानी भारतीयों को झकझोर दिया और आगे चलकर देश आजाद हुआ ।
प्रश्न 4: भगत सिंह ने कैसी मृत्यु को ‘सुंदर’ कहा है ? वे आत्महत्या को कायरता कहते हैं, इस संबंध में उनके विचारों को स्पष्ट करें ।
उत्तर: भगत सिंह ने कहा की आजादी के लिए संघर्ष करते हुए मृत्युदंड के रूप में मिलने वाली मृत्यु से सुंदर कोई मृत्यु नही हो सकती क्योकि उनकी मृत्यु आगे आने वाली पीढ़ी में आजादी के संघर्ष के लिए एक जूनून पैदा करेगी। वे अपने कष्टो और दुखो के चलते आत्महत्या करने वालों को कायर मानते है। वे सुखदेव को पत्र के माध्यम से बताते है कि विपत्तियाँ तो व्यक्ति को पूर्ण बनाती है। उनसे बचने के लिए आत्महत्या करना बहुत बड़ी कायरता है।
प्रश्न 5: भगत सिंह रूसी साहित्य को इतना महत्त्वपूर्ण क्यों मानते हैं? वे एक क्रांतिकारी से क्या अपेक्षाएँ रखते हैं
उत्तर: भगत सिंह रुसी साहित्य को इतना महत्वपूर्ण इसलिए मानते है क्योकि उस साहित्य में जीवन की वास्तविकता का चित्रण मिलता है। उनकी कहानियों में कष्टमय दृश्य पढने वालो के मन में एक विशेष आत्मबल पैदा करता है । भगत सिंह ये मानते है की इसी तरह भारत में भी क्रांतिकारियों के मन में आत्मबल पैदा करना जरुरी है। एक क्रांतिकारी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह दुःख और कष्ट को सहने के लिए हमेसा तत्पर रहे, क्योकि क्रान्ति के शुरू होते ही मुश्किलें भी शुरू हो जाती है।
प्रश्न 6: ‘उन्हें चाहिए कि वे उन विधियों का उल्लंघन करें परंतु उन्हें औचित्य का ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि अनावश्यक एवं अनुचित प्रयत्न कभी भी न्यायपूर्ण नहीं माना जा सकता। भगत सिंह के इस कथन का आशय बतलाएँ। इससे उनके चिंतन का कौन सा पक्ष उभरता है, वर्णन करें।
उत्तर: सरदार भगत सिंह क्रांतिकारियों से कहते हैं कि शासक यदि शोषक हो, कानून व्यवस्था यदि गरीब-विरोधी, मानवता विरोधी हो तो उन्हें चाहिए कि वे उसका विरोध करें, परन्तु इस बात का भी ख्याल करें कि आम जनता पर इसका कोई असर न हो, वह क्रांति आवश्यक हो अनुचित नहीं। क्रांति आवश्यकता के लिए हो तो उसे न्यायपूर्ण माना जाता है परन्तु सिर्फ बदले की भावना से की गई क्रांति अन्यायपूर्ण है।
इस संदर्भ में रूस की शासन का हवाला देते हुए कहते हैं कि रूस में बंदियों को बंदीगृहों में विपत्तियाँ सहन करना ही शासन का तख्ता पलटने के पश्चात् उनके द्वारा जेलों के प्रबंध में क्रान्ति लाए जाने का सबसे बड़ा कारण था। विरोध करो परन्तु तरीका उचित होना चाहिए, न्यायपूर्ण होना चाहिए। इस दृष्टि से देखा जाय तो भगत सिंह का चिन्तन मानवतावादी है जिसमें समस्त मानव जाति का कल्याण निहित है। यदि मानवता पर तनिक भी प्रहार हो, उन्हें पूरी लगन के साथ वर्तमान व्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष आरंभ कर देना चाहिए।
प्रश्न 7: निम्नलिखित कथनों का अभिप्राय स्पष्ट करें –
(क) मैं आपको बताना चाहता हूँ कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती हैं।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति भगत सिंह द्वारा रचित पाठ ‘एक लेख और एक पत्र’ से ली गई है। भगत सिंह, सुखदेव को पत्र लिखते है कि विपत्तियाँ मनुष्य को उनका सामना करने के लिए प्रेरित करती है। मनुष्य उन विपत्तियों को दूर करने के लिए उपाय सोचने लगता है। यदि खुले दिल से सोचने लगता है तो वह अपने साथ-साथ दुसरे को भी इस विपत्तियों से निपटने के लिए प्रेरित करता है और विपतीयाँ उसके व्यक्तित्व को पूर्णता की ओर ले जाती है।
(ख) हम तो केवल अपने समय की आवश्यकता की उपज हैं।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति भगत सिंह द्वारा रचित पाठ ‘एक लेख और एक पत्र’ से ली गई है। भगत सिंह का मानना है कि देश की सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियाँ ही उस देश की राजनितिक परिस्थितियों को जन्म देती है। जिस समय में देश की सामाजिक. आर्थिक परिस्थिति शोषक प्रवृति की होगी, उसमे राजनितिक उथल-पुथल होता रहेगा, और शोषण के दमन चक्रों के खिलाफ संघर्ष होते रहेंगे, और हम जैसे क्रन्तिकारी जन्म लेते रहेंगे ।
(ग) मनुष्य को अपने विश्वासों पर दृढ़तापूर्वक अडिग रहने का प्रयत्न करना चाहिए ।
उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति भगत सिंह द्वारा रचित पाठ ‘एक लेख और एक पत्र’ से ली गई है। भगत सिंह कहते है कि मनुष्य को अपने विश्वासों पर संदेह नही करना चाहिए तथा दृढ़तापूर्वक अडिग होकर लगातार प्रयास करना चाहिए। वे कहते है कि जब वे देश की आजादी के लिए अपना कार्य करते थे। तो उस समय नाना प्रकार की कठिनाइयाँ सामने आया करती थी और अगर हम उस कठिनाइयों से डरकर अपना कार्य करना बंद कर दे, तो ये मानव का शरीर हमारे लिए व्यर्थ है। हमे अपने विश्वासों पर दृढ़तापूर्वक अडिग होकर लगातार प्रयास करना चाहिए
प्रश्न 8: ‘जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देना चाहिए। आज जब देश आजाद है, भगत सिंह के इस विचार का आप किस तरह मूल्यांकन करेंगे। अपना पक्ष प्रस्तुत करें।
उत्तर: वीर क्रांतिकारी, भारत माता के सपूत भगत सिंह देश की आजादी के लिए जंग लड़े थे। जब वे अपने साथी सुखदेव को पत्र लिखते है तो कहते है कि मुझे इस जंग के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा निश्चय ही मृत्युदंड दी जायेगी। मुझे किसी प्रकार की पूर्ण क्षमा या विनम्र व्यवहार की तनिक भी आशा नही है। वे कहते है कि मेरी अभिलाषा यह है कि जब यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर पहुचे तो हमे फांसी दे दी जाये, साथ ही साथ कहते है कि मेरी यह भी इच्छा है कि यदि कोई सम्मानपूर्ण और उचित समझौता होना कभी संभव हो जाये, तो हमारे जैसे व्यक्तियों का मामला उसके मार्ग में कोई रुकावट या कठिनाई उत्पन्न करने का कारण न बने क्योकि जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देना चाहिए।
प्रश्न 9: भगत सिंह ने अपनी फाँसी के लिए किस समय की इच्छा व्यक्त की है ? वे ऐसा समय क्यों चुनते हैं ?
उत्तर: भगत सिंह ने इच्छा व्यक्त की है कि जब देश की आजादी की लड़ाई अपने चरम सीमा पर हो, तभी उन्हें फांसी दी जाए। क्योकि लड़ाई के चरम पर— आन्दोलनकारी दल भावनात्मक रूप से बेहद संवेदनशील होते है। यदि ऐसे समय पर उन्हें फांसी दी जाएगी तो आन्दोलनकारी दल की भावनात्मक एकता में बल आएगा और आने वाले समय में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध करने में हिम्मत देगी।
प्रश्न 10: भगत सिंह के इस पत्र से उनकी गहन वैचारिकता, यथार्थवादी दृष्टि का परिचय मिलता है। पत्र के आधार इसकी पुष्टि करें
उत्तर: यह पत्र भगत सिंह ने क्रांतिकारी साथी सुखदेव द्वारा जेल में मिल रही यातनाओं से परेशान होकर लिखे गये पत्र के जबाब में लिखा था। सुखदेव ने बेहद कमजोर और भावुकतापूर्ण ढंग से कहा था कि उनको आजादी के संघर्ष का कोई भविष्य नही दिखाई देता है । जेल की इन यातनाओं से आत्महत्या करना सही लगता है। जबाब में भगत सिंह लिखते है कि क्रांति व्यक्तिगत सुख-दुःख के लिए न तो शुरू होती है और न ही समाप्त । इसमें सामूहिक हित जुड़ा होता है ।