हिंदी - गद्य खंड अध्याय 7 ओ सदानिरा के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न
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बिहार बोर्ड कक्षा 12वी - हिंदी - गद्य खंड अध्याय 7: ओ सदानिरा के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न

BSEB > Class 12 > Important Questions > गद्य खंड अध्याय 7 ओ सदानिरा के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1: यह पाठ आपके समक्ष कैसे प्रश्न खड़े करता है ?

उत्तर: हमारे जीवन का प्रत्येक क्षण एक प्रश्न, एक समस्या लेकर उपस्थित होता है। उसमें अपने जीवन के घटनाक्रमों से अनेक बातों को सीखने तथा समझने का अवसर मिलता है। ऐसे अनेक प्रश्न हमारे इर्द गिर्द मँडराते रहते हैं जिनसे निपटने के लिए अनथक तथा सार्थक प्रयास अपेक्षित है इस दिशा में हमारा व्यावहारिक ज्ञान सहायक होता है। प्रस्तुत पाठ में हमारे समक्ष इसी प्रकार के कतिपय प्रश्न उपस्थित हुए हैं। पहली समस्या यह है कि हमारे अनुत्तरदायित्वपूर्ण रवैये से वनों का निरन्तर विनाश किया जा रहा है। चंपारण की शस्य श्यामला भूमि जो हरे-भरे वनों से आच्छादित है, वहाँ एक लम्बे अरसे से वृक्षों का काटा जाना जारी है। उसने हमारे पर्यावरण को तो प्रभावित किया ही है, हमारी नदियों ने वर्षाकाल में अप्रत्याशित बाढ़ एवं तबाही का दृश्य प्रस्तुत किया है। वृक्षों के क्षरण से उनके तटों में जल-अवरोध की क्षमता का ह्रास हुआ है। वनों का विनाश कर कृषि योग्य भूमि बनाने. भवन. कल-कारखानों एवं उद्योगों की स्थापना करने से इन सारी विपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। वृक्षों की घटती संख्या तथा धरती की हरियाली में निरंतर ह्रास से वर्षा की मात्रा भी काफी घट गई है।

इस पाठ में चंपारण में प्रवाहित होने वाली गंडक, पंडई, भसान, सिकराना आदि नदिया किसी जमाने में वनश्री के ढंके वक्षस्थल में किलकती रहती थीं. अब विलाप करती हैं, निर्वस्त्र हो गई हैं। इससे अनेक समस्याओं ने जन्म लिया है-नादियों का कटाव, अप्रत्याशित वीभत्स बाढ़ की विनाश लीला, पर्यावरण प्रदूषण, अनियमित तथा कम मात्रा में वर्षा का होना आदि।

हमें इन समस्याओं से निदान हेतु वनों की कटाई पर तत्काल रोक तथा वृक्षारोपण करना होगा। सौभाग्य से गंडक घाटी योजना के अन्तर्गत सरकार द्वारा नहरों का निर्माण कर गडक को दूरवस्था से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया गया। इसी प्रकार की अनेक योजनाएँ अन्य नदियों के साथ भी अपेक्षित हैं।

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प्रश्न 2: इतिहास की कीनियाई प्रक्रिया का क्या आशय है ?

उत्तर: इतिहास की कीनियाई प्रक्रिया का आशय इतिहास की उन रासायनिक प्रक्रियाओ सेहै जिसे बदल नहीं जा सकता। लेखक के अनुसार नेपाल और मिथिला की विजय यात्रा पर आयें प्रथम राजा नान्यदेव, चालुक्य नृपति, विक्रमादित्य के सेनापति यही बस गए । नान्यदेव ने यहाँ कर्नाट वंश का नींव डाला । अंग्रेज ठेकेदार, पश्चिमी भारत के जमींदार, पूर्वी बंगाल, दक्षिणी बिहार के विभिन्न वर्ग के लोग यहाँ आकर बस गए। कर्नाट वंश के राजा हरिसिंहदेव को मुसलमान आक्रमणकारी गयासुद्दीन तुगलक का मुकाबला करना पड़ा था। उसी समय वहाँ के जंगलों को भी क्षति पहुँचाई गई थी। आक्रमणकारियो द्वारा जंगलो को काटा गया।

प्रश्न 3: थारुओं की कला का परिचय पाठ के आधार पर दें ।

उत्तर: थारुओं के लिए कला उनका महत्वपूर्ण अंग है। उनकी कला सराहने के योग्य है। वे अपने घरो में धान रखने के लिए कई तरह के रंगों वाली सींक से टोकरी (पात्र) बनाते थे। झोंपड़ी में प्रकाश के लिए जो दीपक थे, उसमे भी उनकी कला नजर आती थी, शिकारी और किसान के काम आने वाले जो पदार्थ मूँज से बनाये जाते थे, उनमें भी उनकी बहुत ही सुन्दर कला दिखती थी। इन सब कलाओं के अतिरिक्त सबसे मनोहर कला थी, ‘नववधु का अनोखा कर्तव्य’। उन लोगो में ऐसा रिवाज था कि हर पत्नी दोपहर का खाना लेकर पति के पास खेत में जाती है। वधु जब ये काम पहली बार करती है तो माथे के उपर पीढ़ा पर रखे सींक से बनी टोकरी में खाना लेकर उसे दोनों हाथो से सम्भालते हुए धीरे धीरे कदमो के साथ खेतो में जाती है। यह दृश्य बहुत ही सुहावन होता है।

प्रश्न 4: अंग्रेज नीलहे किसानों पर क्या अत्याचार करते थे ?

उत्तर: नील की खेती के लिए किसानो पर अंग्रेजो ने बहुत अत्याचार किये है। वे किसानो से जबरदस्ती नील की खेती करवाते थे। किसानो को ऐसा कहा गया था कि हर 20 कट्ठा जमीन में 3 कट्ठा नील की खेती करना है। किसानो के घर में शादी विवाह या कोई ख़ुशी का माहौल होता था तो साहब के यहाँ नजराना भेजना पड़ता था। साहब बीमार पड़ते थे तो उनके इलाज के लिए पैसे किसानो से वसूले जाते थे। ये सब अत्याचार किया करते थे अंग्रेजो ने किसानो पर ।

प्रश्न 5: अर्थ स्पष्ट कीजिए-

(क) वसुंधरा भोगी मानव और धर्मांधमानव- एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति विद्वान लेखक जगदीशचंद्र माथुर द्वारा रचित निबंध ‘ओ सदानीरा’ से लिया गया है। लेखक इस पंक्ति के माध्यम से यह बताना चाहते हैं कि पृथ्वी पर सुख भोगने वाला मानव और धर्म का अंधे की तरह अनुकरण करने का भाव रखने वाला मानव जिस प्रकार विशाल जंगलो को काट दिया उसी प्रकार मूर्तियों को भी नष्ट कर दिया। साथ ही साथ कई धर्म स्थलों को तोडा अर्थात मानव को जिससे सुख मिलता है वो उसी को नष्ट कर रहा है। 

(ख) कैसी है चंपारन को यह भूमि ? मानो विस्मृति के हाथों अपनी बड़ी से बड़ी निधियों को सौंपने के लिए प्रस्तुत रहती है।

उत्तर: प्रस्तुत पंक्ति जगदीशचंद्र माथुर द्वारा रचित निबंध ‘ओ सदानीरा‘ से लिया गया है। लेखक इस पंक्ति के माध्यम से चंपारण की भूमि का गुणगान किया, उन्होंने कहा कि यह भूमि महान है। यहाँ अनेक बाहरी व्यक्ति आये एवं कई आक्रमणकारी भी आये। उन्होंने या तो इस पावन भूमि को क्षति पहुंचाया या आकर बस गये। किन्तु धन्य है इस भूमि की सहनशीलता एवं उदारता जो इतने अत्याचार होते हुए भी सबको भला दिया और क्षमा कर दिया।