बिहार बोर्ड कक्षा 12वी - हिंदी - खंड अध्याय 11: प्यारे नन्हे बेटे को के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1: लोहा क्या है ? इसकी खोज क्यों की जा रही है ?
उत्तर: हर मेहनतकश आदमी लोहा है। हर बोझ उठाने वाली, अथक परिश्रम करने वाली औरत लोहा है। लोहा शक्ति का प्रतीक है। वह स्वयं भी शक्तिशाली होता है वजनदार होता है तथा मेहनतकश लोगों को भी शक्ति प्रदान करता है। लोहा शक्ति तथा ऊर्जा का प्रतीक है। इसका निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। यह निर्माण पारिवारिक, सामाजिक तथा राष्ट्रीय सभी क्षेत्रों में समान रूप से अनवरत चल रहा है। अत: लोहा की उपयोगिता जो उसकी अपार शक्ति में निहित है, को देखते हुए उसकी खोज की जा रही है।
प्रश्न 2: “इस घटना से उस घटना तक”-यहाँ किन घटनाओं की चर्चा है ?
उत्तर: ‘प्यारे नन्हें बेटे को’ शीर्षक कविता में ‘इस घटना से उस घटना तक’ उक्ति का प्रयोग दो बार किया गया है। पिता अपनी नन्हीं बिटिया से पूछता है कि आस-पास लोहा कहाँ-कहाँ है। पुनः वह उसे लोहा के विषय में जानकारी देता है, उसकी माँ भी उसे समझाती है। फिर वह सपरिवार लोहा को ढूँढ़ने का विचार करता है। अत: बेटी को सिखलाने से लेकर ढूँढ़ने तक का अन्तराल “इस घटना से उस घटना तक” है। यह सब वह कल्पना के संसार में कर रहा है। पुनः जब उसकी बिटिया बड़ी हो जाती है, तो वह उसके विवाह के विषय में, उसके लिए एक प्यारा-सा दूल्हा के लिए सोंचता है। यहाँ पर पुनः कवि-“इस घटना से उस घटना तक” उक्ति की पुनरोक्ति करता है।
प्रश्न 3: कविता में लोहे की पहचान अपने आस-पास में की गई है। बिटिया, कवि और उनकी पत्नी जिन रूपों में इसकी पहचान करते हैं, ये आपके मन में क्या प्रभाव उत्पन्न करते हैं ? बताइए।
उत्तर: प्रस्तुत कविता में लोहे की पहचान अपने आस-पास में की गई है अर्थात् अपने आस-पास बिखरी वस्तुओं में ही लोहे की पड़ताल की गयी है। पहचान की परिधि में जो वस्तुएँ आई हैं वह तीन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती है। लड़की द्वारा पहचान की गई वस्तुएँ पारिवारिक उपयोग की है। जैसे-चिमटा, कलछुल आदि। कवि द्वारा जिन वस्तुओं का चयन किया गया है उनका व्यवहार अधिकतर पुरुषों द्वारा किया जाता है तथा उनका उपयोग सामाजिक तथा राष्ट्रीय हित में किया जाता है, जैसे-फावड़ा, कुदाली आदि। कवि की पत्नी ने उन वस्तुओं का आर संकेत किया है जिसका व्यवहार प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता है तथा जिसे व बाहर धनोपार्जन अथवा पारिवारिक आवश्यकता की पूर्ति हेतु करती है, जैसे-पानी की बाल्टी, हँसिया, चाकू आदि।
इस प्रकार कवि, उनकी पत्नी तथा बिटिया द्वारा तीन विविध रूपों में लोहे की पहचान “ना रूप पारिवारिक, क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय मूल्यों तथा आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व । हो मेहनतकश पुरुषों तथा दबी, सतायी मेहनती महिलाओं के प्रयासों को भी निरूापत करता है
प्रश्न 4: मेहनतकश आदमी और दबी-सतायी बोझ उठाने वाली औरत में कवि द्वारा लोहे की खोज का क्या आशय है ?
उत्तर: लोहा कठोर धातु है। यह शक्ति का प्रतीक भी है। इससे निर्मित असंख्य सामग्रियाँ, मनुष्य के दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करती हैं। लोहा राष्ट्र की जीवनधारा है। धरती के गर्भ में दबे लोहे को अनेक यातनाएँ सहनी होती हैं। बाहर आकर भी उसे कठिन संघर्ष का सामना करना पड़ता है। कवि मेहनतकश आदमी और दबी-सतायी, बोझ उठाने वाली औरत के जीवन में लोहा के संघर्षमय जीवन की झलक पाता है। उसे एक अपूर्व साम्य का बोध होता है। लोहे के समान ही मेहनतकश आदमी और दबी-सतायी, बोझ उठाने वाली औरत का जीवन भी कठोर एवं संघर्षमय है। लोहे के समान ही वे अपने कठोर श्रम तथा संघर्षमय जीवन द्वारा सृजन तथा निर्माण का कार्य कर रहे हैं तथा विविध रूपों में ढाल रहे हैं।
प्रश्न 5: बिटिया को पिता सिखलाते हैं तो माँ समझाती है, ऐसा क्यों ?
उत्तर: इस कविता में बिटिया को उसके पिता लोहा के विषय में सिखलाते हैं, वे उसकी बुद्धि को परीक्षा लेते हुए उससे पूछते हैं कि उसके आस-पास लोहा कहाँ-कहाँ है। नन्हीं बिटिया आत्मविश्वास के साथ उनके प्रश्नों का उत्तर सहज भाव से देती है। पुनः माँ उससे वही प्रश्न पूछते हुए लोहे के विषय में समझाती है तथा कुछ अन्य जानकारी देती है। इस प्रसंग में पिता उसे सिखलाते हैं जबकि माँ उसे इस विषय में समझाती है। दोनों की भूमिका में स्पष्ट अन्तर है इसका कारण यह है कि यह प्रायः देखा जाता है कि पिता द्वारा अपने बच्चों को सिखलाया जाता है, किसी कार्य को करने की सीख दी जाती है, अभ्यास कराया जाता है। माँ द्वारा उन्हें स्नेह भाव से किसी कार्य के लिए समझाया जाता है।
प्रश्न 6: कवि लोहे की पहचान किस रूप में कराते हैं ? यही पहचान उनकी पत्नी किस रूप में कराती है ? ।
उत्तर: कवि लोहे की पहचान फावड़ा, कुदाली, टंगिया, बसुला, खुरपी, पास खड़ी बैलगाड़ी के चक्के का पट्टा, बैलों के गले में काँसे की घंटे के अंदर लोहे की गोली के रूप में कराते हैं। यही पहचान उनकी पत्नी बाल्टी, सामने कुएँ में लगी लोहे की छिरीं, छत्ते की काड़ी-डंडी और घमेला-हँसिया-चाकू और भिलाई बलाडिला के जगह-जगह के लोहे के टीले के रूप में कराती है।