बिहार बोर्ड कक्षा 12वी - हिंदी - खंड अध्याय 12: हार-जीत को के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1: किसकी विजय हुई सेना की, कि नागरिकों की ? कवि ने यह प्रश्न क्यों खड़ा किया है ? यह विजय किनकी है ? आप क्या सोचते हैं ? बताएँ।
उत्तर: किसी की विजय नहीं हुई। विजय प्रतिपक्ष की हुई। कवि ने देश की वस्तुस्थिति से अवगत कराया है। कवि के विचारों पर चिंतन करते हुए यही बात समझ में आती है कि झूठ-मूठ के आश्वासनों एवं भुलावे में हमें रखा गया है। यथार्थ का ज्ञान हमें नहीं कराया जाता। यानि सत्य से दूर रखने का प्रयास शासन की ओर से किया जा रहा है।
प्रश्न 2: ‘खेत रहनेवालों की सूची अप्रकाशित है।’ इस पंक्ति के द्वारा कवि ने क्या कहना चाहा है ? कविता में इस पंक्ति की क्या सार्थकता है ? बताइए।
उत्तर: कवि कहना चाहता है कि खेत रहनेवालों की सूची अप्रकाशित है, यानि आजादी की लडाई में जिन-जिन लोगों ने कुर्बानी दी है उनका सही आकलन एवं मूल्यांकन नहीं किया गया है। शहीदों का पूरा ब्योरेवार इतिहास अभी भी अपूर्ण है। राष्ट्र के लिए जिन राष्टवीरों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया आज हम उन्हें भुला बैठे हैं। उनका न उचित सम्मान राष्ट्र की ओर से मिला, न हम याद ही रख पाते हैं। उनके प्रति कृतज्ञ न होकर हम कतघ्न हो गए हैं। इसमें इतिहास की और शहीदों की शहादत की ओर कवि ने सबका ध्यान आकृष्ट किया है।
प्रश्न 3: बूढ़ा मशकवाला क्या कहता है और क्यों कहता है ?
उत्तर: बुढा मशंकवाला प्रतीक प्रयोग है। वह देश के बुद्धिजीवी वर्ग से तात्पर्य रखता है। वह वास्तविक स्थिति से अवगत है। वह कहता है कि किसी की भी जीत नहीं हुई है। सेना विजयी नहीं है बल्कि हारी हुई सेना है। इन पंक्तियों में बूढ़ा मशकवाला देश की जो भयावह स्थिति है, उससे वह अवगत होते हुए सत्य के निकट है। सभी लोग तो धोखा में जी रहे हैं लेकिन मशकवाला यथार्थ का जानकार है। इसलिए वह कहता है कि जीत न शार की, न नागरिक की, न सेना की हुई। ये सारी बातें झूठे प्रचार तंत्र का खेल है। प्रजा के साथ छल है, धोखा है। सबको धोखे में रखा जा रहा है और सत्य को छिपाया जा रहा है।
प्रश्न 4: बूढ़ा, मशकवाला किस जिम्मेवारी से मुक्त है ? सोचिए, अगर वह जिम्मेवारी उसे मिलती तो क्या होता ?
उत्तर: बूढ़ा मशकवाला देश की राजनीति में हिस्सा लेने से वंचित है। अगर उसे जिम्मेवारी मिली होती तो हार को हार कहता जीत नहीं कहता। वह सत्य प्रकट करता। उसे तो मात्र सड़क सींचने का काम सौंपा गया है। यही उसकी जिम्मेवारी है। सत्य लिखने और बोलने की मनाही है। इसलिए वह मौन है और अपनी सीमाओं के भीतर ही जी रहा है। वह विवश है, विकल है फिर भी दूसरे क्षेत्र में दखल नहीं देता केवल सींचने से ही मतलब रखता है। इसमें बौद्धिक वर्ग की विवशता झलकती है। अगर उसे सत्य कहने और लिखने की जिम्मेवारी मिली होती तो राष्ट्र की यह स्थिति नहीं होती तथा झूठी बातों और झूठी शान में जश्न नहीं मनाया जाता। जीवन के हर क्षेत्र में अमन-चैन, शिक्षा-दीक्षा, विकास की धारा बहती। अबोधता और अंधकार में प्रजा विवश बनकर नहीं जीती।
प्रश्न 5: नागरिक क्यों व्यस्त हैं ? क्या उनकी व्यस्तता जायज है ?
उत्तर: नागरिक विजयपर्व मनाने में व्यस्त हैं। उनकी व्यस्तता जायज नहीं है क्योंकि उन्हें यह पता ही नहीं है कि विजय किसकी हुई है। सेना की, शासक की या नागरिकों की। बिना जाने विजयपर्व मनाना अपनी क्षमता का क्षरण करना है।