हिंदी - खंड अध्याय 3: पद - तुलसीदास के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न
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बिहार बोर्ड कक्षा 12वी - हिंदी - खंड अध्याय 3: पद - तुलसीदास के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न

BSEB > Class 12 > Important Questions > खंड अध्याय 3: पद - तुलसीदास के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1: राम स्वभाव से कैसे हैं ? पठित पदों के आधार पर बताइए।

उत्तर: प्रस्तुत पदों में राम के लिए संत तुलसीदासजी ने कई शब्दों का प्रयोग किया है जिससे राम के चारित्रिक गुणों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। श्रीराम को कवि ने कृपालु कहा है। श्रीराम का व्यक्तित्व जन-जीवन के लिए अनुकरणीय और वंदनीय है। प्रस्तुत पदों में तुलसी ने राम की कल्पना मानव और मानवेतर दो रूपों में की है। राम के कुछ चरित्र प्रगट रूप में और कुछ चरित्र गुप्त रूप में दृष्टिगत होते हैं। उपर्युक्त पदों में परब्रह्म राम और दाशरथि राम के व्यक्तित्व की व्याख्या की गयी है। राम में सर्वश्रेष्ठ मानव गुण है। राम स्वभाव से ही उदार और भक्तवत्सल हैं। दाशरथि राम का दानी के रूप में तुलसीदासजी ने चित्रण किया है। पहली कविता में प्रभु, बिगड़ा काम बनाने वाले, भवनाथ आदि शब्द श्रीराम के लिए आए हैं। इन शब्दों द्वारा परब्रह्म अलौकिक प्रतिभासंपन्न श्रीराम की चर्चा है। दूसरी कविता में कोसलराजु, दाशरथि, राम, गरीब निवाजू आदि शब्द श्रीराम के लिए प्रयुक्त हुए हैं। अतः, उपर्युक्त पद्यांशों के आधार पर हम श्रीराम के दोनों रूपों का दर्शन पाते हैं। वे दीनबंधु, कृपालु, गरीबों के त्राता के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित होते हैं। दूसरी ओर कोसलराजा, दसरथ राज आदि शब्द मानव राम के लिए प्रयुक्त हुआ है।

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प्रश्न 2: ‘कबहुँक अंब अवसर पाई’ में ‘अंब’ का संबोधन किनके लिए हुआ?

उत्तर: यहाँ ‘अंब’ सीता माता के लिए आया है। इस सम्बोधन के द्वारा तुलसी राम का ध्यान अपनी ओर दिलाने की चेष्टा सीता माता से कहते हैं। हे माता! कभी अवसर हो तो कुछ करुणा की बात छोड़कर श्रीरामचन्द्र को मेरी भी याद दिला देना। इसी से मेरा काम बन जायेगा। एक पुत्र द्वारा जगत जननी माता से जगत कृपालु रामचन्द्रजी का ध्यान आकृष्ट करने की बात कही गयी है।

प्रश्न 3: तुलसी सीधे राम से न कहकर सीता से क्यों कहलवाना चाहते हैं ?

उत्तर: तुलसी सीधे राम से न कहकर बात सीधे सीता से इसलिए कहलवाना चाहते हैं कि सीता राम की प्रिया, धर्मपत्नी है। कोई भी पुरुष अपनी पत्नी को अधिकतम प्रेम करता है उसकी हर बात मानता है और हर नारी अपने पति के लिए मानिनी होती है। पति पत्नी को कहे बात टाल नहीं पाते हैं। उसे ज्यादा ध्यान से सुनते हैं और उसपर अमल करते हैं उसी तरह राम की सीता भी हैं। अतः अपनी बात को प्रभावी ढंग से पहुँचाने के लिए कवि सीता से कहते हैं।

प्रश्न 4: राम के सुनते ही तुलसी की बिगड़ी बात बन जाएगी, तुलसी के इस भरोसे का क्या कारण है ?

उत्तर: तुलसी कहते हैं कि हे प्रभु मैं अत्यन्त दीन सर्वसाधनों से हीन मनमलीन दुर्बल और पापी मनष्य हूँ फिर भी आपका नाम लेकर अपना पेट भरता हूँ। तुलसी को यह विश्वास है कि उनके राम कृपालु हैं, दयानिधान हैं वे हर बात को अच्छी तरह समझकर उसका समाधान करते हैं यही उनके भरोसे का कारण है।

प्रश्न 5: तुलसीदास का कवि परिचय लिखें।

उत्तर: गोस्वामी तुलसीदास किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनके ‘मानस’ की प्रतिष्ठा धर्मग्रन्थ के रूप में है। अतः तुलसीदास प्रत्येक परिवार के घर-घर में हैं। तुलसी का ‘मानस’ साहित्य उच्च कोटि का ग्रन्थ है जिसके कारण वह धर्मग्रन्थ के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। जनता के हर राग-रंग की कथा है। तुलसी जनता के सुख-दुख में शामिल होते हैं इसलिए वे घर-घर के कवि हैं। रचना की उत्कृष्टता के कारण महाकवि हैं। तुलसीदास जी का जन्म 1543 ई. के लगभग राजापुर जिला-बाँदा उत्तरप्रदेश में हुआ। इनके बचपन का नाम रामबोला था। इनकी माता हुलसी तथा पिता आत्माराम दुबे थे। इनकी पत्नी रत्नावली थी। परन्तु विवाह के कुछ ही समय बाद विछोह हो गया। तुलसी का जीवन संघर्ष की महागाथा है। उनका बालपन बड़ा कठिनाइयों में बीता। जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में ही उनके माता-पिता का साथ छूट गया और तदन्तर वेभिक्षा माँग-माँगकर उदरपूर्ति करते रहे। कदाचित इसके कुछ ही समय पश्चात् तुलसीदास ने रामभक्ति की दीक्षा ली। उनके गुरु कौन थे, यह भी निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है। ‘मानस’ में उनके गुरु का नाम बाबा नरहरिदास के रूप में आता है। तुलसी ने उन्हीं से शिक्षा ली और बाल्मीकि रामायण का अध्ययन कर । राम कथा कों अवधी भाषा में लिखा। तुलसी की (12) बारह रचनायें मिलती हैं जो निम्न हैं-

1. रामचरित मानस
2. रामलला नहछू
3. रामाज्ञा प्रश्न
4. जानकीमंगल
5. पार्वतीमंगल
6. गीतावली
7. कृष्णगीतावली
8. विनय पत्रिका
9. बरबै रामायण
10. दोहावली
11. कवितावली
12. हनुमान बाहुक इत्यादि।

तुलसीदास की ये कृतियाँ तत्कालीन अनेक काव्य-रूपों की प्रतिनिधि रचनाएँ हैं। उनका ‘रामचरित मानस’ चौपाईबन्ध परम्परा का काव्य है। जिसमें मुख्य छन्द चौपाई है और बीच-बीच में दोहे-सोरठे, हरिगीतिका तथा अन्य छन्द भी आते हैं। कवितावली कवित्त-सवैया-पद्धति की मुक्तक रचना है। गीतावली-कृष्णगीतावली, विनय पत्रिका गीत बन्ध परिपाटी के अन्तर्गत आते हैं।

तुलसीदास ने रामभक्ति से प्रेरित होकर अपने राम-कथा ग्रंथों में राम तथा अनेक भक्तों का जो चरित्र प्रस्तुत किया है, वह मानवता के सर्वोच्च आदर्श की स्थापना करता है। इस सम्बन्ध में ‘मानस’ एक अद्वितीय रचना है। उनके गीतिकाव्यों गीतावली और कृष्णगीतावली में भावनाओं की जो सरिता उमड़ी है उसकी तुलना हिन्दी साहित्य में केवल सूरदास की भावधारा से की जा सकती है। पुन: विनय पत्रिका के पदों में जो द्रवित कर देनेवाला आत्मनिवेदन उन्होंने प्रस्तुत किया है वह बेजोड़ है।

गोस्वामी जी की संवेदना गहन और अपरिमित थी, अंतर्दृष्टि सूक्ष्म और व्यापक थी, विवेक प्रखर और क्रांतिकारी था। कवि में इतिहास एवं संस्कृति का व्यापक परिप्रेक्ष्य बोध था और लोकप्रज्ञा थी। इन युगांतर कवि ने बौद्धिक नैतिक रचनाओं द्वारा ऐसा आदर्श उपस्थित किया है जो अतुलनीय है।

गोस्वामीजी की भाषा में लचीलापन अधिक है। उन्होंने जहाँ संस्कृत के तत्समनिष्ठ शब्दों को लिया वहीं भाव के अनुसार देशज और विदेशज शब्दों को भी इसी अंतर्दृष्टि के कारण उनका काव्य भाव को अभिव्यक्त करने में अत्यधिक सक्षम है।