बिहार बोर्ड कक्षा 12वी - हिंदी - खंड अध्याय 3: पद - तुलसीदास के लघु - उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1: तुलसी के हृदय में किसका डर है?
उत्तर: तुलसीदास के हृदय मे यही डर है की यदि उनके बारे मे माता सीता श्री राम से बात नही की तो वे इस भवसागर से मुक्ति नही प्राप्त कर पाएगे। वे पुनर्जन्म नही लेना चाहते है। यह तभी संमभव है जब सीता माता उनके बारे मे श्री राम से कुछ कहेंगी ।
प्रश्न 2: राम स्वभाव से कैसे हैं, पठित पदों के आधार पर बताइए ।
उत्तर: राम स्वभाव से करुणामयी, दयालु और कृपालु हैं। वे अपने भक्तों पर हमेशा कृपयादृष्टि बनाये रखते है। उनका यश चारों ओर फैला हुआ है। वे भवसागर से मुक्ति दिलाने वाले मुक्ति दाता है।
प्रश्न 3: तुलसी को किस वस्तु की भूख है?
उत्तर: तुलसी को भक्ति सुधा रूपी अमृत की भूख है। वे श्री राम की कृपा का भोजन का एक निवाला चाहता हैं। प्रभु अपने चरणों में ऐसी भक्ति दे दीजिए कि फिर कोई दूसरी कामना न रह जाए।
प्रश्न 4: पठित पदों के आधार पर तुलसी की भक्ति-भावना का परिचय दीजिए।
उत्तर: तुलसीदास जी एक संत थे इसलिए उनकी भक्ति-भावना सहज और सरल थी। दोनों पदों में तुलसी की दैन्यभाव की भक्ति का परिचय मिलता है। प्रथम पद में तुलसीदास माता सीता से निवेदन के माध्यम से भगवान श्री राम की शरण में अपनी मुक्ति चाहते है तथा स्वंम को उनकी दासी का दास कहते हैं। दूसरे पद में तुलसी ने अपने को भिखारी रूप में भगवान राम के सम्मुख प्रस्तुत किया है। वे कलियुग के कष्टों से पीड़ित हैं। उनका जीवन कष्टों से भरा है, पेट भरना मुश्किल है। इन दोनों पदों से तत्कालीन सामाजिक स्थिति का पता चलता है। जनता पीड़ित थी। उसे ईश्वर के सिवा किसी पर भरोसा नहीं था। अतः पठित पदों के द्वारा तुलसीदास भक्तहृदय की दीनता, असहायता और प्रभु की समर्थता का बोध कराते हैं।
प्रश्न 5: ‘रटत रिरिहा आरि और न, कौर ही तें काजु ।’ —यहाँ ‘और’ का क्या अर्थ है?
उत्तर: ‘रटत रिरिहा आरि और न, कौर ही तें काजु ।’ —यहाँ ‘और’ का अर्थ है “बहुत कुछ”। तुलसीदास कहते है की मैं बहुत कुछ नही चाहता हुँ। आपकी दया, आपकी भक्ति का एक टुकरा, एक निवाला ही चाहत हूँ।
प्रश्न 6: प्रथम पद में तुलसीदास ने अपना परिचय किस प्रकार दिया है ? लिखिए।
उत्तर: प्रथम पद में तलसीदास ने अपने विषय में हीनभाव प्रकट किया है। अपनी भावना को व्यक्त करते हए कहते हैं कि वह दीन, पापी. दर्बल, मलिन तथा असहाय व्यक्ति है। व अनेकों अवगुणों से युक्त हैं। ‘अंगहीन’ से उनका आशय संभवत: ‘असहाय’ होने से है।
प्रश्न 7: तुलसीदास सीता से कैसी सहायता माँगते हैं ?
उत्तर: तुलसीदास माँ सीता से भवसागर पार कराने वाले श्रीराम को गुणगान करत हुए भक्ति-प्राप्ति की सहायता की याचना करते हैं। हे जगत की जननी ! अपने वचन द्वारा मेरी सहायता कीजिए।
प्रश्न 8: तुलसीदास सीधे राम से न कहकर सीता से क्यों कहलवाना चाहते थे ?
उत्तर: ऐसा संभवतः तुलसीदास इसलिए चाहते थे क्योंकि
(i) उनको अपनी बातें स्वयं राम के समक्ष रखने का साहस नहीं हो रहा होगा, वे संकोच का अनुभव कर रहे होंगे।
(ii) सीता जी सशक्त ढंग से (जोर देकर) उनकी बातों को भगवान श्रीराम के समक्ष रख सकेंगी। ऐसा प्रायः देखा जाता है कि किसी व्यक्ति से उनकी पत्नी के माध्यम से कार्य करवाना अधिक आसान होता है।
(iii) तुलसी ने सीताजी को माँ माना है तथा पूरे रामचरितमानस में अनेकों बार माँ कहकर ही संबोधित किया है। अत: माता सीता द्वारा अपनी बातें राम के समक्ष रखना ही उन्होंने श्रेयस्कर समझा।
प्रश्न 9: दोनों पदों में किस रस की व्यंजना हुई है ?
उत्तर: दोनों पदों में भक्ति-रस की व्यंजना हुई है। तुलसीदासजी ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम तथा जगत जननी सीता की स्तुति द्वारा भक्तिभाव की अभिव्यक्ति इन पदों में की है।
प्रश्न 10: तुलसी के हृदय में किसका डर है ?
उत्तर: तुलसी की दयनीय अवस्था में उनके सगे-संबंधियों आदि किसी ने भी उनकी सहायता नहीं की। उनके हृदय में इसका संताप था। इससे मुक्ति पाने के लिए उन्हें संतों की शरण में जाना पड़ा और उन्हें वहाँ इसका आश्वासन भी मिला कि श्रीराम की शरण में जाने से बस संकट दूर हो जाते हैं। भौतिक अर्थ है-संसार के सुख-दुःख से भयभीत हुए और आध्यात्मिक अर्थ है-विषय वासना से मुक्ति का भय। कवि की उक्त पक्तियाँ द्विअर्थी हैं। क्योंकि कवि ने भौतिक जगत की अनेक व्याधियों से मुक्ति और भगवद्-भक्ति के लिए समर्पण भाव की ओर ध्यान आकृष्ट किया है।