बिहार बोर्ड कक्षा 12वी - हिंदी - खंड अध्याय 9: जन-जन का चेहरा एक के दीर्घ - उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1: समुची दुनिया में जन-जन का युद्ध क्यों चल रहा है ?
उत्तर: सम्पूर्ण विश्व में जन-जन का युद्ध जन-मुक्ति के लिए चल रहा है। शोषक, खूनी चोर तथा अन्य अराजक तत्वों द्वारा सर्वत्र व्याप्त असन्तोष तथा आक्रोश की परिणति जन-जन के युद्ध अर्थात् जनता द्वारा छेड़े गए संघर्ष के रूप में हो रहा है।
प्रश्न 2: कविता का केन्द्रीय विषय क्या है ?
उत्तर: कविता का केन्द्रीय विषय पीड़ित और संघर्षशील जनता है। वह शोषण, उत्पीड़न तथा अनाचार के विरुद्ध संघर्षरत है। अपने मानवोचित अधिकारों तथा दमन की दानवी क्रूरता के विरुद्ध यह उसका युद्ध का उद्घोष है। यह किसी एक देश की जनता नहीं है, दुनिया के तमाम देशों में संघर्षरत जन-समूह है जो अपने संघर्षपूर्ण प्रयास से न्याय, शान्ति, सुरक्षा, बंधुत्व आदि की दिशा में प्रयासरत है। सम्पूर्ण विश्व की इस जनता (जन-जन) में अपूर्व एकता तथा एकरूपता है।
प्रश्न 3: बंधी हुई मुट्ठियों का क्या लक्ष्य है ?
उत्तर: कवि बंधी हुई मुट्ठियों के लक्ष्य के माध्यम से जनता की ताकत का एहसास कराना चाहता है जो किसी भी विपरीत परिस्थितियों को अपने अनुकूल कर सकती है। यह ताकत इतनी ताकतवर होती है कि जन-शोषक शत्रु को सत्ताच्युत कर देती है। मुट्ठियों की ताकत सामान्य जनता की ताकत है। यदि इस ताकत के साथ कोई खिलवाड़ करे तो उसकी मिट्टी पलद हो जाती है। चाहे वह कितना भी बड़ा जन-शोषक क्यों न हो, जब यह ताकत क्रुद्ध होती है तो अपनी ज्वाला में जलाकर राख कर देती है। अतः कवि बंधी हई मटिठयों के माध्यम से जन-शोषक को इनसे न टकराने की नसीहत देता है।
प्रश्न 4: प्यार का इशारा और क्रोध का दुधारा से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर: प्यार का इशारा और क्रोध का दुधारा से कवि का तात्पर्य यह है कि चाहे वह यानि जनता जिस देश में निवास करती हो, उनके प्यार का इशारा यानि मानवतावादी दृष्टिकोण कल मुक्तिबोध की कविता का सारांश लिखे कविता का कहना चाहिए एक होता है, उसमें किसी प्रकार का बदलाव नहीं होता, ठीक उसी प्रकार जब शोषक वर्ग के खिलाफ क्रोध की धारा उबल पड़ती है तो वह दो नहीं, बल्कि एक समान नजर आती है।
प्रश्न 5: ‘जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता का सारांश लिखें।
उत्तर: मुक्तिबोध की कविता अकेले मुक्तिबोध की कविता नहीं है। उसमें हमारे भारतीय जन-समूह की कहना चाहिए समूह मन की कविता शामिल और सक्रिय है। मुक्तिबोध की कविता और कथा कृतित्व एक चीख है उस अयथार्थ बौद्धिकता और अयथार्थ कलात्मकता के विरुद्ध जिसके चलते बहुत जल्दी नयी कविता में गतिरोध आ गये थे। मुक्तिबोध की कविता का प्राणतत्व है उनका निरन्तर आत्मसंघर्ष। इसी से वह हमें बाँधती नहीं, मुक्त करती है। उनसे असहमत होना भी उतना ही स्फूर्तिदायक होता है, जितना उनसे सहमत होना। उनका यह आत्म संघर्ष उनकी कविता ‘जन-जन का चेहरा एक’ में भी दिखलाई पड़ता है। कवि पीडित और संघर्षशील जनता का, जो अपने मानवोचित अधिकारों के लिए कर्मरत है, चित्र प्रस्तत करता है। यह जनता दुनिया के तमाम देशों में संघर्षरत है और अपने कर्म और श्रम से न्याय. शांति बंधत्व दिशा में प्रयासरत है। कवि इस जनता में एक अन्तर्वर्ती एकता देखता है और इस एकता को कविता का कथ्य बनाकर संघर्षकारी संकल्प में प्रेरणा और उत्साह का संचार करता है। कवि कहते हैं कि चाहे जिस देश, प्रांत, पुर का ही जन-जन का चेहरा एक के बाद एशिया. यरोप. अमेरीका सभी जगह के मजदूर एक है। कवि पूँजीवादी समाज का भी शोषित वर्ग के रूप में देखता है। एक को शोषक और एक शोषित के का सभी के लिए धूप एक है, कष्ट-दुख संताप एक है। और सभी मठिठयों का शोषण से मक्ति। कवि विभिन्न प्रतीकों के सहारे जनता की अंतवर्ती एकता का है। वह प्रकृति के हर अंग में मजदूरों को दुख देखता है। वह मजदरों मो की वेदना में देखता है। यही नहीं शोषक भी एक हैं बल्कि उनके चेहरे अलग ” संसार के भौगोलिक वातावरण की चर्चा करते हुए कहता है कि चाहे एशिया अमेरीका भिन्न वास स्थान के मानव एक हैं। सभी ओर खुशियाँ व्याप्त पर मन'”‘ के द्वारा शोषण एक गहरा संताप है। जब सब वस्तुए एक ही ढाचे से बनी है तो क्यों ? कवि क्रांति के निर्माण में किसी एक को आगे आने की कामना करता है और समाज की कल्पना करता है। व्यवस्था को बदलने की कोशिश करता है।