बिहार बोर्ड कक्षा 12वी - हिंदी - खंड अध्याय 9: जन-जन का चेहरा एक के लघु - उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1:जन जन का चेहरा एक से कवि का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर: जन जन का चेहरा एक से कवि का तात्पर्य उन लोगों से है, जो अलग-अलग देशों में रहने के बावजूद भी एक साथ मिलकर शोषण कर्ताओं के विरुद्ध आवाज उठाते हैं। जिसका एक ही लक्ष्य है शांति और बंधुत्व के साथ न्याय। कवि ने इसमें जनता की एकता और उनकी ताकत को दिखाया है।
प्रश्न 2: बँधी हुई मुट्ठियों का क्या लक्ष्य है ?
उत्तर: ‘बँधी हुई मुट्ठिया’ जनता की ताकत और एकता का प्रतीक है। जिसका लक्ष्य है, शोषण कर्ताओ के विरुद्ध आवाज उठाना और न्याय को कायम रखना। बँधी हुई मुट्ठी की ताकत इतनी है कि जनता के शोषण कर्ताओ को कभी भी सत्ता से हटा सकती है और उनके लिए भयानक और विकराल रूप भी धारण कर सकती है।
प्रश्न 3: कवि ने सितारे को भयानक क्यों कहा है? सितारे का इशारा किस ओर है?
उत्तर: कवि ने सितारे को भयानक इसलिए कहा है क्योंकि सितारे मे जितनी चमक होती है, वह उतना ही विकराल और भयानक होता है। समय आने पर वह लाल जलते हुए ज्वाला के समान होता है। सितारे का इशारा संघर्षशील जनता की ओर है जो शोषण कर्ताओं के लिए काल बन सकती है एक भयानक और विकराल रूप ले सकती है।
प्रश्न 4: नदियों की वेदना का क्या कारण है ?
उत्तर: नदियों की वेदना का कारण मनुष्य के द्वारा किए जा रहे पाप, अत्याचार और अधर्म है। जिसके कारण माँ की तरह सबको जीवन देने वाली नदी भी विनाश का कारण बनती है।
प्रश्न 4: अर्थ स्पष्ट करें –
"आशामयी लाल लाल किरणों से अंधकार
चीरता सा मित्र का स्वर्ग एक ;
जन जन का मित्र एक"
उत्तर: प्रस्तुत पंक्तिया दिगंत भाग-2 के “जन-जन का चेहरा एक” कविता से ली गई है। इसके कवि “गजानन माधव मुक्तिबोध जी” है। कवि ने इस कविता मे आंतरिक एकता को दिखाते हुए जनता के संघर्षकारी संकल्प मे प्रेरणा और उत्साह का संचार करते है। इन पंक्तियों कवि कहते है की, इन अंधकारों की चीरने वाले आशा की लाल-लाल किरणे है। जब ये अंधकार खत्म होगा तो सभी मित्रों का सभी लोगों का स्वर्ग एक होगा। सभी लोगो के मित्र एक होंगे।
"एशिया के, यूरोप के, अमरीका के
भिन्न भिन्न वास स्थान ;
भौगोलिक, ऐतिहासिक बंधनों के बावजूद ,
सभी ओर हिंदुस्तान, सभी ओर हिंदुस्तान"
प्रस्तुत पंक्तिया दिगंत भाग-2 के “जन-जन का चेहरा एक” कविता से ली गई है। इसके कवि “गजानन माधव मुक्तिबोध जी” है। कवि ने इस कविता मे आंतरिक एकता को दिखाते हुए जनता के संघर्षकारी संकल्प मे प्रेरणा और उत्साह का संचार करते है। इन पंक्तियों कवि कहते है की, एशिया, यूरोप, अमरीका भिन्न-भिन्न निवास स्थान है जहाँ लोग रहते है। भौगोलिक, ऐतिहासिक बहुत से बंधन है इन बंधनों के बावजूद भी सभी ओर हिंदुस्तान के लोग रहते है सभी ओर हिन्दुस्तानी है।
प्रश्न 5: ज्वाला कहाँ से उठती है ? कवि ने इसे अतिक्रुद्ध क्यों कहा है ?
उत्तर: ज्वाला जनता के हृदय से उठती है। कवि ने इस अतिक्रुद्द इसलिए कहा है क्योंकि शोषित और पीड़ित जनता के मन में जो ज्वाला है। वो बहुत ही प्रलयंकारी है। वह अपना धैर्य खो चुकी है। अपना हक पाने के लिए जनता एक होकर शोषण करने वालों के खिलाफ अपनी आवाज उठा रही है और क्रांति कर रही है। समूची दुनिया में जन जन का युद्ध क्यों चल रहा है ?
जन जन का युद्ध समूची दुनिया में इसलिए चल रहा है क्योंकि सारी दुनिया इन शोषण करने वालों से परेशान है। शोषण कर्ता सभी जगह है, सभी देशों में है इसलिए सभी देशों के लोगों की वेदना और संघर्ष एक सी है ।
प्रश्न 6: कविता का केंद्रीय विषय क्या है ?
उत्तर: कविता मे शोषण कर्ताओ के विरुद्ध संघर्ष कर रही जनता के बारे में बताया गया है। सभी देश में शोषण करने वाले हैं, जो पीड़ित और कमजोर जनता को दबाए जा रहे हैं। अब जनता एकता के बल को समझ गई है, जग गई है। एक होकर जनता इन शोषण कर्ताओं के खिलाफ अपनी ताकत और क्रोध को दिखा रही है। जिसका एक ही लक्ष्य है, अपने अधिकारों को प्राप्त करना।
प्रश्न 7: प्यार का इशारा और क्रोध का दुधारा से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर: प्यार का इशारा और क्रोध का दूध धारा से तात्पर्य है कि जो जनता प्यार करती है, जो सब कुछ शांति और संयम से करती है। वह जब क्रोध में आती है तो उसकी धारा बदल जाती है। वह शोषण करने वालों पर तलवार की धार की तरह होती है। वह किसी से नहीं डरती है।
प्रश्न 8: पृथ्वी के प्रसार को किन लोगों ने अपनी सेनाओं से गिरफ्तार कर रखा है ?
उत्तर: जनता का शोषण करने वाले लोगों ने पृथ्वी के प्रसार को अपनी सेनाओं से गिरफ्तार कर रखा है। इसमें समाज के उच्च वर्ग के लोग जैसे नेता और पूंजीपति आदि आते हैं।
प्रश्न 9: “जन-जन का चेहरा एक” से कवि का क्या तात्पर्य है ? अथवा, “जन-जन का चेहरा एक’ शीर्षक कविता का भावार्थ लिखें।
उत्तर: “जन-जन का चेहरा एक” अपने में एक विशिष्ट एवं व्यापक अर्थ समेटे हुए हैं। कवि पीडित संघर्षशील जनता की एकरूपता तथा समान चिन्तनशीलता का वर्णन कर रहा है। कवि की संवेदना, विश्व के तमाम देशों में संघर्षरत जनता के प्रति मुखरित हो गई है, जो अपने मानवोचित अधिकारों के लिए कार्यरत हैं। एशिया, यूरोप, अमेरिका अथवा कोई भी अन्य महादेश या प्रदेश में निवास करने वाले समस्त प्राणियों का शोषण तथा उत्पीड़न के प्रतिकार का स्वरूप एक जैसा है। उनमें एक अदृश्य एवं अप्रत्यक्ष एकता है।
उनकी भाषा, संस्कृति एवं जीवन शैली भिन्न हो सकती है, किन्तु उन सभी के चेहरों में कोई अन्तर नहीं दीखता, अर्थात् उनके चेहरे पर हर्ष एवं विषाद, आशा तथा निराशा की प्रतिक्रिया, एक जैसी होती है। समस्याओं से जूझने (संघर्ष करने) का स्वरूप एवं पद्धति भी समान है।
कहने का तात्पर्य यह है कि यह जनता दुनिया के समस्त देशों में संघर्ष कर रही है अथवा इस प्रकार कहा जाए कि विश्व के समस्त देश, प्रान्त तथा नगर सभी स्थान के “जन-जन” (प्रत्येक व्यक्ति) के चेहरे एक समान हैं। उनकी मुखाकृति में किसी प्रकार की भिन्नता नहीं है। आशय स्पष्ट है विश्वबंधुत्व एवं उत्पीड़ित जनता जो सतत् संघर्षरत् है उसी की पीडा का वर्णन कवि कर रहा है।
प्रश्न 10: नदियों की वेदना का क्या कारण है ?
उत्तर: नदियों की वेगवती धारा में जिन्दगी की धारा के बहाव. कवि के अन्त:मन की वेदना को प्रतिबिम्बित करता है। कवि को उनके कल-कल करते प्रवाह में वेदना की अनुभूति होती है। गंगा, इरावतीय अधिकारों के विदना के गीत कवि होती है। गंगा, इरावती, नील, अमेजन नदियों की धारा मानव-मन की वेदना को प्रकट करती है, जो अपने मानवीय अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं। जनता की पीड़ा तथा संघर्ष को जनता से जोड़ते हुए बहती हुई नदियों में वेदना के गीत कवि को सुनाई पड़ते हैं।
प्रश्न 11: “दानव दुरात्मा” से क्या अर्थ है ?
उत्तर: पूरे विश्व की स्थिति अत्यन्त भयावह, दारुण तथा अराजक हो गई है। दानव और दुरात्मा का अर्थ है-जो अमानवीय कृत्यों में संलग्न रहते हैं, जिनका आचरण पाश्विक होता है उन्हें दानव कहा जाता है। जो दुष्ट प्रकृति के होते हैं तथा दुराचारी प्रवृत्ति के होते हैं उन्हें ‘दुरात्मा’ कहते हैं। वस्तुतः दोनों में कोई भेद नहीं है, एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। ये सर्वत्र पाए जाते हैं।
प्रश्न 12: ज्वाला कहाँ से उठती है ? कवि ने इसे ‘अतिक्रुद्ध’ क्यों कहा है ?
उत्तर: ज्वाला का उद्गम स्थान मस्तिष्क तथा हृदय के अन्तर की ऊष्मा है। इसका अर्थ यह होता है कि जब मस्तिष्क में कोई कार्य-योजना बनती है तथा हृदय की गहराई में उसके प्रति तीव्र उत्कंठा की भावना निर्मित होती है तब वह एक प्रज्जवलित ज्वाला का रूप धारण कर लेती है। “अतिक्रुद्ध” का अर्थ होता है अत्यन्त कुपित मुद्रा में। आक्रोश की अभिव्यक्ति कुछ इसी प्रकार होती है। अत्याचार, शोषण आदि के विरुद्ध संघर्ष का आह्वान हृदय की अतिक्रुद्ध ज्वाला की मन:स्थिति में होता है।