बिहार बोर्ड कक्षा 12वी - हिंदी - खंड अध्याय 11: प्यारे नन्हे बेटे को के NCERT Solutions
प्यारे नन्हें बेटे को वस्तुनिष्ठ प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएँ
प्रश्न 1.
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म कब हुआ था?
(क) 1 जनवरी, 1937 ई..
(ख) 2 फरवरी, 1938 ई.
(ग) 10 मार्च, 1935 ई.
(घ) 5 मार्च, 1932 ई.
उत्तर-
(क)
प्रश्न 2.
‘प्यारे नन्हें बेटे को’ किसकी लिखी हुई कविता है?
(क) भूषण
(ख) तुलसीदास
(ग) जायसी
(घ) विनोद कुमार शुक्ल
उत्तर-
(घ)
प्रश्न 3.
रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार विनोद कुमार शुक्ल को किस सन् में मिला?
(क) 1992 ई. में
(ख) 1985 ई. में
(ग) 1980 ई. में
(घ) 1990 ई. में
उत्तर-
(क)
प्रश्न 4.
विनोद कुमार शुक्ल को साहित्य अकादमी पुरस्कार कब मिला?
(क) 1999 ई. में
(ख) 1985 ई. में
(ग) 1995 ई. में
(घ) 1990 ई. में
उत्तर-
(क)
प्रश्न 5.
“प्यारे नन्हें बेटे को’ कविता में लोहा किसका प्रतीक है?
(क) बन्दूक का
(ख) मशीन का
(ग) कर्म का
(घ) धर्म का
उत्तर-
(ग)
रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
प्रश्न 1.
प्यारे नन्हें बेटे को कंधे पर बैठा।
“मैं…….. हो गया’
उत्तर-
दादा से बड़ा
प्रश्न 2.
प्यारी बिटिया से पूछंगा बतलाओ आस–पास………….. है।
उत्तर-
कहाँ–कहाँ लोहा
प्रश्न 3.
चिमटा, करकुल, सिगड़ी, समसी, दरवाजे की साँकल, कब्जे खीला दरवाजे में………… वह बोलेगी झटपट,
उत्तर-
धंसा हुआ
प्रश्न 4.
रुककर वह फिर याद करेगी एक तार लोहे का लंबा लकड़ी के……….. पर
उत्तर-
दो खंबों पर
प्रश्न 5.
तना बंधा हुआ बाहर सूख रही जिस पर भव्या की गीली चड्डी।… फिर…….. साइकिल पूरी।
उत्तर-
एक सैफ्टी पिन
प्यारे नन्हें बेटे को अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
विनोद कुमार शुक्ल की कविता का नाम है।
उत्तर-
प्यारे नन्हें बेटा को।
प्रश्न 2.
‘प्यारे नन्हें बेटे को’ कविता में लोहा किसका प्रतीक मान है?
उत्तर-
कर्म को।
प्रश्न 3.
‘प्यारे नन्हें बेटे को’ कविता किस शैली में लिखी गई है?
उत्तर-
वार्तालाप शैली में।
प्रश्न 4.
विनोद कुमार शुक्ल किस विश्वविद्यालय में एसोशिएट प्रोफेसर रहे हैं?
उत्तर-
इन्दिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय।
प्रश्न 5.
विनोद कुमार शुक्ल निराला सृजनपीठ में जून 1994 से जून 1996 तक किस पद पर रहे?
उत्तर-
अतिथि साहित्यकार के पद पर।
प्यारे नन्हें बेटे को पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
प्रश्न 1.
‘बिटिया’ से क्या सवाल किया गया है?
उत्तर-
बिटिया से उसके पिता द्वारा सवाल किया गया है कि बतलाओ, आसपास लोहा कहाँ है।
प्रश्न 2.
“बिटिया’ कहाँ–कहाँ लोहा पहचान पाती है?
उत्तर-
बिटिया अपने आसपास उपस्थित लोहे को पहचान पाती है। उसके आसपास चिमटा, करछुल, अँगीठी, सँड़सी, दरवाजे की साँकल, कच्चे उसमें लगी कीलें आदि हैं, जिनमें वह लोहे को पहचानती है।
प्रश्न 3.
कवि लोहे की पहचान किस रूप में करते हैं? यही पहचान उनकी पत्नी किस रूप में कराती है?
उत्तर-
कवि लोहे की पहचान अपने आसपास की वस्तुओं के माध्यम से कराते हैं। उनके आसपास फावड़ा, कुदाली, टॅगिया, बसूला, खुरपी, बैलगाड़ी के पहिए पर चढ़ा पट्टा, बैलों के गले में बँधी घंटी के अन्दर की गोली आदि वस्तुएँ हैं, जिनके द्वारा वो लोहे की पहचान कराते हैं।
है यही पहचान उनकी पत्नी अपने आसपास उपलब्ध वस्तुओं से कराती हैं। वह अपने आसपास उपलब्ध बाल्टी, कुएँ की घिरनी, छाते की डंडी, उसके पुर्जे, हँसिया और चाकू के माध्यम से लोहे की पहचान कराती है।
प्रश्न 4.
लोहा क्या है? इसकी खोज क्यों की जा रही है?
उत्तर-
पाठ में वर्णित भिलाई बलाडिला, छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित है। यह स्थान लोहे की खदानों के लिए प्रसिद्ध है। इस आधार पर कह सकते हैं कि लोहा एक धातु है जो अपनी मजबूती, बहुउपयोगिता और सर्वव्यापकता के लिए प्रसिद्ध है। यह हमारी जिन्दगी और संबंधों में घुल–मिल गया है। यह हम मनुष्यों का आधार है, इसलिए इसकी खोज की जा रही है।
एक अन्य अर्थ में लोहा प्रतीक के रूप में है जो कर्म का प्रतीक है।
प्रश्न 5.
“इस घटना से उस घटना तक”–यहाँ किन घटनाओं की चर्चा है?
उत्तर-
“प्यारे नन्हें बेटे को” शीर्षक कविता में “इस घटना से उस घटना तक” उक्ति का प्रयोग दो बार किया गया है।
पिता अपनी नन्हीं बिटिया से पूछता है कि आसपास लोहा कहाँ–कहाँ है। पुनः वह उसे लोहा के विषय में जानकारी देता है, उसकी माँ भी उसे समझाती है। फिर वह सपरिवार लोहा को ढूँढ़ने का विचार करता है। अत: बेटी को सिखलाने से लेकर ढूँढ़ने का अन्तराल–”इस घटना से उस घटना तक” है। यह सब वह कल्पना के संसार में कर रहा है। पुनः जब उसकी बिटिया बड़ी हो जाती है, तो वह उसके विवाह के विषय में, उसके लिए एक प्यारा सा दूल्हा के लिए सोचता है। यहाँ पर पुनः कवि–”इस घटना से उस घटना तक” उक्ति को पुनरोक्ति करता है।
प्रश्न 6.
अर्थ स्पष्ट करें
कि हर वो आदमी
जो मेहनतकश
लोहा है
हर वो औरत
दबी सतायी
बोझ उठाने वाली, लोहा।
उत्तर-
हर व्यक्ति जो मेहनतकश है, वह लोहा है। वैसी हरेक औरत जो दबी तथा सतायी हुई है, लोहा है।
उपरोक्त पंक्तियों का विशेषताएँ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति जो श्रम–साध्य कार्य करता है, कठोर परिश्रम जिसके जीवन का लक्ष्य है वह लोहे के समान शक्तिशाली तथा उर्जावन होता है। उसी प्रकार बोझ उठाने वाली दमन तथा शोषण की शिकार महिला भी लोहे के समान शक्ति तथा ऊर्जा से सम्पन्न होती है।
प्रश्न 7.
कविता में लोहे की पहचान अपने आसपास में की गई है। बिटिया, कवि और उनकी पत्नी जिन रूपों में इसकी पहचान करते हैं, ये आपके मन में क्या प्रभाव उत्पन्न करते? बताइए।
उत्तर-
प्रस्तुत कविता में लोहे की पहचान अपने आस–पास में की गई है। अर्थात् अपने आसपास बिखरी वस्तुओं में ही लोहे को पड़ताल की गयी है। पहचान की परिधि में जो वस्तुएँ आई हैं वह तीन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं। लड़की द्वारा पहचान की गई वस्तुएँ पारिवारिक उपयोग की है। जैसे–चिमटा, कलछुल आदि। कवि द्वारा जिन वस्तुओं का चयन किया गया है उनका व्यवहार अधिकतर पुरुषों द्वारा किया जाता है तथा उनका उपयोग सामाजिक तथा राष्ट्रीय हित में किया जाता है, जैसे–फाबड़ा, कुदाली आदि। कवि की पत्नी ने उन वस्तुओं की ओर संकेत किया है जिसका व्यवहार प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता है तथा जिसे. वे घर से बाहर धनोपार्जन अथवा पारिवारिक आवश्यकता की पूर्ति हेतु करती है जैसे–पानी की बाल्टी, हँसिया, चाकू आदि।
इस प्रकार कवि, उनकी पत्नी तथा बिटिया द्वारा तीन विविध रूपों में लोहे की पहचान की गई है। ये तीनों रूप पारिवारिक, क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय मूल्यों तथा आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। साथ ही मेहनतकश पुरुषों तथा दबी, सतायी मेहनती महिलाओं के प्रयासों को भी निरूपित करता है।
प्रश्न 8.
मेहनतकश आदमी और दबी–सतायी बोझ उठाने वाली औरत में कवि द्वारा लोहे की खोज का क्या आशय है?
उत्तर-
लोहा कठोर धातु है। यह शक्ति का प्रतीक भी है। इससे निर्मित असंख्य सामग्रियाँ, मनुष्य के दैनिक जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। लोहा राष्ट्र की जीवनधारा है। धरती के गर्भ में दबे लोहे को अनेक यातनाएँ सहनी होती हैं। बाहर आकर भी उसे कठिन संघर्ष का सामना करना पड़ता है। कवि मेहनतकश आदमी और दबी–सतायी, बोझ उठानेवाली औरत के जीवन में लोहा के संघर्षमय जीवन की झलक पाता है। उसे एक अपूर्व साम्य का बोध होता है। लोहे के समान मेहनतकश आदमी और दबी–सतायी, बोझ उठानेवाली औरत का जीवन भी कठोर एवं संघर्षमय है। लोहे के समान ही वे अपने कठोर श्रम तथा संघर्षमय जीवन द्वारा सृजन तथा मिर्माण का कार्य कर रहे हैं तथा विविध रूपों में ढाल रहे हैं।
प्रश्न 9.
यह कविता एक आत्मीय संसार की सृष्टि करती है पर यह संसार बाह्य निरपेक्ष नहीं है। इसमें दृष्टि और संवेदना, जिजीविषा और आत्मविश्वास सम्मिलित है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
यह कविता एक परिवार के इर्द–गिर्द घूमती है। इसमें उस परिवार के सदस्यों के जीवन के यथार्थ को चित्रित किया गया है।
परिवार का मुखिया बिटिया का पिता लोहा के महत्व को रेखांकित करते हुए अपनी बेटी से पूछ रहा है कि उसके आस–पास लोहा कहाँ–कहाँ है। लड़की प्रत्युत्तर में अपने बाल सुलभ भोलापन के बीच चिमटा, कलछुल, सड़सी आदि का नाम लेती है। पुनः वह उसे सिखलाते हुए स्वयं फावड़ा, कुदाली आदि वस्तुओं के नाम से परिचित कराते हुए बतलाता है कि उन वस्तुओं में भी लोहा है। माँ द्वारा भी बिटिया को इसी आशय की जानकारी दी जाती है। कुछ अन्य वस्तुओं के विषय में वह समझाती है जिसमें लोहा है। इस प्रकार यह कविता एक आत्मीय संसार की सृष्टि करती है।
किन्तु यह वहीं तक सीमित नहीं है। यह आत्मीय संसार वाह्य निरपेक्ष नहीं है, बाहरी समस्याओं से जुड़ा हुआ है। वाह्य–संसार की घटनाओं का इसपर पूरा प्रभाव पड़ता है। लोहे की खोज के माध्यम से कवि ने जीवनमूल्यों के यथार्थ को रेखांकित किया है। इसमें दृष्टि, संवेदना जिजीविषा और आत्म विश्वास का अपूर्व संगम है। संसार में संघर्षरत पुरुषों तथा महिलाओं की संवेदना यहाँ मूर्त हो उठी है। जिजीविषा एवं आत्मविश्वास की अभिव्यक्ति भी युक्तियुक्त ढंग से हुई है। लोहा कदम–कदम पर और एक गृहस्थी में सर्वव्याप्त है। ठोस होकर भी यह हमारी जिन्दगी और संबंधों में घुला–मिला हुआ और प्रवाहित है।.
प्रश्न 10.
बिटिया को पिता ‘सिखलाते हैं तो माँ ‘समझाती’ है, ऐसा क्यों?
उत्तर-
इस कविता में बिटिया को उसके पिता लोहा के विषय में सिखलाते हैं, वे उसकी बुद्धि का परीक्षा लेते हुए उससे पूछते हैं कि उसके आसपास लोहा कहाँ–कहाँ है। नन्हीं बिटिया आत्मविश्वास के साथ उनके प्रश्नों का उत्तर सहज भाव से देती है। पुनः माँ उससे वही प्रश्न पूछते हुए लोहे के विषय में समझाती है तथा कुछ अन्य जानकारी देती है।
इस प्रसंग में पिता उसे सिखलाते हैं जबकि माँ उसे इस विषय में समझाती है। दोनों की भूमिका में स्पष्ट अन्तर है इसका कारण यह है कि यह प्रायः देखा जाता है कि पिता द्वारा अपने बच्चों को सिखलाया जाता है, किसी कार्य को करने की सीख दी जाती है, अभ्यास कराया जाता है। माँ द्वारा उन्हें स्नेह भाव से किसी कार्य के लिए समझाया जाता है।
प्यारे नन्हें बेटे को भाषा की बात
प्रश्न 1.
इस कविता की भाषा पर आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
‘प्यारे नन्हें बेटे को’ नामक इस कविता की शुरुआत मध्यमवर्गीय व्यक्ति और उसकी नन्हीं सी बिटिया की कौतूहलपूर्ण बातों से होती है। इसमें दैनिक जीवन में प्रयुक्त होने वाले शब्दों का भरपूर प्रयोग हुआ है। कविता में कुछ शब्द तो नितांत घिसे–पिटे रूप में प्रयुक्त है। भाषा इतनी सहज, सरल तथा बोधगम्य है कि आम आदमी या सामान्य शिक्षित भी इसे आसानी से समझ सकता है। ऐसी भाषा में भी एक ताजगी है एक चमक है। कविता की भाषा की एक अन्य खूबी उसकी मौलिकता है।
कविता में तत्सम, तद्भव शब्दों के साथ अंग्रेजी भाषा के शब्दों का सहज प्रयोग हुआ है। इससे कविता की स्वाभाविकता अप्रभावित रही है। कविता के अंत में साधारण सी धातु लोहा प्रतीक अर्थ ग्रहण कर लेती है, जिसे सामान्य शिक्षित के लिए समझना सरल नहीं है। इन सबसे ऊपर कविता की भाषा सहज, बोधगम्य तथा भावाभिव्यक्ति में सक्षम है।
प्रश्न 2.
व्युत्पत्ति की दृष्टि से निम्नलिखित शब्दों की प्रकृति बताएँ–औरत, लड़की, बेटा, बिटिया, आदमी, लोहा, कंधा, छत्ते, दूल्हा, बाल्टी, कुआँ, पिन, साइकिल, दादा।
उत्तर-
शब्द – प्रकृति
औरत – विदेशज
लड़की – तद्भव
लोहा – तद्भव
बेटा – तद्भव
बिटिया – तद्भव
आदमी – तद्भव
कंधा – तद्भव
बाल्टी – तद्भव
कुआँ – तद्भव
पिन – विदेशज
साइकिल – विदेशज
दादा – देशज
प्रश्न 3.
नीचे दिए शब्दों से वाक्य बनाएँ कंधा, दादा, बिटिया, लोहा, गला, घंटी, बैलगाड़ी, घटना, बोझ।
उत्तर-
शब्द – वाक्य प्रयोग
कंधा – पिताजी की असमय मृत्यु से घर की जिम्मेदारी किशोर के कंधों पर आ पड़ी।
दादा – हमें वृद्ध दादा जी के सुख–दुख का ध्यान रखना चाहिए।
बिटिया – नन्हीं बिटिया की तोतली बातें सुनकर पिताजी प्रसन्न हो उठे।
लोहा – लोहा ऐसी धातु है जिसके अभाव में विकास की कल्पना करना भी कठिन है।
गला – उसने साहूकार का कर्ज चुकता कर किसी तरह गला छुड़ाया।
घंटी – बैलों के गले में बँधी घंटी की आवाज मधुर लग रही थी।
बैलगाड़ी – प्राचीन समय में बैलगाड़ी यातायात का प्रमुख साधन थी।
घटना – देखो, इस घटना का जिक्र किसी के सामने न करना।
अभी – इन नाजुक कंधों पर इतना बोझ मत डालो।
प्यारे नन्हें बेटे को कवि परिचय विनोद कुमार शुक्ल (1937)
जीवन–परिचय–हिन्दी साहित्य की दोनों विधाओं में अपना अप्रतिम अवदान करनेवाले विनोद कुश्मार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी, 1937 ई. को राजनांदगाँव, छत्तीसगढ़ में हुआ था। उनका निवासस्थान रायपुर, छत्तीसगढ़ में है। वे इन्दिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर तथा निराला सृजनपीठ में जून 1994 से जून 1996 तक अतिथि सलाहकार रहे। उनके अप्रतिम साहित्य अवदान के लिए उन्हें रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (1992), दयावती मोदी कवि.. शेखर सम्मान (1997) तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार (1999) द्वारा विभूषित किया गया।
रचनाएँ–विनोद कुमार शुक्ल का पहला कविता संग्रह ‘लगभग जयहिन्द’ पहचान सीरीज के अन्तर्गत 1971 में प्रकाशित हुआ। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
कविता संग्रह–वह आदमी नया गरम कोट पहनकर चला गया विचार की तरह (1981), सबकुछ होना बचा रहेगा (1992), अतिरिक्त नहीं (2001)।
उपन्यास–नौकर की कमीज, खिलेगा तो देखेंगे, दीवार में एक खिड़की रहती थी। कहानी संग्रह–पेड़ पर कमरा, महाविद्यालय।
विशेष–इनके उपन्यासों का कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद तथा ‘पेड़ पर कमरा’ कहानी संग्रह का इतालवी भाषा में अनुवाद। ‘नौकर की कमीज’ उपन्यास पर मणि कौल द्वारा फिल्म का निर्माण भी किया गया।
काव्यगत विशेषताएं–विनोद कुमार शुक्ल ने सातवें–आठवें दशक में अपनी साहित्यिक यात्रा शुरू की। कुछ समय उनकी एक–दो कहानियाँ आई, जिन्होंने अपनी विशिष्टताओं के कारण लोगों का ध्यान आकृष्ट किया। अपनी रचनाओं में वे अत्यन्त मौलिक, न्यारे और अद्वितीय थे। उनकी इस खूबी की जड़ें संवेदना तथा अनुभूति में थी और यह भीतर से पैदा हुई खासियत थी। उनकी यह अद्वितीय मौलिकता अधिक स्फुट, विपुल और बहुमुखी होकर उनकी कविता, कहानियों तथा उपन्यासों में उजागर होती आई है। उनकी कविता मामूली बातचीत की मद्धिम लय और लहजे में शुरू ही नहीं खत्म भी होती है। उनके समूचे साहित्य में आम आदमी की दिनचर्या में सामान्य रूप से व्यवहृत तथा एक हद तक घिसे–पिटे शब्दों का प्रयोग हुआ है।
प्यारे नन्हें बेटे को कविता का सारांश
“प्यारे नन्हें बेटे को” शीर्षक कविता का नायक भिलाई, छत्तीसगढ़ का रहनेवाला है। अपने प्यारे नन्हें बेटे को कंधे पर बैठाए अपनी नन्हीं बिटिया से जो घर के भीतर बैठी हुई है पूछता है कि “बतलाओ आसपास कहाँ–कहाँ लोहा है।” वह अनुमान करता है कि उसकी नन्हीं बिटिया उसके प्रश्न का उत्तर अवश्य देगी। वह बतलाएगी कि चिमटा, कलछुल, कड़ाही तथा जंजीर में लोहा है। वह यह भी कहेगी कि दरवाजे के साँकल (कुंडी) कब्जे, सिटकिनी तथा दरवाजे में धंसे हुए पेंच (स्क्रू) के अन्दर भी लोहा है। उक्त बातें वह पूछने पर तत्काली कहेगी। उसे यह भी याद आएगा कि लकड़ी के दो खम्भों पर बँधा हुआ तार भी लोहे से निर्मित है जिस पर उसके बड़े भाई की गीली चड्डी है। वह यह कहना भी नहीं भूलेगी कि साइकिल और सेफ्टीपिन में भी लोहा है।
उस दुबली–पतली किन्तु चतुर (बुद्धिमती) नन्हीं बिटिया को कवि शीघ्रातिशीघ्र बतला देना चाहता है कि इसके अतिरिक्त अन्य किन–किन सामग्रियों में लोहा है जिससे उसे इसकी पूरी जानकारी मिल जाए।
कवि उसे समझाना चाहता है कि फाबड़ा, कुदाली, टॅगिया, बसुला, खुरपी, बैलगाड़ी के चक्कों का पट्टा तथा बैलों के गले में काँसे की घंटी के अन्दर की गोली में लोहा है। कवि की पत्नी उसे विस्तार से बतलाएगी कि बाल्टी, कुएँ में लगी लोहे की घिरनी, हँसियाँ और चाकू में भी लोहा है। भिलाई के लोहे की खानों में जगह–जगह लोहे के टीले हैं?
इस प्रकार कवि का विचार है कि वह समस्त परिवार के साथ मिलकर तथा सोच विचार कर लोहा की खोज करेगा। सम्पूर्ण घटनाक्रम को तह तक जाकर वह पता लगा पाएगा कि हर मेहनतकश आदमी लोहा है।
कवि यह मानता है कि प्रत्येक दबी–सतायी, बोझ उठाने वाली औरत लोहा है। लोहा कदम–कदम पर और हर एक गृहस्थी में सर्वव्याप्त है।
कवि इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि हर मेहनतकश व्यक्ति लोहा है तथा हर दबी कुचली, सतायी हुई तथा बोझ उठाने वाली औरत लोहा है। कवि का कहना है
कि हर वो आदमी
जो मेहनतकश लोहा है
हर वो औरत
दबी सतायी बोझ उठानेवाली, लोहा।
कविता का भावार्थ
1. प्यारी बिटिया से पूछंगा
“बतलाओ आसपास
कहाँ–कहाँ लोहा है”
चिमटा, करकुल, सिगड़ी
समसी, दरवाजे की साँकल, कब्जे
खीला दरवाजे में फंसा हुआ’
वह बोलेगी झटपट।
व्याख्या–प्रस्तुत व्याख्येय पंक्तियाँ हमारी पाठ्य–पुस्तक दिगंत, भाग–2 के “प्यारे नन्हें बेटे को” शीर्षक कविता से उद्धत है। इसके रचनाकार यशस्वी कवि विनोद कुमार शुक्ल हैं। इन पंक्तियों में उत्कृष्ट कल्पनाशीलता का दर्शन होता है। इसके साथ जीवन का यथार्थ भी है। कवि अपनी बिटिया से कुछ पूछना चाहता है। उसे पूर्ण विश्वास है कि वह उसका उत्तर अवश्य देगी।
कवि अपनी बिटिया से पूछता है कि लोहा कहाँ–कहाँ पर है। वह तत्काल उसका उत्तर देगी। वह कहेगी कि लोहा चिमटा, कलछुल, कड़ाही तय संड्सी में है। वह यह भी कहेगी कि लोहा दरवाजे की सॉकल (कुंडी), कब्जे तथा पेंच में भी है। वह कवि के प्रश्न का उत्तर तत्काल दे देगी।
उपरोक्त काव्यांश में कवि के कहने का आशय यह है कि वह अपनी बिटिया को लोहा के महत्व के बारे में सिखलाना (शिक्षा देना) चाहता है क्योंकि उसकी दृष्टि में लोहा मानव जीवन की एक अमूल्य निधि है। वह उसकी उपयोगिता से भलीभाँति परिचित है।
2. इसी तरह
घर भर मिलकर
धीरे–धीरे सोच सोचकर
एक साथ ढूँढेंगे
कहा–कहाँ लोहा है–
व्याख्या–प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक दिगंत, भाग–2 के “प्यारे नन्हें बेटे को” शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता विद्वान कवि विनोद कुमार शुक्ल हैं। इन पंक्तियों में कवि लोहे की खोज सपरिवार करना चाहता है। कवि का कथन है कि लोहा की खोज वह एक साथ मिलकर धीरे–धीरे करेगा। घर के सभी सदस्यों के साथ वह यह कार्य करेगा। इन पंक्तियों में लोहा खोजने हेतु उसकी उत्कंठा स्पष्ट झलकती है।
3. “हर बो औरत
दबी सतायी
बोझ उठानेवाली लोहा !
जल्दी–जल्दी मेरे कंधे से
ऊँचा हो लड़का
लड़की का हो दूल्हा, प्यारा
व्याख्या–प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य–पुस्तक दिगंत भाग–2 के “प्यारे नन्हें बेटे को” शीर्षक कविता से उद्धत है। इसके रचयिता विनोद कमार शुक्ल हैं। लेखक ने इन पंक्तियों में मेहनतकश, दबी–दबायी बोझा ढोने वाली औरत के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की है तथा उसके सुन्दर भविष्य की कामना की है।
इन पंक्तियों में कवि का कहना है कि प्रत्येक वह औरत जो दबी, दबी तथा बोझा उठाने वाली है, अर्थात् परिश्रमी है, कठिन कार्यों में लगी हुई है, वह लोहा है। बिटिया का बाप प्यारे नन्हें बेटे को कंधे पर बैठा कर यह कल्पना कर रहा है–कुछ दिनों के बाद उससे भी अधिक ऊँचा और लम्बा हो जाएगा। बिटिया के लिए प्यारा दुल्हा मिल जाएगा।
कवि का कहने का आशय यह है कि हरेक औरत जो दबी–कुचली तथा बोझा ढोनेवाली है, कठिन परिश्रम करती है वह लोहा के समान कठोर, उपयोगी तथा सबको प्रिय होती है। कविता में बिटिया का पिता कल्पना करता है कि कुछ दिनों बाद उसका नन्हा बेटा बड़ा हो जाएगा उससे अधिक ऊँचा और लम्बा हो जाएगा। वह (नन्हा बेटा) अपने पिता से भी अधिक ऊँचे पद पर होगा।
उसकी प्यारी बिटिया भी सयानी हो जाएगी तथा उसके लिए योग्य तथा सुन्दर दूल्हा मिल जाएगा। वह मधुर कल्पना में निमग्न है।