UP बोर्ड कक्षा 12 वी जीव विज्ञान - अध्याय 16: पर्यावरण के मुद्दे के Handwritten नोट्स
पर्यावरण (Environment): पर्यावरण वह बाहरी अवस्था है, जिसमें जीव रहते हैं और जो उन्हें शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से प्रभावित करता है। इसमें वायुमंडल, जल, मृदा, वनस्पतियाँ, जीव-जन्तु, और मनुष्य द्वारा उत्पन्न परिवर्तनों को शामिल किया जाता है।
पर्यावरणीय मुद्दे (Environmental Issues): वे समस्याएँ या चुनौतियाँ हैं, जो पर्यावरण के घटकों (हवा, जल, मृदा, जैव विविधता, आदि) को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती हैं और पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बिगाड़ती हैं।
मुख्य बिंदु
प्रदूषण
- वायु प्रदूषण (Air Pollution):
- यह तब होता है जब हानिकारक गैसें और धूल कण वायुमंडल में मिश्रित हो जाते हैं, जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, और ध्वनि प्रदूषण। इससे सांस की बीमारियाँ, श्वसन तंत्र की समस्याएँ और ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- जल प्रदूषण (Water Pollution):
- यह तब होता है जब जल स्रोतों (नदियाँ, झीलें, महासागर) में रसायनिक, जैविक और शारीरिक अवशेषों का मिलाव होता है, जैसे औद्योगिक अपशिष्ट, घरेलू गंदगी, और रासायनिक तत्व। जल प्रदूषण से जलजनित रोगों की संभावना बढ़ती है और पारिस्थितिकी तंत्र को भी हानि पहुँचती है।
- मृदा प्रदूषण (Soil Pollution):
- यह तब होता है जब भूमि में अवांछनीय रसायनों, जैसे कीटनाशक, उर्वरक और औद्योगिक अपशिष्ट मिल जाते हैं। यह भूमि की उर्वरता को कम करता है और पौधों और जीवों के लिए हानिकारक हो सकता है।
- ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution):
- यह तब होता है जब अवांछनीय ध्वनियाँ, जैसे वाहनों की आवाज़, औद्योगिक शोर और निर्माण कार्य, मानव कानों और मानसिक स्थिति को प्रभावित करती हैं।
- वायु प्रदूषण (Air Pollution):
जलवायु परिवर्तन (Climate Change)
- जलवायु परिवर्तन वह प्रक्रिया है, जिसमें पृथ्वी का सामान्य जलवायु संतुलन बिगड़ता है। इसमें वैश्विक तापन (global warming) की समस्या प्रमुख है, जो ग्रीनहाउस गैसों (कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन) के कारण उत्पन्न होती है। जलवायु परिवर्तन से प्राकृतिक आपदाएँ, जैसे तूफान, बाढ़, सूखा, और समुद्र स्तर में वृद्धि हो सकती है।
वनों की कटाई (Deforestation)
- वनों की कटाई से जंगलों के बड़े क्षेत्र नष्ट हो रहे हैं, जो जैव विविधता के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। यह न केवल पर्यावरणीय संकट उत्पन्न करता है, बल्कि जलवायु परिवर्तन में भी योगदान देता है, क्योंकि पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं।
जैव विविधता का नुकसान (Loss of Biodiversity)
- जैव विविधता का नुकसान पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बिगाड़ता है। यह मानव जीवन, कृषि, वन्यजीव संरक्षण और पर्यावरण की गुणवत्ता के लिए खतरनाक हो सकता है। विलुप्त होती प्रजातियाँ पारिस्थितिकी तंत्र की स्थिरता को प्रभावित करती हैं।
कचरा प्रबंधन (Waste Management)
- बढ़ते शहरीकरण और उपभोक्तावादी समाज के कारण कचरे का उत्पादन बढ़ रहा है। इसमें प्लास्टिक कचरा, जैविक कचरा, और रासायनिक कचरा शामिल हैं, जो यदि ठीक से न निपटाया जाए, तो यह जल, मृदा और वायु को प्रदूषित कर सकते हैं।
अतिरिक्त शहरीकरण (Urbanization)
- शहरीकरण का बढ़ता हुआ स्तर प्राकृतिक संसाधनों की अत्यधिक खपत और पारिस्थितिकी तंत्र पर दबाव डालता है। यह वनों की कटाई, जलवायु परिवर्तन, जल प्रदूषण, और जैव विविधता के नुकसान का कारण बनता है।
संसाधनों का अत्यधिक दोहन (Overexploitation of Resources)
- मानव द्वारा प्राकृतिक संसाधनों (जैसे खनिज, जल, वन) का अत्यधिक उपयोग पृथ्वी के संसाधनों की समाप्ति और पारिस्थितिकी तंत्र के नुकसान का कारण बनता है।
प्राकृतिक आपदाएँ (Natural Disasters)
- प्राकृतिक आपदाएँ जैसे बाढ़, सूखा, भूकंप, ज्वालामुखी और तूफान अक्सर जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई और असंतुलित विकास के कारण अधिक तीव्र हो रही हैं। ये पर्यावरण और जीवन के लिए खतरे का कारण बनते हैं।
निष्कर्ष
पर्यावरणीय मुद्दे न केवल प्राकृतिक संसाधनों और जैव विविधता को प्रभावित करते हैं, बल्कि मानव जीवन और विकास को भी गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं। यह जरूरी है कि हम पर्यावरणीय संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाएं, जैसे प्रदूषण नियंत्रण, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करना, वन्यजीवों का संरक्षण और संसाधनों का सतत उपयोग। हम सभी को पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी, ताकि हम आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ और संतुलित पृथ्वी छोड़ सकें।
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