UP Board भौतिक विज्ञान - अध्याय 2: स्थिरवैद्युत विभव तथा धारिता Handwritten Notes
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UP Board - कक्षा 12वी - भौतिक विज्ञान - अध्याय 2: स्थिरवैद्युत विभव तथा धारिता Handwritten Notes

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स्थिरवैद्युत विभव (Electric Potential) और धारिता (Capacitance) विद्युत क्षेत्र के महत्वपूर्ण पहलू हैं, जो चार्ज पार्टिकल्स के बीच के संपर्क को और उनके द्वारा उत्पन्न विद्युत बलों को समझने में मदद करते हैं।

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मुख्य बिंदु:

  1. स्थिरवैद्युत विभव (Electric Potential):

    • किसी बिंदु पर आवेश (charge) के कारण होने वाली विद्युत ऊर्जा को विद्युत विभव (V) कहा जाता है।
    • विद्युत विभव को ‘V = W/Q’ द्वारा व्यक्त किया जाता है, जहां W कार्य (work) है और Q आवेश (charge) है।
    • यह स्केलर मात्रा है और इसका यूनिट वोल्ट (Volt) होता है।
    • स्थिरवैद्युत विभव का उपयोग किसी भी बिंदु पर किसी आवेश के द्वारा काम करने की क्षमता को मापने के लिए किया जाता है।
  2. धारिता (Capacitance):

    • धारिता का अर्थ है किसी कंडेन्सर की क्षमता, जो एक निश्चित विद्युत विभव पर एक निश्चित मात्रा में चार्ज को धारण करने की क्षमता रखता है।
    • धारिता (C) को ‘C = Q/V’ के रूप में व्यक्त किया जाता है, जहां Q चार्ज (charge) और V विद्युत विभव (electric potential) है।
    • इसकी इकाई फ़ैरोड (Farad) होती है।
    • कंडेन्सर में धारिता तब अधिक होती है जब दोनों प्लेट्स के बीच का क्षेत्र कम हो और प्लेट्स का आकार बड़ा हो।
  3. कंडेन्सर के प्रकार:

    • पैरलल प्लेट कंडेन्सर: यह सबसे सामान्य प्रकार का कंडेन्सर है जिसमें दो समानांतर धातु की प्लेट्स होती हैं।
    • सिलिंड्रिकल और स्फेरिकल कंडेन्सर: इनका उपयोग विभिन्न परिस्थितियों में किया जाता है और इनकी धारिता का निर्धारण प्लेट्स के आकार और उनके बीच के क्षेत्र पर निर्भर करता है।
  4. उपयोग:

    • विद्युत विभव और धारिता का उपयोग इलेक्ट्रॉनिक सर्किटों में ऊर्जा संग्रहण, वोल्टेज नियंत्रण और विभिन्न विद्युत उपकरणों में किया जाता है।
    • कंडेन्सर का उपयोग विभिन्न उपकरणों में विद्युत ऊर्जा को संचित करने और उसे आवश्यकतानुसार छोड़ने में किया जाता है।

निष्कर्ष: स्थिरवैद्युत विभव और धारिता दोनों विद्युत क्षेत्र के मूलभूत तत्व हैं। विद्युत विभव का कार्य चार्ज द्वारा उत्पन्न ऊर्जा को मापना होता है, जबकि धारिता किसी कंडेन्सर की ऊर्जा संचित करने की क्षमता को मापने में मदद करती है। यह दोनों अवधारणाएँ विद्युत ऊर्जा के संचरण और नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

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