बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 8 विद्युत चुम्बकीय तरंगें दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
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बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 8 विद्युत चुम्बकीय तरंगें दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

BSEB > Class 12 > Important Questions > भौतिक विज्ञान अध्याय 8 विद्युत चुम्बकीय तरंगें - दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

1. विद्युत चुंबकीय तरंगें  क्या है ?इसके गुण तथा  उपयोग  लिखिए | 

उत्तर- विद्युत चुंबकीय तरंगें :-

जब किसी विद्युत परिपथ में विद्युत धारा बहुत अधिक आवृत्ति से परिवर्तित होती है। तो परिपथ से ऊर्जा तरंगों के रूप में चारों दिशाओं में प्रसारित होने लगती है। इन तरंगों को विद्युत चुंबकीय तरंग कहते हैं। विद्युत चुंबकीय तरंगों के संचरण के लिए माध्यम के आवश्यकता नहीं होती है। अर्थात यह बिना माध्यम से ही संचरित हो जाती हैं।

विद्युत चुंबकीय तरंगे निर्वात में प्रकाश की चाल 3 × 108 मीटर/सेकंड से चलती है। इसके आधार पर यह निष्कर्ष निकला कि प्रकाश विद्युत चुंबकीय तरंगों के रूप में संचरित होता है।

विद्युत चुंबकीय तरंग के गुण :-

विद्युत चुंबकीय तरंगें त्वरित आवेश द्वारा उत्पन्न की जाती हैं। स्थिर आवेश द्वारा यह तरंगे उत्पन्न नहीं की जा सकती हैं।

इन तरंगों के संचरण के लिए किसी भी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। अर्थात यह बिना माध्यम से ही संचरित हो जाती हैं।

विद्युत चुंबकीय तरंगें प्रकाश तरंगे होती हैं। चूंकि इन तरंगों में प्रकाश की भांति अपवर्तित तथा परिवर्तित का गुण विद्यमान रहता है।

विद्युत चुंबकीय तरंगों की चाल निर्वात में प्रकाश की चाल (3 × 108मीटर/सेकंड) के बराबर होती है।

विद्युत चुंबकीय तरंगों के उपयोग :-

आधुनिक युग में विद्युत चुंबकीय तरंगों का सभी क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है| 

जैसे

चिकित्सा में कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए विद्युत चुंबकीय तरंगों का उपयोग किया जाता है।

रेडियो एवं दूरदर्शन के संचार प्रणालियों में

खाद्य पदार्थों के संरक्षण में

माइक्रोवेव ओवन में

वाहनों की गति ज्ञात करने में

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2. मैक्सवेल का विद्युत चुंबकीय तरंग सिद्धांत  लिखिए | 

उत्तर- जब किसी विद्युत परिपथ में विद्युत धारा बहुत उच्च आवृत्ति से बदलती है तो उस परिपथ से ऊर्जा तरंगों के रूप में चारों दिशाओं में प्रसारित होने लगती है। इन ऊर्जा तरंगों को विद्युत चुंबकीय तरंगे कहते हैं।

इन तरंगों में विद्युत एवं चुंबकीय क्षेत्र परस्पर एक दूसरे के लंबवत होते हैं एवं यह तरंग संचरण की दिशा के भी लंबवत होते हैं।

मैक्सवेल का विद्युत चुंबकीय तरंग सिद्धांत :-

मैक्सवेल के विद्युत चुंबकीय तरंग सिद्धांत के अनुसार, जब किसी विद्युत परिपथ में प्रवाहित विद्युत धारा बहुत उच्च आवृत्ति से बदलती है। अर्थात परिपथ में उच्च आवृत्ति के विद्युत दोलन उत्पन्न होते हैं। तो परिपथ से ऊर्जा तरंगों के रूप में चारों दिशाओं में उत्सर्जित होने लगती है इन तरंगों के संचरण के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। इन तरंगों को विद्युत चुंबकीय तरंगे कहते हैं।

विद्युत चुंबकीय तरंगों में विद्युत तथा चुंबकीय क्षेत्र परस्पर एक दूसरे के लंबवत होते हैं।

 

मैक्सवेल का विद्युत चुंबकीय तरंग सिद्धांत

मैक्सवेल ने गणनाओं द्वारा यह सिद्ध किया कि विद्युत चुंबकीय तरंगों की चाल 3 × 108 मीटर/सेकंड होती है जो की निर्वात में प्रकाश की चाल के बराबर है। तब इस आधार पर मैक्सवेल ने यह निष्कर्ष प्राप्त किया कि प्रकाश विद्युत चुंबकीय तरंगों के रूप में संचरित होता है।

विद्युत चुंबकीय तरंग का वेग 

                                                           C = EB

विद्युत चुंबकीय तरंगें त्वरित आवेश द्वारा उत्पन्न की जाती हैं। स्थिर आवेश द्वारा यह तरंगे उत्पन्न नहीं की जा सकती हैं। इन तरंगों के संचरण के लिए किसी भी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। विद्युत चुंबकीय तरंगें प्रकाश तरंगे होती हैं। क्योंकि इनमें प्रकाश की तरह अपवर्तित तथा परिवर्तित का गुण विद्यमान रहता है। विद्युत चुंबकीय तरंगों की चाल निर्वात में प्रकाश की चाल के बराबर होती है।


3.  मैक्सवेल के समीकरण का वर्णन करें | 

उत्तर :- मैक्सवेल के समीकरण :-

मैक्सवेल ने विद्युत तथा चुंबकत्व के नियमों की गणितीय रूप में स्थापना की। जिस कारण इन नियमों को मैक्सवेल के समीकरण कहते हैं। मैक्सवेल के कुल चार समीकरण हैं।

1. विद्युत संबंधित गौस का नियम

2. चुंबकत्व संबंधित गौस का नियम

3. विद्युत चुंबकीय प्रेरण संबंधित फैराडे का नियम

4. एम्पीयर मैक्सवेल नियम

विद्युत संबंधित गौस का नियम :-

इस नियम के अनुसार, किसी बंद पृष्ठ से परिबद्ध विद्युत फ्लक्स, उस पृष्ठ पर आरोपित कुल आवेश का 10 गुना होता है।

माना किसी बंद पृष्ठ का क्षेत्रफल A पर आरोपित आवेश q है। तो

                                                      ∮ E.dA = q0

जहां 0 को निर्वात की विद्युतशीलता कहते हैं। एवं यह समीकरण मैक्सवेल का प्रथम समीकरण कहलाता है।

चुंबकत्व संबंधित गौस का नियम :-

इस नियम के अनुसार, किसी बंद पृष्ठ से परिबद्ध कुल चुंबकीय फ्लक्स सदैव शून्य होता है।

माना B चुंबकीय क्षेत्र वाले बंद पृष्ठ का क्षेत्रफल A है तो

                                                   ∮ B.dA =0

यह समीकरण मैक्सवेल का द्वितीय समीकरण कहलाता है।

विद्युत चुंबकीय प्रेरण संबंधित फैराडे का नियम :-

इस नियम के अनुसार, किसी बंद परिपथ में प्रेरित विद्युत वाहक बल, परिपथ से परिबद्ध चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन की ऋणात्मक दर के बराबर होता है।

माना परिपथ में प्रेरित विद्युत वाहक बल तथा इससे बद्ध चुंबकीय फ्लक्स B है तो

                                   = - dBdt

यदि परिपथ की सीमा रेखा पर dℓ लंबाई के खण्ड की स्थिति पर विद्युत क्षेत्र E है तो

                                     = ∮ E.dl

अब प्रेरित विद्युत वाहक बल   का उपरोक्त समीकरण में रखने पर

                                     ∮ E.dl= - dBdt

 यह समीकरण मैक्सवेल का तृतीय समीकरण कहलाता है।

एम्पीयर मैक्सवेल नियम :-

इस नियम के अनुसार, किसी बंद पृष्ठ के लिए उसकी सीमा के अनुदिश चुंबकीय क्षेत्र B का रेखीय समाकल, उस परिपथ पर उपस्थित चालन धारा तथा विस्थापन धारा के योग का 0 गुना होता है। तो

 ∮ B.dl  = 0(ic + id)

जहां  ic चालन धारा तथा  id विस्थापन धारा है।

विस्थापन धारा  id =  0dBdt होता है। 

 0 निर्वात की चुंबकशीलता है।

यह समीकरण मैक्सवेल का चतुर्थ समीकरण कहलाता है।

4. विस्थापन धारा क्या है ? विस्थापन धारा की आवश्यकता बताइए | 

उत्तर :- विस्थापन धारा :-

जब किसी परिपथ में विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो उसके चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। किसी परिपथ में समय के साथ परिवर्तित विद्युत क्षेत्र के कारण उत्पन्न धारा को विस्थापन धारा कहते हैं। विस्थापन धारा को id द्वारा निरूपित किया जाता है।

तथा आवेशों के प्रवाह के कारण चालकों में जो धारा प्रवाहित होती है उसे चालन धारा कहते हैं। इसे ic से प्रदर्शित करते हैं।

एंपीयर के परिपथ नियम के अनुसार, किसी बंद परिपथ के लिए चुंबकीय क्षेत्र का रेखीय समाकल उस परिपथ पर आरोपित कुल धारा का 0 गुना होता है।

माना परिपथ का चुंबकीय क्षेत्र B तथा उसमें प्रवाहित कुल धारा i है तो

                                                               ∮ B.dl =  0i

जहां 0 को निर्वात की चुंबकशीलता कहते हैं।

एम्पीयर मैक्सवेल के नियम के अनुसार, परिपथ में प्रवाहित कुल धारा सदैव चालन धारा ic तथा विस्थापन धारा id के योग के बराबर होती है। तो

                                                             i = ic + id

                                                   i = ic - 0dBdt

​विस्थापन धारा की आवश्यकता :-

विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव द्वारा ज्ञात होता है कि विद्युत धारा चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है। तथा इसके विपरीत समय के साथ परिवर्ती चुंबकीय क्षेत्र, विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है।

अतः मैक्सवेल परिकल्पना द्वारा बताया कि परिवर्ती विद्युत क्षेत्र भी चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है। इसके लिए मैक्सवेल ने परिवर्ती धारा से जुड़े संधारित्र के बाहरी किसी बिंदु पर चुंबकीय क्षेत्र ज्ञात करने के लिए एंपीयर का परिपथ नियम प्रयुक्त किया तथा परिपथ के बाहर एक अतिरिक्त धारा के अस्तित्व की परिकल्पना की। इस अतिरिक्त धारा को मैक्सवेल ने विस्थापन धारा नाम दिया।



5.  विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम का सचित्र वर्णन करे | 

उत्तर :- विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम :-

विद्युत चुंबकीय तरंगों को तरंगधैर्य के परिसर के आधार पर एक क्रम व्यवस्थित किया जा सकता है। इस क्रम को विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम कहते हैं।

सूर्य के प्रकाश के स्पेक्ट्रम में लाल रंग से लेकर बैगनी रंग तक होते हैं। इसे दृश्य स्पेक्ट्रम कहते हैं। लाल रंग की तरंगधैर्य का मान सबसे अधिक 7.8 × 10-7 मीटर होता है तथा बैगनी रंग की तरंगधैर्य का मान सबसे कम 4.0 × 10-7 मीटर होता है।

विद्युत चुंबकीय तरंगे निर्वात में प्रकाश की चाल से चलती है। तथा यह तरंगे सदैव अनुप्रस्थ प्रकृति की होती हैं इन तरंगों में प्रकाश की भांति परावर्तन, अपवर्तन, व्यतिकरण तथा ध्रुवण का गुण पाया जाता है।

            




6.  विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम के घटको का वर्णन कीजिए | 

उत्तर :- विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम के घटक  :-

 तरंगों को तरंगधैर्य के बढ़ते क्रम के अनुसार  विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम के घटक इस प्रकार  है | 

1. रेडियो तरंगें :-

रेडियो तरंगें चालक तारों में आवेशों की त्वरित गति से उत्पन्न होती हैं। इनका उपयोग रेडियो एवं दूरदर्शन की संचार प्रणालियों में किया जाता है।

तरंगदैर्ध्य – इनकी तरंगदैर्ध्य 10-1 से 104 मीटर तक होती है।

आवृत्ति परास – इनकी आवृत्ति परास सामान्यतः 530 किलोहर्ट्स से 1000 किलोहर्ट्स तक के बीच होता है।

2. माइक्रो अथवा सूक्ष्म तरंगें :-

यह विशेष प्रकार की नलिकाओं जिन्हें गन डायोड कहते हैं के द्वारा उत्पन्न होती हैं। लघु तरंगदैर्ध्य के कारण इनका उपयोग विमान संचालन में रडार प्रणाली में, वाहनों की गति ज्ञात करने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले यंत्रों में तथा माइक्रोवेव ओवन में इन तरंगों का उपयोग किया जाता है।

तरंगदैर्ध्य – इनकी तरंगदैर्ध्य 10-3 मीटर से 3 × 10-1 मीटर तक होती है।

आवृत्ति परास – इनकी आवृत्ति परास सामान्यतः 109 हर्ट्स से 3 × 1011 हर्ट्स तक के बीच होता है।

3. अवरक्त तरंगें :-

अवरक्त तरंगे गर्म पिंडो एवं अणुओं से उत्पन्न होती हैं इन तरंगों को कभी कभी ऊष्मा तरंगे भी कहा जाता है। क्योंकि अधिकांश पदार्थों में विद्यमान जल के अणु अवरक्त तरंगों को तुरंत अवशोषित कर लेते हैं। अवशोषण के पश्चात उनकी तापीय गति बढ़ जाती है। अर्थात वे गर्म हो जाते हैं। अवरक्त किरणों का उपयोग घरेलू इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों जैसे टीवी, वीडियो रिकॉर्डर आदि में प्रयोग किया जाता है।

तरंगदैर्ध्य – इनकी तरंगदैर्ध्य 8 ×10-7 मीटर से 5 × 10-3 मीटर तक होती है।

आवृत्ति परास – इनकी आवृत्ति 6 × 1010 हर्ट्स से 4 × 1014 हर्ट्स तक के बीच होता है।

4. दृश्य प्रकाश तरंगें :-

यह विद्युत चुंबकीय तरंगों का सर्वाधिक सुपरिचित रूप है यह उस स्पेक्ट्रम का भाग है जिसके लिए हमारे नेत्र संवेदनशील होते हैं। इनका उपयोग अणुओं की संरचना तथा परमाणु के वह बाह्य कोश में इलेक्ट्रॉनों के प्रबंधन का पता लगाने में किया जाता है।

तरंगदैर्ध्य – इनकी तरंगदैर्ध्य 7 × 10-7 मीटर से 4 × 10-7 मीटर तक होती है।

आवृत्ति परास – इनकी आवृत्ति परास सामान्यतः 4 × 1014 हर्ट्स से 7 × 1014हर्ट्स तक के बीच होता है।

5. पराबैगनी तरंगें :-

पराबैंगनी विकिरण विशिष्ट लैंपो एवं बहुत गर्म पिंडों से उत्पन्न होती हैं। सूर्य पराबैगनी तरंगों का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। परंतु इसका अधिकांश भाग वायुमंडल पर स्थित ओजोन परत से अवशोषित हो जाता है। यह तरंगे मानव पर हानिकारक प्रभाव डालती हैं। पराबैगनी किरणों का उपयोग खाने की वस्तुओं के संरक्षण में तथा जल शोधक में पराबैगनी लैंपो का उपयोग जीवाणुओं को मारने में होता है।

तरंगदैर्ध्य – इनकी तरंगदैर्ध्य 4 × 10-7 मीटर से 6 × 10-10 मीटर तक होती है।

आवृत्ति परास – इनकी आवृत्ति परास सामान्यतः 8 × 1014 हर्ट्स से 3 × 1016हर्ट्स तक के बीच होता है।

6. एक्स किरणें :-

विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम के पराबैंगनी भाग के पश्चात एक्स किरणों का क्षेत्र है। चिकित्सा में एक्स किरणों को नैदानिक साधन के रूप में तथा कुछ प्रकार के कैंसर के उपचार के रूप में प्रयोग में लाते हैं।

तरंगदैर्ध्य – इनकी तरंगदैर्ध्य 10-8 मीटर से 10-13मीटर तक होती है।

आवृत्ति परास – इनकी आवृत्ति परास सामान्यतः 1016 हर्ट्स से 3 × 1019 हर्ट्स तक के बीच होता है।

7. गामा किरणें :-

उच्च आवृत्ति की यह किरणें नाभिकीय अभिक्रियाओं में उत्पन्न होती हैं। यह रेडियोधर्मी नाभिकों द्वारा भी उत्सर्जित होती हैं। यह चिकित्सा में कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने के लिए भी उपयोग की जाती है। यह विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम के ऊपरी आवृत्ति के क्षेत्र में होती हैं।

तरंगदैर्ध्य – इनकी तरंगदैर्ध्य 10-10 मीटर से 10-14 मीटर तक होती है।

आवृत्ति परास – इनकी आवृत्ति परास सामान्यतः 3 × 1018 हर्ट्स से 3 × 1022 हर्ट्स तक के बीच होता है।

7.  निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर दीजिए

लम्बी दूरी के रेडियो प्रेषित्र लघु-तरंग बैंड का उपयोग करते हैं। क्यों?

लम्बी दूरी के TV प्रेषण के लिए उपग्रहों का उपयोग आवश्यक है। क्यों?

प्रकाशीय तथा रेडियो दूरदर्शी पृथ्वी पर निर्मित किए जाते हैं किन्तु X-किरण खगोल विज्ञान का अध्ययन पृथ्वी का परिभ्रमण कर रहे उपग्रहों द्वारा ही सम्भव है। क्यों?

समतापमण्डल के ऊपरी छोर पर छोटी-सी ओजोन की परत मानव जीवन के लिए निर्णायक है। क्यों?

यदि पृथ्वी पर वायुमण्डल नहीं होता तो उसके धरातल का औसत ताप वर्तमान ताप से अधिक होता या कम?

कुछ वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी की है कि पृथ्वी पर नाभिकीय विश्व युद्ध के बाद ‘प्रचण्ड नाभिकीय शीतकाल होगा जिसका पृथ्वी के जीवों पर विध्वंसकारी प्रभाव पड़ेगा। इस भविष्यवाणी का क्या आधार है?

उत्तर-

1. ये तरंगें पृथ्वी के आयनमण्डल से परावर्तित होकर वापस पृथ्वी तल की ओर लौट आती हैं। और इसी कारण बिना ऊर्जा खोए पृथ्वी पर लम्बी दूरियाँ तय कर पाती हैं।

2. बहुत लम्बी दूरी के सम्प्रेषण के लिए अति उच्च आवृत्ति की तरंगों की आवश्यकता होती है। आयनमण्डल इन तरंगों को पृथ्वी की ओर परावर्तित नहीं कर पाता। अत: ये तरंगें आयनमण्डल से पार निकल जाती हैं। इन्हें वापस पृथ्वी पर भेजने के लिए उपग्रह की आवश्यकता होती है।

3. चूँकि पृथ्वी का वायुमण्डल X-किरणों को अवशोषित कर लेता है। अत: X-किरण खगोलविज्ञान का अध्ययन वायुमण्डल से ऊपर उपग्रहों द्वारा ही सम्भव है।

4. यह ओजोन परत सूर्य से पृथ्वी पर आने वाली मानव जीवन के लिए हानिकारक पराबैंगनी तरंगों को अवशोषित कर लेती है। अतः ओजोन परत, पृथ्वी पर मानव जीवन की सुरक्षा के लिए अति महत्त्वपूर्ण है।

5. यदि पृथ्वी पर वायुमण्डल नहीं होता तो हरित गृह प्रभाव नहीं होता। इससे पृथ्वी का ताप वर्तमान ताप की तुलना में कम होता।

6. प्रचण्ड नाभिकीय युद्ध के बाद पृथ्वी धूल तथा गैसों के विशाल बादल से घिर जाएगी जिसके कारण सूर्य की रोशनी पृथ्वी तक नहीं पहुंच पाएगी ओर पृथ्वी बहुत अधिक ठण्डी हो जाएगी।

8. मैक्सवेल का प्रकाश के सम्बन्ध में वैद्युत चुम्बकीय तरंग सिद्धान्त लिखिए। या  पराबैंगनी तथा अवरक्त किरणों का क्या अर्थ है?

उत्तर- मैक्सवेल का प्रकाश का विद्युत-चुम्बकीय तरंग सिद्धान्त – ब्रिटिश वैज्ञानिक मैक्सवेल ने सन् 1865 में केवल गणितीय सूत्रों के आधार पर यह प्रमाणित किया कि जब कभी किसी वैद्युत परिपथ में वैद्युत धारा बहुत उच्च आवृत्ति से बदलती है (अर्थात् परिपथ में उच्च आवृत्ति के वैद्युत दोलन होते हैं) तो उस परिपथ से ऊर्जा, तरंगों के रूप में चारों ओर को प्रसारित होने लगती है। इन तरंगों को विद्युत-चुम्बकीय तरंगें’ कहते हैं। इन तरंगों में वैद्युत क्षेत्र E तथा चुम्बकीय क्षेत्र B परस्पर लम्बवत् तथा तरंग के संचरण की दिशा के भी लम्बवत् होते हैं । इन तरंगों के संचरण के लिए माध्यम का होना आवश्यक नहीं है; अर्थात् विद्युत-चुम्बकीय तरंगें निर्वात् में होकर चल सकती हैं। मैक्सवेल ने गणनाओं द्वारा यह स्थापित किया कि विद्युत चुम्बकीय तरंगों की चाल 3.0 x 108 मीटर/सेकण्ड है जो कि निर्वात् में प्रकाश की चाल है। इस आधार पर मैक्सवेल ने अपना यह मत दिया कि प्रकाश विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के रूप में संचरित होता है।

 

                

 
विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के अभिलक्षण-

 विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के अभिलक्षण निम्नलिखित हैं- 

 1. विद्युत-चुम्बकीय तरंगें त्वरित आवेश द्वारा उत्पन्न की जाती हैं। 

 2. इन तरंगों के संचरण के लिए किसी पदार्थक माध्यम की आवश्यकता नहीं होती।

 3. ये तरंगें निर्वात् अथवा मुक्त स्थान में V = 100 वेग से चलती हैं जिसका मान प्रकाश की चाल के बराबर होता है। 

 4. वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों के परिवर्तनों की दिशाएँ परस्पर लम्बवत् होती हैं तथा संचरण की दिशा के भी लम्बवत् होती हैं। इस प्रकार, विद्युत-चुम्बकीय तरंगों की प्रकृति अनुप्रस्थ होती है।  

 5. वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों में परिवर्तन साथ-साथ होते हैं तथा क्षेत्रों के महत्तम मान E0 व B0 एक ही स्थान पर तथा एक ही समय होते हैं। 

 6. निर्वात् में विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों के परिमाणों का सम्बन्ध E/B = v = c होता है।

 7. वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों में ऊर्जा, औसतन वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों में बराबर-बराबर बँटी होती है। 

 8. निर्वात् में, औसत वैद्युत ऊर्जा घनर  तथा औसत चुम्बकीय ऊर्जा घनत्व  होता है।

 9. विद्युत-चुम्बकीय तरंग में प्रकाशिक प्रभाव वैद्युत क्षेत्र वेक्टर के कारण होता है। 

    पराबैंगनी किरणें- दृश्य विकिरण के बैंगनी रंग से कम तरंगदैर्घ्य की (10-8 मी से 4 x 10-7  मी तक) किरणें पराबैंगनी किरणें कहलाती हैं।

    अवरक्त किरणें- दृश्य विकिरण के लाल रंग से अधिक तरंगदैर्घ्य (7.8 x 10-7 मी से 15 x 10-3 मी तक) की किरणें अवरक्त किरणें कहलाती हैं।

9.अल्फा, बीटा और गामा किरणों में क्या अंतर है?

उत्तर- रेडियोएक्टिव पदार्थ से निकलने वाली किरणों को रेडियोएक्टिव किरणें कहा जाता है और यह तीन प्रकार की होती हैं: अल्फा, बीटा और गामा. यानी रेडियोएक्टिविटी के दौरान, अल्फा, बीटा और गामा जैसी किरणें एटम से निकलती हैं जब अस्थिर परमाणु या एटम स्थिरता प्राप्त करने की कोशिश करता है.

ये रेडिएशन एक एटम के न्यूक्लियस से निकलते हैं. उनका व्यवहार एक दूसरे से भिन्न होता है, हालांकि तीनों कुछ आयनीकरण का कारण बनते हैं और इनमें प्रवेश करने की पॉवर भी होती है.

अल्फा किरणें :- अल्फा किरणें सकारात्मक रूप से चार्ज होने वाले कण हैं या फिर पॉजिटिवली चार्ज पार्टिकल्स होते हैं. अल्फा-कण अत्यधिक सक्रिय और ऊर्जावान हीलियम परमाणु है जिसमें दो न्यूट्रॉन और दो प्रोटॉन होते हैं. इसका प्रतीक α है. रेडियोधर्मी परमाणु के नाभिक से इन अल्फा कणों को छोड़ा जा सकता है. अल्फा क्षय प्रक्रिया में अल्फा कणों का उत्सर्जन होता है.

इन कणों में न्यूनतम प्रवेश शक्ति और उच्चतम आयनीकरण शक्ति होती है. इनकी उच्च आयनीकरण शक्ति के कारण शरीर में पहुंचने पर वे गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं. इन कणों का उत्सर्जन "प्रोटॉन रिच" परमाणुओं में होता है. अल्फा कण को बाद में हीलियम -4 नाभिक के रूप में पहचाना गया. वे कम दूरी तक कई परमाणुओं को आयनित करने में सक्षम होते हैं. चूंकि अल्फा कण में कोई इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं, इसलिए अल्फा कण एक आवेशित कण होता है. अल्फा कण सबसे बड़े कण हैं जो एक नाभिक से उत्सर्जित होते हैं. मुख्य रूप से (बहुत कम मात्रा में) स्मोक डिटेक्टर जैसे आइटम में ये किरणेंउपयोग की जाती हैं.

बीटा किरणें :- बीटा कण अत्यंत ऊर्जावान इलेक्ट्रॉन हैं जो आंतरिक नाभिक से मुक्त होते हैं. इनका मास negligible होता है और चार्ज नेगेटिव होता है. न्यूक्लियस में एक न्यूट्रॉन एक प्रोटॉन और एक इलेक्ट्रॉन में एक बीटा कण के उत्सर्जन पर विभाजित होता है. इसलिए, ऐसा कहा जा सकता है कि यह इलेक्ट्रॉन है जो नाभिक द्वारा तीव्र गति से उत्सर्जित होता है.

अल्फा कणों की तुलना में बीटा कणों में एक उच्च प्रवेश शक्ति होती है और आसानी से त्वचा के अंदर जा सकते हैं. बीटा क्षय के दौरान, परमाणु में न्यूट्रॉन की संख्या एक से घट जाती है, और प्रोटॉन की संख्या एक से बढ़ जाती है. यानि क्षय के इस संस्करण में भी द्रव्यमान संख्या समान रहता है. हालाँकि परमाणु संख्या (atomic number) एक से बढ़ जाती है. इन किरणों का उपयोग चिकित्सा अनुप्रयोगों में किया जाता है, जैसे कि नेत्र रोग का इलाज. 

गामा किरणें :- इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम के उच्च-आवृत्ति वाले छोर से उत्पन्न होने वाली तरंगों का कोई द्रव्यमान नहीं होता है जिसे गामा किरणों के रूप में जाना जाता है.

गामा किरणों और एक्स-रे में उच्च-ऊर्जा तरंगें होती हैं जो प्रकाश की गति से काफी दूर तक की यात्रा कर सकती हैं और आमतौर पर अन्य सामग्रियों को भेदने की एक महान क्षमता होती है. इसी कारण से, गामा किरणों (जैसे कोबाल्ट -60 से) अक्सर चिकित्सा अनुप्रयोगों में कैंसर का इलाज करने और चिकित्सा उपकरणों को Sterilize करने के लिए उपयोग की जाती हैं.  अन्य सामग्रियों में प्रवेश करने की उनकी क्षमता के बावजूद, सामान्य रूप से, न तो गामा किरणें और न ही एक्स-रे में कुछ भी रेडियोधर्मी बनाने की क्षमता होती है.

10. X-किरणें (X-Rays) क्या होती है ?, एक्स-रे किरणों की गुण और विशेषताएँ क्या है ?

उत्तर- X-किरणें :-  एक्स-रे विद्युत चुम्बकीय विकिरण का एक प्रकार हैं जिसका सबसे ज्यादा आम प्रयोग चिकित्सकों द्वारा किसी रोगी की त्वचा के माध्यम से उसकी हड्डियों की छवियों को देखा जाता है । टेक्नोलॉजी के बढ़ने के साथ केंद्रित एक्स-रे बीम के साथ-साथ इन प्रकाश तरंगों का प्रयोग तेजी से बढ़ा है और आज X – रे किरणों जैविक कोशिकाओं की इमेजिंग से लेकर कैंसर कोशिकाओं को मारने तक में सक्षम है ।

एक्स किरणों के गुण :-

1. मानव शरीर पर सीधे X किरणें के उपयोग होने पर यह उत्तकों और स्वेत रुधिर कोशिकाओं को नष्ट कर सकती है ।

ये किरणें प्रकाश के वेग से गति करती है, निर्वात में इनकी गति 3.00 × 108 m/s होती है।

2. X किरणें विद्युत चुम्बकीय विकिरण होती है जिनकी तरंग दैर्ध्य 10 A से 0.01 A के मध्य होती है।

3. चुम्बकीय क्षेत्र तथा विद्युत क्षेत्र द्वारा ये किरणें विक्षेपित नहीं होती है।

4. इनकों नग्न आखों से नहीं देखा जा सकता है।

5. सामान्य प्रकाश की तरह ये किरणें भी अपवर्तन , परावर्तन , विवर्तन , व्यतिकरण आदि घटनाओं को प्रदर्शित करती है।

6. ये किरणें कॉम्पटन प्रभाव तथा प्रकाश विद्युत प्रभाव को प्रदर्शित करती है।

7. खुली जगह में एक सीधी रेखा के रूप में गति करती है।

8. इनमे कोई ध्वनी उत्पन्न नहीं होती है और न ही कोई गंध उत्पन्न होती है।

9. सीसा X  किरणों का सबसे अच्छा अवशोषक होता है।

10.इन किरणों का उपयोग राडार में नहीं किया जा सकता है क्यूंकि ये किरणें लक्ष्य से परावर्तित कम होती है और लक्ष्य द्वारा अवशोषित अधिक होती है।

एक्स किरणों का उपयोग :-

1. कुछ सामग्रियों में अन्दर घुसने की इनकी क्षमता के कारण, एक्स किरणों का उपयोग कई गैर-विनाशकारी मूल्यांकन और परीक्षण अनुप्रयोगों विशेष रूप से संरचनात्मक घटकों में खामियों या दरारों की पहचान के लिए किया जाता है, ।

2. इसका उपयोग डॉक्टरों और दंत चिकित्सकों द्वारा क्रमशः हड्डियों और दांतों की एक्स-रे छवियों को बनाने के लिए किया जाता है।

3. एक्स किरणों के द्वारा ही यात्रियों के सामान , कार्गो और परिवहन आदि का सुरक्षा निरीक्षण  किया जाता है।

 4. इलेक्ट्रॉनिक इमेजिंग डिटेक्टर कोई भी सामान और वस्तुओं को रियल टाइम में देख सकते है और उनकी जाँच कर सकते है ।

5. रेडिएशन थेरेपी में high-energy radiation द्वारा X – किरणों के उपयोग से कैंसर कोशिकाओं के डीएनए को डैमेज कर शरीर से उन्हें खत्म किया जाता है l

6. रेडियोग्राफी में इनका उपयोग किया जाता है।

7. किसी भी क्रिस्टल की संरचना अध्ययन x किरणों की मदद से की जाती है।

8.रेडियो चिकित्सा के क्षेत्र में x किरणों का उपयोग किया जाता है l

11.गामा-किरणें (γ-किरण) क्या होती है ?, γ-किरण के उपयोग  क्या है ?

उत्तर- गामा-किरणें (γ-किरण) :-

गामा-किरणों को इनके अन्वेषक के नाम पर ‘बैकुरल किरणें’ भी कहते हैं। ये अत्यन्त लघु तरंग दैर्ध्य की विद्युत-चुम्बकीय तरंगें होती है।

ये उच्च परमाणु द्रव्यमान के रेडियोधर्मी पदार्थों, जैसे यूरेनियम, रेडियम, थोरियम. प्लूटोनियम, आदि के परमाणुओं के नाभिकों के विघटन की क्रिया से उत्सर्जित होती है। इसकी भेदन क्षमता अल्फा तथा बीटा किरणों के मुकाबले अधिक होता है ये किरणें गैस को आयनीकृत कर देती हैं।

इनकी आवृत्ति बहुत अधिक होने के कारण ये अपने साथ बहुत अधिक ऊर्जा ले जाती हैं। इनकी भेदन क्षमता इतनी अधिक होती है, कि ये 30 सेमी. मोटी लोहे की चादर को भेद कर निकल जाती हैं।

ये फोटोग्राफिक प्लेटों पर रासायनिक क्रिया करती हैं। ये सोडियम आयोडाइड तथा अन्य प्रस्फुरक पदार्थों की पर्त वाले पर्दे पर प्रस्फुर (चमक) उत्पन्न करती है। इन प्रस्फुरों के द्वारा अथवा फोटोग्राफिक प्लेट पर प्रभाव से इन किरणों की पहचान की जाती है। इनका उपयोग नाभिकीय अभिक्रिया तथा कृत्रिम रेडियोधर्मिता में किया जाता है।

उपयोग :-

गामा किरणे, ब्रह्माण्ड में होने वाली अति उच्च ऊर्जा वाली परिघटनाओं के बारे में जानकारी देता है।

गामा किरणों के द्वारा आनविक परिवर्तन किया जा सकता है। इसी प्रक्रिया द्वारा अर्ध-रत्नों के गुणों को बदला जाता है।

संवेदक (सेन्सर) – स्तर , घनत्व तथा मोटाई मापने के लिये।

जीवाणुओं को मारने के लिये – इसे गामा किरणन कहते हैं। गामा किरणन द्वारा चिकित्सा उपकरणों का रोगाणुनाशन किया जाता है जो रासायनिक विधि तथा अन्य विधियों से की जाने वाले रोगाणुनाशन का विकल्प बनकर उभरी है।

गामा किरणों के द्वारा भोज्य पदार्थों से उन जीवाणुओं को मार दिया जाता है जो उनका क्षय करते हैं।

फल और शब्जियों का अंकुरण रोकने के लिये, या अंकुरण की गति कम करने के लिये या अंकुरण में देरी करने के लिए।

कैंसर की चिकित्सा में (गामा किरणों के कारण कैंसर भी हो सकता है।)

12. रेडियो तरंगें क्या है ? रेडियो तरंग के उपयोग बताइए |

उत्तर-  रेडियो तरंगें :-   रेडियो तरंगें विद्युत चुम्बकीय तरंगे है, जिनकी फ्रीक्वेंसी 10 cm से 100 km के बीच होती है। ये मानवनिर्मित भी होती है और प्राकृतिक भी।

रेडियो तरंगो की खोज:-    रेडियो तरंग एक प्रकार का इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विकिरण है, इसके बारे में अनुमान पहली बार 1867 में जेम्स क्लर्क मैक्सवेल ने गणितीय गणना के दौरान लगाया था। मैक्सवेल ने उस दौरान प्रकाश की वेवलेंथ जैसे गुणों को देखा और इस आधार पर वह समीकरण दिया जिसके सहारे प्रकाश तरंगो और रेडियो तरंगों की व्यख्या की गई।

इसके बाद 1887 में हेनरिक हर्ट्ज ने मैक्सवेल के इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियो तरंगों का प्रयोग अपनी प्रयोगशाला में किया। और फिर कई सारे प्रयोगो के बाद इसकी पुष्टि की गई।

इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंग की फ्रीक्वेंसी की इकाई- एक चक्र प्रति सेकंड को उनके सम्मान में हर्ट्ज नाम दिया जाता है।

रेडियो तरंग बनने की प्रक्रिया :- 

रेडियो वेव्स विद्युत धारा को रेडियो आवृति पर प्रत्यावर्तन करने पर बनती है। यह धारा एक विशिष्ट चालक जिसे ऐन्टेना कहते हैं से पास कराई जाती है। अत्यधिक लम्बी तरंगे प्रायोगिक नही होती क्योंकि उतना लम्बे एंटीना संभव ही नही होता। रेडियो तरंगे अंतरिक्षीय प्रक्रिया से भी बनती है, परंतु वे सुदूर गहन अंतरिक्ष में ही बनती हैं।

रेडियो तरंग फोटोन से बने होते हैं। फोटोन भी इंफ्रारेड, विसुअल लाइट(प्रकाश), अल्ट्रावायलेट, X-ray, गामा किरण आदि है।

फोटोन, प्रकाश की गति(वैक्यूम,प्रकाश) की गति से आगे बढ़ते हैं और इसलिए रेडियो तरंगे प्रकाश की गति से आगे बढ़ती हैं। लगभग 300 मिलियन मीटर प्रति सेकंड  या लगभग 186,000 मील प्रति सेकंड।

रेडियो तरंग के उपयोग :- 

रेडियो तरंगों का इस्तेमाल विभिन्न क्षेत्रों में हो रहा है।

रेडियो AM और FM स्टेशन यानी सूचना प्रसारण के क्षेत्र में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

रेडियो फ्रीक्वेंसी ऊर्जा का इस्तेमाल चिकित्सकीय इलाज के लिए भी किया जाता है, पिछले 78 वर्षों से इसका इस्तेमाल इस क्षेत्र में हो रहा है। यह विशेष प्रकार की सर्जरी, शरीर मे किसी द्रव का जमा हो जाने और अनिद्रा जैसी बीमारियों के इलाज में प्रयुक्त होती है।

मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग यानी MRI के लिए भी रेडियो तरंगों का इस्तेमाल होता है, इसके जरिये पूरे मानव शरीर की इमेज बन जाती है।

रेडियो तरंगो का सबसे प्रसिद्ध उपयोग संचार के लिए है, टेलीविज़न, सेलफोन और रेडियो सभी को रेडियो तरंगे मिलती है और उन्हें ध्वनि तरंगे बनाने के लिए स्पीकर में यांत्रिक कामों में परिवर्तित किया जाता है।

13. माइक्रोवेव क्या है? माइक्रोवेव के  गुण और उपयोग क्या है ?

उत्तर- माइक्रोवेव :- माइक्रोवेव एक प्रकार की विद्युत चुम्बकीय विकिरण(एलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन) है। यह रेडियो तरंगे, अल्ट्रावायलेट, एक्स रे और गामा किरणें जैसी ही है। जिनकी वेवलेंथ 1 मीटर से लेकर 1 मिलीमीटर के बीच हो।

दूसरे शब्दों में इनकी फ्रीक्वेंसी 300 Megahertz से लेकर 300 gigahertz के बीच होती है।

सूक्ष्म तरंग का उपयोग :- 

माइक्रोवेव मूल रूप से बेहद उच्च फ्रीक्वेंसी की रेडियो तरंगे हैं जो विभिन्न प्रकार से ट्रांसमीटर द्वारा बनाई जाती है।

एक मोबाइल फ़ोन में वे ट्रांसमीटर और ऐन्टीना द्वारा बनाये जाते हैं दूसरी और ये माइक्रोवेव ओवन में ‘चुम्बक’ द्वारा बनाये जाते हैं।

माइक्रोवेव पानी और fat molecule को वाइब्रेट करने के कारण बनते है जिससे कोई भी पदार्थ गर्म हो जाता है।

हम माइक्रोवेव का उपयोग कई प्रकार के भोजन पकाने के लिए भी करते हैं।

मोबाइल फ़ोन भी माइक्रोवेव का उपयोग करते हैं, क्योंकि उन्हें एक छोटे ऐन्टेना द्वारा उत्पन्न किया जा सकता है। जिसका सीधा सा मतलब है कि फोन को बहुत बड़ा होने की आवश्यकता नही है।

Wifi भी माइक्रोवेव का उपयोग करते हैं।

माइक्रोवेव का उपयोग निश्चित यातयात गति कैमरों और रेडार के लिए भी किया जाता है, जिसका उपयोग विमान, जहाजों और मौसम के लिए भी किया जाता है।

माइक्रोवेव के महत्वपूर्ण गुण :-

माइक्रोवेव को कभी कभी उच्च आवृति और उच्च ऊर्जा वाली रेडियो वेव्स माना जाता है। माइक्रोवेव के कुछ महत्वपूर्ण गुण इस प्रकार है:

वे धातु की सतहों से टकराकर पलट होते है।

वे भौतिक कंपन में अणु और परमाणु बना सकते हैं। हीटिंग की मात्रा माइक्रोवेव रेडिएशन की तीव्रता पर निर्भर करती है।

वे ग्लास और प्लास्टिक से गुजर सकते हैं।

वे अन्तरिक्ष से गुजर सकते हैं।

वे प्रतिबिंबित हुए बिना भी ionosphere से गुजर सकते हैं।

रिफ्लेक्शन, रिफ्रैक्शन, डिफ्फरेक्शन, इंटरफेरेंस जैसे तरंग प्रभाव से ट्रांसमिशन प्रभावित होता है।

14. अवरक्त विकिरण क्‍या है? अवरक्त विकिरण के स्रोत  बताइए |

उत्तर- अवरक्त विकिरण :-  अंतरिक्ष-किरणें, गामा किरणें, एक्सरे किरणें, पराबैंगनी विकिरण, दृश्य प्रकाश, अवरक्त विकिरण, सूक्ष्म तरगें और रेडियो तरंगें क्रमशः विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम बनाते हैं, जिनकी तरंग दै्ध्य बढ़ते क्रम में होती है। अवरक्त किरणें प्रकृति से विद्युत चुम्बकीय ही होती हैं। इनकी गति सरल रेखा में होती है। यह ठोस, द्रव, गैस,. हवा आदि के माध्यमों और निर्वात (vacuum) में संचरण करती हैं। अवरक्त विकिरण की आवृत्ति दस लाख बैंड और पचास करोड़ मेगासाइकिल के सन्निकट होती है। अवरक्त विकिरण अपने गमन पथ में किसी भी पदार्थ द्वारा अवशोपषित होने पर उसमे ऊष्मा उत्पन्न कर देता है। अवरक्त विकिरण लैंस या दर्पण की सहायता से फोकस किया जा सकता है। रेडियो तरंगों की तरह भवरवंत विकिरण अपारदर्शी पदार्थों के पार किया जा सकता है। प्रिज्म की सहायता से अवरक्त विकिरण परिपेक्षित भी किया जा सकता है।

महान्‌ वैज्ञानिक सर न्यूटन ने सन्‌ 1666 में प्रिज्म की सहायता से श्वेत प्रकाश को देश्य स्पेक्ट्रम के अनेक रंगों में विभक्त करने में सफलता प्राप्त की। यह रंग बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल होता है। हिन्दी में इन रंगो को ‘चै जानहपीनाला” से प्रदर्शित किया जाता है। इन्हीं दिनों यह भी पता चला स्पेक्ट्रम के लाल भाग के पार भी कुछ विकिरण है। लगभग एक शताब्दी बाद सन्‌ 1752 में वैज्ञानिक थांमस पैलविले सोडियम ज्वाला में अवरक्त उत्सर्जन प्राप्त करने में सफल हुए। परंतु आधुनिक अवरक्त स्पेक्ट्रमिकी का आधार सन्‌ 1814 में फ्राउनहोफर द्वारा अवरक्त स्पेक्ट्रम में सात सौ से अधिक गहरी अवशोषण रेखाओं की खोज पर निर्भर है। सन्‌ 1835 में टाल्वोट, सन्‌ 1905 में कौबोलेडज और इसके बाद किरखोफ, बुंसनस टीण्डाला, लैग्ले, रूबेस, निकोल्स बुड, रेंडाल और अन्य वैज्ञानिकों ने इस संबंध में खोज आगे बढ़ाई। 

अवरक्त विकिरण के स्रोत :-

प्राकृतिक स्रोत : -  प्रकृति में अवरक्त विकिरण के अनेक स्रोत हैं। मानव का इन स्रोतों पर कोई नियंत्रण नहीं होता है। प्राकृतिक स्रोतों को तीन भागों में विभाजित किया है। 

(1) पार्थिव स्रोत

(2) वायुमण्डलीय स्रोत

(3) खगोलीय स्रोत

कृत्रिम स्रोत :-

अवरक्त विकिरण के कृत्रिम स्रोत में गैस विसर्जन नलिकाएं,आर्क फ्लैश लैम्प, संस्फुर और कृत्रिम कृष्णिका प्रमुख हैं।

15. विद्युत चुम्बकीय तरंगों के चार मुख्य गुण लिखिये। भू-तरंगों तथा व्योम तरंगों को समझाइये।

उत्तर: विद्युत चुम्बकीय तरंगों के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं |

विद्युत चुम्बकीय तरंगे निर्वात में भी गमन कर सकती है निर्वात में विद्युत चुम्बकीय तरंग का वेग सभी आवृत्तियों के लिए समान (अर्थात् C = 3 × 108 मी/से) होता है।

विद्युत चुम्बकीय तरंगों में विद्युत क्षेत्र एवं चुम्बकीय क्षेत्र दोनों समान कला में संचारित होते है तथा इनकी दिशा तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत एवं परस्पर लम्बवत होती है। अर्थात् विद्युत चुम्बकीय तरंगें अनुप्रस्थ प्रगामी तरंगे होती हैं।

विद्युत चुम्बकीय तरंगें जब किसी सतह पर आपतित होती है तो उसे सतह पर दाब आरोपित करती है जिसे विकिरण दाब कहते हैं।

विद्युत चुम्बकीय तरंगें तरंगों के गुण जैसे परावर्तन, अपवर्तन, व्यतिकरण, विवर्तन इत्यादि प्रदर्शित करती है। 

विद्युत-चुम्बकीय तरंग संचरण के प्रकार :-  रेडियो तरंगें तथा सूक्ष्म तरंगें अर्थात् विद्युत-चुम्बकीय तरंगें आवृत्ति के आधार पर प्रेषी से ग्राही तक कई विधियों द्वारा गमन कर सकती हैं। इसका कारण यह है कि भिन्न-भिन्न आवृत्ति परासों के लिए वातावरण का व्यवहार भिन्न-भिन्न होता है। विभिन्न तरंग संचरण की विधियाँ या प्रकार जिनके द्वारा ये विद्युत-चुम्बकीय तरंगें (अर्थात् रेडियो तथा सूक्ष्म तरंगें) प्रेषी से ग्राही एण्टीना तक संचरण कर सकती हैं, निम्न हैं

1. भू-तरंगें अथवा पृष्ठ तरंगें -  ये प्रेषी के एण्टीना द्वारा विकिरित वे तरंगें हैं जो पृथ्वी की वक्रता का अनुकरण करते हुए, लगभग पृथ्वी के पृष्ठ के समान्तर चलती हैं। संचरण की यह विधा तभी तक प्रभावी रहती है जब तक कि प्रेषी तथा ग्राही एण्टीना पृथ्वी के निकट हों।

2. अन्तरिक्ष या क्षोभमण्डलीय तरंगें -  ये वे तरंगें होती हैं जो प्रेषी एण्टीना तथा ग्राही एण्टीना के बीच अन्तरिक्ष में होकर सीधे चलती हैं। ये तरंगें वायुमण्डल के क्षोभमण्डलीय क्षेत्र के भीतर होती हैं।

संचरण को परास बढ़ाने के लिए इन्हें संचार उपग्रह से परावर्तित करते हैं। संचरण की यह विधा (mode) टेलीविजन, रडार तथा आवृत्ति मॉडुलित तरंग संचरण में विशेष रूप से उपयोगी है।

3. व्योम अथवा आयन मण्डलीय तरंगें –   ये तरंगें वायुमण्डल में होकर संचरित होती हैं तथा प्रेषी एण्टीना से पृथ्वी के सापेक्ष बड़े कोणों पर

                                 RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 17 विद्युत चुम्बकीय तरंगें, संचार एवं समकालीन भौतिकी sh Q 3

ऊपर की ओर चलकर क्षोभ मण्डल को पार करके आयन मण्डल तक पहुँच जाती हैं और वहाँ से परावर्तित होकर ग्राही एण्टीना तक पहुँचती हैं। ये तरंगें प्रेषी एण्टीना से ग्राही एण्टीना तक व्योम में होकर आती हैं, इसलिए इन्हें व्योम तरंगें अथवा आयन मण्डलीय तरंगें कहते हैं। चित्र 17.7(a) तथा (b) में तरंग संचरण के विभिन्न प्रकार प्रदर्शित होती हैं।

                            RBSE Solutions for Class 12 Physics Chapter 17 विद्युत चुम्बकीय तरंगें, संचार एवं समकालीन भौतिकी sh Q 3.1

16.  विस्थापन धारा क्या है? इसका सूत्र लिखिए।  ऐम्पियर-मैक्सवेल परिपथीय नियम का सूत्र लिखिए।

उत्तर- विस्थापन धारा- किसी परिपथ में समय के साथ परिवर्ती वैद्युत क्षेत्र (अर्थात् वैद्युतीय विस्थापन) के कारण उत्पन्न धारा को विस्थापन धारा  कहते हैं। इसे id से प्रदर्शित करते हैं।

                                    id = 0ddt

                               id = 0A dEdt

ऐम्पियर-मैक्सवेल परिपथीय नियम :- इस नियम के अनुसार किसी बंद परिपथ के चरों ओर चुंबकीय क्षेत्र  B का रेखीय समाकलन उस परिपथ द्वारा परिबद्ध क्षेत्रफल से गुजरने वाली कुल धारा ( चालन धारा + विस्थापन धारा ) का 0  गुना होता है | 

अर्थात                                 B.dl = 0 ( ic + id )

जहाँ                        विस्थापन धारा  id = 0A dEdt

        तथा                           ic =  चालन धारा 

इससे स्पष्ट है कि परिवर्ती वैद्युत क्षेत्र, चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है | 

17. विद्युत-चुम्बकीय तरंग क्या है ?  एक समतल विद्युत-चुम्बकीय तरंग के विद्युत-क्षेत्र का आयाम E0 = 150 न्यूटन प्रति कूलॉम है तथा आवृत्ति v = 50 मेगा हर्ट्ज है। तरंग के दोलनी चुम्बकीय क्षेत्र का आयाम B0 तथा कोणीय आवृत्ति का मान ज्ञात कीजिए। 

उत्तर-  विद्युत-चम्बकीय तरंग – दोलन गति करते आवेशित कण से उत्पन्न तरंगों को विद्युत चुम्बकीय तरंग कहते हैं। चित्रानुसार इसमें समान आवृत्ति तथा कला के एक-दूसरे के लम्बवत् तथा तरंग की गति की दिशा के लम्बवत् विद्युत क्षेत्र E चुम्बकीय क्षेत्र B का दोलन होता है। ये अनुप्रस्थ तरंगें होती हैं । इसके संचरण की दिशा सदिश E तथा B  युक्त तल पर अभिलम्बवत् होती है तथा E x  B द्वारा प्राप्त की जाती है।

  हल-                                E0 = 150 न्यूटन प्रति कूलॉम

                                           E0B0 = C  से ,

                                    B0 = E0C = 1503108

                              =  510-7 T

कोणीय आवृत्ति = 2 = 23.1450106

                                       = 3.14108 प्रति सेकण्ड 

 

18.पराबैंगनी किरणें क्या है ? पराबैंगनी किरणों के प्रकार लिखिए | 

उत्तर :- पराबैंगनी किरणें :-

पराबैंगनी किरणों से त्वचा कैंसर होने की संभावनाएं अधिक हो जाती है। सूर्य पराबैंगनी किरणों का मुख्य स्त्रोत होता है। कुछ अन्य उपकरणों द्वारा भी पराबैंगनी किरणें बनती हैं। जो लोग पराबैंगनी किरणों के संपर्क में ज्यादा रहते हैं उनको त्वचा कैंसर होने का खतरा अधिक होता है।

पराबैंगनी किरण सूर्य की किरणों का छोटा सा हिस्सा ही हैं, लेकिन सूर्य से त्वचा पर होने वाले नुकसान का यह मुख्य कारण होती है। पराबैंगनी किरणें त्वचा की कोशिकाओं के डीएनए को क्षति पहुंचाती हैं। त्वचा की कोशिकाओं के विकास को नियंत्रित करने वाले जीन्स (genes) के डीएनए पर होने वाले दुष्प्रभावों के कारण त्वचा कैंसर शुरू होता है।

पराबैंगनी किरणों के प्रकार :-

पराबैंगनी किरण मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती है, 

1.  यूवीए किरणें (UVA rays) -

यूवीए किरणें त्वचा की कोशिकाओं की उम्र और उनके डीएनए को नुकसान पहुंचा सकती है। पराबैंगनी किरणों का यह प्रकार त्वचा को लंबे समय तक नुकसान पहुंचाने वाला होता है। इससे आपको झुर्रियों की परेशानी हो सकती है। इतना ही नहीं, यूवीए किरणे त्वचा कैंसर के लिए जिम्मेदार होती है। 

2. यूवीबी किरणें (UVB rays) -

यूवीए के मुकाबले यूवीबी किरणों में अधिक ऊर्जा होती है। इसकी वजह से यूवीबी किरण सीधे तौर पर त्वचा की कोशिकाओं के डीएनए को क्षति पहुंचाती है। इन किरणों के कारण ही आपकी सबने की समस्या होती है। यूवीबी किरणों कई तरह के त्वचा संबंधी कैंसर का कारण होती है।

3. यूवीसी किरण (UVC rays) -

यूवीसी किरणों में अन्य यूवी किरणों की तुलना में सबसे अधिक ऊर्जा होती है, लेकिन यह किरण हमारे वायुमंडल और सूर्य की रोशनी में नहीं होती है। साथ ही यह किरण त्वचा कैंसर का भी कारण नहीं बनती है।

यूवीए और यूवीबी दोनों ही किरणे त्वचा को नुकसान पहुंचाने और त्वचा कैंसर का मुख्य कारण होती है। यूवीबी किरणे ज्यादा नुकसानदायक होती है और यह कुछ प्रकार के त्वचा कैंसर का मुख्य कारण होती है। आज तक जितनी इन पर वैज्ञानिक जानकारी उपलब्ध है, उसके अनुसार किसी भी तरह की पराबैगनी किरण सुरक्षित नहीं है।

19.(a)  30, 000 Å तरंगदैर्घ्य की वैद्युत चुम्बकीय तरंग की आवृत्ति ज्ञात कीजिए। यह स्पेक्ट्रम के किस भाग को प्रदर्शित करती है? 

(b). निर्वात में एक आवर्त विद्युतचुम्बकीय तरंग के चुम्बकीय-क्षेत्र वाले भाग का आयाम B0 = 510 nT है। तरंग के विद्युत क्षेत्र वाले भाग का आयाम क्या है?

हल-   (a)                       = 30 ,000 Å = 310-6m

                             आवृत्ति  = C = 3108310-6 

                                                   = 1014 Hz

 यह स्पेक्ट्रम के अवरक्त भाग को प्रदर्शित करती है | 

(b).      दिया है ,     B0 = 510 10-9 T

                             c  =  3 108 m/s

                             E0 = ?

                             c =  E0B0   से ,

                                E0 =  cB0 =  3 108   510 10-9

                             E0 = 153 V/m

20.पराबैंगनी किरणें क्या है ? पराबैंगनी किरणों के उपयोग और लाभ बताइए | 

उत्तर :- पराबैंगनी किरणें :-

पराबैंगनी किरणों से त्वचा कैंसर होने की संभावनाएं अधिक हो जाती है। सूर्य पराबैंगनी किरणों का मुख्य स्त्रोत होता है। कुछ अन्य उपकरणों द्वारा भी पराबैंगनी किरणें बनती हैं। जो लोग पराबैंगनी किरणों के संपर्क में ज्यादा रहते हैं उनको त्वचा कैंसर होने का खतरा अधिक होता है।

यूवी किरणों के उपयोग और लाभ :-

ऐसा नहीं है कि पराबैंगनी किरणों से आपको नुकसान ही होता है, इन किरणों से आपको कुछ फायदे भी मिलते हैं। पराबैंगनी किरणों के फायदे निम्न है -

1. विटामिन डी बनाने में सहायक होती हैं-

आपके शरीर को विटामिन डी बनाने के लिए सूर्य से निकलने वाली पराबैंगनी किरणों की आवश्यकता होती है विटामिन डी से आपकी हड्डियाँ, मांसपेशियों और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूती मिलती है। विटामिन डी से कोलन कैंसर होने का खतरा भी कम हो जाता है। 

2. त्वचा संबंधी समस्याओं में मददगार होती हैं-

यूवी किरणों का उपयोग सोरायसिस जैसी कुछ त्वचा संबंधी समस्याओं के इलाज में किया जाता है। इस समस्या में कोशिकाएं तेजी से बनते हुए त्वचा को ढकने लगती है, जिससे खुजली और त्वचा पर चकत्ते होने लगते हैं। सोरायसिस में पराबैंगनी किरणों से त्वचा की कोशिकाओं में होने वाली वृद्धि कम हो जाती है और इस बीमारी के लक्षणों से आराम मिलता है।

3. मूड को अच्छा बनाती हैं-

रिसर्च बताती है कि सूर्य की किरण पीनियल ग्रंथि (Pineal gland) को उत्तेजित करती है। यह यथि मस्तिष्क में होती है, जो मूड को अच्छा बनाने वाले कैमिकल 'ट्राइप्टामाइल' (Tryptamines) को स्त्रावित करती है। 

4. कई जंतुओं के देखने में सहायता करती है-

कुछ जीव-जंतु (जैसे चिड़िया, मक्खी और रेंगने वाले कीड़े) फूलों, फलों और बीजों के पास की पराबैंगनी रोशनी से ही उनकी देख पाते हैं और उनकी और आकर्षित होते हैं। इसके जला हवा में उड़ने वाले जंतु या कीट पराबैंगनी किरणों की मदद से ही अपनी दिशा का सही पता लगाते हैं।

5. संक्रमण मुक्त रखने में सहायक होती हैं-

से बचाने और कीटाणुओं को नष्ट करने में पराबैंगनी किरण अहम भूमिका निभाती है। पराबैगनी किरण बीमारी फैलाने वाले सूक्ष्म किटाणु और नष्ट करने का काम करती है। पराबैंगनी किरण कोशिकाओं के भीतर पहुंचकर डीएनए को नष्ट करती है जिससे सूक्ष्म किटाणु की संख्या बढ़ नहीं पाती है। 

21.पराबैंगनी किरणों के प्रभाव और नुकसान  लिखिए |

उत्तर :- पराबैंगनी किरणों के प्रभाव और नुकसान :-

पैराबैंगनी किरणे  कई तरह से हानिकारक होती हैं |

1. त्वचा के कैंसर का कारण होती हैं-

पर्यावरण में उत्पन्न होने वाली पराबैगनी किरणें कैंसर का मुख्य कारण होती है। त्वचा संबंधी तीनों मुख्य कैंसर (बेसल सेल कार्सिनोमा / Basal cell carcinoma, स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा / Squamous cell carcinoma और मेलेनोमा / Melanoma) की वजह सूर्य की पराबैंगनी किरणें ही होती हैं और रिसर्च में भी इस बात का पता चला है कि 90 प्रतिशत स्किन कैंसर इन्हीं पराबैंगनी किरणों के कारण होते हैं

2 सनबर्न का मुख्य कारण होती हैं-

पराबैंगनी किरणों से त्वचा का जलना या झुलसना, सनबर्न कहलाता है। त्वचा की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होने से सनबर्न की समस्या होती है। यह समस्या त्वचा में पराबैंगनी किरण के अवशोषण के कारण होती है। सनबर्न से प्रभावित त्वचा को ठीक करने के लिए रक्त का संचार इस हिस्से में अधिक होने लगता है और इस वजह से आपकी त्वचा का रंग लाल दिखाई देने लगता है। 

3. रोग प्रतिरोधक क्षमता को नुकसान पहुंचाती हैं-

पराबैंगनी किरणों में ज्यादा देर तक रहने से आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली पर हानिकारक असर होता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि सनबर्न के दौरान रोग से लड़ने वाली सफेद रक्त कोशिकाओं के कार्य और वितरण प्रणाली में बदलाव आने लगता है और सूर्य का यह हानिकारक प्रभाव 24 घंटों तक आपके शरीर में दिखाई देता है। पराबैगनी किरणों के लगातार संपर्क में आने से आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता को नुकसान पहुंचने लगता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता आपको हानिकारक बैक्टीरिया, सूक्ष्म जीवाणु वायरस और विषाक्ता से सुरक्षा प्रदान करने कार्य करती है।

4. आंखों के लिए हानिकारक होती हैं।

पराबैंगनी किरणों में लंबे समय तक रहने से आपकी आखों के ऊतकों में क्षति पहुंचती है। इसकी वजह से आपकी से होने लगती है, इसको हिमान्धता (Sox blindness बर्फ से टकराकर पराबैंगनी किरणों से आखों को होने वाला अस्थायी नुकसान) और फोटोकिरेटिटिस (Photokeratitis अधिक रोशनी की वजह से आंखों को नुकरणन होना कहते हैं। आंख पर होने वाले इस तरह के हानिकारक प्रभाव कुछ दिनों में ही ठीक हो जाते हैं, लेकिन बाद में आंख की अन्य समस्या का कारण बन सकते हैं। इसके अलावा अन्य अध्ययन बताते हैं कि सूर्य की कम रोशनी से भी आपकी आरती कोटेरियम (Pterygium आखी का रोग। और पिरयुक्तता (Pinguicula का एक रोग हो सकते हैं। आंखों पर पराबैगनी किरणों के दुष्प्रभाव धीरे-धीरे शुरू होते है इससे बचने के लिए आप अपनी आंखों को सुरक्षित रखना चाहिए। 

22.पराबैंगनी किरणों से बचने के उपाय बताइए | 

उत्तर :- पराबैंगनी किरणों से सावधानियां :-

पराबैंगनी किरणों से बचने के लिए कुछ विशेष उपाय अपनाने की जरूरत होती है। 

1. दिन के समय बाहर ना जाएं-

सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक सीधे सूर्य की रोशनी के संपर्क में जाने से बचना चाहिए। अगर बेहद आवश्यक काम हो तो आप छाते का इस्तेमाल करें। एक साल से कम उम्र के बच्चे को भी सीधे सूर्य के सामने ना लाएं। इससे बच्चे की त्वचा को खतरा हो सकता है।

2. त्वचा को ढककर रखें-

पराबैंगनी किरणों से बचने के लिए आपको घर से बाहर निकलने से पहले अपने हाथ-पैरों को पूरी तरह से ढकने वाले कपड़ों को पहनना चाहिए। साथ ही सिर पर टोपी लगाकर गर्दन और चेहरे को सूर्य की किरणों से बचाना चाहिए।

3. अपनी त्वचा के प्रकार को समझें-

पराबैंगनी किरणों का दुष्प्रभाव आपकी त्वचा के रंग और उसके टैन होने की क्षमता पर निर्भर करता है गोरी त्वचा और हल्के रंग की आंखों वाले लोगों को पराबैगनी किरणों के नुकसान का खतरा अधिक होता है। 

4. सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें-

दिन में बाहर जाने से पहले सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें। बाहर जाने से करीब 30 मिनट पहले आपको अपनी त्वचा के खुले हुए हिस्सी पर सनस्क्रीन लगानी चाहिए, इससे लोशन आपकी त्वचा में अच्छी तरह से अवशोषित हो जाता है। स्वीमिंग या पसीना आने के बाद भी आपको सनस्क्रीन का दोबारा उपयोग करना चाहिए। 

5. आंखों पर चश्मा पहनें -

चश्मा आपकी आंखों को यूवीए किरणों से 90 प्रतिशत और यूवीबी किरणों से 95 प्रतिशत तक सुरक्षा प्रदान करता है। बच्चों की आंखों को सुरक्षा प्रदान करने वाले घरमे यूवीए यूवीबी दोनों ही प्रकार किरणों से 99-100 प्रतिशत तक बचाव करते हैं।

23. विद्युत चुंबकीय तरंगों के अविष्कारक कौन है? विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के अभिलक्षण लिखिए | 

उत्तर- 1885 में, हर्ट्ज़ ने प्रयोग द्वारा वैद्युतचुंबकीय तरंगों के अस्तित्व को प्रदर्शित किया।

 निर्वात में प्रकाश का वेग लगभग 3 लाख किमी/से (299,800 किमी/सेकेण्ड) होता है जो एक नियतांक है।

 विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के अभिलक्षण-

 विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के अभिलक्षण निम्नलिखित हैं- 

 1. विद्युत-चुम्बकीय तरंगें त्वरित आवेश द्वारा उत्पन्न की जाती हैं। 

 2. इन तरंगों के संचरण के लिए किसी पदार्थक माध्यम की आवश्यकता नहीं होती।

 3. ये तरंगें निर्वात् अथवा मुक्त स्थान में V = 100 वेग से चलती हैं जिसका मान प्रकाश की चाल के बराबर होता है। 

 4.वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों के परिवर्तनों की दिशाएँ परस्पर लम्बवत् होती हैं तथा संचरण की दिशा के भी लम्बवत् होती हैं। इस प्रकार, विद्युत-चुम्बकीय तरंगों की प्रकृति अनुप्रस्थ होती है।  

 5. वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों में परिवर्तन साथ-साथ होते हैं तथा क्षेत्रों के महत्तम मान E0 व B0 एक ही स्थान पर तथा एक ही समय होते हैं। 

 6. निर्वात् में विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों के परिमाणों का सम्बन्ध E/B = v = c होता है।

 7. वैद्युत-चुम्बकीय तरंगों में ऊर्जा, औसतन वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्रों में बराबर-बराबर बँटी होती है। 

 8. निर्वात् में, औसत वैद्युत ऊर्जा घनर  तथा औसत चुम्बकीय ऊर्जा घनत्व  होता है।

24.  विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम क्या है ?  विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम में निहित विभिन्न तरंगों के नाम, उसकी आवृत्ति परास तथा आविष्कारक का नाम लिखें।

 

उत्तर :- विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम :-

विद्युत चुंबकीय तरंगों को तरंगधैर्य के परिसर के आधार पर एक क्रम व्यवस्थित किया जा सकता है। इस क्रम को विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम कहते हैं।

सूर्य के प्रकाश के स्पेक्ट्रम में लाल रंग से लेकर बैगनी रंग तक होते हैं। इसे दृश्य स्पेक्ट्रम कहते हैं। लाल रंग की तरंगधैर्य का मान सबसे अधिक 7.8 × 10-7 मीटर होता है तथा बैगनी रंग की तरंगधैर्य का मान सबसे कम 4.0 × 10-7 मीटर होता है।

विद्युत चुंबकीय तरंगे निर्वात में प्रकाश की चाल से चलती है। तथा यह तरंगे सदैव अनुप्रस्थ प्रकृति की होती हैं इन तरंगों में प्रकाश की भांति परावर्तन, अपवर्तन, व्यतिकरण तथा ध्रुवण का गुण पाया जाता है।

 विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम में निहित विभिन्न तरंगों के नाम, उसकी आवृत्ति परास तथा आविष्कारक के नाम निम्नलिखित हैं :

S.N

तरंगों के नाम

आवृत्ति परास (हर्ट्ज)

आविष्कारक का नाम

1.

गामा किरणें

3 x 1021 – 3 x1018

बैकरल तथा क्यूरी

2. 

एक्स-किरणें

3 x 1018 – 3 x 1016

रोएंट्जन

3.

पराबैंगनी-विकिरण

3 x 1016 – 7.5 x 1014

रिटर

4.

दृश्य प्रकाश

7.5 x 1014– 3.8 x 1014

न्यूटन

5.

अवरक्त विकिरण

3 x 104– 3 x 1011

हरशैल

6.

माइक्रो तरंगें

3.8 x 104 – 3 x 108

हर्ट्ज

7.

रेडियो तरंगें

3 x 1011 – 3 x104

मारकोनी

25.(a).  एक आवेशित कण अपनी माध्य साम्यावस्था के दोनों ओर 10 Hz आवृत्ति से दोलन करता है। दोलक द्वारा जनित विद्युतचुम्बकीय तरंगों की आवृत्ति कितनी है?

(b). विद्युत चुम्बकीय तरंगों तथा ध्वनि तरंगों में अंतर स्पष्ट करें।

(a) हल- हम जानते हैं कि त्वरित अथवा कम्पित आवेशित कण कम्पित विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है। यह विद्युत क्षेत्र, कम्पित चुम्बकीय-क्षेत्र उत्पन्न करता है। ये दोनों क्षेत्र मिलकर वैद्युतचुम्बकीय तरंग उत्पन्न करते हैं; जिसकी आवृत्ति, कम्पित कण के दोलनों की आवृत्ति के बराबर होती है।

तरंगों की आवृत्ति v = 109 Hz

(b) उत्तर-  विद्युत चुम्बकीय तरंगों तथा ध्वनि तरंगों में निम्नलिखित अन्तर है –

S.L

विद्युत चुम्बकीय तरंगें

ध्वनि तरंगें

1.

विद्युत चुम्बकीय तरंगें अनुप्रस्थ होती हैं।

ध्वनि तरंगें वायु में अनुदैर्ध्य होती है।

2.

इसके संचरण के लिए भौतिक माध्यम आवश्यक नहीं है अर्थात् ये निर्वात में भी संचरित होती है।

इसके संचरण के लिए भौतिक माध्यम आवश्यक है अर्थात ये तरंगें निर्वात में संचरित नहीं होती है।

3.

इसमें वैद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्र परस्पर लम्बवत् तथा तरंग की गति की दिशा के लम्बवत् कम्पन करते हैं।

इसमें माध्यम से कण तरंग गति की दिशा में कम्पन करते हैं।

4.

ये ध्रुवण का गुण भी दर्शाती है।

ये ध्रुवण का गुण नहीं दर्शाती है।