बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 7 प्रत्यावर्ती धारा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. प्रत्यावर्ती धारा परिपथ क्या है ? प्रतिरोध पर प्रयुक्त ac वोल्टता का वर्णन करें |
उत्तर:
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ :-
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रत्यावर्ती वोल्टेज तथा प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति समान होती है परंतु यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्यावर्ती वोल्टेज तथा प्रत्यावर्ती धारा एक ही कला में हों। प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रत्यावर्ती वोल्टेज तथा प्रत्यावर्ती धारा के बीच कलांतर का मान परिपथ की प्रकृति पर निर्भर करता है।
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ के प्रकार :-
1. प्रतिरोध पर प्रयुक्त ac वोल्टता
2. प्रेरकत्व पर प्रयुक्त ac वोल्टता
3. संधारित्र पर प्रयुक्त ac वोल्टता
प्रतिरोध पर प्रयुक्त ac वोल्टता :-
ब प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में केवल प्रतिरोध R होता है। तब प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रत्यावर्ती वोल्टता तथा प्रत्यावर्ती धारा दोनों समान कला में होते हैं।
तब इनके प्रत्यावर्ती धारा तथा प्रत्यावर्ती वोल्टता के समीकरण निम्न प्रकार प्राप्त होते हैं।
प्रत्यावर्ती वोल्टता V =Vmsinωt
प्रत्यावर्ती धारा i = im sinωt
अर्थात प्रत्यावर्ती वोल्टता तथा प्रत्यावर्ती धारा दोनों साथ-साथ न्यूनतम तथा अधिकतम मान प्राप्त करेंगी। इससे स्पष्ट होता है कि वोल्टता एवं धारा एक दूसरे के साथ समान कला में हैं।
जहां ω कोणीय आवृत्ति है।
ओम के नियम से
= iR
त में का V मान रखने पर
या
अब उपरोक्त समीकरण में i = im sinωt से i का मान रखने पर
यही समीकरण ओम का नियम है।
प्रतिरोध प्रत्यावर्ती धारा (AC) तथा दिष्ट धारा (DC) दोनों प्रकार की वोल्टताओं के लिए समान रूप से लागू होता है। अर्थात प्रतिरोध ac और dc दोनों में समान रूप से कार्य करता है।
2. प्रेरकत्व पर प्रयुक्त ac वोल्टता का वर्णन करें |
उत्तर: प्रेरकत्व पर प्रयुक्त ac वोल्टता
जब प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में केवल प्रेरकत्व L होता है। तब परिपथ में प्रत्यावर्ती वोल्टता, प्रत्यावर्ती धारा से π/2 आगे रहती है। अथवा इसे इस प्रकार भी लिख सकते हैं कि प्रत्यावर्ती धारा, प्रत्यावर्ती वोल्टता से 90° पीछे है।
तब इनके प्रत्यावर्ती धारा तथा प्रत्यावर्ती वोल्टता के समीकरण निम्न प्रकार प्राप्त होते हैं।
प्रत्यावर्ती वोल्टता V =Vm sin(ωt + π/2)
प्रत्यावर्ती धारा i = im sinωt
अथवा इन समीकरणों को इस प्रकार भी लिखा जा सकता है।
= Vm sinωt
= im sin(ωt – π/2)
दोनों समीकरणों की तुलना करने पर
= VmL
जहां im प्रत्यावर्ती धारा का शिखर (महत्तम) मान है। चूंकि ωL राशि प्रतिरोध के सदृश है। इसे प्रेरण प्रतिघात कहते हैं। एवं इसे Lद्वारा प्रदर्शित किया जाता है। तब
L = ωL
प्रेरण प्रतिघात का मात्रक ओम होता है। जो कि प्रतिरोध का मात्रक है। एवं इसकी विमा भी वही होती हैं जो प्रतिरोध की विमा है।
जहां ω कोणीय वेग है। इसका मान 2πf होता है तो
L=2πfL
प्रेरकत्व का उपयोग केवल प्रत्यावर्ती धारा में ही किया जाता है। दिष्ट धारा में इसका उपयोग नहीं किया जाता है। क्योंकि दिष्ट धारा की आवृत्ति शून्य होती है जिस कारण दिष्ट धारा में प्रेरकत्व का प्रयोग करने के पश्चात परिपथ की आवृत्ति का मान शून्य हो जाता है।
दिष्ट धारा DC के लिए आवृत्ति f = 0 तबL = 0
3. संधारित्र पर प्रयुक्त ac वोल्टता का वर्णन करें |
उत्तर:
संधारित्र पर प्रयुक्त ac वोल्टता :-
जब प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में केवल संधारित्र C होता है। तब परिपथ में प्रत्यावर्ती वोल्टता, प्रत्यावर्ती धारा से π/2 पीछे रहती है। अथवा इस प्रकार भी लिख सकते हैं कि प्रत्यावर्ती धारा, प्रत्यावर्ती वोल्टता से 90° आगे है।
तब इनके प्रत्यावर्ती धारा तथा प्रत्यावर्ती वोल्टता के समीकरण निम्न प्रकार प्राप्त होते हैं।
प्रत्यावर्ती वोल्टता V =Vmsinωt
प्रत्यावर्ती धारा i = im sin(ωt + π/2)
अथवा इन समीकरणों को इस प्रकार भी लिखा जा सकता है।
= Vm sin(ωt – π/2)
= im sinωt
दोनों समीकरणों की तुलना करने पर
= Vm1/ωC
जहां im प्रत्यावर्ती धारा का शिखर मान है। चूंकि 1/ωC की भूमिका प्रतिरोध के समान ही है। इसलिए इसे संधारित्र प्रतिघात कहते हैं। और इसे c द्वारा दर्शाया जाता है। तब
c= 1/ωC
संधारित्र प्रतिघात का मात्रक भी ओम होता है। एवं इसकी विमा भी वही होती हैं जो प्रतिरोध की विमा है।
जहां ω कोणीय वेग है। इसका मान 2πf होता है तो
c = 12fC
संधारित्र का प्रयोग केवल प्रत्यावर्ती धारा में ही किया जाता है। संधारित्र का प्रयोग दिष्ट धारा में नहीं होता है। क्योंकि दिष्ट धारा की आवृत्ति शून्य होती है। एवं परिपथ में संधारित्र लगाने पर आवृत्ति का मान अनन्त हो जाता है। जिस कारण परिपथ खराब हो सकता है। अर्थात
दिष्ट धारा DC के लिए आवृत्ति f = 0 तब
c = 12fC
या
=∞
4.प्रत्यावर्ती धारा का शिखर मान तथा औसत मान बताइए |
उत्तर :-
प्रत्यावर्ती धारा का शिखर मान :-
प्रत्यावर्ती धारा अपने एक पूर्ण चक्र में दो अधिकतम मान प्राप्त करती है। धारा के इस अधिकतम मान को ही प्रत्यावर्ती धारा को शिखर मान कहते हैं। इसे im द्वारा निरूपित किया जाता है।
चित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है।
प्रत्यावर्ती धारा का औसत मान :-
प्रत्यावर्ती धारा का मान व दिशा दोनों ही परिवर्तित होते रहते हैं। प्रत्यावर्ती धारा एक अर्ध चक्र में एक दिशा में प्रवाहित होती है तथा दूसरे अर्ध चक्कर में विपरीत दिशा में प्रवाहित होती है। अतः एक पूर्ण चक्र के लिए प्रत्यावर्ती धारा का औसत मान शून्य होता है। प्रत्यावर्ती धारा के औसत मान को iaद्वारा निरूपित किया जाता है।
पहले अर्ध चक्र के दौरान प्रत्यावर्ती धारा का औसत मान
= 2 im
π का मान रखकर हल करने पर
ia=0.637 × im
दूसरे अर्ध चक्र के दौरान प्रत्यावर्ती धारा का औसत मान
ia= − 2im
= −0.637 × im
जहां im धारा का शिखर मान है।
अतः इस प्रकार प्रत्यावर्ती धारा का औसत मान पहले अर्ध चक्र के दौरान 0.637 × im होता है। तथा दूसरे अर्ध चक्र के दौरान – 0.637 × im होता है। तब एक पूर्ण चक्र के दौरान प्रत्यावर्ती धारा का औसत मान शून्य होगा। अर्थात
औसत मान = 0.637 × im + (- 0.637 × im)
औसत मान = 0
5. प्रत्यावर्ती धारा का वर्ग माध्य मूल मान बताइए तथा वर्ग माध्य मूल मान एवं शिखर मान में संबंध बताइए |
उत्तर :- प्रत्यावर्ती धारा का वर्ग माध्य मूल मान :-
प्रत्यावर्ती धारा के एक पूर्ण चक्र के लिए धारा के वर्ग के औसत मान के वर्गमूल को प्रत्यावर्ती धारा का वर्ग माध्य मूल मान कहते हैं। इसे irms द्वारा निरूपित किया जाता है।
irms = im2
चूंकि 2 का मान 1.414 होता है। तब धारा का वर्ग माध्य मूल मान
irms = 0.707×im
प्रत्यावर्ती धारा का वर्ग माध्य मूल मान एवं शिखर मान में संबंध :-
प्रत्यावर्ती धारा अपने एक पूर्ण चक्र में दो बार अधिकतम तथा दो बार न्यूनतम मान प्राप्त करती है। धारा का यह अधिकतम मान ही उसका शिखर मान कहलाता है।
irms = 0.707 × im
जहां irmsप्रत्यावर्ती धारा का वर्ग माध्य मूल मान तथा im प्रत्यावर्ती धारा का शिखर मान है।
माध्य मान एवं धारा की शिखर मान में संबंध
एक पूर्ण चक्र के लिए धारा का औसत मान शून्य होता है। इसे धारा का माध्य मान भी कहते हैं।
ia= 2 im
π का मान रखकर हल करने पर
ia=0.637 × im
जहां im धारा का शिखर मान है। तथा ia धारा का माध्य मान अथवा औसत मान है।
6. L-R परिपथ की प्रतिबाधा से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :- L-R परिपथ : -
जब किसी परिपथ में प्रेरकत्व L तथा प्रतिरोध R को श्रेणीक्रम में जोड़कर उस परिपथ में एक प्रत्यावर्ती धारा स्रोत को जोड़ दिया जाता है। तब इस प्रकार बनने वाले परिपथ को LR परिपथ कहते हैं।
प्रस्तुत चित्र में प्रेरकत्व L तथा प्रतिरोध R को श्रेणीक्रम में जोड़कर एक प्रत्यावर्ती धारा स्रोत से परिपथ में जोड़ दिया गया है। तब इस दशा में प्रेरकत्व तथा प्रतिरोध के बीच प्रवाहित होने वाली i धारा समान होती है। तब प्रतिरोध R के सिरों के बीच विभवांतर VR तथा धारा i समान कला में होंगे। एवं इसके विपरीत प्रेरकत्व L के सिरों के बीच विभवांतर VL परिपथ में प्रवाहित धारा i से π/2 आगे होगा। तब इस प्रकार VR तथा VL के बीच 90° का कलान्तर होगा। अर्थात् ये दोनों एक दूसरे के लम्वबत् होंगे। चित्र द्वारा इनको स्पष्ट किया गया है।
LR परिपथ की प्रतिबाधा : -
माना यदि VL तथा VR का कुल विभवांतर V है तो
पाइथागोरस प्रमेय से
∆OAB में
कर्ण 2 = लंब 2 + आधार 2
V2 = VL2 + VR2
ओम के नियम से VR = iR तथा VL = iXL
उपरोक्त समीकरण में VR तथा VL के मान रखने पर
V2 = (iXL)2 + (iR)2
V2 = i2XL2 + i2 R2
या V2i2 = XL2 + R2
Vi2 = XL2 + R2
Vi = XL2 + R2
उपरोक्त समीकरण की ओम के नियम Vi = R से तुलना करने पर ज्ञात होता है कि परिपथ का एक प्रतिरोध है। जिसे प्रतिबाधा कहते हैं इसे Z द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
तो LR परिपथ की प्रतिबाधा
Z = XL2 + R2
चूंकि हमने पिछले अध्याय में पढ़ा है कि XL = ωL होता है तब LR परिपथ की प्रतिबाधा
Z = R2 + (ωL)2
7. वाटहीन धारा क्या है ? वाटहीन धारा के सूत्र का निगमन कीजिए |
उत्तर :- वाटहीन धारा :-
जब किसी प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में केवल प्रेरकत्व अथवा धारिता उपस्थित होती है। तब इस प्रकार के प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में औसत शक्ति क्षय शून्य रहता है। अर्थात परिपथ में प्रवाहित होने वाली धारा में शक्ति का क्षय नहीं होता है। तब इस प्रकार परिपथ में प्रवाहित होने वाली धारा को वाटहीन धारा कहते हैं।
चोक कुंडली में प्रवाहित धारा, वाटहीन धारा का एक उदाहरण है।
वाटहीन धारा का सूत्र :-
जब प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रेरकत्व L अथवा धारिता C होती है तो परिपथ में प्रवाहित धारा तथा विभवांतर के बीच कलांतर π/2 होता है। तो
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में शक्ति क्षय के सूत्र से
P = Vrms × irms × cosΦ
चूंकि धारा तथा विभवांतर के बीच कलांतर π/2 (90°) है तो
Φ = π/2 शक्ति क्षय
P = Vrms × irms × cos 90°
चूंकि cos 90° का मान 0 होता है तब शक्ति क्षय
P = Vrms × irms × 0
P=0
अतः इस प्रकार स्पष्ट होता है कि परिपथ में प्रेरकत्व L अथवा धारिता C दोनों में से किसी एक की उपस्थिति होने पर परिपथ में ऊर्जा क्षय नहीं होता है।
8.प्रत्यावर्ती धारा और दिष्ट धारा के बीच अंतर बताइए |
उत्तर :- प्रत्यावर्ती धारा :-
प्रत्यावर्ती धारा को ~ इस चिन्ह द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इसके द्वारा ही स्पष्ट होता है कि यह कभी अधिकतम मान प्राप्त करती है तो कभी न्यूनतम मान प्राप्त करती है। भारत के घरों में 50 हर्ट्स आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा प्रयोग की जाती है।
50 हर्ट्स का मतलब होता है कि यह धारा हर एक सेकंड में 50 बार जलती है तथा 50 बार बंद होती है। परंतु यह समय बहुत ही कम है इसलिए हमारी आंखें इसे देख नहीं पाती हैं।
दिष्ट धारा : -
दिष्ट धारा एक सीधी सरल रेखा — में चलती है। जिस कारण इसकी आवृत्ति शून्य होती है। अर्थात यह लगतार जलती ही रहती है।
प्रत्यावर्ती धारा और दिष्ट धारा के बीच अंतर :-
1. प्रत्यावर्ती धारा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाना ट्रांसफार्मर की सहायता से बहुत ही आसान हो जाता है। प्रत्यावर्ती धारा को किसी भी बिजली घर से तारों के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से तथा कम खर्च में पहुंचाया जा सकता है। एवं इस प्रकम में ऊर्जा की हानि भी बहुत ही कम या न के बराबर होती है। जबकि इसके विपरीत दिष्ट धारा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाना बहुत ही मुश्किल है। साथ ही इसमें खर्चा भी ac की तुलना में अधिक होगा और ऊर्जा की हानि भी होगी।
2. प्रत्यावर्ती धारा के माध्यम से चलने वाले यंत्र, दिष्ट धारामाध्यम से चलने वाले यंत्रों से अधिक सुदृढ़ व सुविधाजनक होते हैं।
3. प्रत्यावर्ती धारा के तार को कोई मनुष्य छु लेता है। तो उसे बहुत अधिक तेजी से झटका लगता है। जबकि दिष्ट धारा में ऐसा नहीं होता है। इसके तार को छूने पर प्रत्यावर्ती धारा की तुलना कम तेजी से झटका लगता है। इसी कारण प्रत्यावर्ती धारा, दिष्ट धारा की तुलना में अधिक खतरनाक होती है।
4. प्रत्यावर्ती धारा का अधिकतम भाग तारों के बाहरी सिरों पर ही प्रवाहित होता है। जिस कारण प्रत्यावर्ती धारा के तारों को मोटा नहीं बनाया जाता है। बल्कि इसे पतले पतले तारों को मिलाकर एक मोटे तार में परिवर्तित कर दिया जाता है। इस प्रकार के तारों में प्रत्यावर्ती धारा का प्रवाह बहुत अच्छी तरह होता है। परंतु दिष्ट धारा में ऐसा कुछ नहीं होता है। यह किसी भी प्रकार के तार में आसानी से प्रवाहित हो जाती है।
9. ट्रांसफार्मर क्या है ? ट्रांसफार्मर की रचना का वर्णन कीजिए |
उत्तर :- ट्रांसफार्मर :-
अन्योन्य प्रेरण के सिद्धांत पर आधारित एक ऐसी युक्ति, जिसके द्वारा प्रत्यावर्ती वोल्टता अथवा धारा के मान में परिवर्तन अर्थात वृद्धि या कमी की जा सकती है। इस प्रकार की युक्ति को ट्रांसफार्मर कहते हैं।
ट्रांसफार्मर विद्युत चुंबकीय प्रेरण की परिघटना पर आधारित होते हैं। क्योंकि यह अन्योन्य प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करते हैं। इसलिए ही इनका उपयोग केवल प्रत्यावर्ती धारा में ही किया जाता है। दिष्ट धारा में इनका उपयोग नहीं किया जाता है।
ट्रांसफार्मर के प्रकार :-
ट्रांसफार्मर प्रत्यावर्ती धारा के विभव को परिवर्तित करने में प्रयुक्त किए जाते हैं। इसी के आधार पर ट्रांसफार्मर दो प्रकार के होते हैं।
1. अपचायी ट्रांसफार्मर
2. उच्चायी ट्रांसफार्मर
1. अपचायी ट्रांसफार्मर
इस प्रकार के ट्रांसफार्मर उच्च विभव वाली निर्बल प्रत्यावर्ती धारा को निम्न विभव वाली प्रबल विद्युत धारा में परिवर्तित करता हैं। इन ट्रांसफॉर्मर में प्राथमिक कुंडली की तुलना में द्वितीयक कुंडली में फेरों की संख्या कम होती है।
2. उच्चायी ट्रांसफार्मर
इस प्रकार के ट्रांसफार्मर निम्न विभव वाली प्रबल प्रत्यावर्ती धारा को उच्च विभव वाली निर्बल विद्युत धारा में परिवर्तित करता हैं। इन ट्रांसफॉर्मर में प्राथमिक कुंडली की तुलना में द्वितीयक कुंडली में फेरों की संख्या अधिक होती है।
ट्रांसफार्मर की रचना :-
ट्रांसफार्मर में दो कुंडलियां होती है जो एक दूसरे से विद्युत रोधी होती हैं। यह एक नर्म लोहे की क्रोड पर लिपटी होती हैं। जिसमें एक कुंडली दूसरी कुंडली के ऊपर लिपटी होती है। अथवा दोनों कुंडलियां लोहे की क्रोड की अलग-अलग भुजाओं पर लिपटी होती हैं। इन कुंडलियों में से एक कुंडली में तांबे के मोटे तार के कम फेरे होते हैं जबकि दूसरी कुंडली में तांबे के पतले तार के अधिक फेरे होते हैं। Np फेरे वाली कुंडली को प्राथमिक कुंडली कहते हैं। तथा Ns फेरे वाली कुंडली को प्राथमिक कुंडली कहते हैं। प्रायः प्राथमिक कुंडली निवेशी कुंडली होती है एवं द्वितीयक कुंडली ट्रांसफार्मर की निर्गत कुंडली होती है।
10. ट्रांसफार्मर की कार्य विधि या सिद्धांत तथा उपयोग बताइए |
उत्तर :- ट्रांसफार्मर की कार्य विधि या सिद्धांत :-
जब ट्रांसफार्मर की प्राथमिक कुंडली को प्रत्यावर्ती धारा स्रोत से जोड़ा जाता है। तो प्राथमिक कुंडली में धारा प्रवाहित होने लगती है। तब प्रत्यावर्ती धारा के प्रत्येक चक्र में नर्म लोहे की क्रोड एक बार एक दिशा में तथा दूसरी बार दूसरी दिशा में चुंबकित हो जाती है। अब चूंकि द्वितीयक कुंडली भी प्राथमिक कुंडली की क्रोड से जुड़ी हुई है अतः क्रोड के बार-बार एक दूसरी दिशा में चुंबकित होने के कारण इससे बद्ध चुंबकीय फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होता रहता है। अतः विद्युत चुंबकीय प्रेरण के कारण द्वितीयक कुंडली में भी उसी आवृत्ति का विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है।
माना प्राथमिक व द्वितीयक कुंडली में तार के फेरों की संख्या क्रमशः Np व Ns हैं। एवं इससे परिबद्ध चुंबकीय फ्लक्स B है। तो फैराडे के नियम के अनुसार
प्राथमिक कुंडली में प्रेरित विद्युत वाहक बल
ep = – Np dBdt
तथा द्वितीयक कुंडली में प्रेरित विद्युत वाहक बल
es = – Ns dBdt
दोनों समीकरणों की आपस में तुलना करने पर
epes = NpNs
ट्रांसफार्मर के उपयोग :-
ट्रांसफार्मर का उपयोग अनेक स्थानों पर किया जाता है।
बिजली घरों में उत्पन्न विद्युत ऊर्जा को शहरों के घरों में तार द्वारा ट्रांसफार्मर से होते हुए भेजा जाता है। भारत में प्रायः 220 वोल्ट पर विद्युत धारा की आवश्यकता होती है।
एक आदर्श ट्रांसफार्मर वही है जिसकी प्राथमिक और द्वितीयक कुंडली का प्रतिरोध शून्य होता हो। एवं क्रोड में कोई ऊर्जा की हानि न होती हो।
ट्रांसफार्मर में ऊर्जा हानि का मुख्य कारण कुंडलियों का तापमान और भंवर धाराओं का उत्पन्न होना होता है।
11. चोक कुंडली की संरचना , सिद्धांत, शक्ति गुणांक तथा उपयोग का वर्णन कीजिए |
उत्तर :-
चोक कुंडली की संरचना :-
यह एक शून्य प्रतिरोध तथा उच्च प्रेरकत्व की कुंडली होती है। जो तांबे के मोटे विद्युतरोधी तार के अनेकों फेरों को पतली लोहे की क्रोड के ऊपर से लपेटकर बनाई जाती है।
कुंडली का प्रतिरोध शून्य होने का कारण कुंडली में प्रयुक्त तांबे का मोटा तथा विद्युत रोधी तार करने से होता है एवं इसके विपरीत तार के फेरों की संख्या अधिक एवं लोहे की क्रोड प्रयुक्त करने के कारण कुंडली का प्रेरकत्व उच्च हो जाता है।
चोक कुंडली का सिद्धांत :-
चोक कुंडली का प्रतिरोध शून्य होता है तथा इसका प्रेरकत्व बहुत उच्च होता है। चोक कुंडली के द्वारा बिना किसी ऊर्जा की हानि किए परिपथ में धारा की प्रबलता को नियंत्रित किया जा सकता है। चोक कुंडली इसी सिद्धांत पर कार्य करती है। चोक कुंडली के कार्य करने का सिद्धांत वाटहीन धारा के सिद्धांत पर आधारित है।
चोक कुंडली का शक्ति गुणांक :-
चूंकि चोक कुंडली में केवल प्रतिरोध R तथा प्रेरकत्व L ही प्रयुक्त होता है। इसलिए चोक कुंडली की प्रतिबाधा
Z = R2 + L2
हम जानते हैं कि चोक कुंडली का प्रतिरोध लगभग शून्य होता है। एवं इसका प्रेरकत्व बहुत उच्च होता है। यह तो हम पढ़ ही चुके हैं कि जब किसी परिपथ में केवल प्रेरकत्व L उपस्थित होता है। तो परिपथ में ऊर्जा क्षय नगण्य (शून्य) होता है। अतः चोक कुंडली एक ऐसा LR परिपथ है। जिसमें ऊर्जा का क्षय बहुत कम होता है। तो
LR परिपथ में औसत शक्ति क्षय
P = Vrms × irms × cosΦ
जहां cosΦ शक्ति गुणांक है। तो
cosΦ = RZ
cosΦ = R R2 + L2
चूंकि चोक कुंडली का प्रतिरोध लगभग शून्य हो तथा प्रेरकत्व बहुत उच्च हो, तब शक्ति गुणांक
cosΦ = 0 (लगभग)
अतः इस प्रकार चोक कुंडली में औसत शक्ति क्षय लगभग शून्य ही होता है।
चोक कुंडली का उपयोग :-
चोक कुंडली का उपयोग केवल प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में ही किया जाता है। दिष्ट धारा परिपथों (DC) में इसका उपयोग नहीं किया जाता है।
12. अनुनादी परिपथ का वर्णन कीजिए |
उत्तर :-
अनुनादी परिपथ प्रकार :-
अनुनादी परिपथ दो प्रकार के होते हैं।
1. श्रेणी अनुनादी परिपथ
2. समांतर अनुनादी परिपथ
1. श्रेणी अनुनादी परिपथ
इसमें L, C तथा R तीनों को श्रेणी क्रम में संयोजित किया जाता है। श्रेणी अनुनादी परिपथ में प्रतिबाधा न्यूनतम तथा धारा अधिकतम होती है।
2. समांतर अनुनादी परिपथ
इसमें L व C समांतर क्रम में संयोजित होते हैं। तथा R दोनों शाखाओं में लगा होता है। समांतर अनुनादी परिपथ में प्रतिबाधा अधिकतम तथा धारा न्यूनतम होती है।
अनुनादी परिपथ :-
जब प्रेरण प्रतिघात XL संधारित्र प्रतिघात XC के बराबर होता है। तथा परिपथ की प्रतिबाधा प्रतिरोध के बराबर होती है। तब परिपथ को अनुनादी परिपथ कहते हैं।
माना यदि प्रेरण प्रतिघात XL तथा संधारित्र प्रतिघात XC बराबर है तो परिपथ की प्रतिबाधा
Z = R2 - XL-XC2
चूंकि XL = XC है तो प्रतिबाधा
Z = R2 - XL-XC2
Z = R
यही अनुनादी परिपथ होने की शर्त है।
13. अनुनादी आवृत्ति के सूत्र का निगमन कीजिए |
उत्तर :- अनुनादी आवृत्ति :-
जब प्रेरण प्रतिघात XL संधारित्र प्रतिघात XC के बराबर होता है। तो परिपथ की प्रतिबाधा Z का मान शून्य हो जाता है। तब इस स्थिति में धारा का आयाम अनंत हो जाता है तब यह विद्युत अनुनाद की स्थिति होती है। अतः इस प्रकार विद्युत अनुनाद की स्थिति में उत्पन्न होने वाली आवृत्ति को अनुनादी आवृत्ति कहते हैं।
अर्थात् अनुनाद की अवस्था में प्रेरकत्व के कंपन की आवृत्ति को अनुनादी आवृत्ति कहते हैं।
अनुनादी आवृत्ति का सूत्र : -
जब प्रेरण प्रतिघात XL संधारित्र प्रतिघात XC के बराबर होता है। तो यह परिपथ अनुनादी परिपथ कहलाता है। इसमें परिपथ की प्रतिबाधा शून्य होती है।
तब अनुनाद की स्थिति में
Z = XL – XC
चूंकि प्रतिबाधा Z = 0 है तो
0 = XL – XC
या XL = XC
प्रेरण प्रतिघात = संधारित्र प्रतिघात
XL= XC
चूंकि XL = ωL एवं XC = 1/ωC होता है तो
ωL = 1C
परन्तु ω परिपथ की कोणीय आवृत्ति होती है। जिसका मान ω = 2πf होता है तो
2πfL = 12fC
2πf × 2πf = 1LC
42f2 = 1LC
या f2 = 142LC
तब f = 14LC
f = 12 1LC
यहां f को परिपथ की अनुनादी आवृत्ति कहते हैं।
14. ट्रान्सफॉर्मर किस सिद्धान्त पर कार्य करता है ? दूर स्थानों तक ऊर्जा पहुँचाने में इसका उपयोग किस प्रकार किया जाता है ? उच्चायी तथा अपचायी ट्रान्सफॉर्मर में अन्तर लिखिए।
उत्तर: ट्रान्सफॉर्मर :-
ट्रान्सफॉर्मर अन्योन्य प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है। इसके प्राथमिक कुण्डली में प्रत्यावर्ती वि. वा. बल लगाने पर द्वितीयक कुण्डली में उसी आवृत्ति का बढ़ा हुआ या घटा हुआ प्रत्यावर्ती वि. वा. बल प्रेरित हो जाता है।
पॉवर हाउस में उत्पन्न विद्युत् धारा की प्रबलता अधिक होती है। इस धारा को इसी रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं पहुँचाया जा सकता, क्योंकि ऐसा करने से विद्युत् ऊर्जा का ऊष्मीय ऊर्जा में अपव्यय होने लगता है। अत: सर्वप्रथम उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर का उपयोग करके विद्युत् धारा का विभवान्तर बढ़ा दिया जाता है, जिससे धारा की प्रबलता कम हो जाती है। इस धारा को कम खर्चे में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाया जा सकता है। घरों में विद्युत् धारा देने के पहले अपचायी ट्रान्सफॉर्मर की सहायता से विभवान्तर को साधारण मान पर लाया जाता है।
उच्चायी और अपचायी ट्रान्सफॉर्मर में अन्तर-
उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर | अपचायी ट्रान्सफॉर्मर |
1. यह ट्रान्सफॉर्मर प्रत्यावर्ती विभवान्तर को बढ़ा देता है। | यह ट्रान्सफॉर्मर विभवान्तर को कम कर देता है। |
2. यह धारा की प्रबलता को घटा देता है। | यह धारा की प्रबलता को बढ़ा देता है। |
3. इसकी द्वितीयक कुण्डली में फेरों की संख्या प्राथमिक कुण्डली से अधिक होती है। | इसकी द्वितीयक कुण्डली में फेरों की संख्या प्राथ मिक कुण्डली से कम होती है। |
4. इसका परिणमन अनुपात 1 से अधिक होता है। | इसका परिणमन अनुपात 1 से कम होता है |
15.ट्रान्सफॉर्मर में किन-किन कारणों से ऊर्जा क्षय होता है तथा इन्हें किस प्रकार कम किया जा सकता है ?
उत्तर: ट्रान्सफॉर्मर में निम्नानुसार ऊर्जा क्षय होता है-
(i) ताम्र ह्रास – ट्रान्सफॉर्मर की प्राथमिक एवं द्वितीयक कुण्डलियों में विद्युत् धारा प्रवाहित करने पर जूल प्रभाव के कारण उनमें ऊष्मा उत्पन्न होती है। इस ऊष्मा का मान I2R होता है, जहाँ I प्रवाहित होने वाली धारा की प्रबलता तथाR प्रतिरोध है। ऊष्मा के रूप में ऊर्जा के इस ह्रास को ताम्र ह्रास कहते हैं। इसे दूर नहीं किया जा सकता।
(ii) लौह हास-क्रोड में भँवर धाराएँ उत्पन्न होने के कारण होने वाली ऊर्जा ह्रास को लौह ह्रास कहते हैं। इस हास के मान को कम करने के लिए क्रोड को पटलित बनाया जाता है।
(iii) चुम्बकीय फ्लक्स क्षरण-प्राथमिक कुण्डली में विद्युत् धारा प्रवाहित करने पर उत्पन्न समस्त चुम्बकीय फ्लक्स द्वितीयक कुण्डली से बद्ध नहीं हो पाता । अत: कुछ ऊर्जा का ह्रास हो जाता है। ऊर्जा के इस ह्रास को चुम्बकीय फ्लक्स क्षरण कहते हैं। इसे कम करने के लिए नर्म लोहे का क्रोड उपयोग में लाया जाता है।
(iv) शैथिल्य ह्रास- प्राथमिक कुण्डली में प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित करने पर क्रोड बार-बार चुम्बकित और विचुम्बकित होता रहता है, जिससे कुछ ऊर्जा का ह्रास होता रहता है। इस हास को शैथिल्य ह्रास कहते हैं। शैथिल्य ह्रास को कम करने के लिए नर्म लोहे का क्रोड प्रयुक्त किया जाता है।
16. (a) किसी तार में √2 ऐम्पियर की वर्ग माध्य मूल मान प्रत्यावर्ती धारा बह रही है। इसका अधिकतम (शिखर) मान कितना होगा?
(b) घरेलू प्रत्यावर्ती विभव का मान 220 वोल्ट होता है। इसका अधिकतम मान क्या होगा?
उत्तर:
(a) प्रत्यावर्ती धारा का अधिकतम (शिखर) मान
I0= √2 × वर्ग माध्य मूल मान (Irms)
I0 = √2 × √2 ऐम्पियर
I0 = 2 ऐम्पियर।
(b) प्रत्यावर्ती विभव का वर्ग माध्य मूल मान
Vrms = V02
यहाँ Vrms= 220 वोल्ट
अतः Vrms = 220 / √2
Vrms = 220 / 1.414
Vrms = 311.08 वोल्ट।
17. एक अपचायी ट्रांसफॉर्मर लाइन वोल्टता को 2200 वोल्ट से 220 वोल्ट करता है। प्राथमिक कुंडली में 5000 फेरे हैं। ट्रांसफॉर्मर की दक्षता 90% एवं निर्गत शक्ति 8 किलोवॉट है। निम्न की गणना कीजिए-
(i) द्वितीयक कुंडली में फेरों की संख्या,
(ii) निवेशी शक्ति।
उत्तर :-
दिया है – Vp = 2200 वोल्ट
Vs = 220 वोल्ट,
Np = 5000
η = 90%
निर्गत शक्ति = 8 किलोवॉट = 8 × 103 वॉट
(i) NsNp = VsVp
Ns = VsVp Np
Ns = 22022005000
Ns = 500 फेरे
(ii)
दक्षता () =निर्गत शक्तिनिवेश शक्ति
निवेश शक्ति = निर्गत शक्ति
= 810390100
= 8.89103 वॉट
18. प्रत्यावर्ती धारा क्या है ? प्रत्यावर्ती धारा के पूर्ण चक्कर के लिए औसत मान ज्ञात कीजिए |
उत्तर: प्रत्यावर्ती धारा वह धारा है जिसका मान और दिशा समय के साथ आवर्त रूप में बदलते रहते हैं। यह धारा दिष्टधारा से भिन्न होती है क्योंकि दिष्टधारा की दिशा नहीं बदलती है जबकि प्रत्यावर्ती धारा की दिशा आवर्त रूप से बदलती रहती है।
इसके तात्कालिक मान का समीकरण
I0 = I0 sin ωt से निरूपित किया जाता है।
जहाँ I0 = शिखर मान
I = तात्कालिक मान है।
प्रत्यावर्ती धारा के पूर्ण चक्कर के लिए औसत मान :-
Iav = 0Tdq0Tdt
Iav = 0TL.dtT
Iav = 0TI0sint.dtT
Iav = I0T -cos t T0
Iav = I0T cos2T.T -COS 0
Iav = - I021-1
Iav = 0
19. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
(a) क्या किसी ac परिपथ में प्रयुक्त ताक्षणिक वोल्टता परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़े गए अवयवों के सिरों पर तात्क्षणिक वोल्टताओं के बीजगणितीय योग के बराबर होता है? क्या यही बात rms वोल्टताओं में भी लागू होती है?
(b) प्रेरण कुंडली के प्राथमिक परिपथ में एक संधारित्र का उपयोग करते हैं।
(c) एक प्रयुक्त वोल्टता संकेत एक dc वोल्टता तथ उच्च आवृत्ति के एक ac वोल्टता के अध्यारोपण से निर्मित है। परिपथ एक श्रेणीबद्ध प्रेरक तथा संधारित्र से निर्मित है। दर्शाइए कि dc संकेत C तथा ac संकेत के सिरे पर प्रकट होगा।
(d) एक लैम्प में श्रेणीक्रम में जुड़ी चोक को एक dc लाइन से जोड़ा गया है। लैम्प तेजी से चमकता है। चोक में लोहे के क्रोड को प्रवेश कराने पर लैम्प की दीप्ति में कोई अन्तर नहीं पड़ता है। यदि एक ac लाइन से लैम्प का संयोजन किया जाए तो तद्नुसार प्रेक्षणों की प्रागुक्ति कीजिए।
(e) ac मेंस के साथ कार्य करने वाली फ्लोरोसेंट ट्यूब में प्रयुक्त चोक कुंडली की आवश्यकता क्यों होती है? चोक कुंडली के स्थान पर सामान्य प्रतिरोधक का उपयोग क्यों नहीं होता?
उत्तर :-
(a) हाँ, परन्तु यह तथ्य rms वोल्टताओं के लिए सत्य नहीं है क्योंकि विभिन्न अवयवों की rms वोल्टताएँ समान कला में नहीं होती।
(b) संधारित्र को जोड़ने से, परिपथ को तोड़ते समय चिनगारी देने वाली धारा संधारित्र को आवेशित करती है, अत: चिनगारी नहीं निकल पाती।
(c) संधारित्र dc सिग्नल को रोक देता है, अत: dc सिग्नल वोल्टता संधारित्र के सिरों पर प्रकट होगा जबकि ac सिग्नल प्रेरक के सिरों पर प्रकट होगा।
(d) dc लाइन के लिए v = 0.
अत: चोक की प्रतिबाधा XL = 2πvL = 0
अतः चोक दिष्ट धारा के मार्ग में कोई रुकावट नहीं डालती, इससे लैम्प तेज चमकता है।
ac लाइन में चोक उच्च प्रतिघात उत्पन्न करती है (L का मान अधिक होने के कारण), अत: लैम्प में धारा घट जाती है और उसकी चमक मद्धिम पड़ जाती है।
(e) चोक कुंडली एक प्रेरक का कार्य करती है और बिना शक्ति खर्च किए ही धारा को कम कर देती है। यदि चोक के स्थान पर प्रतिरोधक का प्रयोग करें तो वह धारा को कम तो कर देगा परन्तु इसमें वैद्युत शक्ति ऊष्मा के रूप में व्यय होती रहेगी।
20. ट्रांसफार्मर के सिद्धांत का वर्णन कीजिए | एक शक्ति संप्रेषण लाइन अपचायी ट्रांसफॉर्मर में जिसकी प्राथमिक कुंडली में 4000 फेरे हैं, 2300 वोल्ट पर शक्ति निवेशित करती है। 230 वोल्ट की निर्गत शक्ति प्राप्त करने के लिए द्वितीयक में कितने फेरे होने चाहिए?
उत्तर :- ट्रांसफार्मर का सिद्धांत :-
जब ट्रांसफार्मर की प्राथमिक कुंडली को प्रत्यावर्ती धारा स्रोत से जोड़ा जाता है। तो प्राथमिक कुंडली में धारा प्रवाहित होने लगती है। तब प्रत्यावर्ती धारा के प्रत्येक चक्र में नर्म लोहे की क्रोड एक बार एक दिशा में तथा दूसरी बार दूसरी दिशा में चुंबकित हो जाती है। अब चूंकि द्वितीयक कुंडली भी प्राथमिक कुंडली की क्रोड से जुड़ी हुई है अतः क्रोड के बार-बार एक दूसरी दिशा में चुंबकित होने के कारण इससे बद्ध चुंबकीय फ्लक्स में लगातार परिवर्तन होता रहता है। अतः विद्युत चुंबकीय प्रेरण के कारण द्वितीयक कुंडली में भी उसी आवृत्ति का विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है।
माना प्राथमिक व द्वितीयक कुंडली में तार के फेरों की संख्या क्रमशः Np व Ns हैं। एवं इससे परिबद्ध चुंबकीय फ्लक्स B है। तो फैराडे के नियम के अनुसार
प्राथमिक कुंडली में प्रेरित विद्युत वाहक बल
ep = – Np dBdt
तथा द्वितीयक कुंडली में प्रेरित विद्युत वाहक बल
es = – Ns dBdt
दोनों समीकरणों की आपस में तुलना करने पर
epes = NpNs
हल :
दिया है : Np = 4000,
Vp= 2300 वोल्ट,
Vs = 230 वोल्ट,
Ns= ?
सूत्र NsNp = VsVp से.
द्वितीयक कुंडली में फेरों की संख्या
Ns = VsVp Np
Ns = 2302300 ×4000
Ns =400 फेरे
21.एक परिपथ को जिसमें 80 मिलीहेनरी का एक प्रेरक तथा 60 uF का संधारित्र श्रेणीक्रम में है 230 वोल्ट, 50 हर्ट्स की आपूर्ति से जोड़ा गया है। परिपथ का प्रतिरोध नगण्य है।
(a) धारा का आयाम तथा rms मानों को निकालिए।
(b) हर अवयव के सिरों पर विभवपात के rms मानों को निकालिए।
(c) प्रेरक में स्थानान्तरित माध्य शक्ति कितनी है?
(d) संधारित्र में स्थानान्तरित माध्य शक्ति कितनी है?
(e) परिपथ द्वारा अवशोषित कुल माध्य शक्ति कितनी है? [माध्य में यह समाविष्ट है कि इसे ‘पूरे चक्र’ के लिए लिया गया है।]
हल :
दिया है : L = 80 × 10-3 हेनरी,
C = 60 × 10-6 F,
Vrms = 230 वोल्ट,
v = 50 हर्ट्स
(a) प्रेरण प्रतिघात XL = 2 πvL = 2 × 3.14 × 50 × 80 × 10-3 = 25.12Ω
धारितीय प्रतिघात XC = 12 πvC = 12 3.1450 60 × 10-6
XC = 53.07Ω
∴ परिपथ की प्रतिबाधा Z = XC – XL = 53.07 – 25.12 = 27.95 ≈ 28Ω
∴ परिपथ में धारा irms= VrmsZ = 23028 = 8.21ऐम्पियर।
धारा का शिखर मान i0 = irms√2 = 8.21 × 1.414 = 11.60 ऐम्पियर।
(b) प्रेरक के सिरों पर विभवपात VL = irms x XL = 8.21 × 25.12 = 206 वोल्ट।
∴ संधारित्र के सिरों पर विभवपात VC= irms x XC = 8.21 × 53.07 = 436 वोल्ट।
(c) प्रेरक के लिए धारा तथा विभवान्तर के बीच कलान्तर Φ = 2
प्रेरक में माध्य शक्ति PL = Vrms × irms × cos 2 = 0
(d) संधारित्र के लिए धारा तथा विभवान्तर के बीच कलान्तर Φ = 2
∴ संधारित्र में माध्य शक्ति PC = Vrms × irms × cos 2 = 0
(e) परिपथ द्वारा अवशोषित माध्य शक्ति भी शून्य होगी।
22.प्रतिरोध पर प्रयुक्त ac वोल्टता तथा प्रेरक पर प्रयुक्त ac वोल्टता का वर्णन करें |
उत्तर :-
प्रतिरोध पर प्रयुक्त ac वोल्टता :-
जब प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में केवल प्रतिरोध R होता है। तब प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रत्यावर्ती वोल्टता तथा प्रत्यावर्ती धारा दोनों समान कला में होते हैं।
तब इनके प्रत्यावर्ती धारा तथा प्रत्यावर्ती वोल्टता के समीकरण निम्न प्रकार प्राप्त होते हैं।
प्रत्यावर्ती वोल्टता V =Vmsinωt
प्रत्यावर्ती धारा i = im sinωt
अर्थात प्रत्यावर्ती वोल्टता तथा प्रत्यावर्ती धारा दोनों साथ-साथ न्यूनतम तथा अधिकतम मान प्राप्त करेंगी। इससे स्पष्ट होता है कि वोल्टता एवं धारा एक दूसरे के साथ समान कला में हैं।
जहां ω कोणीय आवृत्ति है।
ओम के नियम से
V = iR
तो V = Vm sinωt में का V मान रखने पर
या iR = Vm sinωt
अब उपरोक्त समीकरण में i = im sinωt से i का मान रखने पर
Vm = imR
यही समीकरण ओम का नियम है।
प्रतिरोध प्रत्यावर्ती धारा (AC) तथा दिष्ट धारा (DC) दोनों प्रकार की वोल्टताओं के लिए समान रूप से लागू होता है। अर्थात प्रतिरोध ac और dc दोनों में समान रूप से कार्य करता है।
प्रेरकत्व पर प्रयुक्त ac वोल्टता :-
जब प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में केवल प्रेरकत्व L होता है। तब परिपथ में प्रत्यावर्ती वोल्टता, प्रत्यावर्ती धारा से π/2 आगे रहती है। अथवा इसे इस प्रकार भी लिख सकते हैं कि प्रत्यावर्ती धारा, प्रत्यावर्ती वोल्टता से 90° पीछे है।
तब इनके प्रत्यावर्ती धारा तथा प्रत्यावर्ती वोल्टता के समीकरण निम्न प्रकार प्राप्त होते हैं।
प्रत्यावर्ती वोल्टता V =Vm sin(ωt + π/2)
प्रत्यावर्ती धारा i = im sinωt
अथवा इन समीकरणों को इस प्रकार भी लिखा जा सकता है।
V = Vm sinωt
i = im sin(ωt – π/2)
दोनों समीकरणों की तुलना करने पर
im = VmL
जहां im प्रत्यावर्ती धारा का शिखर (महत्तम) मान है। चूंकि ωL राशि प्रतिरोध के सदृश है। इसे प्रेरण प्रतिघात कहते हैं। एवं इसे Lद्वारा प्रदर्शित किया जाता है। तब
L = ωL
प्रेरण प्रतिघात का मात्रक ओम होता है। जो कि प्रतिरोध का मात्रक है। एवं इसकी विमा भी वही होती हैं जो प्रतिरोध की विमा है।
जहां ω कोणीय वेग है। इसका मान 2πf होता है तो
L=2πfL
प्रेरकत्व का उपयोग केवल प्रत्यावर्ती धारा में ही किया जाता है। दिष्ट धारा में इसका उपयोग नहीं किया जाता है। क्योंकि दिष्ट धारा की आवृत्ति शून्य होती है जिस कारण दिष्ट धारा में प्रेरकत्व का प्रयोग करने के पश्चात परिपथ की आवृत्ति का मान शून्य हो जाता है।
दिष्ट धारा DC के लिए आवृत्ति f = 0 तब
L = 0
23. 440V पर शक्ति उत्पादन करने वाले किसी विद्युत संयंत्र से 15 km दूर स्थित एक छोटे से कस्बे में 220 V पर 800 kW शक्ति की आवश्यकता है। विद्युत शक्ति ले जाने वाली दोनों तार की लाइनों का प्रतिरोध 0.5 Ω प्रति किलोमीटर है। कस्बे को उप-स्टेशन में लगे 4000-220V अपचायी ट्रांसफॉर्मर से लाइन द्वारा शक्ति पहुँचती है।
(a) ऊष्मा के रूप में लाइन से होने वाली शक्ति के क्षय का आकलन कीजिए।
(b) संयंत्र से कितनी शक्ति की आपूर्ति की जानी चाहिए, यदि क्षरण द्वारा शक्ति का क्षय नगण्य है।
हल-
(a) तार की लाइनों का प्रतिरोध R = 30 km x 0.5 Ω km-1 = 15 Ω
उप-स्टेशन पर लगे ट्रांसफॉर्मर के लिए VP = 4000 V, VS = 220 V माना।
प्राथमिक परिपथ में धारा = iP
द्वितीयक परिपथ में धारा = is
ट्रांसफॉर्मर द्वारा द्वितीयक परिपथ में दी गई शक्ति
VS iS = 800 kW = 800103W
VP iP = VS iS से
प्राथमिक परिपथ में धारा
iP = VS iS VP
iP =8001034000 = 200 A
यह धारा सप्लाई लाइन से होकर गुजरती है।
लाइन में होने वाला शक्ति क्षय P =iP2x R = 2002 x 15 W = 600 kW
(b) संयंत्र द्वारा आपूर्ति की जाने वाली शक्ति = 800 kW + 600 kW = 1400 kW
24. अनुनादी आवृत्ति किसे कहते है ?एक श्रेणीबद्ध LCR परिपथ के लिए जिसमें L = 3.0 H, C = 27 µF तथा R = 7.4 Ω अनुनादी आवृत्ति तथा ९कारक निकालिए। परिपथ के अनुनाद की तीक्ष्णता को सुधारने की इच्छा से “अर्ध उच्चिष्ठ पर पूर्ण चौड़ाई” को 2 गुणक द्वारा घटा दिया जाता है। इसके लिए उचित उपाय सुझाइए।
उत्तर : अनुनादी आवृत्ति :-
जब प्रेरण प्रतिघात XL संधारित्र प्रतिघात XC के बराबर होता है। तो परिपथ की प्रतिबाधा Z का मान शून्य हो जाता है। तब इस स्थिति में धारा का आयाम अनंत हो जाता है तब यह विद्युत अनुनाद की स्थिति होती है। अतः इस प्रकार विद्युत अनुनाद की स्थिति में उत्पन्न होने वाली आवृत्ति को अनुनादी आवृत्ति कहते हैं।
अर्थात् अनुनाद की अवस्था में प्रेरकत्व के कंपन की आवृत्ति को अनुनादी आवृत्ति कहते हैं।
हल-
अनुनादी आवृत्ति r =1LC
r = 13.02710-6 = 111 rad s-1
तथा Q = XLR
Q = r LR
Q =1113.07.4 = 45
अर्ध उच्चिष्ठ पर पूर्ण चौड़ाई को आधा करने अथवा समान आवृत्ति के लिए Q को दोगुना करने हेतु प्रतिरोध R का आधा कर देना चाहिए।
25.(a) 30 μF का एक आवेशित संधारित्र 27 मिलीहेनरी के प्रेरित्र से जोड़ा गया है। परिपथ के मुक्त दोलनों की कोणीय आवृत्ति कितनी है?
(b) एक श्रेणीबद्ध LCR परिपथ को, जिसमें R= 20 Ω, L= 1.5 हेनरी तथा C = 35μF, एक परिवर्ती आवृत्ति को 200 वोल्ट ac आपूर्ति से जोड़ा गया है। जब आपूर्ति की आवृत्ति परिपथ की मूल आवृत्ति के बराबर होती है तो एक पूरे चक्र में परिपथ को स्थानान्तरित की गई माध्य शक्ति कितनी होगी?
हल :
(a) दिया है : C = 30 × 10-6F , L= 27 × 10-3 हेनरी
मुक्त दोलनों की कोणीय आवृत्ति
r =1LC
r =127 × 10-3 30 × 10-6
r = 1.1 × 103 रेडियन सेकण्ड-1
(b)
दिया है : R = 20Ω, L = 1.5 हेनरी, C = 35 μF, Vrms = 200 वोल्ट
जब आपूर्ति की आवृत्ति, परिपथ की मूल आवृत्ति के बराबर है तो
परिपथ की प्रतिबाधा Z = R = 20Ω (अनुनाद की स्थिति)
∴ परिपथ में धारा irms = VrmsZ = 20020 = 10 ऐम्पियर
जबकि शक्ति गुणांक cos Φ = cos 0° = 1
∴पूरे चक्र में परिपथ को स्थानान्तरित शक्ति
P= Vrms × irms× cos Φ = 200 × 10 × 1 = 2000 वाट।