बिहार बोर्ड कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 1 जीवों मे जनन लघु उत्तरीय प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. द्विखंडन को चित्र सहित परिभाषित कीजिए।
उत्तर: एककोशिकीय जीव कोशिका विभाजन की सामान्य प्रक्रिया के द्वारा विभाजीत होकर दो समान व बराबर की संतति बना लेता है इस क्रिया को द्विखंडन क्रिया कहते है।
उदाहरण: अमीबा मे अलैंगिक जनन द्विखंडन क्रिया के द्वारा सम्पन्न होता है।
प्रश्न 2. लैंगिक जनन क मुख्य कार्य बताए।
उत्तर: लैंगिक जनन के मुख्य कार्य:
1. एक माता पिता की सभी संततिया एक जैसी होते हुवे भी भिन्न होती है क्योंकि ये नर व मादा युग्मकों के संयोजन से बनती है व एनमे उपस्थित गुणसूत्र पर लक्षण के प्रभाव के जीन अलग अलग हो सकते है।
2. जीव द्रव्य दो युग्मकों से मिलता है अंत नई जीवनी सक्ति में दररिड़ता आती है।
प्रश्न 3. विषमजलिकता क्या है?
उत्तर: विषमजलिकता: जब किसी पादप जाति के युग्मक संयुग्मक होते हुवे भी कार्यिकी रूप में आसमान होने के कारण भिन्न प्रकार के पौधे से आने पर मिल सकते है इस क्रिया को विषमजलिकता कहा जाता है। उदाहरण: राइजोपस निगरिकेन्स
प्रश्न 4. द्विलिंगाश्रयी व एकलिंगाश्रयी मे भेद बताए।
उत्तर: द्विलिंगाश्रयी असे पादप होते है जिनमे नर व मादा पुष्प दोनों एक ही पादप पर लगे होते है। जबकि एकलिंगाश्रयी पादप मे नर व मादा पुष्प अलग अलग पादप पर लगे होते है। उदाहरण: नारियल द्विलिंगाश्रयी पादप है जबकि खजूर एकलिंगाश्रयी पादप है।
प्रश्न 5. भ्रूणपोष क्या है?
उत्तर: भ्रूणपोष: भ्रूण के पोषण के लिए बनने वाले एक विशेष उत्तक है, जो भ्रूण के परिवर्धन से लेकर नवोद्भिद बनने तक बीजांड या बीज के अंदर उपस्थित रह सकती है >
सभी अनवृतबीजियों मे अगुणित प्रकार किन्तु आवृतबीजियों में द्वितीयक निषेचन व त्रिसंयुग्मन के कारण त्रिगुणित भ्रूणपोष होता है।
प्रश्न 6. लैंगिक द्विरूपता क्या होती है? उदाहरण लेकर समझाए।
उत्तर: जन्तुओ मे बाह्य शरीरिकी व संरचना को देखकर लिंग भेद किया जा सकता है इसे लैंगिक द्विरूपता कहते है। मनुष्य स्त्री पुरुष में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों को देखकर लैंगिक द्विरूपता को समझ जा सकता है। जैसे स्त्री क अंदर स्तनों का उभरा हुआ होना व भग रूपी दरारों का उपस्थित होना व नर के अंतर्गत शिसन व वृषणकोष का पाया जाना।
प्रश्न 7. द्विखंडन व मुकुलन में अंतर स्पष्ट करे।
उत्तर: द्विखंडन में तो एक कोशिकीय जव कोशिका विभाजन के द्वारा विभाजित होकर दो समान व बराबर की संतति बना लती है जबकि मुकुलन मे जीव एक कलिका , एक उभहर के रूप में बनाता है जो धीरे धीरे बदती रहती है ओर मात्र जीव से अलग हो जाती है।
प्रश्न 8. लैंगिक व अलैंगिक जनन के मुख्य कार्य बताए।
उत्तर: लैंगिक जनन के मुख्य कार्य: एक माता पिता की सभी संततिया एक जैसी होते हुवे भी भिन्न होती है क्योंकि ये नर व मादा युग्मकों के संयोजन से बनती है व एनमे उपस्थित गुणसूत्र पर लक्षण के प्रभाव के जीन अलग अलग हो सकते है। अलैंगिक जनन के कार्य: संतति पूर्ण रूप से जनक के समान होती है। संतति कम समय मे निर्मित हो जाती है।
प्रश्न 9. जीवों मे अलैंगिक जनन की विधियों के नाम बताए ।
उत्तर: जीवों में अलैंगिक जनन -
सभी पादपों तथा कुछ निम्न श्रेणी के जन्तुओं में यह जनन अलैंगिक जनन विधि से होता है। इसमें सन्ततिः का विकास जन्तु के शरीर के किसी भी भाग से या विशेषीकृत रचना द्वारा होता है। इससे जनक तथा सन्तानों के आनुवंशिक पदार्थ में कोई अन्तर नहीं होता है। अलैंगिक जनन अधिकतर सभी पादपों में तथा निम्न कोटि के जन्तुओं में ही होता है, उच्च श्रेणी के जन्तुओं में इस प्रकार का जनन नहीं होता।
अलैंगिक जनन की निम्नलिखित विधियाँ होती है-
1. विखण्डन - (i) द्विविखण्डन
(ii) बहुविखण्डन
2. मुकुलन
3. अन्त: मुकुलन
4. विखण्डीजनन
5. बीजाणुओ द्वारा
6. वर्धी जनन या कायिक प्रवर्धन
प्रश्न 10. भूमिगत तनो के रूपांतर का संक्षिप्त मे विवरण दीजिए।
उत्तर: भूमिगत तने- तने के प्रमुख भूमिगत रूपान्तर इस प्रकार हैं-
1. प्रकन्द — सामान्यतः ये पृष्ठ से प्रतिपृष्ठ सतह की ओर चपटे तने हैं जो भूमि के अन्दर प्रायः क्षैतिज रूप में बढ़ते हैं। इनका रंग प्राय: भूरा या भूरा सफेद होता है। इन पर पर्व तथा पर्वसन्धियाँ स्पष्ट होती है। उदाहरण-अदरक(Zingiber officinale), हल्दी (Curcuma longa), केली (canna), फर्न आदि।
2. स्तम्भ कन्द - कुछ पौधों में भूमिगत शाखाओं के सिरे पर भोजन एकत्र होकर एक फूला हुआ व अनियमित आकार बन जाता है।जहाँ इनके सिरे फूल जाते हैं; जैसे—आलू (Solanum tuberosum), हाथी चोक (Helianthus tuberosus)। हाथी चोक में पर्वसन्धियाँ तथा शल्कपत्र काफी स्पष्ट होते हैं। आलू में अनेक छोटे-छोटे गड्ढे होते हैं। इनको 'आँख' कहते हैं
3. घनकन्द - यह भी प्रकन्द की तरह भोजन संग्रह कर अत्यधिक फूला भूमिगत तना है, जो उरदव रूप में वृद्धि करता है। इसमें एक अग्रस्थ कलिका होती है। उदाहरण- जमीकन्द (Amorphophalus campanians), केसर (Crocses sativus), कचालू (Colocasia) आदि।
4. शल्ककन्द — शल्ककन्द, वास्तव में, एक भूमिगत कलिका का रूपान्तर है जिसमें एक छोटा- संघनित तना होता है जिसे प्राय: बिम्ब कहा जाता है।
प्रश्न 11. जीवों मे लैंगिक जनन का संक्षिप्त विवरण दे।
उत्तर: जीवों में लैंगिक जनन-
जनन की इस महत्त्वपूर्ण क्रिया में यह आवश्यक है कि दो विशेष प्रकार की कोशिकायें, जिन्हें युग्मक कहते हैं, परस्पर संयुक्त हों। ये युग्मक प्रायः भिन्न-भिन्न आकार-प्रकार के होते हैं और इनमें से एकनर युग्मक तथा दूसरा मादा युग्मक कहलाता है। नर युग्मक सक्रिय व गतिशील होता है. और इसे प्रायः शुक्राणु कहते हैं। मादा युग्मक प्रायः निष्क्रिय व अगतिशील होता है और इसे अण्डाणु कहते हैं। शुक्राणु नर जननांग में व अण्डाणु मादा जननांग में बनते हैं। नर जननांग वाले जीव नर कहलाते हैं, जबकि मादा जननांग वाले जीव मादा कहलाते हैं। जिन जीवधारियों में नर व मादा जननांग अलग-अलग जीवधारियों में मिलते हैं उन्हें एकलिंगी कहते हैं, जैसे—मनुष्य, बिल्ली, हाथी, अनेक कोट आदि। इसके विपरीत अनेक जीव जातियों (जैसे—केंचुआ, हाइड्रा तथा अधिकतर पादपों) में, एक ही जीवधारी में नर व मादा दोनों प्रकार के जननांग होते हैं। ऐसे जीवों को उभयलिंगी या द्विलिंगी कहते है।लैंगिक जनन में शुक्राणु व अण्डाणु संयुग्मित होकर एक युग्मनज बनाते हैं जिसमें अनेक प्रकार के विभाजन होने से सन्तान का परिवर्द्धन होता है। जीवों में लैंगिक जनन की विधि किसी जीव के जीवन चक्र को बनाती है।
प्रश्न 12. कृत्रिम कायिक जनन की विधिया का नामांकन करे।
उत्तर: कायिक जनन की कृत्रिम विधीय निम्न प्रकार से है-
1. कलम लगाना -तने के कलिका युक्त छोटे-छोटे टुकड़े काट लिए जाते हैं। इन टुकड़ों को
कलम कहते हैं।
2. दाब लगाना- कुछ पौधों कुछ समय बाद इससे जड़े निकल आती है और उसके बाद नयी पीध बन जाती है। नमी को इसक से काटकर अलग कर देते हैं। यह वृद्धि करके पूर्ण पौधा बन जाता है।
3. गुटी बांधना- पुराने वृक्षों की मोटी व मजबूत शाखा को नीचे झुकाना तथा रोके रखना आसान नहीं होता है। अतः पौधे की किसी शाखा को छीलकर उस पर खादयुक्त मिट्टी लगाकर दाट लपेट दी जाती है। मिट्टी को नम रखने के लिए एक घड़े में छेद करके इसके ऊपर लटका देते हैं।
4. पैबन्द लगाना या रोपण (grafting)-
(i) कशा रोपण- पौधे के तिरछे कटे हुए तने, स्कन्ध पर उत्तम जाति के पौधे की तिरछी कटी शाखा, कलम को सावधानीपूर्वक जोड़कर बाँध दिया जाता है।
(iii) कलिका रोपण– वृक्ष के तने पर छाल की गहरायी तक एक तिरछी काट लगाते हैं और उसमें एक अच्छी जाति के पौधे की कलिका को रोपित करके भली प्रकार बाँध देते हैं। कुछ समय पश्चात् यह कलिका दूसरे पौधे से जुड़ जाती है।
प्रश्न 13. जीव के जीवन चक्र क विभिन्न प्रावस्था का नाम बताए ।
उत्तर: जीव का जीवन चक्र - जीवों के अंदर (सूक्ष्म या बड़ा, छोटे जीवन काल वाला या लम्बी जीवन अवधि वाला) उसके जीवन में सामान्यतः चार प्रावस्थायें होती हैं-
(i) भ्रूणावस्था
(ii) किशोरावस्था
(iii) जनन प्रावस्था या वयस्कता
(iv) जीर्यमान प्रावस्था
प्रश्न 14. जन्तुओ की जनन प्रावस्था को परिभाषित कीजीए।
उत्तर: जन्तुओ की जनन प्रावस्था के दौरान वह लैंगिक रूप से परिपक होते है तथा जनन की क्रिया सम्पन्न करने हेतु तैयार होता है। जन्तुओं में प्राय: किशोरावस्था की समाप्ति तथा वयस्कता प्राप्त करने के समय जन्तु के व्यवहार में परिवर्तन होता है।तब जनन प्रावस्था को देखा जा सकता है। अनेक जन्तुओं की आकारिकी तथा शारीरिकी में भी काफी परिवर्तन देखे जाते हैं। अकशेरुकियों में भी नर तथा मादा दोनों में अथवा एक में द्विरूपता स्पष्ट हो जाती है। कुछ जन्तुओं; जैसे- अनेक पक्षियों तथा अनेक स्तनधारियों में तो द्वितीयक लैंगिक लक्षण अत्यन्त स्पष्ट रूप से प्रकट हो जाते हैं। जन्तुओं में सन्तति उत्पन्न करने का समय भी भिन्न-भिन्न हो सकता है। कुछ जन्तु केवल विशेष मौसम में ही प्रजनन करते हैं, अन्य वर्ष के किसी भी हिस्से में प्रजनन के लिए समर्थ होते हैं। पक्षियों को देखें, उनमें से अनेक अपने प्राकृतिक आवास में तो विशेष मौसम में ही अण्डे देते हैं जबकि संरक्षित आवास में वे वर्ष भर अण्डे देते रहते हैं।
प्रश्न 15. लैंगिक जनन में संलयन पश्चात होने वाली घटनाओ को बताए।
उत्तर: संलयन पश्चात घटनायें – संलयन से बनी द्विगुणित कोशिका अर्थात निषेचित अण्ड या युग्मनज ही भावी सन्तति की प्राथमिक कोशिका होती है। कुछ निम्न श्रेणी के पौधों में यह तुरन्त अर्द्धसूत्री विभाजन से विभाजित होकर नया जीव बनाती है अतः ऐसा जीव अगुणित (n) होता है। अन्य पौधों तथा प्रायः सभी जन्तुओं में यह कोशिका विभाजित होकर भ्रूण (का निर्माण करती हैं। यह क्रिया भ्रूणोद्भिद या भ्रूणजनन कहलाती है।
प्रश्न 16. युग्मकों के विभीनन प्रकार कौन कौन से है?
उत्तर: संलयन की क्रिया के दौरान दो युग्मको के मिलने की घटना, जिससे युग्मनज का निर्माण होता है। यह घटना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस नयी बनने वाली द्विगुणित कोशिका में दोनों युग्मकों अर्थात् उनके जनकों से प्राप्त एक-एक सैंट गुणसूत्र होते हैं, जिससे नये बनने वाले जीव में दोनों जनकों के लक्षण पुनः संयोजित होते हैं। मिलने वाले ये युग्मक समान आकार व व्यवहार के होते हैं तो समयुग्मक, समान आकार किन्तु भिन्न व्यवहार के होते है तो असमयुग्म और जब दोनों ही लक्षण भिन्न होते हैं तो विषमयुग्मक कहलाते हैं।
प्रश्न 17. जीवों के लिए जनन क्यों अनिवार्य है? जनन की अच्छी विधि कौन-सी है और क्यों?
उत्तर: जनन, जीव के जीवन चक्र को चलाये रखने तथा वंश व जाति का अस्तित्व बनाये रखने के लिए अनिवार्य है। जनन की सबसे अच्छी विधि लैंगिक जनन है। इसी में लक्षणों की वंशागति में पुनसंयोजन तथा नवीनीकरण सम्भव होता है। यही जनन विविधता को जन्म देता है।
प्रश्न 18. गन्ने, आलू व ब्रायोपहीलम मे कायिक प्रवर्द्धन को बताए।
उत्तर- गन्ने में कायिक प्रवर्धन कलम विधि द्वारा होता है। Bryophyllum में प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन पत्ती द्वारा होता है। इसमें पत्ती की खाँचों से अपस्थानिक कलिकाएँ निकलती हैं जो नये पौधों को जन्म देती हैं। आलू का भूमिगत तना कायिक प्रवर्धन करता है।
प्रश्न 19. अण्डप्रजक प्राणियों की सन्तानों का उत्तरजीवन सजीव प्रजक प्राणियों की तुलना में अधिक जोखिमयुक्त क्यों होता है? व्याख्या करें।
उत्तर - अण्डे देने वाले जन्तु अपने अण्डे यद्यपि सुरक्षित स्थानों पर देते हैं किन्तु उनकी देखभाल प्रायः सम्भव नहीं होती है जबकि सजीव प्रजक अपने बच्चों की भली-भाँति देखभाल कर पाते हैं। इसके अतिरिक्त, सजीव प्रजकों में भ्रूणोद्भव के पश्चात् खतरे का अधिकतम समय शिशु मादा के शरीर के अन्दर ही पूरा कर लेता है तथा निश्चित अवधि एवं विकास के बाद ही मादा के शरीर से बाहर जन्म लेता है। अतः सही देखभाल तथा संरक्षण के कारण संजीव प्रजकों की उत्तरजीविता के सुअवसर बढ़ जाते हैं।
प्रश्न 20. द्विसूत्रण क्या होता है?
उत्तर: द्विसूत्रण, गुणसूत्र की द्विगुणित गुणसूत्र संख्या का पुनः स्थापित हो जाने का नाम है। यह घटना दो अगुणित गुणसूत्र संख्या वाले युग्मकों के संयुग्मन तथा विशेष रूप से केन्द्रक संलयन या उभयमिश्रण के द्वारा घटित होती है। द्विसूत्रण की घटना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना है। इसके बाद ही निर्मित युग्मनज (zygote) जनक प्राणी के समान द्विगुणित सन्तति का निर्माण कर सकता है।
प्रश्न 21.एक द्विलिंगी पुष्प कैसे होते है? उदाहरण भी बताए।
उत्तर- द्विलिंगी पुष्प- वह पुष्प जिसमें दोनों लैंगिक अंग नर व मादा दोनों के अर्थात् पुमंग तथा जायांग एक ही पुष्प में होते हैं।
उदाहरण:
(i) सरसों Brassica campestris)
(ii) मटर ( Pisum sativum),
(iii) कचनार (Bauhinia variegata),
(iv) धतूरा (Datura alba)
प्रश्न 22.अनिषेकजनन के लाभ बताए।
उत्तर: अनिषेकजनन लाभदायक है क्योंकि इसमें जननद्रव्य व्यर्थ नहीं जाता। उत्परिवर्तन द्वारा उत्पन्न लाभप्रद जीन्स पौढ़ी-दर-पीढ़ी उसी रूप में बने रहते है। सन्तति पूर्णतः जनकों के समान होती हैं। इनमें गुणसूत्रों के त्रिगुणित तथा असुगुणित संरूपण स्थापित हो जाते हैं। अगुणित अनिषेकजनन, लिंग निर्धारण के गुणसूत्री सिद्धान्त की पुष्टि करता है। यह एक सरल व सुगम विधि है, इस विधि द्वारा कम समय में ही अधिक संख्या में प्राणी उत्पन्न किए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त जिन प्राणियों में केवल मादा जन्तु ही पाये जाते हैं उनमें प्रजनन अनिषेकजनन द्वारा ही सम्भव होता है।
प्रश्न 23. क्लोन क्या होता है?
उत्तर: अलैंगिक जनन की क्रिया में जब कोई जीव जनन के लिए अपने शरीर के किसी भाग, कोशिका या कोशिकाओं अथवा विशेष निर्मित संरचना को प्रयोग करता है तथा इन संरचनाओं में कोई लैंगिक संलयन नहीं होता है। अलैंगिक जनन के फलस्वरूप उत्पन्न सन्ताने पूर्णतः अपने जनक जैसी ही होती हैं तथा इन सन्तानों में विभिन्नतायें होने की प्राय: सम्भावना नहीं होती है। अलैंगिक जनन इसीलिए महत्त्वपूर्ण जनन नहीं है क्योंकि सन्तति में किसी प्रकार के लक्षणों का पुनर्मिश्रण सम्भव नहीं है। इसीलिए अलैंगिक रूप से उत्पन्न संतति को क्लोन (clone) कहा जाता है।
प्रश्न 24. मुकुलन क्या होता है?
उत्तर: मुकुलन- इसमे सन्तति की उत्पत्ति मातृ कोशिका की एक छोटी-सी कलिका से होती है और बाद में यह मातृ कोशिका से अलग हो जाती है। उदाहरण-हाइड्रा, विभिन्न स्पंज आदि। एककोशिकीय जीवों जैसे—जीवाणु, यीस्ट आदि में केन्द्रक दो भागों में विभाजित हो जाता है तथा एक केन्द्रक पहले से बन रही मुकुल में आ जाता है। मुकुल, मातृ कोशिका से अलग होकर वृद्धि कर सकती है अथवा इसी पर लगे लगे नये मुकुल भी बना लेती है।
प्रश्न 25. कोनिडिया व चलबीजाणु को परिभाषित करे।
उत्तर: कोनिडिया: ये संरचनायें कवक सूत्र के सिरे पर बनने वाले अचलबीजाणु हैं जो बहिर्जात अवस्था में बनते हैं। कर्णाधर जिनके सिरे पर कोनिडिया बनते हैं, शाखित अथवा अशाखित हो सकते हैं। इस प्रकार की संरचनायें कवक सूत्र पर भित्ति में संकुचन के द्वारा बनती हैं। दूरस्थ अधिक कोनिडिया परिपक्व होते हैं और यहाँ से हटकर कवकजाल बनाने के लिए अंकुरित हो सकते हैं। उदाहरण- पाइथियम, पेनिसिलियम।
चलबीजाणु— ये अनेक कवकों में पाये जाते हैं। प्रत्येक चलबीजाणु एक भित्तिरहित कोशिका होती है। इसमें एक या दो कशाभिकायें होती हैं। ये चलबीजाणुधानी में उत्तपन होते है। पाइथियस, फाइटॉफ्थोरा आदि में पाये जाते हैं।