बिहार बोर्ड कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 11 जैव प्रोधोगिकी सिद्धांत ऍव् प्रक्रम लघु उत्तरीय प्रश्न
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. efb के अनुसार जैव जैव प्रोधोगिकी क्या है?
उत्तर: जैव प्रौद्योगिकी को विभिन्न स्वरूपों में परिभाषित किया गया है। यूरोपियन फेडरेशन ऑफ बायोटेक्नोलोजी (EFB = European Federation of Biotechnology) के अनुसार, “जैव रसायन, सूक्ष्म जीवविज्ञान, आनुवंशिकी और रसायन अभियान्त्रिकी के तकनीकी ज्ञान का एकात्मक सघन उपयोग ही जैव प्रौद्योगिकी है।
प्रश्न 2. जेल विधयुत कण संचलन किसे कहते है?
उत्तर: प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लिएज द्वारा डी० एन०ए० को काटने के परिणामस्वरूप डी० एन०ए० का विखण्डन हो जाता है। इन विखण्डों को जिस तकनीक द्वारा अलग किया जाता है उसे जेल वैद्युत कण संचलन (gel electrophoresis) कहते हैं।
प्रश्न 3. प्लसमिड की विशेषता को बताए।
उत्तर: प्लाज्मिड की एक विशेषता है कि इसका डी०एन०ए० विजातीय डी०एन०ए० खण्ड से जुड़कर भी दूसरी कोशिका में प्रवेश करने की क्षमता बनाये रखता है। इसमें प्लाज्मिड्स ही वेक्टर के रूप में प्रयुक्त होते हैं। सबसे पहला आनुवंशिक इंजीनियरिंग से तैयार किया गया वेक्टर प्लाज्मिड था जिसे ई० कोलाई के प्लाज्मिड से तैयार किया गया था।
प्रश्न 4. पारक्रमण किसे कहते हैं? यह किस प्रक्रिया में होता है?
उत्तर—पारक्रमण जीवाणुओं में लैंगिक जनन की अत्यन्त महत्वपूर्ण विधि है। इसकी खोज जिन्डर एवं लेडरबर्ग ने साल्मोनेला टाइफीम्यूरियम में की थी। इस प्रक्रिया में जीवाणुभोजी द्वारा एक जीवाणु के आनुवंशिक पदार्थ का दूसरे जीवाणु में स्थानान्तरण होता है। जब जीवाणुभोजी जीवाणु पर आक्रमण करता है तो यह अपना आनुवंशिक पदार्थ जीवाणु कोशिका में स्थानान्तरित करता है। इससे जीवाणु कोशिका में असंख्य जीवाणुभोजी बनते हैं जिनमें जीवाणु का भी DNA होता है। जब संतति जीवाणुभोजी, जीवाणु कोशिका से बाहर निकलते हैं और नयी जीवाणु कोशिका को संक्रमित करते हैं तो पहली जीवाणु कोशिका का D.N.A. नयी कोशिका में स्थानान्तरित हो जाता है। इस प्रकार जीवाणुभोजी एक वाहक का कार्य करते हैं।
प्रश्न 5. जीवाणु कोशिका से शुद्ध रूप में डी०एन०ए० अणु किस प्रकार अलग किया (निकाला) जाता है?
उत्तर- (i) जीवाणु कोशिका को लाइसोजाइम से पहले उपचारित किया जाता है जिससे कोशिका वृहद अणुओं को मुक्त कर देती है।
(ii) प्रोटीन्स को प्रोटिएज तथा अन्य अणुओं को आवश्यक तथा उचित एन्जाइम्स के द्वारा उपचारित किया जाता है।
(iii) आर०एन०ए० अणुओं को राइबोन्यूक्लिएज से हटाया जाता है।
इस प्रकार, अत्यधिक ठण्डे एथेनॉल के मिलाने से डी० एन०ए प्रक्षेपित हो जाता
प्रश्न 6. सामान्य पादप एवं ट्रान्सजेनिक पादप में विभेद कीजिये।
उत्तर- सामान्य पादप में कोई बाह्य जीन सम्मिलित नहीं होता है जबकि ट्रान्सजेनिक के जीनोम में बाह्य उपयोगी जीन जुड़ा रहता है।
प्रश्न 7 - पुनर्संयोजन तकनीक क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर- पुनसंयोजन तकनीक के विकसित होने से
(i) जीन को पृथक् कर उसमें निहित संकेत की व्याख्या की अभिव्यक्ति की क्रिया विधि के बारे में जानकारी होती है।
(ii) इस क्रिया विधि के नियमन के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध हुई है।
(iii) इसके प्रयोग से जीव के डी०एन०ए० में अन्य जीव के विशेष जीन को निकालकर जोड़ने की तकनीक सम्भव हुई है।
प्रश्न 8 - बैक्टीरिया में रूपान्तरण प्रयोग सर्वप्रथम किस वैज्ञानिक ने किया था तथा या निष्कर्ष निकाला ?
उत्तर- बैक्टीरिया में रूपान्तरण प्रयोग सर्वप्रथम फ्रेडरिक ग्रिफिथ ने किया था। डॉ० एन०ए० अणु प्राकृतिक रूप में पुनसंयोजित होकर नये लक्षण वंशागत करता है।
प्रश्न 9. आनुवंशिक (जीनी) इन्जीनियरिंग द्वारा उत्पादित दो व्यावसायिक उत्पादों के नाम बताइये।
उत्तर- जो व्यावसायिक पदार्थ हमें खनिज तेलों से प्राप्त होते हैं उन्हें जीनी इन्जीनियरिंग द्वारा जीवाणु इत्यादि उत्पन्न करके प्राप्त किया जा सकता है। मधुमेह रोग के लिए उपचार में प्रयुक्त इन्सुलिन का सफल उत्पादन किया गया है।
प्रश्न 10. — डी०एन०ए० अणुओं के विखण्डन के लिए किस एन्जाइम का उपयोग किया जाता है?
उत्तर - एन्जाइम निर्वधन अन्त: न्यूक्लिएज की सहायता से अपकेन्द्रण द्वारा प्राप्त अणुओं को छोटे-छोटे टुकड़ों में विखण्डित कर देते हैं। ये एन्जाइम डी०एन०ए० को एक निश्च बेस क्रम पर काटते है। वेगयानिक aब तक लगबग 250 इसे एन्जाइम पता लगा चुके है।
प्रश्न 11. जीन अभियांत्रिकी के भविष्य मे क्या उपयोग हो सकते है?
उत्तर: जीन (आनुवंशिक) अभियान्त्रिकी का भविष्य:
1. क्लोनों के रूप में सम्पूर्ण मानव जीन लाइब्रेरी बन जाने पर विभिन्न आनुवंशिकी रोगों के कारण दोषयुक्त जीनों का सामान्य स्वस्थ जोनो द्वारा प्रतिस्थापन सम्भव हो जायेगा और अनेक रोगों का उपचार भी सम्भव हो जायेगा।
2. उपादेयता को दृष्टि से अनेक महत्त्वपूर्ण जीनों; जैसे— नाइट्रोजन यौगिकीकरण जीन Nif जीन को मृदा में पाये जाने वाले कई अन्य जीवाणुओं में प्रतिस्थापित करके भूमि को उपजाऊ बनाने में व्यय व समय दोनों की बचत हो सकेगी।
3. कैन्सरग्रस्त ऊतक के सक्रिय अर्बुदी जीनों को सामान्य जीनों द्वारा प्रतिस्थापित करके कैन्सर रोग का निवारण सम्भव हो सकेगा।
4. आनुवंशिक (या जीन) अभियान्त्रिकी द्वारा ऐसे नव पादप एवं जन्तु प्राप्त हो सकेंगे जिनके गुण (लक्षण) पूर्व निर्धारित योजनानुसार होंगे।
प्रश्न 12. अनुप्रवाह संसाधन किसे कहते है?
उत्तर: अनुप्रवाह संसाधन: जैव संश्लेषण के बाद परिष्करण के बाद ही ये पदार्थ विपणन के लिए तैयार होते हैं। ये प्रक्रियायें भी लम्बे प्रक्रम से निकलती हैं। इनमें पृथक्करण व शोधन प्रक्रियायें सम्मिलित है। इन प्रक्रमों को सम्मिलित रूप से अनुप्रवाह संसाधन कहते हैं।
प्रश्न 13. पुनरयोजी प्रोटीन किसे कहते है?
उत्तर: लक्ष्य प्रोटीन की अभिव्यक्ति को प्रेरित करने वाली परिस्थितियों को अनुकूलतम बनाने के बाद कोई भी इनका व्यापक स्तर पर उत्पादन कर सकता है। किसी ऐसी जीन का इस प्रकार का प्रोटीन कूट लेखन क विषमजात परपोषी में अभिव्यक्त होता है तो इसे पुनसंयोगज प्रोटीन कहते हैं।
प्रश्न 14. कलोनिकरण किसे कहते है?
उत्तर: पोषक जीवाणु कोशिका को प्रयोगशाला में इसके संवर्धन माध्यम में रखकर इसकी संख्या में वृद्धि होने देते हैं। प्लाज्मिड को स्वनियंत्रित प्रकृति होने के कारण जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ इनकी कोशिकाओं में पुनसंयोजित प्लाज्मिड DNA की संख्या भी बढ़ती जाती है। ऐसे पुनसंयोजित DNA अणु को पुंजीकरण (क्लीनीकरण) कहते हैं। इस विधि द्वारा वांछित DNA अणुओं (जीन्स) की संख्या में वृद्धि कर ली जाती ह अर्थात् पुनर्संयोजित DNA अणु के तीव्र द्विगुणन द्वारा, इसकी अनेक प्रतिलिपियाँ प्राप्त कर ली जाती है।
प्रश्न 15. वाहक डीएनए अणु का चयन किस आधार पर किया जाता है?
उत्तर: वाहक DNA अणु का चयन निम्नलिखित लक्षणों के आधार पर किया जाता है-
(1) वाहक DNA आकार में छोटा होना चाहिए।
(ii) वाहक DNA में वही अनुक्रम होना चाहिए जो वांछित DNA पर है, जिससे प्रतिबन्धन अन्त: न्यूक्लिएक एन्जाइम वाहक व विदेशी DNA में समान विलोमपद का अनावरण कर सके।
((iii) वाहक DNA में वांछित DNA (जीन) को अपने में निवेशित कर लेने की क्षमता होनी चाहिए।
(iv) वाहक DNA में किसी पोषक कोशिका में प्रवेश करने और उसमें ठहरे रहने की क्षमता होन चाहिए, जिसमें कि यह स्वतन्त्र रूप से तीव्र द्विगुणन द्वारा अपनी अनेक प्रतिलिपियों का निर्माण कर सके।
प्रश्न 16. वर्णक योग्य चिह्नको को परिभाषित करे।
उत्तर: वरण योग्य चिह्नक—ori के साथ संवाहक को वरण योग्य चिह्नक की आवश्यकता होती है जो अरूपान्तरजों की पहचान एवं चयन करके उन्हें समाप्त करे तथा रूपान्तरजों की वृद्धि होने दे। रूपान्तरण ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा डी०एन०ए० के एक खण्ड को परपोषी जीवाणु में प्रवेश कराया जाता है। एम्पिसिलिन, क्लोरम्फैनीकॉल, टेट्रा साइक्लिन, कैनामाइसिन आदि प्रतिजैविक के प्रति प्रतिरोध कूटलेखित करने वाले जीन ईश्चेरिचिया कोलाई के लिए उपयोगी वरण योग्य चिह्नक है।
प्रश्न 17. प्रतिकृतियन की उत्पत्ति क्या होती है?
उत्तर: - ऐसा अनुक्रम जहाँ से प्रतिकृति का आरम्भ होता है अर्थात् जब कोई डी०एन०ए० खण्ड इस अनुक्रम से जुड़ता है तो परपोषी कोशिका के अन्दर प्रतिकृति कर सकता है। यहाँ नहीं यह अनुक्रम चूंकि जोड़े गये डी०एन०ए० के प्रतिरूपों की संख्या के नियन्त्रण के लिए भी उत्तरदायी है अत: इस वाहक (vector) के मूल (ori) को अधिक संख्या में प्रतिरूप बनाने में सहायक होना चाहिए।
प्रश्न 18. जैव जैव प्रोधोगिकी के मुख्य सिद्धांत बताए।
उत्तर: आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के विकास में दो विशिष्ट तकनीकों का महत्त्वपूर्ण स्थान है—
1. आनुवंशिक अभियान्त्रिकी—
आनुवंशिक पदार्थों (DNA / RNA) की रासायनिक संरचना में परिवर्तन करके इसे परपोषी जीवों में प्रवेश कराने की इस प्रकार की तकनीक के द्वारा जीव के लक्षण प्रारूप में परिवर्तन करना।
2. रासायनिक अभियान्त्रिकी - वांछित सूक्ष्म जीवों/सुकेन्द्रकीय कोशिकाओं के विभिन्न प्रक्रमों में अन्य सूक्ष्मजीवों से संदूषण रहित वातावरण निर्मित करके जैव प्रौद्योगिक उत्पादों; जैसे—टीको, विकरों, प्रतिजैविकों, आदि का निर्माण करना।
प्रश्न 19. जैव प्रोधोगिकी मे काम आने वाले आवश्यक एंजयं कौन कौन से है?
उत्तर: एन्जाइम्स- डी० एन०ए० पुनर्संयोजन तकनीक (आनुवंशिक अभियन्त्रण या जीन क्लोनिंग तकनीक) में निम्नलिखित एन्जाइम्स उपयोग में लाये जाते है-
(i) लाइसोजाइम एन्जाइम— यह कोशिका भित्ति को तोड़कर कोशिका का DNA प्राप्त करने में काम लाया जाता है।
(i) विदलन एन्जाइम- ये डी०एन०ए० अणु को वांछित खण्डों में तोड़ने का कार्य करते हैं। ये तीन प्रकार के होते है-
(a) एक्सोन्यूक्लीऐसेज- ये DNA के 5 या 3' सिरों पर न्यूक्लिओटाइड्स को अलग करते हैं।
(b) एण्डोन्यूक्लीऐसेज– ये DNA के बीच से टुकड़ो (खण्डों) में तोड़ते हैं, DNA अणु के सिरों पर नहीं।
(c) प्रतिबन्धन एण्डोन्यूक्लीऐसेज – ये DNA में विशेष न्यूक्लिओटाइड अनुक्रम को पहचानते हैं और DNA अणु के विभिन्न लम्बाई में टुकड़े कर देते हैं।
(iii) संश्लेषी एन्जाइम्स: ये DNA के संश्लेषण हेतु आवश्यक होते हैं। ये दो प्रकार के होते है--
(a) DNA पॉलीमॉसेज
(b) रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज
(iv) जोड़ने वाले एन्जाइम्स– इनके द्वारा टूटे हुए पूरक DNA खण्ड जुड़ते हैं। इन्हें ऊतक लाइगेस भी कहते है।
(v) क्षारीय फॉस्फेटेसेज – ये वृत्ताकार DNA के 5' सिरे से फॉस्फेट समूह को हटाते है, जिससे ये सिरे मिलकर पुनः वृत्ताकार गुणसूत्र बना सकें।
प्रश्न 20. लक्ष्य स्थल क्या होते है?
उत्तर: पहचान या लक्ष्य स्थल : प्रतिबन्धन एन्जाइम्स डी० एन०ए० अणुओं को छोटे टुकड़ों में निश्चित स्थान पर विशेष न्यूक्लियोटाइड अनुक्रम, जिस अनुक्रम पर ये श्रृंखला को विलगित करते हैं वह पहचान या लक्ष्य स्थल कहलाते हैं। यह और भी महत्त्वपूर्ण है कि ऐसा स्थल, दोनों सूत्रों में एक जैसा ही पढ़ा जाता है। जबकि एक सूत्र 5' - 3' दिशा में तथा दूसरा 3' - 5' दिशा में होता है।
प्रश्न 21. एपीसोम किसे कहते है?
उत्तर: कभी-कभी प्लाज्मिड जीवाणु किया जाता के साथ जुड़कर (अर्थात् समाकलित होकर) उसका एक भाग बन जाते हैं। इन्हें एपीसोम कहते है। इनकी उपस्थिति में जीवाणु कोशिका में लक्षण भी बदल जाते हैं।
प्रश्न 22। क्लोनइंग के साधन कौन कौन सेहै?
उत्तर: क्लोनइंग के साधन:
1. प्रतिकरतीयन की उत्पत्ति।
2. वर्ण योग्य चिह्नक
3. कलोनिग स्थल
प्रश्न 23. निवेशी निष्क्रियता किसे कहते है?
उत्तर: प्रतिजैविकों के इस प्रकार निष्क्रियण के कारण पुनर्संयोगज का चयन एक जटिल विधि है, क्योंकि इसमें दो प्लेटो, जिन पर भिन्न-भिन्न प्रतिजैविक रहता है, की साथ-साथ प्लेटिंग की आवश्यकता रहती है। इसी कारण वैकल्पिक वरणयोग्य चिह्नको का विकास हुआ जो पुनर्संयोगजों को अपुनसंयोगजों से इस आधार पर विभेद करता है कि वे वर्णकोत्पादकी पदार्थ की उपस्थिति में रंग पैदा करने में सक्षम होते है। इसमें से एक पुनसंयोगज डी०एन०ए० का बीटा गैलैक्टोसाइडेज एन्जाइम निष्क्रिय हो जाता है जिसे निवेशी निष्क्रियता कहते हैं।
प्रश्न 24. PCR क्या होता है?
उत्तर: DNA पॉलीमरेज एन्जाइम की सहायता से DNA के साँचा सूत्र सम्पूरक सूत्र का संश्लेषण करवाकर इसे सामान्य द्विसूत्री DNA खण्ड में बदल देते हैं। ये क्रियायें शृंखलाबद्ध होती हैं और पी०सी०आर० (PCR) कहलाती है जिसका अर्थ है पॉलिमरेज श्रृंखला अभिक्रिया । इस अभिक्रिया में उपक्रमकों अर्थात् छोटे रासायनिक संश्लेषित अल्पन्यूक्लियोटाइड् के दो समुच्चयों (sets) व डी०एन०ए० पॉलिमरेज एन्जाइम का उपयोग करते हुए इन विट्रो विधि द्वारा उपयोगी जीन की कई प्रतिकृतियों का संसलेशन होता है।
प्रश्न 25. पुनर्संयोजित DNA का पोषक कोशिका में स्थानान्तरण किस प्रकार से किया जा सकता है?
उत्तर: पुनसंयोजित प्लाज्मिड DNA अणुओं को पोषक कोशिका (ग्राही जीवाणु) में प्रविष्ट करा दिया जाता है। इ क्रिया को रूपान्तरण कहते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा पुनर्संयोजित DNA (वाहक या बेक्टर) कोशिका मिति व कोशिकाकला से स्थानान्तरित होकर पोषक जीवाणु कोशिका के कोशिकाद्रव्य में प्रवेश कर जाता है। ईश्चेरिचिया कोलाई जीवाणु को मुख्यतः पोषक कोशिका के रूप में प्रयोग किया जा है। आजकल बैसिलस सब्टिलिस तथा यीस्ट कोशिकाओं को भी पोषक के रूप में प्रयोग किया जाता है।