बिहार बोर्ड कक्षा 12 रसायन विज्ञान अध्याय 6 तत्त्वों के निष्कर्षण के सामान्य सिद्धांत दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. हेमाटाइट अयस्क से लोहे का निष्कर्षण धमन भट्टी से कैसे किया जाता है? धातुकर्म की व्याख्या करते हुए अभिक्रिया भी लिखें।
उत्तर⇒ लोहे का अयस्क हेमाटाइट (Fe2O3) है जिसमें मुख्य रूप से बालु सिलिका (SiO2) अशुद्धि होता है। हेमाटाइट (Fe2O3) को कोक (C) तथा चुना पत्थर ( CaCO3) के साथ वात्या भट्टी में डाला जाता है।
आयरन के ऑक्साइड अयस्कों को निस्तापन/भर्जन के द्वारा सांद्रण के उपरांत चुना पत्थर तथा कोक के साथ वाल्या भट्टी (धमन भट्टी) में ऊपर से डाला जाता है।
निस्तापन- अयस्क का निस्तापन किया जाता है जो फेरस ऑक्साइड को फेरिक ऑक्साइड में बदल देता है।
जारण- जारण के द्वारा वाष्पशील अशुद्धि को दूर किया जाता है तथा धातु ऑक्साइड को अपचयित किया जाता है।
4Fe(s)+O2(g)2Fe2O3(s)
S+O2(g)SO2(g)
4As+3O2(g)2As2O3(g)
वात्या भट्टी (धमन भट्टी) को निचली सतह पर होने वाली अभिक्रिया
C(s)+O2(g)CO2(g)
निचले स्तर का ताप 2170 k होता है।
मध्यम स्तर पर होने वाली प्रतिक्रिया
CaCO3(s)CaO(s)+CO2(g)
CaO (s)+SiO2CaSiO3
धातुमल कैल्शियम सिलिकेट
माध्यम स्तर के कोक (C) कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) से प्रतिक्रिया करती है तथा कार्बन मोनोऑक्साइड देती है तथा तापमान को गिरा देती है।
C(s)+CO2(g)2CO(g)
वात्या भट्टी के ऊपरी स्तर पर होने वाली प्रतिक्रिया जो तापमान 800 1100 k में होती है।
3Fe2O3(s)+CO(g)2Fe3O4+CO2+(g)
Fe3O+CO(g)3FeO+CO2(g)
FeO(s)+CO(g)FeO+CO2(g)
कार्बन मोनोऑक्साइड जो मध्यम स्तर में बनता है, अपचायक का कार्य करता है तथा हेमाटाइट से लोहे को पूर्णतः मुक्त कर देता है।
गलित लोहे के ऊपर धातुमल ( Ca Siog) तैरता रहता है, जिसे निकासी से अलग कर लिए जाता है।
वात्या भट्टी से प्राप्त लोहे में लगभग 40% कार्बन तथा अन्य अशुद्धियाँ जैसे S , P , Si , Mn सूक्ष्म मात्रा में उपस्थित रहते हैं। यह कच्चा लोहा के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 2. अमोनिया का औद्योगिक उत्पादन कैसे किया जाता है ?
उत्तर⇒ व्यापक स्तर पर अमोनिया हाबर प्रक्रम द्वारा बनाई जाती है।
N2(g)+3H2(g)2NH3(g)+4H2O(I)+Cr2O3
ला-शतैलिए सिद्धान्त के अनुसार उच्च दाब अमोनिया निर्मित करने के लिए अनुकूल होता है। अमोनिया के उत्पादन के लिए अनुकूलतम परिस्थितियाँ 200105 Pa वायुमंडल दाब, 700 K ताप तथा थोड़ी मात्रा में K2O तथा Al2O3 युक्त आयरन ऑक्साइड जैसे उत्प्रेरक का उपयोग होता है ताकि साम्य अवस्था प्राप्त करने की दर बढ़ाई जा सके।
प्रश्न 3. (क) ऑक्सीकरण अभिक्रिया से धातु निष्कर्षण कैसे किया जाता है ?
(ख) शोधन से आप क्या समझते हैं ? शोधन में उपयोग कुछ विधियों का वर्णन करें।
उत्तर⇒ (क) विशेषकर अधातुओं का परिष्करण ऑक्सीकरण पर निर्भर करता है।
उदाहरण- ब्राइन से क्लोरीन प्राप्त करना।
2Cl-(aq)+2H2O2OH-(aq)+H2(g)+Cl2(g)
G=+422 KJ
जब इसे Eमें बदलते हैं तब E=2.2 volt
वास्तव में यह 2.2 से ज्यादा विभव आवश्यकता होती है लेकिन वैद्युत अपघटन के लिए इस व्यवधान को दूर करने के लिए ज्यादा विभव की आवश्यकता होती है अतः वैद्युत अपघटन द्वारा Cl2 प्राप्त होती है NaOH उपोत्पाद के रूप में NaCl के लिए भी वैद्युत अपघटन किया जाता है। परन्तु इससे Na प्राप्त होता है न कि NaOH सोना-चाँदी आदि का धातु के निक्षालन विधि द्वारा प्राप्त करते हैं। यह भी एक ऑक्सीकरण अभिक्रिया है।
AgAg+ या AuAu+
4Au(s)+8CN-(aq)+2H2O(aq)+O2(g)4[Au(CN)2]-(aq)+4OH (aq)
2[Au(CN)2]-(aq)+Zn(s)2Au+[Zn(CN)4]2- (aq)
अभिक्रिया में जिंक अपचायक के रूप में कार्य करता है।
(ख) किसी विधि द्वारा उत्पन्न धातु पूर्ण शुद्ध नहीं होती। पूर्ण शुद्ध धातु प्राप्त करने के लिए विभिन्न विधियों का उपयोग किया जाता है। ये विधियाँ संयुक्त रूप से शोधन विधियाँ कहलाती है। जैसे- (i) आसवन (ii) द्रवगलन (iii) वैद्युत अपघटन (iv) मंडल परिष्करण (v) वाष्प प्रावस्था (vi) वर्णलेखिकी।
प्रश्न 4. हैबर विधि से अमोनिया गैस बनाने के सिद्धान्त को NH3 से HNO3में परिवर्तन करने के सिद्धांत और समीकरण को लिखिए।
उत्तर⇒ हैबर विधि-
इस विधि में अमोनिया गैस का उत्पादन सीधे नाइट्रोजन गैस और हाइड्रोजन गैस के संयोग से अधिक दाब (लगभग 200 वायु….) और कम तापक्रम ( 450C) पर उत्प्रेरक की उपस्थिति में किया जाता है।
N2+3H22NH3+Qk cal.
यह ऊष्माक्षेपी आयतन में संकुचन और उत्क्रमणीय रासायनिक प्रतिक्रिया है। इसलिए अमोनिया की अधिकतम मात्रा उच्च दाब, कम तापक्रम पर बन अमोनिया को निकालकर प्राप्त किया जाता है जिससे साम्य की दिशा अग्रगामी हो जाती है।
अमोनिया को नाइट्रिक अम्ल में परिवर्तन-
अमोनिया से नाइट्रिक अम्ल प्राप्त करने के लिए इसे Pt एस्बेस्टस उत्प्रेरक की उपस्थिति में ऑक्सीकरण कराते हैं जिससे नाइट्रीक ऑक्साइड गैस प्राप्त होता है।
4NH3+5O24NO+6H2O
नाइट्रिक ऑक्साइड ऑक्सीजन की अधिकता में NO2 में परिवर्तित होता है जो जल से प्रतिक्रिया कर HNO3 अम्ल बनाता है।
2NO2+O22NO2
3NO2+H2O2HNO3+NO
प्रश्न 5. धातु का नाम बतायें जो निम्न अयस्कों से प्राप्त होते हैं
(a) क्रायोलाइट (b) डोलोमाइट (c) कालामाइन (d) हेमाटाइट (e) मैलाकाइट।
उत्तर⇒ अयस्क – धातु
(a) क्रायोलाइट – ऐल्युमिनियम
(b) डोलोमाइट – कैल्सियम या मैग्नीशियम
(c) कालामाइन – जिंक
(d) हेमाटाइट – लोहा
(e) मैलाकाइट – कॉपर।
प्रश्न 6. धातुओं के निष्कर्षण के झाग उत्प्लावन विधि वर्णन करें।
उत्तर⇒ झाग प्लवन विधि - यह विधि सल्फाइड अयस्कों के सान्द्रण के लिए विशेष रूप से उपर्युक्त हैं यह विधि अशुद्धियों के कणों एवं अयस्क की जल एवं तेल के साथ गीले होने की विशेषता पर आधारित है। अयस्क तेल के साथ एवं गैंग कण पानी से गीला होता है। सल्फाइड अयस्क को चूर्ण करके जल से क्रिया करवाई जाती है। इससे एक लेई बनती है। इसको एक टैंक में डालकर जल मिलाया जाता हैं एक दूसरा पदार्थ ग्राही जैसे पोटेशियम ऐथिलजेन्ट या एमिल जेन्थेट इसमें मिलाया जाता है। टैंक की सामग्री को यान्त्रिक विलोडक एवं हवा के द्वारा कम दाब पर हिलाया जाता है। अयस्क के कण नीचे स्थित अयस्क की जलीय लेई में स्थित वायु के बुलबुलों
से जुड़ जाते हैं एवं सतह पर तैरते रहते हैं। यहाँ से इन तैरने वाले झागों को अलग किया जा सकता है। गैंग कण, जो तीव्रता से जल कणों के साथ जुड़े रहते हैं, टैंक के पेंदे में बैठ जाते हैं। इनको बाद में अलग कर लिया जाता है। झाग को दूर कर लिया जाता है। इससे सान्द्रित अयस्क प्राप्त किया जाता है। अयस्क जैसे कॉपर पाइराइट्स (CuFeS2) गैंलेना (PbS) एवं जिंक ब्लैंड (ZnS) को इस विधि द्वारा शुद्ध किया जाता है।
प्रश्न 7. चुम्बकीय सान्द्रण विधि का वर्णन करें।
उत्तर⇒ चुम्बकीय सान्द्रण -यह विधि लौह चुम्बकीय अयस्कों जैसे लोहा, टिनस्टोन, वचोल्फार्म आदि के लिए प्रयुक्त की जाती है; जब खनिज तो चुम्बक से आकर्षित होता है लेकिन गैंग नहीं।
इस विधि को प्रयोग चुम्बकीय अशुद्धियों में से अयस्क के पृथक्करण के लिए किया जाता है। पिसे हुए अयस्क को दो चक्क के ऊपर घूमने वाली बेल्ट पर डाला जाता है। दो चक्कों में से एक चुम्बकीय होता है। जैसे ही अयस्क विद्युतचुम्बकीय चक्का के ऊपर से गुजरता है, अचुम्बकीय अयस्क नीचे गिर जाते हैं एवं चुम्बकीय अशुद्धियाँ पहिया से आकर्षित होकर उससे चारों ओर घूमती रहती है। जब चुम्बकीय आकर्षण बल खत्म हो जाता है तो अशुद्धि एक ग्राही में इकट्ठी हो जाती है। टिनस्टोन अयस्क में उपस्थित चुम्बकीय अशुद्धि वोलफ्रेमाइट (FeWO4) को इस विधि द्वारा पृथक किया जाता है।
प्रश्न 8. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें :
(i) निस्तापन (ii) जारण
उत्तर⇒ (i) निस्तापन -वायु की अनुपस्थिति में इसके गलनांक से नीचे उच्च ताप पर गर्म करने की क्रिया निस्तापन कहलाती है। यह जलयोजित अयस्कों के लिए प्रयुक्त की जाती है। इस प्रक्रिया के द्वारा (a) नमी दूर हो जाती है। (b) गैसें बाहर निकलती है। (c) वाष्पशील अशुद्धियाँ दूर हो जाती है (d) समस्त पदार्थ छिद्रयुक्त हो जाता है ! (e) अयस्क का तापीय विघटन होता है।
जैसे—(a) CaCO3 (लाइमस्टोन) → CaO+CO2
(b) ZnCO3– (कैलेमाइन) → (मिलावट) →
2FeO3.3H2O (लिमोनाइट) →2Fe2O3+3H2O CuCO3. Cu(OH)2 (मेलेकाइट) → 2CuO+H2O+CO2
निस्तापन परवर्त्तनी भट्टियों में किया जाता है।
(ii) जारण - अकेले अयस्क या अयस्क में उपर्युक्त पदार्थ मिलाकर इसके गलनांक से नीचे वायु के आधिक्य में उच्च ताप पर गर्म करने की क्रिया जारण कहलाती है। भर्जन परावर्तन भट्टी या वात्या भट्टी में किया जाता है। जारण में (a) वाष्पशील अशुद्धियों जैसे S , As , Sb आदि ऑक्सीकृत होकर SO2 , As2O3 एवं Sb2O3आदि गैसों के रूप में मुक्त हो जाती है।
(b) सल्फाइड अयस्क उनके ऑक्साइडों में विघटित होकर SO2 मुक्त करते हैं।
(c) नमी दूर हो जाती है।
(d) समस्त पदार्थ छिद्रयुक्त हो जाता है एवं यह आसानी से अपचयित हो सकता है। जारण कई प्रकार का हो सकता है-
(a) ऑक्सीकारक जारण , (b) वात्य जारण , (c) अपचायक जारण , (d) सल्फेट जारण, (e) क्लोराइड जारण ।
प्रश्न 9. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें : (i) प्रगलन (ii) अपचयन
उत्तर⇒ (i) प्रगलन - प्रगलन वह प्रक्रिया है जिसमें अयस्क को गालक एवं अपचायक पदार्थ के साथ पिघलाया जाता है। प्रगलन क्रिया सामान्यतः कोयले को जलाकर या विद्युत ऊर्जा द्वारा उच्च ताप उत्पन्न करके वात्या भट्टी में सम्पन्न की जाती है।
अगलनीय अशुद्धि धातुमल में परिवर्तित हो जाती है एवं इसे हटा लिया जाता है।
CaO + SiO2 → CaSiO3
गालक आधात्री धातुमल
(Flux) (Cangue) (Slag)
FeO + SiO2 → FeSiO3
आधात्री गालक धातुमल
(Cangue) (Flux) (Slag)
परन्तु घोल में CO2 गैस देर तक प्रवाहित करने से चूना जल का दुधियापन समाप्त हो जाता है और पुनः स्वच्छ घोल प्राप्त होता है। ऐसा कैल्शियम बाइकार्बोनेट के बनने के कारण होता है जो जल में घुलनशील है।
CaCO3+H2O+CO2=Ca(HCO3)2(घुलनशील)
SO2 गैस के साथ ‘चूना जल परीक्षा करने पर भी पहले घोल का रंग दुधिया हो जाता है परन्तु देर तक SO2 गैस प्रवाहित करने पर पुनः स्वच्छ घोल प्राप्त होता है।
Ca(OH)2+SO2=CaSO3+H2O
(दुधिया अवक्षेप)
CaSO3+H2O+SO2=Ca(HSO3)2(घुलनशील)
इन्हीं कारणों से CO2 और SO2को पहचानने में भूल हो जाती है। पोटैशियम डाइक्रोमेट या पोटैशियम परमैंगनेट के जलीय घोल से इनकी जाँच करके इनमें अन्तर किया जा सकता है।
SO2 गैस को तनु अम्लीकृत पौटेशियम डाइक्रोमेट के नारंगी रंग के विलयन में प्रवाहित करने पर इसका रंग परिवर्ति होकर हरा हो जाता है।
K2Cr2O7+H2SO4+3SO2K2SO4+Cr2(SO4)3+H2O, CO2
(नारंगी) (हरा)
गैस यह परीक्षण नहीं देती है।
प्रश्न 10. ‘वर्णलेखिकी पद का क्या अर्थ है?
उत्तर⇒ वर्णलेखिकी ग्रीक भाषा में क्रोमा का अर्थ रंग तथा ग्राफी का अर्थ लिखना होता है। शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1906 में आईवेट के द्वारा पौधों से रंगीन पदार्थों को पृथक् करने के लिए किया गया था। अब इस शब्द का मूल अर्थ अस्तित्वहीन है क्योंकि आजकल इस तकनीक का प्रयोग व्यापक रूप में पृथक्करण, शोधन तथा रंगीन या रंगहीन मिश्रण के अवयवों के लक्षणीकरण तत्त्वों के निर्धारण में किया जाता है। यह कार्बनिक यौगिक के मिश्रण के अवयवों का दो प्रावस्थाओं के बीच वितरण के सिद्धान्त पर आधारित है। इन दोनों प्रावस्थाओं में एक स्थिर होती है, जो कि ठोस या द्रव हो सकती है। इसे स्थिर प्रावस्था कहते हैं। दूसरी प्रावस्था को गतिशील प्रावस्था कहते हैं। यह गतिशील प्रकृति की होती है और द्रव या गैस की बनी होती है।
प्रश्न 11. अयस्कों तथा खनिजों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर⇒ प्राकृतिक रूप से उपस्थित रासायनिक पदार्थ, जिनके रूप में धातुएँ अशुद्धियों के साथ भूपर्पटी में उपस्थित होती हैं, खनिज कहलाते हैं। वे खनिज, जिनसे धातुओं का निष्कर्षण सरल तथा आर्थिक रूप से लाभदायक हो, अयस्क कहलाते हैं। अतः सभी अयस्क खनिज होते हैं, परन्तु सभी खनिज अयस्क नहीं होते हैं। उदाहरणार्थ– भूपर्पटी में लोहा ऑक्साइडों, कार्बोनेटों तथा सल्फाइडों के रूप में विद्यमान होता है। लोहे के इन खनिजों में से निष्कर्षण के लिए लोहे के ऑक्साइडों को चुना जाता है, इसलिए लोहे के ऑक्साइड, लोहे के अयस्क हैं। इसी प्रकार भूपर्पटी में ऐलुमिनियम दो खनिजों के रूप में पाया जाता है- बॉक्साइट (Al2O3.xH2O) तथा क्ले (Al2O3.2SiO2.2H2O)। इन दोनों खनिजों में से बॉक्साइट से Al का निष्कर्षण सरलतापूर्वक तथा आर्थिक रूप से लाभदायक रूप में किया जा सकता है, इसलिए बॉक्साइट ऐलुमिनियम का अयस्क है।
प्रश्न 12. किसी विशेष स्थिति में अपचायक का चयन ऊष्मागतिकी कारकों पर आधारित है। आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं? अपने मत के समर्थन में दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर⇒ किसी निश्चित धात्विक ऑक्साइड का धात्विक अवस्था में अपचयन करने के लिए उचित अपचायक का चयन करने में ऊष्मागतिकी कारक सहायता करता है। इसे निम्नवत् समझा जा सकता है –
एलिंघम आरेख से यह स्पष्ट होता है कि वे धातुएँ, जिनके लिए उनके ऑक्साइडों के निर्माण की मानक मुक्त ऊर्जा अधिक ऋणात्मक होती है, उन धातु ऑक्साइडों को अपचयित कर सकती हैं जिनके लिए उनके सम्बन्धित ऑक्साइडों के निर्माण की मानक मुक्त ऊर्जा कम ऋणात्मक होती है। दूसरे शब्दों में, कोई धातु किसी अन्य धातु के ऑक्साइड को केवल तब अपचयित कर सकती है, जबकि यह एलिंघम आरेख में इस धातु से नीचे स्थित हो। चूंकि संयुक्त रेडॉक्स अभिक्रिया का मानक मुक्त ऊर्जा परिवर्तन ऋणात्मक होगा (जो कि दोनों धातु ऑक्साइडों के f G- Δf G– में अन्तर के तुल्य होता है।), अत: Al तथा Zn दोनों FeO को Fe में अपचयित कर सकते हैं, परन्तु Fe,Al2O3 को Al में तथा ZnO को Zn में अपचयित नहीं कर सकता। इसी प्रकार C,ZnO को Zn में अपचयित कर सकता है, परन्तु CO ऐसा नहीं कर सकता।
प्रश्न 13. भर्जन किसे कहते हैं? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर⇒ वह क्रिया जिसमें अयस्क को वायु की उपस्थिति में उसके गलनांक से नीचे गर्म किया जाता है, भर्जन कहलाती है। इस क्रिया में S,As आदि वाष्पशील अशुद्धियाँ ऑक्साइडों के रूप में पृथक् हो जाती हैं। और सल्फाइड अयस्क ऑक्साइड में बदल जाता है।
S + O2SO2
4 As +3 O22As2O3
2ZnS+3 O22ZnO+2SO2
प्रश्न 14. जिंक ब्लैण्ड से जिंक के निष्कर्षण में भर्जन व अपचयन की अभिक्रिया का रासायनिक समीकरण दीजिए।
उत्तर⇒ जिंक ब्लैण्ड (ZnS) एक सल्फाइड अयस्क है, अत: इसका निष्कर्षण फेन प्लवन विधि द्वारा सान्द्रित करने के पश्चात् निम्न पदों में किया जाता है –
1. जिंक ब्लैण्ड अयस्क का भर्जन – सान्द्रित जिंक ब्लैण्ड को परावर्तनी भट्ठी में 927°C पर वायु की उपस्थिति में गर्म करने पर यह (ZnS) अपने ऑक्साइड (ZnO) में परिवर्तित हो जाता है। अभिक्रिया निम्न है।
2ZnS+3 O22ZnO+2SO2
ZnS+2 O2ZnSO4
2ZnSO42ZnO+2SO2+O2
2. ऑक्साइड का अपचयन – भर्जन क्रिया से प्राप्त ZnO को कार्बन के साथ गर्म करने पर ZnO का ZnO में अपचयन हो जाता है।
ZnO+CZn+CO
प्रश्न 15. प्रगलन क्या है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
या
प्रगलन में किस भट्टी का प्रयोग करते हैं ? इसका नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर⇒ अयस्क में उचित गालक मिलाकर मिश्रण को उच्च ताप पर गलाने की क्रिया को प्रगलन कहते हैं। इस क्रिया में अयस्क का गलित धातु में अपचयन हो जाता है अथवा धातुयुक्त पदार्थ पिघल जाता है। गालक अयस्क में उपस्थित अपद्रव्य से क्रिया करके धातुमल बनाता है जिसे अलग कर लेते हैं। इसमें वात्या भट्ठी का प्रयोग करते हैं।
लोहा तथा ताँबा धातुओं के निष्कर्षण में वात्या भट्ठी का उपयोग होता है।
उदाहरणार्थ– कॉपर पाइराइट से कॉपर का निष्कर्षण वात्या भट्ठी में प्रगलन द्वारा किया जाता है। इसमें निम्नलिखित अभिक्रियाएँ होती हैं –
Cu2O+FeSCu2S+FeO
2FeS+3O22FeO+2SO2
FeO+SiO2FeSiO3
प्रश्न 16. लीचिंग क्या है? एक उदाहरण द्वारा समझाइए।
उत्तर⇒यह विधि रासायनिक परिवर्तन पर आधारित है। इसके अन्तर्गत बारीक पिसे अयस्क को उचित अभिकर्मक के साथ क्रिया कराते हैं। जिससे विलयन की अवस्था में परिवर्तन आ जाता है तथा अशुद्धियाँ ठोस अवस्था में रह जाती हैं।
उदाहरण– बॉक्साइट अयस्क को सान्द्रण करने के लिए Al2O5.2H2O की क्रिया NaOH से कराने पर NaAlO2बन जाता है जो जल में विलेय है और अशुद्धियाँ; जैसे- सिलिका, Fe2O3 नीचे ठोस के रूप में अवक्षिप्त हो जाती हैं।
Al2O3.2H2O+2NaOH2NaAlO2+3H2O
NaAlO2.+ 2H2OAl(OH)3+NaOH
प्रश्न 17. इस्पात का ऊष्मा उपचार क्यों आवश्यक है ? यह किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर⇒ इस्पात के यान्त्रिक गुण उसके ऊष्मा उपचार पर निर्भर करते हैं। ऊष्मा उपचार द्वारा इस्पात को कठोर या नर्म बनाया जा सकता है।
इस्पात का कठोरीकरण – इस्पात को रक्त-तप्त ताप तक गर्म करके ठण्डे जल द्वारा उसे एकाएक ठण्डा करने की क्रिया इस्पात का कठोरीकरण कहलाती है। इस क्रिया से इस्पात बहुत कठोर और भंगुर हो जाता है।
इस्पात का टैम्परीकरण – कठोरीकृत इस्पात को किसी उच्च ताप तक (पहले से कम ताप पर) पुनः गर्म करके धीरे-धीरे ठण्डा करने की क्रिया इस्पात का टैम्परीकरण कहलाती है। इस क्रिया से इस्पात नर्म हो जाता है और उसकी भंगुरता मिट जाती है। इस्पात को धीरे-धीरे ठण्डा करने पर ऑस्टीनाइट धीरे-धीरे सीमेन्टाइट और आइरन में अपघटित हो जाता है, जिससे इस्पात नर्म हो जाता है।
प्रश्न 18. गोल्ड (Au) के निष्कर्षण एवं शोधन की विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर⇒ गोल्ड का शुद्धिकरण – गोल्ड का शुद्धिकरण निम्न विधियों द्वारा किया जाता है –
1. क्वार्टेशन विधि – इस विधि द्वारा कॉपर व सिल्वर की अशुद्धियों को हटाया जाता है। यह विधि
इस तथ्य पर आधारित है कि कॉपर व सिल्वर सल्फ्यूरिक व नाइट्रिक अम्लों में घुल जाते हैं, जबकि गोल्ड इन अम्लों के द्वारा प्रभावित नहीं होता। यदि अशुद्ध नमूने में गोल्ड 30% से अधिक है तो कॉपर व सिल्वर भी इन अम्लों के द्वारा प्रभावित नहीं होते। अतः इन अम्लों से अभिक्रिया करने से पहले नमूने को सिल्वर की आवश्यक मात्रा के साथ गलाते हैं जिससे नमूने में गोल्ड की प्रतिशत मात्रा 25% तक घट जाए। इसीलिए इसे क्वॉर्टेशन विधि कहते हैं। परिणामी मिश्र धातु को सान्द्र H2SO4 के साथ प्रतिकृत करते हैं जिससे कॉपर व सिल्वर सल्फेटों के रूप में विलयन में आ जाते हैं, जबकि गोल्ड शेष रह जाता है। इस प्रकार से प्राप्त गोल्ड को बोरेक्स व KNOs के साथ गलित। करते हैं जिससे शुद्ध गोल्ड प्राप्त हो जाता है।
Cu+2H2SO4CuSO4+2H2O+SO2
2Ag +2H2SO4Ag2SO4+2H2O+SO2
(ii) विद्युत-अपघटनी विधि गोल्ड का शुद्धिकरण विद्युत अपघटनी विधि के द्वारा भी किया जा सकता है। इस विधि में गोल्ड क्लोराइड के विलयन जिसमें 10 – 20% HCl होता है का विद्युत-अपघटन किया जाता है। अशुद्ध गोल्ड ऐनोड के रूप में तथा शुद्ध गोल्ड कैथोड के रूप में किया जाता है। शुद्ध गोल्ड कैथोड पर एकत्रित हो जाता है, जबकि बने सिल्वर क्लोराइड को कीचड़ के रूप में हटा दिया जाता है।
प्रश्न 19. उस विधि का नाम लिखिए जिसमें क्लोरीन सह-उत्पाद के रूप में प्राप्त होती है। क्या होगा यदि NaCl के जलीय विलयन का विद्युत-अपघटन किया जाए?
उत्तर⇒डाउन की प्रक्रिया में गलित NaCl के वैद्युत-अपघटन के फलस्वरूप सह-उत्पाद के रूप में क्लोरीन प्राप्त होती है।
NaCl (fused)Na++Cl-
कैथोड पर : Na+ + e-Na(s)
ऐनोड पर : Cl- + e-12Cl2(g)
जब NaCl के जलीय विलयन का वैद्युत-अपघटन किया जाता है, तो कैथोड पर H2 गैस तथा ऐनोड पर Cl2 गैस प्राप्त होती हैं। NaOH का एक जलीय विलयन सह-उत्पाद के रूप में प्राप्त है।
NaCl(aq)Na+(aq)+Cl-(aq)
ऐनोड पर : Cl-(aq) + e-12Cl2(g)
कैथोड पर : 2H2O(I)+2e-2OH(a)+H2(g)
प्रश्न 20. ऐलुमिनियम के विद्युत-धातुकर्म में ग्रेफाइट छड़ की क्या भूमिका है?
उत्तर⇒इस प्रक्रिया में ऐलुमिना, क्रायोलाईट तथा फ्लुओरस्पार (CaF2 ) के गलित मिश्रण का विद्युतअपघटन ग्रेफाइट को ऐनोड के रूप में तथा ग्रेफाइट की परत चढ़े हुए आयरन को कैथोड के रूप में प्रयुक्त करके किया जाता है। विद्युत-अपघटन करने पर Al कैथोड पर मुक्त होती है, जबकि ऐनोड पर CO तथा CO2 मुक्त होती हैं।
कैथोड पर : Al+3 (गलित) Al(I)
ऐनोड पर : C (s)+O2- (गलित)CO(g)+2e-
C (s)+2O2- (गलित)CO(g)+4e-
यदि किसी अन्य धातु को ग्रेफाइट के स्थान पर प्रयुक्त किया जाता है, तब मुक्त O2 न केवल इलेक्ट्रोड की धातु को ऑक्सीकृत ही करेगी, बल्कि कैथोड पर मुक्त Al की कुछ मात्रा को पुनः Al2O3में परिवर्तित कर देगी। चूँकि ग्रेफाइट अन्य किसी धातु से सस्ता होता है, इसलिए इसे ऐनोड के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार ऐलुमिनियम के निष्कर्षण में ग्रेफाइट छड़ की भूमिका ऐनोड पर मुक्त O2 को संरक्षित करना है जिससे यह मुक्त होने वाले Al की कुछ मात्रा को पुन: Al2O3 में परिवर्तित न कर दे।
प्रश्न 21. C व CO में से ZnO के लिए कौन-सा अपचायक अच्छा है?
उत्तर⇒हम जानते हैं कि जिक ऑक्साइड का अपचयन कोक द्वारा किया जाता है। इसमें कॉपर की स्थिति की अपेक्षा ताप अधिक रखा जाता है। तापन के लिए ऑक्साइड की कोक तथा मृदा के साथ छोटी-झेटी ईंटें बनाई जाती हैं।
ZnO+CZn+CO
धातु को आसवित कर तथा तीव्र शीतलन द्वारा एकत्र कर लेते हैं। एलिंघम आरेख से ज्ञात होता है कि C से CO के निर्माण की मुक्त ऊर्जा (fG) 1120 K से अधिक ताप पर कम हो जाती है, जबकि C से CO2 के निर्माण की मुक्त ऊर्जा, ZnO के fG की तुलना में, 1323 Kसे अधिक ताप पर कम हो जाती है। यद्यपि CO से CO2की fGZnO से हमेशा अधिक होती है। यही कारण है कि ZnO का अपचयन Zn में कार्बन तो कर सकता है परन्तु CO नहीं।
प्रश्न 22. कॉपर मैट को सिलिका की परत चढ़े हुए परिवर्तकों में क्यों रखा जाता है?
उत्तर⇒सिलिका युक्त परिवर्तक (बेसेमर परिवर्तक) में मैट में उपस्थित शेष FeS को FeO में ऑक्सीकृत करने के लिए रखा जाता है जो सिलिका के साथ संयोग कर संगलित धातुमल बनाता है।
2FeS+3O22FeO+2SO2
FeO+SiO2FeSiO3
जब सम्पूर्ण लोहे को धातुमल के रूप में पृथक् कर लिया जाता है, तब कुछ Cu2S ऑक्सीकरण के फलस्वरूप Cu2O बनाता है जो अधिक Cu2S के साथ अभिक्रिया करके कॉपर धातु बनाता है।
2Cu2S+3O22Cu2O+2SO2 ↑
2Cu2O+3Cu2S6Cu↓+SO2 ↑
अत: कॉपर मैट को सिलिका की परत चढ़े हुए परिवर्तक में मैट में उपस्थित FeS को FeSiO3 धातुमल के रूप में हटाने के लिए भी रखा जाता है।
प्रश्न 23. उलवा लोहा कच्चे लोहे से किस प्रकार भिन्न होता है?
उत्तर⇒वात्या भट्टी से प्राप्त लोहे में लगभग 4% कार्बन तथा अन्य अशुद्धियाँ; जैसे - S , P , Si , Mn सूक्ष्म मात्रा में उपस्थित रहती हैं। यह कच्चे लोहे के नाम से जाना जाता है तथा इसे विभिन्न आकृतियों में डाला जा सकता है। दलवा लोहा कच्चे लोहे से भिन्न होता है तथा इस कच्चे लोहे को, रद्दी लोहे एवं कोक के साथ गर्म हवा के झोंकों द्वारा पिघलाकर बनाया जाता है। इसमें थोड़ा कम कार्बन (लगभग 3%) होता है तथा यह अति कठोर और भंगुर होता है।
प्रश्न 24. जब बॉक्साइट अयस्क में फेरिक ऑक्साइड की अशुद्धि अधिक होती है तथा जब सिलिका की अशुद्धि अधिक होती है तो बॉक्साइट से ऐलुमिना प्राप्त करने की विधि का मान तथा रासायनिक समीकरण लिखिए।
उत्तर⇒बॉक्साइट अयस्क में फेरिक ऑक्साइड भी अशुद्धि अधिक होने पर इससे एलुमिना प्राप्त करने के लिए बेयर विधि का प्रयोग किया जाता है।
Al2O3.2H2O+2NaOH2NaAlO2+3H2O
सोडियम मेटाएलुमिनेट
(विलेय)
NaAlO2+2H2OAl(OH)3+NaOH
एल्यूमीनियम हाइड्रोक्साइड
2Al(OH)3Al2O3+3H2O
एलुमिना
बॉक्साइट अयस्क में सिलिका की अशुद्धि अधिक होने पर इससे ऐलुमिना प्राप्त करने के लिए सपेंक विधि का प्रयोग किया जाता है।
Al2O3.2H2O+3C+N22AlN+3CO+2H2O
एल्यूमीनियम नाइट्राइड
SiO2+2CSi+2CO
वाष्पशील
AlN+3H2O2Al2(OH)3+NH3
अवक्षेप
2Al(OH)3Al2O3+3H2O
एलुमिना
प्रश्न 25. फेरिक क्लोराइड के दो रासायनिक गुण लिखिए।
उत्तर⇒1. जल- अपघटन पर यह HCl उत्पन्न करता है; अत: इसका जलीय विलयन अम्लीय प्रकृति का होता है।
FeCl3+3H2OFe(OH)3+3HCl
2. पोटैशियम फेरोसायनाइड विलयन के साथ यह नीले रंग का फेरिक फेरोसायनाइड (प्रशियन ब्लू) बनाता है।
4FeCl3+3K4[Fe(CN)6]Fe4[Fe.(CN)6]3+12KCl