बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 1 वैद्धुत आवेश तथा क्षेत्र दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1.गौस के प्रमेय को लिखें तथा स्थापित करें? आविष्ट समतल चालक के समीप स्थित बिन्दु पर तीव्रता की गणना करें।
उत्तर: गॉस के अनुसार-“किसी बंद क्षेत्र का विद्युतीय फ्लक्स उस क्षेत्र के आवेश का 1/o के गुणनफल के बराबर होता है।
अर्थात्
=1o
प्रमाण:- चित्र में एक बंद क्षेत्र xy दर्शाया गया है। इसके अंदर स्थित बिन्दु O और r दूरी पर सतह पर कोई बिन्दु P लिया गया है। बिन्दु P को घेरते हुए एक छोटे बंद क्षेत्र की कल्पना की जाती है जिसका क्षेत्रफल ds है।
यदि बिन्दु P पर विद्युत तीव्रता E हो
E =q4or2
Φ = Eds cosθ
=q4or2ds cos
= q4o ds cosr2
= q4od
=q4o 4
=qo
आविष्ट समतल चालक के कारण तीव्रता-
चित्र में एक आविष्ट समतल चालक दर्शाया गया है जिसका पृष्ठ घनत्व σ है। चालक के सतह के समीप अन्दर एवं x एवं y से गुजरने वाला बेलन का क्षेत्रफल ds है। चूंकि बिन्दु x आविष्ट सतह के अंदर स्थित हैं इसीलिए इस पर तीव्रता का मान शून्य होगा। यदि बिन्दु y पर तीव्रता E हो तो
Φ = Eds …(i)
गॉस के प्रमेय से,
Φ = q/o
∴ σ = q/ds
∴ q = σds
∴ Φ = σds/o …(ii)
समी० (i) एवं (ii) से,
Eds = σds/o
E = σ/o
इसे ही गौस का प्रमेय कहा जाता है।
2. किसी चालक के स्थितिज ऊर्जा से क्या समझते हैं। आवेश वितरण में ऊर्जा हास का व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर:
किसी अनाविष्ट चालक को आविष्ट करने में सम्पादित कार्य को चालक की ऊर्जा (स्थितिज ऊर्जा) कहा जाता है।
माना कि किसी चालक को q आवेश देने से उसका विभव शून्य से बढ़कर ν हो जाता है।
औसत विभव =0+V2 = V/2
अतः आवेश द्वारा सम्पादित कार्य .
w = आवेश x औसत विभव
= q × V/2
P.E =12 qν …(i)
c = q/ν
q = c
समी० (i) से,
P.E =12 cV2 …(ii)
c = q/ν
ν = q/c
समी० (ii) से,
P.E =12 q2c …(iii)
समी० (i), (ii) एवं (iii) स्थितिज ऊर्जा के व्यंजक है।
आवेश वितरण में ऊर्जा ह्रास का व्यंजक:- माना कि दो चालकों की धारिताएँ c1 एवं c2 तथा इनका विभव क्रमशः ν1 एवं ν2 है। अतः चालकों की कुल ऊर्जा
E1 = 12C1V12+12C2V22 ……….. (i)
यदि चालकों के बीच आवेश वितरण के फलस्वरूप इनका उभयनिष्ठ विभव ν हो तो, आवेश वितरण के पश्चात्य कुल ऊर्जा
E2 = 12C1V2+12C2V2
or E2 = 12(C1+ C2 )V2
∵ V= C1V1+C2V2C1+C2
∴ E2 = 12(C1+ C2 ) C1V1+C2V2 (C1+ C2 )2
∴ E2 = 12 C1V1+C2V22C1+ C2 ……..(¡¡)
अतः ऊर्जा में हास
ΔE = E1 – E2
∆E = 12C1V12+12C2V22 - 12 C1V1+C2V22C1+ C2
= 12 C12V12+C1C2V12+C1C2V22+C22V22-C12V12-C22V22-2C1C2V1V2C1+C2
= 12 C1C2V12+C1C2V22-2C1C2V1V2C1+C2
= 12C1C2V12+V22-2V1V2C1+C2
∆E = 12C1C2V1-V22C1+C2
3.समरूप विद्युत क्षेत्र में विद्युत द्विधुव पर बल आघूर्ण (Torque) के लिए व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर:
AB एक विद्युत द्विध्रुव है। इसके A पर आवेश +Q तथा B पर आवेश -Q है। इसके बीच की दूरी 2l है। E एक समान विद्युत क्षेत्र है। E के साथ विद्युत द्विध्रुव को कोण α है।
E विद्युत क्षेत्र के कारण A औरB पर बल (F) = QEA पर यह बल, E की दिशा में तथा B पर E के विपरीत दिशा में काम करता है। ये दोनों बल मिलकर एक बलयुग्म बनाते हैं जो द्विध्रुव AB को क्षेत्र E की दिशा में लाना चाहता है।
इस बलयुग्म का आघूर्ण (T)
= बल × लम्बवत दूरी
= QE · AC =QE. 2lsinθ
[∵ ΔABC से sinθ =ACBC=AC2l ]
= ME sinθ
[∵ 2la = M (द्विध्रुव आघूर्ण)]
यदि AB द्विध्रुव को विद्युत क्षेत्र के लम्बवत रखा जाय तो a= 90°
∴ बलयुग्म का आघूर्ण (T) = ME sin 90°
= ME [∵ sin 90° = 1 ] यह आघूर्ण अधिकतम होता है।
(TMAX) = ME
4. चार बिन्दु आवेश qA= 2 μC, qB= -5 μC,qC= 2 μC तथा qD= -5 μC, 10 cm भुजा के किसी वर्ग ABCD के शीर्षों पर अवस्थित हैं। वर्ग के केन्द्र पर रखे 1 μC आवेश पर लगने वाला बल कितना है ?
हल-
किसी आवेश पर कार्य करने वाले अन्य आवेशों के कारण कूलॉम बलों को सदिश विधि द्वारा जोड़ा जाता है। अत: वर्ग के केन्द्र पर रखे आवेश qo= 1 μC पर बल चारों आवेशों qA , qB ,qCव qD के कारण कूलॉम बलों के सदिश योग के बराबर होगा।
OA=OB=OC=OD= 12102+102
=1022cm =52 cm=52 10-2m
आवेश qA=2C के कारण q0= 1c पर बल
FOA=14o q0qAOA2,O से C की ओर
=9109 110-6210-652 10-22
=3.6 N, ( OC के अनुदिश )
आवेश qC =-2C के कारण q0 पर बल
FOC =14o q0qC OC 2,O से A की ओर
=9109 110-6210-652 10-22
=3.6 N, ( OA के अनुदिश )
स्पष्टतः
FOA+FOC = 0
आवेश q B =-5 C के कारण q0=1c पर बल
FOB =14o q0qB OB 2,O से B की ओर
=9109 110-6510-652 10-22
=9.0 N, ( OB के अनुदिश )
आवेश q D =-5 C के कारण q0 पर बल
FOD =14o q0qD OD 2,O से D की ओर
=9109 110-6510-652 10-22
=9.0 N, ( OD के अनुदिश )
स्पष्टतः
FOB+FOD = 0
कुल आवेश ,
F = FOA+FOC + FOB+FOD
F=0
अतः q0 पर नेट बल शून्य है ।
5. 2.4m व्यास के एकसमान आवेशित चालक गोले का पृष्ठीय आवेश घनत्व 80.0 cm-2 है।
(a) गोले पर आवेश ज्ञात कीजिए।
(b) गोले के पृष्ठ से निर्गत कुल विद्युत फ्लक्स क्या है?
हल :
दिया है , गोले के पृष्ठ का आवेश घनत्व
=80.0cm-2
=8010-6cm-2
आवेशित गोले की त्रिज्या ,
R=2.42 = 1.2 m
(a) गोले पर आवेश
= q4R2 ,
q = 4R2
= 42271.228010-6
= 1.4510-3C
(b) गोले के पृष्ठ से निर्गत कुल विद्युत फ्लक्स ,
=q0
=1.4510-38.85410-12
=1.64108Nm2C
6. विद्युत बल रेखाएं किसे कहते हैं इन रेखाओं के गुण लिखिए।
उत्तर:
विद्युत बल रेखाएं: विद्युत क्षेत्र में वह काल्पनिक रेखाएं जिन पर एकांक धनावेश चलता है। उन रेखाओं को विद्युत बल रेखाएं कहते हैं।
विद्युत बल रेखाएं
चित्र द्वारा विद्युत बल रेखाओं को आसानी से समझा जा सकता है। कि विद्युत क्षेत्र में बल रेखाएं एकल धन आवेश के कारण बहिर्मुखी होती हैं। अर्थात विद्युत बल रेखाएं आवेश के केंद्र से निकलती हुई अनंत तक सीधी रेखा में प्रतीत होती हैं। तथा विद्युत क्षेत्र में विद्युत बल रेखाएं एकल ऋण आवेश के कारण अंतर्मुखी होती हैं। अर्थात विद्युत बल रेखाएं आवेश के केंद्र पर मिलती हुई प्रतीत होती है।
प्रस्तुत चित्र में दो बराबर तथा समान आवेशों एवं दो बराबर तथा विपरीत आवेशों के बीच विद्युत बल रेखाएं खींची गई हैं। इस चित्र से स्पष्ट होता है कि दो बराबर तथा विपरीत आवेशों से उत्पन्न विद्युत बल रेखाएं धन आवेश से प्रारंभ होकर ऋण आवेश पर समाप्त हो जाती है। जबकि दो बराबर तथा समान आवेशों से उत्पन्न विद्युत बल रेखाएं दोनों धन आवेशों के मध्य बिंदु से एक दूसरे को प्रतिकर्षित करती हैं। इस बिंदु पर परिणामी क्षेत्र शून्य होता है इस बिंदु को उदासीन बिंदु कहते हैं।
विद्युत बल रेखाओं के गुण:
1. विद्युत बल रेखाएं धन आवेश से प्रारंभ होकर ऋण आवेश पर समाप्त हो जाती हैं।
2. यदि आवेश एकल होता है तो ये रेखाएं अनंत से प्रारंभ अथवा अनंत पर समाप्त होती हैं।
3. यह रेखाएं एक-दूसरे को काटती नहीं हैं। चूंकि यदि यह रेखाएं एक-दूसरे को काटती हैं, तो उस कटान बिंदु पर बल की दो दिशाएं होंगी, जो कि असंभव है।
7. विद्युत आवेश के मूलभूत गुण क्या - क्या हैं?
उत्तर:
आवेशों की योज्यता: आवेश द्रव्यमान की भांति आदेश राशि होती है, विभिन्न प्रकार के आवेशों को एक साथ जोड़ने के लिए बीजगणितीय योग किया जाता है।
उदाहरण:- माना किसी निकाय में आवेश क्रमशः -2μc + 2μc + 4μc उपस्थित है तो निकाय का कुल आवेश बताओ?
उत्तर:- हम जानते हैं कि आवेशों का बीजगणितीय (algebraic) (चिन्ह के साथ) योग होता है।
अतः कुल आवेश (Q = -2μc) + (+2μc) + (+4μc) = -2μc + 2μc + 4μc = [Q = +4μc]
आवेश संरक्षण: प्रकृति में पाया जाने वाला कुल आवेश हमेशा संरक्षित रहेगा, अर्थात आवेश को ना तो उत्पन्न किया जा सकता है। और ना ही नष्ट किया जा सकता है इसे केवल एक वस्तु से दूसरी वस्तु में स्थानांतरित किया जा सकता है यह विद्युत क्षेत्र तथा आवेश के अन्तर्गत आता है।
आवेश का क्वांटमिकरण: किसी आवेशित वस्तु पर आवेश एक न्यूनतम आवेश के पूर्ण गुणक के रूप में ही हो सकता है, अर्थात आवेश को अनिश्चित रूप से विभाजित नहीं किया जा सकता है।
अतः किसी वस्तु पर आवेश⇒[Q = ±ne] जहां- n= 0,1,2,3…. , e= 1.67× 10-19 कूलॉम
अर्थात न्यूनतम संभव स्थानांतरण आवेश 1e = 1.6 x 10-19कूलॉम होगा।
नोट:- आवेश सदैव द्रव्यमान से सम्बन्धित है अर्थात बिना द्रव्यमान के आवेश का कोई अस्तित्व नहीं है अर्थात यदि किसी वस्तु पर आवेश उपस्थित है तो उस वस्तु का कुछ न कुछ द्रव्यमान है। लेकिन द्रव्यमान आवेश से सम्बन्धित नहीं भी हो सकता, अर्थात यदि किसी वस्तु का द्रव्यमान है तो यह आवश्यक नहीं की उस पर आवेश उपस्थित हो।
8. कूलॉम का नियम क्या है? इसका गणितीय निरूपण कीजिए।
उत्तर:
कूलॉम का नियम : इस नियम के अनुसार: “दो आवेशों के बीच बल [स्थिरविद्युत बल] उन दोनों आवेशों के गुणनफल के समानुपाती होता हैं और उनकी दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता हैं।“
कूलॉम के नियम का गणितीय निरूपण :
मान लीजिए कि दो आवेश q1 और q2 , r दूरी पर स्थित हैं, तो उनके बीच आकर्षण या प्रतिकर्षण का बल F है। आवेश का बल दोनों आवेशों के परिमाण के गुणनफल के समानुपाती होता है। अर्थात
F ∝ q1. q2
तथा कार्यरत बल दोनों आवेशों के आवेशों के मध्य की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
F ∝ 1r2
मान लीजिए कि दो बिंदु आवेश q1 और q2 हैं और फिर इन दो आवेशों के बीच की दूरी r है।
दो बिंदुओं के बीच आवेश का बल ∝ प्रथम आवेश × दूसरा आवेश
F ∝ q1 q1q2r2 q2
F ∝ 1r2
फिर इन दोनों के संयोजन से कूलॉम के नियम का सूत्र बनता है।
F ∝ q1q2r2
F = k q1q2r2
जहाँ k एक constant है जिसका मान 14o है k का मान आवेशों के बीच मौजूद माध्यम की प्रकृति पर निर्भर करता है।
C.G.S पद्धति में-
जब दोनों बिंदु आवेशों के बीच वायु या निर्वात होते हैं, तो k = 1 रखते हैं
F = q1q2r2डाइन
S.I पद्धति में-
जब दोनों बिंदु आवेशों के बीच वायु या निर्वात होते हैं, तो
k = 14o = 9 10-9
F = [14o q1q2r2]न्यूटन
कूलाम के नियम की सीमाएं :
1.यह नियम केवल स्थिर आवेशों के लिए ही सत्य है, गतिशील आवेशों के लिए नहीं|
2.यह नियम केवल बिंदु आवेशों के लिए सत्य है|
3.यह नियम 10-15 मीटर से कम दूरियों पर लागू नहीं होता है|
9.विद्युत क्षेत्र तथा उसकी तीव्रता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर ⇒
विद्युत क्षेत्र :– आवेश का संरक्षण सिद्धान्त क्या हैविद्युत क्षेत्र किसी आवेश के चारों तरफ का वह आकाश है जहाँ विद्युत बल का अनुभव किया जा सकता है। एक-दूसरे से r दूरी पर स्थित दो आवेश q तथा q0के बीच पारस्परिक क्रिया इस प्रकार होती है कि आवेश q0 अपने चारों तरफ एक विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है,
जिसका अस्तित्व दूसरे आवेशों की उपस्थिति से मुक्त होता है। उपस्थिति की जॉच भी होती है जब एक दूसरे आवेश q0 इस क्षेत्र में लाया जाता है। आवेश q0 का क्षेत्र
जाँच–आवेश से पारस्परिक क्रिया कर विद्युत बल विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है। बल विद्युत क्षेत्र का परिमाण दोनों आवेशों के बीच की दूरी पर निर्भर करता है। आवेश q के कारण r दुरी पर स्थित विधुत क्षेत्र की तीव्रता विधुत क्षेत्र की तीव्रता E=F/q है, जहाँ F विद्युत क्षेत्र आवेश q के कारण q0 पर लगता हुआ बल है।
इस प्रकार विद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर एकांक धनावेश पर क्रियाशील बल को उसकी तीव्रता कहते हैं। विद्युत तीव्रता एक सदिश राशि है। इसकी दिशा बल विद्युत क्षेत्र की दिशा होती है।
विद्धुत क्षेत्र की तीव्रता
E= q00 Fq0
आवेश q से r दूरी पर स्थित आवेश q पर बल
F= 14o qq0r2 =Kqq0r2
अतः विद्धुत क्षेत्र की तीव्रता E का परिमाण
E=Fq0 = 14o qr2 =K qr2
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता, E का S.I. मात्रक न्यूटन/ कूलम्ब है।
10. कूलम्ब के प्रमेय को लिखें तथा प्रमाणित करें।
अथवा, आवेशित समतल चालक के नजदीक किसी बिन्दु पर विद्युतीय तीव्रता का व्यंजक ज्ञात करें।
उत्तर⇒
कूलम्ब के प्रमेय – किसी आवेशित समतल चालक के बाहर किसी बिन्दु पर विद्युतीय तीव्रता, उसके तलीय घनत्व का 4Kगुणा है, जहाँ K माध्यम का पराविद्युत स्थिरांक है।
अथवा, “किसी आवेशित समतल चालक के बाहर किसी बिन्दु पर विद्युतीय तीव्रता आवेश के तलीय घनत्व तथा वायु की विद्युतशीलता 0 का अनुपात होता है।
प्रमाण – माना कि x एक समतल चालक है, जिसका तलीय घनत्व AB समल पर σ है, जो K पराविद्युत स्थिरांक के माध्यम में है। 0 इसके वायु में विद्युतशीलता है। विद्युतीय बल रेखाएँ अर्थात् विद्युतीय फ्लक्सP बिन्दु चालक के बाहर तथा नजदीक है जिस पर विद्यतीय तीव्रता का मान ज्ञात करना है।अब ds अनुप्रस्थ–परिच्छेद का वैसा बेलन खींचा जिसमें ab तथा cd, AB के समानान्तर है। P, AB समतल में ab तथा cd पर है । विद्युतीय बल रेखाएँ अर्थात् विद्युतीय फ्लक्स AB के अभिलम्बवत् है, तब बेलन के वक्र समतल पर अभिलम्ब विद्युत प्रेरण = 0 (शून्य) होता है।
∴ P बिन्दु पर अभिलम्ब विद्युत प्रेरण = K x (P बिन्दु पर विद्युतीय तीव्रता) x (ab का क्षेत्रफल)।
= K E ds या, E. ds
बिंदु बेलनाकार समतल के अन्दर कुल आवेश ds या, ds0
या E.ds = ds0
∴E= 4 K
या , E= 0
पराविद्युत स्थिरांक के वायु में होने की स्थिति में K = 1
∴ E = 4πσ होता है।
11. विद्युत क्षेत्र तथा उसकी तीव्रता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर⇒
विद्युत क्षेत्र – आवेश का संरक्षण सिद्धान्त क्या हैविद्युत क्षेत्र किसी आवेश के चारों तरफ का वह आकाश है जहाँ विद्युत बल का अनुभव किया जा सकता है। एक-दूसरे से r दूरी पर स्थित दो आवेश q तथा q0 के बीच पारस्परिक क्रिया इस प्रकार होती है कि आवेश q0 अपने चारों तरफ एक विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है,
जिसका अस्तित्व दूसरे आवेशों की उपस्थिति से मुक्त होता है। उपस्थिति की जॉच भी होती है जब एक दूसरे आवेश q0 इस क्षेत्र में लाया जाता है। आवेश q0 का क्षेत्र जाँच–आवेश से पारस्परिक क्रिया कर विद्युत बल विद्युत क्षेत्र उत्पन्न करता है। बल विद्युत क्षेत्र का परिमाण दोनों आवेशों के बीच की दूरी पर निर्भर करता है। आवेश q के कारण r दुरी पर स्थित विधुत क्षेत्र की तीव्रता विधुत क्षेत्र की तीव्रता है, जहाँ विद्युत क्षेत्र आवेश q के कारण q0 पर लगता हुआ बल है।
इस प्रकार विद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर एकांक धनावेश पर क्रियाशील बल को उसकी तीव्रता कहते हैं। विद्युत तीव्रता एक सदिश राशि है। इसकी दिशा बल विद्युत क्षेत्र की दिशा होती है।
इस प्रकार विद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर एकांक धनावेश
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता, E का S.I. मात्रक न्यूटन/ कूलम्ब है।
12. विद्युत द्विध्रुव तथा द्विध्रुव आघूर्ण क्या है ?
उत्तर⇒
विद्युत द्विध्रुव – दो बराबर तथा विपरीत बिन्दु आवेश के किसी अल्प दूरी पर स्थित होने की स्थिति में उस निकाय को विद्युत द्विध्रुव कहते हैं।
द्विधव आघूर्ण – किसी विद्युत द्विध्रुव का द्विध्रुव आघूर्ण किसी एक आवेश का मान तथा दोनों आवेशों के बीच की दूरी का गुणनफल है।
माना कि द्विधव आघूर्णA तथा B बिन्दु पर स्थित दो आवेश (-q) तथा (+q) परस्पर 2l दूरी पर स्थित हैं, तो उस विद्युत द्विध्रुव का द्विध्रुव
आघूर्ण, P = q x 2l = 2ql है। यह एक सदिश राशि है। इसकी दिशा द्विध्रुव की अक्ष के अनुदिश ऋण आवेश से धन आवेश की तरफ होती है। इसका मात्रक कूलम्ब-मीटर है।
13. विद्युत क्षेत्र की तीव्रता तथा विभव में सम्बन्ध स्थापित करें।
उत्तर⇒
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता तथा विभव में सम्बन्ध – विद्युत क्षेत्र की तीव्रतामाना कि A तथा B दो बिन्दु अत्यल्प दूरी Δr से अलग हैं जिनके बीच विभवान्तर AV तथा विद्युत क्षेत्र की तीव्रता E है। आवेश q0 को B से A तक लाने में संपादित कार्य ΔW है, तो हम पाते हैं कि
विद्युत क्षेत्र की तीव्रता तथा विभव में सम्बन्ध स्थापित करेंक्योंकि F = - q0E है, जहाँ q0 के विरुद्ध बल F को लगाना नितांत आवश्यक है।
अतः विद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर किसी दिशा में उसकी तीव्रता का घटक उस दिशा में ऋणात्मक विभव प्रवणता के बराबर है। ऋणात्मक चिह्न यह बताता है कि विद्युत क्षेत्र की तीव्रता E तक धनात्मक होता है जब dVdrऋणात्मक होता है। विद्युत तीव्रता का मात्रक वोल्ट/मीटर है।
14. समविद्युत् क्षेत्र में विद्युत द्विध्रुव पर लगने वाले बलयुग्म का व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर ⇒
बलयुग्म का व्यंजक – माना कि एक विद्युत द्विध्रुव AB है जिसका आवेश -q व +q कूलम्ब है तथा इनके बीच की दूरी 21 है। द्विध्रुव एकसमान विधुत क्षेत्र E में विद्युत क्षेत्र की दिशा से कोण 0 बनाते हैं। विद्युत क्षेत्र E के कारण +q आवेश पर बल F = qE (विद्युत क्षेत्र E की दिशा में) तथा q आवेश पर बल F = qE (विद्यत क्षेत्र E की दिशा के विपरीत दिशा में लगता है)
चूकि ये दोनों बल परस्पर बराबर तथा विपरीत हैं। अतः इनका परिणामी बल शून्य है। लेकिन ये दोनों बल एक बलयुग्म बनाते हैं जो द्विध्रुव को घुमाकर विद्युत क्षेत्र E की दिशा में लाने का प्रयत्न करता है। इस प्रत्यानयन बलयुग्म का आघूर्ण
समविद्युत् क्षेत्र में विद्युत द्विध्रुव पर लगने वाले बलयुग्म
= बल x लम्बवत् दूरी = qE x BC
लेकिन समकोण Δ/i CB में,
BC = ABsinθ = 2lsinθ
∴ बलयुग्म = qE x 2lsinθ = pEsinθ
(क्योंकि q x 2l = p)
15. कूलम्ब के प्रमेय को लिखें तथा प्रमाणित करें।
अथवा, आवेशित समतल चालक के नजदीक किसी बिन्दु पर विद्युतीय तीव्रता का व्यंजक ज्ञात करें।
अथवा, प्रमाणित करें कि कूलम्ब के प्रमेय को लिखें तथा प्रमाणित करें है, जहाँ σ आवेश का तलीय घनत्व ,0 वायु की विद्युतशीलता तथा K माध्यम की पराविधुत स्थिरांक है।
उत्तर⇒
कूलम्ब के प्रमेय – किसी आवेशित समतल चालक के बाहर किसी बिन्दु पर विद्युतीय तीव्रता, उसके तलीय घनत्व का 4π/K गुणा है, जहाँ K माध्यम का पराविद्युत स्थिरांक है।
अथवा, “किसी आवेशित समतल चालक के बाहर किसी बिन्दु पर विद्युतीय तीव्रता आवेश के तलीय घनत्व तथा वायु की विद्युतशीलता 0 का अनुपात होता है।
प्रमाण – माना कि x एक समतल चालक है, जिसका तलीय घनत्व AB समल पर σ है, जो K पराविद्युत स्थिरांक के माध्यम में है।0 इसके वायु में विद्युतशीलता है। विद्युतीय बल रेखाएँ अर्थात् विद्युतीय फ्लक्सP बिन्दु चालक के बाहर तथा नजदीक है जिस पर विद्यतीय तीव्रता का मान ज्ञात करना है।अब ds अनुप्रस्थ–परिच्छेद का वैसा बेलन खींचा जिसमें ab तथा cd, AB के समानान्तर है। P, AB समतल में ab तथा cd पर है । विद्युतीय बल रेखाएँ अर्थात् विद्युतीय फ्लक्स AB के अभिलम्बवत् है, तब बेलन के वक्र समतल पर अभिलम्ब विद्युत प्रेरण = 0 (शून्य) होता है।
∴ P बिन्दु पर अभिलम्ब विद्युत प्रेरण = K x P बिन्दु पर विद्युतीय तीव्रता x ab का क्षेत्रफल।
= K E ds या, E. ds
पराविद्युत स्थिरांक के वायु में होने की स्थिति में
पराविद्युत स्थिरांक के वायु में होने की स्थिति में K = 1
∴ E = 4πσ होता है।
16. समान रूप से आवेशित गोला के कारण किसी बिन्दु पर विद्युतीय तीव्रता का व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर⇒ आवेशित गोला के कारण किसी बिन्दु के लिए विद्युतीय तीव्रता का व्यंजक:
(a) जब आवेशित चालक के बाहर बिन्दु स्थित हो : जब आवेशित चालक के बाहर बिन्दु स्थित होमान लिया कि R त्रिज्या तथा O केन्द्र का एक गोला है जिसे +q आवेश से आवेशित किया गया है । O से r दूरी पर स्थित P एक बिन्दु है। O केन्द्र के साथ r त्रिज्या का एक गोला B खींचा।
∴ B गोला का क्षेत्रफल = 4πr2
माना कि P बिन्दु पर विद्युतीय तीव्रता E है।
∴ B तल पर कुल विद्युतीय तीव्रता फ्लक्स = E x4πr2
गॉस के प्रमेय से, कुल विद्युतीय फ्लक्स सतह के अन्दर कुल आवेशों तथा निर्वात की विद्युतशीलता के अनुपात के बराबर होता है।
∴E4r2 = q0
E=q04r2
(b) जब P बिन्दु आवेशित चालक की सतह पर हो :
इस स्थिति में, r = R
अत:
E = q40R2
(c) जब बिन्दु आवेशित चालक के अन्दर है –
गोला के अन्दर कोई आवेश नहीं होता है।
∴ E = 0
17. गॉस के प्रमेय की सहायता से आवेश की समतल चादर के समीप विद्युत क्षेत्र की तीव्रता का व्यंजक प्राप्त करें।
उत्तर ⇒ मान लिया कि एक समतल चादर AB है जिस पर आवेश का पृष्ठ घनत्व σ है । इस समतल चादर के समीप कोई बिंदु P है जहाँ विद्युत क्षेत्र की तीव्रता E का मान ज्ञात करना है।गॉस के प्रमेय की सहायता से आवेश की समतल चादर के
समतल चादर के पृष्ठ के लंबवत एक बेलनाकार तल abcd की कल्पना करें जिसका अक्ष तल के लंबवत है तथा सिरे ab और cd चादर के पृष्ठ के समानांतर है। लिया गया बिन्दु P पृष्ठ ab पर स्थित है।
अब चूंकि विद्युत तीव्रता की दिशा AB के लंबवत अर्थात् बेलन abcd के अक्ष के समानांतर है, अतः विद्युत फ्लक्स का योगदान केवल बेलन के समतल सिरों (ab और cd) पर होगा। यदि हो, तो ab और cd सिरों पर विद्युत फ्लक्स
= EdA + EdA = 2EdA
अतः बेलनाकार तल पर कुल विद्युतीय फ्लक्स = 2 EdA
अब, चूँकि इस बेलनाकार तल के अंदर आवेश की समतल चादर dA क्षेत्रफल स्थित है इसलिए बेलनाकार तल के भीतर कुल आवेश σdA होगा। अतः गॉस के प्रमेय से तल पर कुल विद्युत फ्लक्स
q0 = dA0
2EdA = dA0
or E=20
18. (a) किसी चालक A जिसमें चित्र में दर्शाए अनुसार कोई कोटर है, को Q आवेश दिया गया है। दिखाएँ कि समस्त आवेश चालक के बाह्य पृष्ठ पर प्रतीत होना चाहिए।
(b) उपर्युक्त प्रश्न में अन्य चालक B जिसपर q आवेश है, कोटर में चित्रानुसार धंसा दिया जाता है कि B चालक A से विद्युतरोधी रहे। दिखाएँ कि चालक A के बाहरी सतह पर कुल आवेश Q + q है।
(c) किसी सुग्राही उपकरण को उसके पर्यावरण के प्रबल स्थिर विद्युत क्षेत्रों से परिरक्षित किया जाना है। संभावित उपाय लिखें।
उत्तर ⇒
(a) माना कि चालक A के अन्दर में कोटर है जिसमें आवेश नही है। कोटर के घेरते हुए चालक के अन्दर गाउसीय सतह की कल्पना किया। गाउसीय सतह से जाने वाला विद्युत फ्लक्स φ = 0
q/ε = 0 ∴ q = 0
अतः चालक के अन्दर आवेश नहीं है। सम्पूर्ण आवेश चालक के बाहरी सतह पर है।
(b) जब कोटर में +q आवेश रखा जाता है तब प्रेरण से A के अन्दर के सतह पर -q आवेश उत्पन्न होता है तथा बाहरी सतह पर +q आवेश उत्पन्न होता है। कोटर के अन्दर कुल आवेश = 0
किसी चालक A जिसमें चित्र में दर्शाए अनुसार कोई कोटरचालक A के बाहरी सतह पर कुल आवेश = Q + q.
(c) उपकरण को धात्विक पृष्ठ के पूर्णतः अन्दर रखा जा सकता है। ऐसा करने पर उपकरण विद्युत प्रभाव से परिरक्षित होता है क्योंकि धात्विक पृष्ठ के अन्दर स्थिर विद्युत क्षेत्र नहीं होता है। इस घटना को स्थिर विद्युत परिरक्षित कहते हैं।
उपकरण को धात्विक पृष्ठ।
19. (a) किसी यादृच्छिक स्थिरवैद्युत क्षेत्र विन्यास पर विचार कीजिए। इस विन्यास की किसी शून्य-विक्षेप स्थिति (अर्थात् जहाँ E = 0) पर कोई छोटा परीक्षण आवेश रेखा गया है। यह दर्शाइए कि परीक्षण का संतुलन आवश्यक रूप से अस्थायी है।
(b) इस परिणाम का समान परिणाम तथा चिहों के दो आवेशों (जो एक-दूसरे से किसी दूरी पर रखे हैं) के सरल विन्यास के लिए सत्यापन कीजिए।
उत्तर⇒ इस परिणाम का समान परिणाम तथा चिहों के दो आवेशों
(a) माना कि संतुलन स्थायी है। परीक्षण आवेश को शून्य विक्षेप स्थिति सेकिसी भी दिशा में थोड़ा विस्थापित करने पर शून्य विक्षेप स्थिति की ओर परीक्षण आवेश प्रत्यानयन बल अनुभव करेगा। अर्थात् शून्य विक्षेप स्थिति के समीप सभी विद्युत क्षेत्र रेखाएँ शून्य विक्षेप स्थिति के चारों ओर बंद सतह की कल्पना किया जाए तो बंद सतह से होकर नेट विद्युत फ्लक्स अन्दर की ओर होना चाहिए। परन्तु बंद सतह के भीतर ओवश नहीं हो तब विद्युत फ्लक्स शून्य होता है। अतः संतुलन स्थायी नहीं है।
(b) यदि परीक्षण आवेश को शून्य विक्षेप स्थिति Nयदि परीक्षण आवेश को शून्य विक्षेप स्थितिसे दायें या बायें खिसकाया जाए तो इस पर प्रत्यानयन बल लगेगा। जो परीक्षण आवेश को N की ओर लायेगा। यदि परीक्षण आवेश को N के ऊपर या नीचे की ओर विस्थापित किया जाए तब इर पर विद्युत बल लगता है जो परीक्षण आवेश को N से दूर ले जायेगा । अतः परीक्षण आवेश हमेशा सभी दिशाओं में प्रत्यानयन बल का अनुभव नहीं करेगा। अतः परीक्षण आवेश का संतुलन अस्थायी है।
20. चालक तथा विद्युत रोधी क्या है ? उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर:
चालक तथा विद्युत रोधी की परिभाषा –
चालक: जो पदार्थ आसानी से अपने में से होकर विद्युत को प्रवाहित होने देते हैं उन्हें चालक कहते हैं।
जैसे:- धातुएँ, मानव तथा जंतु शरीर और पृथ्वी चालक हैं।
विद्युतरोधी: काँच, पॉर्सेलेन, प्लास्टिक, नॉयलोन, लकड़ी जैसी अधिकांश अधातुएँ अपने से होकर प्रवाहित होने वाली विद्युत पर उच्च प्रतिरोध लगाती हैं। इन्हें विद्युतरोधी कहते हैं।
जब हम किसी आवेशित वस्तु को पृथ्वी के संपर्क में लाते हैं तो उसका अतिरिक्त आवेश जोड़ने वाले चालक (जैसे हमारा शरीर) में से होते हुए क्षणिक विद्युत धारा उत्पन्न करके भूमि में चला जाता है। आवेशों के भूमि के साथ बंटन की इस प्रक्रिया को भूसंपर्कण (भूसंपर्कित करना) कहते हैं।
भूसंपर्कण विद्युत परिपथों एवं अनुप्रयुक्तियों की सुरक्षा के लिए की गई एक व्यवस्था है। धातु की एक मोटी प्लेट को भूमि में गहराई तक गाड़ा जाता है तथा इस प्लेट से मोटे तारों को निकालकर भवनों में इन तारों का उपयोग मुख्य आपूर्ति के निकट भूसंपर्कण के लिए किया जाता हैं।
एक तीसरी श्रेणी जिसे अर्धचालक कहते हैं, आवेशों की गति में अवरोध उत्पन्न करती है। इस अवरोध का परिमाण चालकों तथा विद्युतरोधियों के मध्यवर्ती होता है।
जैसे: सिलिकॉन, जर्मेनियम।
21.विद्युत क्षेत्र रेखाएं किसे कहते हैं?विद्युत क्षेत्र रेखाओ से सम्बन्धित महत्वपूर्ण गुणधर्म या विशेषताएं बताइए।
उत्तर:
विद्युत क्षेत्र रेखाएं: विद्युत क्षेत्र में वह काल्पनिक रेखाएं जिन पर एकांक धनावेश चलता है। उन रेखाओं को विद्युत क्षेत्र रेखाएं कहते हैं।
विद्युत क्षेत्र रेखाओ से सम्बन्धित महत्वपूर्ण गुणधर्म या विशेषताएं :
विद्युत क्षेत्र रेखा या विद्युत बल रेखा के किसी बिंदु पर खींची गई स्पर्श रेखा , उस बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र की दिशा को व्यक्त करती है।
अर्थात विद्युत क्षेत्र के किसी बिंदु पर विद्युत क्षेत्र सदिश की दिशा ज्ञात करने के लिए उस बिन्दु पर निरूपित विद्युत क्षेत्र रेखा पर रेखा खींची जा सकती है और रेखा की परिणामी दिशा , विद्युत क्षेत्र (उस बिंदु पर) की दिशा होगी।
1. विद्युत बल रेखाएं धनावेश से शुरू होकर ऋणावेश पर समाप्त हो जाती है।
2.एकल आवेश (एक ही आवेश) उपस्थित है तो क्षेत्र रेखाएं अनंत से शुरू होती है और अनन्त पर ही समाप्त होती हुई प्रतीत होती है।
एक विलगित धनावेश के कारण विद्युत क्षेत्र रेखाएँ त्रिज्यत बाहर की तरफ तथा ऋणावेश के कारण क्षेत्र रेखाएं त्रिज्यत अंतर की तरफ होती है।
3.दो विद्युत क्षेत्र रेखा कभी एक दूसरे को नहीं काटती है क्योंकि यदि ये एक दूसरे को काटे तो कटान बिंदु पर दोनों वक्रों पर खींची गयी स्पर्श रेखा दो परिणामी विद्युत क्षेत्रों को व्यक्त करती है जो की वास्तविकता में सम्भव नहीं है।
अतः दो बल रेखाओ का आपस में कटान संभव नहीं है।
4.विद्युत बल रेखाएं खुले वक्र के रूप में होती है क्योंकि ये रेखाएं धन आवेश से शुरू होती है तथा ऋण आवेश पर समाप्त होती है।
5.किसी भी आवेश से शुरू या समाप्त होने वाली बल रेखाओ की संख्या उस आवेश के परिमाण के समानुपाती होती है अर्थात जितनी ज़्यादा रेखाएं उतना ही अधिक परिमाण का आवेश।
6.किसी स्थान पर विद्युत क्षेत्र के लंबवत रखे एकांक क्षेत्रफल से गुजरने वाली बल रेखाओं की संख्या उस स्थान पर क्षेत्र की तीव्रता के तुल्य (समानुपाती) होती है। अर्थात क्षेत्र रेखाएं जितनी पास पास होती है क्षेत्र उतना ही अधिक प्रबल होता है और यदि बल रेखाएं दूर दूर है तो विद्युत क्षेत्र दुर्बल है।
7.एक क्षेत्र रेखा जिस बिंदु आवेश से प्रारम्भ होती है उसी आवेश पर समाप्त नहीं होती है। विद्युत क्षेत्र रेखाएं कभी भी बंद लूप में नहीं होती।
8.विद्युत क्षेत्र रेखाएं लम्बाई की दिशा में सिकुड़ने (संकुचित) का प्रयास करती है अतः कह सकते है की विपरीत आवेशों में आकर्षण होता है।
तथा क्षेत्र रेखाएं चौड़ाई की दिशा में फैलने का प्रयास करती है अतः कहा जा सकता है की समान प्रकृति के आवेश एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते है
9.विद्युत बल रेखाएं समविभव पृष्ठ (आवेशित चालक) के हमेशा लंबवत होती है।
22. विद्युत द्विध्रुव क्या है ?एकसमान बाह्य क्षेत्र में द्विध्रुव को समझाइए।
उत्तर:
विद्युत द्विध्रुव: यदि दो आवेश जिनके बीच की दूरी बहुत कम है और दोनों पर विपरीत आवेश है और बराबर परिमाण है तो इस व्यवस्था या सिस्टम को विद्युत द्विध्रुव कहेंगे विद्युत द्विध्रुव में एक धन आवेश और एक ऋण आवेश कम दूरी पर रखे होते हैं और दोनों आवेशों का परिमाण बराबर होता है ।
परिमाण में समान एवं विजातीय बिंदु आवेशों q तथा –q का कोई युगल जिनके बीच पृथकन 2a है, वैद्युत द्विध्रुव कहलाता है। दोनों आवेशों को संयोजित करने वाली रेखा दिक्स्थान में किसी दिशा को परिभाषित करती है। परिपाटी के अनुसार -q से qकी दिशा द्विध्रुव की दिशा कहलाती है। -q तथा q की अवस्थितियों का मध्य बिंदु द्विध्रुव का केंद्र कहलाता है।
एकसमान बाह्य क्षेत्र में द्विध्रुव : एकसमान विद्युत क्षेत्र E में रखे द्विध्रुव आघूर्ण p के स्थायी द्विध्रुव (स्थायी द्विध्रुव से हमारा तात्पर्य यह है कि p का E से स्वतंत्र अस्तित्व है; यह E द्वारा प्रेरित नहीं हुआ है।
यहाँ आवेश q पर qE तथा -q पर -qE बल लग रहे हैं। चूँकि E एकसमान है अतः – द्विध्रुव पर नेट बल शून्य है। परंतु आवेशों में पृथकन है, अतः बल भिन्न बिंदु पर लगे हैं, जिसके परिणामस्वरूप द्विध्रुव पर बल आघूर्ण कार्य करता है। जब नेट बल शून्य है तो बल -qE
आघूर्ण (बल युग्म) मूल बिंदु पर निर्भर नहीं होता। इसका परिमाण प्रत्येक बल के परिमाण चित्र एकसमान विद्युत क्षेत्र तथा बलयुग्म की भुजा (दो प्रतिसमांतर बलों के बीच लंबवत दूरी) के गुणनफल के बराबर होता है।
बल आघूर्ण का परिमाण = qEx 2 a sine
= 2 qa E sine
इसकी दिशा कागज़ के तल के अभिलंबवत इससे बाहर की ओर है।
px E का परिमाण भी p E sine है तथा इसकी दिशा कागज़ के पृष्ठ के अभिलंबवत बाहर की ओर है।
t = pXE
यह बल आघर्ण द्विध्रव को क्षेत्र E के साथ संरेखित करने की प्रवत्ति रखेगा। -q P q जब p क्षेत्र E के साथ संरेखित हो जाता है तो बल आघूर्ण शून्य होता है।
23.प्रेरण द्वारा आवेशन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
प्रेरण द्वारा आवेशन : जब हम किसी सरकंडे की गोली से किसी आवेशित प्लास्टिक-छड़ को स्पर्श कराते हैं तो छड़ का कुछ आवेश सरकंडे की गोली पर स्थानांतरित हो जाता है और वह आवेशित हो जाती है। इस प्रकार सरकंडे की गोली संपर्क द्वारा आवेशित होती है। तब यह प्लास्टिक-छड़ से प्रतिकर्षित होती है तथा काँच की छड़ जो विजातीय आवेशित है, की ओर आकर्षित होती है। परंतु, कोई विद्युन्मय छड़ हलकी वस्तुओं को क्यों आकर्षित करती है, इस प्रश्न का उत्तर अभी भी नहीं मिल पाया है। आइए, हम यह समझने का प्रयास करें कि निम्नलिखित प्रयोग को करने पर क्या हो सकता है।
(i)विद्युतरोधी स्टैंडों पर रखे दो धातु के गोलों A एवं B को चित्र 1.4 (a) में दर्शाए अनुसार एक दूसरे के संपर्क में लाइए।
(ii)एक धनावेशित छड़ इन गोलों में किसी एक (माना A) के निकट लाइए तथा यह सावधानी बरतिए कि छड़ गोले से स्पर्श न करे। गोले के मुक्त इलेक्ट्रॉन छड़ की ओर आकर्षित होते हैं। गोले B के पिछले पृष्ठ पर धनावेश का आधिक्य हो जाता है। दोनों प्रकार के आवेश धातु के गोलों में आबद्ध रहते हैं, पलायन नहीं कर पाते। अतः वे पृष्ठों पर ही चित्र 1.4(b) में दर्शाए अनुसार रहते हैं। गोले A के बाएँ पृष्ठ पर ऋणावेश का आधिक्य तथा गोले के दाएँ पृष्ठ पर धनात्मक आवेश का आधिक्य होता है। तथापि गोले के सारे इलेक्ट्रॉन गोले A के बाएँ पृष्ठ पर संचित नहीं होते। जैसे ही गोले A के बाएँ पृष्ठ पर इलेक्ट्रॉन एकत्र होने शुरू होते हैं अन्य इलेक्ट्रॉन इनके द्वारा प्रतिकर्षित हो जाते हैं। कुछ ही क्षण में छड़ के आकर्षण के कारण क्रिया तथा संचित आवेशों के कारण प्रतिकर्षण के बीच साम्य स्थापित हो जाता है। चित्र 1.4(b) साम्यावस्था को दर्शाता है। इस प्रक्रिया को आवेश का प्रेरण कहते हैं तथा यह लगभग तात्कालिक है। जब तक काँच की छड़ गोले के निकट रहती है तब तक चित्र में दर्शाए अनुसार संचित आवेश पृष्ठ पर रहता है। यदि छड़ को हटा लेते हैं तो आवेशों पर कोई बाह्य बल कार्य नहीं करता तथा वे अपनी उदासीन अवस्था में वापस लौट जाते हैं।
दो गोलों के साथ प्रेरण द्वारा आवेशन।
(iii) चित्र 1.4(c) में दर्शाए अनुसार काँच की छड़ को बाएँ गोले के निकट रखते हुए दोनों गोलों को एक-दूसरे से कुछ पृथक कीजिए। एेसा करने पर दोनों गोले विजातीय आवेशों द्वारा आवेशित होकर एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं।
(iv) छड़ को हटा लीजिए। गोलों पर आवेश चित्र 1.4(d) में दर्शाए अनुसार स्वयं को पुनर्व्यवस्थित कर लेते हैं। अब दोनों गोलों के बीच पृथकन अधिक कीजिए। एेसा करने पर चित्र 1.4(e) में दर्शाए अनुसार आवेश गोलों पर एकसमान रूप से वितरित हो जाता है।
इस प्रक्रिया में धातु के गोले आवेशित हो जाते हैं। धनावेशित काँच की छड़ के आवेश की कोई क्षति नहीं होती, जो संपर्क द्वारा आवेशित करने की प्रक्रिया के विपरीत है।
जब किसी विद्युन्मय छड़ को हलकी वस्तुओं के निकट लाते हैं तो यही प्रभाव होता है। छड़ वस्तुओं के पास वाले पृष्ठ पर विजातीय आवेश प्रेरित करती है तथा सजातीय आवेश वस्तुओं के दूर वाले भाग पर पहुँच जाता है ऐसा तब भी होता है जब हलकी वस्तु चालक नहीं होती। दोनों प्रकार के आवेशों के केंद्रों में कुछ पृथकन होता है। हम जानते हैं कि सजातीय आवेशों में प्रतिकर्षण तथा विजातीय आवेशों में आकर्षण होता है। तथापि, बल का परिमाण आवेशों के बीच दूरी पर निर्भर करने के कारण आकर्षण बल प्रतिकर्षण बल की तुलना में अधिक होता है। फलस्वरूप कागज़ के टुकड़े, सरकंडे की गोली आदि हलके होने के कारण छड़ की ओर खिंच आते हैं।
24.(a)यदि किसी पिंड से एक सेकंड में 109 इलेक्ट्रॉन किसी अन्य पिंड में स्थानांतरित होते हैं तो 1C आवेश के स्थानांतरण में कितना समय लगेगा?
(b)एक कप जल में कितने धन तथा ऋण आवेश होते हैं?
उत्तर :
(a)1सेकंड में पिंड से 109 इलेक्ट्रॉन निकलते हैं, अतः पिंड द्वारा 1s में दिया जाने वाला आवेश 1.6 × 10-19 × 109 C = 1.6 × 10-10 C
तब 1 C आवेश के संचित होने के समय का आकलन 1 C ÷ (1.6 × 10-10 C/s) = 6.25 × 109 s = 6.25 ×109 ÷ (365 × 24 × 3600) वर्ष = 198 वर्ष। इस प्रकार जिस पिंड से 109 इलेक्ट्रॉन प्रति सेकंड की दर से उत्सर्जन हो रहा है, उससे 1 C आवेश संचित करने में लगभग 200 वर्ष लगेंगे। अतः बहुत से व्यावहारिक कार्यों की दृष्टि से एक कूलॉम आवेश का एक अति विशाल मात्रक है।
तथापि यह जानना भी अति महत्वपूर्ण है कि किसी पदार्थ के 1 घन सेंटीमीटर टुकड़े में लगभग कितने इलेक्ट्रॉन होते हैं। 1 cm भुजा के ताँबे के घन में लगभग 2.5 × 1024इलेक्ट्रॉन होते हैं।
(b) मान लीजिए कि एक कप जल का द्रव्यमान 250 g है। जल का अणु द्रव्यमान 18 g है। इस प्रकार एक मोल (= 6.02 ×1023ल का द्रव्यमान 18 g है। अतः एक कप जल में अणुओं की संख्या = (250/18) × 6.02 × 1023 ।
जल के प्रत्येक अणु में दो हाइड्रोजन परमाणु तथा एक अॉक्सीजन परमाणु होता है, अर्थात, 10 इलेक्ट्रॉन तथा 10 प्रोटॉन होते हैं। अतः कुल धन तथा कुल ऋण आवेश परिमाण में समान होते हैं। आवेश का यह परिमाण = (250/18) × 6.02 × 1023 × 10 × 1.6 × 10-19 C
= 1.34 × 107C
25.बहुल आवेशों के बीच बल से क्या तात्पर्य है? विद्युत क्षेत्र का भौतिक अभिप्राय बताइए।
उत्तर:
बहुल आवेशों के बीच बल : दो आवेशों के बीच पारस्परिक वैद्युत बल कूलॉम नियम द्वारा प्राप्त होता है। उस स्थिति में किसी आवेश पर आरोपित बल का परिकलन कैसे करें, जहाँ उसके निकट एक आवेश न होकर उसे बहुत से आवेश चारों ओर से घेरे हों? निर्वात में स्थित n स्थिर आवेशों q1,q2, q3, ...,qn के निकाय पर विचार कीजिए। q1 पर q2, q3, ..., qn के कारण कितना बल लगता है? इसका उत्तर देने के लिए कूलॉम नियम पर्याप्त नहीं है। याद कीजिए, यांत्रिक मूल के बलों का संयोजन सदिशों के संयोजन के समांतर चतुर्भुज नियम द्वारा किया जाता है। ।
प्रयोगों द्वारा यह सत्यापित हो चुका है कि किसी आवेश पर कई अन्य आवेशों के कारण बल उस आवेश पर लगे उन सभी बलों के सदिश योग के बराबर होता है जो इन आवेशों द्वारा इस आवेश पर एक-एक कर लगाया जाता है। किसी एक आवेश द्वारा लगाया गया विशिष्ट बल अन्य आवेशों की उपस्थिति के कारण प्रभावित नहीं होता। इसे अध्यारोपण का सिद्धांत कहते हैं।
(a) तीन आवेशों (b) बहुल आवेशों के निकाय।
विद्युत क्षेत्र का भौतिक अभिप्राय : आवेशों के किसी भी निकाय के लिए मापने योग्य राशि किसी आवेश पर लगा बल है जिसे सीधे ही कूलॉम नियम तथा अध्यारोपण सिद्धांत द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।
स्थिरवैद्युतिकी के लिए विद्युत क्षेत्र की अभिधारणा सुगम तो है पर वास्तव में आवश्यक नहीं है। विद्युत क्षेत्र आवेशों के किसी निकाय के वैद्युत पर्यावरण को अभिलक्षित करने का सुरुचि संपन्न उपाय है। आवेशों के निकाय के चारों ओर के दिक्स्थान में किसी बिंदु पर विद्युत क्षेत्र आपको यह बताता है कि निकाय को विक्षुब्ध किए बिना यदि इस बिंदु पर कोई एकांक धनात्मक परीक्षण आवेश रखे तो वह कितना बल अनुभव करेगा। विद्युत क्षेत्र आवेशों के निकाय का एक अभिलक्षण है तथा विद्युत क्षेत्र के निर्धारण के लिए आपके द्वारा उस बिंदु पर रखे जाने वाले परीक्षण आवेश पर निर्भर नहीं करता। भौतिकी में क्षेत्र शब्द का उपयोग व्यापक रूप से उस राशि को निर्दिष्ट करने के लिए किया जाता है, जो दिक्स्थान के प्रत्येक बिंदु पर पारिभाषित की जा सके तथा एक बिंदु से दूसरे बिंदु पर परिवर्तित होती हो। चूँकि बल सदिश राशि है, अतः विद्युत क्षेत्र एक सदिश राशि है।
तथापि विद्युत क्षेत्र की अभिधारणा की वास्तविक भौतिक सार्थकता तभी प्रकट होती है जब हम स्थिरवैद्युतिकी से बाहर निकलकर कालाश्रित वैद्युतचुंबकीय परिघटनाओं से व्यवहार करते हैं। मान लीजिए हम त्वरित गति से गतिमान दो दूरस्थ आवेशों q1 तथा q2 के बीच लगे बल पर विचार करते हैं। अब, वह अधिकतम चाल जिससे कोई संकेत अथवा सूचना एक स्थान से दूसरे स्थान तक जा सकती है, वह प्रकाश की चाल c है। इस प्रकार, q2 पर q1की किसी गति का प्रभाव तात्क्षणिक उत्पन्न नहीं हो सकता। कारण (q1 की गति) तथा प्रभाव ( q2 पर बल) के बीच कुछ न कुछ काल विलंब अवश्य होता है। यहीं पर सार्थक रूप में विद्युत क्षेत्र (सही अर्थों में वैद्युतचुंबकीय क्षेत्र) की अवधारणा स्वाभाविक एवं अति उपयोगी है। क्षेत्र का चित्रण इस प्रकार हैः आवेशq1 की त्वरित गति वैद्युतचुंबकीय तरंगें उत्पन्न करती है जो फिर प्रकाश की चाल से फैलकर q2 तक पहुँचती है तथा q2 पर बल लगाती है। क्षेत्र की अवधारणा काल विलंब का सुचारु रूप से स्पष्टीकरण करती है। इस प्रकार, यद्यपि वैद्युत तथा चुंबकीय बलों की संसूचना केवल आवेशों पर इनके प्रभावों (बलों) द्वारा ही की जा सकती है, उन्हें भौतिक सत्व माना जाता है, ये मात्र गणितीय रचनाएँ ही नहीं हैं। इनकी अपनी स्वतंत्र गतिकी है, अर्थात ये अपने नियमों के अनुसार विकसित होते हैं। ये ऊर्जा का परिवहन भी कर सकते हैं। इस प्रकार, कालाश्रित वैद्युतचुंबकीय क्षेत्रों का कोई स्रोत जिसे अल्प समय अंतराल के लिए खोलकर फिर बंद किया जा सकता है, ऊर्जा परिवहन करने वाले वैद्युतचुंबकीय क्षेत्रों को पीछे छोड़ देता है। क्षेत्र की अवधारणा सर्वप्रथम फैराडे ने प्रस्तावित की थी जो भौतिकी की प्रमुख अवधारणाओं में स्थान रखती है।