बिहार बोर्ड भौतिक विज्ञान अध्याय 2 स्थिरवैधुत विभव तथा धारिता दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
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बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 2 स्थिरवैधुत विभव तथा धारिता दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

BSEB > Class 12 > Important Questions > भौतिक विज्ञान अध्याय 2 स्थिरवैधुत विभव तथा धारिता - दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

 1.  2 pF, 3 p F और 4 pF धारिता वाले तीन संबद्ध पाश्र्वक्रम में जोड़े गए।

(a) संयोजन की कुल धारिता क्या है?

(b) यदि संयोजन को 100 V के संभरण से जोड़ दें तो प्रत्येक संबद्ध पर भिन्न ज्ञात हों।

हल-

यहाँ C1 = 2 pF,C2 = 3 pF, C3 = 4 pF तथा संभरण समताता V = 100 वोल्ट

(a) संधारित्रों के पाश्र्वक्रम (शब्दान्तर संयोजन) की कुल धारिता

                                  C = C1 + C2 + C3 

                               C= 2 pF + 3 pF + 4 pF 

                                         C= 9 pF

(b) पाश्र्वक्रम के संयोजन प्रत्येक के सिरों के बीच वोल्टता संभरण वोल्टता के ही होगा अर्थात् V = 100 वोल्ट

इसलिए 

C1 = 2 p F = 2 x 10 -12F पर आवेश

Q1 = C2 x V = 2 x 10 -12 F x 100 वोल्ट = 2 x 10 -10 कूलॉम

C2  = 3 p F = 3 x 10 -12 F पर आवेश

Q2 =C2 x V = 3 x 10 -12 F x 100 वोल्ट = 3 x 10 -10 कूलॉम

C3 = 4 pF = 4 x 10 -12 F पर आवेश

Q3= C3  x V = 4 x 10 -12 F x 100 वोल्ट = 4 x 10 -10 कूलॉम

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2. पट्टों के बीच वायु वाले दाएं पट्टिको संबद्ध की प्रत्येक पट्टिका का क्षेत्र 6 x 10-3 m2 और उनके बीच की दूरी 3 मिमी है। सक्रियता की धारिता को परिकलित करें। यदि इस कारण से 100 वी के संभरण से जोड़ दिया जाता है तो प्रत्येक प्लैटिक पर कितना भार होगा?

हल:-

दिया है, प्लेट क्षेत्र A = 6 x 10-3 m,

 y = 100 वोल्ट 

बीच की दूरी d = 3 mm = 3 x 10-3m

धारिता C = ?,

 प्रत्येक पट्टी पर आवेश = ?

             ∵    C = 0Ad 

 

                   C = 8.85410-12610-3310-3

 

                    C = 17.7 pF = 18pF

                    Q =CV=17.710-12100

                               =17.710-10C

 

 ∴     एक पट्टी का आवेश = +17.710-10C

        दूसरी पट्टी का आवेश = -17.710-10C

 

 3.  आंतरिक त्रिज्या तथा बाहरी त्रिज्या r1वाले एक गोली चार्ज (कोश) पर r2 आवेश है।

(a) बंद के केंद्र पर एक चार्ज रखा जाता है। खुले के अंदर और बाहर के पृष्ठ पर पृष्ठ भार घनत्व क्या है?

(b) क्या किसी कोटर (जो अलग-अलग विहीन है) में इलेक्ट्रिक-क्षेत्र शून्य होता है, चाहे खोली न जाए किसी भी विशिष्ट आकार का हो? स्पष्ट रूप से।

हल-

(a) जब ड्राइवर को केवल Q दिया गया है तो यह पूर्णत: ड्राइवर के बाहरी पृष्ठ पर रहता है। हम जानते हैं कि एक चालक के अंदर नैट अलग शून्य  रहता है; इसलिए खुले के केंद्र पर q आवेश रखने पर, कमरे के बाहरी सतह पर -q आवेश को प्रेरित किया जाता है तथा बाहरी सतह पर अतिरिक्त + q आवेश को देखा जाता है।

            अतः            भीतरी सतह पर आवेश= -q

                               बाहरी सतह पर अतिरिक्त आवेश = Q + q

                           ∴   भीतरी सतह पर पृष्ठीय आवेश घनत्व 1= - q4r12

 

                         तथा बाहरी सतह पर पृष्ठीय आवेश घनत्व 2  = Q+q4r12

(b) हाँ, यदि कोटर अलगविहीन है तो उसके भीतर विद्युत-क्षेत्र शून्य होगा। इसके विपरीत कल्पना यह है कि किसी चालक के भीतर एक विशिष्ट आंकड़ा का विद्युतविहीन कोटर है जिसका क्षेत्र-क्षेत्र शून्य नहीं है। अब एक ऐसे बंधक पर विचार करें जिसके कुछ हिस्से कोटर के भीतर हकदार हैं और शेष भाग कोटर से बाहर परंतु चालक के अंदर है। चूंकि चालक के भीतर विद्युत-क्षेत्र शून्य है; इसलिए यदि किसी अपराध को किसी दुर्घटना के कारण अनुदेश ले जाया जाता है तो किए गए क्षेत्र को नैट कार्य प्राप्त होगा। परंतु यह स्थिति स्थिरविद्युत क्षेत्र के लिए सत्य नहीं है। एटी: हमारी परिकल्पना कि कोटर के भीतर विद्युत-क्षेत्र शून्य नहीं है, गलत है। अर्थात् चालक के अंदर आवेशविहीन कोटर के अंदर इलेक्ट्रिक-क्षेत्र शून्य होगा।

4. 2F वाले एक समान फ़ैक्टरी फ़ैक्टर की फ़्लाइट का क्षेत्र क्या है, जबकि फ़र्ज़ी का अलगाव 0.5 सेमी है? [अपने उत्तर से आप यह समझ सकते हैं कि सामान्य कारण uF या कम परिसर के क्यों होते हैं? हालांकि-अपघटन संबद्धों (इलेक्ट्रोलाइटिक कैपेसिटर) की धारिता कहीं अधिक (0.1 F) होती है क्योंकि ड्राइवर के बीच अति सूक्ष्म अलगाव होता है।

हल-

दिया है, समान्तर पट्ट की धारिता C = 2F.

इसके बीच (दूरी) d= 0.5 cm = 5 x 10 -3  m

प्लेट का क्षेत्रफल A =?0 = 8.85410-12 c2Nm2

 

                C = 0Ad 

                 A = Cd0 = 2510-38.85410-12

                  A = 1130106 m2 = 1130 km2

 

5.(a) पृथ्वी के पृष्ठ के सापेक्ष वायुमण्डल की ऊपरी परत लगभग 400 kV पर है, जिसका विद्युतीकरण कार्यक्षेत्र बढ़ने के साथ कम होता है। पृथ्वी के पृष्ठ के सापेक्ष विद्युत-क्षेत्र लगभग 100 Vm-1  है। तब फिर जब हम घर से बाहर खुले में चले जाते हैं तो हम इलेक्ट्रिक शॉक क्यों नहीं लगते? (घर को आयरन का पिंजरा मान जुड़ा हुआ है; इसलिए उसके भीतर कोई विद्युत-क्षेत्र नहीं है।)

(b) एक व्यक्ति की शाम के समय उसके घर के बाहर 2 मीटर उच्च ब्लॉकेज पट्ट होता है जिसके शिखर पर 1 मीटर की बड़ी एल्युमिनियम की शीट होती है। अगली सुबह अगर वह मेटल की शीट को छूता है तो क्या उसे बिजली का झटका लगेगा?

(c) वायु की थोड़ी-सी चालकता के कारण  सारे संसार में औसतन वायुमण्डल में विसर्जन धारा 1800 A निर्धारित किया जाता है। तब यथासमय माहौल स्वयं पूर्णतः निरावेशित हो बिजली का फैसला क्यों नहीं हो जाता? दूसरे शब्दों में, माहौल को कौन अलग रखता है?

(d) तड़ित के दौरान वातावरण की विद्युत-विद्युत, ऊर्जा के किन रूपों में क्षय होती है?

[संकेत : पृष्ठ आवेश घनत्व =10-9 cm-1 के अनुरूप पृथ्वी के (पृष्ठ) पर नीचे की दिशा में लगभग 100Vm-1  का विद्युत क्षेत्र होता है। लगभग 50 किमी साउंडट्रैक तक (जिसके बाहर यह ड्राइवर है) वातावरण की थोड़ी सी ड्राइवरता के कारण लगभग + 1800 C का आवेश प्रति सेकण्ड संपूर्ण रूप से पृथ्वी में पंप रहते हैं। हालांकि, पृथ्वी निरावेशित नहीं होती, क्योंकि संसार में हर समय लगातार तड़ित तथा तड़ित-झंझा होती रहती है, जो समान मात्रा में ऋणावेश पृथ्वी में पंप करती है।]

उत्तर-

(a) हमारा शरीर तथा पृथ्वी के समान विभव पर रहने के लिए । कारण हमारे शरीर से कोई विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होती इसलिए हमें कोई इलेक्ट्रिक झटका नहीं लगता।

(b) हाँ, पृथ्वी और ऐलुमिनियम की शीट आपस में एक गठबंधन बनाते हैं और ब्लॉकेज पट्ट परवैद्युत का कार्य करते हैं। ऐलुमिनियम की शीट वायुमण्डलीय  किसी के लगातार बने रहने से भिन्न होती रहती है और उच्च विभव प्राप्त करती है; इसलिए जब किसी व्यक्ति की चादर छूट जाती है तो उसके शरीर से एक विद्युत धारा प्रवाहित होती है और इस कारण उस व्यक्ति को बिजली का झटका लग जाता है।

(c) तथापि वायुमण्डल 1800 A की औसत विसर्जन धारा के कारण निरंतर निरावेशित होता है। परन्तु साथ ही तड़ित तथा झंझावात के कारण यह लगातार आवेशित भी होता रहता है और इन दोनों के बीच एक सन्तुलन बना रहता है जिससे कि वायुमंडल कभी भी पूर्णत: निरावेशित नहीं हो पाता।

(d) वातावरण के दौरान विद्युतीय विद्युत, प्रकाश ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा और ऊष्मीय ऊर्जा  के रूप में क्षय होता है।

6. आवेशों के निकाय की स्थितिज ऊर्जा क्या है ?

उत्तर : —जब दो या दो से अधिक आवेशों को अनंत से लाकर एक दूसरे के समीप व्यवस्थित करके या रखकर एक निकाय बनाया जाता है , इस निकाय को बनाने के लिए एक कार्य करना पड़ता है और यह किया गया कार्य इस निकाय में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है , इस संचित ऊर्जा को निकाय की स्थितिज ऊर्जा कहते है। इसको U से व्यक्त किया जाता है।

परिभाषा : दो या दो से अधिक आवेशों के निकाय की स्थितिज ऊर्जा उस कार्य के तुल्य होती है जो इन आवेशों को अनन्त से लाकर एक निकाय की रचना करने में करना पड़ता है।

1. दो आवेशों के निकाय की स्थितिज ऊर्जा : -

इसमें हम दो आवेशों पर अध्ययन करेंगे , इन दोनों आवेशों को अनंत से लाकर एक निकाय की रचना करके इसकी स्थितिज ऊर्जा ज्ञात करेंगे।

माना दो आवेश है q1 तथा q2 , दोनों आवेश r दूरी पर रखे है , दोनों आवेशों की स्थिति क्रमशः A व B है अर्थात बिंदु A व B पर रखे है।

q1 आवेश के कारण B पर उत्पन्न विद्युत विभव का मान

                                            V1 =+q140r

 

हम यह भी जानते है की किसी बिंदु पर विद्युत विभव का मान उस कार्य के तुल्य होता है जो एकांक धनावेश को अनंत से उस बिन्दु तक लाने में किया जाता है।

q2 आवेश को अनन्त से बिन्दु B तक लाने में किया गया कार्य या दूसरे शब्दों में कहे तो  q1 तथाq2  दोनों आवेशों द्वारा रचित इस निकाय की विद्युत ऊर्जा

U = W =V1q2

यहाँ V1 का मान रखने पर

स्थितिज ऊर्जा = U

                                            W1 =q1q240r12

 

इससे हम यह भी निष्कर्ष निकाल सकते है की जब हमने दोनों आवेश धनात्मक लिए है तो स्थितिज ऊर्जा का मान धनात्मक प्राप्त होता है , लेकिन यदि एक आवेश ऋणात्मक लिया जाए तो स्थितिज ऊर्जा का मान ऋणात्मक प्राप्त होता है।

इसलिए स्थितिज ऊर्जा का मान निकालते समय आवेश को उसकी प्रकृति के साथ रखना चाहिए

7.परावैद्युत पदार्थ क्या है? किसी परावैद्युत पदार्थ के वैद्युत ध्रुवण से क्या तात्पर्य है?

उत्तर –  

परावैद्युत पदार्थ :- परावैद्युत पदार्थ वह पदार्थ होता है जिसके अन्दर सभी परमाणुओं में उनके सभी इलेक्ट्रॉन नाभिक के आकर्षण बल से दृढ़तापूर्वक बँधे रहते हैं। अतः ऐसे पदार्थों में वैद्युत चालन के लिए कोई भी मुक्त इलेक्ट्रॉन उपलब्ध नहीं होता अथवा मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या नगण्य होती है। अतः परावैद्युत पदार्थ वे पदार्थ हैं जिनमें होकर वैद्युत प्रवाह नहीं होता। फिर भी यदि कोई वैद्युत-क्षेत्र किसी परावैद्युत पदार्थ पर आरोपित  किया जाता है तो परावैद्युत पदार्थ के पृष्ठों पर प्रेरित आवेश उत्पन्न हो जाता है। अतः परावैद्युत पदार्थ वे कुचालक (insulator) पदार्थ हैं जिनमें वैद्युत प्रभाव (electric effects) बिना वैद्युत चालन के संचरित होते हैं।” किसी वैद्युत चालक के किसी बिन्दु पर दिया गया आवेश उसकी पूरी सतह पर शीघ्रता से फैल जाता है, जबकि किसी परावैद्युत के किसी बिन्दु पर दिया गया आवेश उसी के निकटवर्ती क्षेत्र में स्थिर रहता है। उदाहरण-काँच, रबर, प्लास्टिक, ऐबोनाइट, माइका, मोम, कागज, लकड़ी आदि।

परावैद्युत धुवण- किसी परावैद्युत अथवा विद्युतरोधी को बाह्य वैद्युत क्षेत्र में रखने पर इसके धन व ऋण आवेशों के केन्द्र पृथक्-पृथक् हो जाते हैं, जिससे इनमें वैद्युत द्विध्रुव आघूर्ण प्रेरित हो जाते हैं। ऐसे परावैद्युत को ध्रुवित होना कहते हैं तथा इस घटना को वैद्युत ध्रुवण कहते हैं।

8.   संधारित्र क्या है ? यदि किसी संधारित्र की पट्टिकाओं के बीच कोई परावैद्युत है तथा यह संधारित्र किसी दिष्ट स्रोत से संयोजित है। अब बैटरी को हटाया जाता है और फिर परावैद्युत को हटा दिया जाता है। यह उल्लेख कीजिए कि ऐसा करने पर संधारित्र की धारिता उसमें संचित ऊर्जा, विद्युत क्षेत्र, संचित आवेश तथा वोल्टता में वृद्धि होगी, कमी होगी अथवा नियत रहेगी?

उत्तर :

 संधारित्र – यह ऐसी व्यवस्था है जिसमें विद्युत ऊर्जा को संचित किया जाता है, जिससे उसके आकार या क्षेत्रफल में परिवर्तन के बिना ही उसकी धारिता घटायी या बढ़ायी जाती है।

संधारित्र की पट्टिकाओं से संयोजित दिष्ट स्रोत (बैटरी) को हटा लेने पर संधारित्र की प्लेटों पर आवेश नियत रहेगा।

संधारित्र की प्लेटों के बीच से परावैद्युत को हटा लेने पर उसकी धारिता कम हो जाएगी।

संधारित्र में संचित ऊर्जा E=σ0K, धारिता C घट जाने के कारण अधिक हो जाएगी।

प्लेटों के बीच वैद्युत क्षेत्र V=qC, परावैद्युत हटा लेने पर बढ़ जाएगा।

प्लेटों के बीच वोल्टता V=qC, धारिता कम हो जाने के कारण (या V = E.d के अनुसार) बढ़ जाएगी।

9.  r1 त्रिज्या तथा q1 आवेश वाला एक छोटा गोला,r2 त्रिज्या और आवेश के गोलीय खोल (कोश) से घिरा है। दर्शाइए यदि q1 धनात्मक है तो (जब दोनों को एक तार द्वारा जोड़ दिया जाता है) आवश्यक रूप से आवेश, गोले से खोल की तरफ ही प्रवाहित होगा, चाहे खोल पर आवेश q2 कुछ भी हो।

उत्तर ⇒ यहाँ r2,r1 छोटे गोल और गोलीय खोल की इस प्रकार गाउस के सिद्धांत से क्रमशः त्रिज्याएँ हैं। खोल गोल को घेरे हुए हैं। + q1 आवेश गोल पर है तथा + q2 आवेश खोल पर। हमें ज्ञात है कि आवेशित चालक के भीतर विद्युत क्षेत्र शून्य होता है अर्थात् E = 0, इस प्रकार गाउस के सिद्धांत से

s Eds = q20

विद्युत क्षेत्र शून्य होता (गोलीय खोल में  q2 = 0 क्योंकि E = 0 इसके अन्दर)

यहाँ  q2 खोल के बाहरी पृष्ठ पर होना चाहिए। 

                         

 अब +  q1 आवेश वाला गोल खोल अन्दर बन्द है। अतः खोल के आन्तरिक पृष्ठ पर  -q1 आवेश और बाहरी पृष्ठ पर +q1 आवेश उत्प्रेरित होंगे।

∴   खोल के बाहरी पृष्ठ पर कुल आवेशq2 + q1

आवेश सदैव बाहरी पृष्ठ पर रहता है। इसलिए q1 आवेश गोल के बाहरी पृष्ठ से खोल के बाहरी पृष्ठ की ओर उस सम प्रवाहित होगा जब उन्हें तार से जोड़ते हैं।

10. विद्युत ध्रुवण तथा विद्युत विस्थापन से आप क्या समझते है ?

उत्तर ⇒

 विद्युत ध्रुवण – विधुत क्षेत्र में प्रति एकांक आयतन के द्विध्रुव आघूर्ण को विधुत द्विध्रुव कहते है। इसे P द्वारा व्यक्त किया जाता है।

माना कि विद्युत क्षेत्र में स्थित किसी भी पदार्थ के प्रत्येक अणु या परमाणु का द्विध्रुव आघूर्ण p है तथा प्रति एकांक आयतन में अणुओं या परमाणुओं की संख्या n है, तो माध्यम का ध्रुवण, P = np होता है।

         विद्युत ध्रुवण

                                                

ध्रुवण का S.I मात्रक कूलम्ब/मीटर² है।

माना कि किसी विद्युत क्षेत्र के लम्बवत् स्थित 1 मुटाई एवं α अनुप्रस्थ काट की एक पराविद्युत सिल्ली AB का ध्रुवण क्षेत्र की दिशा के अनुरेखा P है, तो सिल्ली का कुल विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण, p = P (1∝) = (Pα)1 है। चूँकि सिल्ली की सतह A तथा B के बराबर एवं विपरीत आवेश एक-दूसरे से 1 दूरी पर स्थित होने के कारण ध्रुवित आवेश = Pα तथा उसका तलीय घनत्व, σp = P होता है।

विद्युत विस्थापन – जब आविष्ट चालक के सम्पर्क में किसी विद्युत माध्यम को लाया जाता है तो माध्य के ध्रुवण के कारण चालक का प्रभावी आवेश एवं विद्युत क्षेत्र कम हो जाता है । माना कि चालक के मुक्त आवेश का तलीय घनत्व σ तथा इसके सम्पर्क में स्थित माध्यम के पृष्ठ पर ध्रुवण के फलस्वरूप उत्पन्न विपरीत आवेश का तलीय घनत्व -σp है, तो चालक का प्रभावी तलीय घनत्व σ’= σ-σp है।

अतः कूलम्ब प्रमेय से पराविद्युत माध्यम में स्थित चालक के समीप विद्युत क्षेत्र की तीव्रता

                            = '0 = -P0 =-P0

                                ∴     = 0E+P

जहाँ D = 0E+P द्वारा परिभाषित राशि को विद्युत विस्थापन कहते हैं। पराविद्युत माध्यम में स्थित चालक की सतह के किसी बिन्दु से अभिलम्बवत् विद्युत विस्थापन का घटक चालक के मुक्त आवेश के तलीय घनत्व के बराबर है।

अतः किसी भी बंद पृष्ठ पर विद्युत विस्थापन का फ्लक्स उस पृष्ठ के अन्दर स्थित मुक्त आवेश के बराबर होता है।

अर्थात्

                         q =ds = D.nds 

जहाँ, ds चालक का अल्पांश पृष्ठ है

11 . विद्युत फ्लक्स से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर ⇒

 विद्युत फ्लक्स – विद्युत क्षेत्र में स्थित किसी पृष्ठ से लम्बवत् दिशा में गुजरने वाली कुल विद्युत बल रेखाओं की संख्या को उस पृष्ठ से सम्बद्ध विद्युत फ्लक्स कहते हैं। इसे φ द्वारा व्यक्त किया जाता है।

माना कि किसी विद्युत क्षेत्र माना कि समरूप विद्युतीय क्षेत्र में किसी पृष्ठ S के छोटे से भाग का क्षेत्रफल सदिश छोटे से भाग का क्षेत्रफल सदिश विद्युत माना कि समरूप विद्युतीय क्षेत्र की दिशा से θ कोण बनाता है तो इस छोटे से भाग से सम्बद्ध फ्लक्स dφ = (Ecosθ)ds = विद्युत फ्लक्स  है।

अतः सम्पूर्ण पृष्ठ से सम्बद्ध विद्युत फ्लक्स φ = ∫∫विद्युत फ्लक्स  है।

विद्युत फ्लक्स का S.I. मात्रक न्यूटनमीटर 2 कूलम्ब है।

12 . विद्युत विभवान्तर तथा विद्युत विभव क्या है ?

उत्तर ⇒

 विद्युत विभवान्तर – विद्युत क्षेत्र में एकांक धनावेश को साम्य में रखते हुए, एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक उसकी तीव्रता के विरुद्ध ले जाने में संपादित कार्य को उन बिन्दुओं के बीच का विभवान्तर कहते हैं। विद्युत विभवान्तर, विद्युत विभवान्तर  होता है, जहाँ W संपादित कार्य है।

आवेश q0 मुक्त राशि पद में विद्युत क्षेत्र का वर्णन करने के लिए इसकी धारणा का प्रचलन हुआ। विभवान्तर का मात्रक वोल्ट है।

विद्युत विभव – विद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर अनन्त से एकांक धनावेश को लाने में संपादित कार्य को उस बिन्दु पर विद्युत विभव कहते हैं।

क्योंकि विद्युत क्षेत्र में किसी बिन्दु पर निरपेक्ष विभव के लिए किसी बिन्दु को निर्देश या मानक बिन्दु माना जाता है। इसको अनन्त पर माना जाता है जिसका विभव शून्य मानते हैं, क्योंकि आवेश विन्यास अनन्त पर शून्य क्षेत्र उत्पन्न करता है। अतः बिन्दु A के अनन्त होने पर B बिन्दु पर विद्युत विभव, अनन्त होने पर B बिन्दु पर विद्युत विभव है। विद्युत विभव का मात्रक भी जूल/कूलम्ब = वोल्ट होता है।

13.. संधारित्र क्या है ? इसकी धारिता से आप क्या समझते हैं ? प्रमाणित करें कि एक विलगित गोलाकार चालक की धारिता उसकी त्रिज्या के अनुक्रमानुपाती होती है।

उत्तर ⇒

संधारित्र – यह वैसी व्यवस्था है जिसमें विद्युत ऊर्जा को संचित किया जाता है, जिससे उसके आकार या क्षेत्रफल में परिवर्तन के बिना ही उसकी धारिता घटायी या बढ़ायी जाती है।

धारिता – “किसी चालक की धारिता आवेश का वह परिमाण है जो उसके विभव को इकाई से बढ़ा देता है।”

अथवा, “किसी चालक की धारिता, आवेश तथा विभवान्तर का अनुपात होता है।”

धारिता = आवेश/विभवान्तर

जब किसी चालक में आवेश दिया जाता है तो उसका विभव उसमें दिये गये आवेश के परिमाण के समानुपाती बढ़ जाता है।

माना कि q आवेश के परिमाण चालक को दिया गया है, जिससे उसमें V विभव बढ़ता है तो q α V

या,             q = CV,

जहाँ C एक चालक का स्थिरांक है, जो आकार, रूप तथा घिरे हुए माध्यम पर निर्भर करता है तथा चालक की धारिता कहलाता है।

∴     C = q/V धारिता का मात्रक फैराड है। एक फैराड = कूलम्ब/ वोल्ट होता है। यह एक बड़ा मात्रक है। छोटे मात्रकों में माइक्रो फैराड (μF) या पिको फैराड (pF) का प्रयोग किया जाता है।

धारिता का विमीय सूत्र M-1L-2T4A2है।

 माना कि r त्रिज्या का एक विलगित गोलाकार चालक +q आवेश से समान रूप से आवेशित है, तो उसकी सतह पर विद्युत विभव, प्रमाणित करें कि एक विलगित गोलाकार चालक की धारिता उसकी त्रिज्या के अनुक्रमानुपाती होती है है।

अतः विलगित गोलाकार चालक की धारिता,

                                C = qv

                                     =q140 qr

                                     = 40r

                                     =r9109  फैरड  

 जहाँ, 40r= 1 9109  न्यूटन-मीटर 2 कूलम्ब   एक नियतांक है 

अतः 

                          C∝r

14. परावैद्युत पदार्थ से आप क्या समझते हैं ? अथवा, संधारित्र में परावैद्युत का क्या कार्य है ?

 विद्युतशीलता या परावैद्युतता तथा पराविद्युत स्थिरांक या विशिष्ट प्रेरणधारिता से आप क्या समझते हैं ?

उत्तर ⇒

 परावैद्युत पदार्थ – वैसे पदार्थ परावैद्युत कहलाते हैं, जिन्हें संधारित्र की प्लेटों के बीच रखने पर उन प्लेटों के बीच विभवान्तर का मान कम होता है अर्थात् उसकी धारिता बढ़ जाती है । परावैद्युत पदार्थ विद्युत विरोधी होता है। जैसे-काँच, अभ्रक, पैराफिन, मोम, तेल आदि।

 ⇒ विद्युतशीलता या परावैद्युतता तथा पराविद्युत स्थिरांक या विशिष्ट प्रेरणधारिता किसी माध्यम की विद्युतशीलता आपेक्षिक विद्युतशीलता तथा निर्वात की विद्युतशीलता का गुणनफल होता है। माना कि किसी माध्यम की विद्युतशीलता आपेक्षिक विद्युतशीलताr तथा निर्वात की विद्युतशीलता 0 है तो हम पाते हैं कि ε =r 0

या,

                              r= 0

माध्यम या निर्वात की विद्युतशीलता का मात्रक न्यूटन मीटर2/कूलम्ब2 है। किन्तु आपेक्षिक विद्युतशीलता का कोई मात्रक नहीं होता है। आपेक्षिक विद्युतशीलता को पराविद्युत स्थिरांक भी कहते हैं। इसे K द्वारा व्यक्त किया जाता है। इसलिए पराविद्युत स्थिरांक K का भी कोई मात्रक नहीं है।

अतः  

                r= k = 0 =माध्यम की विद्युतशीलता निर्वात की विद्युतशीलता

.                           

वायु या निर्वात के लिए r या K का मान 1 (एक) है। पराविद्युत स्थिरांक को विशिष्ट प्रेरण धारिता भी कहते हैं।

15.समविभव पृष्ठ किसे कहते हैं। समविभव पृष्ट की विशेषता बताइए। 

उत्तर ➖

समविभव पृष्ठ -"ऐसा पृष्ठ जिसके प्रत्येक बिन्दु पर विद्युत् विभव समान होता है, समविभव पृष्ठ कहलाता है।" समविभव पृष्ठ की विशेषताएँ-विभवान्तर की परिभाषा के अनुसार किन्हीं दो बिन्दुओं के मध्य विभवान्तर उस कार्य के बराबर होता है जो एकांक धनावेश को निम्न विभव के बिन्दु से उच्च विभव के बिन्दु तक ले जाने में करना पड़ता है अर्थात् A व B बिन्दुओं के मध्य विभवान्तर

VB- VA =WAB

यदि A व B दोनों बिन्दु एक समविभव पृष्ठ पर स्थित हैं,

तो VB =VA

WAB = VB - VA = 0

अर्थात् “समविभव पृष्ठ पर किन्हीं दो बिन्दुओं के मध्य परीक्षण आवेश को एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में कोई कार्य नहीं किया जाता है।" समविभव पृष्ठ के किन्हीं भी दो बिन्दुओं के बीच कोई विभवान्तर नहीं होता।

एकांक धनावेश को किसी समविभव पृष्ठ पर एक सूक्ष्म विस्थापन वा देने में किया गया कार्य

dW = E dl cos θ = 0

∴ cos θ = 0 ⇒ θ = 90°,

 अर्थात् 

स्पष्ट है कि विद्युत् क्षेत्र सदैव समविभव पृष्ठ के लम्बवत् होता है।

एक बिन्दु आवेश के कारण इससे दूरी पर उत्पन्न विभव

                                                 V =1 40 qr  ....(1)

स्पष्ट है कि यदि r का मान नियत हो जाये, तो v का मान भी नियत (constant) हो जायेगा।

अथवा 

किसी वैद्युत क्षेत्र में खींचा गया वह पृष्ठ जिस पर स्थित सभी बिन्दुओं पर वैद्युत विभव बराबर हों, समविभव पृष्ठ कहलाता है। दूसरे शब्दों में, समविभव पृष्ठ पर किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच वैद्युत विभवान्तर शून्य होता है। अत: किसी आवेश को समविभव पृष्ठ के एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु तक ले जाने में कोई कार्य नहीं करना पड़ेगा। परन्तु यह तभी सम्भव है जबकि वैद्युत आवेश को वैद्युत क्षेत्र के लम्बवत् ले जाया जाये।

 

                                         

 

समविभव पृष्ठ की विशेषता :-

समविभव पृष्ठ प्रत्येक बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र की दिशा के लम्बवत् होता है। वैद्युत क्षेत्र में भिन्न-भिन्न बिन्दुओं पर क्षेत्र की दिशा बल-रेखाओं द्वारा प्रदर्शित की जाती है। अतः समविभव पृष्ठ के प्रत्येक बिन्दु पर बल-रेखाएँ पृष्ठ के लम्बवत् होती हैं। एक बिन्दु-आवेश + q से चलने वाली बल-रेखाएँ खींची गई हैं। बिन्दु-आवेश को केन्द्र मानकर खींचे गये किसी गोलीय पृष्ठ (spherical surface) का प्रत्येक बिन्दु, आवेश से समान दूरी पर होने के कारण समान वैद्युत विभव पर होगा। अत: इस प्रकार का गोलीय पृष्ठ समविभव पृष्ठ होगा। बिन्दु-आवेश से चलने वाली बल-रेखाएँ त्रिज्य (radial) होंगी तथा गोलीय पृष्ठ पर लम्बवत् होंगी।

 

16. वैद्युत संधारित्र क्या होते हैं? इनके  उपयोगों का उल्लेख कीजिए। 

उत्तर-

वैद्युत संधारित्र- वैद्युत संधारित्र एक ऐसा समायोजन है जिसमें किसी चालक के आकार में परिवर्तन किए बिना उस पर आवेश की पर्याप्त मात्रा संचित की जा सकती है। माना कि किसी चालक को q आवेश देने पर उसका वैद्युत विभव V हो जाता है, तब चालक की धारिता,  

                                                    C = q/ V 

संधारित्रों के उपयोग- संधारित्रों के प्रमुख उपयोग निम्नवत् हैं-

1. आवेश का संचय करने में संधारित्र को मुख्यत: आवेश का संचय करने में उपयोग किया जाता है। किसी परिपथ में क्षणिक एवं प्रबल धारी प्राप्त करने के लिए उस परिपथ में एक आवेशित संधारित्र जोड़ दिया जाता है। क्षणिक एवं शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के  लिए स्पन्दित वैद्युत चुम्बक  का प्रयोग करते हैं जो किसी आवेशित संधारित्र से ही प्रबल धारा प्राप्त करते हैं।

2. ऊर्जा का संचय करने में-आवेशित संधारित्र की प्लेटों के बीच वैद्युत क्षेत्र में पर्याप्त वैद्युत स्थितिज ऊर्जा संचित रहती है। यदि संख्या में बहुत अधिक आवेशित संधारित्रों का एक स्थिरवैद्युत विभव तथा धारिता 93 संयोजन (संधारित्र बैंक) बनाएँ तो उस ऊर्जा की बड़ी मात्रा को संचित किया जा सकता है और समय आने पर उससे आवश्यकतानुसार ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है।

3. इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में विभिन्न कार्यों के लिए संधारित्रों का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, रेडियो-आवृत्ति के वैद्युत चुम्बकीय  दोलनों के उत्पादन एवं संसूचन में अर्थात् रेडियो, टेलीविजन इत्यादि के कार्यक्रमों के प्रसारण तथा अभिग्रहण में, वैद्युत शक्ति-सम्भरण  में वोल्टता के उच्चावचन  कम करने में प्रायः फिल्टर प्रयोग होते हैं और संधारित्र एकदिशीय धारा के स्पन्दनों  के आयाम को कम करके दिष्ट धारा प्राप्त कराने में सहायक होता है।

4. वैद्युत उपकरणों में—वैद्युत उपकरणों जैसे-प्रेरण कुण्डली , मोटर इंजन के ज्वलन तन्त्र , बिजली के पंखे इत्यादि में संधारित्रों का उपयोग किया जाता है। हम जानते हैं कि जब किसी प्रेरकीय परिपथ को अचानक तोड़ा जाता है, तो उस स्थान पर चिंगारी  उत्पन्न होती है, परन्तु यदि उसे परिपथ में संधारित्र को लगाया गया है, तो परिपथ के टूटने से उत्पन्न प्रेरित धारा संधारित्र की प्लेटों को आवेशित कर चिंगारी उत्पन्न होने की सम्भावना को समाप्त कर देती है।

5. वैज्ञानिक अध्ययन में-वैज्ञानिक अध्ययनों में भी संधारित्रों का विशेष महत्त्व है। विभिन्न प्रकार के संधारित्रों में विभिन्न आकार की प्लेटों के बीच अलग-अलग  विन्यासों  के वैद्युत क्षेत्र स्थापित कर उसमें विभिन्न परावैद्युत पदार्थों को रखकर वैद्युत क्षेत्र में उनके वैद्युत व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है।

17.  दिये गये चित्र में M और N के बीच समतुल्य धारिता की गणना करें

Bihar Board 12th Physics Numericals Important Questions Part 2 with Solutions 4

उत्तर:

MPN की समतुल्य धारिता, 

               1C = 1C1 + 1C2

                  = 14 + 14 

                   = 24

         C = 2F

यह C फिर  4 F धारिता से समानान्तर क्रम में जुड़ा है | 

 अतः M   और N   के बीच समतुल्य धारिता = 2 + 4 

                                                       = 6F

 

18. दिये गये चित्र में (a) M और N तथा M और B के बीच समतुल्य धारिता ज्ञात करें।

उत्तर:

Bihar Board 12th Physics Numericals Important Questions Part 2 with Solutions 5

(a) MAN की समतुल्य धारिता,

                1C = 1C1 + 1C2

                     = 16 + 16 

                     = 26

                     =13

∴ C = 3μF

फिर MBN में समतुल्य धारिता

                              1C" = 16 + 16   = 26 =13

                                    ∴ C = 3μF

ये दोनों समानान्तर क्रम में रहते हैं

∴ M और N के बीच समतुल्य धारिता = 3 + 3 = 6μF

(b) MANB में समतुल्य धारिता

                                         1C = 16 + 16 + 16  

                                              = 36   = 12

या, C = 2μF

फिर यह C तथा 6F समानान्तर क्रम में जुड़ा है।

∴ M और B के बीच समतुल्य धारिता = 2 + 6

                                                     = 8μF.

19.  परावैद्युत सामर्थ्य एवं आपेक्षिक परावैधुतांक को परिभाषित करें।

उत्तर:

परावैद्युत सामर्थ्य : किसी परावैद्युत पदार्थ का परावैद्युत सामर्थ्य (या शक्ति) विद्युत क्षेत्र की तीव्रता का वह अधिकतम मान होता है जिसे वह पदार्थ बिना मंजन हुये सहन कर सकता है। सामान्य दाव पर शुष्क हवा के लिए परावैद्युत सामर्थ्य लगभग 3 × 106Vm-1 होता है।

आपेक्षिक परावैद्युतांक : किसी परावैद्युत माध्यम का आपेक्षिक परावैद्युतांक निवात के सापेक्ष उस माध्यम का परावैद्युतता होता ∈r है। इसे, या k से सूचित किया जाता है।

अतः किसी परावैद्युत या माध्यम का आपेक्षिक परावैद्युतांक

   =माध्यम की परावैद्युतता निर्वात  की परावैद्युतता

यानि  r =  0

 : इसका कोई मात्रक या विमा नहीं होता है। हवा या निर्वात के लिए  r =1 लिया जाता है।

20. .स्थिरवैद्युत विभव क्या है?बिंदु आवेश के कारण विभव बताइए।

उत्तर:-  स्थिरवैद्युत विभव: - स्थिरवैद्युत क्षेत्र के प्रदेश के किसी बिंदु पर स्थिरवैद्युत विभव (V) वह न्यूनतम कार्य है जो किसी एकांक धनावेश को अनंत से उस बिंदु तक लाने में किया जाता है।

बल द्वारा किसी एकांक धनावेश को अनंत से किसी बिंदु तक लाने में किया गया कार्य = उस बिंदु पर स्थिरवैद्युत विभव (V)

यदि एक कुलाम आवेश को अनन्त से क्षेत्र के किसी बिंदु तक लाने में किया गया कार्य एक जूल हो तब उस बिन्दु पर विद्युत विभव एक वोल्ट के तुल्य होता है। इसका विमीय समीकरण [M¹L²T ⁻³ A⁻¹] होता है।

बाह्य बल द्वारा किसी एकांक धनावेश को बिंदु R से P तक लाने में किया गया कार्य = Vₚ – VR 

             = (Uₚ – UR)/q

यहाँ Vₚ तथा VR क्रमशः बिंदु P तथा R के स्थिरवैद्युत विभव हैं। Uₚ तथा UR क्रमशः बिंदु P तथा R की स्थितिज ऊर्जा है।

बिंदु आवेश के कारण विभव :-

मूल बिंदु पर स्थित किसी बिंदु आवेश Q पर विचार कीजिए। सुस्पष्टता की दृष्टि से Q को धनात्मक लीजिए। हम बिंदु P पर मूल बिंदु से स्थिति सदिश r के साथ विभव निर्धारित करना चाहते हैं। इसके लिए हमें एकांक धनावेश को अनंत से उस बिंदु तक लाने में किया गया कार्य परिकलित करना चाहिए। Q > 0 के लिए, परीक्षण आवेश पर प्रतिकर्षण बल के विरुद्ध किया गया कार्य धनात्मक होता है।

परिभाषा के अनुसार यह आवेश Q के कारण P पर विभव है अतः 

            V(r) = Q/4πε₀r

 

21.(a)  सिद्ध कीजिए कि किसी ऐसे बन्द समविभव पृष्ठ, जिसके भीतर कोई आवेश नहीं है, में कोई समविभव आयतन परिबद्ध होना चाहिए।

(b) सिद्ध कीजिए कि, यदि कोई विद्युत रोधित, अनावेशित चालक किसी आवेशित चालक के समीप रखा है, तथा कोई अन्य चालक वहाँ नहीं है, तो अनावेशित पिण्ड का विभव आवेशित वस्तु तथा अनन्त के विभव के मध्यस्थ होना चाहिए।

उत्तर:-

(a)मान लीजिए यह सत्य नहीं है। तब पृष्ठ के तुरन्त भीतर पृष्ठ की तुलना में विभव भिन्न होना चाहिए जिसके फलस्वरूप कोई विभव प्रवणता होनी चाहिए। इसका यह अर्थ हुआ कि पृष्ठ के अन्तर्मुखी अथवा बहिर्मुखी क्षेत्र रेखाएँ होनी चाहिए। चूँकि पृष्ठ, समविभव पृष्ठ है, दूसरे सिरे पर ये रेखाएँ दुबारा पृष्ठ पर नहीं हो सकतीं। इस प्रकार यह केवल तभी संभव है जब क्षेत्र रेखाओं के दूसरे सिरे भीतर आवेशों पर हों, जो आधार तथ्य के परस्पर विरोधी हैं। अतः भीतर समस्त आयतन समान विभव पर होना चाहिए।

(b)विद्युत क्षेत्र के अनुदिश आवेशित चालक से अनावेशित चालक की ओर के किसी भी पथ पर विचार कीजिए। इस पथ पर विभव निरन्तर कम होगा। अनावेशित चालक से अनन्त की ओर के अन्य पथ पर विभव और घटेगा। यह अपेक्षित तथ्य को सिद्ध करता है।

22. संधारित्र का श्रेणी क्रम संयोजन का उल्लेख कीजिए | 

उत्तर :-

 संधारित्र का श्रेणी क्रम संयोजन :-   श्रेणी क्रम संयोजन के अंतर्गत पहले संधारित्र की दूसरी प्लेट को दूसरे संधारित्र की पहली प्लेट से जोड़कर तथा दूसरे संधारित्र की दूसरी प्लेट को तीसरे संधारित्र की पहली प्लेट से जोड़ देते हैं। ओर यदि संधारित्र की संख्या अधिक है तो आगे भी इसी क्रम में जोड़ते हैं। संधारित्र के इस संयोजन को श्रेणीक्रम संयोजन कहते हैं।

माना तीन संधारित्र C1, C2 एवं C3 हैं। इनको श्रेणी क्रम में दो X और Y बिंदुओं के बीच जोड़ा गया है। तो प्रत्येक संधारित्र की प्लेटों पर आवेश समान होगा। जबकि प्रत्येक प्लेटों के बीच विभवांतर क्रमशःV1, V2 एवंV3 होंगे। तब

V1= qC1

V2= qC2

 एवं    V3= qC3

माना X और Y बिंदुओं के बीच कुल विभवांतर V है तो

V =V1 + V2 +V3

इनके मान रखने पर,

V= qC1 + qC2 + qC3        ………………  (1)

यदि X और Y बिंदुओं के बीच तुल्य धारिता C हो तो

V= qC    …………………(2)

अतः समीकरण (1) व समीकरण (2) की तुलना करने पर

qC = qC1 + qC2 + qC3

qC = q1C1 + 1C2 + 1C3

1C = 1C1 + 1C2 + 1C3

 यही संधारित्र का श्रेणी क्रम संयोजन का सूत्र है। श्रेणी क्रम में जुड़े सभी संधारित्र पर आवेश की मात्रा समान होती है।

अतः स्पष्ट होता है कि दो या अधिक संधारित्र श्रेणीक्रम में जुड़े हैं। तो उनकी तुल्य धारिता का व्युत्क्रम, दोनों संधारित्रों की अलग-अलग धारिताओं के व्युत्क्रम के योग के बराबर होता है।

23 . संधारित्र का समांतर क्रम संयोजन  का उल्लेख कीजिए | 

उत्तर :-

 संधारित्र का समांतर क्रम संयोजन :-  समांतर क्रम संयोजन में दो या दो से अधिक संधारित्र को एक साथ जोड़ने के लिए प्रत्येक संधारित्र की पहली प्लेट को एक बिंदु X से जोड़ देते हैं। तथा प्रत्येक संधारित्र की दूसरी प्लेट को दूसरे बिंदु Y से जोड़ देते हैं। ओर यदि अधिक संधारित्र हैं। तो आगे भी इसी क्रम में जोड़ते हैं। तब संधारित्रों के इस संयोजन को समांतर क्रम संयोजन कहते हैं।

संधारित्र का समांतर क्रम संयोजन

माना तीन संधारित्र C1, C2 एवंC3 हैं। इनको समांतर क्रम में दो X और Y बिंदुओं के बीच जोड़ा गया है। तो प्रत्येक संधारित्र पर विभवांतर समान होगा। जबकि संधारित्रों पर आवेश क्रमशः q1, q2 एवं ,q3 होगा। तब

q1 =C1V

q2 = C2V

तथा   q3  = C3V

यदि तीनों संधारित्र पर कुल आवेश q है तो आवेश के संरक्षण से

q = q1 +q2 + q3

सभी के मान रखने पर

q = C1V +  C2V+ C3V    ……………(1)

यदि X और Y बिंदुओं के बीच तुल्य धारिता C हो तो

q = CV     …………………(2)

अतः समीकरण (1) व समीकरण (2) की तुलना करने पर

                          CV = C1V +  C2V+ C3V 

                         CV = V(C1 +  C2+ C3 )

                             C = (C1 +  C2+ C3 )

 यही संधारित्र का समांतर क्रम संयोजन का सूत्र है। समांतर क्रम में जुड़े सभी संधारित्र पर विभवांतर की मात्रा समान होती है।

अतः स्पष्ट होता है कि दो या अधिक संधारित्र समांतर क्रम में जुड़े हैं। तो उनकी तुल्य धारिता, दोनों संधारित्रों की अलग-अलग धारिताओं के योग के बराबर होती है।


24.परावैद्युत तथा ध्रुवण क्या है

 उत्तर :-      परावैद्युत तथा ध्रुवण :-  परावैद्युत अचालक पदार्थ होते हैं। चालकों की तुलना में इनमें कोई आवेश वाहक नहीं (अथवा नगण्य) होता। क्या होता है जब किसी चालक को किसी बाह्य विद्युत क्षेत्र में रखा जाता है? चालक में मुक्त आवेश वाहक गति करके अपने को इस प्रकार समायोजित कर लेते हैं |कि प्रेरित आवेशों के कारण विद्युत क्षेत्र बाह्य क्षेत्र का विरोध करता है।

यह उस समय तक होता रहता है जब तक कि स्थिर स्थिति में दोनों क्षेत्र एक-दूसरे का निरसन कर देते हैं तथा चालक के भीतर नेट स्थिरवैद्युत क्षेत्र शून्य होता है। किसी परावैद्युत में आवेश की यह मुक्त ।

गति संभव नहीं होती। फिर भी यह पाया जाता है कि बाह्य क्षेत्र परावैद्युत के पृष्ठ पर कुछ आवेश प्रेरित कर देता है जो एक ऐसा क्षेत्र उत्पन्न करता है जो बाह्य क्षेत्र का विरोध करता है।

परंतु चालक से किसी बाह्य विद्युत क्षेत्र में किसी चालक तथा निरक्षित नहीं करता। यह केवल क्षेत्र को घटा देता है। इस प्रभाव की परावैद्युत के व्यवहार में अंतर। सीमा परावैद्युत की प्रकृति पर निर्भर करती है। इस प्रभाव को समझने के लिए हमें किसी परावैद्युत पदार्थ में आण्विक स्तर पर आवेश वितरण के अध्ययन की आवश्यकता होगी।

किसी पदार्थ के अणु ध्रुवी अथवा अध्रुवी हो सकते हैं। किसी अध्रुवी अणु में धनावेश तथा ऋणावेश के केंद्र संपाती अधवी अण| H. होते हैं। तब अणु का कोई स्थायी (अथवा आंतरिक) द्विध्रुव आघूर्ण नहीं होता। ऑक्सीजन (O) तथा हाइड्रोजन (H.) अणु अध्रुवी अणुओं के उदाहरण हैं जिनमें सममिति के कारण कोई द्विध्रुव आघूर्ण नहीं होता।

इसके विपरीत कोई ध्रुवी अणु वह होता है जिसमें धनावेशों तथा ऋणावेशों के केंद्र पृथक-पृथक (उस स्थिति में भी जब कोई बाह्य क्षेत्र नहीं है) होते हैं। ऐसे अणुओं में स्थायी द्विध्रुव आघूर्ण होता है।

HCl जैसा आयनी अणु अथवा जल (H,O) का कोई अणु ध्रुवी अणुओं के उदाहरण हैं। ध्रुवी अणु किसी बाह्य विद्युत क्षेत्र में अध्रुवी अणु के धनावेश तथा ऋणावेश विपरीत दिशाओं में विस्थापित हो जाते हैं। यह विस्थापन तब रुकता है जब अणु के अवयवी आवेशों पर बाह्य चित्र 2.21 ध्रवी तथा अधवी अणओं के कछ उदाहरण। बल प्रत्यानयन बल (अणु में आंतरिक क्षेत्रों के कारण) द्वारा संतुलित हो जाता है। अतः अध्रुवी अणु एक प्रेरित द्विध्रुव आघूर्ण विकसित कर लेता है। उस स्थिति में परावैद्युत को बाह्य क्षेत्र द्वारा ध्रुवित कहा जाता है।

25. चालक-स्थिरवैद्युतिकी से क्या तात्पर्य है | 

उत्तर :-   धात्विक चालकों में ये वाहक इलेक्ट्रॉन होते हैं। धातुओं में, बाह्य (संयोजी) इलेक्ट्रॉन अपने परमाणु से अलग होकर गति करने के लिए मुक्त होते हैं। ये इलेक्ट्रॉन धातु के अंदर गति करने के लिए मुक्त होते हैं परंतु धातु से मुक्त नहीं हो सकते।

ये मुक्त इलेक्ट्रॉन एक प्रकार की ‘गैस’ की भाँति आपस में परस्पर तथा आयनों से टकराते हैं तथा विभिन्न दिशाओं में यादृच्छिक गति करते हैं। किसी बाह्य विद्युत क्षेत्र में, ये क्षेत्र की दिशा के विपरीत बहते हैं।

वाहक होते हैं; परंतु इस प्रकरण में स्थिति अधिक जटिल होती है-आवेश वाहकों की गति बाह्य विद्युत क्षेत्र के साथ-साथ रासायनिक बलों  द्वारा भी प्रभावित होती है। यहाँ हम अपनी चर्चा ठोस धात्विक चालकों तक ही सीमित रखेंगे।

चालक-स्थिरवैद्युतिकी से संबंधित निम्न  महत्वपूर्ण परिणाम :- 

1.चालक के भीतर स्थिरवैद्युत क्षेत्र शून्य होता है

किसी उदासीन अथवा आवेशित चालक पर विचार कीजिए। यहाँ कोई बाह्य स्थिरवैद्युत क्षेत्र भी हो सकता है। स्थैतिक स्थिति में, जब चालक के भीतर अथवा उसके पृष्ठ पर कोई विद्युत धारा नहीं होती, तब चालक के भीतर हर स्थान पर स्थिरवैद्युत क्षेत्र शून्य होता है।

इस तथ्य को किसी चालक को परिभाषित करने के गुण के रूप में माना जा सकता है। चालक में मुक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं। जब तक विद्युत क्षेत्र शून्य नहीं है, मुक्त आवेश वाहक एक बल का अनुभव करेंगे और उनमें बहाव होगा।

स्थैतिक स्थिति में मुक्त इलेक्ट्रॉन स्वयं को इस प्रकार वितरित कर लेते हैं कि चालक के भीतर हर स्थान पर विद्युत क्षेत्र शून्य होता है। किसी चालक के भीतर स्थिरवैद्युत क्षेत्र शून्य होता है।

2. आवेशित चालक के पृष्ठ पर, पृष्ठ के प्रत्येक बिंदु पर स्थिरवैद्युत क्षेत्र अभिलंबवत होना चाहिए

यदि E पृष्ठ के अभिलंबवत नहीं है तो उसका पृष्ठ के अनुदिश कोई शून्येतर घटक होगा। तब पृष्ठ के मुक्त इलेक्ट्रॉन पृष्ठ पर किसी बल का अनुभव करेंगे और गति करेंगे।

अतः, स्थैतिक स्थिति में E का कोई स्पर्श रेखीय घटक नहीं होना चाहिए। इस प्रकार, किसी आवेशित चालक के पृष्ठ पर स्थिरवैद्युत क्षेत्र पृष्ठ के हर बिंदु पर पृष्ठ के अभिलंबवत होना चाहिए। (किसी चालक के लिए जिस पर कोई पृष्ठीय आवेश घनत्व नहीं है, उसके पृष्ठ तक पर भी क्षेत्र शून्य होता है।)

3. स्थैतिक स्थिति में किसी चालक के अभ्यंतर में कोई अतिरिक्त आवेश नहीं हो सकता

किसी उदासीन चालक के प्रत्येक लघु आयतन अथवा पृष्ठीय अवयव में धनात्मक तथा ऋणात्मक आवेश समान मात्रा में होते हैं। जब किसी चालक को आवेशित किया जाता है, तो स्थैतिक स्थिति में अतिरिक्त आवेश केवल उसके पृष्ठ पर विद्यमान रहता है। यह गाउस नियम से स्पष्ट है।

किसी चालक के भीतर किसी यादृच्छिक आयतन अवयव पर विचार कीजिए। आयतन अवयव ५ को परिबद्ध करने वाले किसी बंद पृष्ठ S पर स्थिरवैद्युत क्षेत्र शून्य होता है। इस प्रकार, S से गुजरने वाला कुल फ्लक्स शून्य है।

अतः गाउस नियम के अनुसार S पर परिबद्ध कोई नेट आवेश नहीं है। परंतु पृष्ठ S को आप जितना छोटा चाहें, उतना छोटा बना सकते हैं, अर्थात आयतन को अत्यल्प (लोपी बिंदु तक छोटा) बनाया जा सकता है। इसका अभिप्राय यह हुआ कि चालक के भीतर कोई नेट आवेश नहीं है तथा यदि कोई अतिरिक्त आवेश है तो उसे पृष्ठ पर विद्यमान होना चाहिए।

4. चालक के समस्त आयतन में स्थिरवैद्युत विभव नियत रहता है तथाइसका मान इसके पृष्ठ पर भी समान ( भीतर के बराबर) होता है

यह उपरोक्त परिणाम 1 तथा 2 का अनुवर्ती है। चूंकि किसी चालक के भीतर E = 0 तथा इसका पृष्ठ पर कोई स्पर्श रेखीय घटक नहीं होता अतः इसके भीतर अथवा पृष्ठ पर किसी छोटे परीक्षण आवेश को गति कराने में कोई कार्य नहीं होता।

अर्थात, चालक के भीतर अथवा उसके पृष्ठ पर दो बिंदुओं के बीच कोई विभवांतर नहीं होता। यही वांछित परिणाम है। यदि चालक आवेशित है तो चालक के पृष्ठ के अभिलंबवत विद्युत क्षेत्र होता है;

इसका यह अभिप्राय है कि चालक के पृष्ठ के किसी बिंदु का विभव चालक से तुरंत बाहर के बिंदु के विभव से भिन्न होगा।