बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 10 तरंग प्रकाशिकी दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1. तरंगाग्र क्या है ? तरंगाग्र के प्रकार लिखिए |
उत्तर :- तरंगाग्र :-
किसी माध्यम में किसी क्षण खींचा गया ऐसा पृष्ठ जिसमें स्थित सभी कण कंपन की समान कला में हों, तब इस प्रकार के पृष्ठ को तरंगाग्र कहते हैं।
समांग माध्यम में किसी तरंग को तरंगाग्र, तरंग संचरण की दिशा के लंबवत् होता है। तरंगाग्र विभिन्न आकृतियों के हो सकते हैं। तरंगाग्र के लंबवत् खींची गई रेखा तरंग संचरण की दिशा को निरूपित करती है। इस रेखा को किरण कहते हैं।
तरंगाग्र के प्रकार :-
तरंगाग्र दो प्रकार के होते हैं।
1. समतल तरंगाग्र
2. गोलीय तरंगाग्र
1. समतल तरंगाग्र :-
जब कोई तरंग माध्यम में केवल एक ही दिशा में संचरित होती है। तब किसी क्षण इसी दिशा के लंबवत् खींचे गए पृष्ठ पर स्थित सभी कण कंपन की समान कला में होंगे। तब इस दिशा में तरंगाग्र को समतल तरंगाग्र कहते हैं।
समतल तरंगाग्र में किरणें ऋजुरेखीय होती हैं।
2. गोलीय तरंगाग्र :-
यदि माध्यम में एक बिंदु स्रोत से तरंगे उत्पन्न हो रही हैं तब तरंगे माध्यम में सभी दिशाओं में संचरित होती हैं। यदि बिंदु स्रोत को केंद्र मानकर उसके चारों ओर गोलीय पृष्ठ खींच दें तो पृष्ठ पर स्थित माध्यम के कण समान कला में कंपन कर रहे होंगे। तब इस दिशा में तरंगाग्र को गोलीय तरंगाग्र कहते हैं।
यदि तरंग स्रोत रेखीय होता है तब तरंगाग्र बेलनाकर होगा।
आशा करते हैं कि तरंगाग्र किसे कहते हैं इसके प्रकार से संबंधित यह लेख आपको पसंद आया होगा। यह टॉपिक ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है बस कभी-कभी इसकी परिभाषा और प्रकार एक या दो नंबर में पूछ लिया जाता है।
2. हाइगेंस का तरंग सिद्धांत क्या है, द्वितीयक तरंगिकाओं की परिकल्पनाएं बताइए |
उत्तर :- हाइगेंस का तरंग सिद्धांत :-
हॉलैंड के वैज्ञानिक क्रिस्टिआन हाइगेंस ने प्रकाश तरंगों के संबंध में एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसे हाइगेंस का तरंग सिद्धांत कहते हैं।
इस सिद्धांत के अनुसार, प्रकाश तरंगों के रूप में चलता है प्रकाश स्रोत से निकलकर ये तरंगे सभी दिशाओं में प्रकाश की चाल से गमन करती हैं। क्योंकि प्रकाश तरंगों के संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है। अतः हाइगेंस ने एक सर्वव्यापी माध्यम ईथर की कल्पना की। क्योंकि ईथर में प्रकाश तरंग के संचरण होने के सभी गुण उपस्थित हैं ईथर लगभग भारहीन होता है। यह किसी भी माध्यम में प्रवेश कर सकता है। ईथर का घनत्व बहुत कम होता है। तथा इसमें प्रत्यास्थता का गुण बहुत अधिक होता है। इसी कारण प्रकाश तरंग ईथर में अधिक वेग से गमन करती हैं। एवं जब यह तरंगे हमारी आंख की रेटिना पर पड़ती है तो हमें वस्तु दिखाई देने लगती है।
हाइगेंस के तरंग सिद्धांत के गुण :-
हाइगेंस के तरंग सिद्धांत द्वारा प्रकाश के अपवर्तन तथा परावर्तन के नियमों की व्याख्या की जा सकती है।
हाइगेंस के तरंग सिद्धांत द्वारा प्रकाश के व्यतिकरण एवं विवर्तन की व्याख्या की जा सकती है।
हाइगेंस के तरंग सिद्धांत के दोष :-
हाइगेंस के तरंग सिद्धांत द्वारा प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या नहीं की जा सकी।
इस सिद्धांत में प्रकाश को अनुदैर्ध्य माना गया, जिस कारण हाइगेंस के तरंग सिद्धांत प्रकाश के ध्रुवण की व्याख्या नहीं कर सका।
हाइगेंस का द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धांत :-
हाइगेंस ने द्वितीयक तरंगिकाओं के सिद्धांत के लिए निम्नलिखित परिकल्पना प्रस्तुत की जो निम्न प्रकार से हैं।
1. जब किसी माध्यम में स्थित तरंग स्रोत से तरंगे निकलती है तो स्रोत की सभी दिशाओं में स्थित माध्यम के कण कंपन करने लगते हैं। माध्यम का वह पृष्ठ जिसमें स्थित प्रत्येक कण समान कला में कंपन करते हैं। तब माध्यम के उस पृष्ठ को तरंगाग्र कहते हैं। तरंग स्रोत से अधिक दूरी पर जाने पर तरंगाग्र समतल हो जाता है।
2. तरंगाग्र पर उपस्थित सभी कण एक नए तरंग स्रोत का कार्य करते हैं। इन नए तरंग स्रोत से सभी दिशाओं में तरंगे निकलने लगती हैं। इन नवीन तरंगों को द्वितीयक तरंगिकाएं कहते हैं। माध्यम में द्वितीयक तरंगिकाओं की चाल, प्राथमिक तरंगिकाओं की चाल के बराबर ही होती है अर्थात् यह दोनों प्रकार की तरंगे समान चाल से आगे बढ़ती हैं।
3. यदि किसी समय इन द्वितीयक तरंगिकाओं का आवरण अर्थात् उन्हें स्पर्श करता हुआ पृष्ठ अगर खींचता है तब यह आवरण उस समय तरंगाग्र की नई स्थिति को प्रदर्शित करता है।
Note – वह दिशा जिसमें तरंगाग्र आगे की ओर बढ़ता है। तब उसे किरण कहते हैं। समांग माध्यम में किरणें सदैव तरंगाग्र के लंवबत् होती हैं। तथा किरणों के समूह को प्रकाश पुंज कहा जाता है। जब प्रकाश स्रोत बहुत अधिक दूरी पर होता है तब तरंगाग्र के किसी छोटे भाग को समतल तरंगाग्र माना जा सकता है।
3. हाइगेंस के तरंग सिद्धांत के प्रयोग द्वारा समतल तरंगों के अपवर्तन की व्याख्या कीजिए |
उत्तर :- हाइगेंस के तरंग सिद्धांत के प्रयोग द्वारा समतल तरंगों के अपवर्तन की व्याख्या कीजिए? यह प्रश्न महत्वपूर्ण है यह वार्षिक परीक्षाओं में पूछ लिया जाता है इसी टाइप का एक प्रशन ओर है
हाइगेंस के तरंग सिद्धांत के प्रयोग द्वारा समतल तरंगों के परावर्तन की व्याख्या कीजिए? इन दोनों में से किसी एक प्रश्न की परीक्षा में आने की संभावना बहुत ज्यादा होती है इसलिए आप सभी छात्र इन दोनों टॉपिक को अच्छे से समझे और चित्र द्वारा परिभाषा का प्रयोग करें।
हाइगेंस सिद्धांत द्वारा समतल तरंगों का अपवर्तन :-
जब कोई तरंग एक माध्यम से दूसरे किसी माध्यम में प्रवेश करती है तो दूसरे माध्यम में वह अपने मार्ग से विचलित हो जाती है इस घटना को अपवर्तन कहते हैं।
तरंग के अपवर्तन की घटना में तरंग की चाल और उसकी तरंदैर्ध्य बदल जाती है जबकि तरंग की आवृत्ति अपरिवर्तित रहती है।
माना XX’ एक अपवर्तक पृष्ठ है। जो दो माध्यमों का सीमा पृष्ठ है। पहले माध्यम में तरंग की चाल v1 तथा दूसरे माध्यम में v2 है। माना पहले माध्यम में एक समतल तरंगाग्र AB तिरछा आपतित होता है। तथा t = 0 समय पर यह समतल तरंगाग्र बिंदु A पर स्पर्श करता है। माना तरंगाग्र के बिंदु B को अपवर्तक पृष्ठ के बिंदु A1 तक पहुंचने में लिया गया समय t है। तब
BA1 = v1t
जैसे-जैसे आपतित तरंगाग्र AB आगे की बढ़ता जाता है यह अपवर्तक पृष्ठ A और A1 के बीच के बिंदुओं से टकराता है। अतः हाइगेंस के सिद्धांत के अनुसार अपवर्तक पृष्ठ के बीच स्थित सभी बिंदु द्वितीयक तरंगिकाओं के स्रोत बन जाते हैं। तथा इस प्रकार सबसे पहले बिंदु A से द्वितीयक तरंगिकाएं चलती है जो दूसरे माध्यम तक की दूरी t समय में तय करती हैं। तो
AB1 =v2t
तथा BA1 =v1t
अब बिंदु A को केंद्र मानकर AB1 त्रिज्या का एक गोलीय चाप खींचते हैं। तथा बिंदु A1 से इस चाप पर एक स्पर्श रेखा A1B1 खींचते हैं। इस प्रकार A1B1 सभी द्वितीयक तरंगिकाओं को स्पर्श करेगा। अतः A1B1 अपवर्तित तरंगाग्र होगा।
माना आपतित तरंगाग्र AB तथा अपवर्तित तरंगाग्र A1B1, अपवर्तक पृष्ठ XX’ के साथ क्रमशः i तथा r कोण बनाते हैं।
तब समकोण ∆ABA1 में
sin i = BA1AA1
तथा sin i = v1AA1 समीकरण(1)
ठीक इसी समकोण ∆AA1B1 में
sinr = AB1AA1
एवं sinr = v2AA1 समीकरण(2)
अब समीकरण(1) को समीकरण(2) से भाग करने पर
sin isin r = v1v2
या sin isin r = v1v2 = नियतांक
यही स्नेल का अपवर्तन का नियम है अथवा यह भी कह सकते हैं कि यह अपवर्तन का द्वितीय नियम है। एवं चित्र से स्पष्ट है कि आपतित किरण, अपवर्तित किरण तथा आपतन बिंदु पर अभिलंब तीनों एक ही तल में हैं। यह अपवर्तन का द्वितीय नियम है।
4. हाइगेंस का तरंग सिद्धांत के प्रयोग द्वारा तरंगों के परावर्तन की व्याख्या कीजिए |
हाइगेंस सिद्धांत द्वारा तरंगों का परावर्तन :-
जब कोई तरंग किसी चिकने व पॉलिशदार तल पर गिरती है तो तल से टकराकर उसका अधिकांश भाग वापस उसी माध्यम में लौट आता है। इस घटना को परावर्तन कहते हैं।
माना XX’ एक परावर्तक पृष्ठ है। जिस पर एक समतल तरंगाग्र AB इस प्रकार आपतित होता है कि तरंग संचरण की किरण परावर्तक पृष्ठ के बिंदु A पर अभिलंब से i कोण बनाती है। माना तरंगाग्र की चाल v है तथा तरंगाग्र के बिंदु B को परावर्तक पृष्ठ के बिंदु A1 तक पहुंचने में t qसमय लगता है।
जैसे-जैसे तरंगाग्र AB आगे की बढ़ता जाता है यह परावर्तक पृष्ठ के बिंदुओं A और A1 के बीच के बिंदुओं से टकराता है। अतः हाइगेंस के सिद्धांत के अनुसार परावर्तक पृष्ठ के बीच स्थित सभी बिंदु द्वितीयक तरंगिकाओं के स्रोत बन जाते हैं। तथा A और A1 के बीच स्थित सभी बिंदुओं से द्वितीयक तरंगिकाएं निकलने लगती हैं। यह तरंगिकाएं परावर्तक पृष्ठ के दूसरे माध्यम में नहीं जाती हैं बल्कि पहले माध्यम में ही ऊपर की ओर v चाल से फैल जाती हैं।
इस प्रकार सबसे पहले बिंदु A से द्वितीयक तरंगिकाएं चलती है जो समतल तरंगाग्र के बिंदु B से A1तक की दूरी को t समय में तय करती हैं। तब
AB1 = vt
या BA1= vt
अब समतल तरंगाग्र के बिंदु A को केंद्र मानकर AB1 त्रिज्या का एक गोलीय चाप खींचते हैं। तथा बिंदु A1 से इस चाप पर एक स्पर्श रेखा खींचते हैं। इस प्रकार A1B1 सभी द्वितीयक तरंगिकाओं को स्पर्श करेगा। अतः A1B1 परावर्तित तरंगाग्र होगा।
माना आपतित तरंगाग्र AB तथा परावर्तित तरंगाग्र A1B1, परावर्तक पृष्ठ XX’ के साथ क्रमशः i तथा r कोण बनाते हैं।
तब समकोण ∆ABA1 तथा ∆AA1B1 में
AB1 = BA1 = vt
चूंकि दोनों त्रिभुज समकोण हैं तब समकोण त्रिभुज प्रमेय द्वारा
∠ABA1 = ∠AB1A1
दोनों त्रिभुज ABA1 तथा AA1B1 के लिए भुजा AA1 एक उभयनिष्ठ भुजा है। तब इस प्रकार दोनों त्रिभुज सर्वांगसम त्रिभुज होंगे। अतः
∠BAA1 = ∠B1A1A
अतः आपतनकोण i = परावर्तनकोण r
चित्र द्वारा स्पष्ट होता है कि आपतित किरण, परावर्तित किरण तथा आपतन बिंदु पर अभिलंब तीनों एक ही तल में है। यह परिवर्तन का प्रथम नियम है। तथा तथा आपतन कोण i परिवर्तन कोण r के बराबर है। यह परिवर्तन का द्वितीय नियम है।
5. ब्रूस्टर का नियम क्या है सूत्र तथा ब्रूस्टर कोण ज्ञात कीजिये |
उत्तर :- ब्रूस्टर का नियम :-
फ्रांसीसी वैज्ञानिक मैलस ने यह ज्ञात किया कि जब अध्रुवित प्रकाश किसी पारदर्शी माध्यम के पृष्ठ पर परावर्तित होता है तो यह अध्रुवित प्रकाश आंशिक रूप से समतल ध्रुवित हो जाता है।
ब्रूस्टर ने अध्ययन द्वारा यह बताया कि परावर्तित प्रकाश में ध्रुवित प्रकाश की मात्रा, आपतन कोण पर निर्भर करती है। तथा एक विशेष आपतन कोण के लिए परावर्तित प्रकाश पूर्ण रूप से समतल ध्रुवित प्रकाश होता है। एवं इसके कंपन आपतन तल के लंबवत् होते हैं। इस आपतन कोण को ध्रुवण कोण कहते हैं। तथा इसे iP द्वारा निरूपित किया जाता है।
पारदर्शी माध्यम के अपवर्तनांक n तथा ध्रुवण कोण iP निम्न प्रकार से संबंधित होते हैं।
n = tan iP
इस संबंध को ब्रूस्टर का नियम कहते हैं।
वायु कांच के लिए ब्रूस्टर कोण का मान 57° होता है।
ब्रूस्टर के नियम से यह भी निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि परावर्तित तथा अपवर्तित किरणें परस्पर लंबवत होती हैं।
आइए इसे निम्न प्रकार से सिद्ध करते हैं।
माना XX’ कांच का एक पृष्ठ है जिस पर AB आपतित किरण तथा BC परावर्तित किरण और BD अपवर्तित किरण है। पृष्ठ पर आपतन कोण iP तथा अपवर्तन कोण r है।
तब स्नेल के नियम से
n = sin ipsin r समीकरण(1)
जहां n वायु के सापेक्ष कांच का अपवर्तनांक है।
बूस्टर के नियम से
n = tan iP या sin ipcos ip समीकरण(2)
अब दोनों समीकरणों की तुलना करने पर
n = sin ipsin r = sin ipcos ip
तथा sin r = cos iP
या sin r = cos(90° – iP)
त्रिकोणमितीय सूत्र sin(90° – θ) = cosθ से
sin r = sin iP
दोनों ओर समीकरणों की तुलना करने पर
r = 90° – iP
या r + iP =90°
6 . ध्रुवित, अध्रुवित तथा समतल ध्रुवित प्रकाश किसे कहते हैं और अंतर क्या है ?
उत्तर :- अध्रुवित प्रकाश :-
वह प्रकाश जिसमें विद्युत वेक्टर के कंपन प्रकाश के संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में सभी दिशाओं में समान रूप से होते हैं। तो इस प्रकार के प्रकाश को अध्रुवित प्रकाश कहते हैं।
चित्र द्वारा अध्रुवित प्रकाश को स्पष्ट किया गया है।
ध्रुवित प्रकाश :-
वह प्रकाश जिसमें विद्युत वेक्टर के कंपन प्रकाश के संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में सभी दिशाओं में समान रूप से न होकर केवल एक दिशा में होते हैं। तो इस प्रकार के प्रकाश को ध्रुवित प्रकाश कहते हैं।
इसे भी चित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है।
हम अपनी आंखों के द्वारा यह स्पष्ट नहीं कर सकते हैं कि प्रकाश ध्रुवित है अथवा अध्रुवित। चूंकि हमारी आंखें प्रकाश के कंपन को नहीं देख पाती है।
समतल ध्रुवित प्रकाश :-
समतल ध्रुवित प्रकाश एक प्रकार का ध्रुवित प्रकाश ही होता है।
समतल ध्रुवित प्रकाश में कंपन केवल एक ही सीधी रेखा के अनुदिश होते हैं। जब कंपन वस्तु के तल के समांतर होते हैं। तब समतल ध्रुवित प्रकाश को तीर द्वारा निरूपित किया जाता है। तथा जब कंपन वस्तु के तल के लम्बवत् होते हैं तब समतल ध्रुवित प्रकाश को बिन्दुओं द्वारा निरूपित किया जाता है।
समतल ध्रुवित प्रकाश में वह तल जिसमें विद्युत वेक्टर के कंपन की दिशा तथा प्रकाश के संचरण की दिशा दोनों ही स्थित होती हैं तो वह तल कंपन तल कहलाता है।
एवं वह तल जिसमें प्रकाश के संचरण की दिशा स्थित हो तथा यह कंपन तल के अभिलंबवत् हो तो उसे ध्रुवण तल कहते हैं।
अध्रुवित प्रकाश और समतल ध्रुवित प्रकाश में अंतर :-
अध्रुवित प्रकाश में विद्युत वेक्टर के कंपन प्रकाश तरंग के चलने की दिशा के लम्बवत् तल में सभी दिशाओं में सममित रूप से होते हैं। जबकि समतल ध्रुवित प्रकाश में विद्युत वेक्टर के कंपन प्रकाश तरंग के चलने की दिशा के लम्बवत् तल में सभी दिशाओं में सममित रूप से न होकर केवल एक ही दिशा में होते हैं।
7. व्यतिकरण क्या है इसकी दो शर्तें लिखिए, संतोषी और विनाशी व्यतिकरण के बारे में बताइये |
उत्तर :- व्यतिकरण :-
परिणामी तीव्रता :-
माना किसी माध्यम में समान आवृत्ति की दो सरल आवर्त प्रगामी तरंगे एक ही दिशा में गति कर रही है। एवं इनके आयाम क्रमशः a1 व a2 हैं। तथा इनके बीच कलांतर Φ है। एवं इनकी तीव्रताएं क्रमशः I1 व I2 हैं तो परिणामी तीव्रता
I = I1 + I2 + 2I1I2 cosΦ
संपोषी व्यतिकरण :-
माध्यम के जिन बिंदुओं पर परिणामी तीव्रता दोनों तरंगों की तीव्रताओं के योग से अधिक होती है। वहां व्यतिकरण को संतोषी व्यतिकरण कहते हैं।
संपोषी व्यतिकरण के लिए cosΦ = + 1
तब परिणामी तीव्रता
Imax = I1 + I2 + 2I1I2
या
Imax =K a1+a2 2
जहां a1 व a2 पहली और दूसरी तरंग के आयाम हैं। तथा K अनुक्रमानुपाती नियतांक है।
विनाशी व्यतिकरण :-
माध्यम के जिन बिंदुओं पर परिणामी तीव्रता दोनों तरंगों की तीव्रताओं के योग से कम होती है। वहां व्यतिकरण को विनाशी व्यतिकरण कहते हैं।
संपोषी व्यतिकरण के लिए cosΦ = – 1
तब परिणामी तीव्रता
Imin = I1 + I2 - 2I1I2
या Imin =K a1-a2 2
अतः जिन बिंदुओं पर व्यतिकरण करने वाली तरंगें विपरीत कला में मिलती है। तो उन बिंदुओं पर परिणामी तीव्रता न्यूनतम होती है।
व्यतिकरण की आवश्यक शर्तें :-
प्रकाश तरंगों के व्यतिकरण के लिए निम्न शर्तें हैं।
1. प्रकाश के दोनों स्रोतों से निकलने वाली तरंगों की कलाओं का अंतर स्थिर रहना चाहिए।
2. दोनों तरंगों की आवृत्तियां अथवा तरंगदैर्ध्य बराबर होनी चाहिए।
3. दोनों प्रकाश स्रोत अत्यंत संकीर्ण होने चाहिए।
4. प्रकाश के दोनों स्रोत के बीच की दूरी बहुत कम होनी चाहिए।
8. यंग के द्वि स्लिट प्रयोग की व्याख्या कीजिए |
उत्तर :- यंग का द्वि स्लिट प्रयोग :-
वैज्ञानिक थॉमस यंग ने प्रकाश के व्यतिकरण को द्वि स्लिट प्रयोग द्वारा प्रयोगात्मक रूप से प्रस्तुत किया जिसे चित्र में दिखाया गया है इसे यंग का द्वि स्लिट प्रयोग कहते हैं।
यंग के प्रयोग व्यवस्था को चित्र द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
इसके अनुसार S एक रेखा छिद्र (स्लिट) है जो कि A पर्दे पर उपस्थित है। इससे कुछ दूरी पर एक ओर अपारदर्शी पर्दा B होता है जिसमें दो रेखा छिद्र S1 व S2 हैं। जो पहले स्लिट S से बराबर दूरी पर उपर नीचे स्थित हैं। पर्दे B से आगे की ओर कुछ दूरी पर एक और अन्य पर्दा C स्थित है।
जब पहले पर्दे के रेखा छिद्र S पर एकवर्णी प्रकाश गिराया जाता है तब प्रकाश तरंगों S से निकलकर रेखा छिद्र S1 व S2 पर गिरती हैं। तथा S1 व S2 2 कला संबंध स्रोतों की भांति कार्य करते हैं। इन स्रोतों से एक ही कला में तथा समान आयाम की तरंगे निकलती है जो रेखा छिद्र S1 व S2 से आगे जाकर अध्यारोपण करते हैं इस अध्यारोपण के फलस्वरूप ऊर्जा का पुनर्वितरण हो जाता है। तथा C पर्दे पर एकांतर रूप से दीप्त और अदीप्त पट्टियां बनने लगती हैं इन पट्टियों को फ्रिन्जें कहते हैं। चित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है।
व्यतिकरण फ्रिन्जें :-
यंग ने अपने द्वि स्लिट प्रयोग में एकांतर क्रम में दीप्त और अदीप्त फ्रिन्जें प्राप्त की जिन्हें व्यतिकरण फ्रिन्जें कहते हैं। इन फ्रिन्जों की आकृति अतिपरवलयाकार होती है।
फ्रिंज चौड़ाई :-
दो क्रमागत दीप्त अथवा अदीप्त फ्रिंजों के बीच की दूरी को फ्रिंज चौड़ाई कहते हैं। फ्रिंज चौड़ाई को W से प्रदर्शित करते हैं।
W = Dd
जहां D = रेखा छिद्र से पर्दे की दूरी
d = रेखा छिद्रों के बीच की दूरी
λ = प्रयुक्त प्रकाश की तरंगदैर्ध्य है।
यह फ्रिंज की चौड़ाई का सूत्र है। इस सूत्र द्वारा फ्रिंज चौड़ाई नापकर प्रकाश की तरंगदैर्ध्य ज्ञात की जा सकती है।
9. विवर्तन क्या है ? प्रकाश में विवर्तन के लिए आवश्यक शर्तों , इनके प्रकार का वर्णन करें |
उत्तर :-
प्रकाश का विवर्तन :-
जब प्रकाश किरणें किसी तीक्ष्ण अवरोध अथवा झिर्री पर पड़ती हैं। तो प्रकाश किरणें अवरोध अथवा झिर्री के किनारों की ओर आंशिक रूप से मुड़ जाती हैं। प्रकाश किरणों की इस घटना को प्रकाश का विवर्तन कहते हैं।
जब समतल तरंगाग्र किसी छोटे छिद्र (झिर्री) की ओर आगे बढ़ता है। तब तरंगाग्र का अधिकांश भाग परावर्तित होकर वापस लौट आता है तथा झिर्री में से बहुत छोटा सा भाग ही होकर गुजरता है। जैसे ही समतल तरंगाग्र झिर्री के पास पहुंचता है तो हाइगेंस के सिद्धांत के अनुसार झिर्री नए तरंग स्रोत का कार्य करने लगता है। यह समतल तरंगाग्र उसी चाल से आगे की ओर बढ़ता है। जिस चाल से इसने छिद्र में प्रवेश किया था। यह तो हम पढ़ ही चुके हैं कि समांग माध्यम में तरंगाग्र सदैव तरंग के संचरण की दिशा के लंबवत् होता है। अतः झिर्री में से गुजरने पर तरंगे केवल सीधे ही दिशा में नहीं जाती हैं बल्कि तरंगे मुड़ने भी लगती हैं। अतः तरंगों के मुड़ने की इस घटना को प्रकाश का विवर्तन कहते हैं।
प्रकाश में विवर्तन के लिए आवश्यक शर्त :-
प्रकाश के विवर्तन के लिए झिर्री अथवा तीक्ष्ण अवरोध का आकार, प्रकाश की तरंगदैर्ध्य की कोटि का होना चाहिए। प्रकाश में विवर्तन के लिए आवश्यक शर्त है।
विवर्तन की घटना को दो भागों में बांटा गया है।
फ्रेनल विवर्तन तथा फ्राउनहोफर विवर्तन
फ्रेनल विवर्तन :-
फ्रांसीसी वैज्ञानिक फ्रेनल ने यह सर्वप्रथम सिद्ध किया कि प्रकाश तरंगे अनुप्रस्थ प्रकृति की होती हैं।
फ्रेनल विवर्तन में प्रकाश स्रोत अथवा पर्दा जिस पर विवर्तन चित्र देखा जाता है। यह अवरोध अथवा द्वारक से सीमित दूरी पर स्थित होते हैं। इस प्रकार के विवर्तन में लेंसों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। एवं इसमें आपाती तरंगाग्र गोलाकार या बेलनाकार होता है।
फ्राउनहोफर विवर्तन :-
फ्राउनहोफर विवर्तन में प्रकाश स्रोत तथा पर्दा जिस पर विवर्तन चित्र देखा जाता है। यह अवरोध अथवा द्वारक से अनंत दूरी पर स्थित होते हैं। इस प्रकार के विवर्तन में प्रकाश स्रोत तथा पर्दे को दो लेंसों के फोकस तलों में रखा जाता है। एवं इसमें आपाती तरंगाग्र समतल होता है।
10. पोलेराइड क्या है ? पोलेराइड की रचना , उपयोग का वर्णन करें |
उत्तर :-
पोलेराइड :-
कार्बनिक यौगिक हारपेथाइट के अतिसूक्ष्म क्रिस्टल नाइट्रो सेलुलोस की पतली चादर पर किसी विशेष विधि के द्वारा एक बड़े आकार की फिल्म तैयार की जाती है। यह बड़े आकार की फिल्म ही पोलेराइड फिल्म होती है। जिसे पोलेराइड (Polaroid in Hindi) कहते हैं।
पोलेराइड में अणुओं की एक लंबी श्रंखला होती है जो एक विशेष दिशा में पंक्तिबद्ध होते हैं। अर्थात् प्रत्येक पोलेराइड फिल्मों में एक अभिलाक्षणिक दिशा होती है। जिसे ध्रुवण दिशा कहते हैं। पोलेराइड समतल ध्रुवित प्रकाश उत्पन्न करने की एक व्यापारिक विधि है।
पोलेराइड की रचना :-
जब अध्रुवित प्रकाश की एक किरण पुंज पोलेराइड फिल्म से होकर गुजारती है। तब पोलेराइड फिल्म केवल प्रकाश के उन घटकों को ही अपने से पार जाने देती है। जिनके विद्युत वेक्टर पोलेराइड फिल्म की ध्रुवण दिशा के समांतर कंपन करते हैं। एवं पोलेराइड फिल्म उन घटकों को अवशोषित कर लेती है जो इस दिशा के लंबवत कंपन करते हैं। अतः इस प्रकार पोलेराइड फिल्म से केवल एक ही दिशा में कंपन करते हुए प्रकाश के विद्युत वेक्टर बाहर निकलते हैं। यह पारगमित प्रकाश समतल ध्रुवित होता है।
अतः इस प्रकार पोलेराइड फिल्म के द्वारा अध्रुवित प्रकाश को पूर्ण रूप से समतल ध्रुवित प्रकाश में परिवर्तित किया जाता है।
पोलेराइड से समतल ध्रुवित प्रकाश का संसूचन :-
पोलेराइड से समतल ध्रुवित प्रकाश का संसूचन के लिए प्रकाश को पोलेराइड से प्रवेश कराया जाता है तथा निर्गत प्रकाश को आंख से देखते हुए पोलेराइड को आपतित प्रकाश के परितः घुमाते हैं। तब
1. यदि पोलेराइड को एक पूरा चक्कर घुमाने के पश्चात् निर्गत प्रकाश की तीव्रता में कोई अंतर नहीं पड़ता है। तब आपतित प्रकाश अध्रुवित होता है।
2. यदि निर्गत प्रकाश की तीव्रता में कोई परिवर्तन तो होता है। लेकिन किसी भी दशा में तीव्रता शून्य नहीं होती है। तब आपतित प्रकाश ध्रुवित होता है।
3. यदि निर्गत प्रकाश की तीव्रता में कोई परिवर्तन होता है एवं एक पूर्ण चक्र में तीव्रता दो बार अधिकतम तथा दो बार तीव्रता शून्य हो जाती है। तब इस दशा में आपतित प्रकाश पूर्णतः समतल ध्रुवित होता है।
पोलेराइड के उपयोग :-
पोलेराइड को धूप के चश्मों, खिड़कियों के शीशे आदि में तीव्रता नियंत्रित करने में उपयोग किया जाता है।
पोलेराइड का उपयोग फोटोग्राफी कैमरों तथा 3D चलचित्र कैमरे में भी किया जाता है।
पोलेराइड का उपयोग वाहनों की हेडलाइट तथा चालक के सामने के शीशे (विंड स्क्रीन) में किया जाता है। इसके उपयोग रात में सामने से आने वाले वाहनों की लाइट से आंखों पर चकाचौंध नहीं पड़ती है।
पोलेराइड को वायुयान तथा ट्रेनों में प्रवेश करने वाले प्रकाश की तीव्रता को नियंत्रित करने में प्रयोग किया जाता है।
पोलेराइड का उपयोग सूक्ष्मदर्शी में भी किया जाता है। इसका उपयोग करने से सूक्ष्मदर्शी द्वारा अति सूक्ष्म जीवों को स्पष्ट देखा जा सकता है।
11 .ध्वनि तरंगों में आवृत्ति विस्थापन के लिए डॉप्लर का सूत्र निम्नलिखित दो स्थितियों में थोड़ा-सा भिन्न है-
(i) स्रोत विरामावस्था में तथा प्रेक्षक गति में हो, तथा
(ii) स्रोत गति में परन्तु प्रेक्षक विरामावस्था में हो।
जबकि प्रकाश के लिए डॉप्लर के सूत्र निश्चित रूप से निर्वात में, इन दोनों स्थितियों में एकसमान हैं। ऐसा क्यों है? स्पष्ट कीजिए। क्या आप समझते हैं कि ये सूत्र किसी माध्यम में प्रकाश गमन के लिए भी दोनों स्थितियों में पूर्णतः एकसमान होंगे?
उत्तर-
निर्वात् में गतिमान प्रकाश के लिए डॉप्लर प्रभाव में प्रेक्षक द्वारा ग्रहण किए गए प्रकाश की आभासी आवृत्ति दोनों ही दशाओं में समान होती है। भले ही दर्शक, स्थिर स्रोत की ओर गति कर रहा हो अथवा स्रोत समान चाल से दर्शक की ओर गतिमान हो। इस प्रकार प्रकाश में डॉप्लर प्रभाव सममित है। दूसरी ओर ध्वनि तरंगों को चलने के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है, इसलिए भले ही चाहे उक्त दोनों स्थितियों में प्रेक्षक तथा स्रोत के बीच समान आपेक्षिक गति होने के कारण ये स्थितियाँ समान प्रतीत होती हैं परन्तु वे समान नहीं हैं। ऐसा इस कारण से है कि दोनों दशाओं में प्रेक्षक का माध्यम के सापेक्ष वेग भिन्न-भिन्न है; अतः उक्त दोनों दशाओं में सुनी गई ध्वनि की आभासी आवृत्तियाँ समान नहीं हो सकतीं।
यदि किसी माध्यम में प्रकाश की गति की बात की जाए तो पुनः दोनों स्थितियाँ अलग-अलग हो जाएँगी चूंकि दोनों स्थितियों में प्रेक्षक का माध्यम के सापेक्ष वेग भिन्न-भिन्न होगा। अतः इस दशा में प्रेक्षक द्वारा ग्रहण किए गए प्रकाश की आवृत्ति के भिन्न डॉप्लर सूत्रों की अपेक्षा की जानी चाहिए।
12. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(a) एकल झिरी विवर्तन प्रयोग में, झिरीं की चौड़ाई मूल चौड़ाई से दोगुनी कर दी गई है। यह केन्द्रीय विवर्तन बैंड के साइज तथा तीव्रता को कैसे प्रभावित करेगी?
(b) द्विझिरी प्रयोग में, प्रत्येक झिरी का विवर्तन, व्यतिकरण पैटर्न से किस प्रकार सम्बन्धित है?
(c) सुदूर स्रोत से आने वाले प्रकाश के मार्ग में जब एक लघु वृत्ताकार वस्तु रखी जाती है तो वस्तु की छाया के मध्य एक प्रदीप्त बिन्दु दिखाई देता है। स्पष्ट कीजिए क्यों?
(d) दो विद्यार्थी एक 10 m ऊँची कक्ष विभाजक दीवार द्वारा 7m के अन्तर पर हैं। यदि ध्वनि और प्रकाश दोनों प्रकार की तरंगें वस्तु के किनारों पर मुड़ सकती हैं तो फिर भी वे विद्यार्थी एक-दूसरे को देख नहीं पाते यद्यपि वे आपस में आसानी से वार्तालाप किस प्रकार कर पाते हैं?
(e) किरण प्रकाशिकी, प्रकाश के सीधी रेखा में गति करने की संकल्पना पर आधारित है। यद्यपि विवर्तन प्रभाव (जब प्रकाश का संचरण एक द्वारक/झिरी या वस्तु के चारों ओर प्रेक्षित किया जाए) इस संकल्पना को नकारता है तथापि किरण प्रकाशिकी की संकल्पना प्रकाशकीय यन्त्रों में प्रतिबिम्बों की स्थिति तथा उनके दूसरे अनेक गुणों को समझने के लिए सामान्यतः उपयोग में लाई जाती है। इसका क्या औचित्य है?
उत्तर-
(a ) ∵ केन्द्रीय विवर्तन बैंड की चौड़ाई ∝ 1 झिर्री की चौड़ाई
अत: झिरीं की चौड़ाई दोगुनी करने पर, केन्द्रीय विवर्तन बैंड की चौड़ाई आधी रह जाएगी, जबकि तीव्रता चार गुनी (तीव्रता ∝ झिरीं का क्षेत्रफल) हो जाएगी।
(b) द्विझिरीं प्रयोग में व्यतिकरण पैटर्न की फ्रिन्ज एकल झिरीं विवर्तन पैटर्न की फ्रिन्जों के साथ अध्यारोपित होती हैं।
(c) वृत्तीय अवरोध के किनारों से विवर्तित तरंगें जब वस्तु की छाया के मध्य बिन्दु पर मिलती हैं तो वहाँ पथान्तर शून्य होने के कारण परस्पर संपोषी व्यतिकरण करती हैं; अत: वहाँ चमकदार बिन्दु दिखाई पड़ता है।
(d) दीवार की ऊँचाई 10 m, ध्वनि तरंगों की तरंगदैर्घ्य की कोटि की है; अत: यह ध्वनि तरंगों में पर्याप्त विवर्तन उत्पन्न करती है और एक विद्यार्थी की ध्वनि दीवार से विवर्तित होकर दूसरे विद्यार्थी तक पहुँच जाती है। वहीं प्रकाश की तरंगदैर्घ्य, दीवार की ऊँचाई की तुलना में अत्यन्त सूक्ष्म है; अत: दीवार प्रकाश तरंगों में पर्याप्त विवर्तन उत्पन्न नहीं कर पाती। इसी कारण विद्यार्थी एक-दूसरे को नहीं देख पाते।
(e) सामान्यतः प्रकाशिक यन्त्रों में प्रयुक्त लेन्सों के द्वारकों का साइज प्रकाश की तरंगदैर्ध्य की तुलना में काफी बड़ा होता है; अत: इन यन्त्रों द्वारा बने प्रतिबिम्बों में विवर्तन का प्रभाव नगण्य ही रहता है। यही कारण है कि प्रतिबिम्बों की स्थिति तथा अन्य गुणों को समझने के लिए प्रायः किरण प्रकाशिकी का ही प्रयोग किया जाता है।
13. प्रकाश के ध्रुवण से आप क्या समझते हैं?
या
बूस्टर का नियम क्या है? किसी पारदर्शी माध्यम के लिए अपवर्तनांक एवं ध्रुवण कोण में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर-
प्रकाश का धुवण-
प्रकाश की तरंगें अनुप्रस्थ तरंगें हैं जिनमें वैद्युत वेक्टर के कम्पन तरंग के संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में सभी दिशाओं में होते हैं। टूरमैलीन क्रिस्टल में से गुजारने पर निर्गत् प्रकाश में वैद्युत वेक्टर के ये कम्पन संचरण की दिशा के लम्बवत् तल में केवल एक दिशा में रह जाते हैं, जबकि, शेष सभी कम्पन क्रिस्टल द्वारा अवशोषित कर लिये जाते हैं। क्रिस्टल से निर्गत् प्रकाश को ‘समतल-धुवित प्रकाश’ कहते हैं तथा यह घटना प्रकाश का धुवण’ कहलाती है।
परावर्तन द्वारा धूवित प्रकाश उत्पन्न करना- जब साधारण अथवा अध्रुवित प्रकाश किसी पारदर्शी माध्यम (जैसे–कॉच) के पृष्ठ से परावर्तित होता है तो वह आंशिक रूप से समतल ध्रुवित हो जाता है। परावर्तित प्रकाश में ध्रुवित प्रकाश की मात्रा, आपतन कोण पर निर्भर करती है। एक विशेष आपतन कोण in के लिए परावर्तित प्रकाश पूर्णतया समतल ध्रुवित होता है तथा इसके कम्पन आपतन तल के लम्बवत् होते हैं। इस आपतन कोण को ‘ध्रुवण-कोण’ कहते हैं। ध्रुवण-कोण पर परावर्तित एवं अपवर्तित किरणें परस्पर लम्बवत् होती हैं।
परावर्तक माध्यम के अपवर्तनांक (n) और ध्रुवण-कोण (iP) में निम्नलिखित सम्बन्ध होता है-
n = tan iP
यह सम्बन्ध बूस्टर का नियम कहलाता है।
वायु-काँच के लिए कोण iP का मान 57° होता है।
14.तरंगाग्र किसे कहते हैं? हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धान्त लिखिए।
या
हाइगेन्स के तरंग संचरण सम्बन्धी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:-
तरंगाग्र - किसी एक माध्यम में जिसमें कोई तरंग संचरित हो रही हो, यदि हम कोई ऐसा पृष्ठ खींचें जिसमें स्थित कण कम्पन की समान कला में हों, तो ऐसे पृष्ठ को ‘तरंगाग्र कहते हैं। समांग माध्यम में किसी तरंग का तरंगाग्र सदैव तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत् होता है। अत: तरंगाग्र के लम्बवत् खींची गयी रेखा तरंग के चलने की दिशा को व्यक्त करती है। इसको ही किरण (ray) कहते हैं। तरंगाग्र विविध आकृतियों के होते हैं।
हाइगेन्स का द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धान्त :-
1. जब कोई कम्पन-स्रोत तरंगें उत्पन्न करता है, तो उसके चारों ओर माध्यम (ईथर) के कण कम्पन करने लगते हैं। माध्यम को वह पृष्ठ जिसमें स्थित सभी कण एक ही कला में कम्पन कर रहे होते हैं, “तरंगाग्र’ कहलाता है। समांग माध्यम में किसी तरंग का तरंगाग्र, तरंग के संचरण की दिशा में लम्बवत् होता है। अत: तरंगाग्र के अभिलम्बवत् खींची गयी रेखा तरंग के संचरण की दिशा को व्यक्त करती है तथा इसे किरण कहते हैं।
2. माध्यम में जहाँ भी तरंगाग्र पहुँचता है वहाँ पर स्थित प्रत्येक कण एक नया तरंग स्रोत बन जाता है। जिसमें नयी तरंगें सभी दिशाओं में निकलती हैं। इन तरंगों को द्वितीयक तरंगिकाएँ कहते हैं। द्वितीयक तरंगिकाएँ प्राथमिक तरंग की चाल से ही आगे बढ़ती हैं।
3. किसी क्षण सभी द्वितीयक तरंगिकाओं को स्पर्श करता हुआ खींचा गया पृष्ठ अर्थात् ‘एन्वलोप’ उस क्षण तरंगाग्र की नवीन स्थिति को प्रदर्शित करता है। इस प्रकार तरंग आगे बढ़ती चली जाती है।
चित्र में S एक बिन्दु स्रोत है जिससे तरंगें निकल रही हैं। माना कि तरंगों की चाल v है। माना कि किसी क्षण तरंगाग्र की स्थिति AB है।
AB पर स्थित प्रत्येक बिन्दु से द्वितीयक गोलीय तरंग प्राथमिक तरंग की चाल से चारों ओर फैल रही है। माना कि हमें । समय उपरान्त तरंगाग्र की स्थिति ज्ञात करनी है। इतने समय में प्रत्येक द्वितीयक तरंगिका ut दूरी तय करेगी। अत: हम AB पर स्थित बिन्दुओं; जैसे 1, 2, 3, 4, 5,…… पर vt त्रिज्या के गोले खींचते हैं। इन गोलों को स्पर्श करता हुआ खींचा गया पृष्ठ A1B1 ‘एन्वलोप है। यही तरंगाग्र की नवीन स्थिति है। गोलों का एन्वलोप A2B2 पीछे की दिशा में भी है, परन्तु हाइगेन्स का सिद्धान्त पीछे की दिशा में स्थित ‘एन्वलोप’ को स्वीकार नहीं करता। ठीक इसी प्रकार चित्र में समतले तरंगाग्र का बढ़ना समझाया गया है।
15. हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिकाओं के सिद्धान्त के आधार पर परावर्तन के नियमों की व्याख्या कीजिए।
या
हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिकाओं के सिद्धान्त के आधार पर प्रकाश के परावर्तन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
हाइगेन्स के द्वितीयक तरंगिकाओं के सिद्धान्त के आधार पर प्रकाश के परावर्तन के नियमों की व्याख्या-
चित्र में ZZ’ एक परावर्तक पृष्ठ है। जिस पर AB एक समतल तरंगाग्र कोण i के झुकाव पर आपतित है। माना कि है = 0 समय पर तरंगाग्र, पृष्ठ ZZ’ को बिन्दु A पर स्पर्श करता है। माना कि तरंगाग्र की चाल v है तथा तरंगाग्र, के बिन्दु B को पृष्ठ के बिन्दु A तक पहुँचने में है समय लगता है। जैसे-जैसे तरंगाग्र AB आगे बढ़ता है, वह परावर्तक पृष्ठ के A व A’ के बीच के बिन्दुओं से टकराता जाता है। हाइगेन्स के सिद्धान्त के अनुसार, A व A’ के बीच स्थित ये सभी बिन्दु नये तरंग स्रोतों का कार्य करते हैं। इनमें नई गोलीय तरंगिकाएँ सभी दिशाओं में निकलती हैं जो चाल के माध्यम से फैलती हैं। सबसे पहले बिन्दु A से द्वितीयक तरंगिका चलती है जो t समय में AB’ (= vt) दूरी तय करती है। परन्तु इसी समय में तरंगाग्र का बिन्दु B, दूरी BA’ चलकर A’ को स्पर्श कर लेता है, यहाँ से भी अब द्वितीयक तरंगिका चलनी शुरू हो जाती है। उपर्युक्त से स्पष्ट है कि
AB’ = BA’ = vt ……(1)
बिन्दु A को केन्द्र मानते हुए AB’ त्रिज्या का एक गोलीय चाप खींचते हैं तथा A’ से इस चाप पर स्पर्श रेखा A’B’ खींच लेते हैं। जैसे-जैसे आपतित तरंगाग्र AB आगे बढ़ता है, परावर्तक पृष्ठ के A व A’ के बीच स्थित सभी बिन्दुओं से एक के बाद एक चलने वाली द्वितीयक तरंगिकाएँ भी एक साथ A’B’ को स्पर्श करेंगी, अथवा A’B’ सभी द्वितीयक तरंगिकाओं को स्पर्श करती है। हाइगेन्स के अनुसार यह A’B’ ही परावर्तित तरंगाग्र है। माना कि यह पृष्ठ ZZ’ से r कोण के झुकाव पर है। अब समकोण त्रिभुज AB A’ तथा A’B ’A में भुजा A A’ उभयनिष्ठ है तथा BA = AB’; अत: दोनों त्रिभुज सर्वांगसम हैं,
इसलिए कोण BAA’ = कोण B’ A’ A.
स्पष्ट है कि आपतित तरंगाग्र AB तथा परावर्तित तरंगाग्र A’ B’ परावर्तक पृष्ठ ZZ’ से बराबर कोण बनाते हैं। चूँकि तरंगाग्र के अभिलम्बवत् खींची गई रेखा किरण होती है, अतः आपतित तथा परावर्तित किरणे पृष्ठ ZZ’ खींचे गये अभिलम्ब से भी बराबर कोण बनाती हैं। अतः
आपतन कोण i = परावर्तन कोण r
यह परावर्तन का दूसरा नियम है।
चूँकि AB, A’B’ व ZZ’ कागज के तेल में हैं। इन पर खींचे गये अभिलम्ब भी एक तल में होंगे। इस प्रकार आपतित किरण, परावर्तित किरण तथा आपतन बिन्दु पर अभिलम्ब तीनों एक ही तल में है। यही परावर्तन का प्रथम नियम है।
16. (a) बुस्टर का नियम क्या है ?
(b) किसी पारदर्शी माध्यम का ध्रुवण-कोण 60° है। ज्ञात कीजिए
(i) माध्यम का अपवर्तनांक,
(ii) अपवर्तन कोण। [दिया गया है, tan 60° = √3]
या
किसी पारदर्शी माध्यम के लिए ध्रुवण कोण 60° है। माध्यम के अपवर्तनांक की गणना कीजिए।
उत्तर:
(a) इस नियमानुसार, किसी माध्यम का अपवर्तनांक μ ध्रुवण कोण ip की स्पर्शज्या के बराबर होता है। सूत्र के रूप में,
n = tan ip
(b)
(i) बूस्टर के नियम से अपवर्तनांक n = tan ip
n = tan 60°
= √3
=1.782
(ii) ip + r = 90°
अतः अपवर्तन कोण
r = 90° – ip
r = 90° – 60°
= 30°
17. प्रिज्म द्वारा किसी समतल तरंगाग्र के परावर्तन तथा अपवर्तन को समझाइए।
उत्तर-
माना एक समतल तरंगाग्र PQ अल्प अपवर्तन कोण के प्रिज्म ABC पर आपतित होता है। हाइगेन्स के सिद्धान्तानुसार, तरंगाग्र PQ का प्रत्येक बिन्दु एक नये विक्षोभ केन्द्र की तरह कार्य करता है। ये विक्षोभ केन्द्र द्वितीयक तरंगिकाएँ उत्पन्न करते हैं। भिन्न-भिन्न द्वितीयक तरंगिकाएँ भिन्न-भिन्न मोटाइयों से होकर गुजरती हैं। Q से द्वितीयक तरंगिका C तक पहुँचने में प्रिज्म की सम्पूर्ण लम्बाई तय करेगी। दूसरी ओर प्रिज्म के बिन्दु A पर आपतन कोण के बाद P से द्वितीयक तरंगिका वायु में लगभग सम्पूर्ण दूरी तय करेगी। यह तरंगिका प्रिज्म में बहुत ही अल्प दूरी तय करने के पश्चात् बाहर निर्गत् होती है और पुन: वायु में गति करती है।
जिस समय तरंगिका प्रिज्म में B से C तक गति करती है। ठीक उसी समय P से तरंगिका वायु में लगभग सम्पूर्ण दूरी तय करने के पश्चात् C’ बिन्दु तक पहुँचती है और C’ भी उसी कला में होता है। परिणामस्वरूप एक समतल तरंगाग्र CC’ प्राप्त होता है जिसे निर्गत् समतल तरंगाग्र कहा जाता है। इस प्रकार हम निष्कर्ष निकालते हैं कि प्रिज्म से कोई समतल तरंगाग्रं एक समतल तंरंगाग्र के रूप में ही बाहर निकलता है।
18. व्यतिकरण और विवर्तन में अंतर लिखिए।
उत्तर:
व्यतिकरण और विवर्तन में अंतर :-
क्र.सं. | व्यतिकरण | विवर्तन |
1. | दो कला संबद्ध स्रोतों से आने वाली प्रकाश तरंगों के अध्यारोपण से व्यतिकरण प्राप्त होता है। | एक ही तरंगाग्र के विभिन्न बिंदुओं से आने वाली द्वितीयक तरंगिकाओं के अध्यारोपण से विवर्तन प्राप्त होता है। |
2. | व्यतिकरण प्रतिरूप में सभी दीप्त फ्रीजों की तीव्रता समान होती है। | विवर्तन प्रतिरूप में सभी दीप्त फ्रीजों की तीव्रता घटती जाती है। |
3. | व्यतिकरण फ्रीजों की चौड़ाई समान भी हो सकती है अथवा नहीं भी हो सकती। | विवर्तन फ्रीजें की चौड़ाई कभी भी समान नहीं होती हैं। |
4. | व्यतिकरण प्रतिरूप में सभी अदीप्त फ्रीज की तीव्रता बहुत कम या शून्य होती है। | विवर्तन प्रतिरूप में निम्निष्ट की तीव्रता कभी भी शून्य नहीं होती है। |
19.5000 Å तरंगदैर्घ्य का प्रकाश एक समतल परावर्तक सतह पर आपतित होता है। परावर्तित प्रकाश की तरंगदैर्ध्य एवं आवृत्ति क्या है? आपतन कोण के किस मान के लिए परावर्तित किरण आपतित किरण के लम्बवत होगी?
हल-
यहाँ λ = 5000 Å = 5000 x 10-10मीटर = 5 x 10-7
वायु में प्रकाश की चाले c = 3 x 108मी/से
वायु में प्रकाश की आवृत्ति
v = c = 3 x 108मी/से5 x 10-7 = 6 x 1014
आपतित तथा परावर्तित किरण दोनों एक ही माध्यम (वायु) में होंगे।
अतः
परावर्तित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य = आपतित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य = 5000 Å
परावर्तित प्रकाश की आवृत्ति = आपतित प्रकाश की आवृत्ति = 6 x1014 Hz
परावर्तन कोण r = आपतन कोण i
तथा परावर्तित किरण आपतित किरण के लम्बवत् है;
अतः
i + r = 90°,
i + i = 90°
वांछित आपतन कोण i = 45°
20.संपोषी व्यतिकरण तथा विनाशी व्यतिकरण क्या है ? तरंगों के संपोषी तथा विनाशी व्यतिकरण के लिए आवश्यक शर्ते बताइए।
उत्तर-
संपोषी व्यतिकरण :-
माध्यम के जिन बिंदुओं पर परिणामी तीव्रता दोनों तरंगों की तीव्रताओं के योग से अधिक होती है। वहां व्यतिकरण को संतोषी व्यतिकरण कहते हैं।
संपोषी व्यतिकरण के लिए cosΦ = + 1
तब परिणामी तीव्रता
Imax = I1 + I2 + 2I1I2
या
Imax =K a1+a2 2
जहां a1 व a2 पहली और दूसरी तरंग के आयाम हैं। तथा K अनुक्रमानुपाती नियतांक है।
विनाशी व्यतिकरण :-
माध्यम के जिन बिंदुओं पर परिणामी तीव्रता दोनों तरंगों की तीव्रताओं के योग से कम होती है। वहां व्यतिकरण को विनाशी व्यतिकरण कहते हैं।
संपोषी व्यतिकरण के लिए cosΦ = – 1
तब परिणामी तीव्रता
Imin = I1 + I2 - 2I1I2
या Imin =K a1-a2 2
अतः जिन बिंदुओं पर व्यतिकरण करने वाली तरंगें विपरीत कला में मिलती है। तो उन बिंदुओं पर परिणामी तीव्रता न्यूनतम होती है।
संपोषी व्यतिकरण के लिए आवश्यक शर्ते :-
अतः संपोषी व्यतिकरण के लिए आवश्यक है, कि
(i) दोनों तरंगों के बीच कलान्तर शून्य अथवा π का सम गुणक होना चाहिए, अर्थात् तरंगें एक ही कला में मिलनी चाहिए।
(ii) दोनों तरंगों के बीच पथान्तर शून्य अथवा तरंगदैर्घ्य λ का पूर्ण गुणक होना चाहिए।
विनाशी व्यतिकरण के लिए आवश्यक शर्ते :-
अत: विनाशी व्यतिकरण के लिए आवश्यक है, कि
(i) दोनों तरंगों के बीच कलान्तर π का विषम गुणक होना चाहिए, अर्थात् तरंगें विपरीत कला में मिलनी चाहिए।
(ii) दोनों तरंगों के बीच पथान्तर अर्द्ध-तरंगदैर्घ्य (λ/2) का विषम गुणक होना चाहिए।
21. प्रकाश का ध्रुवण क्या है ? वर्णन करें |
उत्तर :-
प्रकाश का ध्रुवण :- प्रकाश तरंगें विद्युत चुंबकीय तरंगे होती है। इसमें विद्युत क्षेत्र सदिश व चुंबकीय क्षेत्र सदिश समान कला में एक दूसरे के लंबवत तथा तरंग संचरण की दिशा के लंबवत कंपन करते हैं। अर्थात प्रकाश तरंगे अनुप्रस्थ प्रकृति की होती है। विद्युत चुंबकीय तरंगों को निम्न प्रकार व्यक्त किया जा सकता है।
विद्युत चुंबकीय तरंग में वह दलित जिसमें विद्युत क्षेत्र सदिश के कंपनो का तल तथा तरंग संचरण की दिशा स्थित होती हैं। कंपन तल कहलाता है। तरंग की समस्त प्रकाशिक घटनाओं के लिए विद्युत चुंबकीय तरंगों का विद्युत क्षेत्र सदिश घटक ही उत्तरदायी होता है। अतः विद्युत क्षेत्र सदिश को प्रकाश सदिश भी कहते है।
यदि किसी प्रक्रिया द्वारा प्रकाश स्रोत से निकलने वाले विद्युत क्षेत्र सदिश के कंपनो को तरंग संचरण की दिशा के लंबवत एक निश्चित दिशा या तल में सीमित कर दिया जाए तो इस घटना को प्रकाश का ध्रुवण कहते हैं।
अध्रुवित प्रकाश को ध्रुवित प्रकाश में बदलना प्रकाश का ध्रुवण कहलाता है।
समतल ध्रुवित प्रकाश में वह तल जिसमें विद्युत क्षेत्र सदिश तथा तरंग के संचरण की दिशा दोनों स्थित होते हैं। वह कंपन तल कहलाता है।
कंपन तल के लंबवत वह तल जिसमें तरंग संचरण की दिशा स्थित हो तथा विद्युत क्षेत्र सदिशो के घटक शून्य हो वह ध्रुवण तल कहलाता है।
ध्रुवण तल तथा कंपन तल एक दूसरे के लंबवत होते हैं।
अध्रुवित प्रकाश :- यदि प्रकाश स्रोत से निकलने वाली तरंगों के विद्युत क्षेत्र के कंपन तरंग संचरण की दिशा के लंबवत तल में सभी दिशाओं में कंपन करते हैं तो इस प्रकार के प्रकाश को अध्रुवित प्रकाश कहते हैं।
ध्रुवित प्रकाश :- ऐसा प्रकाश जिसमें विद्युत सदिश के कंपन प्रकाश संचरण की तरंगों की दिशा में कंपन लंबवत तल में सभी दिशाओं में ने होकर केवल एक ही दिशा में होती है ध्रुवित प्रकाश कहलाता है।
22 . विभेदन क्षमता से क्या समझते हैं ?दूरदर्शी की विभेदन क्षमता से क्या समझते है ? इसका सूत्र लिखें।
उत्तर ⇒
विभेदन क्षमता :- विभेदन क्षमता किसी प्रकाशीय यंत्र द्वारा दो पास-पास स्थित वस्तुओं के प्रतिबिंबों को अलग-अलग करने की क्षमता, उस प्रकाशिक यंत्र की विभदेन क्षमता कही जाती है।
दूरदर्शी को विभेदन क्षमता : - दूरदर्शी द्वारा दो पास-पास स्थिति वस्तुओं के अलग-अलग स्पष्ट प्रतिबिंब बनाने की क्षमता को दूरदर्शी की विभेदन क्षमता कहा जाता है। इसे निम्नलिखित सूत्र से ज्ञात किया जाता है :
R.P. = a 1. 22
जहाँ a = लेंस का द्वारक
λ = प्रकाश का तंरगदैर्ध्य
दूरदर्शी के विभेदन क्षमता को अधिक होने के लिए अभिदृश्यक लेंस का द्वारक बड़ा होना चाहिए।
23. कला सम्बद्ध स्रोत क्या होते हैं ?
उत्तर: -
कला सम्बद्ध स्रोत :-
“यदि दो प्रकाश-स्रोतों के मध्य कलान्तर समय के साथ नियत | रहता है तो दोनों स्रोत कला सम्बद्ध स्रोत कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में | कह सकते हैं कि ऐसे स्रोत जिनके मध्य या तो कलान्तर होना नहीं चाहिए और यदि है तो उसे समय के साथ नियत रहना चाहिए, कला सम्बद्ध स्रोत कहलाते हैं। दो भिन्न स्रोतों का कला सम्बद्ध होना लगभग असम्भव है। एक ही स्रोत से उत्पन्न दो वास्तविक या काल्पनिक स्रोत कला सम्बद्ध होते हैं। ऐसे स्रोतों से उत्सर्जित तरंगें अपने पथ में रखे पर्दे पर स्थायी व्यतिकरण प्रतिरूप बनाती हैं।
यदि किसी बिन्दु पर दो तरंगों के मध्य कलान्तर समय के साथ बदलता है तो इसका कारण केवल स्रोतों का कला सम्बद्ध न होना है क्योंकि किसी बिन्दु पर पथान्तर के कारण कलान्तर नियत रहता है। यदि स्रोत कला सम्बद्ध नहीं है तो व्यतिकरण प्रतिरूप स्थायी नहीं होगा अर्थात् किसी बिन्दु की परिणामी तीव्रता समय के साथ बदलती रहेगी।
दो कला सम्बद्ध स्रोत प्राप्त करने के लिए शर्ते :-
1. किसी युक्ति द्वारा एक ही स्रोत से दो कला सम्बद्ध स्रोत प्राप्त करने चाहिए-इस विधि से कला सम्बद्ध स्रोत प्राप्त करने का लाभ यह है कि यदि किसी प्रकार मूल स्रोत की कला में कोई परिवर्तन होता है। | तो यह परिवर्तन इससे प्राप्त दोनों स्रोतों में समान रूप से होगा और दोनों स्रोत कला सम्बद्ध बने रहेंगे।
2. दोनों स्रोतों को एकवर्णी प्रकाश देना चाहिए- यदि स्रोत श्वेत प्रकाश उत्सर्जित करता है तो इस प्रकाश में अनेक तरंगदैर्यों का प्रकाश होगा और प्रत्येक तरंगदैर्ध्य का प्रकाश अपने सेट के साथ व्यतिकरण फ्रिजें उत्पन्न करेगा और ये फ्रिजें एक-दूसरे को अतिव्यापित करेंगी। फलस्वरूप व्यतिकरण प्रतिरूप में केन्द्रीय दीप्त फ्रिन्ज के दोनों ओर मात्र कुछ रंगीन फ्रिजें ही दिखाई देंगी।
3. दोनों स्रोतों से प्राप्त तरंगों में पथान्तर अल्प होना चाहिए-यदि व्यतिकारी तरंगों में पथान्तर अधिक होगा तो प्रत्येक बिन्दु पर तरंगों का आपस में मिलन होगा फलस्वरूप व्यतिकरण प्रतिरूप समाप्त होकर पर्दा समान रूप से दीप्त हो जायेगा।
24. प्रकाश के विवर्तन से आप क्या समझते हैं ? प्रकाश व ध्वनि के विवर्तन की तुलना कीजिए।
उत्तर:-
प्रकाश का विवर्तन :- प्रकाश के मार्ग में मौजूद किसी रुकावट के किनारों से प्रकाश-तरंगों का रुकावट की ज्यामितीय छाया की ओर मुड़ जाना ही प्रकाश का विवर्तन कहलाता है।” इस प्रकार रुकावट के कारण प्रकाश अपने ऋजुरेखीय गमन से विचलित हो जाता है। विचलन बढ़ता जाता है जैसे-जैसे रुकावट का आकार छोटा होता जाता है। जिस समय रुकावट का आकार प्रकाश के तरंगदैर्घ्य के क्रम का होता है तो प्रकाश का विवर्तन सबसे अधिक होता है। चित्रानुसार प्रदर्शित विवर्तन की तीन स्थितियों में सबसे अच्छा विवर्तन अर्थात् सुपरिभाषित विवर्तन तब होता है जब स्लिट की चौड़ाई न्यूनतम (a= 1.5λ) होती है।
चित्रानुसार स्पष्ट है कि जैसे-जैसे स्लिट की चौड़ाई घटती जाती है, वैसे-वैसे विवर्तन को फैलाव बढ़ता जाता है।
इस प्रकार निष्कर्ष यह निकलता है कि विवर्तन के लिए सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि रुकावट का आकार तरंगों के तरंगदैर्घ्य के क्रम का होना चाहिए।
चूँकि विवर्तन भी तरंग, गति को लक्षण है, अतः यह सभी प्रकार की तरंगों के साथ परिलक्षित होता है। ध्वनि-तरंगों की तरंगदैर्ध्य काफी बड़ी होती हैं। अत: इनका विवर्तन व्यावहारिक जीवन में आसानी से अनुभव किया जा सकता है। जैसे-दरवाजों, खिड़कियों आदि के किनारों से ध्वनि-तरंगों का विवर्तन हो जाता है लेकिन प्रकाश-तरंगों की तरंगदैर्घ्य बहुत छोटी होती है। अतः इनका विवर्तन देखने के लिए प्रयोगशाला में विशेष प्रबन्ध करना पड़ता है। प्रकाश का विवर्तन ब्लेड की तीक्ष्ण धार एवं सुई की नोंक आदि से ही सम्भव है।
फ्रेनल के अनुसार, “विवर्तन उन द्वितीयक तरंगिकाओं के अध्यारोपण से होने वाले व्यतिकरण का परिणाम है जो एक ही तरंगाग्र के उस भाग से चलती हैं जो रुकावट द्वारा रोका नहीं जाता है |
ध्वनि एवं प्रकाश के विवर्तन की तुलना :-
विवर्तन तरंगगति का अभिलक्षण है, अतः यह प्रकाश तरंगों एवं ध्वनि तरंगों दोनों में परिलक्षित होता है। विवर्तन के लिए, “सबसे महत्वपूर्ण शर्त यह है कि रुकावट का आकार तरंगों के तरंगदैर्घ्य के क्रम का होना चाहिए।” चूँकि ध्वनि तरंगों की तरंगदैर्घ्य बड़ी होती है अतः ध्वनि तरंगों का विवर्तन व्यावहारिक जीवन में आसानी से परिलक्षित होता है जैसे दीवारों, दरवाजों, खिड़कियों आदि के किनारों से ध्वनि का विवर्तन हो जाता है। इसीलिए किसी दीवार के पीछे बैठा व्यक्ति दूसरी ओर से उत्पन्न ध्वनि को सुन लेता है। इसके विपरीत प्रकाश की तरंगदैर्ध्य अत्यन्त छेटी होने के कारण प्रकाश का विवर्तन देखने के लिए प्रयोगशाला में विशेष प्रबन्ध करना पड़ता है। प्रकाश का विवर्तन ब्लेड की धार एवं सुई की नोक आदि से ही सम्भव है।
25. धुवित प्रकाश उत्पन्न करने की चार विधियों के नाम लिखिए। द्वि-अपवर्तन को परिभाषित कीजिए एवं इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ध्रुवित प्रकाश उत्पन्न करने की विधियाँ-
(i) परावर्तन द्वारा
(ii) अपवर्तन द्वारा
(iii) द्वि-अपवर्तन द्वारा
(iv) द्वि-वर्णता द्वारा।
द्वि-अपवर्तन द्वारा ध्रुवण :- कुछ क्रिस्टल; जैसे-कैल्साइट, क्वार्ट्ज़ ऐसे क्रिस्टल होते हैं कि जब उन पर कोई प्रकाश किरण आपतित होती है तो वह किरण क्रिस्टल में दो अपवर्तित किरणों में विभाजित हो जाती है। इस घटना को द्वि-अपवर्तन कहते हैं।
इनमें से एक किरण अपवर्तन के नियमों का पालन करती है। इसे साधारण किरण या O-किरण कहते हैं। दूसरी अपवर्तित किरण अपवर्तन के नियमों का पालन नहीं करती है, इसे असाधारण किरण या E-किरण कहते हैं। ये दोनों किरणें परस्पर लम्बवत् तलों में समतल ध्रुवित होती हैं। साधारण किरण में कम्पन, आपतन तल के लम्बवत् तल में और असाधारण किरण में कम्पन आपतन तल में होते हैं। व्यवहार में इन दोनों अपवर्तित समतल ध्रुवित किरणों में से एक को किसी विधि द्वारा अलग कर दिया जाता है जिससे कि क्रिस्टल में से समतल ध्रुवित प्रकाश निकल सके।
द्वि-वर्णता-टूर्मेलीन क्रिस्टल पर आपतित साधारण प्रकाश की किरण क्रिस्टल के भीतर दो ध्रुवित अपवर्तित किरणों में बँट जाती है। इनमें से एक किरण क्रिस्टल द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। टूर्मेलीन क्रिस्टल द्वारा वरणात्मक अवशोषण की इस प्रक्रिया को द्वि-वर्णता कहते हैं।