बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
Launch Your Course Log in Sign up
Menu
Classes
Competitive Exam
Class Notes
Graduate Courses
Job Preparation
IIT-JEE/NEET
vidyakul X
Menu

बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

BSEB > Class 12 > Important Questions > भौतिक विज्ञान अध्याय 11 विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति - दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

1.  कार्य फलन , देहली आवृत्ति तथा देहली तरंगदैर्ध्य को  परिभाषित कीजिये | 

उत्तर :- कार्य फलन :- 

प्रकाश के एक फोटोन की वह न्यूनतम ऊर्जा जो धातु से प्रकाश इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित करने के लिए आवश्यक होती है। उसे धातु का कार्य फलन कहते हैं। इसे W से प्रदर्शित किया जाता है। कार्य फलन का मान भिन्न-भिन्न धातुओं के लिए भिन्न-भिन्न होता है। अधिकांश धातुओं के लिए कार्य फलन का मान कुछ इलेक्ट्रॉन वोल्ट की कोटि का होता है।

यदि दी गई धातु के लिए प्रकाश की देहली आवृत्ति हो, तो इस प्रकार के प्रकाश फोटोन की ऊर्जा इलेक्ट्रॉन को प्रश्न तक लाने में ही वे हो जाएगी जो कि इलेक्ट्रॉन में कार्य फलन के बराबर होगी।

अतः 

                                                W=h 0

​इस समीकरण को धातु के कार्य फलन W तथा देहली आवृत्ति 0 में संबंध का सूत्र कहते हैं।

देहली आवृत्ति :- प्रकाश की वह न्यूनतम आवृत्ति जो किसी पदार्थ से प्रकाश इलेक्ट्रॉन को उत्सर्जित करा सकें। इस प्रकार की आवृत्ति को उस पदार्थ की देहली आवृत्ति कहते हैं। देहली आवृत्ति को vo से निरूपित किया जाता है। देहली आवृत्ति से कम आवृत्ति के प्रकाश से धातु से प्रकाश इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन नहीं होता है। चाहे प्रकाश की तीव्रता कितनी भी अधिक क्यों न हो। प्रकाश विद्युत प्रभाव में देहली आवृत्ति की यह महत्ता है।

                                                        W = h 0

यह देहली आवृत्ति तथा कार्य फलन W के बीच संबंध का समीकरण है।

देहली तरंगदैर्ध्य :-  किसी धातु पर आपतित प्रकाश कि वह अधिकतम तरंगदैर्ध्य, जो धातु की सतह से प्रकाश इलेक्ट्रॉनों को उत्सर्जित करा सके, उस धातु की देहली तरंगदैर्ध्य कहलाती है। इसे λ0 से प्रदर्शित करते हैं।

प्रभाव में देहली आवृत्ति की यह महत्ता है।

                                              0 = c0

जहां c प्रकाश की चाल तथा 0 देहली आवृत्ति है।

Download this PDF

2. आइंस्टाइन का प्रकाश-विद्यत समीकरण क्या है ? इसे स्थापित करें। अथवा, आइंस्टाइन का प्रकाश-विद्युत समीकरण कर व्याख्या करें।

उत्तर :- आइंस्टाइन का प्रकाश-विद्युत समीकरण –

प्लांक के क्वांटम सिद्धान्त के आधार पर आइन्स्टीन द्वारा 1905 ई. में प्रकाश-विद्युत प्रभाव की घटना की व्याख्या की गयी। इस सिद्धान्त के अनुसार, प्रकाश ऊर्जा के छोटे-छोटे बण्डलों या पैकेटों के रूप में चलते हैं, जिसे फोटॉन कहा जाता है। प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा hv होती है, जहाँ v प्रकाश की आवृत्ति तथा h प्लांक का सार्वत्रिक स्थिरांक है। प्रकाश की तीव्रता उन फोटॉनों की संख्या पर निर्भर करती है।

जब एक फोटॉन किसी धातु पर पड़ता है तो वह धातु में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों में से किसी एक को अपने ऊर्जा hv को स्थानान्तरित करता है तथा अपना अस्तित्व समाप्त कर देता है। इस ऊर्जा के एक भाग धातु से इलेक्ट्रॉन को उत्तेजित करने में तथा शेष ऊर्जा उत्तेजित नहीं होते हैं । इलेक्ट्रॉन जो धातु से उत्तेजित होते हैं, वे परमाणु के साथ टक्कर करने में अपने रास्ते से सतह पर अपनी कुछ प्राप्त ऊर्जा फैलाते हैं। इस प्रकार विभिन्न गतिज ऊर्जाओं के साथ इलेक्ट्रॉन धातु पर उत्सर्जित होते हैं।

माना कि प्रकाश इलेक्ट्रॉन का महत्तम गतिज ऊर्जा धातु सतह से  E1 उत्सर्जित होती है और धातु पर प्रकाश इलेक्ट्रॉन को उत्तेजित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा W है, जिसे धातु का कार्य-फलन कहते हैं तथा यह विभिन्न धातुओं के लिए विभिन्न होता है। तब हम पाते हैं कि

                                                    hv = W +  Ek या  Ek= hv – W

जहाँ hv, इलेक्ट्रॉन द्वारा अवशोषित फोटॉन की ऊर्जा है।

इलेक्ट्रॉन द्वारा अवशोषित फोट्रॉन की ऊर्जा धातु के कार्यफलन W से कम होने पर इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं करता है। इसलिए, दिये गये धातु के लिए, प्रकाश की थ्रिशोल्ड न्यूनतम आवृत्ति v0 होने पर प्रकाश के फोटॉन की ऊर्जा के परिमाण hv0 धातु के बाहर इलेक्ट्रॉन को उत्तेजित करने में खर्च होता है अर्थात् यह कार्य फलन W के बराबर है। इस प्रकार W = hv0 है।

                                                     Ek = hv – hv0 या  Ek = hv – v0

माना कि उत्सर्जित प्रकाश इलेक्ट्रॉन का अधिकतम वेग vmax है, तो  Ek = 12mvmax2होती है।

अतः उपर्युक्त समीकरण को निम्न प्रकार से लिखा जाता है –

                                                  12mvmax2 = h(v – v0)

यह समीकरण आइंस्टाइन का प्रकाश-विद्युत समीकरण कहलाता है

3 . प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन के नियमों को लिखें तथा आइंस्टाइन के प्रकाश-विद्युत समीकरण से इसकी व्याख्या करें।

उत्तर :- प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन के नियम – 

प्रकाश-विद्युत प्रभाव के प्रयोगों के आधार पर लेनार्ड तथा मिलिकन द्वारा प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन के निम्नलिखित नियम दिये गये हैं –

(a) धातु की सतह से फोटो-इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन की दर, सतह पर पड़ते हुए आपतित प्रकाश की तीव्रता के समानुपाती होती है।

(b) उत्सर्जित फोटो-इलेक्ट्रॉन की अधिकतम गतिज ऊर्जा, आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती है।

(c) फोटो-इलेक्ट्रॉन की महत्तम गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश की आवृत्ति के बढ़ने से बढ़ती है।

(d) आपतित प्रकाश की आवृत्ति के किसी न्यूनतम मान से कम रहने पर, फोटो-इलेक्ट्रॉन धातु से उत्सर्जित होती है। यह न्यूनतम आवृत्ति है, जिसे थ्रिशोल्ड आवृत्ति कहते हैं। विभिन्न धातुओं के लिए विभिन्न होता है।

(e) ज्योंहि धातु की सतह पर प्रकाश आपतित होती है, फोटो इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होती है, अर्थात् प्रकाश के आपतित तथा इलेक्ट्रॉन से उत्सर्जित होने में समय नगण्य अर्थात् नहीं के बराबर लगता है।

प्रकाश-विद्युत उत्सर्जन नियम की व्याख्या – 

यदि दिये गये प्रकाश की तीव्रता की आवृत्ति v को बढ़ाया जाता है तो प्रति सेकेण्ड सतह पर टकराने वाली फोटॉन की संख्या समान अनुपात में बढ़ती है, किन्तु प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा hv समान रहती है। अतः फोटो-इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती है, किन्तु उनकी अधिकतम गतिज ऊर्जा Ek समान रहती है, इस प्रकार आइंस्टाइन समीकरण से (a) तथा (b) नियम की व्याख्या हो जाती है।

आइंस्टाइन के समीकरण से यह भी देखा जाता है कि फोटो-इलेक्ट्रॉनों की महत्तम गतिज ऊर्जा Ek आपतित प्रकाश की आवृत्ति v के बढ़ने के साथ रैखिक रूप से बढ़ती है। यह (c) नियम है।

यदि v < v0 तो इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा ऋणात्मक होती है जो कि असंभव है। अर्थात् यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति v के थ्रिशोल्ड आवृत्ति v0 से कम है तो फोटो-इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन नहीं हो सकता है। यही (d) नियम है।

प्रकाश के आपतित होने के बाद एकाएक फोटो-इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की व्याख्या आइन्सटीन के फोटॉन सिद्धान्त द्वारा भी की जा सकती है। ज्योंही प्रथम फोटॉन धातु पर पड़ता है, धातु में एक इलेक्ट्रॉन अवशोषित तथा उत्तेजित हो जाता है। इस प्रकार धातु को प्रकाश के आपतन तथा इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन में समय नहीं लगता है, यही (e) नियम है।

4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(a) ऐसा विचार किया गया है कि प्रोटॉन और न्यूट्रॉन के भीतर क्वार्क पर आंशिक आवेश होते है | 

                             +23e ; -13e

यह मिलिकन तेल-बूंद प्रयोग में क्यों नहीं प्रकट होते?

(b) गैसें सामान्य दाब पर कुचालक होती हैं, परन्तु बहुत कम दाब पर चालन प्रारम्भ कर देती हैं। क्यों?

(c) प्रत्येक धातु का एक निश्चित कार्य-फलन होता है। यदि आपतित विकिरण एकवर्णी हो तो सभी प्रकाशिक इलेक्ट्रॉन समान ऊर्जा के साथ बाहर क्यों नहीं आते हैं? प्रकाशिक इलेक्ट्रॉनों का एक ऊर्जा वितरण क्यों होता है?

(d) एक इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा तथा इसका संवेग इससे जुड़े पदार्थ-तरंग की आवृत्ति तथा इसके तरंगदैर्घ्य के साथ निम्न प्रकार सम्बन्धित होते हैं

                                                        E = hv ,    p = h

परन्तु λ का मान जहाँ भौतिक महत्त्व का है, के मान (और इसलिए कला चाल 22 को मान) का कोई भौतिक महत्त्व नहीं है। क्यों?

उत्तर:

(a) भिन्नात्मक आवेश वाले क्वार्क न्यूट्रॉन तथा प्रोटॉन के भीतर इस प्रकार सीमित रहते हैं कि प्रोटॉन में उपस्थित क्वार्को के आवेशों का योग +e तथा न्यूट्रॉन में उपस्थित क्वार्को के आवेशों का योग । शून्य बना रहता है तथा ये क्वार्क पारस्परिक आकर्षण बलों द्वारा बँधे रहते हैं। जब इन्हें (UPBoardSolutions.com) अलग करने का प्रयास किया जाता है तो बल और अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं और इसी कारण वे एक साथ बने रहते हैं। इसीलिए प्रकृति में भिन्नात्मक आवेश मुक्त अवस्था में नहीं पाए जाते अपितु वे सदैव इलेक्ट्रॉनिक आवेश के पूर्ण गुणज के रूप में ही पाए जाते हैं।

(b) सामान्य दाब पर गैसों में विसर्जन के कारण उत्पन्न आयन कुछ ही दूरी तय करने तक गैस के अन्य अणुओं से टकराकर उदासीन हो जाते हैं और इस कारण सामान्य दाब पर गैसों में विद्युत चालन नहीं हो पाता। इसके विपरीत अत्यन्त निम्न दाब पर गैस में अणुओं की संख्या बहुत कम रह जाती है। इस कारण उत्पन्न आयन अन्य अणुओं से टकराने से पूर्व ही विपरीत इलेक्ट्रॉड तक पहुँच जाते हैं।

(c) कार्य फलन से, धातु में उच्चतम ऊर्जा स्तर अथवा चालन बैण्ड में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन के लिए आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा का ज्ञान होता है। परन्तु प्रकाश विद्युत उत्सर्जन में । इलेक्ट्रॉन अलग-अलग ऊर्जा स्तरों से निकल कर आते हैं। अतः उत्सर्जन के बाद उनके पास , भिन्न-भिन्न ऊर्जाएँ होती हैं।

(d) किसी द्रव्य कण की ऊर्जा का निरपेक्ष मान (न कि संवेग) एक निरपेक्ष स्थिरांक के अधीन स्वेच्छ होता है। यही कारण है कि द्रव्य तरंगों से सम्बद्ध तरंगदैर्घ्य λ का ही भौतिक महत्त्व होता है न कि आवृत्ति ν का। इसी कारण कला वेग νλका भी कोई भौतिक महत्त्व नहीं होता।

5. प्रकाश-विद्युत प्रभाव को समझाते हुए इससे सम्बन्धित प्रायोगिक प्रेक्षणों का विवरण दीजिये।

उत्तर:- प्रकाश विद्युत प्रभाव के प्रायोगिक परिणाम एवं उनकी व्याख्या  :-  

लेनार्ड तथा मिलीकॉन ने प्रकाश-वैद्युत प्रभाव का अध्ययन करने के लिए अनेक प्रयोग किये। उन्होंने भिन्न-भिन्न धातुओं की प्लेटों पर | भिन्न-भिन्न आवृत्तियों तथा भिन्न-भिन्न तीव्रताओं का प्रकाश आपतित करके प्रत्येक दशा में उत्सर्जित प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की ऊर्जा एवं प्रकाश-वैद्युत धारा की प्रबलता को मापा।

                

इसके लिए प्रयुक्त उपकरण चित्र में प्रदर्शित है। इस उपकरण में एक निर्वातित बल्ब में धातु की दो प्लेटें C व P एक-दूसरे से कुछ दूरी पर स्थित होती हैं। क्वार्ट्ज की एक खिड़की W से होकर प्रकाश प्लेट C पर आपतित होता है, इसे ‘कैथोड प्लेट’ भी कहते हैं। इन प्लेटों का सम्बन्ध एक माइक्रोअमीटर μA, कुंजी K’ तथा विभव विभाजक द्वारा बैटरी से किया जाता है। विभव विभाजक द्वारा प्लेट के बीच विभवान्तर को परिवर्तित किया जा सकता है। दिक्परिवर्तक K के द्वारा विभवान्तर की दिशा परिवर्तित की जा सकती है। प्लेटों के बीच विभवान्तर की माप वोल्टमीटर द्वारा एवं धारा की माप माइक्रोअमीटर द्वारा की जाती है।

 6. प्रकाश-विद्युत प्रभाव की व्याख्या चिरसम्मत तरंग सिद्धान्त के आधार पर सम्भव क्यों नहीं है ? स्पष्ट कीजिये।

उत्तर: प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या करने में तरंग सिद्धान्तकी असमर्थता :-  प्रकाश के तरंग सिद्धान्त के अनुसार स्रोत से ऊर्जा का उत्सर्जन एवं किसी पृष्ठ द्वारा इसका अवशोषण दोनों ही लगातार होने वाली क्रियाएँ हैं और ऊर्जा की हर सम्भव मात्रा का उत्सर्जन एवं अवशोषण दोनों ही सम्भव हैं। संसार का कोई भी वैज्ञानिक इस सिद्धान्त के आधार पर प्रकाश-वैद्युत प्रभाव की व्याख्या न कर सका। प्रकाश-वैद्युत प्रभाव की व्याख्या करने में तरंग सिद्धान्त निम्न कारणों से असफल रहा’

(1) तरंग सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक आवृत्ति के प्रकाश से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होना चाहिए, क्योंकि आपतित प्रकाश से इलेक्ट्रॉन ऊर्जा का अवशोषण करता रहे और जब उत्सर्जन के लिए आवश्यक ऊर्जा एकत्र हो जाये तो उसका उत्सर्जन हो जाना चाहिए। वास्तविकता इससे भिन्न है। वास्तव में आपतित प्रकाश की आवृत्ति जब देहली आवृत्ति (v) से अधिक होती है, तभी इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होता है।

(2) तरंग सिद्धान्त के अनुसार प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर करनी चाहिए। तीव्रता बढ़ाने पर प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा बढ़नी चाहिए, क्योंकि तीव्रता बढ़ाने पर पृष्ठ पर आपतित ऊर्जा बढ़ जाती है, अतः इलेक्ट्रॉन अधिक ऊर्जा का उत्सर्जन करे तो उसकी गतिज ऊर्जा बढ़ जानी चाहिए, जबकि वास्तविकता यह है कि प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती है।

(3) तरंग सिद्धान्त के अनुसार पृष्ठ पर प्रकाश के आपतन एवं इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन के मध्य कुछ-न-कुछ समय अवश्य लगना चाहिए, क्योंकि इलेक्ट्रॉन को उत्सर्जन के लिए आवश्यक ऊर्जा का अवशोषण करने में भी समय लगता है। इसके अतिरिक्त प्रकाश तरंगों द्वारा संचरित ऊर्जा धातु के किसी एक इलेक्ट्रॉन को न मिलकर, प्रकाशित क्षेत्रफल में उपस्थित सभी इलेक्ट्रॉनों में वितरित होगी। वास्तविकता इसके भी भिन्न है। वास्तव में प्रकाश के आपतन एवं इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन के मध्य कोई समय-पश्चता नहीं होती है।

7. हर्ट्ज तथा लेनार्ड के प्रेक्षण की व्याख्या कीजिए | प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या करने में तरंग सिद्धांत की असफलता के कारण बताइए | 

हर्ट्ज तथा लेनार्ड के प्रेक्षण :-

हर्ट्ज, लेनार्ड तथा मिलिकन ने प्रकाश विद्युत उत्सर्जन पर अनेक प्रयोग किए। उन्होंने विभिन्न धातुओं की प्लेट लेकर लेकर लेकर उन पर विभिन्न आवृत्तियों तथा विभिन्न तीव्रताओं का प्रकाश डाला तथा प्रत्येक दशा में उत्सर्जित प्रकाश इलेक्ट्रानों की ऊर्जा एवं  प्रकाश विद्युत धारा की प्रबलता को मापा।

इन प्रयोगों के आधार पर उन्होंने प्रकाश विद्युत उत्सर्जन के संबंध में निम्नलिखित नियम दिए-

किसी धातु के पृष्ठ से के पृष्ठ से प्रकाश इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की दर, धातु के पृष्ठ पर आपतित प्रकाश की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होती है।

उत्सर्जित प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की  अधिकतम गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती हैं ।

प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा आपतित प्रकाश की आवृत्ति के बढ़ने पर बढ़ती है।

यदि आपतित प्रकाश की तीव्रता एक न्यूनतम मान से कम है तो धातु से कोई भी प्रकाश इलेक्ट्रान से कोई भी प्रकाश इलेक्ट्रान नहीं निकलता। प्रकाश की इस न्यूनतम आवृत्ति को देहली आवृत्ति कहते हैं। इसका मान भिन्न भिन्न धातुओं के लिए भिन्न-भिन्न होता है।

प्रकाश के धातु के पृष्ठ पर गिरते ही इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होने लगते हैं अर्थात प्रकाश के पृष्ठ पर गिरना तथा इलेक्ट्रान के पृष्ट से बाहर निकलने के बीच कोई समय अंतराल नहीं होता चाहे प्रकाश की तीव्रता कितनी भी क्यों ना हो।

प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या करने में तरंग सिद्धांत की असफलता :- प्रकाश विद्युत प्रभाव के तथ्यों की व्याख्या प्रकाश का तरंग सिद्धांत नहीं कर सका जिसके निम्न कारण है। 

उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा का प्रकाश की तीव्रता पर निर्भरता  — प्रकाश तरंगों में विद्युत चुंबकीय तरंग के विद्युत क्षेत्र के आयाम का प्रभाव अधिक होता है। तो तीव्रता बढ़ाने से इलेक्ट्रॉन पर बल का आयाम बढ़ेगा। अर्थात इसका त्वरण विद्युत ऊर्जा बढ़नी चाहिए। जो कि प्रयोग द्वारा प्राप्त परिणाम के विपरीत है। अर्थात गतिज ऊर्जा तीव्रता पर निर्भर नहीं करती है। 

इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन की आपतित प्रकाश की आवृत्ति पर निर्भरता — तरंग सिद्धांत के अनुसार प्रकाश विद्युत प्रभाव सभी आवर्ती पर होगा। बशर्ते तरंग की तीव्रता उच्च हो। ताकि इलेक्ट्रॉनों को धातु से बाहर आने के लिए आवश्यक ऊर्जा उपलब्ध होती रहे। किंतु प्रयोग द्वारा देहली आवृत्ति से कम आवृत्ति की प्रकाश तरंगों की तीव्रता चाहे कितनी भी प्रकाश उत्सर्जन प्रभावित नहीं होगा। 

कालपश्यता — तरंग सिद्धांत के अनुसार आपतित प्रकाश की ऊर्जा धातु के किसी एक इलेक्ट्रॉन को ने मिलकर उस क्षेत्र के सभी इलेक्ट्रॉन को मिलती है। अतः इलेक्ट्रॉन को उत्सर्जन के लिए आवश्यक ऊर्जा संचित करने में कुछ समय लगेगा। किंतु प्रयोग से प्राप्त निष्कर्षों के अनुसार आपतित प्रकाश व इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन के बीच कालपश्यता बहुत ही अल्प होती है। 

फोटो इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा का प्रकाश की आवर्ती पर निर्भरता — तरंग सिद्धांत अनुसार प्रकाश तरंग की आवृत्ति व उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा में कोई संबंध नहीं होता है। जबकि इलेक्ट्रॉन की अधिकतम गतिज ऊर्जा प्रकाश की आवृत्ति के साथ बढ़ती है। 

8.आइंस्टीन का प्रकाश विद्युत समीकरण लिखिए | प्रकाश विद्युत प्रभाव के नियम लिखिए | 

उत्तर ➖ आइंस्टीन का प्रकाश विद्युत समीकरण :- 

वैज्ञानिक आइंस्टीन ने प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या प्लांक के क्वांटम सिद्धांत के आधार पर की। आइंस्टीन के अनुसार, जब कोई फोटोन किसी धातु की सतह पर गिरता है तो वह फोटोन अपनी सम्पूर्ण उर्जा hv को धातु के भीतर उपस्थित किसी एक इलेक्ट्रॉन को दे देता है। जिस उसका स्वयं का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। इलेक्ट्रॉन hv ऊर्जा को दो प्रकार से व्यय करता है।

(i) इस ऊर्जा का कुछ भाग इलेक्ट्रॉन‌ को सतह तक लाने में व्यय हो जाता है जिसे इलेक्ट्रॉन का कार्य फलन W कहते हैं।

(ii) तथा शेष ऊर्जा इलेक्ट्रॉन को गतिज ऊर्जा के रूप में मिल जाती है। तब इस प्रकार इलेक्ट्रॉन की कुल ऊर्जा

                     कुल ऊर्जा = कार्य फलन + इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा

                             hv = W + E k

या                            E k = hv समी.(1)

                   आइंस्टीन का प्रकाश विद्युत प्रभाव समीकरण

यदि इलेक्ट्रॉन द्वारा अवशोषित फोटोन की ऊर्जा hv का मान धातु के कार्य फलन से कम है। तो धातु की सतह से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं होंगे। यदि दी हुई ऊर्जा के लिए प्रकाश की देहली आवृत्ति v0 हो, तो यह इलेक्ट्रॉन में कार्य फलन के बराबर होगी। तब

                                 W = hv0

कार्य फलन W का मान समी.(1) में रखने पर

                               E k = hv – W

                              E k = hv – hv0

                              E k = h(v – v0)

यदि उत्सर्जित प्रकाश इलेक्ट्रॉन का अधिकतम वेग Vmax हो, तो गतिज ऊर्जा

                                E k = 12mv2

जहां m इलेक्ट्रॉन का द्रव्यमान है।

                            12mv2 =ℎ(v – v0)

इस समीकरण को आइंस्टीन का प्रकाश विद्युत समीकरण कहते हैं।

अतः इस प्रकार आइंस्टीन का प्रकाश विद्युत समीकरण का निगमन किया जाता है।

प्रकाश विद्युत प्रभाव के नियम :- 

किसी धातु की सतह से प्रकाश इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की दर, धातु की सतह पर गिरने वाले प्रकाश की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होती है।

उत्सर्जित प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा, आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती है।

प्रकाश इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम गतिज ऊर्जा, आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर करती है। अतः आवृत्ति के बढ़ने पर गतिज ऊर्जा बढ़ती है।

9. डी ब्रोग्ली तरंगदैर्ध्य समीकरण लिखिए | 

उत्तर :- डी ब्रोग्ली तरंग :-

जब कोई द्रव्य कण जैसे इलेक्ट्रॉन, फोटोन आदि गतिशील अवस्था में होते हैं तो वे कण तरंग की भांति ही व्यवहार करते हैं। तब इन तरंगों को द्रव्य तरंगें अथवा डी ब्रोग्ली तरंगें कहते हैं।

वैज्ञानिक डी ब्रोग्ली के अनुसार, गतिशील द्रव्य कण सदैव तरंग की भांति व्यवहार करता है।

डी ब्रोग्ली तरंगदैर्ध्य समीकरण :-

प्लांट के क्वांटम सिद्धांत के अनुसार, v आवृत्ति की प्रकाश तरंग के साथ सम्बद्ध फोटोन की ऊर्जा

                                         E = hv

माना फोटोन का द्रव्यमान m है तो आइंस्टीन के सापेक्षता के विशिष्ट सिद्धांत के अनुसार, फोटोन की ऊर्जा

                                          E = mc 2

जहां c निर्वात में प्रकाश की चाल है।

उपरोक्त दोनों समीकरणों से

                                            E = E

                                         mc 2 = hv

                                          m =hvc2 

माना यदि फोटोन का संवेग p हो तो

                               p = mc

उपरोक्त समीकरण से m का मान रखने पर फोटोन का संवेग

                              p = hvc2 × c 2

या                             p = hvc

प्रकाश की तरंगदैर्ध्य λ तथा चाल c में निम्न संबंध होता है।

                                 c = vλ

प्रकाश की चाल c का मान समीकरण में रखने पर फोटोन का संवेग

                                p = hvv

 

                                p = h

या 

                                      = hp मीटर

इस द्रव्य तरंग के तरंगदैर्ध्य λ को डी ब्रोग्ली तरंगदैर्ध्य कहते हैं। तथा इस समीकरण को डी ब्रोग्ली तरंगदैर्ध्य समीकरण कहते हैं।

जहां h प्लांट नियतांक है जिसका मान 6.6 × 10-34 जूल-सेकंड होता है।

संवेग के सूत्र से

                                  p = mc

तो डी ब्रोग्ली तरंगदैर्ध्य

                                                  λ= hmc मीटर

माना यदि कण की गतिज ऊर्जा K हो तब तरंगदैर्ध्य

                                               λ = h2mK

10.  इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन से आप क्या समझते हैं? सोडियम के लिए कार्यफलन 2.3 ev है। प्रकाश की वह अधिकतम तरंगदैर्घ्य ज्ञात करो जो सोडियम से प्रकाशिक इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन कर सकती है?

उत्तर :- इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन:-

धातु पृष्ठ से इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की घटना को इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन कहते हैं। यह चार प्रकार से होता है

तापायनिक उत्सर्जन

प्रकाश-वैद्युत् उत्सर्जन

क्षेत्र उत्सर्जन

द्वितीयक उत्सर्जन

सोडियम के लिए कार्यफलन ()=2.3eV

कार्यफलन ()=hv0 =hc0

                                   0  = hc

                                      = 6.6310-3431082.3 eV

 

                                       = 6.6310-3431082.3 1.610-19

                                  = 53910-9

                                         = 539 nm.

11. एक इलेक्ट्रॉन जिसकी गतिज ऊर्जा 120 eV है, उसका (a) संवेग, (b) चाल और (c) डी - ब्रॉग्ली तरंगदैर्ध्य क्या है?

हल:  दिया है: K= 120 eV = 120 x 1.6 x 10-19 

(a) इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा

                                      K = 12my2

                                                            = m2v22m

                                        = p22m

∴                                         p = 2mK

               = 29.110-311201.6 x 10-19

                                      p  = 5.91 x 10-24 kg ms-1

(b) ∵ mv = p

∴                                          v= pm

                                  = 5.91 x 10-249.110-31

                               v  = 6.5 x 106 ms-1

(c) इलेक्ट्रॉन से सम्बद्ध दव्य तरंगों को डी - बॉग्ली तरंगदैर्ध्य

                                       λ= hp

                                    = 6.6210-345.9110-24

                                                = 0.112 nm

12. डेविसन - जर्मर प्रयोग का वर्णन कीजिए। आवश्यक चित्र बनाते हुए इस प्रयोग के परिणामों की व्याख्या कीजिए।

उत्तर: डेविसन - जर्मर का प्रयोग :-

सन् 1927 में वैज्ञानिक सी. जे. डेविसन तथा जमर ने डी - ब्रॉग्ली द्वारा प्रतिपादित द्रव्य तरंगों के सिद्धान्त का सत्यापन किया। प्रयुक्त उपकरण तीन भागों में विभाजित होता है-

1. इलेक्ट्रॉन गन : यह तीव्रगामी इलेक्ट्रॉन पुंज की युक्ति है। इसके मुख्य तीन घटक होते हैं-

(a) टंगस्टन - फिलामेण्ट: यह निम्न वोल्टेज की बैटरी से गर्म किया जाता है और गर्म होकर यह इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन करता है।

(b) ग्रिड: इसे फिलामेण्ट के सापेक्ष बहुत कम ऋण विभव दिया जाता है।

(c) छिद्रयुक्त बेलनाकार ऐनोड: इसे फिलामेण्ट के सापेक्ष त्वरक विभव दिया जाता है।

 

जब फिलामेण्ट में धारा प्रवाहित की जाती है तो वह गर्म होकर इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन करने लगता है। इन इलेक्ट्रॉनों में से कम ऊर्जा वाले कुछ इलेक्ट्रॉन ग्रिड के ऋणात्मक विभव के कारण रुक जाते हैं और अधिक ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन ग्रिड को पार करके ऐनोड द्वारा त्वरित होते हैं। इस प्रकार ऐनोड से त्वरित इलेक्ट्रॉनों का एक पतला किरण पुंज निर्गत होता है।

2. निकिल क्रिस्टल: इलेक्ट्रॉन पुंज को निकिल क्रिस्टल पर आपतित कराया जाता है, क्रिस्टल के परमाणु आपतित इलेक्ट्रॉनों का सभी दिशाओं में प्रकीर्णन कर देते हैं। निकिल परमाणुओं के मध्य न्यूनतम दूरी 0.914 Å होती है।

3. इलेक्ट्रॉन संसूचक : यह वृत्ताकार पैमाने पर गति करता है। इसे एक सुग्राही धारामापी से जोड़ा जाता है जो उस धारा को नापता है जो इलेक्ट्रॉन पुंज की तीव्रता के अनुक्रमानुपाती होती है।

कार्यविधि: क्रिस्टल पर आपतित इलेक्ट्रॉनों एवं क्रिस्टल द्वारा प्रकीर्णित इलेक्ट्रॉन पुंज के बीच कोण (α) बदलने के लिए इसे छोटे - छोटे चरणों में घुमाया जाता है तथा प्रत्येक बार प्रकीर्णित इलेक्ट्रॉन पुंज की संगत तीव्रता (I) नोट कर ली जाती है।

आपतित इलेक्ट्रॉनों के त्वरक विभवों के विभिन्न मानों (44 V, 48 V, 54V, 60 V व 68 V) के लिए (α) तथा (I) के मध्य ग्राफ खींच लेते हैं। ये ग्राफ चित्र में प्रदर्शित किये गये है।

ग्राफों का अध्ययन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि

(i) प्रकौर्णित इलेक्ट्रॉनों की तीव्रता प्रकीर्णन कोण (α) पर निर्भर करती है।

(ii) प्रकीर्णन कोण α = 50° पर सदैव एक उभार उत्पन्न होता है।

(iii) जैसे - जैसे त्वरक विभव बढ़ाया जाता है उभार का आकार बढ़ता जाता है और 54 V के त्वरक विभव के लिए अधिकतम हो जाता है।

V = 54 वोल्ट के संगत Φ = 50° पर उभार की स्थिति यह प्रदर्शित करती है कि इस विभव पर निकिल क्रिस्टल द्वारा इलेक्ट्रॉनों का 50° के कोण पर विवर्तन होता है। विवर्तन चूँकि तरंगों का विशिष्ट गुण है; अत: इससे स्पष्ट होता है कि इलेक्ट्रॉन तरंगों की भाँति व्यवहार करते हैं।

(iv) त्वरक विभव का मान 54 V से आगे बढ़ाने पर उभार का आकार घटने लगता है।

∵ α = 50° पर प्रकीर्णित पुंज की तीव्रता अधिकतम होती है अतः θ + 50° + θ = 180° या 2θ = 130° या θ = 65°

इसका अर्थ यह हुआ कि जब इलेक्ट्रॉन पुंज θ = 65° के संस्पर्श कोण पर निकिल क्रिस्टल पर आपतित होता है तो 50° के कोण पर प्रकीर्णित पुंज की तीव्रता अधिकतम प्राप्त होती है।

13.(a)  एक दी गई प्रकाश सुग्राहक सतह से हरे रंग के प्रकाश से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं और पीले रंग के प्रकाश से नहीं। बैंगनी एवं लाल प्रकाश से क्या होगा? अपने उत्तर का तर्क प्रस्तुत कीजिए।

(b) 0.12 किग्रा द्रव्यमान की गेंद 20 मी/से, की चाल से गतिमान है। इसकी डी - ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य ज्ञात कीजिए।

उत्तर:

(a) दृश्य प्रकाश के विभिन्न रंगों की आवृत्ति अवरोही क्रम में

                                  Vv > VI > VB > VG > VY > VO > VR

चूंकि हरे रंग के प्रकाश से उत्सर्जित होते हैं, पीले रंग के प्रकाश से नहीं। अत: देहली आवृत्ति हरे रंग के प्रकाश की आवृत्ति के बराबर होगी। देहली आवृत्ति से अधिक आवृत्ति प्रकाश से ही इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित हो सकते हैं। अत: बैंगनी रंग के प्रकाश से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होंगे, लाल रंग के प्रकाश से नहीं।

(b)

                                  = hp 

                       λ = hmv

                               λ = 6.6210-340.1220

                             λ  = 2.75 x 10-34 m/s

14.निरोधी विभव क्या है? किसी धातु जिसका कार्य-फलन 3.2eV है, पर 4.0 eV ऊर्जा वाला एक फोटॉन आपतित होता है। उत्सर्जित फोटो-इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा कितनी होगी?

उत्तर: निरोधी विभव – उस मंदक विभव को जिस पर विशिष्ट आपतित प्रकाश आवृत्ति के लिए प्रकाशिक धारा को शून्य हो जाती है उस आवृत्ति के लिए निरोधी विभव (V0) कहलाती है। निरोधी विभव आपतित प्रकाश की आवृत्ति बढ़ने के साथ बढ़ती है तथा इसकी निर्भरता रैखिक है।

उत्सर्जित फोटो-इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा

                                Ek = hν – W

                                     = 4eV- 3.2eV

                                     = 0.8 eV= 0.8 x 1.6 x 10-19 जूल

                                      = 1.28 x 10-19 जूल

.15. प्रकाश-विद्युत प्रभाव से आप क्या समझते हैं ?  प्रकाश किस प्रकार द्वैत प्रकृति (स्वरूप) है ?

उत्तर: प्रकाश-विद्युत प्रभाव –

 सर्वप्रथम हॉलवाश द्वारा 1888 ई. में चित्रानुसार एक निर्वात वल्व में दो जिंक प्लेट रखा गया। इन प्लेटों को दो तार द्वारा जोड़कर, उसे एक बैटरी तथा एक गैलवेनोमापी द्वारा जोड़ा गया। उन्होंने प्रेक्षण किया कि जब पराबैंगनी किरणें ऋणात्मक प्लेट पर आपतित करायी जाती हैं तो परिपथ में एकाएक धारा प्रवाहित होती है तथा ज्योंही पराबैंगनी किरणों को आपतित कराना बंद कर दिया जाता है तो धारा का प्रवाहित होना भी बंद हो जाता है। यदि पराबैंगनी किरणों को धनावेशित प्लेट पर आपतित कराया जाता है तो परिपथ में धारा प्रवाहित नहीं होती है। इसके कारणों की व्याख्या करने में इन्होंने असफलता हासिल की। जे. जे. थॉमसन

                             प्रकाश-विद्युत प्रभाव से आप क्या समझते हैं, ? समझाएँ

द्वारा 1898 ई. में जाना गया कि जब प्रकाश धातु के सतह पर पड़ती है तो सतह से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होता है। लेनार्ड द्वारा 1900 ई० में कहा गया कि जब पराबैंगनी किरणे ऋणावेशित प्लेट पर पड़ती हैं तो प्लेट से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन धनात्मक प्लेट द्वारा आकर्षित हो जाता है, फलस्वरूप परिपथ पूरा हो जाता है तथा इलेक्ट्रॉन प्रवाहित होता है। किन्तु यदि पराबैंगनी किरणें धनात्मक प्लेट पर पड़ती हैं तो प्लेट से उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक प्लेट पर पहुँच नहीं पाता है क्योंकि इलेक्ट्रॉन ऋणात्मक आवेशित होता है। इससे परिपथ पूरा नहीं हो पाता है और धारा प्रवाहित नहीं होती है।

इस प्रकार, उच्च आवृत्ति के प्रकाश के प्रभाव में धातुओं के सतहों से इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की घटना प्रकाश-विद्युत प्रभाव कहलाती है।

प्रकाश-विद्युत प्रभाव के द्वारा उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन कहलाते हैं तथा उत्पन्न धारा प्रकाश विद्युत धारा कहलाती है।

प्लांक के क्वांटम सिद्धान्त के अनुसार प्रकाश ऊर्जा का उत्सर्जन और अवशोषण सतत् नहीं होकर विविक्त रूप में ऊर्जा के बण्डलों के रूप में होता है, जिन्हें फोटॉन या क्वांटा कहते हैं। इसमें कणों के सभी गुण जैसे द्रव्यमान, संवेग ऊर्जा आदि पाये जाते हैं।

इस प्रकार प्रकाश की सभी घटनाओं की व्याख्या करने के लिए तरंग सिद्धान्त और क्वांटम सिद्धान्त दोनों ही आवश्यक है।

अर्थात् व्यतिकरण, विवर्तन आदि में प्रकाश तरंगों का व्यवहार करना है, जबंकि कुछ अन्य परिस्थितियों में प्रकाश में वैद्युत प्रभाव, काम्पटन प्रकाश आदि में प्रकाश कण (फोटॉन) की तरह व्यवहार करता है। इस प्रकार में कणिका और तरंग दोनों के गुण विद्यमान हैं। प्रकाश के इस स्वरूप या प्रकृति को द्वैत स्वरूप या प्रकृति कहते हैं।

16.डी० ब्रॉग्ली सिद्धान्त अथवा प्रकाश की द्वैत प्रकृति क्या है ? समझाएँ। कक्ष ताप (T = 300K) पर न्यूट्रॉन तापीय साम्य में है। इनकी दे-ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य ज्ञात कीजिए।

उत्तर: डी० ब्रॉग्ली सिद्धान्त – जब कोई द्रव्य कण जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन आदि गति करते हैं तब इन कणों के साथ तरंग सम्बद्ध होती है। इन तरंगों को द्रव्य तरंग या डी ब्रॉग्ली तरंग कहते हैं। डेविसन, जर्मन तथा थामसन द्वारा गतिमान इलेक्ट्रॉन के साथ सम्बद्ध द्रव्य तरंग के विवर्तन का प्रायोगिक रूप से प्रदर्शन किया गया तथा द्रव्य तरंग की प्रायोगिक पुष्टि की गयी।

डी ब्रोगली द्वारा 1925 ई. में सर्वप्रथम परिकल्पना की गयी थी कि जब प्रकाश की प्रकृति द्वैत है, तब द्रव्य कण जैसे इलेक्ट्रॉन, प्रोट्रॉनों, न्यूट्रॉन आदि की प्रकृति भी द्वैत हो सकती है अर्थात् निश्चित परिस्थितियों में यह कण भी तरंग की तरह व्यवहार कर सकते हैं।

ताप (T) = 300K

                          = 30.8T Ao

                             = 30.8300 Ao

                          = 30.817.32Ao

                          = 1.78Ao

17.कार्य-फलन से आप क्या समझते हैं? एक धातु के लिये देहली तरंगदैर्ध्य का मान 5675A है। धातु के कार्यफलन की गणना कीजिये।

h = 6.63 × 10-34Js

उत्तर: कार्य फलन :- 

प्रकाश के एक फोटोन की वह न्यूनतम ऊर्जा जो धातु से प्रकाश इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित करने के लिए आवश्यक होती है। उसे धातु का कार्य फलन कहते हैं। इसे W से प्रदर्शित किया जाता है। कार्य फलन का मान भिन्न-भिन्न धातुओं के लिए भिन्न-भिन्न होता है। अधिकांश धातुओं के लिए कार्य फलन का मान कुछ इलेक्ट्रॉन वोल्ट की कोटि का होता है।

यदि दी गई धातु के लिए प्रकाश की देहली आवृत्ति हो, तो इस प्रकार के प्रकाश फोटोन की ऊर्जा इलेक्ट्रॉन को प्रश्न तक लाने में ही वे हो जाएगी जो कि इलेक्ट्रॉन में कार्य फलन के बराबर होगी।

अतः 

                                                W=h 0

​इस समीकरण को धातु के कार्य फलन W तथा देहली आवृत्ति 0 में संबंध का सूत्र कहते हैं।

धातु के कार्यफलन                   0= hv0

                                               = hc0 Joule

                                             = hce0 eV

                                          = 6.63 10-343108567510-101.610-19

                                = 2.19 eV

                                        = 2.2eV

18. प्रकाश के दो स्रोत A और B हैं, A से जो प्रकाश निकलता है, उसकी तरंगदैर्ध्य 8000 À से 11000 À तक है। जबकि B से निकलने वाले प्रकाश की तरंगदैर्ध्य 3000 À से 6000 A तक है। A की तीव्रता B की अपेक्षा 4 गुनी अधिक है। परन्तु जब 4 का प्रकाश किसी धातु पर पड़ता है, तो प्रकाश इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं होते जबकि B का प्रकाश उसी धातु से प्रकाश इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित करता है इसका कारण समझाकर लिखिए।

उत्तर :- किसी धातु से प्रकाश इलेक्ट्रॉन तभी उत्सर्जित हो सकते हैं जबकि उस धातु पर आपतित प्रकाश फोटॉन की ऊर्जा धातु के कार्य-फलन से कम न हों। दूसरे शब्दों में, यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति एक न्यूनतम मान से कम है अथवा तरंगदैर्ध्य एक अधिकतम मान से बड़ी है, तो धातु से प्रकाश-इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं होंगे चाहे प्रकाश की तीव्रता कितनी ही अधिक क्यों न हो। यदि किसी धातु की देहली तरंगदैर्ध्य 6000 व 8000 A के बीच है, तब प्रकाश स्रोत B (3000-6000 A) द्वारा उस धातु से प्रकाश इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होंगे परन्तु प्रकाश स्रोत A (8000-11000 A) से नहीं भले ही A की तीव्रता B की अपेक्षा 4 गुनी अधिक है।

19.दो प्रकाश स्रोतो A तथा B में स्रोत A से प्राप्त प्रकाश विकिरणों की तरंगदैर्ध्य परास 7000 A से 10,000 A तक तथा स्रोत B से प्राप्त प्रकाश विकिरणों की तरंगदैर्ध्य परास 4500 A से 6500 A तक है। स्रोत B की तीव्रता, स्रोत A की तीव्रता से 5 गुनी कम है। जब स्रोत A का प्रकाश किसी धातु के पृष्ठ पर पड़ता है, तो फोटो इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं होते हैं जबकि स्रोत B के प्रकाश विकिरण उसी धातु फोटो-इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित कर देते हैं? कारण सहित उत्तर की पुष्टि कीजिए।

उत्तर :- फोटो-इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन, धातु के पृष्ठ पर आपतित प्रकाश की आवृत्ति (अथवा तरंगदैर्ध्य) पर निर्भर करता है। आपतित प्रकाश की तीव्रता बढ़ने से उत्सर्जित फोटो-इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती है, उनकी गतिज ऊर्जा नहीं, आपतित प्रकाश फोटॉनों की आवृत्ति अधिक (अथवा तरंगदैर्ध्य कम) होने से इलेक्ट्रॉन धातु के अन्दर अधिक ऊर्जा लेते हैं, जिससे धातु के कार्य-फलन में कमी होने के कारण फोटो-इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन नहीं होता। स्रोत B के प्रकाश की तरंगदैर्ध्य कम होने के कारण इसके प्रकाश फोटॉनों की ऊर्जा hv = he / 2. धातु के कार्य-फलन से अधिक है, जो फोटो-इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन के लिए पर्याप्त होती है।

20.इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन से क्या तात्पर्य है? वर्णन कीजिए।

उत्तर:- इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन:-

सभी धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉन होते है जोकि अपने परमाणु के बन्धन से मुक्त होते हैं। परन्तु धातु पृष्ठ की सीमा में बद्ध होते हैं तथा सामान्यतया धातु पृष्ठ से बाहर नहीं आते क्योंकि आयनों का आकर्षण इन्हें धातु के अन्दर ही रोककर रखता है। इन इलेक्ट्रॉनों को धातु के पृष्ठ से बाहर निकालने के लिए कुछ ऊर्जा की आवश्यकता होती है ताकि इस आकर्षण बल की बाधा को तोड़ा जा सके।इलेक्ट्रॉन को धातु के पृष्ठ से बाहर निकालने के लिए आवश्यक कार्य-फलन ऊर्जा निम्न में से किसी भी प्रक्रिया द्वारा दी जा सकती है।

(i) तापायनिक उत्सर्जन :- जब धातु को उपयुक्त ताप तक गर्म किया जाता है, तो मुक्त इलेक्ट्रॉनों को पर्याप्त तापीय ऊर्जा प्राप्त होती है तथा वे धातु सतह से बाहर उत्सर्जित होने लगते हैं। इस प्रक्रिया को तापायनिक उत्सर्जन कहते हैं तथा उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों को तापायन कहते हैं।

(ii) क्षेत्र उत्सर्जन :- जब धातु पर प्रबल विद्युत क्षेत्र आरोपित किया जाता है, तो इलेक्ट्रॉनों पर प्रबल विद्युत बल कार्य करता है तथा वे धातु की सतह से बाहर की ओर उत्सर्जित होने लगते हैं। धातु के पृष्ठ से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन की इस घटना को क्षेत्र उत्सर्जन अथवा शीत उत्सर्जन कहते हैं। जैसे-स्पार्क प्लग मे।

(iii) प्रकाश विद्युत उत्सर्जन :- जब किसी प्रकाश सुग्राही धातु पृष्ठ पर उपयुक्त आवृत्ति का प्रकाश आपतित होता है, तो उसके पृष्ठ से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होने लगते हैं। इस घटना को प्रकाश विद्युत उत्सर्जन अथवा प्रकाश विद्युत प्रभाव कहते हैं तथा उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों को प्रकाश इलेक्ट्रॉन कहते हैं तथा इस घटना द्वारा उत्पन्न धारा को प्रकाश विद्युत धारा कहते हैं।

21.(a) यदि धातु के पृष्ठ पर गिरने वाले फोटॉनों की ऊर्जा धातु के कार्य फलन के बराबर है, तो क्या धातु की सतह से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होगा?

(b) डेविसन एवं जर्मर के प्रयोग से इलेक्ट्रॉन के कण प्रकृति की पुष्टि होती है अथवा तरंग प्रकृति की ?

(c)गतिमान फुटबॉल से सम्बद्ध दे ब्राग्ली तरंग दिखायी क्यों नहीं देती है?

(d)क्या प्रकाश विद्युत प्रभाव से गोरे तथा सांवले रंग की तुलना कर सकते हैं?

(e)बैंकों में तिजोरी की सुरक्षा में प्रकाश विद्युत प्रभाव किस प्रकार उपयोगी है?

उत्तर :- 

(a) धातु के पृष्ठ से इलेक्ट्रॉन को बाहर निकालने के लिए आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा धातु के कार्य-फलन के बराबर होती है और धातु का कार्य-फलन फोटॉन की ऊर्जा के बराबर है अतः धातु की सतह से इलेक्ट्रॉन का उत्सर्जन होगा।

(b) तरंग प्रकृति की क्योंकि डेविसन एवं जर्मर के प्रयोग में इलेक्ट्रॉन विवर्तन मापन से द्रव्य तरंग की तरंग की तरंगदैर्ध्य दे बोग्ली की तरंगदैर्ध्य के तुल्य होती है। जिससे इलेक्ट्रॉन की तरंग प्रकृति की पुष्टि होती है।

(c) फुटबॉल का द्रव्यमान बहुत अधिक होने के कारण इससे सम्बद्ध तरंग बहुत छोटी होती है तथा दिखायी नहीं देती है।

(d) हाँ, प्रकाश विद्युत प्रभाव (प्रकाश विद्युत सेल) द्वारा काले, गोरे तथा सांवले रंग की तुलना कर सकते हैं। इसके लिए चेहरे से परावर्तित प्रकाश को प्रकाश विद्युत सेल पर डालते है तथा उससे उत्पन्न धारा को नाप लेते हैं।

(e) प्रकाश विद्युत प्रभाव पर आधारित चोर सूचक घण्टी बनायी जाती है। यह यन्त्र बैंक में तिजोरी पर लगाया जाता है। जब चोर तिजोरी खोलने के लिए टार्च से प्रकाश डालता है तो घण्टी में लगे प्रकाश विद्युत सेल से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होने के कारण घण्टी वाले परिपथ में धारा प्रवाहित होने लगती है जिससे एक विशेष स्थान पर रखी घण्टी बजने लगती है।

22. प्रकाश की कणीय प्रकृति: फोटॉन का वर्णन करें।

उत्तर:- प्रकाश की कणीय प्रकृति: फोटॉन :-

सन् 1900 में प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या के लिए, वैज्ञानिक मैक्स प्लांक ने क्वाण्टम सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। प्लांक के अनुसार, किसी पदार्थ अथवा पृष्ठ द्वारा ऊर्जा का उत्सर्जन तथा अवशोषण सतत् न होकर वार्जा के छोटे-छोटे बण्डलो अथवा पैकेटों के रूप में होता है, जिन्हें फोटॉन अथवा क्वाण्टा कहते हैं। प्रत्येक तरंगदैर्ध्य अथवा आवृत्ति v. (C/A) का अपना एक अलग फोटॉन होता है, जिसकी ऊर्जा की मात्रा hy होती है, जहाँ एक नियतांक है, जिसे प्लांक नियतांक कहते हैं।प्लांक के अनुसार, कोई भी वस्तु ऊष्मा का उत्सर्जन अथवा अवशोषण इन फोटोंनी के पूर्ण गुणज के रूप में कर सकती है अर्थात् कोई वस्तु hv, 2hv, Shv...आदि के रूप में ऊर्जा का अवशोषण अथवा उत्सर्जन करेगी। प्लांक नियतांक का मात्रक जूल- सेकण्ड होता है। अतः क्वाण्टम सिद्धान्त के अनुसार, प्रकाश फोटॉनी के समूह के रूप में चलता है, फोटॉनों की उपस्थिति से प्रकाश की कण प्रकृति की पुष्टि होती है।

फोटॉनों के कुछ महत्त्वपूर्ण अभिलक्षण:-

 फोटॉनों के प्रमुख अभिलक्षण निम्न हैं

(i) किसी भी स्रोत से विकिरण फोटॉन के रूप में उत्सर्जित होता है जोकि एक सरल रेखा अनुदिश प्रकाश के वेग (3x108) मी/से से चलते हैं। 

(ii) समान तरंगदैर्ध्य अथवा आवृत्ति के संगत उत्सर्जित समस्त फोटॉनो की ऊर्जा का मान समान होता है।

(iii) जब फोटॉन एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाता है, तो उसकी आवृत्ति अपरिवर्तित रहती है जबकि वेग परिवर्तित हो जाता है।

(iv) SI पद्धति में फोटॉन की तीव्रता का मात्रक वाट/मी होता है। 

(v) फोटॉन का विराम द्रव्यमान शून्य होता है।

(vi) फोटॉन का द्रव्यमान उसकी गति के कारण होता है, जिसे फोटॉन का गतिक द्रव्यमान कहते हैं।

(vii) विद्युतीय रूप से फोटॉन, उदासीन प्रकृति के होते हैं, अतः सामान्य परिस्थितियों में यह विद्युतीय व चुम्बकीय क्षेत्रों से विक्षेपित नहीं किए जा सकते हैं। 

(viii) फोटॉन की किसी उप-परमाण्विय कण; जैसे-इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन आदि संघट्टन की क्रिया में ऊर्जा एवं संवेग तो संरक्षित रहता है परन्तु फोटॉनों की संख्या का संरक्षित रहना अनिवार्य नहीं हैं क्योंकि इन क्रियाओं में कुछ फोटॉन अवशोषित हो सकते हैं अथवा कुछ नए फोटॉन उत्पन्न भी हो सकते हैं।

23. (a)कुछ फोटोग्राफिक प्लेंटे लाल प्रकाश से प्रभावित नहीं होती परन्तु श्वेत प्रकाश में तुरन्त काली पड़ जाती है, क्यों? 

(b)जब किसी धातु की सतह पर एक ही आवृत्ति का प्रकाश डाला जाता है, तब भी उसकी सतह से भिन्न-भिन्न ऊर्जा के प्रकाश इलेक्ट्रॉन क्यों उत्सर्जित होते हैं ?

(c) जब सीजियम धातु की सतह पर 4500 A का बैंगनी रंग का प्रकाश आपतित किया जाता है, तो धातु पर धनावेश आ जाता है, परन्तु उसी धातु पर 6700 A के लाल रंग के प्रकाश को आपतित करने से यह प्रभाव समाप्त हो जाता है चाहे प्रकाश विकिरण की तीव्रता कितनी भी अधिक कर दी जाए। कारण सहित उत्तर की पुष्टि कीजिए।

उत्तर :- 

(a)लाल प्रकाश के फोटॉन की ऊर्जा कम होती है, अतः ये प्लेट को प्रभावित नहीं कर पाते।

(b)धातु से प्रकाश इलेक्ट्रॉन केवल उसके पृष्ठ से ही उत्सर्जित न होकर अन्दर से भी उत्सर्जित होते हैं जिन्हें धातु की सतह से बाहर आने के लिए कार्य-फलन के अतिरिक्त भी कुछ ऊर्जा व्यय करनी पड़ती है। अतः प्रकाश इलेक्ट्रॉन भिन्न-भिन्न ऊर्जा के साथ बाहर आते हैं।

(c)फोटो-इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन के लिए सीजियम धातु के पृष्ठ पर आपतित प्रकाश की तरंगदैर्ध्य धातु की देहली तरंगदैर्ध्य के बराबर अथवा इससे कम होनी चाहिए। सीज़ियम धातु की देहली तरंगदैर्ध्य 6700 A से कम है। धातु पर धनावेश, फोटो-इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन होने पर ही आ पाता है। आपतित प्रकाश की तीव्रता बढ़ाने से फोटो-इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन तब तक सम्भव नहीं होता जब तक कि आपतित प्रकाश की तरंगदैर्ध्य धातु की तरंगदैर्ध्य के बराबर अथवा उससे कम न हो।

24.प्रकाश वैद्युत उत्सर्जन में देहली आवृत्ति से आप क्या समझते हैं?  प्रकाश का तरंग सिद्धान्त के नियमों का वर्णन कीजिए।

उत्तर:- देहली आवृत्ति आपतित प्रकाश की वह न्यूनतम आवृत्ति है जो किसी धातु से प्रकाश-इलेक्ट्रॉन का। उत्सर्जन कर सके। इसे v0 से प्रदर्शित करते हैं। इससे कम आवृत्ति के प्रकाश से धातु से कोई प्रकाश-इलेक्ट्रॉन नहीं निकलता है। यही इसकी महत्ता है।

प्रकाश का तरंग सिद्धान्त :-

प्रकाश विद्युत प्रभाव के प्रेक्षित तथ्यों की व्याख्या प्रकाश के तरंग सिद्धान्त के आधार पर नहीं की जा सकती। इसके तीन मुख्य कारण निम्नलिखित है

(i) प्रकाश के तरंग सिद्धान्त के अनुसार प्रकाश की तीव्रता बढ़ाने पर तरंगों का आयाम बढ़ेगा तथा तरंगों द्वारा संचित ऊर्जा भी बढ़ेगी। अतः अधिक तीव्रता का प्रकाश आपतित होने पर धातु के इलेक्ट्रॉनों को अधिक ऊर्जा प्राप्त होगी, जिससे कि अधिक ऊर्जा के प्रकाश इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होंगे जोकि प्रेक्षित तथ्य के विपरीत है। प्रेक्षित तथ्य के अनुसार, प्रकाशिक इलेक्ट्रॉनों की गतिज ऊर्जा, आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करती है।

(ii) प्रकाश के तरंग सिद्धान्त के अनुसार, यदि प्रकाश तरंगों की तीव्रता इतनी है कि वह धातु से इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन को आवश्यक ऊर्जा प्रदान कर सके चाहे आपतित तरंगों की आवृत्ति कुछ भी हो, तब धातु पृष्ठ से इलेक्ट्रॉन अवश्य उत्सर्जित होंगे। परन्तु प्रेक्षित तथ्य यह है कि यदि प्रकाश की आवृत्ति एक न्यूनतम मान से कम है, तब प्रकाश की तीव्रता कितनी भी हो धातु तल से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं हो सकते।

(iii) प्रकाश तरंगों द्वारा संचरित ऊर्जा धातु के किसी एक इलेक्ट्रॉन को न मिलकर, प्रकाशिक क्षेत्र के सभी इलेक्ट्रॉन को मिलती है। अतः इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन के लिए आवश्यक ऊर्जा संचित करने में कुछ समय लग जाएगा परन्तु प्रेक्षित तथ्य यह है कि धातु पर प्रकाश डालते ही उससे तुरन्त इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन में समय पश्चात् नहीं होती है।

25.प्रकाश-वैद्युत प्रभाव में देहली तरंगदैर्ध्य से आप क्या समझते हैं? 0.12 किग्रा द्रव्यमान की गेंद 20 मी/से, की चाल से गतिमान है। इसकी डी - ब्रॉग्ली तरंगदैर्घ्य ज्ञात कीजिए।

उत्तर: देहली तरंगदैर्ध्य:-

किसी धातु पर आपतित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य का वह अधिकतम मान जिससे तरंगदैर्ध्य का प्रकाश धातु-पृष्ठ से प्रकाश इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित कर सके, देहली तरंगदैर्ध्य कहलाता है। इसको λ0 से प्रदर्शित करते हैं। यह देहली आवृत्ति के संगत तरंगदैर्घ्य होती है, 

अर्थात्  

                                              0= c/v0, 

जहाँ                                      c = प्रकाश की चाल (निर्वात् में)।

                                  = hp 

                       λ = hmv

                               λ = 6.6210-340.1220

                             λ  = 2.75 x 10-34 m/s