बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी - पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
1.अर्धचालक क्या है? ये कितने प्रकार के है ?
उत्तर :- अर्धचालक :-
वह पदार्थ जिनके विद्युतीय गुण, चालकों तथा अचालकों के बीच होते हैं तो उन पदार्थों को अर्धचालक कहते हैं। जर्मेनियम तथा सिलिकॉन अर्धचालक के मुख्य उदाहरण हैं।। अर्धचालक पदार्थों में विद्युत धारा का संचालन कुछ विशेष परिस्थितियों में ही होता है।
अर्धचालक दो प्रकार के होते हैं।
1. निज अर्धचालक
2. अपद्रव्यी अर्धचालक
निज अर्धचालक :-
वह शुद्ध अर्धचालक जिसमें कोई अपद्रव्य न मिला हो तब इस प्रकार के अर्धचालकों को निज अथवा शुद्ध अर्धचालक कहते हैं। अपनी प्राकृतिक अवस्था में शुद्ध जर्मेनियम तथा सिलिकॉन निज अर्धचालक होते हैं।
अपद्रव्यी अर्धचालक :-
शुद्ध अर्धचालकों की चालकता अति अल्प होती है। यदि किसी ऐसे पदार्थ की मात्रा जिनकी संयोजकता 5 अथवा 3 हो, शुद्ध अर्धचालकों में अपद्रव्य के रूप में मिला दी जाती है तब इससे अर्धचालकों की चालकता काफी वृद्धि हो जाती है। इस प्रकार के पदार्थों को अपद्रव्यी अर्धचालक अथवा अशुद्ध अर्धचालक कहते हैं।
अपद्रव्य को मिश्रित करने की क्रिया को अपमिश्रण (डोपिंग) कहते हैं।
अपद्रव्यी अर्धचालक दो प्रकार के होते हैं।
1. n-टाइप अर्धचालक
2. p-टाइप अर्धचालक
2. n और p टाइप अर्धचालक क्या होता है समझाइए |
उत्तर :- बाह्य अथवा अपद्रव्यी अर्धचालक दो प्रकार के होते हैं।
1. n टाइप अर्धचालक
2. p टाइप अर्धचालक
n टाइप अर्धचालक:-
जब किसी शुद्ध अर्धचालक में 5 संयोजकता वाला अपद्रव्य परमाणु को मिश्रित किया जाता है तब इस प्रकार के मिश्रित अर्धचालक को n टाइप अर्धचालक कहते हैं।
n टाइप अर्धचालक में बहुसंख्यक आवेश वाहक मुक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं। तथा अल्प संख्यक आवेश वाहक कोटर (होल) होते हैं।
प्रस्तुत चित्र के अंतर्गत सिलिकॉन Si में 5 संयोजकता वाला अपद्रव्य पदार्थ फास्फोरस P को मिलाया गया है।
p टाइप अर्धचालक:-
जब किसी शुद्ध अर्धचालक में 3 संयोजकता वाला अपद्रव्य परमाणु को मिश्रित किया जाता है तब इस प्रकार के मिश्रित अर्धचालक को p टाइप अर्धचालक कहते हैं।
p टाइप अर्धचालक में अल्प संख्यक आवेश वाहक मुक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं। तथा बहुसंख्यक आवेश वाहक मुक्त कोटर होते हैं।
प्रस्तुत चित्र के अंतर्गत जर्मेनियम Si में 5 संयोजकता वाला अपद्रव्य पदार्थ बोरॉन B को मिलाया गया है।
3. pn संधि डायोड क्या है ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:- pn संधि डायोड:-
जब एक p टाइप अर्धचालक क्रिस्टल को किसी विशेष विधि द्वारा n टाइप क्रिस्टल के साथ जोड़ दिया जाता है। तब इस प्रकार के संयोजन को pn संधि डायोड कहते हैं।
किसी pn संधि के निर्माण के समय दो महत्वपूर्ण प्रक्रियाएं होती हैं। विसरण और अपवाह।
p टाइप क्षेत्र में बहुसंख्यक आवेश वाहक कोटर (होल) होते हैं। जबकि n टाइप क्षेत्र में बहुसंख्यक आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन होते हैं। तथा प्रत्येक आवेश वाहक अपने-अपने पूर्णांकों से मिलकर उदासीन हो जाते हैं। इस प्रकार दोनों क्षेत्र विद्युत उदासीन होते हैं।
किसी n टाइप के अर्धचालक में इलेक्ट्रॉनों की सांद्रता कोटर की सांद्रता की तुलना में अधिक होती है। इसी प्रकार p टाइप के अर्धचालक में कोटर की सांद्रता इलेक्ट्रॉनों की सांद्रता की तुलना में अधिक होती है। अतः pn संधि डायोड के निर्माण के समय, p एवं n क्षेत्रों के सिरों पर सांद्रता प्रवणता के कारण विसरण प्रारम्भ हो जाता है। कोटर p-क्षेत्र से n-क्षेत्र की ओर विसरित होते हैं। एवं इलेक्ट्रॉन n-क्षेत्र से p-क्षेत्र की ओर विसरित होते हैं। आवेश वाहकों की इस गति के कारण संधि से एक विसरण धारा प्रवाहित होती है।
pn संधि डायोड में अवक्षय परत:-
pn संधि के दोनों ओर की वह परत जिसमें चलनशीन आवेश वाहक नहीं रहते हैं। तब उस परत को अवक्षय परत कहते हैं। अवक्षय परत pn संधि पर बनी दाता व ग्राही आयनों की परत होती है। अवक्षय परत की मोटाई लगभग 10-6 मीटर होती है।
विभव प्राचीर :-
pn संधि के दोनों ओर बनी अवक्षय परत के सिरों के बीच उत्पन्न विभवांतर को विभव प्राचीर कहते हैं। इसे रोधिका विभव भी कहते हैं। एवं विभव प्राचीर का मान संधि के ताप तथा अर्धचालकों में मिश्रित अपद्रव्य की सांद्रता पर निर्भर करता है।
4. pn संधि डायोड में अग्र अभिनति तथा पश्च अभिनति को बताइए।
उत्तर:- pn संधि डायोड को किसी बाह्य ऊर्जा स्रोत से दो प्रकार से जोड़ा जा सकता है।
1. अग्र अभिनति
2. पश्च अभिनति
अग्र अभिनति:-
जब pn संधि डायोड के p-टाइप क्रिस्टल को किसी बाह्य बैटरी के धन सिरे से तथा n-टाइप क्रिस्टल को बैटरी के ऋण सिरे से जोड़ दिया जाता है। तो यह संधि अग्र अभिनति कहते हैं। कहीं कहीं इसे अग्र दिशिक भी कहा जाता है।
PN संधि डायोड को अग्र अभिनत करने पर में अवक्षय परत की चौड़ाई कम हो जाती है फलस्वरुप विभव प्राचीर भी कम हो जाता है।
पश्च अभिनति:-
जब pn संधि डायोड के p-टाइप क्रिस्टल को किसी बाह्य बैटरी के ऋण सिरे से तथा n-टाइप क्रिस्टल को बैटरी के धन सिरे से जोड़ दिया जाता है। तो यह संधि पश्च अभिनति कहते हैं। कहीं कहीं इसे उत्क्रम दिशिक भी कहा जाता है।
PN संधि डायोड का पश्च अभिनति में धारा का प्रतिरोध अधिकतम होता है।
5. pn संधि डायोड अर्ध तरंग दिष्टकारी के रूप का वर्णन कीजिए।
उत्तर:- pn संधि डायोड अर्ध तरंग दिष्टकारी के रूप :-
जब pn संधि डायोड अग्र दिशिक स्थिति में होता है तो विद्युत धारा प्रवाह के लिए इसका प्रतिरोध निम्न होता है। एवं जब pn संधि डायोड पश्च दिशिक स्थिति में होता है तो विद्युत धारा प्रवाह के लिए इसका प्रतिरोध बहुत अधिक हो जाता है। इस गुण के आधार पर pn संधि डायोड, डायोड वाल्व की भांति दिष्टकारी के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। pn संधि डायोड का अर्ध तरंग दिष्टकारी परिपथ चित्र में प्रदर्शित किया गया है।
ट्रांसफार्मर की द्वितीयक कुंडली को टर्मिनल A और B पर वांछित प्रत्यावर्ती वोल्टता की आपूर्ति करती है। जब टर्मिनल A पर वोल्टता धनात्मक होती है तब डायोड अग्र दिशिक होता है तथा यह विद्युत धारा का चालन करता है एवं इसके विपरीत जब टर्मिनल A पर वोल्टता ऋणात्मक होती है तो डायोड पश्च दिशिक होता है और यह विद्युत धारा का चालन नहीं करता है। इसलिए प्रत्यावर्ती वोल्टता के धनात्मक अर्ध चक्र में निर्गत वोल्टता लोड प्रतिरोध RL के सिरों पर प्राप्त होता है। निवेशी व निर्गत वोल्टता तरंग रूप को चित्र में स्पष्ट किया गया है।
अर्ध तरंग दिष्टकारी कार्यविधि :-
निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज के पहले अर्ध चक्र के दौरान, जब द्वितीयक कुंडली का टर्मिनल A धनात्मक तथा टर्मिनल B ऋणात्मक होता है। तब संधि डायोड अग्र दिशिक होता है। और विद्युत धारा का प्रवाह होता है तथा लोड प्रतिरोध RL पर निर्गत वोल्टता प्राप्त होती है। एवं प्रत्यावर्ती वोल्टेज के दूसरे अर्ध चक्र के दौरान, जब द्वितीयक कुंडली का टर्मिनल A ऋणात्मक तथा टर्मिनल B धनात्मक होता है। तब संधि डायोड पश्च दिशिक होता है। और विद्युत धारा का प्रवाह नहीं होता है। तथा लोड प्रतिरोध RL पर निर्गत वोल्टता शून्य होती है।
अतः इस प्रकार निर्गत वोल्टता केवल धनात्मक अर्ध चक्र में ही प्राप्त होती है। लेकिन ऋणात्मक अर्ध चक्र में विद्युत धारा प्राप्त नहीं होती है। चूंकि प्रत्यावर्ती तरंग के केवल एक ही अर्ध चक्र में निर्गत वोल्टता प्राप्त होती है अतः इस परिपथ को अर्थ तरंग दिष्टकारी कहते हैं।
6. pn संधि डायोड पूर्ण तरंग दिष्टकारी के रूप का वर्णन कीजिए।
उत्तर:- pn संधि डायोड पूर्ण तरंग दिष्टकारी के रूप :-
पूर्ण तरंग दिष्टकारी में निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज के दोनों अर्ध चक्रों के दौरान निर्गत धारा प्राप्त होती है। इसमें दो संधि डायोड D1 व D2 के n-फलकों को एक साथ संयोजित किया जाता है। एवं निर्गत वोल्टता को दोनों संधि डायोडो के उभयनिष्ठ बिंदु तथा ट्रांसफार्मर की द्वितीयक कुंडली के मध्य बिंदु के बीच प्राप्त किया जाता है। pn संधि डायोड का पूर्ण तरंग दिष्टकारी परिपथ चित्र में प्रदर्शित किया गया है।
अब जिस प्रत्यावर्ती वोल्टता का दिष्टकरण करना होता है उसे एक उच्चायी ट्रांसफार्मर की प्राथमिक कुंडली के दोनों सिरों से जोड़ देते हैं। ट्रांसफार्मर की द्वितीयक कुंडली के A और B सिरों को दो pn संधि डायोडों D1 व D2 के P सिरों से जोड़ा गया है। तथा इन दोनों pn संधि डायोडों के n-फलकों को एक साथ संयोजित किया जाता है। एवं इन संधि डायोड के उभयनिष्ठ बिंदु तथा तथा ट्रांसफार्मर की द्वितीयक कुंडली के मध्य एक लोड प्रतिरोध RL जोड़ा दिया जाता है। एवं निर्गत वोल्टता को इसी लोड प्रतिरोध के सिरों पर प्राप्त किया जाता है। निवेशी व निर्गत वोल्टता तरंग रूप को चित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है।
पूर्ण तरंग दिष्टकारी कार्यविधि :-
निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज के पहले अर्ध चक्र में, जब द्वितीयक कुंडली का A सिरा धनात्मक तथा B सिरा ऋणात्मक होता है। तो D1 संधि डायोड अग्र दिशिक होता है और इसमें विद्युत धारा का प्रवाह होता है। एवं लोड प्रतिरोध RL पर निर्गत वोल्टता प्राप्त होती है। जबकि D2 संधि डायोड पश्च दिशिक होता है। और इसमें विद्युत धारा का प्रवाह नहीं होता है। एवं लोड प्रतिरोध RL पर निर्गत वोल्टता शून्य होती है।
इसी प्रकार निवेशी प्रत्यावर्ती वोल्टेज के दूसरे अर्ध चक्र में, जब द्वितीयक कुंडली का A सिरा ऋणात्मक तथा B सिरा धनात्मक होता है। तो D1 संधि डायोड पश्च दिशिक होता है और इसमें विद्युत धारा का प्रवाह नहीं होता है। एवं लोड प्रतिरोध RL पर निर्गत वोल्टता शून्य होती है। जबकि D2 संधि डायोड अग्र दिशिक होता है। और इसमें विद्युत धारा का प्रवाह होता है। एवं लोड प्रतिरोध RL पर निर्गत वोल्टता प्राप्त होती है।
अतः इस प्रकार निर्गत वोल्टता पहले और दूसरे (धनात्मक व ऋणात्मक) दोनों अर्ध चक्रों में प्राप्त होती है। जिस कारण इस परिपथ को पूर्ण तरंग दिष्टकारी कहते हैं। पूर्ण तरंग दिष्टकारी में निर्गत वोल्टता एकदिशिक होती है परंतु इसका मान स्थायी नहीं होता है। जिसे फिल्टर के द्वारा स्थायी वोल्टता में परिवर्तित किया जा सकता है।
7. LED(प्रकाश उत्सर्जक डायोड) क्या है? LED का सिद्धान्त, कार्यविधि तथा उपयोग बताइए।
उत्तर:- LED एक अत्यधिक अपमिश्रित pn संधि डायोड होती है। जो अग्र दिशिक में विकिरणों का उत्सर्जन करती है। इस प्रकार की युक्ति को प्रकाश उत्सर्जक डायोड अथवा LED कहते हैं।
यह डायोड पारदर्शी आवरण से बंद होता है जिससे कि उत्सर्जित विकिरण (प्रकाश) बाहर आ सके।
अगर आसान भाषा में वर्णन करें तो,
वह युक्ति, जो अभिनत बैटरी से प्राप्त विद्युत ऊर्जा को विकिरण ऊर्जा में परिवर्तित करती है। LED कहलाती है।
प्रकाश उत्सर्जक डायोड का सिद्धांत:-
जब डायोड अग्र दिशिक होता है तो इलेक्ट्रॉन n→p क्षेत्र की ओर तथा होल p→n की ओर गति करने लगते हैं। जब डायोड की अग्र दिशिक निम्न होती है तो उत्सर्जित प्रकाश की तीव्रता भी कम होती है। जैसे-जैसे अग्र दिशिक धारा में वृद्धि होती है। वैसे-वैसे ही प्रकाश की तीव्रता में भी वृद्धि होती जाती है। और यह अधिकतम हो जाती है इसके बाद अग्र दिशिक धारा में वृद्धि होने पर प्रकाश की तीव्रता घटने लगती है। एलईडी को इस प्रकार बायसित किया जाता है जिससे इनकी प्रकाश उत्सर्जन दक्षता अधिकतम हो।
प्रकाश उत्सर्जक डायोड की कार्यविधि:-
प्रकाश उत्सर्जक डायोड का परिपथ चित्र में स्पष्ट किया गया है। जहां E दिष्ट धारा स्रोत है जिसका धन सिरा p-n संधि डायोड के p-क्षेत्र से जोड़ा जाता है। एवं बैटरी का ऋण सिरा, p-n संधि डायोड के n-क्षेत्र से जोड़ा गया है। एवं परिपथ में बैटरी के धन सिरे तथा डायोड के p-क्षेत्र के बीच एक प्रतिरोध R लगाते हैं। यह प्रतिरोध एलईडी में प्रवाहित धारा, अगर सीमा से ऊपर चली जाती है तब एलईडी को प्रतिरोध क्षतिग्रस्त होने से बचाता है। उत्सर्जित विकिरण की ऊर्जा E = hv होती है।
प्रकाश उत्सर्जक डायोड के उपयोग:-
1.कंप्यूटर, केलकुलेटर तथा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों के अंक प्रदर्शन में यह प्रयोग की जाती है।
2.चोर सूचक घंटी के निर्माण में LED प्रयोग होती है।
3.प्रकाशीय कंप्यूटर मेमोरी में सूचना प्रवेश के लिए प्रकाश उत्सर्जक डायोड का उपयोग होता है।
8. फोटो डायोड की कार्यविधि तथा उपयोग बताइए।
उत्तर:- फोटो डायोड एक विशिष्ट प्रयोजन pn संधि डायोड है यह एक ऐसी युक्ति होती है जो प्रकाश संकेतों के संसूचन में प्रयुक्त की जाती है। फोटो डायोड में pn संधि डायोड उत्क्रम अभिनति (पश्च दिशिक) में कार्य करता है। फोटो डायोड किसी pn संधि पर आपतित प्रकाश के प्रभाव पर आधारित है।
चूंकि फोटो डायोड में संधि पश्च दिशिक में जुड़ी होती है। इसलिए इसमें बहने वाली धारा अल्पसंख्यक आवेश वाहकों के कारण होती है।
फोटो डायोड की रचना :-
फोटो डायोड के निर्माण हेतु एक परिपथ तैयार करते हैं। इस परिपथ में एक pn संधि डायोड जिसका n-क्षेत्र एक बाह्य बैटरी के धन टर्मिनल से तथा p-क्षेत्र बैटरी के ऋण टर्मिनल से जोड़ दिया जाता है। फोटो डायोड में pn संधि के p-क्षेत्र को बहुत पतला व पारदर्शी हो, एवं pn संधि डायोड के ऊपर कांच अथवा प्लास्टिक का आवरण मैं इस प्रकार रखा जाता है। कि संधि के ऊपरी भाग पर प्रकाश सफलतापूर्वक पहुंच जाएं।
फोटो डायोड की कार्यविधि:-
फोटो डायोड का विद्युत परिपथ चित्र द्वारा प्रदर्शित किया गया है। जब pn संधि डायोड पर बिना प्रकाश के बाह्य बैटरी से पर्याप्त वोल्टेज लगाकर उत्क्रम अभिनत किया जाता है, तो संधि के दोनों ओर के अल्पसंख्यक वाहक संधि को पार करके अवक्षय परत में पहुंच जाते हैं। जिस कारण परिपथ में अल्प धारा का प्रवाह आरंभ हो जाता है।
विद्युत क्षेत्र की दिशा इस प्रकार होती है कि इलेक्ट्रॉन n-क्षेत्र पर तथा कोटर p-क्षेत्र पर पहुंचते हैं। जिसके फलस्वरूप एक विद्युत वाहक बल उत्पन्न होता है। जब इस परिपथ के साथ कोई बाह्य लोड संयोजित किया जाता है तो विद्युत धारा प्रवाहित होने लगती है। इस प्रकाश विद्युत धारा का परिमाण आपतित प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर करता है।
फोटो डायोड के उपयोग :-
1.फोटो डायोड का उपयोग प्रकाशित संकेतों के संसूचन में होता है।
2.इसका उपयोग कंप्यूटर पंच कार्डों को भी पढ़ने में किया जाता है।
9. जेनर डायोड क्या है?जेनर डायोड का अभिलाक्षणिक वक्र खींचिए।
उत्तर:- जेनर डायोड :-
जेनर डायोड सामान्य पश्च दिशिक डायोडो से विशेष रूप से निर्मित अत्यधिक अपमिश्रित pn संधि डायोड होता है जो उत्क्रम अभिनति में भंजक वोल्टता पर बिना खराब हो निरंतर कार्य कर सकता है। इसका उपयोग वोल्टता नियंत्रित के रूप में किया जाता है। जेनर डायोड का अविष्कार वैज्ञानिक क्लारेंस जेनर ने किया था जिस कारण इनके नाम पर ही इसे जेनर डायोड कहते हैं। जेनर डायोड कोई युक्ति नहीं है। एक प्रकार की p-n संधि ही है।
जेनर डायोड का प्रतीक चिन्ह:-
जेनर डायोड का अभिलाक्षणिक वक्र:-
जेनर डायोड का धारा वोल्टता अभिलाक्षणिक वक्र चित्र में प्रस्तुत किया गया है। जब जेनर डायोड को परिपथ में अग्र अभिनति में जोड़ दिया जाता है तो जेनर डायोड एक साधारण pn संधि डायोड की भांति कार्य करता है। लेकिन जब जेनर डायोड को परिपथ में उत्क्रम अभिनति में जोड़ दिया जाता है तो इसमें भंजक वोल्टता उत्पन्न हो जाती है। जेनर डायोड से प्रवाहित होने वाली धारा में अत्यधिक परिवर्तन होने पर भी जेनर वोल्टता नियत रहती है। जेनर डायोड के इस गुण का उपयोग विद्युत आपूर्तियों की वोल्टताओं को नियंत्रित करने में किया जाता है।
10. जेनर डायोड वोल्टता नियंत्रक के रूप में उपयोग बताइए।
उत्तर:- जेनर डायोड वोल्टता नियंत्रक के रूप में:-
जेनर डायोड का उपयोग वोल्टता नियंत्रक के रूप में करने के लिए आवश्यक परिपथ नीचे चित्र में प्रदर्शित किया गया है। किसी निवेशी वोल्टता को श्रेणीक्रम में संयोजित प्रतिरोध R से होते हुए जेनर डायोड से इस प्रकार संयोजित किया जाता है जिससे कि जेनर डायोड उत्क्रम अभिनत (पश्च दिशिक) हो। यदि निवेशी वोल्टता के मान में वृद्धि होती है तो संयोजित प्रतिरोध तथा जेनर डायोड से प्रवाहित विद्युत धारा में भी वृद्धि हो जाती है। चूंकि भंजन क्षेत्र में जेनर वोल्टता VZ नियत रहती है। जबकि जेनर डायोड से प्रवाहित धारा में परिवर्तन होता है।
इसी प्रकार यदि निवेशी वोल्टता का मान घटता है तो संयोजित प्रतिरोध तथा जेनर डायोड से प्रवाहित विद्युत धारा भी घट जाती है। जेनर वोल्टता में बिना परिवर्तन हुए संयोजित प्रतिरोध के सिरों पर वोल्टता में कमी हो जाती है। अतः इस प्रकार निवेशी वोल्टता में कमी अथवा वृद्धि होने पर जेनर वोल्टता VZ में बिना कोई परिवर्तन हुए संयोजित प्रतिरोध R के सिरों पर वोल्टता में कमी अथवा वृद्धि हो जाती है। तब इस प्रकार जेनर डायोड वोल्टता नियंत्रक के रूप में कार्य करता है।
11.ट्रांजिस्टर क्या है?ट्रांजिस्टर के प्रकार बताइए।
उत्तर:- ट्रांजिस्टर:-
ट्रायोड वाल्व के स्थान पर प्रयुक्त की जाने वाली वह इलेक्ट्रॉनिक युक्ति जो n और p प्रकार के अर्धचालकों से बनी होती है ट्रांजिस्टर कहलाती है।
ट्रांजिस्टर के तीन भाग होते हैं।
1. आधार
2. संग्राहक
3. उत्सर्जक
ट्रांजिस्टर का अविष्कार सर्वप्रथम वैज्ञानिकों बार्डीन, शोकले तथा बेरिन ने किया था। इस अविष्कार के लिए इन वैज्ञानिकों को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
ट्रांजिस्टर के प्रकार :-
ट्रांजिस्टर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं।
1. pnp ट्रांजिस्टर
2. npn ट्रांजिस्टर
pnp ट्रांजिस्टर :- pnp ट्रांजिस्टर में n-प्रकार अर्धचालक की एक बहुत पतली परत, p-प्रकार अर्धचालकों के दो छोटे-छोटे क्रिस्टलों के बीच दबी होती है। बीच की पतली परत को आधार B, दाएं ओर के क्रिस्टल को संग्राहक C तथा बाएं ओर के क्रिस्टल को उत्सर्जक E कहते हैं।
npn ट्रांजिस्टर :- npn ट्रांजिस्टर में p-प्रकार अर्धचालक की एक बहुत पतली परत, n-प्रकार अर्धचालकों के दो छोटे-छोटे क्रिस्टलों के बीच दबी होती है। बीच की पतली परत को आधार B, दाएं ओर के क्रिस्टल को संग्राहक C तथा बाएं ओर के क्रिस्टल को उत्सर्जक E कहते हैं।
12. n-p-n ट्रांजिस्टर की कार्यविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:- p-n-p ट्रांजिस्टर की कार्यविधि :-
pnp ट्रांजिस्टर के दोनों p-क्षेत्रों में आवेश वाहक कोटर होते हैं। जबकि n-क्षेत्र में आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन होते हैं। pnp ट्रांजिस्टर में बायीं ओर की pn संधि को बैटरी के द्वारा अल्प अग्र अभिनत विभव देते हैं जबकि दायीं ओर की pn संधि को अधिक उत्क्रम अभिनत विभव दिया जाता है।
बायीं ओर की pn संधि के अग्र अभिनत होने के कारण उत्सर्जक (p-क्षेत्र) में उपस्थित कोटर आधार (n-क्षेत्र) की ओर गति करने लगते हैं। जबकि आधार में उपस्थित इलेक्ट्रॉन उत्सर्जक की ओर गति करने लगते हैं। चूंकि आधार बहुत पतला है इसलिए इसके भीतर जाने वाले ज्यादातर कोटर संग्राहक C तक पहुंच जाते हैं। एवं आधार में बहुत अल्प मात्रा में कोटर रहते हैं जो कि इसमें उपस्थित इलेक्ट्रॉनों से संयोग करते हैं।
आधार टर्मिनल में चलने वाली धारा को आधार धारा तथा संग्राहक टर्मिनल से बाहर की ओर जाने वाली धारा को संग्राहक धारा कहते हैं। इन्हें क्रमशः IB तथा IC द्वारा प्रदर्शित करते हैं। IB व IC धाराएं मिलकर उत्सर्जक टर्मिनल में प्रवेश करती हैं जिसे उत्सर्जक धारा IE कहते हैं। तब
IE =IB + IC
13. n-p-n ट्रांजिस्टर की कार्यविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:- n-p-n ट्रांजिस्टर की कार्यविधि :-
npn ट्रांजिस्टर के दोनों n-क्षेत्रों में आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन होते हैं। जबकि p-क्षेत्र में आवेश वाहक कोटर होते हैं। npn ट्रांजिस्टर में बायीं ओर की pn संधि को बैटरी के द्वारा अल्प अग्र अभिनत विभव दिया जाता है जबकि दायीं ओर की pn संधि को अधिक उत्क्रम अभिनत विभव दिया जाता है।
बायीं ओर की pn संधि के अग्र अभिनत होने के कारण उत्सर्जक (n-क्षेत्र) में उपस्थित इलेक्ट्रॉन आधार (p-क्षेत्र) की ओर गति करने लगते हैं। जबकि आधार में उपस्थित कोटर उत्सर्जक की ओर गति करते हैं। चूंकि आधार बहुत पतला है इसलिए इसके भीतर जाने वाले ज्यादातर इलेक्ट्रॉन संग्राहक C में प्रवेश कर जाते हैं। एवं आधार में बहुत अल्प मात्रा में इलेक्ट्रॉन रहते हैं जो कि इसमें उपस्थित कोटर से संयोग करते हैं।
आधार टर्मिनल में प्रवेश करने वाली अल्प धारा को आधार धारा तथा संग्राहक टर्मिनल में प्रवेश करने वाली बड़ी धारा को संग्राहक धारा कहते हैं। इन्हें क्रमशः IB तथा IC द्वारा प्रदर्शित करते हैं। IB व IC धाराएं मिलकर उत्सर्जक टर्मिनल में प्रवेश करती हैं जिसे उत्सर्जक धारा IE कहते हैं। तो
IE =IB + IC
14. लॉजिक गेट क्या है? लॉजिक गेट के प्रकार बताइए।
उत्तर:- लॉजिक गेट:-
वे डिजिटल परिपथ, जो निवेशी तथा निर्गत वोल्टताओं के बीच किसी निश्चित तर्क संगत संबंध का पालन करते हैं। लॉजिक गेट कहलाते हैं। लॉजिक गेट को अर्धचालक युक्तियों का प्रयोग करके बनाया जा सकता है। प्रत्येक लॉजिक गेट को किसी प्रतीक चिन्ह द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। सत्यता सारणी लॉजिक गेट के व्यवहार को समझने में सहायता करती है।
लॉजिक गेट के प्रकार :-
व्यापक रूप में प्रयोग किए जाने वाले लॉजिक गेट पांच प्रकार के होते हैं।
1. OR गेट
2. AND गेट
3. NOT गेट
4. NAND गेट
5. NOR गेट
15. OR गेट क्या है? OR गेट बुलियन व्यंजक, प्रतीक तथा सत्यता सारणी बनाइए।
उत्तर:- OR गेट:-
OR गेट एक ऐसी युक्ति होती है जिसमें दो (या अधिक) निवेश तथा एक निर्गत होता है। जिन्हें प्रतीक में क्रमशः A, B और Y द्वारा दर्शाया गया है।
OR गेट का बुलियन व्यंजक:-
A+B=Y
OR गेट का प्रतीक:-
OR गेट की सत्यता सारणी :-
A | B | Y |
0 | 0 | 0 |
0 | 1 | 1 |
1 | 0 | 1 |
1 | 1 | 1 |
16. AND गेट क्या है? AND गेट बुलियन व्यंजक, प्रतीक तथा सत्यता सारणी बनाइए।
उत्तर:- AND गेट :-
AND गेट एक ऐसी युक्ति होती है जिसमें दो (या अधिक) निवेश तथा एक निर्गत होता है। जिन्हें प्रतीक में क्रमशः A, B और Y द्वारा दर्शाया गया है।
AND गेट का बुलियन व्यंजक :-
A•B=Y
AND गेट का प्रतीक:-
AND गेट की सत्यता सारणी:-
A | B | Y |
0 | 0 | 0 |
0 | 1 | 0 |
1 | 0 | 0 |
1 | 1 | 1 |
17. NOT गेट क्या है? NOT गेट बुलियन व्यंजक, प्रतीक तथा सत्यता सारणी बनाइए।
उत्तर:- NOT गेट:-
NOT गेट एक ऐसी युक्ति होती है जिसमें केवल एक निवेश तथा एक निर्गत होता है। जिन्हें प्रतीक में क्रमशः A और Y द्वारा दर्शाया गया है।
NOT गेट का बुलियन व्यंजक:-
A = Y
NOT गेट का प्रतीक :-
NOT गेट की सत्यता सारणी:-
A | Y = A |
0 | 1 |
1 | 0 |
18. NAND गेट क्या है? NAND गेट बुलियन व्यंजक, प्रतीक तथा सत्यता सारणी बनाइए।
उत्तर:- NAND गेट:-
NAND गेट, NOT गेट और AND गेट के संयोग से बनता है। इसमें दो (या अधिक) निवेश तथा एक निर्गत होता है। यदि निवेश A तथा B दोनों ‘1’ हैं। तब निर्गत Y ‘1’ नहीं होता है।
NAND गेट का बुलियन:-
A . B = Y
NAND गेट का प्रतीक:-
NAND गेट की सत्यता सारणी :-
A | B | Y |
0 | 0 | 1 |
0 | 1 | 1 |
1 | 0 | 1 |
1 | 1 | 0 |
19. NOR गेट क्या है? NOR गेट बुलियन व्यंजक, प्रतीक तथा सत्यता सारणी बनाइए।
उत्तर:- NOR गेट :-
NOR गेट, NOT गेट और OR गेट के संयोग से बनता है। इसमें दो (या अधिक) निवेश तथा एक निर्गत होता है। यदि जब निवेश A तथा B दोनों ‘0’ होते हैं। तब निर्गत Y केवल ‘1’ होता है।
NOR गेट का बुलियन :-
A+B = Y
NOR गेट का प्रतीक:-
NOR गेट की सत्यता सारणी :-
A | B | Y |
0 | 0 | 1 |
0 | 1 | 0 |
1 | 0 | 0 |
1 | 1 | 0 |
20. ट्रांजिस्टर आधारित NOT द्वार का परिपथ चित्र बनाईये तथा इसकी सत्यता सारिणी दीजिये।
उत्तर:- NOT गेट या NOT द्वारक (NOT Gate) – NOT गेट वह लॉजिक परिपथ (या लॉजिक गेट) है जिसमें केवल एक निवेशी होता है और एक ही निर्गत होता है। NOT गेट की लॉजिक चिह्न में A निवेशी है तथा Y निर्गत है। NOT गेट में यदि निवेशी 0 अवस्था में होता है तो निर्गत अवस्था 1 में होता है और यदि निवेशी अवस्था 1 में होता है तो निर्गत अवस्था 0 में होता है। इस प्रकार NOT गेट निवेशी के सापेक्ष निर्गत के अर्थ को व्युत्क्रमित करता है, इसलिए NOT गेट को ‘व्युत्क्रम’ या ‘इनवर्टर गेट’ भी कहा जाता है।
NOT गेट की सत्यता सारणी:-
A | Y = A |
0 | 1 |
1 | 0 |
सत्यता सारणी को संक्षिप्त रूप में बूलियन व्यंजक द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है। NOT गेट के लिए बूलियन व्यंजक निम्नलिखित होता है-
जहाँ A का अर्थ है कि A व्युत्क्रमित है। यहाँ पर A = 0 या 1 तथा Y = 1 या 0 है।
NOT गेट को व्यवहार में प्राप्त करना – NOT गेट को डायोडों की सहायता से प्राप्त करना सम्भव नहीं है। इसे प्राप्त करने के लिए ट्रान्जिस्टर का उपयोग किया जाता है।
RB तथा RC के मान ऐसे चुने जाते हैं कि जब अवस्था 1 के संगत वोल्टेज (5 V) आधार पर लगाया जाता है तो संग्राहक धारा का मान अधिक होता है, Y पर वोल्टेज का मान गिर जाता है और आधार-संग्राहक सन्धि अग्र अभिनत होती है।
जब A को 0 से सम्बन्धित किया जाता है तो आधार-संग्राहक सन्धि तथा उत्सर्जक-आधार सन्धि दोनों पश्च अभिनत हो जाती हैं, अतः आधार धारा एवं संग्राहक धारा दोनों शून्य होती हैं। इस समय ट्रान्जिस्टर को संस्तब्ध विधा में कहा जाता है। तथा निर्गत Y पर वोल्टेज 5 V होता है जो कि अवस्था 1 के संगत है। इस प्रकार जब A = 0 तो Y = 1 होता है।
जब A को 1 से सम्बन्धित किया जाता है तो ट्रान्जिस्टर संतृप्ति विधा में होता है और RC के सिरों पर लगभग 5 V का वोल्टेज होता है जो 5 V की बैटरी के विपरीत होता है, अत: Y का वोल्टेज लगभग शून्य होता है जो अवस्था 0 के संगत होता है। इस प्रकार जब A = 1 तो Y = 0.
इस प्रकार NOT गेट की सत्यता सारणी सन्तुष्ट हो जाती है।
21. ऊर्जा बैण्ड के आधार पर चालक विद्युत रोधी और अर्धचालक की व्याख्या कीजिए |
उत्तर:- ऊर्जा बैण्ड संरचना के आधार पर चालक, अचालक (या विद्युतरोधी) तथा अर्द्ध-चालक की व्याख्या क्रिस्टल में ऊर्जा बैण्ड सिद्धांत के आधार पर निम्न प्रकार से की गयी है –
किसी पदार्थ की विद्युत चालकता दो बातों पर निर्भर करती है।
(1). चालक बैण्ड के आंशिक भरे अथवा पूर्णतः खाली होने पर, तथा
(2). वर्जित ऊर्जा अन्तराल पर ।
1. चालक – इन पदार्थों में संयोजकता बैण्ड का ऊपरी भाग और चालन बैण्ड का निचला भाग एक-दूसरे पर अतिव्यापित हो जाता है। अतः वर्जित ऊर्जा अन्तराल का मान EG = 0 (शून्य) होता है। ऐसे पदार्थों में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या बहुत अधिक होती है।
अर्थात् बिना अतिरिक्त ऊर्जा के इलेक्ट्रॉन आसानी से संयोजी बैण्ड से चालन बैण्ड में चले जाते हैं। इसलिए धातुओं की चालकता सर्वाधिक होती है।
उदाहरणार्थ – चाॅंदी, सोना, एलुमिनियम तथा ताॅंबा आदि पदार्थ चालक पदार्थ कहलाते हैं।
2. अचालक – इन पदार्थों में संयोजकता बैण्ड पूर्ण रूप से भरा और चालन बैण्ड पूर्ण रूप से खाली होता है। तथा इन बैण्डों के वर्जित ऊर्जा अन्तराल का मान बहुत अधिक अर्थात् EG= 7 eV या से अधिक होता है।
इसीलिए सामान्य परिस्थितियों में संयोजी बैण्ड के इलेक्ट्रॉनों को इतनी ऊर्जा नहीं मिल पाती कि वे संयोजी बैण्ड से चालन बैण्ड में पहुंच जाएं और वैद्युत का चालन सम्भव नहीं हो पाता है।
उदाहरणार्थ – डायमण्ड, लकड़ी, रवड़, काॅंच तथा मोम आदि पदार्थ अचालक (या विद्युतरोधी) पदार्थ कहलाते हैं।
3. अर्द्ध-चालक – अर्द्ध-चालक पदार्थों में संयोजकता बैण्ड पूर्ण भरा और चालन बैण्ड पूर्ण खाली होता है, परन्तु वर्जित ऊर्जा बैण्ड की चौड़ाई बहुत कम (EG ≃ 1 eV) होती है। (उदाहरण के लिए, सिलिकॉन के लिए EG = 1.12 eV तथा जर्मेनियम के लिए EG ≈ 0.72 eV )।
अर्थात् कमरे के ताप पर ही ऊष्मीय प्रक्षोभों द्वारा प्राप्त ऊर्जा से इलेक्ट्रॉन संयोजी बैण्ड से चालन बैण्ड में पहुंच जाते हैं। तथा बहुत कम विद्युत् चालन होता है।
उदाहरणार्थ – यहाॅ जर्मेनियम (Ge), सिलिकॉन (Si) आदि अर्द्ध-चालक पदार्थ हैं।
22. चालकता के आधार पर चालक, विद्युत रोधी और अर्धचालक की व्याख्या कीजिए |
उत्तर:- चालक अथवा सुचालक:-
वे पदार्थ जिनमें विद्युत धारा का प्रवाह आसानी से हो जाता है, चालक पदार्थ कहलाते है । चालको मे मुक्त इलेक्ट्राॅन की संख्या अधिक होती है ।
उदाहरण – चांदी, तांबा, एल्युमीनियम आदि ।
उपयोग – विद्युत धारा के प्रवाहन एवं विद्युत चलित उपकरणों के निर्माण में |
अच्छे सुचालक के गुण –
● चालक का प्रतिरोध बहुत कम होना चाहिए ।
● चालक सस्ता तथा सरलता से उपलब्ध होना चाहिए ।
● चालक मजबूत होना चाहिए ।
कुचालक अथवा अचालक:-
वे पदार्थ जिनमें विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होती है, अचालक पदार्थ कहलाते हैं तथा इनमें मुक्त इलेक्ट्राॅन नहीं (न के बराबर) होते है ।
उदाहरण – रबर, प्लास्टिक, कांच आदि ।
उपयोग – चालक तारों के आवरण के लिए, विद्युतरोधी वस्तुओं के निर्माण में ।
कुचालक के गुण –
● प्रतिरोध उच्च होना चाहिए ।
● सस्ता एवं सरलता से उपलब्ध होना चाहिए ।
● कुचालक पदार्थ मजबूत और जलरोधी होना चाहिए ।
अर्द्धचालक:-
वे पदार्थ जिनमें सामान्य परिस्थितियों मे विद्युत धारा प्रवाहित नहीं होती परन्तु तापमान बढ़ाने या अशुद्धि मिलाने पर इनकी चालकता बढ़ जाती है और इनमे से धारा प्रवाहित होने लगती है, ऐसे पदार्थ अर्द्धचालक कहलाते हैं ।
इनका प्रतिरोध चालक पदार्थ से अधिक लेकिन अचालक पदार्थ से कम होता है, इनमें कम मात्रा में मुक्त इलेक्ट्राॅन पाये जाते है ।
उदाहरण – सिलिकॉन तथा जर्मेनियम
उपयोग – इलेक्ट्रॉनिक युक्ति जैसे डायोड, ट्रांजिस्टर, LED आदि के निर्माण में ।
23.P-N संधि डायोड में धारा का प्रवाह अग्र अभिनति व पश्च अभिनति के रूप में समझाइए।
उत्तर- अग्र अभिनति :-
इस समय P अर्द्ध चालक में उपस्थित होल व N अर्द्ध चालक में अवक्षय पर्त उपस्थित इलेक्ट्रॉन संधि की ओर चलने लगते हैं। इस तरह संधि से होकर बहुसंख्यक आवेश वाहकों का वितरण होने लगता है एवं संधि पार करके ये आपस में संयोग कर लेते हैं तथा विलुप्त हो जाते हैं, लेकिन प्रत्येक इलेक्ट्रॉन- होल संयोग होने पर, संधि से दूर P क्षेत्र के धनात्मक सिरे के निकट एक सह आबन्ध टूट जाता है जिससे मुफ्त इलेक्ट्रॉन संयोजन तार के माध्यम से बैटरी के धनात्मक सिरे पर प्रवेश करता है। ऐसा होते ही P क्षेत्र पर एक नया होल उत्पन्न होता है जो पुनः बाह्य विद्युत क्षेत्र के कारण संधि की ओर गति करता है एवं दूसरे सिरे से इलेक्ट्रॉन गति करता है। जो इलेक्ट्रॉन होल संयोग की कमी को पूरा करता है।
पश्च अभिनति - इस समय होल (P अर्द्धचालक) संधि से दूर व इलेक्ट्रॉन (N अर्द्धचालक) भी संधि से दूर जाने लगते हैं इस समय बहुसंख्यक-आवेशों का वितरण नहीं होता है परन्तु अल्पसंख्यक आवेशों का वितरण होता है एवं बहुत अल्प धारा बहती है।
24. अर्धचालक क्या है? प्रकार, उदाहरण, गुण व उपयोग समझाइए।
उत्तर- अर्धचालक :-
अर्धचालक पदार्थ वह होता है जिसके विद्युतीय गुण सुचालकों तथा कुचालक के मध्य होते हैं। जर्मेनियम तथा सिलिकॉन इन पदार्थ के सबसे चर्चित उदाहरण हैं।
ऊर्जा बैंड धारणा के अनुसार कमरे के ताप पर अर्धचालक पदार्थ वे हैं जिनके: चालन व संयोजी बैंड आंशिक रूप से भरे हुए हो। जिनके मध्य का निषिद्ध ऊर्जा बैंड काफी संकरा लगभग एक इलेक्ट्रॉन वोल्ट की कोटि का हो, जैसे- जर्मेनियम के लिए यह 0.75 इलेक्ट्रॉन वोल्ट तथा सिलिकॉन के लिए लगभग 1.12 इलेक्ट्रॉन वोल्ट की कोटि का होता है।
अर्धचालकों के विशेष गुण :-
ताप बढ़ाने पर अर्धचालकों की विद्युत चालकता बढ़ती है, इस कारण ही अर्धचालकों का प्रतिरोध ताप गुणांक ऋणात्मक होता है। अर्धचालकों में बहुत से अन्य उपयोगी गुण भी देखने को मिलते हैं, जैसे किसी एक दिशा में दूसरे दिशा की अपेक्षा आसानी से धारा का प्रवाह होना अर्थात् भिन्न-भिन्न दिशाओं में विद्युतचालकता का भिन्न-भिन्न होना।
इसके अलावा नियंत्रित मात्रा में अशुद्धियाँ डालकर अर्धचालकों की चालकता को कम या अधिक किया जा सकता है। इन अशुद्धियों को मिलाने की प्रक्रिया को ‘डोपन’ कहते हैं। डोपिंग करके ही इलेक्ट्रानिक युक्तियों (डायोड, ट्रांजिस्टर आदि) का निर्माण किया जाता है। इनकी चालकता को बाहर से लगाए गए विद्युत क्षेत्र या प्रकाश के द्वारा भी परिवर्तित किया जा सकता है।
अर्धचालक के प्रकार :-
अर्धचालक दो प्रकार के होते हैं-
1. निज अर्धचालक :-
अर्धचालक जिसमें कोई भी अशुद्धियां या अपद्रव्य ना मिला हो उसे निज अर्धचालक कहते हैं। इस प्रकार शुद्ध जर्मेनियम तथा सिलिकॉन अपनी प्राकृतिक अवस्था में निज अर्धचालक हैं।
2. बाह्य अर्धचालक:-
निज अर्धचालकों की वैद्युत चालकता बहुत कम होती है। परंतु यदि किसी ऐसे पदार्थ को बहुत थोड़ी सी मात्रा, जिसकी संयोजकता 5 अथवा 3 हो, शुद्ध जर्मेनियम अथवा सिलिकॉन क्रिस्टल में अशुद्धि के रूप में मिश्रित करते है तो क्रिस्टल की चालकता काफी बढ़ जाती है।
मिश्रित करने की प्रक्रिया को डोपिंग कहते हैं। ऐसे अशुद्ध अर्धचालक को बाह्य अर्धचालक कहते हैं।
अर्धचालक के उदाहरण, युक्ति:-
1. p-n संधि डायोड :-
p-n संधि डायोड एक मूल अर्धचालक युक्ति है। यह एक अर्धचालक क्रिस्टल होता है जिसके एक क्षेत्र में ग्राही अपद्रव्य की अधिकता तथा दूसरे क्षेत्र में दाता अपद्रव्यों की अधिकता होती है। इन क्षेत्रों को क्रमशः p-क्षेत्र तथा n-क्षेत्र कहते हैं तथा इन क्षेत्रों के बीच परिसीमा को p-n संधि कहते हैं।
2. प्रकाश उत्सर्जक डायोड :-
एक ऐसी युक्ति है जो बायसिंग बैटरी की विद्युतीय ऊर्जा का विकिरण ऊर्जा में परिवर्तन करती है। यह एक p-n संधि है जो सामान्य p-n संधियों से अधिक अपमिश्रित होती है।
इसका उपयोग चोर सूचक घंटी बनाने , प्रकाशीय कंप्यूटर मेमोरी में सूचना प्रवेश के लिए, कंप्यूटर तथा केलकुलेटर के अंक व शब्द प्रदर्शन में,तथा टेलीविजन के रिमोट कंट्रोल में भी किया जाता है।
3. फोटो डायोड :-
यह एक ऐसी युक्ति है जो प्रकाशीय संकेतों के संसूचन में प्रयोग की जाती है। फोटो डायोड एक प्रकाश संवेदनशील अर्धचालक से बनी ऐसी p-n संधि है जो कि संधि पर आपतित प्रकाश के प्रभाव पर आधारित हैं।
इस डायोड का उपयोग प्रकाश संचालित कुंजियों कम्प्यूटर पंचकार्डों आदि को पढ़ने में किया जाता है।
4. ट्रांजिस्टर :-
यह p व n प्रकार के अर्धचालकों से बनी एक ऐसी इलेक्ट्रॉनिक की की युक्ति है जो ट्रायोड वाल्व के स्थान पर प्रयोग की जाती है। ट्रान्जिस्टर का उपयोग अनेक प्रकार से होता है।
इसे प्रवर्धक, स्विच, वोल्टेज नियामक (रेगुलेटर), संकेत न्यूनाधिक (सिग्नल माडुलेटर), आसिलेटर आदि के रूप में काम में लाया जाता है।
25. ट्रांजिस्टर कैसे बनता है ? n-p-n और p-n-p ट्रांजिस्टर में क्या अंतर है?
उत्तर- ट्रांजिस्टर अर्धचालक पदार्थ से मिलकर बनता है. इसे बनाने के लिए ज्यादातर सिलिकॉन और जर्मेनियम का प्रयोग किया जाता है. इसमें तीन सिरे या टर्मिनल होते हैं जिनका इस्तेमाल दूसरे सर्किट से जोड़ने में किया जाता है. ये तीन टर्मिनल हैं : बेस, कलेक्टर और एमीटर. ट्रांजिस्टर के कई प्रकार होते है और सबका काम अलग अलग होता है. ट्रांसिस्टर टर्मिनल की किसी एक जोड़ी में करंट या वोल्टेज डालने पर, अन्य ट्रांसिस्टर की जोड़ी में करंट बदल जाता है. बहुत सारे उपकरण में ट्रांजिस्टर का इस्तेमाल किया जाता है जैसे एम्पलीफायर, स्विच सर्किट, ओसीलेटर्स आदि.
n-p-n और p-n-p ट्रांजिस्टर में अंतर :-
1. p-n-p ट्रांजिस्टर के पास p-टाइप कलेक्टर और एमिटर n-टाइप बेस के साथ हैं, जबकि n-p-n ट्रांजिस्टर के पास n-टाइप कलेक्टर हैं और p-टाइप आधार वाले एमिटर हैं।
2. p-n-p के अधिकांश प्रभार वाहक छेद हैं, जबकि n-p-n में, यह इलेक्ट्रॉन है।
3. n-p-n के पास एक तेज आवृत्ति प्रतिक्रिया समय और घटक के माध्यम से एक अधिक वर्तमान प्रवाह है, जबकि p-n-p में सीमित आवधिक प्रतिक्रिया के साथ कम आवृत्ति प्रतिक्रिया है।
4. n-p-n ट्रांजिस्टर में कलेक्टर से एमिटर के बीच करंट का प्रवाह तब होता है जब हम बेस पर पॉज़िटिव सप्लाई देते है। जबकि p-n-p ट्रांजिस्टर में एमिटर से कलेक्टर के बीच करंट का प्रवाह तब होता है जब हम बेस पर नेगेटिव सप्लाई देते है।