बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 13 नाभिक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
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बिहार बोर्ड कक्षा 12 भौतिक विज्ञान अध्याय 13 नाभिक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

BSEB > Class 12 > Important Questions > भौतिक विज्ञान अध्याय 13 नाभिक - दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 

1. नाभिक क्या है ? नाभिक का वर्गीकरण कीजिये | 

उत्तर:- नाभिक :- रदरफोर्ड ने ɑ-कण पर प्रकीर्णन के प्रयोगों के अध्ययन द्वारा यह ज्ञात किया कि परमाणु का समस्त धन आवेश 10-15 मीटर की कोटि के एक सूक्ष्म स्थान पर संकेन्द्रित रहता है। जिसे परमाणु का नाभिक कहते हैं।

नाभिक में न्यूट्रॉन तथा प्रोटोन उपस्थित रहते हैं। एवं इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारो और निश्चित कक्षाओं में घूमते रहते हैं।

नाभिक का वर्गीकरण

प्रोटोनों की संख्या के आधार पर नाभिक को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है।

1. समस्थानिक (समप्रोटोनिक)

2. समभारिक

3. समन्यूट्रॉनिक

1. समस्थानिक :-

वे तत्व जिनके परमाणु क्रमांक तो समान होते हैं परन्तु उनकी द्रव्यमान संख्याएं भिन्न-भिन्न होती हैं। समस्थानिक कहलाते हैं।

चूंकि इन तत्वों प्रोटोनों की संख्याएं समान रहती हैं जिस कारण इन्हें समप्रोटोनिक भी कहते हैं।

जैसे – हाइड्रोजन के तीन समस्थानिक है।

प्रोटियम 1H1

ड्यूटीरियम 1H2

ट्राइटीयम 1H3

2. समभारिक :-

वे तत्व जिनकी द्रव्यमान संख्याएं तो समान होती हैं परंतु उनके परमाणु क्रमांक भिन्न-भिन्न होते हैं। समभारिक कहलाते हैं।

जैसे – 18Ar40 व 20Ca40

चूंकि इन तत्वों की द्रव्यमान संख्याएं तो सामान 40 है। परंतु इनकी इन तत्वों के परमाणु क्रमांक भिन्न-भिन्न 18 और 20 हैं। अतः यह तत्व समभारिक हैं।

3. समन्यूट्रॉनिक :-

वे तत्व जिनके परमाणु क्रमांक तथा द्रव्यमान संख्या दोनों ही भिन्न-भिन्न होती हैं। परंतु इन तत्वों में न्यूट्रॉनों की संख्याएं समान होती है। समन्यूट्रॉनिक कहलाते हैं।

जैसे – 1H3 व 2He4

चूंकि इन तत्वों में परमाणु क्रमांक भिन्न-भिन्न है और द्रव्यमान संख्याएं भी भिन्न-भिन्न हैं। परंतु अगर इन दोनों तत्वों में न्यूट्रॉन की संख्या ज्ञात करें तो वह समान प्राप्त होती हैं।

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2. नाभिक की संरचना, आकार क्या है ?

नाभिक की संरचना :-

रदरफोर्ड में ɑ-कण प्रकीर्णन के प्रयोग के अध्ययन द्वारा यह पता लगाया कि किसी परमाणु का समस्त धन आवेश परमाणु के केंद्र में एक अत्यंत सूक्ष्म स्थान में संकेंद्रित रहता है। इस स्थान को परमाणु का नाभिक कहते हैं। नाभिक के चारों ओर अनेक निश्चित कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन घूमते रहते हैं। इलेक्ट्रॉन पर आवेश होता है। इन इलेक्ट्रॉनों का कुल ऋण आवेश नाभिक में उपस्थित कुल धन आवेश के बराबर होता है।

रदरफोर्ड द्वारा प्रोटॉन की खोज के पश्चात बताया गया कि नाभिक में प्रोटोन ही उपस्थित होते हैं जिन पर धन आवेश होता है। किसी परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या, परमाणु के परमाणु क्रमांक के बराबर होती है।

इसके पश्चात न्यूट्रॉन की खोज हुई और यह माना गया कि परमाणु के नाभिक में न्यूट्रॉन और प्रोटॉन उपस्थित होते हैं। प्रोटोन पर धन आवेश होता है जबकि न्यूट्रॉन आवेशहीन होते हैं अर्थात न्यूट्रॉन पर आवेश नहीं होता है।

नाभिक का आकार :-

नाभिक का आकार 10-15 मीटर की कोटि का होता है।

प्रयोग द्वारा यह ज्ञात किया गया, कि नाभिक का आयतन, उसमें उपस्थित न्यूक्लिऑनों की संख्या के अनुक्रमानुपाती होता है।

माना नाभिक की त्रिज्या R तथा न्यूक्लिऑनों की संख्या A है तो

                                                                              43πR3 ∝ A

चूंकि परमाणु का आकार गोलाकार होता है तो यहां पर गोले के आयतन का सूत्र प्रयोग किया गया है।

या                                                           R3 ∝ A

                                            R ∝ A13

तो                                                 R = R0A13

जहां R0 एक नियतांक है। इसका मान लगभग 1.2 × 10-15  मीटर होता है।


3.नाभिक की आकृति तथा घनत्व को समझाइए | 

उत्तर:- नाभिक की आकृति :- 

नाभिक की आकृति प्रायः गोलाकार मानी जाती है। लेकिन यह इसकी आकृति गोलाकार से कुछ विचलित होता है। इसका विचलित लगभग 10% होता है।

नाभिकीय घनत्व

माना किसी एक न्यूक्लिऑन का द्रव्यमान m तथा न्यूक्लिऑन की संख्या A है तथा नाभिक की त्रिज्या R तो

नाभिक का कुल द्रव्यमान                     M = m × A  ………………. समी.(1)

तथा नाभिक का आयतन                         V = 43πR3

नाभिक के आकार के सूत्र से त्रिज्या R का मान रखने पर

या                                        V = 43π( R0A13 )3

                                             V = 43πR03A      ………………..समी.(2)

माना नाभिक का घनत्व ρ है तो

                                                 ρ =MV 

समी.(1) व समी.(2) मान रखने पर नाभिक का घनत्व

                                                ρ = m × A 43πR03A

                                                ρ = 3m 4πR03

चूंकि नाभिक का घनत्व न्यूक्लिऑनों की संख्या A पर निर्भर नहीं करता है। अतः जिस कारण लगभग सभी परमाणु के नाभिकों के घनत्व समान होते हैं।

4.नाभिकीय बल क्या है ? नाभिकीय बल के गुण, प्रकार का वर्णन कीजिये | 


उत्तर:-

नाभिकीय बल :-

नाभिक के भीतर उपस्थित वह प्रबल आकर्षण बल जो न्यूक्लिऑनों (न्यूट्रॉनों और प्रोटॉनों) को परस्पर बांधे रखता है। उसे नाभिकीय बल कहते हैं।

नाभिकीय बल न ही तो विद्युत बल होते हैं और न ही गुरुत्वीय बल होते हैं। तथा यह बल आवेश पर भी निर्भर नहीं करते हैं। नाभिकीय बल लघु परास वाला प्रबल आकर्षण है।

नाभिकीय बल के गुण :-

नाभिकीय बल आवेशों के बीच कार्यरत् कूलाम बल एवं द्रव्यमान के बीच से कार्यरत् गुरुत्वाकर्षण बल की तुलना में अत्यधिक शक्तिशाली होता है।

नाभिकीय बल विद्युत आवेशों पर निर्भर नहीं करते हैं।

न्यूट्रॉन-न्यूट्रॉन, प्रोटोन-प्रोटोन तथा न्यूट्रॉन-प्रोटोन के बीच लगने वाले नाभिकीय बल लगभग समान परिमाण के होते हैं।

नाभिकीय बल आकर्षण बल होता है।

नाभिकीय बल लघु परासी वाले बल होते हैं।

नाभिकीय बल ज्ञात सभी बलों की तुलना में अत्यधिक प्रबल बल होता है। चूंकि इनके परमाणुओं में लघु परास होती है।

नाभिकीय बल के प्रकार :-

नाभिकीय बल दो प्रकार के होते हैं।

1. प्रबल नाभिकीय बल

2. दुर्बल नाभिकीय बल

1. प्रबल नाभिकीय बल :-

नाभिक के भीतर उपस्थित प्रोटोनों एवं न्यूट्रॉनों को एक साथ परस्पर बांधे रखने वाले बल को प्रबल नाभिकीय बल कहते हैं। अधिकतम नाभिकीय बल, प्रबल नाभिकीय बल ही होते हैं।

प्रबल नाभिकीय बल आवेश पर निर्भर नहीं करता है। प्रबल नाभिकीय बल विद्युत चुंबकीय बल की अपेक्षा लगभग 100 गुना अधिक प्रबल होता है।

2. दुर्बल नाभिकीय बल :-

दुर्बल नाभिकीय बल गुरुत्वाकर्षण बल की तुलना में अधिक प्रबल होता है। लेकिन विद्युत चुंबकीय तथा नाभिकीय बल की अपेक्षा यह कमजोर होता है। दुर्बल नाभिकीय बल भी लघु परास वाला बल होता है।

रेडियोएक्टिव नाभिक से β-क्षय जैसी नाभिकीय घटनाओं में कार्यरत बल दुर्बल नाभिकीय बल होता है।


5. नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिये | 

उत्तर:-

नाभिकीय विखंडन :-

जब किसी भारी नाभिक पर न्यूट्रॉनों की बमबारी की जाती है। तो वह नाभिक लगभग दो हल्के तथा समान नाभिकों में विखंडित हो जाता है। एवं इस प्रक्रिया में बहुत अधिक ऊर्जा मुक्त होती है। अतः इस प्रकार भारी नाभिकों का हल्के-हल्के नाभिकों में विखंडित होने की प्रक्रिया को नाभिकीय विखंडन कहते हैं।

 

92U235 + 0n1 → 92U236 → 56Ba144+36Kr89 → 30n1 + ऊर्जा

 

नाभिकीय विखंडन वह प्रक्रिया है जिसमें एक भारी नाभिक एक न्यूट्रॉन का प्रग्रहण करके तुलनीय द्रव्यमानों के दो हल्के नाभिकों में विखंडन हो जाता है। तथा बहुत अधिक ऊर्जा का उत्सर्जन होता है।

नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया

वैज्ञानिक बोर एवं व्हीलर ने नाभिकीय विखंडन के सिद्धांत का विकास नाभिकीय बलों की उन बलों के साथ अनुरूपता के प्रयोग द्वारा किया। जो अणुओं को किसी द्रव में परिसर बांधते हैं। इन्होंने अनुमान लगाया कि 92U238 की तुलना में 92U235 अधिक विखंडनीय होता है। उत्सर्जित न्यूट्रॉन की ऊर्जा कुछ जा MeV कोटि की होती है।

 

यूरेनियम 92U235तत्व का परमाणु क्रमांक 92 तथा द्रव्यमान-संख्या 235 है। यूरेनियम तत्व के दो समस्थानिक होते हैं। 92U238 एवं 92U235

 

92U235   + 0n1      → 92U236     → 56Ba144+36Kr89 → 30n1 + ऊर्जा

( यूरेनियम)   (न्यूट्रान)         (आइसोटॉप)          (बेरियम)     (क्रिप्टन)    (3-न्यूट्रान)

 

 

जब तापीय न्यूट्रॉन 92U235नाभिक से टकराता है। तो यूरेनियम न्यूट्रॉन को अवशोषित कर लेता है। तथा एक आइसोटोप 92U236 बन जाता है। परंतु यह अत्यंत अस्थायी होने के कारण तुरंत ही दो भागों में विखंडित हो जाता है। एवं न्यूट्रॉन व ऊर्जा का उत्सर्जन करता है।

               नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया

 

Note – यूरेनियम के समस्थानिक 92U238 केवल 1 MeV से अधिक उर्जा वाले तीव्रगामी न्यूट्रॉन से विखंडित हो सकता है। लेकिन समस्थानिक 92U235 काफी मंद न्यूट्रॉनों जैसे तापीय न्यूट्रॉन 0.03 MeV से भी विखंडित हो सकता है।




6.नाभिकीय संलयन किसे कहते हैं ?


उत्तर:-

नाभिकीय संलयन :-

वह प्रक्रिया है जिसमें दो हल्के नाभिक परस्पर संयुक्त अर्थात् संलयित होकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते हैं। तो इस प्रकार की प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं।

इस प्रक्रिया से प्राप्त भारी नाभिकों का द्रव्यमान, संलयन करने वाले दोनों हल्के नाभिकों के द्रव्यमान के योग से कम होता है। नाभिकीय संलयन में द्रव्यमान की यह क्षति (हानि) ऊर्जा के रूप में प्राप्त हो जाती है।

नाभिकीय संलयन का उदाहरण :-

जब दो भारी हाइड्रोजन का नाभिक (ड्यूट्रॉन 1H2) संलयित होते हैं। तो एक ट्राॅइटियम का नाभिक (ट्राइटॉन) तथा एक प्रोटोन (1H1 ) प्राप्त होता है। तथा इस प्रक्रिया में 4.0 MeV ऊर्जा निकलती है।

1H2 + 1H2 ⟶ 1H3 +1H1+ 4.0 MeV ऊर्जा

अब ट्राॅइटियम का नाभिक एक तीसरे ड्यूट्रॉन के साथ संलयित होकर एक हीलियम नाभिक (2He4 ) का निर्माण करती हैं। तथा इस प्रक्रिया में 17.6 MeV ऊर्जा मुक्त होती है।

1H3 + 1H2⟶ 2He4 + 0n1 + 17.6 MeV ऊर्जा

अतः इस प्रकार उपरोक्त दोनों अभिक्रियाओं में तीन ड्यूट्रॉन संलयित होकर एक हीलियम नाभिक, एक प्रोटोन तथा एक न्यूट्रॉन का निर्माण करते हैं। तथा इसमें 21.6 MeV ऊर्जा मुक्त होती है। जो प्रोटॉन (sub>1H1 ) तथा न्यूट्रॉन (sub>0n1 ) की गतिज ऊर्जा के रूप में होती है।

हाइड्रोजन बम नाभिकीय संलयन प्रक्रिया पर कार्य करता है। अर्थात् हाइड्रोजन बम नाभिकीय संलयन का एक उदाहरण है।

नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया :-

नाभिकीय संलयन प्रक्रिया व्यवहार में नाभिकीय विखंडन के मुकाबले एक अत्यंत कठिन प्रक्रिया है।

इसका कारण दोनों ड्यूट्रॉनों का धनावेशित होना है। जिसके फलस्वरूप दोनों ड्यूट्रॉन एक दूसरे के निकट मिलने की जगह प्रतिकर्षित हो जाते हैं। यह प्रतिकर्षण बल इतना प्रबल होता है कि अभिक्रिया का होना असंभव सा लगता है। जिस कारण अभिक्रिया में ड्यूट्रॉनों को लगभग 10 मिलियन कैल्विन ताप पर तापित किया जाता है।

 

7.नाभिकीय विखंडन और नाभिकीय संलयन में अंतर लिखिए | 

उत्तर:-

वह प्रक्रिया जिसमें एक भारी नाभिक पर न्यूट्रॉन की बमबारी करने से दो हल्के नाभिकों में विखंडित होने की प्रक्रिया को नाभिकीय विखंडन कहते हैं।

तथा विपरीत जिसमें दो हल्के नाभिक संलयित होकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते हैं। इस प्रकार की प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं।

 

नाभिकीय विखंडन और नाभिकीय संलयन में अंतर :-

एक भारी नाभिक पर न्यूट्रॉन की बमबारी करने से दो हल्के नाभिकों में विखंडित होने की प्रक्रिया को नाभिकीय विखंडन कहते हैं। जबकि दो हल्के नाभिक संलयित होकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते हैं। इस प्रकार की प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं।

नाभिकीय विखंडन ताप की साधारण मात्रा पर भी कराई जा सकती है। जबकि नाभिकीय संलयन केवल उच्च ताप पर ही कराई जा सकती है।

नाभिकीय विखंडन में 200 MeV लगभग ऊर्जा मुक्त होती है। जबकि नाभिकीय संलयन में 24 MeV ऊर्जा मुक्त होती है।

नाभिकीय विखंडन प्रकिया केवल भारी तत्वों के नाभिकों में ही कराई जा सकती है। जबकि नाभिकीय संलयन प्रक्रिया केवल हल्के तत्वों के नाभिकों में ही कराई जा सकती है।

नाभिकीय विखंडन को सरलता से नियंत्रित किया जा सकता है। जबकि नाभिकीय संलयन को सरलता से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।

नाभिकीय विखंडन में ऊर्जा परिवर्तन की प्रतिशत क्षमता कम होती है। जबकि नाभिकीय संलयन में ऊर्जा परिवर्तन की प्रतिशत क्षमता अधिक होती है।

नाभिकीय विखंडन में द्रव्यमान की क्षति होती है। तथा नाभिकीय संलयन में भी द्रव्यमान की क्षति हो जाती है। जो ऊर्जा के रूप में मुक्त होती है।

परमाणु बम नाभिकीय विखंडन का एक उदाहरण है जबकि हाइड्रोजन बम नाभिकीय संलयन का एक उदाहरण है।

 



8.नाभिकीय रिएक्टर क्या है, नाभिकीय रिएक्टर के उपयोग लिखिए |


उत्तर:-

नाभिकीय रिएक्टर का निर्माण सर्वप्रथम एनरिको फर्मी ने किया था। नाभिकीय रिएक्टर द्वारा बिजली का उत्पादन होता है। कुछ देश तो लगभग 70% बिजली का उत्पादन न्यूक्लियर रिएक्टर द्वारा करते हैं वहीं भारत में नाभिकीय शक्ति का प्रयोग मात्र 3% ही है। किंतु प्रयास है कि इसे और बढ़ाया जा सके।

नाभिकीय रिएक्टर :-

नाभिकीय रिएक्टर की खोज वैज्ञानिक एनरिको फर्मी ने की थी।

इनके अनुसार, नाभिकीय रिएक्टर एक ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा नाभिकीय श्रृंखला अभिक्रिया को नियंत्रित किया जा सकता है तथा नियत दर पर उत्पन्न की जा सकती है।

नाभिकीय रिएक्टर का सबसे अधिक उपयोग विद्युत ऊर्जा के उत्पादन में होता है इसमें यूरेनियम का प्रयोग ईंधन के रूप में किया जाता है।

नाभिकीय रिएक्टर के भाग :-

1. ईंधन :- ईंधन वह पदार्थ है जिसका विखंडन किया जाता है। नाभिकीय रिएक्टर में ईंधन के रूप में यूरेनियम का प्रयोग किया जाता है।

2. मंदक :-  नाभिकों में विखंडन प्रक्रिया तीव्र गति से होती है मंदक द्वारा न्यूट्रॉनों की गति को मंद (कम) किया जाता है। इसके लिए ग्रेफाइट, बेरीलियम ऑक्साइड तथा भारी जल प्रयोग किए जाते हैं।

3. नियंत्रक छड़ें :- यह रिएक्टर के आंतरिक भाग हैं। नियंत्रक छड़ों का प्रयोग श्रंखला अभिक्रिया को एक निर्धारित स्तर पर स्थिर बनाए रखने में किया जाता है। ये छड़ें कैडमियम अथवा बोरॉन की होती हैं। चूंकि कैडमियम अथवा बोरॉन मंद न्यूट्रॉनों के अच्छे अवशोषण होते हैं

4. शीतलक :- शीतलक वह पदार्थ होते हैं। जो विखंडन होने पर उत्पन्न अत्यधिक ऊष्मा की मात्रा को अवशोषित कर लेते हैं। इसके लिए जल, वायु अथवा कार्बन डाइऑक्साइड को रिएक्टर में प्रवाहित करते हैं।

5. परिरक्षक :- रिएक्टर क्रोड से निकलने वाली रेडियोधर्मी विकिरणें रिएक्टर के समीप कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए घातक हो सकती हैं। अतः इससे बचने के लिए रिएक्टर के चारों ओर कंक्रीट की दीवार बनाई जाती है।

नाभिकीय रिएक्टर के उपयोग :-

1.नाभिकीय रिएक्टर का सर्वाधिक उपयोग विद्युत ऊर्जा के उत्पादन में किया जाता है।

2.प्लूटोनियम (Pu239) के उत्पादन में।

3.कृत्रिम रेडियो-आइसोटोप के उत्पादन में।


9.नाभिक की बंधन ऊर्जा से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर:-


नाभिक की बंधन ऊर्जा :-

किसी नाभिक की वह न्यूनतम ऊर्जा जो नाभिक के न्यूक्लिऑनों (प्रोटोनों और न्यूट्रॉनों) को परस्पर पृथक-पृथक करने के लिए आवश्यक होती है। नाभिक की बंधन ऊर्जा कहलाती है। बंधन ऊर्जा को ∆E द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

किसी नाभिक की बंधन ऊर्जा जितनी अधिक होगी, वह नाभिक उतना ही अधिक स्थायी होगा। बंधन ऊर्जा नाभिक के स्थायित्व की माप होती है।

द्रव्यमान क्षति एवं बंधन ऊर्जा में संबंध :-

नाभिक की बंधन ऊर्जा = द्रव्यमान क्षति × (प्रकाश की चाल)2

या 

                                                                         ∆E=∆m×c2  जूल

 

अतः नाभिक की बंधन ऊर्जा, नाभिक की द्रव्यमान क्षति तथा प्रकाश की चाल के वर्ग के गुणनफल के बराबर होती है।

जहां c प्रकाश की चाल है। इसका मान 3.0 × 108 मीटर/सेकंड होता है इस समीकरण को आइंस्टीन का द्रव्यमान ऊर्जा समतुल्यता सिद्धांत कहते हैं।

Note – यहां बंधन ऊर्जा को जूल में व्यक्त किया गया है। अगर बंधन ऊर्जा को मेगा इलेक्ट्रॉन-वोल्ट में व्यक्त करना हो। तो

                                       1MeV=1.6×10-13 जूल

अतः जूल से MeV में बदलने के लिए 1.6 × 10-13 से भाग करते हैं. एवं इसके विपरीत MeV से जूल में बदलने के लिए 1.6 × 10-13  से गुणा करते हैं।

 

 

10. रेडियोएक्टिव पदार्थ  क्या है ? रेडियोएक्टिवता के अनुप्रयोग बताइए |

उत्तर:-

रेडियोएक्टिव पदार्थ :-

वह पदार्थ जिनमें स्वतः ही अदृश्य किरणें उत्सर्जित होती हैं। एवं यह किरणें फोटोग्राफिक प्लेट को भी प्रभावित करती हैं। इन किरणों को रेडियोएक्टिव किरणें कहते हैं। तथा इस प्रकार के पदार्थों को रेडियोएक्टिव पदार्थ कहते हैं।

यूरेनियम, थोरियम, एक्टिमियम, पोलोनियम तथा रेडियम आदि रेडियोएक्टिव पदार्थ के उदाहरण हैं। इन पदार्थों को रेडियोधर्मी पदार्थ के नाम से भी पुकारा जाता है।

रेडियोएक्टिवता :-

जब किसी पदार्थ से स्वतः ही अदृश्य किरणें निकलती रहती हैं तो उन पदार्थों को रेडियोएक्टिव पदार्थ कहते हैं। तथा किसी पदार्थ से स्वतः ही इस प्रकार की अदृश्य किरणों के उत्सर्जन की घटना को रेडियोएक्टिवता कहते हैं। तथा इसे रेडियोधर्मिता भी कहते हैं।

रेडियोएक्टिवता के व्यापक अनुप्रयोग उद्योगों, चिकित्सा तथा कृषि के क्षेत्र में किए जाते हैं।

 

रेडियोएक्टिवता के अनुप्रयोग :-

रेडियोएक्टिवता के हमारे दैनिक जीवन में अनेक अनुप्रयोग हैं। जिनमें से कुछ निम्न प्रकार से हैं।

1. रेडियोएक्टिवता का प्रयोग चिकित्सा क्षेत्र में कैंसर के इलाज में।

2. कृषि के क्षेत्र में, फसलों, फलों और सब्जियों के भंडारण से पहले उन पर विकिरणों का प्रयोग कर उन्हें क्षति से बचाया जा सकता है।

3. भूगर्भ विज्ञान में, पुरानी जीवाश्मों के आयु का निर्धारण करने में।

4. उद्योगों में, बड़ी और भारी मशीनों की आपूर्तियों को पहचानने के लिए।

 

11. रेडियोएक्टिव क्षय का नियम लिखिए | 


उत्तर:-


रेडियोएक्टिव क्षय :-

जब किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ के परमाणुओं से ɑ अथवा β-कण तथा γ-किरणें निकलते हैं। तब इससे परमाणु का भार एवं क्रमांक परिवर्तित हो जाता है। एवं इसके पश्चात एक नए तत्व के परमाणु का जन्म हो जाता है। इस घटना को रेडियोएक्टिव क्षय कहते हैं। इसे रेडियोएक्टिव विघटन भी कहा जाता है।

रेडियोएक्टिवता एक नाभिकीय परिघटना है जिसमें अस्थायी नाभिक क्षयित होता है।

प्रकृति में तीन प्रकार के रेडियोएक्टिव क्षय होते हैं।

1. ɑ-क्षय – इसमें हीलियम नाभिक उत्सर्जित होते हैं।

2. β-क्षय – इसमें इलेक्ट्रॉन अथवा पॉजीट्रॉन उत्सर्जित होते हैं।

3. γ-क्षय – इसमें उच्च ऊर्जा के फोटोन उत्सर्जित होते हैं।

रेडियोएक्टिव क्षय का नियम :-

इस नियम को रेडियोएक्टिव क्षय के संबंध में रदरफोर्ड और सोडी का नियम भी कहते हैं।

इस नियम के अनुसार, किसी क्षण क्षयित होने रेडियोएक्टिव परमाणुओं की संख्या, उस क्षण उपस्थित कुल रेडियोएक्टिव परमाणुओं की संख्या के अनुक्रमानुपाती होती है। इसे रेडियोएक्टिव क्षय का नियम कहते हैं।

माना dt समय में क्षयित होने वाले रेडियोएक्टिव परमाणुओं की संख्या dN है। तथा रेडियोएक्टिव परमाणुओं की कुल संख्या N हो, तो

रदरफोर्ड-सोडी के नियमानुसार,

                                            - dNdt ∝ N

या                                           dNdt = – λN

जहां λ एक नियतांक है। जिसे रेडियोएक्टिव क्षय नियतांक अथवा विघटन नियतांक कहते हैं। तो

                                             dNN= – λdt

इस समीकरण का दोनों ओर समाकलन करने पर

                                          N0NdNN = – λ N0Ndt

या log N – log N0= – λ(t – t0)

यहां t = 0 पर रेडियोएक्टिव नाभिकों की संख्या N0 है। तो

                                log N – log N0= – λt – 0

या                                    log NN0= – λt

सूत्र log a = ea से

                                                 NN0= e-t

                                                                         N= N0 e-t

इस समीकरण को रेडियोएक्टिव क्षय नियम का समीकरण कहते हैं।

जहां N0 व N क्रमशः प्रारम्भ में तथा t समय पश्चात रेडियोएक्टिव पदार्थ के परमाणुओं की संख्याएं हैं।

 

12. नाभिकीय ऊर्जा  क्या है ?नाभिकीय ऊर्जा की उपयोगिताएँ लिखिए | 


उत्तर:-


नाभिकीय ऊर्जा :-

किसी रेडियोसक्रिय तत्व के नाभिक में होने वाले परिवर्तनों के दौरान नाभिक के द्रव्यमान में होने वाली क्षति का ऊर्जा में परिवर्तन के परिणामस्वरूप प्राप्त ऊर्जा की नाभिकीय ऊर्जा कहलाती है।

यूरेनियम, रेडियम तथा थोरियम, आदि तत्वों के नाभिकों में कूल कणों (प्रोटॉनों तथा न्यूट्रॉनों) की विशेष अवस्था के कारण जो स्थितिज ऊर्जा निहित होती है वही ‘नाभिकीय ऊर्जा‘ कहते हैं। नाभिकीय ऊर्जा, एक परमाणु के नाभिक या कोर  में पाई जाने वाली ऊर्जा है

नाभिकीय ऊर्जा की उपयोगिताएँ:-

1. नाभिकीय रिएक्टरों में यूरेनियम (92U235) के परमाणुओं को मंद न्यूट्रॉनों द्वारा विखंडन के परिणामस्वरूप मुक्त ऊष्मा ऊर्जा की विपुल राशि से जल को भाप में बदलकर टरबाइन चलाये जाते हैं, जिससे विद्युत ऊर्जा उत्पन्न होती है।

2. नाभिकीय ऊर्जा का उपयोग वायुयान, जहाज, पनडुब्बी, आदि चलाने में किया जाता है।

3. रॉकेट उड़ाने में भी नाभिकीय ऊर्जा का उपयोग किया जा रहा है।

4. सूर्य एवं अन्य तारों से प्राप्त ऊष्मा एवं प्रकाश ऊर्जा का स्रोत नाभिकीय संयोजन अभिक्रियाएँ हैं जो वहां लगातार चलती रहती हैं।

 

13.अल्फा क्षय  क्या है ? समझाइए | 

 

उत्तर:-

अल्फा क्षय :-

अल्फा क्षय एक प्रकार का रेडियोधर्मी क्षय है जिसमें परमाणु के नाभिक से अल्फा कण का उत्सर्जन होता है और एक नया परमाणु बनता है जिसकी द्रव्यमान संख्या मूल परमाणु से ४ कम होती है तथा परमाणु संख्या मूल परमाणु के परमाणु संख्या से २ कम होती है। अल्फा-कण हिलियम-4 परमाणु के नाभिक जैसा है जिसमें 2 प्रोटॉन और 2 न्यूट्रॉन होते हैं।

उदाहरण के लिये, यूरेनियम-238 का अल्फा-क्षय होकर थोरियम-234 बनता है ;

 

92U238  90Th234 +

 

या,

92U238  90Th234 + 2He4

14. बीटा क्षय क्या है ? समझाइए | 

उत्तर:-

बीटा क्षय :-

बीटा क्षय (बीटा-डीके) एक प्रकार का रेडियोधर्मी क्षय होता है, जिसमें बीटा कण (एक विद्युत अणु (इलेक्ट्रॉन) या एक धन अणु (पॉज़िट्रॉन)) उत्सर्जित होते हैं। यह दो प्रकार का होता है। विद्युत अणु उत्सर्जन होने पर, इसे बीटा-ऋण (β⁻) कहते हैं, जबकि धन अणु उत्सर्जन होने पर इसे बीटा धन (β+) कहते हैं। बीटा कणों की गतिज ऊर्जा लगातार वर्णक्रम की होती है और इसका परास शून्य से अधिकतम उपलब्ध ऊर्जा तक होता है।

कार्बन-14 का क्षय होकर नाइट्रोजन-14 में बदलना इलेक्ट्रॉन क्षय ( या β− क्षय) का उदाहरण है। इसी प्रकार, मैगनीशियम-23 का क्षय होकर सोडियम-23 में परिवर्तन पॉजिट्रॉन-क्षय या β+ क्षय का उदाहरण है।

नीचे दो अन्य उदाहरण दिये गये हैं-

 

55Cs137   56Ba137   + e-   + ve                  (-)

 

 11Na22   10Ne22   + e+   + vc                    (+)

बीटा-क्षय का सामान्य सूत्र-

 

ZXA   Z-1YA   + e+   + vc

15.गामा क्षय से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर:-

गामा क्षय :-

गामा क्षय एक प्रकार का रेडियोधर्मी क्षय है जिससे एक नाभिक गुजर सकता है। इस प्रकार की क्षय प्रक्रिया को अल्फा या बीटा क्षय से अलग करने वाली बात यह है कि इस प्रकार के क्षय से गुजरने पर नाभिक से कोई कण बाहर नहीं निकलता है। इसके बजाय, विद्युत चुम्बकीय विकिरण का एक उच्च ऊर्जा रूप - एक गामा किरण फोटॉन - जारी किया जाता है। गामा किरणें केवल फोटॉन होती हैं जिनमें अत्यधिक उच्च ऊर्जा होती है जो अत्यधिक आयनकारी होती हैं । [1] साथ ही, गामा विकिरण इस अर्थ में अद्वितीय है कि गामा क्षय से गुजरने से परमाणु की संरचना या संरचना में परिवर्तन नहीं होता है. इसके बजाय, यह केवल परमाणु की ऊर्जा को बदलता है क्योंकि गामा किरण में कोई आवेश नहीं होता है और न ही इसका कोई द्रव्यमान होता है ।

 

       क्षय के विभिन्न उत्पादों के विभिन्न प्रवेश स्तर, गामा के साथ सबसे अधिक मर्मज्ञ में से एक है। 

 

गामा क्षय से गुजरने के लिए एक नाभिक के लिए, यह किसी प्रकार की उत्साहित ऊर्जावान अवस्था में होना चाहिए। प्रयोगों से पता चला है कि प्रोटॉन और न्यूट्रॉन नाभिक के भीतर असतत ऊर्जा अवस्थाओं में स्थित होते हैं , उत्तेजित अवस्थाओं से बहुत अलग नहीं होते हैं जो इलेक्ट्रॉन परमाणुओं में व्याप्त हो सकते हैं। [4] इस प्रकार यदि नाभिक के अंदर एक प्रोटॉन या न्यूट्रॉन एक उत्तेजित अवस्था में कूदता है - आम तौर पर एक अल्फा या बीटा क्षय के बाद - नई बेटी नाभिक को किसी तरह ऊर्जा जारी करनी चाहिए ताकि प्रोटॉन या न्यूट्रॉन वापस जमीनी अवस्था में आराम कर सकें . जब न्यूक्लियॉन इस संक्रमण को उच्च से निम्न ऊर्जा अवस्था में बनाता है, तो एक गामा फोटॉन उत्सर्जित होता है।






16.नाभिकीय ऊर्जा क्या हैं? नाभिकीय ऊर्जा का महत्त्व का वर्णन कीजिये | 

उत्तर:-

जब दो या दो से अधिक भारी नाभिको का हल्के नाभिकों में अपघटन होता है अर्थात नाभिकीय विःखंडन होता हैं या दो या दो से अधिक नाभिक छोटे टुकड़ों में टूट जाते है या फिर दो या दो से अधिक छोटे नाभिक मिलकर बड़े नाभिक का निर्माण करते है ,इन सभी घटनाओं में ऊर्जा की मात्रा प्राप्त होती है एवम इसी ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा कहते है।

नाभिकीय ऊर्जा का महत्त्व :-

नाभिकीय ऊर्जा का उपयोग बहुत जगह किया जाता है ।

इसका उपयोग विद्युत उत्पादन में होता है।नाभिकीय रिएक्टर से जो ऊष्मा मिलती है उसका उपयोग भाप बनाने में किया जाता है ,जिसके बाद उससे बिजली बनती है। वर्ष 2009 में दुनिया की 15% बिजली का उत्पादन नाभिकीय ऊर्जा से हुआ था।

अंतरिक्ष में नाभिकीय ऊर्जा के विखंडन तथा संलयन दोनो का ही उपयोग होता है।

नाभिकीय ऊर्जा के लाभ :-

इसके निर्माण में CO2 की कम मात्रा का उत्पादन होता है इसकी वजह से पर्यावरण को कोई हानि नहीं होती है। अत: नाभिकीय ऊर्जा ग्लोबल वार्मिग में किसी भी प्रकार का योगदान नही देती।

नाभिकीय ऊर्जा के उत्पादन में केवल एक प्रकार की ईकाई ही उपयोग में आती है।

ये नाभिकीय ऊर्जा का महत्त्व है।

नाभिकीय ऊर्जा की हानिया :-

जब नाभिकीय ऊर्जा का उत्पादन होता है तब बहुत अधिक मात्रा में कार्बनिक अपशिष्ट का निर्माण होता है और इस अपशिष्ट को सुरक्षित निबटान की समस्या बनी रहती है।

अगर नाभिकीय ऊर्जा बनाते समय किसी प्रकार की दुर्घटना हो जाए तो उससे बहुत हानिकारक प्रभाव पड़ता है और इस प्रकार की दुर्घटना में बड़े खतरे की भी संभभना होती हैं।

नाभिकीय ऊर्जा के उत्पादन में जो धातु उपयोग में आता है वह यू रनियम हैं जो प्रकृति में बहुत कम मात्रा में उपलब्ध है।कुछ सूत्रों के अनुसार आने वाले 30 से 60 वर्षो में ये खत्म होने की कगार पर होगा।




17.परमाणु ऊर्जा क्या है? इसके लाभ तथा हानि का वर्णन कीजिये | 

परमाणु ऊर्जा एक परमाणु के मूल में ऊर्जा है। जहां एक परमाणु एक छोटा कण है जो ब्रह्मांड में हर पदार्थ का निर्माण करता है। आम तौर पर, परमाणु का द्रव्यमान नाभिक के केंद्र में केंद्रित होता है। न्यूट्रॉन और प्रोटॉन दो उप-परमाणु कण हैं जो नाभिक को समझते हैं। परमाणुओं को एक साथ बाँधने वाले बंधों में ठीक भारी मात्रा में ऊर्जा होती है।

नाभिकीय ऊर्जा नाभिकीय अभिक्रियाओं द्वारा या तो विखंडन या संलयन द्वारा उत्सर्जित होती है। नाभिकीय संलयन में परमाणु आपस में मिलकर एक बड़े परमाणु का निर्माण करते हैं। परमाणु विखंडन में, परमाणुओं का विभाजन ऊर्जा को मुक्त करके छोटे परमाणु बनाने के लिए होता है। परमाणु ऊर्जा संयंत्र परमाणु विखंडन का उपयोग करके ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। सूर्य परमाणु संलयन के तंत्र का उपयोग करके ऊर्जा पैदा करता है।

परमाणु ऊर्जा के लाभ :-


1.कोई प्रदूषणकारी गैस नहीं पैदा करता है।

2.ग्लोबल वार्मिंग में योगदान नहीं करता है।

3.बहुत कम ईंधन लागत।

4. कम ईंधन मात्रा पर्यावरण पर खनन और परिवहन प्रभाव को कम करती है।

5. उच्च प्रौद्योगिकी अनुसंधान के लिए अन्य उद्योगों को लाभ की आवश्यकता है।

6. पावर स्टेशन का जीवनकाल बहुत लंबा होता है।

परमाणु ऊर्जा के हानि :-


1.अपशिष्ट रेडियोधर्मी है और सुरक्षित निपटान बहुत कठिन और महंगा है।

2.अपशिष्ट जल से स्थानीय तापीय प्रदूषण समुद्री जीवन को प्रभावित करता है।

3.बड़े पैमाने पर दुर्घटनाएं भयावह हो सकती हैं।

4.परमाणु शक्ति के बारे में जनता की धारणा नकारात्मक है।

5. निर्माण और सुरक्षित रूप से डीकमिशनिंग की लागत बहुत अधिक है।

6. बिजली की मांग में बदलाव पर जल्दी प्रतिक्रिया नहीं दे सकता।

 

 

18.(a) नाभिकीय विखण्डन क्या है ? एक अभिक्रिया दीजिए। 

(b) नाभिकीय संलयन क्या है ? एक अभिक्रिया दीजिए। 


उत्तर:-

(a) नाभिकीय विखण्डन :-

 जब किसी भारी नाभिक पर न्यूट्रॉनों की बमबारी की आती है तो वह लगभग समान आकार वाले नये तत्वों के नाभिकों में विभक्त हो जाता है। इस प्रक्रिया को नाभिकीय विखण्डन कहते हैं।

इस प्रक्रिया में अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा विमुक्त होती है ।

                  92U235 + 0n1 56Ba141 + 36Kr92 + 30n1  +200 Mev



(b) नाभिकीय संलयन :-

जब दो हल्के परमाणुओं के नाभिक संयुक्त होकर नया नाभिक बनाते हैं तो इस प्रक्रिया में अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा विमुक्त होती है। इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं।

                              1H2+ 1H2 → 1He4 + 24MeV.

19.नाभिक की बंधन ऊर्जा तथा  प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा का तात्पर्य क्या है ? ड्यूट्रॉन (1H2) और α-कण (2He4) की बंधन ऊर्जा क्रमश: 1.25 और 7.2 MeV प्रति न्यूक्लिऑन है। कौन-सा नाभिक अधिक स्थायी है ? 

उत्तर:-


नाभिक की बंधन ऊर्जा :-

किसी नाभिक की वह न्यूनतम ऊर्जा जो नाभिक के न्यूक्लिऑनों (प्रोटोनों और न्यूट्रॉनों) को परस्पर पृथक-पृथक करने के लिए आवश्यक होती है। नाभिक की बंधन ऊर्जा कहलाती है। बंधन ऊर्जा को ∆E द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

किसी नाभिक की बंधन ऊर्जा जितनी अधिक होगी, वह नाभिक उतना ही अधिक स्थायी होगा। बंधन ऊर्जा नाभिक के स्थायित्व की माप होती है।

 

बंधन ऊर्जा उस बाह्य ऊर्जा के बराबर होती है जो किसी नाभिक को उसके अवयवी न्यूक्लिऑनों में अपघटित करने के लिये आवश्यक होती है। नाभिक की बंधन ऊर्जा और नाभिक में न्यूक्लिऑनों की संख्या के अनुपात को प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा कहते हैं।

किसी नाभिक की प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा जितनी अधिक होती है, वह उतना ही अधिक स्थायी होता है। 2He4 की प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा 1H2 की प्रति न्यूक्लिऑन बंधन ऊर्जा से अधिक है। अतः 2He4 अधिक स्थायी है।

20. रेडियोएक्टिव पदार्थ  क्या है ? रेडियोऐक्टिव पदार्थ के क्षय नियतांक और औसत आयु की परिभाषा लिखिए और प्रत्येक का मात्रक बताइए। 

उत्तर:-

रेडियोएक्टिव पदार्थ :-

वह पदार्थ जिनमें स्वतः ही अदृश्य किरणें उत्सर्जित होती हैं। एवं यह किरणें फोटोग्राफिक प्लेट को भी प्रभावित करती हैं। इन किरणों को रेडियोएक्टिव किरणें कहते हैं। तथा इस प्रकार के पदार्थों को रेडियोएक्टिव पदार्थ कहते हैं।

यूरेनियम, थोरियम, एक्टिमियम, पोलोनियम तथा रेडियम आदि रेडियोएक्टिव पदार्थ के उदाहरण हैं। इन पदार्थों को रेडियोधर्मी पदार्थ के नाम से भी पुकारा जाता है।

रेडियोऐक्टिव पदार्थ का क्षय नियतांक :-

 किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ का क्षय नियतांक वह समय है जिसके पश्चात् रेडियोऐक्टिव पदार्थ में विघटन के कारण परमाणुओं की संख्या मूल मान का 1/e वाँ भाग रह जाती है।

 इसका मात्रक प्रति सेकण्ड है।

औसत आयु- किसी रेडियोऐक्टिव पदार्थ की औसत आयु समस्त परमाणुओं के आयु के योगफल और परमाणुओं की कुल संख्या के अनुपात के बराबर होती है।

                                               औसत आयु = 1

इसका मात्रक सेकण्ड है।

21.α – क्षय  क्या है ?α – कणों के प्रकीर्णन सम्बन्धी रदरफोर्ड का प्रयोग नाभिक का साइज ज्ञात करने में किस प्रकार सहायक है ? व्याख्या कीजिए। 

 

उत्तर:-

अल्फा क्षय :-

अल्फा क्षय एक प्रकार का रेडियोधर्मी क्षय है जिसमें परमाणु के नाभिक से अल्फा कण का उत्सर्जन होता है और एक नया परमाणु बनता है जिसकी द्रव्यमान संख्या मूल परमाणु से ४ कम होती है तथा परमाणु संख्या मूल परमाणु के परमाणु संख्या से २ कम होती है। अल्फा-कण हिलियम-4 परमाणु के नाभिक जैसा है जिसमें 2 प्रोटॉन और 2 न्यूट्रॉन होते हैं।

उदाहरण के लिये, यूरेनियम-238 का अल्फा-क्षय होकर थोरियम-234 बनता है ;

 

92U238  90Th234 +

 

या,

92U238  90Th234 + 2He4


परमाणु के अन्दर नाभिक में सम्पूर्ण धनावेश केन्द्रित होता है। -कणों में धनावेश होता है। अतः जब -कण नाभिक के पास आता है तो उस पर प्रतिकर्षण बल लगता है। ज्यों-ज्यों -कण नाभिक के स्थिर विद्युत्-क्षेत्र में नाभिक के नजदीक पहुँचता जाता है, प्रतिकर्षण बल के कारण उसकी गति मंद होती जाती है। फलस्वरूप उसकी स्थितिज ऊर्जा बढ़ती जाती है और गतिज ऊर्जा कम होती चली जाती है। जब a-कण विरामावस्था में आ जाता है तो उसकी सम्पूर्ण गतिज ऊर्जा स्थितिज ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।

नाभिक से वह कम से कम दूरी, जहाँ तक -कण पहुँच सकता है, निकटतम पहुँच की दूरी कहलाती है। यही निकटतम पहुँच की दूरी नाभिक की त्रिज्या के बराबर होती है।


22. द्रव्यमान-ऊर्जा समतुल्यता तथा  बन्धन ऊर्जा  को  परिभाषित कीजिए | 

उत्तर:-

द्रव्यमान-ऊर्जा समतुल्यता :-

सम्पूर्ण नाभिकीय ऊर्जा का मूल स्रोत है द्रव्यमान का ऊर्जा में परिवर्तन।

महान् वैज्ञानिक आइन्सटीन ने बताया कि प्रत्येक द्रव्यमान (m), ऊर्जा (E) के समतुल्य है:

                                                    E=mc2

 जहां, c निर्वात में प्रकाश की चाल है जो 3 x 108 मीटर/सेकण्ड होती है। इस प्रकार एक किलोग्राम द्रव्यमान के समतुल्य ऊर्जा 1 x (3 x 108) = 9 x 1016 जूल होती है। यह अति विशाल ऊर्जा है। अत: m किलोग्राम द्रव्यमान के लुप्त होने mc2 जूल ऊर्जा उत्पन्न होती है तथा 5 जूल ऊर्जा के उत्पन्न होने पर E/c2 किलोग्राम द्रव्यमान की क्षति होती है।

बन्धन ऊर्जा :-

नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनन्यूट्रॉन को ‘न्यूक्लिऑन’ कहते हैं। नाभिक का वास्तविक द्रव्यमान उसमें उपस्थित न्यूक्लिऑनों के द्रव्यमानों के योग से सदैव कुछ कम होता है। यह द्रव्यमान अन्तर ‘द्रव्यमान क्षति’ कहलाता है।

जब प्रोटॉन व न्यूट्रॉन मिलकर नाभिक की रचना करते हैं, तो कुछ द्रव्यमान लुप्त हो जाता है। यह लुप्त द्रव्यमान ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है। अतः न्यूट्रॉन व प्रोटॉन के संयोग से किसी नाभिक के बनने में जो ऊर्जा विमुक्त होती है उसे नाभिक की बन्धन ऊर्जा कहते हैं।

23.रेडियोएक्टिव पदार्थ  क्या है ? रेडियोऐक्टिव पदार्थों से निकलने वाली विभिन्न किरणों के नाम लिखिए।


उत्तर:-

रेडियोएक्टिव पदार्थ :-

वह पदार्थ जिनमें स्वतः ही अदृश्य किरणें उत्सर्जित होती हैं। एवं यह किरणें फोटोग्राफिक प्लेट को भी प्रभावित करती हैं। इन किरणों को रेडियोएक्टिव किरणें कहते हैं। तथा इस प्रकार के पदार्थों को रेडियोएक्टिव पदार्थ कहते हैं।

यूरेनियम, थोरियम, एक्टिमियम, पोलोनियम तथा रेडियम आदि रेडियोएक्टिव पदार्थ के उदाहरण हैं। इन पदार्थों को रेडियोधर्मी पदार्थ के नाम से भी पुकारा जाता है।


किसी पदार्थ से स्वतः ही बैकरल किरणों के निकलने की घटना को रेडियो ऐक्टिविटी कहते हैं। रेडियोऐक्टिव पदार्थ से निम्न किरणें निकलती हैं

α – किरणें,

β – किरणें और

γ – किरणें। 

24. नाभिक क्या है ? नाभिक के आकार का वर्णन कीजिये | 

उत्तर:-

नाभिक :-

रदरफोर्ड ने ɑ-कण पर प्रकीर्णन के प्रयोगों के अध्ययन द्वारा यह ज्ञात किया कि परमाणु का समस्त धन आवेश 10-15 मीटर की कोटि के एक सूक्ष्म स्थान पर संकेन्द्रित रहता है। जिसे परमाणु का नाभिक कहते हैं।

नाभिक में न्यूट्रॉन तथा प्रोटोन उपस्थित रहते हैं। एवं इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारो और निश्चित कक्षाओं में घूमते रहते हैं।

नाभिक का आकार :-

नाभिक का आकार 10-15 मीटर की कोटि का होता है।

प्रयोग द्वारा यह ज्ञात किया गया, कि नाभिक का आयतन, उसमें उपस्थित न्यूक्लिऑनों की संख्या के अनुक्रमानुपाती होता है।

माना नाभिक की त्रिज्या R तथा न्यूक्लिऑनों की संख्या A है तो

                                                                              43πR3 ∝ A

चूंकि परमाणु का आकार गोलाकार होता है तो यहां पर गोले के आयतन का सूत्र प्रयोग किया गया है।

या                                                           R3 ∝ A

                                            R ∝ A13

तो                                                 R = R0A13

जहां R0 एक नियतांक है। इसका मान लगभग 1.2 × 10-15  मीटर होता है।

 

25.(a) β – किरणें नाभिक से निकलती हैं। ये किरणें तीव्रगामी इलेक्ट्रॉनों से मिलकर बनी होती हैं। परंतु नाभिक में इलेक्ट्रॉन नहीं होते। फिर ऐसा कैसे होता है ?

(b)β – कण, α – कण की तुलना में अधिक वेधन क्षमता रखते हैं जबकि इनकी किसी गैस के आयनीकरण की क्षमता कम होती है। ऐसा क्यों ?

उत्तर:-

(a) नाभिक में इलेक्ट्रॉन नहीं होते। वास्तव में नाभिक में न्यूट्रॉन के प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन में विघटन के कारण B-कण उत्पन्न होते हैं।

                                       n             p    +   e- 

                                    (न्यूट्रॉन)   (प्रोटॉन)     (इलेक्ट्रॉन)

या                      

                                         0n1 1H1 + -1e0

(b) β – कणों का आकार छोटा तथा वेग अधिक होने के कारण इन कणों की α – कणों की तुलना में वेधन क्षमता अधिक होती है। साथ ही आकार छोटा और वेग अधिक होने के कारण गैस के अणुओं से टकराने की संभावना कम हो जाती है। अतः α – कणों की तुलना में β-कणों की आयनीकरण क्षमता कम होती है।